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परमार्थ-प्रतिक्रमण अधिकार इति सुकविजनपयोजमित्रपंचेन्द्रियप्रसरवजितगात्रमात्रपरिग्रहश्रीपद्मप्रभमल - पारिदेवविरचितायां नियमसारव्याख्यायां तात्पर्यवृत्तौ निश्चयप्रतिक्रमणाधिकारः पंचमः भूतस्कन्धः ॥
--- . -. ... -- - इस प्रकार सुकविजन रूपी कमलों के लिए सूर्यस्वरूप पंचेन्द्रिय के प्रसार से रहित गात्र मात्र परिग्रहधारी श्री पद्मप्रभमलधारी देव के द्वारा विरचित नियमसार को तात्पर्यवृत्ति नामक टीका में निश्चयप्रतिक्रमण अधिकार नामक पंचम श्रुतस्कन्ध पूर्ण हुआ।