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*प्राकृत व्याकरण * 000000000000000000000sentsasraokesothotosteronorostrectr0000000000
गेण्ह रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या--१९७ में की गई है।
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दधीगि:- संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप दहीणि होता है । इसमें सूत्र संख्या १.८७ से मूल संस्कृत रूप 'दधि' में स्थित 'ध' के स्थान पर प्राकृत में 'ह' आदेश और ३.२६ से प्रथमा अथवा द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'जस्' और 'शस' के नपुसक लिंगात्मक स्थानीय रूप 'नि' के स्थान पर प्राकृत में अन्य वस्व स्वर 'इ' को दीर्घ स्वर 'ई' की प्राप्ति कराते हुए ‘ण प्रत्यय को शप्ति होकर प्राकृत रूप दहीणि सिद्ध हो जाता है । 'मुन्ति:---र की
सिर उन की गई है। 'जेम':-रूप की सिद्धि इसी सूत्र में उपर की गई है।
मधूनिः- संस्कृत का रूप है। इसका प्राकृत रूप महूणि होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१८७ से मूल संस्कृत रूप 'मधु' में स्थित 'ध' के स्थान पर प्राकृत में 'ह' आदेश और ३-२६ से प्रथमा अथवा द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'जस' और 'शस' के नपुसक लिंगात्मक स्थानीय रूप 'नि' के स्थान पर प्राकृत में अन्त्य ह्रस्व स्वर 'स' को दोध स्वर 'क' की प्राप्ति कराते हुए णि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्राकृत रूप महाण सिद्ध हो जाता है।
परछा रूप की सिद्धि सब-संख्या -४ में की गई हैं। पच्छे रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-४ में की गई है।
सुखम् संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप मुहं होता है । इसमें सूत्र-संख्या १-१८७ से 'ख' के स्थान पर 'ह' अादेश और ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में संस्कृतीय प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में 'म' आदेश एवं १-२३ से प्राप्त 'म'का अनुस्वार होकर सुह रूप सिन्द जाता है। अथवा सूत्र-संख्या ३-५ से द्वितीया विभक्ति के एक वचन में 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त प्रत्यय 'म्' का अनुस्वार होकर द्वितीया-विभक्ति के एक वचन में प्राकृतीय रूप सुह सिध्द हो जाता है ।। ३-२६ ॥
स्त्रियामुदोतौ वा ॥ ३.-२७ ॥ स्त्रियां वर्तमानानाम्नः परयोर्जस्-शसोः स्थाने प्रत्येकम् उत् मोत् इत्येती सप्राग्दीधों वा भवतः ।। वचन-भेदो यथा-संख्य निवृत्त्यर्थः ।। मालउ मालाओ । बुद्धीउ बुद्धीओ । सहीउ सहीओ। घेणूउ घेणुगो । बहुउ बहूओ। पचे । माला । बुद्धी । सही । घेणू । वह ॥ खियामिति किम् । पच्छा । जस्-शस इत्येव । मालाए कयं ॥