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नियमसार मुरये भव: प्रोवयिकभावः । कर्मणामुपशमे भवःौपश मिकीवः । सकलकर्मोपाधिविनिमुक्तापरिणामेभवःपारिणामिकभावः । एषु पंचसु तायपशमिकभावो द्विविधः, क्षायिकमावश्च नवविधः, क्षायोपशमिकभावोऽष्टादश भेदः, औषयिकभाव एकविंशतिभेदः, पारिणामिकभाषस्त्रिभेदः । अथोपशमिकभावस्य उपशमीम्यक्त्वम् उपशमचारित्रम् च । क्षायिकभावस्य क्षायिकसम्यक्त्वं, यथाख्यातचारित्रं, केवलज्ञानं केवलदर्शनं च, अन्तरायकर्मक्षयसमुपजनितदानलाभभोगोपभोगवीर्याणि चेत। क्षायोपशमिकभावस्य मतिश्रु तावधिमनःपर्ययज्ञानानि चत्वारि, कुमतिकुश्र तविभंगमेदादज्ञानानि त्रीणि, चारचक्षुरवधिदर्शनभेदादर्शनानि श्रोणि, कालफरणोपदेशोपशमप्रायोग्यताभेदाल्लब्धयः पंच, वेदकसम्यक्त्वं, वेदकचारित्रं, संयमासंयमपरिगतिश्चेति । प्रौदयिकभावस्य नारकतिर्यड मनुष्य देवभेदाद गतयश्चतस्रः, क्रोधमानमायालोभभेदात् कपायाश्चत्वारः, स्त्रीपुनपुसकभेदाल्लिगानि श्रीणि, सामान्यसंग्रहनयापेक्षषा मिथ्यादर्शनमेकम्, अज्ञानं चैकम्,
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प्रकार का है, क्षायोपामिकभाव अठारह भेद वाला है, औदयिकभाव के २१ भेद हैं और पारिणामिक भाव के तीन भेद है।
औपशमिक भाव के. उपशम सम्यक्त्व और उपशम चारित्र ये दो प्रकार हैं । क्षायिकभाव के क्षायिक सम्यक्त्व, यथाख्यात चारित्र, केवलज्ञान और केवलदर्शन ये चार तथा अन्तराय के क्षय से उत्पन्न होने वाले दान, लाभ, भोग, उपभोग और बीर्य ये पांच ऐसे नद भेद हैं। क्षायोपशमिकभाव के मति, श्रुत, अवधि और मनःपर्यय वे चार ज्ञान, कुमति, कुश्रत और विभंग के भेद से तीन अज्ञान, चक्षुदर्शन, प्रचक्षुदर्शन और अवधिदर्शन के भेद से तीन दर्शन, काललब्धि, करणलब्धि, उपदेशलब्धि, उपशमलब्धि और प्रायोग्यतालब्धि के भेद से पांचलब्धि, वेदक सम्यक्त्व, वेदक चारित्र और संयमासंयम परिणति ये तीन, ऐसे सव मिलाकर अठारह भेद हो गये हैं ।
औदयिकभाव के नारक, नियंच, मनुष्य और देव ये चार गनि, क्रोध, मान, माया और लोभ के भेद से कषाय चार, स्त्रो, पुरुष और नपुसक के भेद से लिंग तोन, सामान्य संग्रहनय को अपेक्षा से मिथ्यादर्शन एक, अज्ञान एक, असंयम एक, प्रसिद्धत्व एक, शुक्ल, पद्म, पोत, कापोत, नील, कृष्ण के भेद से लेश्या छह, ऐसे सब मिलकर