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आदर्श जीवन ।
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मरना भला है उसका जो अपने लिए जिए ।
जीता है वह जो मरचुका ससारके लिये ॥ ' मैं क्यों इसे अपने बंधनमें बाँधकर रखनेका यत्न करूँ ? इससे हमारा कुटुंब उज्ज्वल होगा । गोड़ीदासभाईकी बातोंने खीमचंदभाईकी भावनाओंको दृढ बना दिया । वे कर्मबंधनकी दलालीके बदले धर्मके - मुक्तिके दलाल हो गये । वे बोले:“मैं आपका उपकार मानता हूँ कि, आपने मुझे यथार्थ बातें कहीं और मेरे मनको दृढ बनाया। इसी समय आचार्य महाराजके पास चलिए और मेरी ओरसे निवेदन कीजिए कि, छगनको दीक्षा दे दीजिए। मैं राजी हूँ । यदि कोई मुहूर्त पासहमें आता हो तो मैं इसको दीक्षा दिलाकर ही जाऊँगा । मैं महाराज साहबसे ये बातें न कह सकूँगा । मेरा हृदय
भर आयगा । "
गोड़ीदासभाई बोले:- “अब तो रात बहुत चली गई है । ग्यारह बजे होंगे । महाराज साहब आराम करते होंगे । इस समय उनके आराममें खलल डालना अच्छा नहीं हैं । सवेरे चलेंगे । "
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खीमचंदभाईनें कहा :- " महाराज साहबने अबतक आराम न फर्माया होगा । और यदि फर्माया ही होगा तो भी वे दयालु हैं, हमारे जानेका खयाल न करेंगे । मगर मैं इस खुशीकी खबरको महाराज साहबके कानोंतक पहुँचाये बगैर चैनसे न सो सकूँगा । इसलिए जल्दी से महाराज साहबके
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