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संयुक्त स्वर ( ए, ऐ, ओ, औ ) और उनके पालि प्रतिरूप ए और ओ पालि में ह्रस्व और दीर्घ दोनों ही हैं । ह्रस्व ए और ओ का विवेचन हम पहले कर चुके हैं । दीर्घ ए और ओ भी पालि में पाये जाते हैं । (१) पालि में ए और ओ का आगमन संस्कृत संयुक्त स्वरों ऐ और औ से हुआ है।
ऐरावण
मैत्री
वै
औरस
पौर
एरावण
मत्ता
वे
ओरस
पोर
(२) कभी कभी ए, ओ, संस्कृत में संयुक्त व्यंजनों से पहले आने पर, पालि में लघु होकर क्रमश: इ और उ रह जाते हैं ।
उदाहरण
प्रतिवेश्यक
प्रसेवक
ऐश्वर्य
सैन्धव
श्रोष्यामि
औत्सुक्य
क्षौद्र
रौद्र
पटिविस्सक
प सिब्बक
इस्सरिय
सिन्धव
सुस्सं
उस्सुक
खुद्द
लुद्द
विसर्ग
पालि में आते-आते विसर्ग का लोप हो गया है। प्राकृतों में भी वह नहीं मिलता। इसका परिवर्तन प्रायः तीन प्रकार से हुआ है ।
(१) शब्द के मध्यस्थित विसर्ग का समावेश उसके आगे आने वाले व्यंजन में हो गया, जैसे
१. सं० अय से पालि ए; अव से ओ; आव से ओ; अयि, आयि, आवि से ओ; इन परिवर्तनों के लिये देखिये आगे अक्षर-संकोच का विवरण ।