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परमार्थ-प्रतिक्रमण अधिकार नाहं मार्गरणास्थानानि नाहं गुणत्यासावि जोधस्थानन बा। कर्ता न हि कारयिता अनुमंता नंव कर्तृणाम् ॥८॥ नाहं बालो वृद्धो न चैव तरुणो न कारणं तेषाम । कर्ता न हि कारयिता अनुमंता नैव कर्तृणाम् ॥७॥ नाहं रागो द्वषो न चव मोहो न कारणं तेषाम् । कर्ता न हि कारयिता अनुमंता नंव कर्तृणाम् ।।८०॥ नाहं क्रोधो मानो न चंय माया न भवामि लोभोऽहम् । कर्ता न हि कारयिता अनुमंता नेव कर्तृणाम् ।।८।।
शंभु छंद
मैं नहीं नारकी नहि तियक् नहिं मनुज नही है देव वाभा । नहिं इन पर्यायों का कर्ता नहिं इन्हें कंगने वाला भी ।। नहिं इनके करने वालों का अनुमोदन करने वाला हूं। मैं तो निश्चय से चिन्मूरत निजतनु मे भिन्न निगला हूं ॥७७।। मैं गति आदिक मार्गणा नहीं, नहिं गुणस्थान परिणामी हूं। नहिं चौदह जीवसमासरूप स्थानों का अनुगामी हं ।। मैं नहि इन मवका कर्ता हूं और नहीं कराने वाला हूं। नहि अनुमोदन कर्ता इनका मैं निजरस पीने वाला हूं 11७८।।
--. -.-.- ... - [ अहं बालः वृद्धः न ] मैं बालक नहीं हूं, वृद्ध नहीं हूं, [ तरुणः एव च न ] और तरुण भी नहीं हूं [ न तेषां कारणं ] उनका कारण भी नहीं हूं। [ कर्ता नहि कारपिता कर्तृणां अनुमंता न एव ] मैं उनका करने वाला नहीं हूं, कराने वाला भी नहीं है और करते हुए की अनुमोदना करने वाला भी नहीं हूं।
[अहं रागः द्वेषः न ] मैं रागरूप नहीं हूं, द्वे परूप नहीं हूं [ न च मोहः एक ] और मोहरूप भी नहीं हूं, [ न तेषां कारणं ] उनका कारण भी नहीं हूं।
[कर्ता नहि कारयिता कर्तृणां अनुमंता न एष] उनका करने वाला, कराने वाला और 3 करते हुये की अनुमोदना करने वाला मैं नहीं हूं ।