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जीव अधिकार
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हिस्सेसदोसरहिनो, केवलणाणाइपरमविभवजुदो। सो परमप्पा उच्चइ, तविवरोप्रो ण परमप्पा ॥७॥
निःशेषदोषरहितः केवलज्ञानादिपरमविभवयुतः । स परमात्मोच्यते तद्विपरोतो न परमात्मा ||७॥
इस कभी दो दिन रही है । कंवल्य ज्ञान प्रादि परम विभवमयी है ।। परमात्मा वो ही कहा जाता है भुवन में ।
जो इनसे भिन्न वो नहीं परमात्मा जग में ।।७।। तीर्थकरपरमदेवस्वरूपाख्यानमेतत् । आत्मगुणघातकानि घातिकर्माणि ज्ञानदर्शनावरणान्तरायमोहनीयकर्माणि, तेषां निरवशेषेण प्रध्वंसानिःशेषदोषरहितः अथवा पूर्वसूत्रोपानाष्टादशमहादोषनिर्मूलनान्निःशेषदोनिमुक्त इत्युक्तः । सकल विमलकेवलबोधकेवलष्टिपरमवीतरागात्मकानन्दाचनेविभवसमृद्धः । यस्त्येवंविधः त्रिकालनिराव-- - - . . -
गाथा ७ ___ अन्वयार्थ -[ निःशेषदोषरहितः ] जो उपर्युक्त संपूर्ण दोषों से रहित और [ केवलज्ञानादिपरमविभवयुतः ] केवल ज्ञान आदि परम वैभव से सहित हैं [ सः ] वह [ परमात्मा उच्यते ] परमात्मा कहलाते हैं । [ तद्विपरीतः ] उससे विपरीत [ परमात्मा न ] परमात्मा नहीं है ।
टोका-~-यह तीर्थकर पर मदेव के स्वरूप का आख्यान है
जो आत्मा के गुणों का घात करने वाले हैं वे घाति कर्म कहलाते हैं, वे ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्त राय ये चार हैं । जो इन घातिया कर्मों का परिपूर्णतया प्रध्वंस कर देने से नि:शेष दोष से रहित होते हैं अथवा पूर्व गाथा सूत्र में कहे हुये अठारह महादोषों के जड़मूल से नष्ट हो जाने से अर्हन्त भगवान निःशेष दोष से रहित कहलाते हैं और सकल बिमल केवलज्ञान, केवलदर्शन, परम वीतरागस्वरूप आनन्द प्रादि अनेकों वैभव से समृद्ध होते हैं। जो इस प्रकार त्रिकाल निरावरण नित्य हो है एक आनंद स्वरूप जिसका ऐसे निजकारण परमात्मा की भावना से उत्पन्न कार्य परमात्मा हो चुके हैं वे ही भगवान अहंत परमेश्वर हैं। इन