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पजीव अधिकार पोग्गलववं उच्चद, परमाणु रिगच्छएरण इदरेण । पोग्गलदव्वो ति पुणो, ववदेसो होवि खंघस्स ॥२६॥
पुद्गलद्रव्यमुच्यते परमाणुनिश्चयेन इतरेण । पढगलतव्यमिति पनः व्यपदेशो भवति स्कायस्य ।।२६॥
निश्चय से तो परमाणु ही पुदगल दरब कहा । स्कन्ध तो पुदगल दरब व्यवहार से रहा ।। स्कन्ध हैं प्रशुद्ध द्रव्य प्रणू शुद्ध हैं। जो कुछ भी दिख रहा सभी स्कन्ध रूप हैं ।।२६।।
पुद्गलद्रव्यव्याख्यानोपसंहारोऽयम् । स्वभावयुद्धपर्यायात्मकस्य परमाणोरेव मलायव्यपदेशः शुद्धनिश्चयेन । इतरेण व्यवहारनयेन विभावपर्यायात्मनां स्कन्ध. मलाना पुद्गलत्वमुपचारतः सिद्ध भवति ।
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गाथा २६
अन्वयार्थ --[ निश्चयेन ] निश्चयनय से [परमाणुः] परमाणु को [ पुद्गल म्यं उच्यते ] पुद्गल द्रव्य कहा जाता है और [ इतरेण ] व्यवहारनय से [ पुनः सन्यस्य ] पुनः स्कंध को [ पुद्गलद्रव्यं इति ध्यपदेशः इतिः ] 'पुद्गल द्रव्य' ऐसा नाम होता है।
टोका--यह पुद्गल द्रव्य के व्याख्यान का उपसंहार है ।
शुद्ध निश्चयनय से स्वभाव से शुद्ध पर्यायस्वरूप परमाण को ही पुद्गल द्रव्य - यह नाम होता है और इतर-व्यवहारनय की अपेक्षा से विभाव पर्याय स्वरूप स्कन्धरूप
पुद्गलों में पुद्गलपना उपचार से सिद्ध होता है।
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[अब टीकाकार श्री मुनिराज जीव और पुद्गल के विकल्पों से परे निर्विकल्प अवस्थारूप ध्यान की सिद्धि के हेतु प्रेरणा देते हुए तीन श्लोक कहते हैं । ]