Book Title: Niyamsar
Author(s): Kundkundacharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 569
________________ शुद्धि-पत्र प्रष्ट पृष्ठ पंबिम पंभिगम शुद्ध गुरुणा प्रति भाव में स्थित उत्पन्न * गुरुणाप्रति में स्थित उत्पन्न जो [ भौमिः । वीतराग य तृण, स्पर्श इदियापारणं भव्य पूर्वा पर मोटे-मोक्ष মযিঃ पवायं ग्रहण शार्दू मसात्वम् कार्यशुद्धिपर्याय भव्यजीर कों से अपने पृषक ३६ वीतराग तृगास्पर्श इदियए।गणं भव्य : पूर्वापर मोक्षमोक्ष भणि पदार्थ का ग्रहण शार्दूल ! सत्त्वम् कार्य शुद्ध पर्याय भव्यजीव के कर्मों का अपने से पथक . ४४ ५२ खडित रहते हुये वायसुहुमं च सूक्ष्मस्यूझर सम्बंध মাৰি की इच्छुक संरित रहित हुये बापरसुहमं च सुहमसुहमं च समबंध मादि, के इच्छुक ७५ ७८

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