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जीव अधिकार
[२३ तस्स 'मुहग्गदवयम्, 'पुष्वावरदोसविरहियं सुद्धं । प्रागममिदि परिकहियं, तेण दु कहिया हवंति तच्चत्या ॥८॥
तस्य मुखोद्गतवचनं पूर्वापरदोषविरहितं शुद्धम् । मागममिति परिकथितं तेन तु कचिता मवरित तत्त्वार्याः ॥८॥
इनके मुखारविंद से निकले हुए वचन । जो पूर्व प्रपर दोष रहित शुद्ध हैं वरण ।। मागम ये नाम उसका ऋषियों ने बताया ।
उसमें कहे गये को तत्वार्थ है गाया ।।८।। परमागमस्वरूपाख्यानमेतत् । तस्य खलु परमेश्वरस्य ववनवनजविनिर्गतचतुरपचनरचनाप्रपंचः पूर्वापरदोषविरहितः, तस्य भगवतो रागाभावात् पापसूपसिंसादिपापक्रियाभावाच्छुद्धः परमागम इति परिकथितः । तेन परमागमामृतेन भव्य श्रवणा
गाथा ८ अन्वयायं-[ तस्य मुखोद्गतवचनं ] उन प्राप्त के मुख से निकले हुये जो वचन हैं [ पूर्वापरतोषविरहितं शुद्ध ] जो पूर्वापर दोषों से रहित हैं, शुद्ध हैं [ प्रागर्म इति परिकथितं ] उसे ही 'आगम' इस प्रकार कहा है [ तेन तु कथिताः तत्त्वार्याः ] और उस आगम के द्वारा कहे गये अर्थ तत्त्वार्थ कहलाते हैं ।
टीका-यह परमागम के स्वरूप का कथन है
उन प्राप्त परमेश्वर के मुखारविंद से निकले हुये कुशल वचन की रचना का विस्तार है वह पूर्वापर दोष से रहित है, उन भगवान् के राग का अभाव होने से | पापसूत्र के समान हिंसादि पाप क्रियानों का अभाव होने से जो शुस है वह 'परमागम'
इस नाम से कहा जाता है । वह परमागम भव्यों के द्वारा करर्ण रूपी अजुलिपुट से पीने योग्य अमृत है, मुक्ति सुन्दरो के मुख को देखने के लिये दर्पण है, संसार रूपी महासमुद्र के महाभंवर में फंसे हुये सम्पूर्ण भव्य जीवों को हाथ का अवलम्बन देने
१. मुहम्गह ( क ) पाठाला। २. पुवापर ( क ) पाठान्ता ।