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नियमसार
( अनुष्टुभ् ) "भेयं मायामहागान्मिथ्याघनतमोमयात् ।
यस्मिन् लीना न लक्ष्यन्ते क्रोधादिविषमाहयः ।।" - - - - -
.- .--- याहुबलि का हृदय मान कपाय से कलुपित रहा, ऐसा उल्लेख भावप्राभूत में पाया जाता है
'देहादिचिनसंगो माणकमायेण कल सिओ धीर । अन्नावणंण जादा बाहुबलि किनियं कालं ॥४४।।
अर्थ-हे धीर ! देखो, श्री वृषभदेव के पुत्र बाहुबलि देहादि परिग्रह को छोड़कर निर्गन्य मुनि वन गये, तो भी मान कपाय मे कलुषित चित्त हुए आतापन बोग से कितने काल तक स्थित रहे तो भी सिद्धि नहीं पाई ।
"श्लोकार्थ—'मिथ्यात्वरूपी घनघोर अन्धकारमय इस मायारूपी महान गड्ढे से डरना चाहिए, कि जिसमें लीन हुए-रहते हुए क्रोध आदि विषम सर्प लक्षित नहीं होते हैं-दिखते नहीं है।"
भावार्थ-जैसे विशाल गड्ढे में घोर अंधकार रहता है और सर्प आदि जंतु निवास करते हैं तथा उस में गिरने से मृत्यु ही सम्भव है वैसे ही यह माया कपाय विशाल गड्ढे के समान है इसमें मिथ्यात्वरूप अन्धकार व्याप्त है तथा इसमें क्रोध आदि सर्प बैठे हुए हैं अर्थान् मायाचारी से क्रोधादि कषायें भी होती हैं, मिथ्यात्व भी आ जाता है इसलिये मायाचार से दूर रहना चाहिये ।
१. भावप्रामृत पृ १५४ । २. प्रात्मानु. श्लो. २२१ ।