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जीव अधिकार
[ ४६ माणुस्सा दुवियप्पा, कम्ममहो मोगभूमिसंजादा । सत्तविहा रइया, रणादव्वा पुढविभेदेरण ॥१६॥ चउदहभेदा भणिदा, तेरिच्छा सुरगणा चउभेदा। एसि वित्थारं, लोयविभागेसु णादब्धम् ॥१७॥
मानुषा द्विविकल्पाः कर्ममहीभोगभूमिसंजाताः । सप्तविधा नारका ज्ञातव्याः पृथ्वीभेदेन ॥१६॥ चतुर्दशभेदा भणितास्तियंचः सुरगणाश्चतुर्भेदाः । एतेषां विस्तारो लोकविभागेषु ज्ञातव्यः ॥१७॥
जो कर्मभूमिया व भोगभूमिया कहें । मनुजों के ये दो भेद इनमें मुनि इक लहें ।। नीचे की सात भूमियों में नारकी रहें । इन भूमि भेद से ये सात भेद को लहें ।।१६।। तिर्यच के चौदह वाहे हैं भेद आप में । सुरगण के चार भेद भी माने हैं प्राप्त ने 1। जीवों का ये विस्तार तो बहुविध से है कहा। लोकानुयोग ग्रन्थ में है देखिये वहाँ ।।१७।।
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समयसार से भिन्न यह कुछ नहीं है इसप्रकार मान कर वह शीघ्र ही मुक्ति लक्ष्मी का वर हो जाता है।
गाथा १६-१७ __अन्वयार्थ-[ कर्ममहोभोगभूमिसंजाताः ] कर्मभूमि में उत्पन्न हुये और भोग भूमि में उत्पन्न हुये [ मानुषाः द्विविकल्पाः] मनुष्य दो प्रकार के होते हैं [ पृथिवी भेदेन ] पृथ्वी के भेद से [ नारकाः ] नारको [ सप्तविधा: ज्ञातव्याः ] सात प्रकार के जानने चाहिये [ लियंचः चतुर्दशभेदाः भरिणताः ] तिर्यंच जीव चौदह भेद सहित कहे गये हैं [ सुरगणाः चतुर्भेदा: ] देवगण चार भेद वाले हैं। [ एतेषां विस्तारः ] इन चारों गतियों के जीवों का विस्तृत वर्णन [ लोकविभागेषु नातव्यः ] लोकविभाग आदि लोकानुयोग के ग्रन्थों से जान लेना चाहिये ।