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अजीव अधिकार
तया हि
( मालिनी) इति विविधविकल्पे पुद्गले दृश्यमाने न च कुरु रतिभा भव्यशार्दूल तस्मिन् । कुरु रतिमतुला त्वं चिच्चमत्कारमा
भवसि हि परमश्रोकामिनीकामरूपः ।।३।। धाउचउक्कस्स पुरषो, जं हेऊ कारणंति तं यो। खंधारणं अवसारणं, रणदिवो कज्जपरमाणु रिमा
धातुचतुष्कस्य पुनः यो हेतुः कारणमिति स शेयः । स्कन्धानामवसानो ज्ञातव्यः कार्यपरमाणुः ॥२५॥
भू जल व अग्नि वायु घातु चार के लिये । जो हेतु उसको कारण परमाणु जानिये ।।
इसीप्रकार श्री पद्मप्रभमलधारीदेव पद्गल से प्रीति हटाकर प्रात्मा में प्रीति करने के लिये उपदेश देते हुये कहते हैं ]
( ३ ) श्लोकार्थ – इसप्रकार दिखाई देने वाले नाना प्रकार के पुद्गलों में हे भव्योत्तम ! तू रति भाव मतकर । तू निच्चमत्कार मात्र प्रात्मा में अतुल रतिप्रीतिकर जिससे तू परम थी-मुक्ति श्री रूपी स्त्री का वल्लभ होगा। अर्थात् इन दिखने वाले पौद्गलिक पदार्थों से प्रीति हटाकर तू अपनी शुद्ध चैतन्य स्वरूप प्रात्मा में प्रीति कर जिससे संसार भ्रमण से तू छुट जायेगा।
गाथा-२५ अन्वयार्थ- [ यः पुनः धातुचतुष्कस्प हेतुः ] जो पुनः धातु चतुष्क-पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु का हेतु-कारण है [ स कारणं इति शेयः ] वह कारण परमाणु
-.- - - .--- १. परमाणु ( क ) पाठान्तर ।