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व्यवहारचारित्र अधिकार
अथेदानी व्यवहारचारित्राधिकार उच्यते । कुलजोरिण जीवमग्गणठाणाइसु जाणिऊण जीवाणं । तस्सारंभणियत्तण परिणामो होइ पढमवदं ॥५६॥ कुलयोनिजीवमार्गणास्थानादिषु ज्ञात्वा जीवानाम् । तस्यारम्भनिवृत्तिपरिणामो भवति प्रथमतम् ॥५६॥
[चाल छन्द : हे दीनबन्धु............ ] कुल योनि जीव मार्गणा स्थान प्रादि में 1 जीदों को जान करके जैसे कहें उनमें ।। उन जीव के प्रारम्भ से निवृत्ति भाव जो । वो ही प्रथम महाबत है सर्व श्रेष्ठ वो ११५६।।
अब इस समय व्यवहारचारित्र का अधिकार कहा जाता है ।
गाथा ५६ अन्वयार्थ-[कुलयोनिजीवमार्गणास्थानादिषु] कुल, योनि, जीवस्थान और मार्गणास्थान आदि में [जीवानाम् ] जीवों को [ ज्ञात्वा ] जानकर [ तस्य ] उसके [ आरम्भनिवृत्तिपरिणामः ] आरम्भ से निवृत्तिरूप परिणाम वह [ प्रथमवतं ] प्रथमव्रत-पहला महाव्रत [भवति होता है ।