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नियमसार छुहतोहमीररोसो, रागो मोहो चिता जरा रुजामिच्च'। सेदं' खेद मदो रइ, विम्हियणिहा जणुव्वेगो ॥६॥
क्षुधा तष्णा भयं रोषो रागो मोहश्चिन्ता जरा रजा मृत्युः । स्वेदः खेदो मदो रतिः विस्मयनिद्रे जन्मोद्वेगौ ॥६।।
सुध प्यास भीति रोप राग मोह व चिता। मद खेद पसीना जरा व रोग व निद्रा॥ विस्मय रति उद्वेग जन्म मरण कहाये ।
ये दोष अठारह सभी के पास बताये ।।६।। अष्टादशदोषस्वरूपाख्यानमेतत् । असातावेदनीयतीव्रमंदक्लेशकरी क्षुधा । असातावेदनीयतीव्रतीतरमंदमंदरपाडया समुपजाता तुषा । इहलोकपरलोकात्राणा
सकेंगे । इसकी गाथा में प्राचार्य श्री ने प्राप्त, पागम और तत्व के श्रद्धान को सम्यग्दर्शन कहा है और प्राप्न का लक्षगा किया है अतएव उनकी भक्ति की प्रेरणा दी गई है।
गाथा ६
अन्वयार्थ --[ धातृष्णाभयंरोषो रागो मोहः चिता जरा रुजा मृत्युः ] क्षुधा, तृषा, भय, रोष, राग, मोह, चिता, वृद्धावस्था, रोग, मृत्यु [ स्वेदः खेदो मदो रतिः विस्मयनिद्रे जन्मोद्वेगौ ] पसीना, खेद, मद, रति, विस्मय, निद्रा, जन्म और अरति ( ये अठारह दोष ) हैं।
टोका---यह अठारह दोषों के स्वरूप का वर्णन है ।
असानावेदनीय कर्म के निमित्त से तीव्र अथवा मंद क्लेश को करने वाली क्षधा है । असातावेदनीय कर्म की तीन, तीव्रतर अथवा मंद, मंदतर पीड़ा से तृषा उत्पन्न होती है । इहलोक भय, परलोक भय, अरक्षा भय, अगुप्ति भय, मरण भय,
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१. द्वितीय पाद में चार मात्राएं अधिक हैं। २. खेदं सेद (क) पाठान्तर।