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जीव अधिकार
रत्नत्रयस्य मेवकरणलक्षणकथनमिदम् । मोक्षः साक्षावखिलकर्मप्रध्वंसनेना| सावित महानन्वलाभः । पूर्वोक्त निरुपचाररत्नअपपरिया तिस्तस्य महानन्दस्योपायः । ग्रपि वर्षा ज्ञानदर्शनचारित्राणां त्रयाणां प्रत्येकधरूपा भवति । कथम्, हवं ज्ञानमिदं वर्शनमिवं चारित्रमित्यनेन विकल्पेन | दर्शनज्ञानचारित्राणां लक्षणं वक्ष्यमाणसूत्रेषु ज्ञातव्यं भवति ।
( मंदाक्रांता )
मोक्षोपायो भवति यमिनां शुद्धरत्रमात्मा ह्यात्माज्ञानं न पुनरपरं दृष्टिरन्याऽपि नैव शीलं तावन्न भवति परं मोक्षुभिः [भोकृमि: ] प्रोक्तमेतद् बुद्ध्वा जन्तुर्न पुनरुदरं याति मातुः स भव्यः ।। ११ ।।
एतेषां त्रयाणां प्रत्येक प्ररूपणा भवति ] गुनश्च इन तीनों में से प्रत्येक की होती है।
[ ११
टीका- रत्नत्रय में भेद करने वाला और उनके लक्षण को कहने वाला यह प्रकरण है ।
साक्षात् अखिन्न कर्मों के प्रध्वंस से प्राप्त होने वाला जो महान् आनंद का लाभ है वह मोक्ष है। पूर्वोक्त उपचार रहित रत्नत्रय की परिणति उस महान् प्रानंद स्वरूप मोक्ष का उपाय इसलिये पुनः ज्ञान, दर्शन और चारित्र इन तीनों में से प्रत्येक का प्ररूपण किया जाता है। कैसे किया जाता है ? यह ज्ञान है, यह दर्शन है और यह चारित्र है इस प्रकार से भेद करके वर्णन किया जाता है । इन दर्शन, ज्ञान और चारित्र का लक्षण आगे कहे हुये सूत्रों से-गाथाओं से जानने योग्य है ।
भावार्थ – 'नियमसार' शब्द से 'रत्नत्रय' को ग्रहण करके अब प्राचार्यवर्य सबसे पहले भेद रत्नत्रय अर्थात् व्यवहार रत्नत्रय का वर्णन करते हुये प्रत्येक का पृथक्-पृथक् लक्षण बतायेंगे |
[ अव टीकाकार मुनिराज रत्नत्रय का महत्व प्रगट करते हुये श्लोक कहते हैं- ]
( ११ ) श्लोकार्थ- शुद्ध रत्नत्रय स्वरूप से परिणत अपनी प्रात्मा मुनियों के लिये मोक्ष प्राप्ति का उपाय है क्योंकि आत्मा ही ज्ञान है, किन्तु उससे भिन्न अन्य