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नियमसार
( अनुष्टुभ् ) प्रतीतिगोचराः सर्वे जीवपुद्गलराशयः ।
धर्माधर्मनभाकालाः सिद्धाः सिद्धान्तपडतेः ॥४६॥ जीवादीदवारणं, परिवट्टरणकारण हवे कालो। धम्मादिचउण्हं णं, सहावगुणपज्जया होति ॥३३॥
जीवाविद्रव्याणां परिवर्तनकारणंभवेत्कालः । धर्मादिचतुर्णा स्वभावगुणपर्याया भवति ॥३३॥
जीवादि सभी द्रव्य में जो वर्तना कही। उसमें निमित्त मुख्य काल हो रहे सही ।। जो धर्म और अधर्म गगन काल द्रव्य हैं । उनमें स्वभाव गुरण तथा पर्याय भेद हैं ॥३३॥
- - - - -- - यद्यपि प्रत्येक द्रव्य स्वभाव से परिणमनशील हैं फिर भी उनके परिणमन में कालद्रव्य सहकारी कारण है । जैसे घड़े को बनाने में चक्र सहकारी कारण है।
( ४६ ) इलोकार्थ- सभी जीव और पुद्गल राशि प्रतीति के गोचर हैं और धर्म, अधर्म, आकाश तथा काल ये चार द्रव्य सिद्धान्त पद्धति से सिद्ध हैं।
भावार्थ-टीकाकार का ऐसा प्राशय प्रतीत होता है कि जीव और पुद्गल तो प्रतीति के विषय हो हो रहे हैं और धर्गादि चारों द्रव्य सर्वथा अमूर्तिक होने से सिद्धांत-पागम से सिद्ध हैं इन पर भी विश्वास करना चाहिए।
गाथा ३३
अन्वयार्य-[ जीयादि द्रव्याणां ] जीव प्रादि द्रव्यों में [ परिवर्तनकारणं] परिवर्तन का कारण [ कालः भवेत् ] काल द्रव्य होता है । [ धर्मादि चतुर ] धर्म, अधर्म, आकाश और काल इन चारों में [ स्वभावगुणपर्यायाः भवंति ] स्वभाष गुण और पर्यायें होती हैं।