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________________ बीकानेर जैन लेख संग्रह दानशेखर उपासरा (रांगड़ी का चौक) ( २५५०) (१) पृथवी तल मांहे प्रगटः बड़ा नगर बीकाण । (२) सुरतसींह महाराजजुः राज कर सुविहाण ॥१॥ ( ३ ) गुणी क्षमामाणिक्य गणिः पाठक पुण्यप्रधान । ( ४ ) वाचक विद्याहेम गणिः सुप्रत सुख संस्थान ॥२॥ (५) सय अठार गुणसट्ठ में महिरवान महाराज । (६) नव्य बनाय उपासरो दियो सदा थित काज ॥१॥ उ. जयचन्द्र जी के उपाश्रय का लेख ( २५५१ ) श्री गणेशाय नमः घर यति लक्ष्मीचन्द जी रो छ । सं० १८२२ आषाढ़ वदि १० दि ( २५५२ ) ॥ श्री वीर सं०। २४२१ विक्रम संवत् १९५१ आश्विन शुक्ल पक्षे विजयदशम्यां श्री विक्रमपुरवरे श्री महाराजाधिराज गंगासिंहजी बहादुर विजयराज्ये चतुर्विंशतितम जगदीश्वर जैन दिवाकर पुरुषोत्तम श्री महावीर स्वामी के ६५ पाटे कौटिक गच्छ चन्द्रकुल वज्रशाखा श्री वृहत् खरतर विरुदधारक श्री जैनाचार्य श्रीजिनचन्द्रसूरीश्वरजी के अंतेवासी विद्यानिधान पूज्य पाठक श्री उदय तिलकजी गणि तच्छिष्य पूज्य पा०। श्री अमरविजयजी गणित । पु। श्री लाभकुशल जी गणि त । पु। श्री विनयहेम जी गणि ।ता पू । सुगुण प्रमोद जी गणि त । पू। श्री विद्याविशाल जी गणिः । त।पू। पाठक वर्तमान श्रीलक्ष्मीप्रधानजी गणिः उपदेशात् त । पं० मोहनलाल अपर नाम मुक्तिकमल मुनिना तत्वदीपक मोहन मण्डली सर्व संघस्य ज्ञान वृद्धयर्थ श्री जैन लक्ष्मीमोहनशाला नामकं इदं पुस्तकालयः कारापितं ।। दूहा ॥ जव लग मेरु अडिग है, जब लग शशि अरु सूर। तब लग या शाला सदा रहजो गुण भरपूर ॥१॥ हमारा सर्व मकान भण्डार किया पुस्तकादिक को कोई कालै कुशिष्य बेच सके नहीं। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
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