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नियममार
तल्कि प्रमाचति जनः प्रपतन्नधोऽध:
कि नोर्वमूर्ध्वमधिरोहति निष्प्रमावः ॥" --.. -. .---- .... --
- -- - - ----- ब्यालीस आचार्यों के काम उत्तमा प्रतिमा बगाने का निमार बतलाया है। अन्यत्र आचार ग्रंथों में इसी प्रसंग में ४८ निर्यापकों का विधान है। वह इस प्रकार हैसल्लेखना ग्रहण करने वाले आचार्य अपने संघ को छोड़कर पर संघ में जाकर अन्य आचार्य की शरण लेते हैं वे सल्लेखना कराने में कुशल आचार्य निर्यापकाचार्य कहलाते हैं।
___ "वह क्षपक निर्यापकाचार्य पर अपना सम्पूर्ण भार सौंपकर संस्तर पर आरोहण करता है और विधिवत् मल्लेखना को प्रारम्भ करता है। स्थिर बुद्धि वाले, धर्मप्रेमी, पापभीरु आदि अनेक गुणों से सम्पन्न और प्रत्याख्यान के ज्ञाता ऐसे परिचारक क्षपक की शुश्रूषा के योग्य माने गये हैं ऐसे निर्यापक यति अड़तालीस होते हैं । ये ४८ निर्यापक यति क्या-क्या उपकार करते हैं उसे बताते हैं
निर्यापकाचार्य क्षपक की शरीर सेवा के लिये चार परिचारक मुनि नियुक्त करते हैं, चार मुनि धर्मकथा सुनाते हैं, चार मुनि क्षपक के आहार की व्यवस्था करते हैं, चार मुनि क्षपक के योग्य आहार के पेय पदार्थों की व्यवस्था करते हैं, चार मनि निष्प्रमादी हुये आहार की वस्तुओं की देखभाल करते हैं, चार मुनि क्षपक के मल- . मूत्रादि विसर्जन, बसतिका, उपकरण, संस्तर आदि को स्वच्छ करते हैं, चार मनि क्षपक की बसतिका के दरवाजे पर प्रयत्नपूर्वक रक्षा करते हैं अर्थात् असंयत आदि अयोग्यजनों को भीतर आने से रोकते हैं, चार मुनि उपदेश मंडप के द्वारों के रक्षण करने का भार लेते हैं, निद्राविजयी चार मुनि क्षपक के पास रात्रि में जागरण का कार्य करते हैं, चार मुनि जहां संघ ठहरा है । उसके आसपास के शुभाशुभ वातावरण, का निरीक्षण करते हैं, चार मुनि आये हुये दर्शनार्थी जनों को सभा में उपदेश सुनाते। हैं, चार मुनि धर्मकथा कहने वाले मुनियों की सभा की रक्षा का भार लेते हैं। ऐसे ये ४८ मुनि क्षपक की सल्लेखना में पूर्ण सहायता करते हैं ।
१. मूलाराधना पृ. ८४५ से ८६४ तक।