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- शाकारी आदि भाषाएँ कटहार और यन्त्र-जीवी लोगों की भाषा को शायरी कहते हैं । इन तीनों भाषाओं के जो लक्षण और मगध के उदाहरण मार्कण्डेय के प्राकृत-व्याकरण में और नाटकों के उक्त पात्रों की भाषा में पाये जाते हैं उनमें और इतर प्राकृत - व्याकरणों की मागधी भाषा के लक्षण और उदाहरणों में तथा नाटकों के मागधीभाषा-भाषी पात्रों की भाषा में इतना कम भेद और इतना अधिक साम्य है कि उक्त तीन भाषाओं को मागची से अलग नहीं कही जा सकती। यही कारण है कि हमने प्रस्तुत कोष में इन भाषाओं का मागधी में ही समावेश किया है।
मृच्छकटिक के पात्र माथुर और दो द्यूतकारों की भाषा को 'ढक्की' नाम दिया गया है। यह भी मागधी भाषा का ही एक रुपान्तर प्रतीत होता है। मार्कण्डेय ने 'ढक्की' को ही 'टाक्की' नाम से निर्देश किया है, यह उनके वहाँ पर उद्धृत .किये हुए एक श्लोक से ज्ञात होता है। मार्कण्डेय ने पदान्ध में उ, तृतीया के एकवचन में पश्चमी के बहुवचन में हम आदि जो इस भाषा के लक्षण दिए हैं उनपर से इसमें अपभ्रंश का ही विशेष साम्य नजर आता हैं । इस लिए मार्कण्डेय ने वहाँ पर जो यह कहा है कि 'हरिश्चन्द्र इस भाषा को अपभ्रंश मानता है" वह मत हमें भी संगत मालूम पड़ता है ।
ढक्की या टाकी
भाषा
मागधी भाषा का सीरसेनी के साथ जो प्रधान भेद है वह नीचे दिया जाता है। इसके सिवा अन्य अंशों में मागी भाषा साधारणतः सौरसेनी के ही अनुरूप है ।
लक्षण
वर्ण-भेद
१. र के स्थान में सर्वत्र ल होता है; यथा-नर = गल; कर = कल ।
२.
श, ष और स के स्थान में तालव्य श होता है; यथा-शोभन = शोहण, पुरुष = पुलिशः सारस = शालश ।
३. संयुक्त व और स के स्थान में दन्त्य सकार होता है यथा-शुष्क शुल्क
४.
ट्ट और ष्ठ के स्थान में स्ट होता है; यथा — पट्ट = पस्ट, सुष्ठु = शुस्तु ।
५. स्थ और र्थं की जगह स्व होता है; जैसे-उपस्थित = उवस्तिदः सार्थं = शस्त
६.
ज, थ और य के बदले य होता है; यथा-जानाति = यादि, दुर्जन = दुय्यणः मद्य मय्य, अद्य = अय्य; याति = यादि,
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यम = यम
७.
न्य, एय, ज्ञ और ज के स्थान में ज्ञ होता है; यथा - प्रन्य = मन्ञ; पुण्य पुत्र प्रज्ञा = पन्नाः भञ्जलि = श्रव्ञलि । ८. अनादि व के स्थान में व होता है; यथा - गच्छ = गश्च पिच्छिल = पिचिल | ९. क्ष की जगह एक होता है"; जैसे-राक्षस = लस्कश, यक्ष
यस्क ।
-
कस्ट स्वनतिखदि बृहस्पति बृहस्पदि ।
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नाम-विभक्ति
प
१. अकारान्त पुंलिंग शब्द के प्रथमा के एकवचन में ए होता है; यथा-जिनः यिणे, पुरुषः = पुलिशे । २. अकारान्त शब्द के षष्ठी का एकवचन एस ओर ग्राह होता है; यथा-जिनस्य = विएस्स, यिरगाह ।
३. अकारान्त शब्द के पछी के बहुवचन में मारा और भाई वे दोनों होते हैं जैसे-जिनानामविशाण, पिणा । ४. अस्मत् शब्द के एकवचन और बहुवचन का रूप हगे होता है ।
१. “एडसाद
अंगारकरण्याचा कात्रोपजीविनाम् योग्या शरभाषा तु" (नाज्यशाख १७, ५३-४) । २. " प्रयुज्यते नाटकादौ द्यूतातिव्यवहारिभिः ।
वणिग्भिर्हीन देहैश्च तदाहुष्टक भाषितम् " ( प्राकृतसर्वस्व, पृष्ठ ११० ) ।
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३. "हरिन्द्रविम भाषामपभ्रंश इतीति" (प्राइस ष्ठ ११० ) ।
४ माह नियम वैकल्पिक मानते हैं "रस्य सोनाम" (प्राकृतस०] [४] १०१) ।
५. हेमचन्द्र प्राकृत व्याकरण के अनुसार 'क्ष' की जगह जिह्वामूलीय क' होता है; देखो हे० प्रा० ४, २९६ ॥
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