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नियममार
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इति सुकविजनपयोजमित्रपंचेन्द्रियप्रसरजितगात्रमात्रपरिग्रहश्रीपद्मप्रभमलधारिदेवविरचितायां नियमसारख्याख्यायां तात्पर्यवृत्तौ शुद्धोपयोगाधिकारो द्वादशः श्रुतस्कन्धः ॥
समाप्ता चेयं तात्पर्यवृत्तिः ।
___ इसप्रकार सकत्रिजनरूपी कमलों को विकसित करने के लिये सूर्य के सदृश पंचेन्द्रिय के प्रसार से रहित पात्र-मात्र परिग्रहधारी श्री पद्मप्रभमलधारि देव के द्वारा विरचित नियमसार की तात्पर्य वृत्ति नामक टीका में शुद्धोपयोग-अधिकार नाभक बारहवां श्रुत स्कन्ध समाप्त हुआ ।
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