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नियमसार इति सुकविजनपयोजमित्रपंचेन्द्रियप्रसरवजितगात्रमात्रपरिग्रहश्रीपद्मप्रभम धारिदेवविरचितायां नियमसारव्याख्यायां तात्पयवृत्ती निश्चयपत्याख्यानाधिकारः पच्छ श्रुतस्कन्धः ॥
------...-. .. .....-..-....इसप्रकार से सुकवि समूहरूपी कमल के लिये सूर्य के समान, पंचेन्द्रियों व्यापार से रहित, गात्र मात्र परिग्रहधारी-परम निर्ग्रन्थ तपोधन श्री पद्मप्रभमलबार देव विरचित नियमसार की तात्पर्यवृति नामक टीका में निश्चय प्रत्याख्यान अधिकार, नामका छठा श्रुतस्कन्ध पूर्ण हुआ।
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