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प्रजीव अधिकार
[७७ __ स्वभावपुद्गलस्वरूपाख्यानमेतत् । तिक्तकटुककषायाम्लमधुराभिषानेषु पंचसु दरसेवेकरसः, श्वेतपोतहरितारणकृष्णवर्णेष्वेकवर्णः, सुगन्धदुर्गन्धयोरेकगंधः, कर्कशमृदुगुरुलघुशीतोष्णस्निग्घरूक्षाभिधानामष्टानामन्त्यचतुःस्पर्शाविरोधस्पर्शनद्वयम्, एते परमागोः स्वभावगुणाः जिनानां मते । विभावगुणात्मको विभावपुद्गलः। प्रस्य दयणकादिस्कन्धरूपस्य विभावगुणाः सकलकरणग्रामग्राह्या इत्यर्थः ।
तथा चोक्तं पंचास्तिकायसमये
'एयरसवण्णगंधं दोफासं सहकारणमसह । खंतरिदं दव्यं परमाणु तं वियाणाहि ।।"
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टीका - यह स्वभाव पुद्गल के स्वरूप का कथन है।
चरपरा, कडुवा, कषायला, खट्टा और मीठा इन पांच रसों में से एक रस, सफेद, गीला, हरा, काला और लाल इन पांच वर्गों में से कोई एक वर्ग, सुगंध और दुर्गध में से कोई एक गंध, कठोर, कोमल, भारी, हलका, ठंडा, गरम, चिकना और रूखा इन पाठ म्पों में अंतिम चार में से अविरोधी दो स्पर्श जिनेन्द्र भगवान के मत में इन्हें परमाणु के स्वभाव गुण कहा है। विभाव गुण वाला विभाघ पुद्गल है। इस दूधणुक आदि स्कन्ध रूप विभाव पुद्गल के जो विभाव गुण हैं वे सभी इन्द्रियों के ग्रहण करने योग्य होते हैं ऐसा अर्थ है।
पंचास्तिकाय अागम में भी कहा है
गाथार्थ -'जो एक रस, एफ वर्ण, एक गंध वाला है, दो स्पर्श घाला है, शब्द का कारण है और स्वयं अशब्द है ऐसा स्कंध से अंतरित जो द्रव्य है, उसे तुम परमाणु जानो । अर्थात् परमाणु शब्द का कारण तो है किन्तु स्वयं शब्दरूप नहीं है क्योंकि 'शब्द' यह पुद्गल को विभाव पर्याय है । “शब्द, बंध, सूक्ष्मता, स्थूलता,
१. पंचास्तिकाम गाथा ८१ १२. तत्त्वार्थसत्र म० ५ मूत्र २४ ।