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________________ [ ३७ ] सेठिया का व दूसरा श्री जिनहर्षसूरिजी का है। इस मन्दिर के सन्मुख खरतर गच्छीय मथेन सामीदास की जीवित छतड़ी और उसकी पत्नीकी छतड़ी सं० १७६० की बनी हुई है। इसके आगे गुरु पादुका मन्दिर है। जिसमें दादा श्री जिनकुशलसूरिजी के चरण और खरतर गच्छाचार्योंका पट्टावली पट्टक है जिसमें ७० चरण है, इसकी प्रतिष्ठा सं० १८६६ वैशाख शुक्ला को ३० क्षमाकल्याणजी ने की थी। इस मन्दिर के दाहिनी ओर श्री आदिनाथजी का मन्दिर है जिसे सं० १९२३ फाल्गुन बदि ७ को खरतर गच्छीय दानसागर गणिके उपदेश से सुश्रावक धर्मचन्द्र सुराणा की पत्नी लाभकुंवर बाईने बनवाया। यहां ओलीजीमें नवपद् मंडल की रचना सं० १६१६ से प्रारम्भ हुई, तत्कालीन महाराजा श्री सरदारसिंहजी ने स्वयं समारोह पूर्वक आकर ११) भेंट किये। सं० १६१७ के आश्विन सुदि ७ को पुनः नवपद मंडल रचा गया, महाराजा ने आकर ५०) रु० भेंट किये और प्रति वर्ष पूजाके लिए ५०) देनेका मंत्रीको हुक्म दिया इस मन्दिर के सन्मुख सुन्दर बगीचा लगा हुआ है जिसके कारण मन्दिर की शोभामें अभिवृद्धि हो गई है। श्री संखेश्वर पार्श्वनाथ (सेढूजीका) मन्दिर यह मन्दिर उपर्यक्त बगीचे में प्रवेश करते दाहिने हाथकी ओर है। इसकी प्रतिष्ठा सं० १९२४ में समुद्रसोमजी (सेढूजी ) ने स्वयं इस मन्दिर को बनवा कर की। यद्यपि यह मन्दिर पार्श्वनाथ भगवान का है पर यतिवर्य सेढूजी के बनवाया हुआ होनेसे उन्हींके नामसे प्रसिद्ध है। मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी की प्रतिमा सं० १९१२ प्रतिष्ठित है। इस मन्दिर के दाहिनी मोर शालामें १ सुमतिविशाल २ सुमतिजय ३ गजविनय और समुद्रसोमजी के चरण प्रतिष्ठित थे जो शालाके भग्न हो जानेसे मन्दिर के पार्श्ववर्ती श्रीमद् ज्ञानसारजी.के समाधिमंदिर में रख दिये गये हैं। श्री ज्ञानसार समाधिमन्दिर श्रीमद् ज्ञानसारजी १६ वीं शताब्दी के राजमान्य परम योगी, उत्तम कवि और खरतर गच्छके प्रभावशाली मुनिपुङ्गव थे। उन्होंने अपने अंतिम जीवन के बहुत से वर्ष गौड़ी पार्श्वनाथजी के निकटवर्ती ढढोंकी साल आदि में बिताये थे। सं० १८६८ में आपका स्वर्गवास हुआ। उनके अग्निसंस्कार स्थल पर यह मन्दिर बना जिसमें आपके चरण सं० १६०२ में प्रतिष्ठित है । कोचरोंका गुरु मन्दिर गौड़ी पार्श्वनाथजीसे स्टेशनकी ओर जाती हुई सड़कपर यह गुरुमंदिर हाल ही में बना है। इसकी प्रतिष्ठा सं० २००१ वैशाख सुदि ६ शुक्रवार को तपागच्छीय आ० श्रीविजयवल्लभसूरिजी ने की है इसमें प्रवेश करते ही सामने कलिकाल सर्वज्ञ श्रोहेमचंद्रसरि, जगद्गुरु श्रोहीरविजयसूरि और जैनाचार्य श्री विजयानंदसूरिजी की मूर्तित्रय स्थापित है। उसके पीछे की ओर श्री पार्श्वनाथ स्वामी का मन्दिर है जिसमें सं० २००० वैशाख सुदि ६ को रायकोट "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
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