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निश्चय - प्रत्याख्यान अधिकार
अथेदानीं सकलप्रव्रज्यासाम्राज्यविजयवं जयन्ती पृथुलदंडमंडनायमानसकलकर्मनिर्जरा हेतुभूतनिः श्रयनिश्र णीभूत मुक्तिभामिनीप्रथम दर्शनोपायनीभूतनिश्चयप्रत्याख्याना fधकारः कथ्यते । तद्यथा
अत्र सूत्रावतारः ।
मोत्तूरण सयलजप्पमरणागय सुहमसुहवारणं किच्चा । अप्पाणं जो झार्यादि, पञ्चक्खाणं हवे तस्स ॥६५॥
अब निश्चय प्रत्याख्यान अधिकार को कहते हैं—जो कि सफल प्रव्रज्या दीक्षा रूपी साम्राज्य की विजय पताका के विशाल दण्ड को विभूषित करने वाले के समान है, सम्पूर्ण कर्मों की निर्जरा में हेतुभूत है, मोक्षमहल पर चढ़ने के लिए स के समान है, और मुक्तिसुन्दरी से प्रथम मिलन में भेंट रूप है, ऐसा यह नि प्रत्याख्यान है । उसी को कहते हैं- यहां पर गाथा सूत्र का अवतार होता है
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गाथा ६५
अन्वयार्थ – [ यः ] जो माधु [ सकलजल्पं ] सम्पूर्ण जल्प को [ मु छोड़कर [ श्रनागत शुभाशुभ निवारणं कृत्वा ] अनागत शुभ-अशुभ का निवा