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आदर्शजविन |
का समय हो गया, अब मैं जाता हूँ । भूआ भतीजे बैठे सलाह करते रहे कि, अब क्या करना है ?
राधनपुर में गोड़ीदासभाई अच्छे जानकार और धर्मके कामोंमें मुखिया समझे जाते थे । उस समय वहाँ जितनी इनकी बात मानी जाती थी उतनी साधु मुनिराजोंकी भी नहीं मानी जाती थी । आचार्य महाराजको, ये ही कई मुखियोंके साथ, मॉडलसे विनती करके ले गये थे । इसलिए सारे राधनपुरमें अपूर्व उत्साह फैला हुआ था । इन्होंने खीमचंदभाईको समझाया, उत्साहित किया और कहा :
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यह तो छगनकी बातोंसे निश्चित हो गया है कि, वह अब घर लौटकर न जायगा, चाहे तुम कुछ भी कर लो । तब व्यर्थ ही अन्तराय कर्म क्यों बाँधते हो ? अपने हाथहीसे यह शुभ कार्य करके कस्तूरीकी दलाली क्यों नहीं लेते ? "
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खीमचंदभाईने जवाब दियाः – “ गोड़ीदासभाई ! मैं इन बातोंको समझता हूँ । आचार्य महाराज बड़ोदे पधारे तबसे मेरी परिणति भी बदल गई है। मैं धर्मको कुछ भी नहीं समझता था, मगर आचार्य महाराजकी कृपासे और छगनकी प्रवृत्तिसे मेरे हृदयमें भी धर्मभावनाएँ बढ़ती जा रही हैं; मगर वे इतनी नहीं बढ़ीं कि मैं अपनी दाहिनी भुजाको -अपने प्यारे भाईको साधु हो जाने दूँ । ”
गोडी ० –“ तुम्हारा कहना सच है । दुनियामें मोह बड़ा ही जबर्दस्त है । सारा संसार ही मोहके आधीन है ।
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