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________________ श्री वासुपूज्यजी का मन्दिर पाषाण प्रतिमा के लेख (गर्भगृह) (१३८२) श्री पार्श्वनाथजी संवत् ११५५ उ ।। मटद वि ५ संघे श्री देवसैन संज्ञद्वई फामश व दादुसा..."मोगवौन कारितं संघारकट गृहे केवं जिनालयंमि ( १३८३) श्री पार्श्वनाथजी संवत् ११५५ उ ।। मटद वि ५ संघे श्री देवसेन संज्ञद्वई फामस व दादुसा........ जोगवौन कारितं संघारकट गृहे केवं जिनालयंमि (१३८४) चार पादुकाओं पर सं० १८५० मि० ज्येष्ठ सुदि ६ तिथौ श्री वृहत्खरतर गच्छेश श्री जिनचन्द्रसूरि विजय राज्ये श्री बीकानेर वास्तव्य श्री ...........युगप्रधान गुरु पादन्यास कारिता प्रतिष्ठापिताश्च श्री ।। श्री जिनदत्त सूरीणां । श्री जिनकुशल सूरिणां । श्री जिनचन्द्रसूरीणां । श्री जिनसिंह सूरिणा ॥ दाहिनी ओर देहरी में ( १३८५) सं० १९०५ रा वर्षे मि । वैशाख सुदि १५ तिथ गुरुवासरे श्री बीकानेर नगरे श्री वासुपूज्य जिन बिंबं प्रतिष्ठितं च बृहत्खरतर भट्टारक गच्छेश जं० यु० प्र०। श्री जिनहर्षसूरि तत्पट्टालंकार जं। यु । प्र । भ । श्री जिनसौभाग्य सूरिभिः कारा । ह्वा। को० श्री मदनचंदजी सपरिवार युतेन स्वश्रेयसे॥ यी ओर देहरी में (१३८६) श्री शीतलनाथजी संवत् १६०४ वर्षे प्रथम ज्येष्ठ कृष्ण पक्षे ८ तिथौ शनिवासरे श्री शीतलजिन बिंबं प्रतिष्ठितं बृहत्खरतर भट्टारक गच्छे जं । यु । प्र। भ । श्री जिनसौभाग्य सूरिभिः समस्त श्री संघेन स्वश्रेयो) "Aho Shrut Gyanam
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
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