________________ नैषधीयचरिते टिप्पणी-परछाईं काली हुआ करती है, उसमें किसी का गौर अथवा स्वणिक रूप नहीं दिखाई पड़ता है रानियों ने नभ के रूप की स्वर्णिम कान्ति साक्षात् देखी ही नहीं, उनकी काली परछाई-मात्र देखी है। ध्यान रहे कि यहाँ कवि शब्दों का हेरफेर करके श्लोक 43 का अर्थ दोहरा गया है। 'रूपं रूपं" 'लोकि लोकि' 'भङ्गा भङ्गम्' में छेक, 'मालोकि मालोकि' में अन्त्यानुप्रास अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। भवन्नदृश्यः प्रतिबिम्बदेहव्यूहं वितन्वन्मणिकुट्टिमेषु / पुरं परस्य प्रविशन्वियोगी योगीव चित्रं स रराज राजा // 46 / / अन्वयः-वियोगी स राजा अदृश्यःभवन् मणि-कुट्टिमेषु प्रतिबिम्ब-देह-व्यूहम् वितन्यम्, परस्य पुरम् प्रविशन् योगी इव रराज ( इति ) चित्रम् / टीका-वियोगी अयोगी योगरहित इति यावत् अथच विरही स राजा नृपनलः अदृश्यः दृष्टयगोचरः भवन् सन्, मणिखचिताः कुट्ठिमाः बद्धभूमयः ( मध्यमपदलोपी स० ) इति मणि-कुट्टिमाः तेषु प्रतिबिम्वाः प्रतिबिम्बरूपा अथ च प्रतिरूपा ये देहाः शरीराणि ( कर्मधाः० ) तेषाम् ब्यूहम समूहम् वितन्वन् विस्तारयन् जनयन्नियर्थः परस्य बन्यस्य भीमस्येति यावत् पुरम् नगरम् अथच अन्यस्य पुरुषस्य देहम् ( 'पुरं पुरि शरीरे च' इतिविश्व:) प्रविशन् प्रवेशं कुर्वन् योगी विरहरहितः अथ च अणिमादिसिद्धि-युक्तः इव रराज शुशुभे इति चित्रम् आश्चर्यम् / नलो वियोगी अपि सन् योगीव बभूवेतिभावः / 46 / व्याकरण-अदृश्यः द्रष्टमशक्य हनि न + /इश् + ण्यन् / व्यूहः वि + / ऊह + पत्र ( भावे ) / अनुवाद-वियोगी वह राजा ( नल ) अदृश्य होते हुए, मणि जड़ित फर्णी पर प्रतिबिम्ब-रूप देह-समूह का निर्माण करते हुए तथा दूसरे ( राजाभीम ) के पुर ( नगर ) में प्रवेश करते इस तरह शोभित हो रहे थे जैसे ( अणिमा शक्ति से ) अदृश्य होता हुआ, प्रतिरूप देह-समूह रचता हुआ तथा दूसरे के पुर ( शरीर ) में प्रवेश करता हुआ योगी शोभित होता है आश्चर्य है / 46 / / टिप्पणी-यहाँ नल की योगी से तुलना की जा रही है। योगी अणिमा शक्ति से अदृश्य बन जाता है। नल भी इन्द्र के वरदान से अदृश्य बने हुए थे / योगी पूर्व जन्म के सभी संचित कर्मों के उपभोग हेतु एक साथ कितने ही समान