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शुद्धोगयोग अधिकार
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निर्वाण धाम पर जो श्री सिद्ध प्रभु रहें । कैवल्य ज्ञान केवल दर्शन उन्हीं के हैं। कैवल्यवीर्य केवल सुख भी उन्हीं के हैं।
अस्तित्व सप्रदेशी अनमूर्त गुण भी हैं ।।१५२।। भगवतः सिद्धस्य स्वभावगुणस्वरूपाख्यानमेतत् । निरवशेषेणान्तर्मुखाकारस्वात्माश्रयनिश्चयपरमशुक्लध्यानबलेन ज्ञानावरणाचष्टविधकमधिलये जाते ततो भगवतः सिद्धपरमेष्ठिनः केवलज्ञानकेवलदर्शनकेबलवीर्यकेवलसौख्यामूर्तत्वास्तित्वसप्रदेशत्वादिस्वभावगुणा भवन्ति इति ।
( मंदाक्रांना ) बन्धच्छेदाद्भगवति पुनित्यशुद्धे प्रसिद्ध तस्मिसिद्धे भवति नितरां केवलज्ञानमेतत् ।
: - ... -- -- - - - - अमूर्तत्व, [अस्तित्थं] अस्तित्व और [सप्रदेशत्वं] सप्रदेशत्व [विद्यते] होते हैं ।
टीका-भगवान सिद्ध के स्वाभाविक गुणों के स्वरूप का यह कथन है।
मंपूर्णतया अंतम खाकार ऐसे स्वात्माश्रित निश्चय परमशुक्लध्यान के बल से ज्ञानावरण आदि आठ प्रकार के कर्मों का विलय होजाने पर भगवान् सिद्धारमेटी के केवलज्ञान, केवलदर्शन, केवलवीर्य, केवलसौख्य, अमूर्तत्त्व, अस्तित्व और सप्रदेशन्त्र आदि ऐसे स्वाभाविक गुण होते हैं ।
भावार्थ-सिद्धों के अनंतदर्शन आदि अनंतचतुष्टय और नामकर्म आदि के अभाव से अमूर्तत्व आदि गुण प्रगट हो जाते हैं जो कि स्वभावगुण कहलाते हैं ।
[ अब टीकाकार मुनिराज इन्हीं स्वभावगुणों को कहते हुए एक कलगकाव्य कहते हैं-]
(३०२) श्लोकायं-बंध का विच्छेद होजाने से नित्यशुद्ध तथा प्रसिद्ध ऐसे उन सिद्धभगवान् में अतिशयरूप यह केवलज्ञान होता है, साक्षात् समस्त पदार्थों