________________ नैषधीयचरिते अन्वयः-नताङ्गी भैमी अम्बाम् प्रणत्य उपनता सती नलेन ( सह ) पथि योगम् आप ( किन्तु ) स भ्रान्ति-भैमीषु ताम् न व्यविक्त, सा च अदृश्यतया तम् न ददर्श / टोका-नतम् आनतम् अङ्गम गात्रम् ( कमंधा० ) यस्याः सा (व० वी०) सुन्दराङ्गीत्यर्थः भैमी दमयन्ती अम्बाम मातरम् ( 'अम्बा माताऽथ' इत्यमरः ) प्रणत्य प्रणम्य उपनता आगता सती नलेन सह पथि मार्गे योगम् मिलनम् आप प्राप्तवती किन्तु स नल: भ्रान्तेः भैम्यः (ष० तत्पु०) अथवा भ्रान्तिजनिताः भैम्यः मध्यमपदलोपी स० / तासु मिथ्याभैमीष्क्त्यिर्थः ताम् वास्तवीम् भैमीम् न ब्यविक्त न विवेचितवान् भ्रान्त्युत्थापितभैमीनाम् वास्तव भैम्याश्च परस्परमिलनात् तासां मध्ये का वास्तवी भैमी काश्च भ्रमात्मिक्यः भैम्य इति बिवेकं कर्तु नाशकदिति भावः सा वास्तवी भैमी च अदृश्यतया दृगतीततया तम् नलम् न वदर्श दृष्टवती / / 48 / / व्याकरण-प्रणत्य प्र + /नम् + ल्यप् विकल्प से अनुनासिक का लोप और तुगागम / योगम् / युज् + घञ् कुत्वम् / आप /आप् + लिट् / व्यविक्त वि + विज् + लुङ् / अनुवाद-परमसुन्दरी दमयन्ती माता को प्रणाम करके आती हुई मार्ग में नल को मिल पड़ी, ( किन्तु ) मोह-वश कल्पित दमयन्तियों में से वे उस ( असली ) की पहचान नहीं कर पाये, न ही अदृश्य होने के कारण उन्हें वह देख पायी // 48 // टिप्पणी-यहाँ विद्याधर के अनुसार न पहचानने और न देखने का कारण बताने से काव्यलिङ्ग है, किन्तु मल्लिनाथ का कहना है कि रूप-साम्य होने से भ्रमात्मक दमयन्तियों और असली दमयन्ती का अभेद बताने से सामान्यालंकार है / सामान्य वहाँ होता है जहाँ गुण-साम्य के कारण विभिन्न वस्तुओं में अभेद हो जाय / 'नता' 'नता' 'भैमी' 'भैमी' में छेक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। प्रसूप्रसादाधिगता प्रसूनमाला नलस्योद्ममवीक्षितस्य / क्षिप्तापि कण्ठाय तयोपकण्ठे स्थितं तमालम्बत सत्यमेव // 49 / / अन्वयः-प्रसू-प्रसादाधिगता प्रसूनमाला उभ्रम-वीक्षितस्य अपि नलस्य कण्ठाय तया क्षिप्ता उपकण्ठे स्थितम् सत्यम् एव तम् आलम्बत /