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नियमसार यह प्रात्मा निदण्ड है निद्व है निमम । है परसे निरालंब प्रो निष्कल है विगततन ।। नीराम है निदोष है निर्मूढ़ भी निर्भय ।
व्यवहार नय से सचमुच दिखता उपाधिमय ।।४३।। इह हि शुद्धात्मनः समस्तविभावाभावत्वमुक्तम् । मनोदण्डो वचनदण्डः कायदण्डश्चेत्येतेषां योग्यद्रव्यभावकर्मणामभावाग्निर्दण्डः । निश्चयेन परमपदार्थव्यतिरिक्तसमस्तपदार्थसार्थामावाग्निद्वन्द्वः । प्रशस्ताप्रशस्तसमस्तमोहरागद्वषाभावान्निर्ममः । निश्चयेनौदारिकवैक्रियिकाहारकर्तजसकार्मणाभिधानपंचशरीरप्रपंचाभावान्नि:कलः । निश्चयेन परमात्मनः परद्रव्यनिरवलम्बत्वानिरालंबः । मिथ्यात्ववेदरागदोषहास्यरत्यरतिशोकमयज गुप्साक्रोधमानमायालोभाभिधानाम्यन्तर चतुर्दशपरिग्रहाभावानीरागः । निश्चयेन निखिलदुरित मलकलंकपंकनिरिणतसमर्थसहजपरमवीतरागसुखसमद्रमध्यानमग्नस्फुटितसहजावस्थात्मसहजज्ञानगात्रपवित्रत्वानिर्दोषः । सहजनिश्चयनयबलेन सहजज्ञान
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टोका--निश्चित रूप से शुद्धात्मा के सम्पूर्ण विभावों का प्रभाव है यहां पर ऐसा कथन है।
मनदण्ड, वचनदण्ड और कायदण्ड इनके योग्य द्रव्यकर्म और भावकर्म के अभाव से प्रात्मा निर्दण्ड है । निश्चयनब से परम पदार्थ से व्यतिरिक्त सम्पूर्ण पदार्थ समूह के प्रभाव से प्रात्मा निद्व है-द्वत रहित है। प्रशस्त और अप्रशस्त समस्त मोह, राग-द्वेष का अभाव होने से यह प्रात्मा निर्मम है। निश्चयनय से यह औदारिक, वैक्रिय क, प्राहारक, तंजस और कार्मण इन पांच शरीर के प्रपंच के प्रभाव से शरोर रहित निष्कल है 1 निश्चयनय से इस परमात्मा के परद्रव्य का अवलम्बन न होने से निरालम्ब है । मिथ्यात्व, वेद, राग, द्वेष, हास्य, रति, परति, शोक, भय, जुगुप्सा, क्रोध, मान, माया, लोभ इन नामवाले चौदह प्रकार अभ्यन्तर परिग्रह का अभाव होने से रागरहित नोराग है । निश्चयनय से समस्त दुरित मल कलंकपंक को धोने में समर्थ ऐसी जो सहज परम वीतराग सुख समुद्र के मध्य में डूबे हुए और प्रगट हुया सहज अवस्थारूप जो सहजज्ञान.शरोर उस ज्ञान शरीर से पवित्र होने से जो आत्मा निदोष है, सहज निश्चयनय के बल से सहजज्ञान, सहजदर्शन, सहजचारित्र और