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श्री अजितनाथजी का मन्दिर
यह मन्दिर कोचरों की गुवाड़ में सिरोहियों के घरोंके पास है। जैसा कि हम आगे लिख चुके हैं इसका निर्माणकाल सं० १६७० के लगभग का है। मूलनायक श्री अजितनाथजी की मूर्ति सं० १६४१ की प्रतिष्ठित है पर अन्य स्थान से लायी हुई ज्ञात होती है। इसी मंदिर में सं० १६६४ वैशाख शुक्ला ७ को विजय सेनसुरि प्रतिष्ठित हीरविजयसूरि मूर्ति है। बाह्यमण्डप के शिलापट्ट में सं० १८७४ में दीपविजयजी के उपदेश से श्रीसंघके द्वारा प्रतिमंडप करानेका उल्लेख है और एक अन्य लेख में सं० १८५५ में इस मंदिर के जीर्णोद्धार वृद्धिविजय गणि के उपदेश से होनेका उल्लेख है ! उसके पश्चात् सं० १६६६ में इसका जिर्णोद्धार हुआ।
बीकानेर के प्राचीन एवं प्रधान ८ मंदिरों का परिचय उनके अन्तर्गत मंदिरों के साथ दिया जा चुका है। अब शहर के अन्य मंदिरों का परिचय देकर फिर बाहर के मंदिरों का परिचय दिया जायगा ।
श्री विमलनाथजी का मन्दिर
यह मंदिर कोचरोंकी गुवाड़ में अजितनाथजी के मंदिर के पास है। सं० १६६४ माघ शुक्ला १३ शनिवार को कोचर अमीचंद हजारीमल ने इसकी प्रतिष्ठा करवाई | मूलनायक प्रतिमा सं० १६२१ माघ सुदि ७ को राजनगर में खेमाभाई कारित और शांतिसागरसूरि प्रतिष्ठित है। हीरविजयसूरि और सुधर्मास्वामी की चरणपादुका के लेखमें इस मन्दिर के वास्ते सीरोहिया तेजमालजी ने मेहता मानमलजी कोचर के हस्ते २६४ गज और डागा दुलीचंद ने गज ६५ ॥ = डागा पूनमचंद की बहूके द्वारा गज १३८|| - जमीन देनेका उल्लेख मिलता है । श्री पार्श्वनाथजी का मन्दिर
यह जिनालय सं० १८८१ मिती जेठ सुदि १३ को हंसविजयजी के उपदेश से कोचरसिरोहिया संघने उपर्युक्त मन्दिर के पास बनवाया ।
श्री आदिनाथजी का मन्दिर
उपर्युक्त मन्दिर से संलग्न है इसके निर्माण का कोई शिलालेख नहीं है। मूलनायक जी सं० १८६३ माघ सुदी १० प्रतिष्ठित है।
श्री शांतिनाथजी का देहरासर
यह देहरासर उपर्युक्त मन्दिर के पास कोचरों के उपाखरे में है। इसके निर्माण का कोई उल्लेख नहीं मिलता। इसमें सं० १६६४ की प्रतिष्ठित साध्वी चंदनश्री की पादुका मौर सं० १६७२ की प्रतिष्ठित जैनाचार्य श्री विजयानंदसूरिजी की मूर्ति है।
"Aho Shrut Gyanam"