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शृद्धभाव अधिकार
[ १३१ निर्ग्रन्थ मोह ग्रंथि रहित वीतराम है । निःशल्य है संपूर्ण दोष रहित स्वस्थ है ।। निष्काम है निष्कोध है निर्मान है प्रात्मा ।
पाठों मदों से शून्य पूर्ण शुद्ध चिदात्मा ॥४४।। अत्रापि शुद्धजीवस्वरूपमुक्तम् । बाह्याभ्यन्तरचतुर्विशतिपरिग्रहपरित्यागलक्षणशामिभन्यः । सकलमोहरागद्वेषात्मकचेतनकभिावानीरागः । निदानमायामिथ्याशल्यसाभावाग्निःशल्यः । शुद्धनिश्चयनयेन शुद्धजीवास्तिकायस्य द्रव्यभावनोकाभावात् जलदोषनिर्मुक्तः । शुद्धनिश्चयनयेन निजपरमतत्त्वेऽपि वाञ्छाभाषाग्निःकामः । निश्चयबेन प्रशस्ताप्रशस्तसमस्तपरद्रव्यपरिणतेरभावान्नि:क्रोधः। निश्चयनयेन सदा परमसरसोभावात्मकत्वान्निर्मानः । निश्चयनयेननिःशेषतोऽन्तर्मुखत्वान्निर्मदः । उक्तप्रकारमुखसहजसिद्धनित्यनिरावरणनिजकारणसमयसारस्वरूपमुपादेयमिति ।
निकामः] काम-इच्छाओं से रहित, [निःक्रोधः] क्रोध से रहित, [निर्मानः] मान से हित और [निर्मदः] मद से रहित है ।
टोका-यहां पर भी शुद्ध जीव के स्वरूप को कहा है ।
बाह्य-अभ्यंतर चौबीस प्रकार के परिग्रहों के परित्याग लक्षण वाला होने मे आत्मा निम्रन्थ है 1 संपूर्ण मोह रागद्वेष स्वरूप चेतनकर्मों-भावकों का अभाव में से आग्मा नीराग है । माया, मिथ्या और निदान इन तीन शल्या का अभाव होने यह आन्मा निःशल्य है । शुद्ध निश्चयनय की अपेक्षा शुद्ध जीवास्तिकाय के द्रव्यकर्म, अकर्म और नोकर्मों का अभाव होने से संपूर्ण दोष से रहित है । शुद्ध निश्चयनय से वसरमतत्व में भी वाञ्छा का अभाव होने से यह आत्मा निष्काम है। निश्चयनय प्रशस्त और अप्रशस्त समस्त परद्रव्य की परिणति का अभाव होने से यह नि:क्रोध निश्चयनय से सदा परमसमरसी भाव स्वरूप होने से यह निर्मान है । निश्चयनय अपेक्षा से संपूर्णतया अंतर्मुख होने से यह आत्मा निर्मद' है । उक्तप्रकार का विशुद्ध रसिद्ध रूप जो नित्य, निराबरण निजकारण समयसार का स्वरूप है बही उपादेय
समझना।