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शुद्ध निश्चय - प्रायश्चित्त अधिकार
अथाखिलद्रव्यभावनो कर्मसंन्यासहेतुभूतशुद्धनिश्चयप्रायश्चित्ताधिकारः कथ्यते । वदसमिदि सोलसंजमपरिणामो करणरिणग्गहो भावो ।
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सो हवदि पायछितं अरणवरयं चैव कायन्वो ॥ ११३ ॥ व्रतसमितिशील संयमपरिणामः करणनिग्रहों भावः ।
स भवति प्रायश्चित्तम् अनवरतं चैव कर्तव्यः ॥११३॥ नरेन्द्रछंद
व्रत समिती श्री शील सुसंयम के परिणाम अमल जो । पांचों इन्द्रिय के निग्रह के भाव विराग विमल जो ।।
वो ही प्रायश्चित्त कहाते करें दोष का शोधन | ऐसा प्रायश्चित्त नित करिये जो हो कर्म विमोचन ।। ११३ ||
अब अखिल द्रव्यकर्म, भावकर्म और नोकर्म के सम्यक्प्रकार से त्याग में कारणभूत ऐसे शुद्धनिश्चय प्रायश्चित्त के अधिकार को कहते हैं-
गाथा ११३
अन्वयार्थ – [ व्रत समिति शील संयम परिणामः ] व्रत समिति, शील और संयमरूप परिणाम तथा [ करण निग्रहः भावः ] इन्द्रियों के निग्रह रूप भाव, [ सः प्रायश्चितः भवति ] वह प्रायश्चित्त होता है, [ अनवरतं च एव कर्त्तव्यः ] तथा उसे हमेशा हो करना चाहिये ।