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अजीव मधिकार
नास्तिकायाः । अस्तित्वं नाम सचा। सा किविशिष्टा ? सप्रतिपक्षा, भवान्तरसत्ता महासत्तेति । तत्र समस्तवस्तुविस्तरव्यापिनी महासचा, प्रतिनियतवस्तुन्यापिनी हवान्तरसत्ता । समस्तव्यापकरूपध्यापिनी महासत्ता, प्रतिनियतकरूपव्यापिनी ह्यवान्तरपहा । अनन्तपर्यायव्यापिनी महासत्ता, प्रतिनियतकपर्यायच्यापिनी धवान्तरसत्ता ।
* कायपना है हो है । बहत प्रदेशों का प्रचय-समूह होने से काय संज्ञा है, यह काय के समान ही काय है। अर्थात् जैगे काय-शरीर बहुत से प्रदेशों के समूह रूप है उसीप्रकार यह इन द्रव्यों में भी बहुत से प्रदेश रहते हैं इसलिए बहुत प्रदेशो होने से पांच द्रव्य अस्तिकाय संज्ञक हैं।
अस्तित्व नाम सत्ता का है। वह कैसी है ? वह सत्ता अपने प्रतिपक्ष-असता से सहित है । उसके दो भेद हैं--(१) अवान्तर सत्ता (२) महासत्ता । समस्त वस्तुओं के विस्तार में व्याप्त होकर रहने वालो महासत्ता है और प्रतिनियत वस्तु को व्याप्त करनेवाली अवान्तर सत्ता है। समस्त व्यापक रूप में आपस रहने वालो महासत्ता है
और प्रनिनियत एक रूप को व्याप्त करने वालो अवांतर सत्ता है । अनन्त पर्यायों में व्याप्त होनेवाली महा सत्ता है और प्रतिनियत एक पर्याय को व्याप्त करने वाली अवांतर सत्ता है। "अस्ति-है" इसके भाव को अस्तित्व कहते हैं । इस अस्तित्व से और काय से सहित पांच अस्तिकाय हैं। कालद्रव्य में अस्तित्व ही है, किन्तु कायपना नहीं है क्योंकि उसमें काय के समान वहुत प्रदेशों का अभाव है।
विशेषार्थ-- यहां पर पंच अस्तिकायों का लक्षण बताकर काल द्रव्य अस्तिकाय क्यों नहीं है इसका स्पष्टीकरण करते हुए सत्ता के लक्षण को सुन्दर ढंग से बताया । है । सत्ता-अस्तित्व-विध मानता-मौजद रहना । यह सत्ता सामान्य की अपेक्षा एक
है सम्पूर्ण चेनन-अचेतन आदि पदार्थ लोकाकाश और अलोकाकाश भी सभी इसी के अन्तर्गत हैं । अर्थात् अस्तित्व सामान्य से सभी वस्तुयें सत् रूप हैं इस बात को संग्रहनय विषय करता है। इसी रहस्य को न समझकर कुछ एकान्तवादी लोग इस सत्ता को एक परमब्रह्म रूप से मानने लगे हैं। अस्तु यहां यह बताना है कि यह सत्ता अपने विरोधी असत्ता-नास्तित्व के साथ अविनाभावी है। जैसे यह पुस्तक है तो इसमें स्व द्रव्यादि चतुष्टय की अपेक्षा अस्तित्व धर्म है और उसी काल में पर द्रव्य चौकी,