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[३]
शुद्धभाव अधिकार
अथेदानी शुद्धभावाधिकार उच्यते ।
जीवादिबहित्तच्चं, हेयमुवादेयमप्पणो अप्पा । कम्मोपाधिसमुन्भव, गुरणपज्जाएहि वदिरित्तो॥३८॥
जोवादिबहिस्तत्त्वं हेयमुपादेयमात्मनः प्रात्मा । कर्मोपाधिसमुद्भवगुणपर्याययतिरिक्तः ॥३८॥
जीवादि तत्व बाह्य हैं वे हेय बताये । स्वात्मा ही प्रात्मा को उपादेय कहाये ।। कर्मों को उपाधी से हुए जो भी गुण कहैं। पर्यायें भी उन सबसे भिन्न प्रात्म शुद्ध हैं ।।३८॥
अब शुद्धभाव अधिकार को कहते हैं
गाथा ३८ अन्वयायं-[ जीवादि बहिस्तत्वं ] जीवादि बाह्यतत्त्व [ हेयं ] छोड़ने योग्य हैं [ कर्मोपाधि समुद्भवंगुणपर्यायः ] कर्मों की उपाधि से उत्पन्न हुये गुण और पर्यायों से [ व्यतिरिक्तः ] रहित [ आत्मा ] प्रात्मा [ आत्मनः उपादेयं ] प्रात्मा को उपादेय है।
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