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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहिन *
[ ४५ 000000000000000000000000sroroscorreso.0000000restresss0000000000000000
अर्थः-प्राकृत-भाषा के आकारान्त. इकारान्त, उकारान्त, ईकारान्त और ऊकारान्त स्त्रीलिंग वाले शब्दों में प्रथमा विभक्ति के बहुचन के प्रत्यय 'जस' के स्थान पर और द्वितीया विभक्ति के बढुव धन के प्रत्यय 'शस्' के स्थान पर-वैकल्पिक रूप से 'उत्तर' और 'श्रोत-यो' प्रत्ययों को प्राप्ति होती है। अर्थात् प्रथमा और द्वितीया विभक्ति में से प्रत्येक के बहुवचन में कम से तथा वैकल्पिक रूप से 'उ' और 'प्रो' ऐसे दो दो प्रत्ययों की प्राप्ति होती है। साथ में यह भी ध्यान में रखना चाहिये कि इन 'उ' अथ ।। 'ओ' प्रत्ययों को प्राप्ति के पूर्व शब्दान्त्य ह्रस्व स्वर को दीर्घ-स्वर की प्राप्ति हो जाती है । अर्थात हस्व इकारान्त को दो ईकारान्त को प्राप्ति होती है एवं हस्त्र उकारान्त दीर्घ ऊकारान्त में परिणत हा जाता है । वृति में 'प्रत्येकम्' शन को लिखने का यह तात्पर्य है कि स्त्रीजिंग वाले सभी शब्दों में और प्रथमा--द्वितीया के बहुवचन में-(दोनों विभक्तियों में)' और 'श्री' प्रत्ययों को कम से तथा वैकल्पिक रूप से प्राप्ति होती है । जैसे:--प्राकारान्त स्त्रोलिंग का उदाहरणः - मालामालाउ और मालाथो; इकारान्त स्त्रोलिंग का उदाहरणः-बुद्धयः ओर बुद्धी:-बुद्धीउ और बुद्धोश्रो; ईकारान्त स्त्रीलिंग का सदाहरणः-संख्या और मखीन्सहीठ और सहीओ; उकारान्त स्त्रीलिंग का उदाहरणः-धेनवः और धेनूः धेशूज और घेणूओं; एवं ऊकारान्त स्त्रीलिंग का उदाहरणः-वध्वः और वधूः-बहूउ और वहूरो। वैकल्पिक पक्ष होने से इन्ही उदाहरणों में क्रम से एक एक रूप इस प्रकार भी होता है:-माला, चुद्धी, सही, धेए और वहू । ये रूप प्रथमा और द्वितीया विभक्ति के बहुवचन के जानना; यों स्त्रीलिंग वाले शब्दों में प्रथमा तथा द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में रूपों की समानता तथा एक रूपता है।
प्रश्न:-सूत्र के प्रारम्भ में 'स्त्रियाम्' अर्थात स्त्रीलिंग वाले शब्दों में ऐसा उल्लेख क्यों किया गया है?
उत्तर:-जो प्राकृत-शम्ब स्त्रोलिंग वाले नहीं होकर-पुल्लिंग वाले अथवा नपुसक लिंग वाले हैं; अनमें प्रथमा अथवा द्वितीया विमक्ति के बहुवचन में 'जस' अथवा शम' प्रत्यय की प्रामि होने पर 'उ'
और 'श्री' प्रत्ययों की इनके स्थान पर श्रादेश-प्राति नहीं होती है। 'उ' अथवा 'श्री' की श्रादेश-प्राप्ति केवल स्त्रीलिंग वाले शब्दों के लिये ही है। ऐसा स्पष्ट-विधान प्रस्थापित करने के लिये हो सूत्र के प्रारम्भ में 'स्त्रियाम्' जैसे शब्द को रखने को आवश्यकता हुई है । जैसे:-वृक्षाः = वच्छा और वृक्षान् = बच्छ।। इन उदाहरणों से विदित होता है कि पुल्लिंग में 'जस् अथवा शम' के स्थान पर '' और 'ओ' प्रत्ययों की आदेश प्राप्ति नहीं होती है।
प्रश्न:--'जस' अथवा शस्' ऐसा भी क्यों कहा गया है ?
उत्तरः-स्त्रीलिंग वाले शब्दों में 'उ' और 'ओ' पादेश रूप प्रत्ययों की प्राप्ति 'जस' और 'शस' के स्थान पर ही होती है; अन्य किसी भी विभक्ति के प्रत्ययों के स्थान पर '' अथवा 'ओ' की आदेशमाप्ति नहीं होती है। जैसे:-मालायाःकृतम् =मालाए कयं अर्थात् माला का बनाया हुआ है । यहाँ पर षष्ठी विभक्ति के एकवचन का उदाहरण दिया गया है, जिसमें बतलाया गया है कि सूत्र--संख्या ३-२ से