________________
-HEAR
[ १२ ]
शद्धोपयोग अधिकार
अथ सफलकर्मप्रलयहेतुभूतशुद्धोपयोगाधिकार उच्यते । जादि पस्सदि सव्वं, बवहारणएण केवली भगवं । केवलणाणी जाणवि, पस्सदि रिणयमेण अप्पाणं ॥१५॥
जानाति पश्यति सर्व व्यवहारनयेन केवली भगवान् । केवलज्ञानी जानाति पश्यति नियमेन आत्मानम् ॥१५६।।
चाल छेद हे दोनबंधु ) ग्री के वली भगवान तो व्यवहार नय से हो । संपूर्ण वस्तु जानते व देखते सभी ।। वम शुद्ध निश्चयनय से, वे केवली जिनजी। निज आलमा को जानते वा देखते नित ही 11१५६।।
___ अब समस्त कर्मों के प्रलय में हेतुभूत ऐसा शुद्धोपयोग अधिकार कहा जाता है ।
गाथा १५६ अन्वयार्थ-[ व्यवहारनयेन ] व्यवहारनय से [ केवली भगवान् ] केवली भगवान [सर्व जानाति पश्यति] सब कुछ जानते और देखते हैं [नियमेन] निश्चयनय से [केवलज्ञानो] केवलज्ञानी [ आत्मानं जानाति पश्यति ] आत्मा को जानते और देखते हैं।