Book Title: Mulshuddhi Prakaranam Part 02
Author(s): Dharmdhurandharsuri, Amrutlal Bhojak
Publisher: Shrutnidhi
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचार्य श्रीमत्प्रद्युम्नसूरि विरचितं मूलशुद्धिप्रकरणम् (द्वितीयो भागः ) सम्पादक आचार्य धर्मधुरंधरसूरिजी पं. अमृतलाल मोहनलाल भोजक प्रकाशक श्रुतनिधि शारदाबेन चिमनभाई एज्युकेशनल रिसर्च सेन्टर अहमदाबाद- ३८०००४ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचार्यश्रीमत्प्रद्युम्नसूरिविरचितं मूलशुद्धिप्रकरणम् [ द्वितीयो भागः ] Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रुतनिधि-ग्रन्थक : २ प्रधान सम्पादक जितेन्द्र बी. शाह Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमद् देवचन्द्रसूरिसन्दृब्धवृत्तिसहितं आचार्यश्रीमत्प्रद्युम्नसूरिविरचितं 'स्थानकानि' इत्यपरनामकं मूलशुद्धिप्रकरणम् [द्वितीयो भागः] सम्पादक आचार्य धर्मधुरंधरसूरिजी पं. अमृतलाल मोहनलाल भोजक प्रकाशक श्रुतनिधि शारदाबहेन चीमनभाई ऐज्युकेशनल रिसर्च सेन्टर, अहमदाबाद-३८०००४. विक्रमसंवत् २०५८ वीरसंवत् २५२८ ईस्वीसन् २००२ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम् आचार्यधर्मधुरंधरसूरिजी पं. अमृतलाल मोहनलाल भोजक प्रकाशक श्रुतनिधि शारदाबेन चिमनभाई एज्युकेशनल रिसर्च सेन्टर 'दर्शन', शाहीबाग, अहमदाबाद-३८० ००४ PHONE : 079-2868739. FAX : 079-2862026 e-mail : sambodhiad1@Sancharnet.in Website : www.scerc.org © श्रुतनिधि द्वितीय आवृत्ति, सन् २००२ मूल्य : रुपये २२५/ प्रति : ५०० मुद्रक : नवप्रभात प्रिन्टिंग प्रेस नोवेल्टी सिनेमा के समीप, घी-काँटा मार्ग, अहमदाबाद-३८० ००१. फोन : ५५०८६३१, ५५०९०८३ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रुतनिधि के सहयोगी प. पू. युवाचार्य श्री रत्नाकरसूरिजी म. सा. की प्रेरणा से १. श्री पंच महाजन समस्त संघ : रानीवाडा खुर्द (राजस्थान) * २. श्री झवेरी पार्क जैन संघ, अहमदाबाद की ओर से प्रस्तुत ग्रंथ के प्रकाशन में हार्दिक आर्थिक सहयोग प्राप्त हुआ है। संस्था उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करती है। Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुस्तक प्राप्तिस्थान अहमदाबाद : मुंबई : श्री पारसगंगा ज्ञानमंदिर मणिलाल यु. शाह बी-१०४, केदार टावर D-1-२०३, स्टार गेलेक्सी राजस्थान हॉस्पिटल के सामने, एल. टी. रोड़, बोरीवली (वेस्ट) शाहीबाग, अहमदाबाद-३८०००४. मुंबई-४०००९२ दूरभाष : c/o. ०७९-२८६०२४७ (राजेन्द्रभाई) दूरभाष : (R) ८०११४६९ (0) ८९३१०११ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकीय 'मूलशुद्धि प्रकरणम्' ग्रंथ का प्रकाशन करते हुए हम अत्यन्त हर्षान्वित हैं। प्रस्तुत ग्रंथ का प्रथम भाग कुछ समय पहले प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी के द्वारा प्रकाशित हुआ था किन्तु उसका दूसरा भाग छप नहीं पाया था। हालाँकि दूसरे भाग का संपादन कार्य ही शेष था और इस कार्य के लिए पं. श्री दलसुखभाई मालवणियाजी एवं आचार्य प्रद्युम्नसूरिजी अत्यन्त चिंतित भी थे पर संजोग ही कुछ ऐसे बनते चले की कार्य खटाई में पड़ गया पर आखिरकर पंडित श्री अमृतभाई भोजक एवं आचार्यश्रीधर्मधुरंधरसूरीजी ने गंभीरतापूर्वक इस कार्य को हाथ में लिया और संपन्न किया । आज यह ग्रंथ दो भाग में प्रकाशित हो रहा है। यह ग्रंथ जैन सिद्धान्त के परिचय के लिए काफी महत्त्वपूर्ण है । इस के प्रकाशन के लिए प्रज्ञाशील आचार्य श्री प्रद्युम्नसूरिजी म. की सतत प्रेरणा एवं अनुरोध रहे हैं और आचार्य श्री रत्नाकरसूरिजी म. के उपदेश से ग्रंथ प्रकाशन के लिए सुंदर आर्थिक सहयोग प्राप्त हुआ है, हम दोनों आचार्य भगवंतों के प्रति कृतज्ञताभाव व्यक्त करते हैं । रंज इस बात का है कि इस ग्रंथ के एक संपादक श्री अमृतभाई भोजक आज हमारे बीच नही हैं । यदि वे जीवित होते तो इस ग्रंथ के प्रकाशन से अवश्य संतुष्ट होते । पू. विद्वान् आचार्य श्री धर्मधुरंधरसूरिजी म. ने भी बड़ी मेहनत व लगन के साथ संपादनकार्य संपन्न किया है । वे हम उनके भी ऋणी हैं । इस ग्रंथ के प्रकाशन में आर्थिक सहयोग प्रदान करने वाले श्री झवेरी पार्क जैन संघ, अहमदाबाद का हम आभार व्यक्त करते हैं । हमें आशा एवं विश्वास है कि प्रस्तुत ग्रंथ जिसकी संरचना ग्यारहवीं शताब्दी के समर्थ जैनाचार्य आचार्य श्री प्रद्युम्नसूरिजी ने की है, जिज्ञासुजनों के लिए अत्यन्त उपयुक्त सिद्ध होगा । अहमदाबाद जितेन्द्र बी. शाह फरवरी - २००२... Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तुत प्रत में पादटीप में जो स्थाननिर्देश किये गये है, उनकी संज्ञागत सूची इस प्रकार है । सं. यह प्रति श्री हेमचन्दाचार्य जैन ज्ञानमंदिर पाटन में स्थित श्री संघ जैन ज्ञानभंडार की है। वा. यह प्रति उपर्युक्त ज्ञानमंदिर में स्थित श्री वाडीपार्श्वनाथ जैन ज्ञानभंडार की है। ला. यह प्रति श्री कच्छी दशा ओसवाल जैन महाजन के हस्तक अनंतनाथजी महाराज के मन्दिर (मुंबई) में रखे हए ज्ञानभंडार की है एवं सेठ श्री डोसाभाई अभेचन्द जैन संघ (भावनगर) के भंडार की है। Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमस्थानके साध्वीकृत्यस्थानकम् निर्वाणकारणं, निर्जराहेतु:, दुःशीलाः, विहारनिषिद्धक्षेत्र, विहारयोग्य क्षेत्र, उचित वसति, शय्यातरः, सारणादिस्वरूप, स्त्रीदोषाः, साध्वीगुणाः, अष्टादशसहस्र शीलाङ्गाः, ब्रह्मचर्य विषये स्थूलभद्र कथानकम्, ब्रह्मव्रतगुणाः, आशातना - गोशालक आख्यानकम्, सङ्गमाख्यानकम्, उपसंहार-उपदेशसर्वस्वम् श्रावककृत्याख्यं षष्ठस्थानकम् : विषयानुक्रमः विषयः मिथ्यादुष्कतम्, निजनामनिर्देशः : विवरणकार-प्रशस्ति जिनागमसार, तीर्थ परिभाषाः साधर्मिक प्रीति, द्रव्यकृत्य, धर्मबान्धवाः सन्धीरणम्, भावकृत्य, स्थिरीकरण, धर्मानुष्ठाने प्रेरणा, अष्टप्रकार प्रमादभेदाः, प्रमादविषये ब्रह्मदत्त कथानकम्, चण्डपुत्राख्यानकम्, प्रमादपरिणाम, साधर्मिक कृत्य - उपसंहार, श्राविकाकृत्याख्यं सप्तमस्थानकम् : नारीदोषाः, नूपुरपण्डिता कथानकम्, पतिमारिकाकथानकम्, प्रियदर्शनाऽऽख्यानकम्, पद्मावती कथानकम्, ज्वालावली कथानकम्, सुकुमालिका कथानकम्, वज्राकथानकम्, स्त्री-क्रीडनकम्, स्त्री-पुरुष दोषजालं तुल्यम्, स्त्रीभिः विना तीर्थं न पूर्णम्, चातुर्वर्णसंघः, पुण्यवती श्राविका, रेवती कथानकम्, देवकी कथानकम्, सीता कथानकम्, नन्दाख्यानकम् भद्राख्यानकम्, मनोरमाख्यानकम्, सुभद्राकथानकम्, नर्मदासुन्दरीकथानकम्, अभय श्रीकथानकम्, कीर्तिः कारणम् शीलसम्पदाः, सतीनां सामर्थ्यं, प्रभावं च, तीर्थपर्यन्त श्राविका सन्ततिः, श्राविकावात्सल्यम् विधेयम्, प्रकरण उपसंहारः सर्वस्थानककृत्यशेषः शरीर अनित्यता, सत्पात्रे दानं साधुवर्ग सन्मानः, अर्थस्य अनित्यता, पुण्यानुबन्धिपुण्यद्रव्य सप्तस्थाने कर्तव्यम्, प्रतिमा विवरण, दर्शनप्रतिमा, अणुव्रतपालने प्रतिमा, सामायिक प्रतिमा, पौषधप्रतिमा, कायोत्सर्गप्रतिमा, ब्रह्मचर्य प्रतिमा, सचित्तवर्जनप्रतिमा, सावद्यत्याग प्रतिमा, व्यापारत्याग प्रतिमा, श्रमणप्रतिमा, मूलशुद्धिविनयशुद्धिः, पंचप्रकारविनयः, उपसंहार-उपदेशम् पृष्ठाङ्कः १-६६ ६६-१२५ १२५-३२२ ३२२-३३२ ३३३-३३४ ३३४ Page #11 --------------------------------------------------------------------------  Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - [साध्वीकृत्याख्यं पञ्चमस्थानकम्] व्याख्यातं चतुर्थं स्थानकम्, सम्प्रति पञ्चममारभ्यते । अस्य च पूर्वेण सहाऽयमभिसम्बन्धःपूर्वत्र साधुकृत्यमुक्तम् । तदनन्तरं साध्वीकृत्यम् । अतस्तत्स्थानकम्, तस्य चाऽऽदिवृत्तमिदं साहूण जं पावयणे पसिद्धं, तं चेव अज्जाण वि जाण किच्चं । पाएण ताणं नवरं विसेसो, वट्टावणाई बहुनिज्जरं ति ॥१०१॥ साधूनां यतीनाम्, 'ज' ति यत्, 'पावयणे' त्ति प्रवचने प्राकृतत्वाद्दीर्घत्वम्, 'पसिद्धं' ति प्रसिद्धं='प्रकटम्', 'तं चेव' त्ति तदेव, 'अज्जाणं' ति आर्याणां साध्वीनाम् 'जाण' त्ति जानीहि अवबुध्यस्व, “किच्चं' ति कृत्यम्, 'पाएणं' ति प्रायः =बाहुल्येन, 'ताणं' ति तासाम् 'नवरं' ति केवलम्, 'विसेसो' त्ति विशेषोऽयमिति गम्यते, 'वट्टावणाइ' ति वर्तनादि तासां यत् संयमकृत्यादिषु प्रवर्तनमिति भावः 'बहुनिज्जरं' ति बहुनि रं= भूरिकर्मक्षयकारि । इतिशब्दो वृत्तसमाप्ताविति वृत्तार्थः ॥१०१॥ कस्मादिदंबहुनिर्जरं ? यस्माज्जिनोक्तं जिनाज्ञया विधीयमानस्य मोक्षकारणत्वाद् । अत आह - जिणाणाए कुणंताणं, नूणं निव्वाणकारणं । सुंदरं पि सबुद्धीए, सव्वं भवनिबंधणं ॥१०२॥ जिनाज्ञया तीर्थकरोपदेशेन, कुर्वतां विदधतां कृत्यमिति शेषः, नूनं निश्चितम्, निर्वाणकारणं = मोक्षविधायि । सुन्दरमपि शोभनमपि, स्वबुद्ध्या निजाभिप्रायेण, सर्वमपि= अशेषमपि आस्तामार्यिकाकृत्यम् भवनिबन्धनं संसारकारणम्, उक्तं च - समइपवित्ती सव्वा आणाबज्झ त्ति भवफला चेव । तित्थकरुद्देसेण वि, न तत्तओ सा तदुद्देसा ॥३२६॥ पञ्चा० गा० ३६३ इति श्लोकार्थः ॥१०२॥ किमेतदेव संयतीकृत्यमाज्ञया विधीयमानं मोक्षाय भवत्युताऽन्यदपि ? अत आह जं जं जिणेहिं पन्नत्तं वेयावच्चाइ कीई । तं तं विणिज्जराहेउ विसेसेण पुणो इमं ॥१०३॥ १. सं.वा. सु.पु. “ति सूत्रार्थः ॥ २. सं.वा. राहेडं, सु० प्रतौ पाठभङ्गः ।। Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भाग: यद्ययज्जिनैः प्रज्ञप्तं प्ररूपितं वैयावृत्यादि, तत्र वैयावृत्यं दशधा, उक्तं चआचार्योपाध्याय-तपस्वि-शिक्षक-ग्लान-कुल-गण-सङ्घ-साधु-समनोज्ञानाम् ... (तत्त्वा० अ०९ सू० २४) आदिशब्दाद् विनय-तपश्चरणादिपरिग्रहः, क्रियते= विधीयते, तत्तद् विनिर्जराहेतुः= विशिष्टकर्मक्षयकारणम्, विशेषतः पुनरिदं साध्वीकृत्यमिति श्लोकार्थः ॥१०३।। अत्राऽन्तरे परः प्राहकामं खु निज्जरा णंता वीयरागेहि वणिया। अज्जावट्टावणे किंतु विहीए दुक्करं इमं ॥१०४॥ कामम्=अनुमतार्थे, 'खु' इति निश्चये, निर्जरा= कर्मक्षयः, अनन्ता=अपरिमेया, वीतरागैजिनैः, वर्णिता=प्ररूपिता । क्व? इति, अत आह-आर्यावर्तने साध्वीसंयमप्रवर्तने, किन्तु=किमुत, विधिना=विधानेन, दुःकरंदुःशकमिति श्लोकार्थः ॥१०॥ स्वपक्षे पर एव दृष्टान्तमाह जहा सीहगुहा काई नाणारयणसंकुला। धरिसित्ता तर्हि सीहं, घेत्तुंरत्ताणि दुक्करं ॥१०५॥ यथा सिंहगुहा= कण्ठीरवाश्रयः, काचिद् =अनिर्दिष्टनामा, नानारत्नसङ्कला= विविधरत्नपरिपूर्णा, 'धरिसित्ता' धर्षयित्वा, 'तहिं' ति तत्र, सिंह केसरिणम्, 'घेत्तुं'ति ग्रहीतुम्, 'रत्ताणि' रत्नानि, दुःकरंदुःशकमिति श्लोकार्थः ॥१०५॥ पर एव दामन्तिकमाह अण्णाण-राग-दोसाईजीयदुइंतदोसओ। अज्जापओयणं काउं दुक्करं निज्जरा तहा ॥१०६॥ अज्ञानं मत्यज्ञानादि, रागः=अभिष्वङ्गलक्षण: द्वेषः= अप्रीतिलक्षणः, अज्ञानं = चेत्यादिद्वन्द्वः, त आदिर्यस्याऽसौ तदादिः, स चाऽसौ पूर्वापरनिपाताद् दुर्दान्तजीवदोषश्च; तस्मात्, आर्याप्रयोजनं कृत्वा 'दुक्कर' दुःशकं निर्जरा तथा ग्रहीतुमिति शेष इति श्लोकार्थः ॥१०६।। आचार्य आह १. सं.वा.सु. पर आह ॥ २. 'रयणाणि' सर्वासु प्रतिषु वर्तते । अत्र विवरणगतः 'रत्ताणि' इति अनुष्टुप्छन्दानुसारी पाठः स्वीकृतोऽस्ति ॥ ३. सं.वा.सु.पु. श्रया ॥ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम् - द्वितीयो भागः महासत्तो जहा कोइ सूरो वीरों परक्कम । धरिसित्तातहिं सीहं लीलाए लेइ ताणि वि ॥ १०७॥ = महासत्त्वः=प्रधानसत्त्वः, यथा कोऽपि = अनिर्दिष्टनामा, शूरः = सिंहवद्, वीरः - विक्रान्तः, पराक्रमः=महोत्साहयुक्तः, धर्षयित्वा तद्धैर्यनिष्फलीकरणेन 'तहिं' ति तत्र, सिंहं=मृगारिम्, लीलया = हेलया, लाति = गृह्णाति, तान्यपि = रत्नानीति श्लोकार्थः ॥१०७॥ दान्तिकमाह एवं धीरा य गंभीरा भावियप्पा जिणागमे । अज्जाकज्जाइ काऊणं सज्जो अज्जिति निज्जरं ॥ १०८ ॥ एवम्=अमुना प्रकारेण, धीराः = अक्षोभ्याः च = शब्दोऽवधारणे, तं चाऽग्रे योजयिष्यामः, गम्भीराश्च = अलब्धमध्याः, भावितात्मानः जिनागमे = जिनप्रवचने, आर्याकार्याणि कृत्वा सद्यः = तत्क्षणादर्जयन्ति निर्जरामिति श्लोकार्थः ॥१०८॥ कृत्यमेव श्लोकत्रयेणाऽऽह दुस्सीला सावया चोरा पच्चवायभयं जहिं । संजणं तहिं खित् विहारो वीरवारिओ ॥ १०९ ॥ दुःशीला:=कुत्सितशीलाः, उक्तं च जूँ इयर - मिंठ- सोला चट्टा उब्भामगाइणो जे य । एए होंति कुसीला, वज्जेयव्वा पयत्तेणं ॥ ३२७॥ सोला:=तुरगाकर्षकाः ३ श्वापदाः=सिंह-व्याघ्र-भुजङ्गादयः, चौराः = प्रतीताः प्रत्यपायभयम् = अनर्थभयम्, 'जहिं' ति यत्र, संयतीनाम्, तत्र क्षेत्रे = स्थाने, विहारो वीरवारितः =चरमतीर्थकरनिषिद्धः ॥१०९॥ कीदृशिक्षेत्रे विहारं कारयेत् 2 - आगंतुगाइभत्तम्मि सज्झाए संजमे हिए । साहुणीणं विहाणेणं, विहारं तत्थ कारए ॥११०॥ १. ला. ता. धीरो ॥ २. ता. 'ता महासीहं ॥। ३. सं. वा.सु.पु. तद्वीर्य ॥ ४. सं. वा. सु. पु. कूईयर ॥ ५. सं.वा.सु.पु. 'हारं तत्र का ॥ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः आगन्तुकादिभक्ते = प्राघूर्णकादिभक्ते आदिशब्दात् सैद्धान्तिकोद्यतविहारादिग्रहः, स्वाध्याये= पञ्चप्रकारे, संयमे सप्तदशविधे, हिते तद्गुणकारके क्षेत्र इति गम्यते, साध्वीनां (विधानेन)विहारं तत्र कारयेदिति ॥ तत्राऽपि कीदृग्वसतिविधेया ? सम्मं समंतओ गुत्ता गुत्तदारा सुसंवुया । सेज्जा अज्जाण दिज्जा हि कुज्जा तत्थ जहोचियं ॥१११॥ सम्यग् यथा भवत्येवम्, समन्ततः सर्वदिक्षु, गुप्ता=वृत्तिवरण्डकाद्यावृता, गुप्तद्वारा =कपाटदिभिः, सुसंवृताने विस्तीर्णा, शय्या वसतिः, 'अज्जाण दिज्जाहि' त्ति आर्याणां दद्यात् । ततः कुर्यात् तत्र यथोचितमिति श्लोकत्रयार्थः ॥१०९-१११॥ सम्प्रति यादृक् शय्यातरो विधेयस्तदाहगंभीरे सत्तवंते य भीयसहे तहेव य । मद्दविए कुलउत्ते अज्जासिज्जायरे विऊ ॥११२॥ गम्भीरः अलब्धमध्यः, सत्त्ववान् सत्त्वाधिकः, भीतसभ:=भीतपर्षत, 'तथैव च' इति पूरणार्थः, मार्दविक: निगृहीतमानः, कुलपुत्र:=प्रधानकुलोत्पन्नः, आर्याशय्यातरः =साध्वीवसतिदाता, विदुः विद्वानिति श्लोकार्थः ॥११२।। __ किमित्येवं शय्यातरो वर्ण्यते यतस्तस्याऽपि सारणादावधिकारोऽत आह सारणा वारणा चेव चोयणा पडिचोयणा । कायव्वा सावएणावि, साहुणीणं सुहासया ॥११३॥ स्मारणा वारणा 'चोयणा पडिचोयण'त्ति प्रेरणा प्रतिप्रेरणा चैव, पूर्वस्माच्चैवशब्दोऽत्र सम्बध्यते, कर्तव्या विधेया, श्रावकेणाऽपि साध्वीनां शुभाशयात्= शुद्धाशयादिति श्लोकार्थः ॥११॥ स्मारणादिस्वरूपप्रतिपादनायाऽऽहपम्हुढे सारणा वुत्ता, अणायारस्स वारणा । चुक्काणं चोयणा भुज्जो, निट्ठरं पडिचोयणा ॥११४॥ 'पम्हुढे' त्ति प्रमृष्टे= विस्मृते स्मारणा व्युक्ता, अनाचाराद् वारणा निषेधनम्, 'चुक्काणं' स्खलितानां 'चोयण' त्ति प्रेरणा, 'भुज्जो' त्ति भूयः प्रवर्तमानानां निष्ठुरं प्रतिप्रेरणा='ज्ञास्यथ यद्येवं न करिष्यथ ?' इति श्लोकार्थः ॥११४|| समस्तकृत्यसङ्ग्रहमाह १. ला. 'कादिवृता ॥ २. ला. नातिवि ॥ ३. ला. विना भूयो नि । Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः माइगुणवंतीणं समणीणं जहाविहिं । सक्कार- सेवणाईयं किच्चं कुज्जा विभागओ ॥११५॥ एवमादि=पूर्वोक्तादि गुणवतीनां = गुणयुक्तानाम्, श्रमणीनां = संयतीनाम्, यथाविधि= यथाविधानम्, सत्कार-सेवनादि आस्तां पूर्वोक्तम्, तत्र सत्कारः = वस्त्रादिभिः पूजनम्, सेवना=पर्युपासना, सत्कारश्च सेवना च सत्कारसेवने ते आदिर्यस्य ग्लानप्रतिचरणादेस्तत्तथा, 'किच्चं' ति कृत्यम्, कुर्यात् = विदध्यात्, विभागतः = स्वकीयस्थानानुल्लङ्घनेनेति श्लोकार्थः ॥११५॥ अत्राऽन्तरे पराभिप्रायसूचकं सूरिः श्लोकमाह त्थमणे उमति, इत्थीभावे कओ गुणा ? | तुच्छाइदोसदुट्ठाओ, अज्जाओ जं जिणागमे ॥ ११६॥ 'एत्थं' ति अत्र=प्रस्तुतव्यापारे 'अन्ने उ' त्ति अन्ये = अपरे, तुशब्दः पुनरर्थः, मन्यन्ते = प्रतिपद्यन्ते, स्त्रीभावे = स्त्रीत्वे, 'कओ' त्ति कुतः, गुणाः =ज्ञानादयः, तुच्छादिदोषदुष्टा आर्या यजिनागमे = अर्हत्प्रवचने । उक्तं च तुच्छा गारवबहुला चलिंदिया दुब्बलाय धीईए । तो अइसेसियगंथा दिट्ठीवाओ य नो थीणं ॥ ३ ॥ (विशे० गा० ५५५) इति श्लोकार्थः ॥११६॥ आगमोक्तमेव सूत्रकृत् स्वयमेव प्रतिपादयतितुच्छा इत्थी सहावेणं, इड्डीगारवदूसिया । चंचला इंदियेहिं च, धीईए दुब्बला सढा ॥११७॥ तुच्छा = गाम्भीर्यरहिता, 'इत्थि' त्ति स्त्री, स्वभावतः=प्रकृत्या, तथा च जइ नाम कहवि गंभीरिमा वि नारीण हुंतया सहया । तुच्छत्तणं वरायं निरासयं कत्थ निवसतं ? ॥३२९॥ ऋद्धिगौरवदूषिता = विभूत्यभिमानकलङ्किता, तथा च संपाविऊण रिद्धि अहियं गव्वं करेइ महिलयणो । जाईय पच्चएणं थीरयणं जह तु चक्किस्स ॥३३०॥ 'चंचला इंदिएहिं च' चञ्चला = चपला, इन्द्रियैः = करणैः, चकारोऽग्रे योज्यः । १. ता. भावओ ॥ २. ला. विना 'पारे तुशब्दः ॥ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६ तथा च जं किंचि विदट्ठूणं आसण्णं भयइ महिलिया पुरिसं । लोलाई जओ तीए सविसेसं भोगकरणाई ॥३३१॥ धृत्या दुर्बला=दार्व्यरहिता, तथा च जाण सरीरे निवस कायरभावस्स कारणं कामो । रमणीण ताण हियए दढत्तणं कत्थ संभवइ ? ॥ ३३२ ॥ शठा च = मायाशीला, तथा च वामसहावेणं चिय अंगं कामेण निम्मियं जाण । का भामिणीण ताणं मायासीलत्तणे पुच्छा ? ॥३३३॥ इति पराभिप्राय इति श्लोकार्थः ॥११७॥ उत्तरमाह भण्णए लहुकम्मत्ता इत्थीभावे वि भावओ । अज्जाओ गुणवंताओ सीलवंता बहुस्सुया ॥११८॥ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः भण्यते = प्रतिपाद्यते प्रत्युत्तरमिति शेषः, लघुकर्मत्वात् स्त्रीभावेऽपि भावतः= परमार्थतः, आर्यागुणवत्यः शीलवत्यो / बहुश्रुताश्च चकारो गम्यत इति श्लोकार्थः ॥११८॥ यद्येवं तर्हि सिद्धान्तोक्तदोषजालं विरुध्यते । अत आह पुव्वुत्तं दोसजालं तु बहुमुंडाउ दूसमा । सिद्धं सिद्धंतवक्काओ विसेसविसयं तहा ॥ ११९॥ पूर्वोक्तं दोषजालं तु = दोषसङ्घातम्, बहुमुण्डा तु दु:षमा इत्येतस्मात् सिद्धं = प्रतिष्ठितम्, सिद्धान्तवाक्यात्=तदुक्तवचनात् तथा च सिद्धान्तवाक्यम् कलहकरा डमरकरा असमाहिकरा अनिव्वुइकरा य । होर्हिति भरहवासे बहुमुंडे अप्पसमणे य ॥३३४॥ कलहकरा डमरकरा असमाहिकरा अनिव्वुइकरा य । पाएण दूसमाए निद्धम्मा निद्दया कूरा ॥ ३३५ ॥ 'विसेसविसयं तह' त्ति विशेषविषयं तथा बाहुल्यगोचरमिति भाव इति ॥ ११९॥ किञ्च १. ला. 'ए विसेससंभोग' ॥ २. ता. 'डाइ दू' ॥ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः कसायाण चउत्थाणं सामत्थेणं व कत्थई । निग्गंथीणं पि जे दोसा न ते मूलखयंकरा ॥१२०॥ ७ कषायाणां चतुर्थानां=संज्वलनाभिधानानाम्, 'सामत्थेणं' ति सामर्थ्यात्, वाशब्दः पक्षान्तरद्योतकः, निर्ग्रन्थीनामपि ये दोषा भवन्तीति गम्यते न ते मूलक्षयकराः = न चारित्रविनाशकाः, यत उक्तम् - सव्वे वि य अइयास संजलणाणं तु उदयओ हुंति । मूलच्छेज्जं पुण होइ बारसहं कसायाणं ॥ ३३६ ॥ इति श्लोकार्थः ॥१२०॥ ( आव० नि० गा० ११२) पूर्वोक्तार्थस्य निगमनार्थं श्लोकपञ्चकमाह तम्हा गंभीरधीराणं, गुत्ताणं समियाण य । सुगुत्तबंभयारीणं, निच्वं गुतिंदियाण य ॥१२१॥ तस्माद्गम्भीरधीराणां=गम्भीराश्च ताः = अलब्धमध्या धीराश्च = अक्षोभ्या गम्भीरधीरास्तासाम्, गुप्तानां गुप्तिभिः, समितानां समितिभिः, सुगुप्तब्रह्मचारिणीनाम् । वसहिकहनिसिज्जिदियकुडुंतरपुव्वकीलियपणीए । अइमायाहारविभूसणा य नव बंभगुत्तीओ ॥३३७॥ इति नवब्रह्मचर्यगुप्तिसनाथब्रह्मचर्यधारिणीनाम्, यद्वा सुगुप्ताश्च ताः = वस्त्राद्यावृतशरीरा ब्रह्मचारिण्यश्च ताः। तथा नित्यं = सदा, गुप्तेन्द्रियाणां च तद्विषयेष्टप्रवर्तनादिति श्लोकार्थः ॥१२१॥ अट्ठारससहस्साणं सीलंगाणं महाभरं । जावज्जीवं अविस्सामं वहंतीणं सुदुव्वहं ॥१२२॥ अष्टादशसहस्राणां शीलाङ्गानां महाभरं तत्स्थापना - या रथकल्पत्वात्, तथा चोक्तम् जोए करणे सन्ना, इंदियभोमाइ समणधम्मेय । सीलिंगसहस्साणं अट्ठारसगस्स निप्पत्ती ॥ ३३८ ॥ ( दश० नि० गा० १७७) दो दो तिणि गुरुजुया तिण्णि य अंसो गुरू य नव मत्ता । जोयाई छसु पंतियासु तो पुज्जए गाहा ॥ ३३९॥ जो जह भंगो, जाय चारणियाए कमेण तं घेत्तुं । उच्चरियव्वा सव्वा मुच्चइ एक्वेक्कयं च पयं ॥ ३४० ॥ अट्ठारस उ सहस्सा सीलंगाणं तहेव गाहाणं । रहठवणाए जायंति जेण तेणेस महभारो ॥३४१॥ १. ला. 'णं व कत्थई निग्गंथीणं निर्ग्रन्थीनामपि ॥ २. ला. विना महब्भरं ॥ ३. ला. विना मा य स° ॥ ४. ला. विना 'याईसुं तह पं° ॥ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थापना चेयम् न करेइ सयं ६००० न कारवेइ ६००० अणुमन्नए न ६००० साहू मणसा २००० वयणक्कमेण २००० काएण कहवि २००० आहारसन्नापरिहीणो | रहिओ भयस्स सन्नाए ५०० विजित्तु मेहुणे सन्नं ५०० सन्नं परिग्गहे मोत्तुं ५०० ५०० सोइंदियसंवरणो चक्खिदियनिरवेक्खो १०० जिभिदियनिग्गहणो १०० घाणिदियहयपसरो १०० फासिदियपरिहरणो १०० १०० पुढविजिए १० | जलजीवे १० जलणजिए १० वाउजीवे १० वणस्सइ०१० बेइंदिय | तेइंदिय चउरिदिय | पंचिदिय | अजीवे 1१० | १० | १०। खंतिसंपण्णो १ मद्दवजुत्तो २ अज्जवसमेओ ३ | मुत्तिसंजुत्तो ४ | तवसमाजुत्तो ५ | संजमम्मि| सच्चया- सोयपरि- | कंचणवि- बंभचेर | थिरो ६ | सहिओ ७ सुद्धो ८ | मुक्को ९ | ठिओ १० मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भाग: १. ला. यगहणपरो । Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः यावज्जीवम्= आप्राणधारणम्, अविश्राम= विश्रामरहितम्, वहन्तीनां सुदुर्वहं= कष्टवहमिति श्लोकार्थः ॥१२२॥ कायराणं दुरालोयं हियउथंपकारयं । बंभव्वयं महाघोरं धरंतीणं सुदुद्धरं ॥१२३॥ कातराणां= भीरूणाम, दुरालोकं कष्टदर्शनीयम्, आलोकितं च सद् हृदयोत्कम्पकारकं चित्तत्रासकारकम्, ब्रह्मव्रतं मैथुननियमनम्, महाघोरम्=अतिरौद्रम्, 'धरंतीणं' ति बिभ्रतीनाम्, सुदुर्धरकम्=अतिदुःखधारणीयं स्थूलभद्रमहामुनिमत्सरवद्यतिदृष्टान्तेन, कथानकं च ब्रह्मचर्यदुर्धरताप्रतिपादनार्थमाख्यायते - [३५. स्थूलभद्रकथानकम्] अत्थि इह भरहवासे गिरि-सर-वणसंडमंडिउद्देसे । वित्थिण्णविविहदेसे नर-तिरिगणसंकुलपएसे ॥१॥ वरपायारसुगुत्तं कयबहुरक्खाविहाणसुपयत्तं । देवउलभवणजुत्तं बहुकण-धणसंपयापत्तं ॥२॥ गुणगणधरणसुवत्तं निच्चं पि य ऊसवेहिं अविउत्तं । परचक्क-ईइचत्तं वरनयरं पाडलीपुत्तं ॥३॥ तत्थ निहयारिविंदो नियरिद्धिभरेण तुलियतियसिंदो । जणमणजणियाणंदो, निक्कंदियदुट्ठतरुकंदो ॥४॥ कंतीए विजियचंदो वरचरियनरिंदवंदपरिवंदो । निच्चं पि य निर्देदो अत्थि महानरवई नंदो ॥५॥ तस्स गयभूरिदोसा निद्दोसा तियसनारिसंकासा । नरवइचित्तावासा अत्थि पिया नाम ससिहासा ॥६॥ रिउपक्खक्खयकालो निययमहीरक्खणिक्कवरसालो । अट्ठमिससिसमभालो नियमइमाहप्पसोहालो ॥७॥ तोसियनियगोवालो मिच्छत महंतकंदकुद्दालो। वज्जियकुस्सुइजालो दोसतरुप्पाणावालो ॥८॥ १. ला. कष्टवह ॥ २. ला. “सरि-व ॥ ३. ला. उबंदिय" || ४. ला. विना वरविरिय ॥ ५. ला. कोहलो ॥ ६. ला. 'डकरवालो | मूल. २-२ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भाग: नियवंसजलयनालो दीणाऽणाहाण कप्पतरुडालो। तस्सऽत्थि गुणविसालो मंती नामेण सगडालो ॥९॥ तस्स वि य थूलभद्दो पुत्तो संजायपयडगुरुसद्दो । आगामियवरभद्दो नित्थिन्नकलागमसमुद्दो ॥१०॥ रूवेणं कंदप्पो गयदप्पो तिजगपयडमाहप्पो । चउविहबुद्धिअणप्पो बहुगुणसस्सोहवरवप्पो ॥११॥ तत्थेव अत्थि वेसा उब्भडसिंगारफारकयवेसा । विण्णायदेसभासा कामुयंजणजणियबहुहासा ॥१२॥ मिउकसिणकुडिलकेसा परिमुणियसमत्थरइगुणविसेसा । वेसियसत्थावासा नामेणं अत्थि उवकोसा ॥१३॥ तीए समं पसत्तो सयडालमहामइस्स वरपुत्तो । भुंजइ भोग अतित्तो बारसवरिसाणि निच्चितो ॥१४॥ अण्णो वि अत्थि तणओ सगडालमहामइस्स कयविणओ । सुयसयलजुओ पणओ रायाईतोससंजणओ ॥१५॥ सिरिओ नाम सुदक्खो अणहऽक्खो निहयसत्तुपडिवक्खो । नंदनिवदेहरक्खो गयऽणक्खो भाविसिवसोक्खो ॥१६॥ एत्तो य दियवरिखो वररुइनामेण अत्थि पत्तट्ठो । परि(डि)वाइजिणणपट्ठो तत्थ पुरे सिट्ठकयचिट्ठो ॥१७॥ सो ओलग्गइ रायं असेससामंतजणियअणुरायं । नवकयवरविन्नाणं अट्ठसएणऽपुणरुत्ताणं ॥१८॥ मिच्छासुयं ति काउं सोऽमच्चो जाव नो पसंसेइ । तुट्ठो वि हु नंदनिवो न देइ से तुट्ठिवरदाणं ॥१९॥ तं नाउं वररुइणा मंतिस्सोलग्गिया वरा भज्जा । तुट्ठाए तीए भणिओ 'भण भट्ट ? पओयणं किं पि' ॥२०॥ तेण वि सा पडिभणिया 'भद्दे ! तह भणसु निययभत्तारं । जह अम्ह चाडुयाइं, पसंसए राइणो पुरओ' ॥२१॥ १. ला. विना ‘सए अपुण ॥ Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः तीए वि तयं पडिवज्जिऊण भणिओ रहम्मिं नियनाहो । 'किं चाडुयकव्वाईं न पसंससि तस्स विउसस्स ?' ॥२२॥ तो भइ तयं मंती 'कहं पसंसामि मिच्छसुयमेयं ?' | ती व आगणं ता भणिओ जाव पडिवणं ||२३|| तीए य आगहं जाणिऊण पडिवज्जिउं तओ मंती । रायपुरओ पयंपइ वररुइणा चाडुए पढिए || २४ ॥ 'अहह सुभासियमेयं' तं सोउं पत्थिवो तओ तस्स । तुझे दीणारसयं अट्ठहिं अहियं पयच्छेइ ॥२५॥ एवं दिणे दिणे जावदेइ ता चिंतए पुणो मंती | 'कह एस करो जाओ उवरोहगयाण अम्हाण ?' ||२६|| तो विण्णवेइ रायं 'दिवसे दिवसे किमित्तियं देह । एयस्स बहु सुवणं ?' 'पसंसिओ जं तुमे, तेण ॥२७॥ तो भइ 'न मे एसो पसंसिओ, किंतु लोयकव्वाई । पेढिउं अविणट्ठाई कह रायं पत्तियावेइ ?' ॥२८॥ 'किं सच्चमिणं ?' भणियम्मि राइणा भणइ 'डिभयाई पि । एयारिसं पढंती कैल्ले तुम्हाण दाइस्सं' ॥२९॥ दुहियाओ तस्स सत्त उ मंतिस्स इमाओ अत्थि पयडाओ । बहुगुणगणकलियाओ तेलुक्कब्भहियरूयाओ ॥३०॥ जक्खा य जक्खदिण्णा भूया तह होइ भूयदिण्णा य । सेणा वेणा रेणा भगिणीओ थूलभद्दस्स ॥३१॥ तोताओ बीयदिवसे रायसमीवम्मि जवणियापुरओ । ठावेइ ताण पढमा गिण्हइ एक्काए वाराए ॥ ३२ ॥ बीया य दोहिं तइया तिहि लेइ चउत्थिया पुणो चउहिं । पंचमिया पंचेहिं छट्ठी छहिं सत्तहिं चरिमा ॥ ३३॥ तो वररुइणा पढिए पभणइ 'जक्खे ! तुमं पि पढसु' त्ति । पढियं च तीए एक्कसि सुयं च, एवं च सव्वाहिं ||३४|| १. ला. "म्मि भत्तारो ॥ २. ला. विना पढाई ॥ ३. ला. कल्लं ॥ ४. ला. ठावेऊणं प° ॥ ११ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः पढिए राया रुट्ठो निवारए वररुइस्स घरदारं । सो वि जणरंजणत्थं गंगाए नीरमज्झम्मि ॥३५॥ ठविऊण जंतमज्झे दीणाराणं सयं तु अट्ठहियं । पविरलजणसंझाए पसरम्मी थुणइ गंगनई ॥३६॥ पाएणं जा चंपइ ता चडइ करम्मि झ त्ति पोट्टलिया । तं दटुं बहुलोगो आउट्टो जंपई एवं ॥३७।। 'जइ वि इमो परिभूओ रण्णा तह वि हु इमस्स परितुट्ठा । दीणाराणऽट्ठसयं सिरिगंगा देवया देइ ॥३८॥ अहह न जुत्तं रण्णा कयं जओ एरिसं महापत्तं । परिभूयं' तं सोडे, राया जोएइ मंतिमुहं ॥३९॥ मंती वि भणइ 'सच्चं एयं जइ तुम्ह अम्ह पच्चक्खं । देइ' तओ भणइ निवो ‘पसरम्मि पलोयइस्सामो' ॥४०॥ 'एवं' ति भणिय पुरिसं निययं संझाए तत्थ पट्ठवइ । सिक्खविय थवइ जं सो तं घेत्तुमलक्खिओ एहि' ॥४१॥ पुरिसो वि तत्थ ठाणे सुरप्प वं पविसिऊण ताव ठिओ। जा गोविय पोट्टलियं नियगेहं पत्थिओ भट्टो ॥४२॥ तत्तो घेत्तूण तयं नेउं मंतिस्स सो समप्पेइ । मंती वि गुज्झयम्मि पक्खिविय पहायकालम्मि ॥४३।। गंतूण निवसमीवे पभणइ 'वच्चामु देव ! पेच्छामो । कह तस्स देइ तुट्ठा गंगा दीणारअट्ठसयं ?' ॥४४॥ तो तुट्ठो नरनाहो समत्थसामंत-मंतिपरिगरिओ । पत्तो तत्थ प्रएसे जत्थ ठिओ सो थुणइ गंगं ॥४५॥ दट्ठण नंदण्यं समागयं सयललोयपरिगरियं । उक्करिसियो वररुई गंगं थोउं समाढतो ॥४६॥ थोऊणं पज्जंते चंपइ पाएण तं नियं जंतं । न य उट्ठइ पोट्टलिया हत्थेहि विमग्गए ताहे ॥४७॥ १. ला. 'भूयं इय सोउं ॥ २. "गुह्यके-गूझं, गीझं, गजवू' इति गूर्जरगिराशब्दत्रयम्, तस्मिन्" । Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः १३ जा नवि पेच्छइ दव्वं पस्सेयजलाविलो तओ जाओ । तं दट्ठूणं मंती पभणइ ‘किं देइ नो गंगा ॥४८॥ तु गुज्झाओ पोट्टिलियं तो इमं पुणो भणइ । 'देवेस कूडचरिओ इह ठविय वियालवेलाए ॥४९॥ गिण्हइ पभायकाले मुद्ध जेणं एव विप्पयारेइ' । खिंसिय बहुप्पयारं सव्वे निययं गया ठाणं ॥५०॥ सो वि य गओ पओसं चितइ 'कह धरिसिओ अहमणेणं ? | ता कायव्वं किंचि वि इमस्स वेरस्स निज्जवणं' ॥५१॥ तो दासचेडियाओ उवचरिडं पुच्छियाओ 'किं अज्ज । वट्टइ मंतिस्स घरे ?' ताहिं वि कहियं जहा भैट्ट ॥५२॥ सज्जिज्ज आओगो मंतिघरे संपयं पहरणाई । सिरिययविवाहदिवसे दायव्वो जो नरिंदस्स ॥५३॥ तं छिद्दं लहिऊणं वररुइणा पाढियाणि डिंभाणि । भत्तु लगाइ दाउं एवंविहगीययं बहुहा ॥५४॥ 'एहु उ न वियाण जं सगडालु करिस्सए । नंदुराउ माविणु सिरियउ रज्जि ठविस्सए' ॥५५॥ तं तिय- चउक्क-चच्चरठाणेसु पढंति डिंभरूवाई । सिद्धं च तयं गंतुं निवस्स केणाऽवि डिंभगयं ॥ ५६ ॥ तं सोउं नरनाहों चितइ 'नणु हंत सच्चयं एयं । * जम्हा हु सत्थयारा पढंति एयारिससिलोगं ॥५७॥ बालया जं च भासंति जं च भासंति इत्थिओ | जा य उप्पाइया भासा न सा भवइ अन्नहा' ॥५८॥ पेसेइ पच्चयत्थं मंतिगिहे पत्थिवो निययपुरिसं । तेण वि जह दिट्ठम्मी सिट्ठे मंतिस्स सो कुविओ ॥५९॥ जा निवडइ चलणेसुं सगडालो ताव उप्पराहुत्तो । ठाइ सहस त्ति राया मंती वि हु मुणिय तब्भावं ॥ ६०॥ १. ला. जणं देव ? वि° ॥ २. ला. विना निज्जमणं ॥ ३. ला. विना भद्द ! ॥ ४. ला. रायनंदु मा° ॥ ५. ला. सोऊणं नर ॥ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भाग: उद्वित्तु गओ गेहं बोलावइ सिरिययं जहा 'वच्छ ! । पिसुणपवेसो एसो संजाओ दुत्तरो अम्ह ॥६१॥ होही कुलक्खओ णे, ता मह आणं करेहि जइ तं सि । ता होइ धुवं रक्खा' सिरिओ वि ये भणइ आइसह ॥२॥ 'जइ एवं तो जइया निवस्स निवडामहं पयग्गेसुं । तइया खग्गेण तुमं मह सीसं झत्ति छिदिज्जा' ॥६३।। तो ठइय करेहि इमो सवणे जंपेइ 'संतयं पावं । .. जम्हा हु गुरू जणओ गोरव्वो देवया तं सि' ॥६४॥ तो जंपइ सगडालो 'एवमकज्जंतए कुलस्संतो । जायइ, रिउवग्गस्स य न विप्पियं तीरए काउं ॥६५॥ तोऽहं तालपुडविसं जीहाए करिय रायचलणेसुं । निवडिस्सामि तुमं पुण मयस्स मे छिदिहिसि सीसं' ॥६६॥ तो जुत्तिजुत्तयमिणं नाउं पडिवज्जियं सिरियएण । तह चेवऽणुट्ठियम्मि राया सहस त्ति संभंतो ॥६७।। "किं पुत्त ? कयमकज्जं ?' एसो वि भणइ 'वेरिओ तुम्ह । निहओ मणुस्ससामिय ! पिउणा वि न तेण मे कज्ज' ॥६८॥ तो 'निम्भिच्चो एसो' त्ति भाविठं कुणइ मयगकिच्चाई । सोगत्तो, ताणते सिरियस्स पणामए मुदं ॥६९॥ तेणोत्तं 'मे भाया महल्लओ थूलभद्दनामो त्ति । वेसाघरम्मि चिट्ठइ बारसमं वट्टए वरिसं ॥७०॥ सो वाहिप्पउ जेणं अहिगारी एत्थ जणयतुल्लो' त्ति । तत्तो निवेण सिग्धं वाहित्तो आगओ एसो ॥७॥ कहिऊण जणयमरणं समप्पिया राइणा तओ मुद्दा । जंपेइ थूलभद्दो 'आलोच्चिय देव ! गिण्हामि' ॥७२।। रण्णा भणियं 'एत्थं असोगवणियाए गच्छ चितेहि । सो तत्थगओ चितई 'नणु भोगा केरिसा एत्थ' ॥७३॥ १. ला. विना हु ॥ २. ला. सिरीएण ॥ ३. ला. “इ मणुभोगा । Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः निवकज्जवावडाणं ? पुणो वि रज्जं करेत्तु संसारे । भमियव्वं ता तेणं पज्जत्तं होउ नणु मज्झ ॥७४॥ गिण्हामि समणदिक्खं मुणिगणसंसेवियं ति चितेउं । पंचहिं मुट्ठीहिं दढं सहसा उप्पाडए केसे ॥७५॥ कंबलरयणं पाउणिय छिदिउं तस्स पंतदसियाहि । काऊण य रयहरणं समागओ रायपासम्मि ॥७६।। पभणइ 'निव ! आलोच्चियमेयं तुह होउ धम्मलाभो' त्ति । इय वोत्तुं नीसरिओ गुहाओ सीहो व्व सो भयवं ॥७७॥ जंपइ राया 'पेच्छह कवडं काऊण जाइ वेसहरं । अप्पच्चयाओ चडिओ सयमेव गवक्खगं गंतुं ॥७८॥ जा पेच्छइ वच्चंतं मयकुहियकडेवराण मज्झम्मि । नासं पि अढंकंतं तं दटुं जंपए राया ॥७९॥ 'एसो हु वीयरागो जाओ भयवं ति तो अलं इमिणा' । उववेसइ मंतिपए सिरियं महया विभूईए ॥८॥ सिरिओ वि जाइ तीसे उवकोसाए गिहम्मि अणुदियहं । भाउज्जाइ त्ति सिणेहमोहिओ सा वि तं दढें ॥८१॥ रुवइ सदुक्खं सिरिथूलभद्दविरहानलेण संतत्ता । संठवइ सिरियओ तं एवं वयणाई जंपतो ॥८२॥ 'भाउज्जे ! किं कुणिमो? अम्हं जणओ विणासिओ णेणं । पावेणं वररुइणा तुम्ह य विरहो पिएण कओ ॥८३।। ता एसो कोसाए तुह भगिणीएऽणुंरत्तओ गाढं । ता तह भणाहि भगिणि, जह मज्जं पायए एयं' ॥८४॥ भणिया य तीइ भगिणी 'भद्दे ! तुम्हाण केरिसं पेम्मं । मत्ता तुमं, अमत्तो एसो, ता भणसु जह पियइ ॥८५॥ अण्णं च तुमं मत्ता भणिहिसि एयं असंगयं तेण । तुज्झ विरच्चि(च्ची)हि इमो ता कुणसु जहा सुरं पियइ' ॥८६॥ १. ला. नासं पि हु अठयंतं ॥ २. ला. विना भणिहिहि एयं ॥ Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः भणिओ य तीए एसो तहा तहा पेसलेहिं वयणेहिं । जह पियइ चंदहासं नाम सुरं खीरसंकासं ॥८७॥ लोयाणं पच्चक्खं तीए वि य साहियं तयं सव्वं । नियभगिणीए तीय वि सिट्ठमसेसं सिरिययस्स ॥८८॥ सो, वि य वररुइभट्टो, पविसरइ पुणो वि नंदरायस्स । अत्थाणे गोरव्वो य दीस सव्वलोएण ॥ ८९ ॥ अह अण्णया नरिंदो सुमरंतो मंतिणो गुणगणोहं । जंप 'पुत्त ! कहं ते पिया विणा कारणेण मओ ? ॥९०॥ अम्हाण आसि भत्तो असेसविण्णाणबुद्धिसंजुत्तो । एक्कus च्चिय विगओ अम्हं कम्माणुभावेण ॥९१॥ तो सोयं तं दद्धुं रायं पत्थावजाणओ सिरिओं । 'किं कुणिमो देव ? कयं सव्वमिणं मत्तवालेण ॥ ९२ ॥ एएणं वररुइणा' तं सोउं जंपए नरवरिंदो । 'किं सच्वं पियइ इमो ?' 'कल्लं दंसेमि' सो भइ ॥९३॥ बीयम्म दिणे तो सिरियएण सिक्खाविओ निओ पुरिसो । 'सव्वाण वि एक्वेक्कं वरपरमं देहि आउं ॥ ९४॥ एयस्स पुणो डोड्डुस्स देहिं मयणहलभावियं पउमं । पुज्जंति जेण अम्हं मणोरहा अज्ज संपूण्णा' ॥९५॥ तेण वि य तयं सव्वं, अणुट्ठियं मंतिवयणमवियारं । रायाईहिं य पउमाई ताई ठवियाई नासग्गे ॥९६॥ वररुणा वि हु पउमं जा धरियं नासियाइ अग्गम्मि । ता भिंगारमुहेण व नीसरिया चंदहाससुरा ॥९७॥ तं दट्टं लोगेणं सव्वेण वि खिंसिओ इमो तत्तो । पायच्छित्तस्सऽट्ठा उवट्ठिओ चाउवेज्जस्स ॥९८॥ तेण वि य ' तत्ततउयं तंबं पियसु त्ति तुज्झ पच्छित्तं । सो वियतं काऊणं पंचत्तं पाविओ सहसा ॥ ९९ ॥ १. ला. 'पए च्चिय ॥ २. अत्र 'भाइ' इत्यध्याहार्यम् ॥ Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः भयवं पि थूलभद्दो गंतूण गुरूण पायमूलम्मि । गुरुसक्खियं विहेउं पव्वज्जं पालए उग्गं ॥१००॥ अह अण्णया कयाई जलहरधारानिवायदाणोहो । विज्जुलयकणयमालो गलगज्जियगरुयसद्दालो ॥१०१॥ उग्गयसिलिंधदंतो बहुविहपसरंतवेल्लिकरपसरो । इंदोवयसिंदूरो समागओ पाउसगइंदो ॥१०२।। तो अज्जविजयसंभूयसूरिसीसा कमेण गिण्हंति । नाणाविहे अभिग्गहविसेसए ताण मज्झम्मि ॥१०३।। एक्कोत्थ भणइ साहू 'सीहगुहादारसंठिओ अहयं । चाउम्मासुववासो चिट्ठिस्सामी वयं मज्झ' ॥१०४॥ अण्णो 'दिट्ठीविसविसहरस्स बिलदारविहिय-उरसग्गो । कयभत्तपरिच्चाओ चाउम्मासं गमिस्सामि' ॥१०५॥ अवरो 'कूययमंडुक्कआसणे विहियतणुविउस्सग्गो । उववासेण गमिस्सं पाउसकालं च नियमो मे' ॥१०६॥ 'जोग्ग त्ति परिकलेउं गुरुणा जा तेऽणुमण्णिया ताव । उट्ठित्तु थूलभद्दो साहू वि पयंपए एवं ॥१०७॥ 'जा पुव्वपरिचिया मे उवकोसा तीए चित्तसालाए । निच्चं पि य भुंजतो छरसजुयं भोयणं विविहं ॥१०८॥ परिचत्ततवविसेसो चाउम्मासं तहिं गमिस्सामि । तुम्हाणं पयमूले अभिग्गहो एस मे होउ' ॥१०९॥ तं सोऊणं सूरी सुयउवओगं विसेसओ दाउं । 'निव्वहइ त्ति' मुणेउं अणुमण्णई तं महासत्तं ॥११०॥ सव्वे वि णिग्गया ते नियनियठाणेसु संठिया तिन्नि । भयवं पि थूलभद्दो उवकोसघरम्म संपत्तो ॥१११॥ तमइंतं दट्ठणं समुट्ठिया हरिसनिब्भरंगी सा । नूणं चलचित्तेसो समागओ वयपराभग्गो ॥११२॥ १. ला. अण्णो वि य दिट्टीविसहरस्स ॥ २. ला. पई एवं ॥ मूल. २-३ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः 'आइसह' त्ति भणंती जोडियकरसंपुडा ठिया पुरओ । भयवं पि भणइ 'दिज्जउ मह वसही चित्तसालाए' ॥११३॥ 'एह त्ति इमा पगुणा तो उत्तरिओ इमो तहिं गंतुं । गिण्हइ य तीइ गेहे सव्वरसोवेयमाहारं ॥११४॥ तो भुत्तुत्तरसमए विसेसओ विहियफारसिंगारा । उक्किट्ठवण्ण-लावण्ण-रूयवरसंपयाकलिया ॥११५॥ गंतूण मुणिसमीवे विलास-बिब्बोय-हावभावेहिं । सा खोभिउं पयत्ता संभारियपुव्वरयकीला ॥११६॥ मेरु व्व निप्पकंपो इमो वि तिलतुसतिभागमेत्तं पि । न य चइओ चालेलं विसेसओ निच्चलो झाणे ॥११७।। एवं दिणे दिणे सा मयणुक्कोयणकराहिं चिट्ठाहि । खोभेइ तहा जह दवइ नूण अयमइय पुरिसो वि ॥११८॥ भयवं पि थूलभद्दो जह जह खोभेइ सा तह तहेव । झाणम्मि निच्चलयरो संजायइ सिद्धखेत्तं व ॥११९॥ तो निप्पकंपयं पासिऊण तह धम्मसवणओ चेव । उवसंता उवकोसा संजाया साविया पवरा ॥१२०॥ सामन्ने थिरचित्ता बारसवयधरणनिच्चला धणियं । संवेगरंगपत्ता अभिग्गहं गिण्हए एवं ॥१२१॥ 'जइ कहवि देइ राया कस्स वि पुरिसस्स मं तयं मोत्तुं । सेसपुरिसाण भयवं ? मह नियमो एत्थ जम्मम्मि' ॥१२२॥ अह पाउसम्मि वित्ते निव्वाहियनियपइण्णगुरुभारा । . सव्वे वि हु संपत्ता कमसो नियसूरिपयमूले ॥१२३।। अह सीहगुहासाहुं इंतं अब्भुट्ठिऊण ईसिं ति । . 'दुक्करगारय ! तुब्भं सागय' मिइ जंपियं गुरुणा ॥१२४॥ इयरदुगं पि हु एवं गुरुहिं सम्माणियं अह कमेण । इंतम्मि थूलभद्दे सहसा अब्भुट्ठिओ सूरी ॥१२५॥ १. ला. जइ देइ कहवि राया ॥ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भाग: भणइ य 'दुक्करदुक्करकारय ! तुह सागयं महासत्त !' । द₹ण तयं इयरे घयसित्तसिहि व्व पज्जलिया ॥१२६।। चितंति 'पिच्छ गुरुणो, अणुरायं कह कुणंति मंतिसुए । सव्वरसट्ठे भुजंतयस्स कि दुक्करमिमस्स ? ॥१२७॥ अण्णम्मि य वरिसम्मि जाणिस्सामो इमं ति चितंता । चिट्ठति संजमरया कमेण पुण पाउसो पत्तो ॥१२८॥ तो सीहगुहाऽऽइ तो आपुच्छइ नियगुरुं जहा 'जामि । उवकोसाए घरम्मि सव्वरसोवेयमाहारं ॥१२९॥ भुंजतो निच्चं पि य चाउम्मासं तहिं गमिस्सामि' । तो 'थूलभद्दमुणिमच्छरि' त्ति नाऊण उवउत्ता ॥१३०॥ गुरुणो भणंति 'मा कुणसु आगहं वच्छ ! एत्थ अथम्मि । मोत्तूण थूलभदं न चयइ अन्नो तर्हि ठाउं' ॥१३१॥ साहू वि भणइ "एवं कायव्वमिणं किमित्थ दुक्करयं ?' । जंपइ गुरू 'विणासं पाविहसि न एत्थ संदेहो' ॥१३२॥ तं गुरुवयणं अवगन्निऊण पत्तो खणेण सो तत्थ । तं दटुं सा चिंतइ 'किमेस आगच्छए साहू ?' ॥१३३॥ हुं नायमिणं सिरिथूलभद्दमच्छरवसेण नणु एइ । ता बोहेमि पडतं संसारे समणगं एवं' ॥१३४॥ अब्भुट्ठिऊण वंदइ पभणइ 'आइसह जं मए कज्जं । साहू वि भणइ 'वसहि देहि महं चित्तसालाए' ॥१३५॥ दाऊण तहि वसहि भुंजावित्ता मणुण्णमाहारं । मज्झण्हे य परिक्खणहेउं दंसेइ थीभावं ॥१३६॥ दट्ठण तीए रूवं चलियमणो तक्खणेण पत्थेइ । जंपेइ सा वि 'भयवं ! न वयं दव्वं विणा होमो' ॥१३७॥ सो भणइ 'कओ दव्वं, अम्हाणं?' सा वि 'सहउ कटुं' ति । चिंतिय जंपइ 'नेपालयम्मि अप्पुव्वसाहुस्स ॥१३८॥ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० देइ निवो वरकंबलरयणं आणेहि तं तर्हि गंतुं । रागरसविनडियंगो साहू वि य पट्ठिओ तुरियं ॥ १३९॥ अगणितो जल-कद्दम - तसाइसंसत्तयं महीवीढं । पत्तो कमेण, राया वि देइ से कंबलीस्यणं ॥ १४० मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः तं घेत्तूणं वलिओ आगच्छइ जाव अंतरालम्मि । बद्धो चोरेहिं पहे, लवियं तो ताण सउणेण ॥ १४१ ॥ जह 'आगच्छइ लक्खो' पुच्छइ तो चोरनायगो पुरिसं । रुक्खारूढं 'किं भद्द ? पेच्छसे किं पि आवंतं ? ॥१४२॥ सो भइ 'मोत्तु समणगमेगं न हु किं पि तारिसंअण्णं' । पत्तो य तत्थ साहू निर्रुवियं किं पि न य दिट्टं ॥१४३॥ मुक्को य तेहिं 'वच्चसु' साहू वि पयट्टओ तओ सउणो । वाहरइ 'गओ लेक्खो' पभणइ सेणावई 'भयवं ? ॥१४४॥ किं अत्थि तुज्झ पासे किंचि वि ? सच्चं कहेहि जेणेसो । सउणो एवं जंपइ' साहू वि ? य भणइ 'अत्थि त्ति ॥ १४५ ॥ कंबलरयणं एक्कं इमस्स वंसस्स मज्झयारम्मि । छूढं वेसाए कए मुक्को तो चोरनाहेण ॥१४६॥ आगंतूण य दिण्णं, तं उवकोसाए तेण हत्थम्मि । चितेइ सा वि 'पेच्छह न दुक्करं किं पि रायस्स ॥ १४७॥ ता संबोहेमि इमं' ति भाविउं छुहइ ओघसरमज्झे । दट्ठूण तयं जंपइ 'महमोल्लं किं विणासेहि ?' ॥१४८॥ सा भणइ 'सोयसि इमं मूढ ! न सोएसि अप्पयं कीस सीलंगरयणपुण्णं विणासियं दुट्ठचित्तेण ?' ॥१४९॥ तं सोउं संविग्गो जंपइ ‘इच्छामि सम्ममणुसट्ठि | निवडतो संसारे तुमए हं रक्खिओ अज्ज ॥ १५०॥ वच्चामि गुरुसमीवं संपइ तुह होउ धम्मलाभो त्ति । आलोइयपडिकंतो करेमि तव - संजमं जेण ॥ १५१ ॥ १. ला. 'रूविओ किं ॥ २. ला. लक्खो भणइ य सेणा ॥ ३. ला. मुक्को सो चो' ॥ Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः उवकोसाए भणियं 'भयवं ! मिच्छा मि दुक्कडं जमिह । कयबंभवयाए वि हु कयत्थिओ कज्जमासज्ज ॥१५२॥ किंतु तुह बोहणत्थं एवमुवाओ इमो मए रइओ । ता खमिऊणं सव्वं गुरुजणवयणुज्जमं कुणसु' ॥१५३॥ 'इच्छं' ति भाणिऊणं संपत्तो सूरिणो समीवम्मि । धणियं खरंटिऊणं तेहिं वि आलोयणा दिण्णा ॥१५४॥ आलोइयपडिकंतो पुणो वि तव-संजमं मुणी कुणइ । उवकोसा वि हु दिण्णा रण्णा तुट्टेण रहियस्स ॥१५५॥ जा न वि विसिट्ठरागं तस्सुवरं कुणइ ताव एसो वि । तीए मणरंजणत्थं नियय दंसेइ विण्णाणं ॥१५६॥ गंतुं असोगवणियं पल्लंकत्थो धणुं परामुसइ । आरोविय बाणेणं विधइ अंबाण वरखंबी ॥१५७।। तस्स य सरस्स पुंखे, विंधइ अण्णेण तिक्खबाणेणं । अवरेण तस्स वि, तओ कमेण जा हत्थपप्पं ति ॥१५८॥ ताहे खुरुप्पबाणं खिविउं छिदित्तु सुत्तओ चेव । गिण्हइ उवकोसाए दावितो निययविण्णाणं ॥१५९॥ तो तब्भावं नाउं उवकोसा भणइ 'पेच्छ मह इन्हि । विण्णाणं' इइ वोत्तुं सरिसवरासिं करावेइ ॥१६०॥ नच्चित्तु तीए उवरिं पुणो वि सूईओ खोविउं तत्थ । अंतरिय पुप्फपत्तेहिं ताओ पुण नच्चिया एसा ॥१६१॥ एवं नच्चंतीए न खोविओ सरिसवाण सो रासी । न य विद्धा चलणेहिं, दटुं रहिओ समाउट्टो ॥१६२।। पभणइ 'मग्गेहिवरं जेण पयच्छामि जं ममायत्तं । जम्हा हु रंजिओ हं, दुक्करकरणेण तुह इमिणा' ॥१६३॥ सा भणइ 'दुक्करं किं मए कयं जेण रंजिओ एवं । सव्वाण दुक्करतरं विहियं नणु थूलभद्देण ॥१६॥ १. ला. "ण पवरबा ॥ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः जओ भणियं न दुक्कर तोडिय अंबलुंबिया न दुक्करं नच्चिउ सिक्खियाए । तं दुक्करं तं च महाणुभावं जं सो मुणी पमयवणम्मि वुत्थो ॥१६५|| अण्णं च तस्स नमिमो पयकमलं मुणिवरस्स भावेण । अइदुक्करदुक्करकारयस्स गुणरयणजलनिहिणो ॥१६६।। भयवं पि थूलभद्दो तिक्खे चंकम्मिओ नउण विद्धो । अग्गिसिहाए वुत्थो चाउम्मासं न वि य दड्डो ॥१६७॥ अवि य जो सव्वरससमग्गं मणोज्जभोज्जं सया वि भुंजतो । मह पासे वि न खुहिओ, तस्स नमो थूलभद्दस्स ॥१६८॥ जो पुव्वकीलियाई सुमराविय पत्थिओ मए अहियं । न य संजमाओ खुभिओ तस्स नमो थूलभद्दस्स ॥१६९॥ जो हावभावसिंगारजणियचेट्टाहिं मह अणेगाहिं । न य खुभिओ चित्तेणं तस्स नमो थूलभद्दस्स ॥१७०॥ A जो अच्चुब्भऽलावण्णवण्णपुन्नेसु मज्झ अंगेसु । दिढेसु वि न वि खुहिओ तस्स नमो थूलभद्दस्स ॥१७१।। जो मह कडक्खविक्खेवतिक्खसरधोरणीए विद्धो वि । सव्वंगं ण य खुभिओ तस्स नमो थूलभद्दस्स ॥१७२॥ जो मह मंजुलदेसीवियड्डभणिईहिं चित्तरूवाहि । मणयं पि हुने य खुभिओ तस्स नमो थूलभहस्स ॥१७३॥ अखलियमट्टकंदप्पमद्दणे लद्धजयपडायस्स । तिक्कालं पि य इणमो, नमो नमो थूलभद्दस्स' ॥१७४॥ जा एवं तीए वसंसिऊण भत्तीए संभुओ भयवं । ता विम्हइओ रहिओ पुच्छइ 'को थूलभद्दमुणी ?' ॥१५॥ तो पभणइ सा निसुणसु 'नंदनरिंदस्स पुव्ववंसम्मि । आसि महाबुद्धिजुओ वरमंती कप्पओ नाम ॥१७६॥ १. ला. 'भावो ॥ २. पा» एतच्चिनद्वयान्तर्गतं गाथायुगलं ला. प्रतावेवोपलभ्यते । ३. ला. न वि ॥ Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः तस्स य वंसे जाओ सगडालमहामई सुविक्खाओ । तस्सेस थूलभद्दो पुत्तो' इच्चाइयं सव्वं ॥ १७७৷৷ हिजा निययथुई तं सोऊणं इमो वि संभंतो । जंपइ जोडियहत्थो भत्तिब्भरनिब्भरो धणियं ॥१७८॥ सो धण्णो तस्स नमो दासो हं तस्स संजमधरस्स । अद्धच्छिऽपिच्छिरीओ जस्स न हियए खुडक्कंति ॥ १७९ ॥ एत्थंतरम्मि तीए संविग्गं जाणिऊण तह विहिया । धम्मका जह एसो पडिबुद्धो सुद्धजिणधम्मे ॥ १८० ॥ तं पडिबुद्धं नाउं कहिओ सव्वो वि निययवुत्तंतो । नियमग्गहणाईओ तं सोउं सो वि पडिभण ॥ १८१ ॥ 'उद्धरिओ हं तुमए भद्दे ? भवसायरम्मि निवडंतो । गिहामि अहं दिक्खं तुमं पि पालेहि नियनियमं ॥१८२॥ गंतूण गुरुसमीवे पव्वज्जं गिण्हिऊण अंइदुसहं । विहरइ गुरूहिं समयं इयरा वि य कुणइ जिणधम्मं ॥१८३॥ भयवं पि थूलभद्दो पालइ जा निक्कलंकसामण्णं । ता अण्णया कयाई संजाओ गरुयदुक्कालो ॥ १८४॥ बारहवरिसपमाणो तत्थ य गंतूण उयहितीरम्मि । सव्वे विठिया समणा, पुणरवि वित्ते इहं पत्ता ॥ १८५ ॥ वीसरियं सव्वसुयं अगुणिज्जंतं तर्हि दुकालम्मि । पुणरवि संघेण कओ समवाओ कुसुमनयरम्मि ॥ १८६॥ अंगं अज्झयणं वा उद्देसो जस्स किं पि जं असि । तं घेत्तूणं संघो मेलइ इक्कारसंगाई ॥१८७॥ नत्थि त्ति दिट्टिवाओ परिभावेंतेहिं तस्स कज्जम्मि । नाओ य भद्दबाहू चोद्दसपुव्वी समत्थि त्ति ॥१८८॥ तो तस्साऽऽणयणत्थं पत्तो संघाडगो तर्हि पहिओ । वंदित्ता विण्णवई 'संघो आणवइ पत्तो ति ॥ १८९ ॥ १. ला. विना अकलंकं ॥ २. "समस्ति" इत्यर्थः ॥ २३ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः सो भणइ 'महापाणं आढतं दुत्तरं महाझाणं । एएण कारणेणं न वट्टए मज्झ आगमणं ॥१९०॥ साहू वि य तव्वयणं गंतुं सव्वं कर्हिति संघस्स । संघो वि पुणो पेसइ अण्णं संघाडयं तत्थ ॥१९१॥ सिक्खविऊणं एवं जहा 'भणिज्जाह सूरिणो तुब्मे । जह 'संघस्साऽऽएसं जो न कुणइ तस्स को दंडो ॥१९२॥ 'कीरइ य संघबज्झो' भणिए सूरीहिं तो भणिज्जाह । 'तो खाई तुब्भे वि हु एवंविहदंडपत्त'त्ति ॥१९३॥ गंतूण साहुणो वि हु संघाएसं कहंति सूरिस्स । तं सोउं आउट्टो पभणइ ‘मा कुणह एवं ति ॥१९४॥ जह संघस्स वि कज्जं सिज्झइ मज्झं पि तह पसाएण । किज्जउ, पेसेह लहुं सिस्सा मेहाविणो इहई ॥१९५॥ दाहामि सत्त पुच्छा भिक्खायरियाए आगओ एक्कं । कालयवेलाइ पुणो बहिभूमीआगओ तह य ॥१९६॥ वेयालियाइ अण्णं, तिण्णि य आवस्सएं दाहं ५-७' । साहूहि सूरिवयणे, कहिए संघो वि मण्णेउं ॥१९७॥ पेसेइ थूलभद्दाइयाण मेहावियाण साहूणं । पंचसयाई संघो, सूरी वि हु वायए ताणि ॥१९८॥ अइथोववायणाएं सव्वे उन्मज्जिऊण नियठाणं । संपत्ता एकं चिय मोत्तूणं थूलभदं ति ॥१९९॥ पुच्छई य गुरू 'किं तं उब्भज्जसि नेय ?' सो वि पडिभणइ । 'उब्भज्जामि नाऽहं किंतु महं वायणा थोवा' ॥२००॥ भणियं च तओ गुरुणा, 'पुण्णप्पायं इमं महाझाणं । चिट्ठाहि थोवदिवसे एत्थ जहिच्छाए दाहामि' ॥२०१॥ १. ला. संघसमाएसं ॥ २. ला. 'लाए तओ २, बा ॥ ३. सं.वा.स. "ए अहं दाहं ॥ ४. ला. "ए ते सव्वे उज्झिऊण ॥ ५. ला. 'इ गुरू वि कि ॥ ६. ला. "प्पायं महं इमं झाणं ॥ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः पsिपुणम्मिय झाणे देइ जहिच्छाए वायणं सूरी । एवं कमेण पढिया जा पुव्वा दस दुवत्थूणा ॥ २०२ ॥ एत्थंतरम्मि तहियं वंदणहेउं कमेण पत्ताओ । निययविहारकमेणं भगिणीओ थूलभद्दस्स ॥२०३॥ गहियसमणत्तणाओ वंदित्ता तो गुरुं उच्छंत I 'कत्थऽच्छइ जेठज्जो ? 'एत्थोवरए' भणइ सूरी ॥२०४॥ तो तस्स वंदणत्थं ताओ चलियाओ सो वि इंतीओ । गारवेणं विउरुव्वइ केसरिसरूवं ॥२०५॥ दोढाविगिंचियमुहं पिंगसढं दित्तनयणजयलिल्लं । दट्ठूणं भीयाओ ताओ सूरिस्स साहंति ॥२०६॥ जह 'जेटुज्जो खइओ होहीसीहेण जेण तर्हि सीहो । चिट्ठइ जिंभायंतो' तो सूरी देइ उवओगं ॥२०७॥ पभणइ य 'जाह वंदह जेटुज्जो चेव सो न सीहो' त्ति । तो पुणरवि य गयाओ पेच्छंति सहावरूवेणं ॥ २०८ ॥ तुट्ठाओ वंदित्ता उवविट्ठाओ कर्हिति नियवत्तं । जह "सिरिओ पव्वइओ अम्हेहिं समं तया आसि ॥ २०९ ॥ किंतु छुहालू अहियं न चयंतो काउमेगभत्तं पि । पत्ते पज्जोसवणे भणिओ य मए जहा 'अज्जो ॥२१०|| अज्जं पज्जोसवणा ता पच्चक्खाहि पोरिसी ताव' । तेण वि पच्चक्खाया पुण्णाए ताए पुण भणिओ ॥२११॥ 'चिट्ठसु जा पुरिमडुं संपइ वंदाहि ताव जिणभवणे' । तं पि हु उवरोहेणं जा पुण्णं ता पुणो भणिओ ॥२१२॥ 'चिट्ठ अवड्डूमियाणि' तत्थ वि पुण्णे भणंति 'पच्चक्ख । अब्भत्तट्ठमियाणि रयणी सुत्तस्स वौलेही' ॥२१३॥ तेण वि य तदुवरोहाओ तह कए रयणिमज्झसमयम्मि । सरमाणो देव-गुरू छुहाए मरिडं सुरोजाओ ॥ २१४॥ १. ला. पपुच्छंति ॥ २. ला. दाढयविरिंचि ॥ ३. सं. वा. सु. वोलिहड़ ॥ मूल. २-४ २५ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः तो मे अधिई जाया 'रिसिघाओ किल महंतओ जाओ' । सिरिसमणसंघपुरओ उवट्ठिया पायछित्तेणं ॥२१५॥ संघो वि य पच्छित्तं न देइ, जंपइ य 'सुद्धया तं सि । भणियं च मए 'जायइ न मज्झ चित्तस्स निव्वाणं' ॥२१६॥ जइ पर सयमेव जिणो अक्खइ तो जायए दिही मज्झ' । इय नाउं संघो वि हु काउस्सग्गे ठिओ सव्वो ॥२१७।। तत्तो पवयणदेवी संघपभावेण आगया झत्ति । 'आइसउ मज्झ कज्जं संघो साहेमि जेण तयं' ॥२१८॥ संघेण वि सा भाणया 'ने हि इमं संजइं जिणसगासे' । सा भणइ 'मह कएणं एमेव य ठाह खणमेकं ॥२१९॥ जेण न पंता का वि हु संघपभावेण कुणइ मह विग्छ' । पडिवण्णे संघेणं मं घेत्तुं जाइ जिणपासे ॥२२०॥ तो वंदिओ जिणिदो जाव मए ताव विम्हिओ लोगो । भयवं पि कहइ सव्वं 'भरहाओ इमाऽऽगया अज्जा ॥२२१॥ निदोस' ति य भणिउं छिण्णो में संसओ जिणिदेण । वागरियाओ दोण्णि य चूलाओ मह निमित्तेणं ॥२२२॥ ताओ अह घेत्तूणं समागया, मण्णिया य संघेण" । एमाइ कहेऊणं अज्जाओ गया नियं वसहि ॥२२३॥ साहू वि थूलभद्दो वायणहेउं उवट्ठिओ जाव । बीयदिणे ताव गुरू न दिति से वायणं कह वि ॥२२४॥ विण्णवइ 'किं निमित्तं न देह ? जंपइ गुरू वि 'ज़मजोग्गो' । तो चिंतइ अवराहे पव्वज्जदिणाओं आरब्भ ॥२२५॥ जा न सुमरेइ किंचि वि ता भणइ न सामि ? किंपि सुमरेमि । गुरुणा वि य पडिभणिओ 'बीयमजोगत्तणं एयं ॥२२६।। जं काऊण न सुमरसि' एवं भणिओ सरितु अवराहं । चलणजुयलम्मि लग्गो खामइ परमेण विणएण ॥२२७॥ १. ला. 'घाओ अज्ज किल महं जाओ ॥ २. ला. मह ॥ ३. सं.वा.सु. भणियं ॥ Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः ततश्च भणइ य पुणो न काहं 'एवं' सूरी वि भणइ 'न हु तुमयं । काहिसि कार्हितऽण्णे अओ न ते वायणं देमि' ॥२२८॥ नाऊण गुरुं कुवियं तओ भणावेइ सयलसंघेण । संघं पि भणइ सूरी 'एसो वि करेइ जइ एवं ॥ २२९ ॥ अणे उ मंदसत्ता विसेसओ एरिसाई कार्हिति । ता चिट्टंतु इमाई उवरिमपुव्वाइं मह पासे ॥ २३०॥ संघो वि आगहेणं जा लग्गो ताव देइ उवओगं । जाणइ जह 'वोच्छेओ न ममाओ किंतु एयाओ' ॥२३१॥ याणि तओ निब्बंधिऊण अण्णस्स नेय देयाणि । वाइ थूलभद्दं जा निम्माओ तर्हि जाओ ॥२३२॥ ता ठविओ सूरिपए पडिबोहित्ताण भव्वसंघायं । संपत्तो दियोए भयवं सिरिथूलभद्दो त्ति ॥ २३३॥ तम्मि गए दियलोयं वत्थुदुगेणाहियाइं पुव्वाइं । चउरो वोच्छिण्णाई सेसं अणुसज्जियं पच्छा ॥२३४॥ एपसंगओ च्चिय कहियं कज्जं तु एत्थ जह तस्स । सीहगुहाइत्तस्स उ दुक्करतवसोसियस्सावि ॥ २३५॥ सीहोवसामगस्स वि महसत्तस्स वि गुणायरस्साऽवि । दुद्धरमेयं जीयं तं कह अण्णस्स मा होउ ? ॥२३६॥ इति श्लोकार्थः ॥ १२३॥ स्थूलभद्रमहामुनि-मत्सरवदृषिकथानकं समाप्तम् ॥३५॥ देवा य दाणवा जक्खा गंधव्वाकिन्नरा नरा । कं कं तं जं न कुव्वंति जे धरंति इमं वयं ॥ १२४ ॥ २७ देवाः = वैमानिकाः, दानवाः = भवनपतयः, यक्ष-गन्धर्व-किन्नराः=व्यन्तरविशेषाः नराश्च = मनुष्याः, चकारो 'देवा य' इत्येतस्मादिह योजनीयस्तेन विद्याधरा अपि गम्यन्ते, किं किं तद् यद् न कुर्वन्ति = नाऽस्त्येव तद् यद् न विदधति, ये धरन्ति = बिभ्रति, 'इमं' १. ला. जायं ता क° ॥ २. सं.वा.सु. 'षाः, चकारो ॥ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ ति एतत् 'वयं' ति व्रतं = ब्रह्मचर्यमिति श्लोकार्थः ॥ १२४॥ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः किमेतदेव ब्रह्मचर्यं दुर्धरत्वाद्गुणकारणमुताऽन्यदपि ? अत आहमोक्खावहं अणुट्ठाणं सव्वं सव्वण्णुदंसियं । भिक्खुणीणं कुणंतीणं संभवंति धुवं गुणा ॥ १२५ ॥ मोक्षावहं= शिवकारि, अनुष्ठानं = क्रियाकलापरूपम्, सर्वं = समस्तम्, सर्वज्ञदर्शितं = तीर्थकरप्रतिपादितम्, भिक्षुणीनां = संयतीनाम्, 'कुणंतीणं' कुर्वतीनाम्, सम्भवन्ति = सम्भाव्यन्ते, ध्रुवं = निश्चितम् गुणाः = ज्ञानादय इति श्लोकार्थः ॥१२५॥ यदि गुणाः सम्भवन्ति ततः किम् गुणा लिहीलाए एगाहारगयाण वि । सन्नाण - चरणाईणं सव्वे सव्वत्थ हीलिया ॥ १२६ ॥ गुणानां = ज्ञानादीनाम्, 'कील' इत्याप्तवादसंसूचकः हीलया = निन्दया, एकाधारगतानामपि आस्तां प्रभूताधारगतानाम्, सज्झान - चरणादीनां = मतिज्ञानादि - चारित्रप्रभृतीनाम्; आदिशब्दाद् दर्शन- तपः - संयमप्रभृतयो गृह्यन्ते, सर्वे = समस्ताः, सर्वत्र= मर्त्यलोके, हीलिताः =अपमानिताः, भवन्तीत्यध्याहार इति श्लोकार्थः ॥ १२६ ॥ तद्हीलनादौ च को दोषः ? इत्याशङ्कायामाह इहेव हीलिया हाणि हसिया रोवियव्वए । अक्कोसिया वहं बंधं, मरणं दिति ताडिया ॥१२७॥ इहैव = अत्रैव जन्मनि, हीलिताः = अगौरव्यताविषयीकृताः, हानीम् = अर्थनाशादिकाम्, ददतीति श्लोकान्ते क्रिया । हसिताः = हास्यविषयं प्रापिताः, रोदनाय = आक्रन्दनाय, जायन्त इत्यध्याहारः । आक्रोशिताः = आक्रुष्टा; वधं = लकुयदिघातम्; बन्धं = रज्ज्वादिसंयमनं ददति । मरणं = प्राणत्यागलक्षणम् ददति = प्रयच्छन्ति; ताडिताः = लताघातादिभिरिति श्लोकार्थः ॥१२७॥ हीलनादिभिश्च तेषामाशातना कृता भवति, तस्याश्चाऽनन्तसंसारकारणत्वादित्यत आह तत्तो आसायणाए उ, दीहो बहुदुहावहो । गोसाल - संगमाणं व, दुरंतो भवसाय ॥१२८॥ ततः=तस्मात्, आशातनया = आय: = लाभस्तस्य शातना आशातना तया, दीर्घः = १. ता. 'ण्णुदेसियं ॥ २. ता. धुयं ॥ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः प्रलम्बः, बहुदुःखावहः अनेकाशर्मकृत्, गोशाल-सङ्गमकयोरिव= भगवच्छिष्याऽऽभासमहोपसर्गकृत्सुरयोरिव, दुरन्तः दुष्टान्तः, भवसागरः संसारसमुद्रो जायत इति श्लोकाक्षरार्थः ॥१२८॥ भावार्थस्तु कथानकाभ्यामवसेयस्ते चेमे [३६ गोशालकाख्यानकम्] अत्थि इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे सावत्थी नाम नयरी । तीसे य उत्तरपुरत्थिमे दिसीभागे कोट्ठए नाम उज्जाणे पन्नत्ते । तत्थ य सावत्थीए अत्थि हालाहला नाम कुंभयारी, पभूयधणधण्णसमिद्धिसमद्धासिया । तीसे य कुंभकारावणंसि गोशाले नामं मंखलिपुत्ते आजीवियसंघपरिवुडे चउवीसवासपरियाए आजीवियसमएणं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । अण्णया य कयाइ छ दिसाचरा अंतियं पाउब्भवित्था, तं जहा-सोणे, कणंदे, कणियारे अच्छिद्दे, अग्गिवेसायणे, अज्जुणे, गोयमपुत्ते । ते य अट्ठविहमहानिमित्त जाणया, तद्यथा अङ्गं स्वप्नं स्वरं भौमं व्यञ्जनं लक्षणं तथा । उत्पातमन्तरीक्षं च निमित्तं त्वष्टधा स्मृतम् ॥३४२।। सो य गोशालगो तेसि निमित्तबलेणं सव्वजीवाणं इमाई वागरणाई वागरेइ, तं जहालाभं अलाभं सुहं दुक्खं गेमणमागमणं जीवियं मरणं । तए णं से गोसालगे मंखलिपुत्ते आजीविए अटुंगमहानिमित्तस्स उल्लोयमेत्त- विण्णाणेणं सावत्थीए नयरीए अजिणे जिणप्पलावी, अकेवली केवलिप्पलावी, अप्पणो जिणसदं पयासेमाणे विहरइ । तओ सावत्थीजणो सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउ-मुह-महापह-पहेसु अण्णोण्णमेवमाइक्खइ, अवि य - 'धण्णा कयपुण्णा मो गोसालो जेण मंखलीपुत्तो । अरिहा जिणे महप्पा विहरइ एत्थेव नयरीए ॥१॥ ता तस्स वंदणेणं पूयप्पायं करेमु अप्पाणं । जम्हा जिणिदवंदणमसंखदुक्खक्खयं कुणइ ॥२॥ ता तूरह भो ! तुरियं जेणं वच्चामु तस्स पासम्मि । तम्मुहनिहित्तनयणा सुणेमु तब्भासियं धम्मं ॥३॥ १. ला. कार्थः ॥ २. ला. सेणे, कुणं दे ॥ ३. सं.वा.सु. गोमपुत्ते ॥ ४. सं.वा.सु. निमित्तमाष्टकं स्मृ || ५. सं.वा.सु. गमणाग ॥ ६. ला. गोसाले ॥ ७. सं.वा.स. `त्ते अ ॥ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः एत्थंतरम्मि य सुराऽसुर-किन्नरोरग-विज्जाहर-विसरवंदिज्जमाणचरणारविंदजुयलो चोद्दसमहासमणसहस्ससंपरिखुडो समोसढो भयवं वद्धमाणसामी तित्थयरो, तओ तस्स वंदणत्थं निग्गया राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडंबिय-सेट्ठि-सत्थवाह-गणग-दोवारिंग-मंतिमहामंतिपमुहा समत्थपरिसा । धम्मकहावसाणे य जहागयं पडिगया । भगवओ य जेटे अंतेवासी इंदभूईनामं अणगारे छटुक्खमणपारणए समणं भगवं महावीरं वंदित्ता एवं वयासी-'इच्छामि णं भंते ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे सावत्थीए भिक्खायरियं गमित्तए' । 'अहासुहं देवाणुप्पिय' त्ति भगवया अब्भणुण्णाए सावत्थि पविसइ । तत्थ य उच्च-नीय-मज्झिमकुलेसु समुयाणं हिंडमाणे बहुजणसई निसामेइ जहा णं 'देवाणुप्पिया ! गोसाले जिणे अरिहा केवली' । तं च सोऊणं भगवं गोयमे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं समागंतूण भत्त-पाणयमालोएइ पारेइ य । पुणो चरिमपोरिसीवक्खाणम्मि सुस्सूसमाणे निसम्ममाणे पुच्छइ-'इच्छामि णं भंते ? गोसालगस्स उप्पत्तिं निसामित्तए' । तए णं समणे भगवं महावीरे गोयमाइपरिसाए गोसालस्स उप्पत्तिं कहेइ, अवि य "जंबुद्दीवे इहं चेव भारहद्धम्मि गोयमा ? । अण्णचउवीसियाए उ आइतित्थंकरे जया ॥४॥ विहीए निव्वुडे तम्मि महिमत्थं सुराऽसुरे । आवंते उप्पयंते य दटुं पच्चंतवासिओ ॥५॥ अहो ? अच्छेरयं अज्जं मच्चलोयम्मि दीसई । इंदयालमिवाऽपुव्वं न दिटुं कत्थई पुणो ॥६॥ इईहापोहजुत्तो उ पुव्वजोई सरित्तु य । मोहं गंतुं खणेणं तो मारुयाऽऽसासिओ तओ ॥७॥ छिण्णपत्तं व कंपंतो निदिउं गरहिउँ चिरं । अत्ताणं गोयमा ? धीरो सामण्णं घेत्तुमुज्जओ ॥८॥ सो पंचमुट्ठियं लोयं जावाऽऽढवइ महायसो । भत्तीए देवया तस्स ताव वेसं समप्पई ॥९॥ उग्गं तवं तवंतस्स तस्स दळूण ईसरो । लोयं पूर्व करेमाणं उवगंतूण पुच्छइ ॥१०॥ १. सं.वा.सु. 'हरतियसविसर' ॥ २. ला. 'गणनायग-दो ॥ ३. ला. लगस्स | Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भाग: 'केणं तं दिक्खिओ? कत्थ उप्पण्णो ? किं कुलंतरं? । सुत्तत्थं कस्सपामूले विसिटुं ते समज्जियं ?' ॥११॥ तो सो पत्तेगबुद्धो उ सव्वं तस्स वियागरे । दिक्खं जाइं कुलं सुत्तं अत्थं वा जत्थ अज्जियं ॥१२॥ तो सोऊणं अहन्नो सो इमं चिंतेइ गोयमा ? । 'नूणं अणारिओ. एसो लोगं डंभेण भक्खइ ॥१३॥ ता मण्णे जारिसं एस तारिसं सो जिणो वि हु । जंपिस्सइ त्ति नो तम्हा, वियारो एत्थ जुज्जई ॥१४॥ अहवा वि जिणो नेवं भासई मोहवज्जिओ । जम्हा तम्हा किमेएण जामि तत्थ जिणंतिए ॥१५॥ अभिनंदामि पव्वज्जं सव्वदुखविमोक्खणि' । चिंतिउं जाइ जा तत्थ ता जिणं तत्थ निक्खइ ॥१६॥ तहा विगणहरस्संते पव्वज्जं गिण्हई इमो । ईसरो नाम कोडंबी संविग्गो मंदबुद्धिओ ॥१७॥ निव्वुयम्मि जिणिंदम्मि तेलोक्केकल्लबंधवे । भव्वाणं बोहणट्ठाए देव-दाणवमज्झगे ॥१८॥ जिणाभिहियसुत्तत्थं जा वण्णेइ गणाहिवो । तावेसाऽऽलावगो तत्थ वक्खाणम्मि समागओ ॥१९॥ 'पुढवीजीवमेगं पि जो विणासेइ सो धुवं । अस्संजओ समक्खाओ वीयरागाण सासणे' ॥२०॥ तो ईसरो वि चिंतेइ 'सुहुमे पुढविकाइए । सव्वत्थ उद्दविजंति को ताई रक्खिउं तरे ? ॥२१॥ लहुत्तं कुणई एस महप्पा एत्थ अप्पणो । वक्खाणंतो असद्धेयं सव्वलोयसमक्खयं ॥२२॥ अच्चंतदुक्करं एवं वक्खाणंतस्स वी फुडं । कंठसोसो परं होइ एरिसं कोऽणुचिट्ठई ? ॥२३॥ १. ला. "एसो ॥ २. ला. "क्खविमोहणि ॥ Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ ता एयं विप्पमोत्तूण सामण्णं किंचि मज्झिमं । वक्खाणिज्जा जई एसो तओ लोगोऽर्जुरंजई ॥२४॥ हा हा हवा अहं मूढो पावकम्मो नराहमो । सयं जो नाऽणुचेट्ठामि अण्णोऽणुच्चिट्ठई जणो ॥ २५ ॥ जम्हा एयं जिणिदेहिं सव्वण्णूहि पवेइयं । जो एयं अण्णा वाए तस्स अट्ठो विरुज्झई ॥२६॥ ताऽहमेयस्स पच्छित्तं चरे घोरं सुदुक्करं । लहुं सिघं सिग्घरं जाव मच्चू न मे भवे ॥२७॥ आसायणाकयं पावं लहुं जेण विहुव्वई' । दिव्वं वाससयं जाव तप्पच्छित्तमिमो चरे ॥२८॥ तं तारिसं महाघोरं पायच्छित्तं सयंमई । काउं पत्ते बुद्धस्स सयासम्मी पुणो गओ ॥ २९ ॥ सुइ तत्थ वक्खाणं जाव ताव समागयं । 'पुढवाईणं समारंभं साहू तिविहेण वज्जए' ॥३०॥ हुं (? मिच्छत्ताओ दढं मूढो मुक्कचिंधं स ईसरो । एवं विचितए 'लोए को न ताइं समारभे ॥३१॥ चिट्ठई ताव एसेव पुढवीए निसण्णओ । अग्गीए रद्धयं खाइ जीवियं नो जलं विणा ||३२|| ता किंपि तं समक्खाइ जमेयस्सेव मत्थए । पडई, नो तमण्णो उ सद्दहेज्जा सयण्णओ ॥३३॥ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः ताठाउ ताव एसेत्थं वरं सो हु गणाहिवो । अहवा सो व एसोव नमे भणिययं करे ||३४|| किं वाऽहवा ममेएहिं सयं धम्मं कमहं । सुहंसुहेण जं लोओ सव्वो वि अणुचिट्ठइ ॥३५॥ न कालो निट्टुरस्सऽज्ज धम्मस्सिइ जाव चितइ । ताव भीमेण सद्देण विज्जू तस्स सिरोवरं ||३६|| १. ला. 'णुरज्जइ ॥ २. ला. अट्ठी ण वज्झई ॥ ३. सं.वा.सु. जाव तं पच्छि° ॥ Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः पडिया तो खयं तीए नीओ सो मुक्खसेहरो । मरित्ता सत्तमी उ महीए उववण्णओ ॥३७॥ सम्मत्त - सुयनाणाणं सासणस्स तहेव य । पडिणीयाइदोसेणं तया सो गोयमीसरो ॥३८॥ तत्थतं दारुणं दुक्खं भुंजित्ता सो निरंतरं । इहागओ समुद्दम्मि महामच्छो भवेत्तु णं ॥ ३९ ॥ पुणो वि सत्तमा उ तेत्तीसंसागरोवमे । दुस्सहं दारुणं दुक्खं भोत्तूणेह समागओ ||४०|| पक्खिजाईए संजाओ कागत्ताए सुकुच्छिओ । तओ वि पढमं गंतुं उव्वट्टित्ता समागओ ॥४१॥ दुसाणो भवित्ता णं पत्तो पढमियं पुणो । उव्वट्टित्ता तओ एत्थं खरो होउं पुणो मओ ॥४२॥ संजाओ रासहत्ताए छब्भवे य निरंतरं । ताहे माणुस्सजाईए समुप्पेण्णो पुणो मओ ॥४३॥ पुण माणुसजाई जाओ वणचरो इमो । तओ विमरिडं जाओ मज्जारो अइकूओ ||४४ | तओ वि नरयं गंतुं उप्पण्णो चक्कियत्तणे । तत्तो कुट्ठी भवेऊणं बहुदुक्खऽद्दिओ ओ ॥४५॥ किमीहिं खज्जमाणस्स पंचासं वरिसाणिउ । जाऽकामनिज्जरा जाया तीए देवत्तणं गओ ||४६ || ओहं नसतं लद्धूणं सत्तमिंगओ । तिरिक्ख - नरएसेवं कुनरेसुं च गोयमा ॥४७॥ बहुं कालं भमित्ताणं एस स च्चेव ईसरो । संपइ गोसालगो जाओ अओ उड्डुं कहेमहं ॥ ४८ ॥ अत्थि इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे सरवणे नाम सन्निवेसे, अवि य १. ला. 'णीयत्तदो' ॥ २. ला. 'प्यण्णो तओ मओ ॥ मूल. २-५ - ३३ Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः धण-धण्ण-रिद्धिपउरो गो-महिसिसमाउलो परमरम्मो । उच्छु-जव-सालिकलिओ सर-वावी-कूव-सरिजुत्तो ॥४९॥ तत्थ णं गोबहुले णामं माहणे परिवसइ, जो यरिद्धीए वेसमणो गोहणबाहुल्लयाएं कुचियण्णो। धण्णेण तिलयसेट्ठी सव्वत्थ वि सो अपरिपूओ ॥५०॥ वेयचउक्कविहण्णू सडंगवी धम्मसत्थपारगओ । मीमंस-नायवित्थर-पुराणमाईसु सुवियड्डो ॥५१॥ तेणं गोबहलेणं बंभणेणं तत्थ सरवणे सन्निवेसे एगा अइमहंती गोसाला कारिया, अवि य थंभसयसन्निविट्ठा समत्थजण-गोरुयाण आवासा । जत्थ निवसंति ताइं सीया-ऽऽयवभयविमुक्काई ॥५२॥ एत्तो य अत्थि नियसिप्पकलाकुसलो मंखली नाम मंखो, जो यदंसेइ सयललोयाण निययवावांरवावडमणाण । चित्तं कम्मविवागं लोभेणं अत्थलाभस्स ॥५३॥ तस्स य मंखलिस्स मंखस्स अत्थि भद्दा नामं भारिया, जा यसुकुमालपाणि-पाया लक्खण-वंजणगुणेहिं संपण्णा । लावण्ण-रूव-जोव्वणपगरिसकलिया पियाऽऽलावा ॥५४॥ सा य अण्णया कयाई तेणं नियपइणा सह विसयसुह-मणुहवंती जाया आवण्णसत्ता, अवि य गव्मभरनीसहंगी आपंडुकवोलसामथणवट्ठा । । परियत्तियलावण्णा कमसो अन्न व्व सा जाया ॥५५॥ सो य तीए सह गामाओ गामं नगराओ नगरं मंखफलयहत्थगओ परिभमंतो समागओ तं सरवणं सन्निवेसं कओ य तेण तीए गोसालाए एगत्थपएसे भंडनिक्खेवो मग्गिओ य तेण सव्वत्थ वि सन्निवेसे वरिसायालपाउग्गो उवस्सओ । जाव य न लद्धो ताव तत्थेव ठिओ । तत्थ य सा भद्दा नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धट्ठमाण राइंदियाणं १. ला. गामाणुगामं ॥ २. सं.वा.स. “से भज्जनि॥ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः वीइक्वंताणं पसूया दारयं, अवि य - सुपसत्थलक्खणधरं माणुम्माणप्पमाणपडिपुण्णं । ससिसरिसकंतिकलियं पसवइ सा दारयं रुइरं ॥५६॥ वत्ते पसूइकम्मे बारसमदिणम्मि तस्स तुढेहिं । अम्मा-पिईहिं विहियं गुणनिप्पण्णं इमं नामं ॥५७॥ जम्हा गोसालाए जाओ अम्हाण दारओ एसो । गोसालगा त्ति तम्हा नामं एयस्स होउ त्ति ॥५८॥ परिवडतो कमसो जाओ एसो य अट्ठवारिसिओ । सिक्खाविओ य पिउणा साइसयं निययसिप्पं तं ॥५९॥ उम्मुक्कबालभावो संपत्तो जोव्वणम्मि नियफलयं । पडिचक्कं काऊणं गामं गामेण परिभमइ ॥६०॥ एत्तो य अहयं गोयमा? तीसं वासाइं गिहवासे वसित्ता अम्मा-पिईहिं देवलोगं गएहिं लोगंतियदेवेहिं पडिबोहिओ गहियतित्थयरलिंगो पव्वइओ । तओऽहं पढमं वासं अद्धमासं अद्धमासेणं खममाणो तावसासमे पढमपक्खखमणं काऊण अट्ठियगामं गओ । दोच्चे य वासे मासं मासेण खममाणो रायगिहनगरनालंदाबाहरिया तंतुवायसालाए ठिओ । तओ तत्थ अहं मासाओ मासाओ पारणयं करेमि । इओ य सो गोसालगो मंखफलगहत्थगओ गामाणुगामं अडमाणो तत्थेव रायगिहे नगरे समागओ । तत्थेव नालंदाए तहिं चेव तंतुवायसालाए भंडनिक्खेवं करेइ । अण्णत्थ वरिसाकालपाउग्गमुवस्सयमलभमाणो तत्थेव तंतुवायसालेगमदेसम्मिथक्को । एत्तो य अहं पढममासक्खमणपारणए, पविट्ठो रायगिहं । तत्थ वि उच्च-नीयमज्झिमकुलेसु परिभमंतो पत्तो विजयस्स गाहावइस्स गिहं । सो वि ममं दट्टण भत्तिब्भरनिब्भरो अब्भुट्ठिओ, अवि य - दळूण ममं इंतं भत्तिवसुल्लसियबहलरोमंचो । सहस च्चिय अब्भुट्टइ मुयइ तओ पाउयाजुयलं ॥६१॥ अणुगच्छिऊण सत्तट्ठपयकमे तिप्पयक्खिणं काउं । भत्तीए वंदित्ता जाइ तओ रसवईगेहे ॥६२॥ १. ला. एस ॥ २. ला. दियलोगं ॥ Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ तो सव्वकामगुणियं तत्तो घेत्तूण विविहआहारं । पडिलाभइ परितुट्ठो फासुय - एसणियाणेणं ॥ ६३ ॥ तत्तो गाहग-दायगदव्वविसुद्वेण तेण दाणेणं । विजयस्स गिहे सहसा पाउब्भूयाइं दिव्वाई ॥६४॥ पहयाओ दुंदुहीओ आगासतलम्मि गहिरघोसाओ । घुटुं च महादाणं चेलुक्खेवो कओ तुरियं ॥६५॥ गंधोदयं पट्टं आगासाओ सुरेहिं पक्खित्ता । बहुकणय - रयणकलिया वसुहारा किरणचिचइया ॥ ६६ ॥ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः एयं च एवंविहं सोऊण समागओ सव्वो वि नयरलोगो, जंपइ य परोप्परं विम्हउप्फुल्ललोयणो, अवि य धण्णे णं कयपुण्णे सुलद्धजम्मे य सहलजीए य । गाहावइ विजए णं जेणं पाराविओ भयवं ॥ ६७॥ जस्सऽणुभावेण गिहे पाउब्भूयाइं पंच दिव्वाई । तं सोउं गोसालो कोऊहलपूरिओ एइ ॥६८॥ पेच्छइ य तं तह च्चिय, निग्गंछंतं च तग्गिहाओ ममं । दट्ठूण हट्ठतुट्ठो वंदइ तिपर्यााहिणं काउं ॥६९॥ भणइ य 'तुब्भे मज्झं धम्मायरिया अहं तु तुम्हाणं । अंतेवासी भयवं !' सुणेमि नो तेस्स वयणमहं ॥७०॥ तओऽहं गोयमा ! तीए चेव तंतुवायसालाए बीयं मासखमणं पडिवज्जामि पारणए य रायगिहे चेव आणंदस्स गाहावइस्स गिहं अणुप्पविट्ठो तेण वि जहा विजएणं तहा सव्वकामगुणिणं पाराविए । एवं तइए वि मासखमणपारणगे सुनंदेणं गाहावइणा खज्जगविहीए पाराविए । तओ चउत्थे मासखमणे कत्तियपुण्णिमाए तंतुवायसालाओ पडिनिक्खमामि । रायगिहनयरपच्चासण्णे कोल्लागसन्निवेसे गच्छामि । तत्थ य बहुलस्स माहणस्स गिहं अणुपविट्ठे, तेण वि जहा विजएणं तहा महु- घयसंजुत्तेणं परमन्नेणं पाराविए, तहेव पंचदिव्वाइया सव्वा विभूई जाया । इओ य से गोसालगे मंखलिपुत्ते ममं तंतुवायसालाए अपिच्छमाणे तं सव्वं नियभंडोवगरणं माहणाणं दाऊण सिरं मुंडावित्ता ममं गवेसमाणे कोल्लागसन्निवेसं समागए । १. ला. व्याहिणीकाउं ॥ २. ला. तस्स एयमेहं ॥ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः ३७ तहेव जणवायं सोऊण चिंतेइ जहा - 'न एयारिसा अन्नस्स इड्डीता भवियव्वमित्थ ममं धम्मापरिएणं' ति । गवेसमाणे जेणेव ममं [ ? अंतिए ] तेणेव समागए, ममं पासित्ता हतुट्ठे तिपयाहिणं काऊणं वंदइ, वंदित्ता य भणइ - 'तुब्भे णं भयवं ! मम धम्मायरिया, अहं तुब्धंतेवासी' । तं च सोऊण अहं मोणेण चेव संठिओ । तओऽहं गोसालेण सद्धि पणियभूमीए छ व्वासाइं सुह- दुक्खं लाभमलाभं सक्कारमसक्कारं पच्चणुब्भवमाणे अणिच्चजागरियं विहरित्था अण्णया य सरयकालसमयंसि अप्पवुट्टिकायंसि गोसालेणं सद्धि सिद्धत्थगामाओ नगराओ कुम्मगामं नगरं संपट्ठिए तस्स णं सिद्धत्थगामनगरस्स कुम्मगामनगरस्स य अंतराएगं तिलथंबं पुम्फियं गोसाले पासित्ता ममं वंदइ, वंदित्ता य पुच्छइ - 'भयवं ! किमेस तिलथंबे निप्फज्जिस्सइ किं वा नो इमे य कुसुमजीवे मरिऊणं कर्हि उववज्जिस्संति ?' । तओ म भणियं-‘निप्फज्जिस्सइ, इमे य सत्त कुसुमजीवा मैरिडं एत्थेव एगाए तिलसंगलियाए सत्त तिला भविस्संति' । तओ गोसालगो एयं सोच्चा पडिवज्जइ, न सद्दहइ । असद्दहमाणो ममं अंतियाओ सणियं सणियं ओसरइ, ओसरित्ता तिलथंबगस्स अंतियं समागंतूण 'एस भयवं मिच्छावाई भवउ' त्ति चिंतंतो तं तिलथंबगं सलिडुगं उप्पाडित्ता मग्गस्स बीयपासेणं पक्खिविऊणं मम समीवमागओ । तत्थ दिव्वे अब्भवद्दलए संजाए, तक्खणं चेव वरिसिए । तेण य उदएणं से तिलथंबे भूमीए पयट्ठिए निबद्धमूले जाए । तओ गोयमा अहं गोसालगेणं सद्धि कुम्मगामं नगरं गओ । तस्स नगरस्स बहिया वेसियायणो नाम बालतवस्सी आयावणं आयावेइ । तस्स य महाजडाभाराओ उण्हेणं ताविज्जमाणीओ जूयाओ भूमीए निवडंति । अवि य - खरतरणिकिरणसंतावियाओ सलवलिय तस्स सीसाओ । निवडंति भूमिवट्टे जूँयाओ तो इमो ताओ ॥७१॥ उद्धरिय दयाजुत्तो पुणो वि पक्खिवइ निययसीसम्मि । तं दद्धुं गोसालो गंतूणं तस्समीवम्मि ॥७२॥ जंपइ 'किं तं सि मुणी उयाहु सेज्जायरो सि जूयाणं ? । एवं भणिओ वि इमो न तस्स पच्चुत्तरं देइ ॥७३॥ तो गोसालो पुणरवि तं चेव पयंपई, ण य इमो वि । आढाइ तस्स वयणं अच्छा तुहिक्कओ चेव ॥७४॥ १. ला. तत्थ णं ॥ २. ला. गोसालए ॥ ३. ला. मरिऊणं ए ॥ ४. ला. जूयाओ तओ इमो तावा ॥ Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ गोसालो वि हु कत्तणेण तं चेव भासइ पुणो वि । तस्स रिसिस्स पभावं अमुणंतो कोवसंजणियं ॥७५॥ य तओ तइयवारं पि जाव न विरमइ गोसालगो ताव फुरुफुरायमाणाहरो तिवलीतरंगभंगुरभालयलो कयगुंजद्धसरिससुरत्तलोयणजुयलो कुविओ सो वैसियायणरिसी, अवि रोसेवसविप्फुरंतो दंडाहयदिट्ठिगरलभुयगो व्व । सत्तट्ठपयाइं समोसरित्तु गोसालगवहत्थं ॥७६॥ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः सो मुयइ तेयलेसं फुरंतजालाकलावदुप्पिच्छं । धूमंधयारबहलं तं दट्टुमहं विचितेमि ॥७७॥ करुणाए जह 'एसो मा डज्झउ तां मुयामि नियतेयं' । इय चितिउं विमुको हिमनियरसमो निओ तेओ ॥७८॥ तेण वि सो पsिहणिओ न चयइ गोसालगस्स देहम्मि । जावाऽऽबाहं काउं ता चितइ सो रिसी एवं ॥ ७९ ॥ 'हंत अपुव्वं एयं जं मम तेओ वि निष्फलो जाओ' । इय चिंतंतेण अहं दिट्ठो तो जाणए एवं ॥ ८० ॥ जह 'एस को वि होही इमस्स देवज्जयस्स तणओ त्ति । तेण इमो पडिहणिओ मह तेओ' चितिउं एवं ॥ ८१ ॥ संहरिउं नियतेयं परेण विणएण खामइ ममं ति । 'संगयमेयं भंते ! गयगयमेयं भणिऊणं ॥८३॥ तओ तम्मि खामित्ता गए गोसालगो पुच्छह- 'भयवं ! किमेस जूयासेज्जायरो जंपइ ?' मए भणियं जहा - 'तुमं एएण दड्डो आसि, परं मए सीयतेयलेसाए रक्खिओ, तं च खामित्ता इमो गओ' । तओ गोसालगो वंदित्ता पुच्छइ - 'भयवं ! कहं संखित्तर्विउलतेयलेसा समुप्पज्जइ ?' मए भणियं जहा- 'जो छटुंछट्टेणं तवोकम्मेणं पारणए एगाए सनहाए कुम्मासपिंडियाए एगेणं नीरचुलुएणं उड्डुं बाहाहिं आयावेमाणे सो संखित्तविउलतेयलेसो भवइ । तओ गोसालगो एयमट्ठ 'तह' त्ति पडिसुणेइ । अण्णदियहम्मि य अहं गोसालगेण सद्धि कुम्मगामाओ नगराओ सिद्धत्थगामं १. सं.वा.सु. वेसायण° ॥ २. सं.वा.सु. रोसविस ॥ ३. ला. 'यमेवं ति ॥ ४. ला. 'विडला ते ॥ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः ३९ नगरं संपट्टि । जाय तं पएसं पत्तो जत्थ सो तिलथंबो ताव भणियं गोसालएणं 'तुब्भे णं भंत ! तया पुच्छि एवं वह जहा - निप्फज्जिस्सइ एस तिलथंबए-तं णं भंते ! मिच्छा जायं, जओ न दीसइ सो तिलथंबओ' । मया भणियं ‘न मिच्छा किंतु जैया तुमए उप्पाडित्ता सलेट्टु हो मग्गस्स दुइयपासे पक्खित्तो तया चेव वासे निवडिए, तेण य सो निबद्धमूलो जाओ, तं पेच्छ एस णं सो तिलथंबओ, इमे यते सत्त कुसुमजीवा एग्गए तिलसंगलियाए सत्त तिला संजाया' सो वि तत्थ गंतुं तं तिले करयलंसि पप्फोडे । तओ तस्स गोसालगस्स तिले गणेमाणस्स चित्तम्मि ठियं जहा- 'सव्वजीवा मरिउं तत्थेव तत्थेव उप्पज्जित्ता उट्टपरिहारं परिहरंति जहा इमे तिलजीवा ! एस णं गोयमा गोसालगस्स मंखलिपुत्तस्स पट्टपरिहारे नाम कुग्गहे समुप्पण्णे । एत्तो अनंतरं च मम पासाओ अइक्कंते, जहा भणियविहाणेण य तं तेउलेसं साहेइ । 1 अण्णा य तस्स गोसालगस्स छद्दिसाचरा अंतियं समागया जहा पुव्वं तहा जिणसद्दं पगासमाणो विहरइ । तं नो खलु गोयमा ? गोसाले मंखलिपुत्ते जिणे, किंतु अजिणे मम सीसाभासे" । तं च सोऊण सव्वो वि सावत्थीजणो परोप्परमेवं पयंपइ 'नो खलु देवाणुप्पिया ! गोसाले जिणे, किंतु मंखलिपुत्ते भगवओ सीसाभासे' । तं च बहुजणजंपियं सोऊण कुविओ फुरफुरंतदसणच्छओ आयावणभूमीओ उत्तरित्ता हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणंसि आजीवियसंघपरिवुडो महामरिसवेसपरिगओ जाव चिट्ठइ ताव भगवओ महावीरस्स अंतेवासी आणंदे नाम तवस्सी छट्ठक्खमणपारणगंसि भगवंतंअणुजाणाविऊण सावत्थीए नगरीए भिक्खट्ठा अणुप्पविट्ठे तस्स कुंभकारावणस्स अदूरसामंतेण गच्छइ । तं च गोसालगो दट्ठूण भणई - 'एहिइओ अहो आणंदा ! मममेगमक्खाणयं सुणेहि' । ओ आणंदो गोसालगसमीवं गओ । तओ गोसालगो कहाणगं कहिउमाढत्तो, जहा " एगम्मि नयरे बहवे वाणियगा अत्थत्थिणो परिवसंति । ते य अण्णया कयाइ सव्वेसि मिलिऊण संगडी सागडेणं दिसायत्तं पट्टिया । तत्थ य अंतराले एगा महाडवी निरोदगा बहुपच्चवाया । तत्थ य पविसंतेर्हि गहियं उदयं । तं च अडवीए अद्धमग्गे गयाणं खीणं । तओ तेहिं सव्वओ उदगस्स गवेसणं कुणमाणेहिं दिमेगं वणसंडं, अवि य अइकसिणनिद्धबहुरुक्खसंकुलं भरियमेहसमवण्णं । पवणुव्वेल्लिरपल्लव करेहिं हक्कारइ व्व दढं ॥८३॥ १. ला. तए ॥ २. ला. 'वसगओ ॥ ३. ला. सगडीसग° ॥ ४. सं.वा.सु. एगाऽडवी ॥ ५. ला. 'संतेहिं पभूयमुदगं गहियं । तं ॥ Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः अइपक्कसाउफलभरनमंतसीसेहिं पायवगणेहिं । आवेताणं ताणं कुणइ पणामं व सविसेसं ॥८४॥ पवणवसचलिरकोमलसरललताबाहुदंडजुयलेहिं । आलिंगइ व्व दूराओ आगए वणियसंघाए ॥८५॥ सागयवयणं पिव कुणइ ताण कलविहगविविहसद्देहिं । तह अग्धं व पयच्छइ पडतपक्कप्फलभरेहिं ॥८६॥ इय एवमाइबहुविहसुयणसहावं तयं समल्लीणा । नीरऽत्थी ते वणिणो कुणंति नीरस्स अन्निसणं ॥८७॥ तो तेहिं भमंतेहिं बहुमज्झे तस्स वणनिगुंजस्स । वम्मियसिहरं एक दिटुं पडिसिहरपरिकलियं ॥८॥ तओ ताण तमवलोइंताणं समुप्पण्णो एरिसो वियप्पो जहा-'वम्मियसिहरे नीरं संभवइ, ता एयस्स वम्मियस्स पुव्विल्लं सिहरं भिंदामो, मा कयाइ उदगं समासाएमो !' तओ एगवक्कयाए तं पुव्विल्लं सिहरं ते भिदिउं पयत्ता । तओ खणंतरेणं तेहिं तत्थ उदगं समासोइयं, अवि य अच्छं पच्छं विमलं सुसीयलं साउ फलिहसमवणं । अइतणुयं तत्थ इमेहिं पावियं उदगवररयणं ॥८९॥ तओ हदूतट्ठा पाणियं पियंति, पवहणाई पज्जिति, भायणाइं भरंति । एवं च ताणं सत्थीभूयाणं जाओ संलावो जहा-भो ! एयस्स वम्मियस्स पुव्विल्ले सिहरे भिण्णे उदगरयणं संमासाइयं ता सेयमम्हाणं एयस्स बीयं सिहरं भिदित्तए, मा एत्थ अण्णं किं पि सोहणं पावेमो !' । तहेव एगवक्कयाए बीयं सिहरं भिदंति । तत्थ य तेहिं दिटुं सुवण्णं, अवि य अट्ठगुणसंपउत्तं कंतिल्लं पवरवण्णपरिकलियं । पत्तं सुवण्णरयणं अणण्णसरिसं तर्हि तेहिं ॥१०॥ तं च दट्ठण हरिसभरनिब्भरंगेहिं तं. पुव्विल्लं भंडं परिचइऊणं भरियाई पवहणाई सुवण्णस्स । तओ पुणो वि तइयवारं पि चिंतिउं पयत्ता जहा-'पढमे नीरं, बीए सुवणं, ता तइयं सिहरं भिंदामो, मा कयाइ एत्थ रयणाइं पावेमो !' । इइ परिभाविऊणं भिदियं तइयं पि सिहरं तेहिं । दिट्ठो य तत्थ पहाणरयणनियरो, अवि य १. सं.वा.सु. पइच्छइ || २. सं.वा.सु. “मझं ॥ ३. सं.वा.सु. 'सावियं ॥ ४. सं.वा.सु. पिच्छं ॥ ५. सं.वा.सु. समाइयं ॥ Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः पसरंतनिययकिरणावलीहिं पंडिखलियसूरकरपसरो । बहुवण्णो तेहिं तहिं पत्तो रयणाण संघाओ ॥९१॥ __ तओ बहुसुवण्णयं परिचइऊण भरियं रयणाणं सगडीसागडं । समासत्था चउत्थयं पि भणिउमाढत्ता-'जहा य पढमे नीरं, बीए सुवण्णं, तइए रयणाइं उवलद्धाइं ता चउत्थयं पि सिहरं भिंदामो, मा कयाइ इत्थ वैज्जाइयं उवलभामो !' । तओ ताणं मज्झाओ एगेणं बुद्धिकलिएणं परिणयवएणं भणियं वाणियगेणं जहा- 'भो भद्दा ! तइएणं चेव तुम्हाणं सव्वं पज्जत्तं, मा भिदह एयं चउत्थसिहरं पाएणं सपच्चवायं भवई' । तेहिं भणियं-'अरे मुरुक्ख ! किमित्तियं पि न याणसि जत्थ तिसु एवंविहाओ वत्थूओ लद्धाओ तत्थ चउत्थे अण्णं किंपि पहाणयरं भविस्सइ, भंतिओ तुमं बुद्धीए' । तेण भणियं-'जइ एवं पि ओरालवत्थूसु लद्धासु न तिप्पह, मम वयणं हियं पि न पडिवज्जह, तो नाऽहं तुम्हाणं मज्झे । ओसरिऊण निविट्ठो नियसगडीए। इयरे वि तव्वयणमवगन्निऊण भिदिउं पवत्ता चउत्थयं सिहरं । जाव खणमेक्कं भिदंति ताव खणित्तेणं दिट्ठीविसं सप्पं संघट्टिति, अवि य - अंजणनियरसरिच्छं रत्तच्छं चवलजमलजीहालं । फुडवियडकुडिलउक्कडअइभीमफडाकडप्पिल्लं ॥९३॥ उग्गविसं चंडविसं लोहागरधम्ममाणसमघोसं । अइदीहमहाकायं विसपूरियदसणनयणजुयं ॥९४॥ धरिणित्थिवेणिभूयं कुडिलगई नियसुहासणासीणं । दिट्ठीविसं भुयंगं झत्ति खणित्तेण घट्टंति ॥९५॥ तओ सो तेहिं घट्टिओ समाणो कोवं गिण्हइ, सरसरसरस्स वम्मियसिहरमारुहइ, सूरमंडलं निज्झाएइ । तओ ते वाणियए पलोएइ । तो तेणं पलोइया समाणा ससगडा सबइल्ला सभंडमत्तोवगरणा भासरासी जाया । सो य एगो वाणियगो जो तेर्सि हिओव-एसदायगो सो देवयाए अणुकंपाए सभंडमत्तोवगरणो नियनयरं खिप्पं संपाविओ। ___ता भो आणंदा ! जहा ते वाणिया लढेसु वि ओरालेसु भोगसाहणेसु तह वि अतिप्पमाणा चउत्थसिहरभिंदणपरा खयं गया तहा तुज्झ वि धम्मायरिओ लद्धाए वि ओरालाए अणण्णसरिसाए रिद्धीए सदेव-मणुयाऽसुराए परिसाए न तिप्पइ किंतु मम सम्मुह 'गोसालं मंखलिपुत्तं मम सीसाभासं' ति भणइ । ता जइ न ठहिइ तओ अहं १. सं.वा.सु. पडिफलि ॥ २. ला. भणिउं समा ॥ ३. ला. वज्जाइं पावेमो ! ॥ ४. सं.वा.सु. `णं प ॥ ५. सं.वा.सु. सुन ॥ ६. सं.वा.सु. “गयं ॥ मूल. २-६ Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः नियतवोतेएणं सपरियणं भासरीसि करिस्सामि । ता गच्छाहि तुमं, कहेहि निययधम्मायरियस्सतुमं एगं रक्खिस्सामि हियभासग त्ति काउं, जहा सो वाणिओ तीए देवयाए रक्खिओ" । तओ आणंदो गोसालगस्सं तिए एयमट्ठे सुच्चा भीओ गोसालगस्संतियाओ पडिनिक्खमित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ । समणं भयवं महावीरं तिपयाहिणीकाऊण वंदइ, वंदित्ता य एवं वयासी-" जहा णं भंते ! अहं तुब्धेहिं अब्भणुण्णाए सावत्थीए नयरीए भिक्खट्ठाए पविसामि, गोसालगस्स अदूरसामंतेणं वच्चामि, तए णं गोसालगो ममं सद्दाविऊणं एवं वयासी जहा - आणंदा ! निसुणाहि ममं एगं अक्खाणयं इच्चाइ जाव भासरासिं करिस्सामि ! ता किं पहू भंते ? गोसालगो भासरासिं करित्तए हंताऽपभू ?" [ भगवया भणियं - "पभू] परं णो चेव णं अरहंते भगवंते, आणंदा ! जारिसिया णं गोसालगस्स तेउलेसा तारिसिया णं अनंतगुणा समणाणं निग्गंथाणं; परं खंतिक्खमा समणा भगवंतो, जारिसिया णं समणाणं निग्गंथाणं तेउलेसा भवइ । तारिसिया णं अणंतगुणा थेराणं भगवंताणं तेउलेसा भवइ; परं खंतिक्खमा थेरा भगवंतो, जारिसिया णं थेराणं भगवंताणं तेउलेसा भवइ तारिसिया णं अनंतगुणा अरहंताणं भगवंताणं तेउलेसा भवइ; परं खंतिक्खमा अरहंता भगवंतो भवंति, ता गच्छ तुमं आणंदा गोयमाईए निग्गंथे निग्गंथीओ य भणाहि जहा - गोसालगो समणाणं निग्गंथाणं मिच्छं विप्पडिवण्णो, ता मा कोइ धम्मियाए वि चोयणाए चोएउ, मा भासरासीकिज्जिही" । तओ आणंदो तह ति विणणं पडिसुणित्ता गोयमाईणं समीवं गओ, वंदित्ता य भणइ जहा - 'अहं भगवया अब्भणुण्णाओ सावथि भिक्खट्ठा अणुप्पविसामि इच्चाइ जाव मा कोइ धम्मियाए वि चोयणाए चोएउ, मा भासरासीकिज्जिही' । एवं च आणंदो जाव गोयमाईणं कहेइ ताव गोसालगो समोसरणं पविट्ठो, अवि य ४२ रोसवसफुरफुरंतो आजीवियसयलसंघपरियरिओ । पविसरइ समोसरणे दीसंतो सयलपरिसाए ॥९५॥ ठाऊणं जिणपुरओ पच्चक्खो नाइ सेलथंभो व्व । जंपइ निरवयणं निल्लंज्जो धिट्ठिमाकलिओ ॥९६॥ “सुट्टु णं तुमं कासवा ? ममं एवं वयासी जं णं गोसाले मंखलिपुत्ते मम अंतेवासी, जो णं गोसालगो तव सीसो सो णं सोक्खे सुक्काभिजाई भवित्ता परिनिव्वुडो, अहं च णं तस्स गोसालगस्स सरीरं अणुपविट्ठो, जओ कासवा ! जो अम्हं दंसणे सिज्झइ सो सत्तपउट्टपरिहारे परिहरित्ता तओ सिज्झइ, तत्थणं अहं कासवा ! देवलोगाओ १. ला. 'रासीकरि ॥ Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः चइऊणं गोयमस्स भारियाए कुच्छिसि गब्भत्ताए वक्रतो, तओ नवहिं मासेहिं अद्धट्ठमेहि य दिवसेहिं जाओ अईवरूवसंपण्णो, अवि य कुसकुंडलचड्डलओ सव्वजणाणंदकारओ सुहओ । कंदप्पसरिसरूवो उदाइनामेण संजाओ ॥९७॥ कोमारयपव्वज्जं गहियं संखाणयं पढेऊणं । बावीसं वरिसाइं पालित्ता तव्वयं तत्तो ॥९८॥ रायगिहनगरबाहि उज्जाणे मंडिकुच्छिनामम्मि । तमुदाइस्स सरीरं चइउं एणिज्जगसरीरं ॥१९॥ पविसामि नियसमाहीए संजुओ सयललक्खणसमग्गो । सिद्धिकमपालणत्थं पढमम्मि पउट्टपरिहारे ॥१००॥ बीयम्मि य परिहारे उदंडपुरस्स बाहि रमणिज्जे । चंदोयरउज्जाणे मुयामि एणिज्जयसरीरं ॥१०१॥ पविसामि वरसरीरे मल्लारामस्स संतिए तत्तो । पालित्तु एक्कवीसं वरिसाइं वयविसेसेणं ॥१०२॥ मल्लारामस्स तणू चइऊणं अंगमंदिरुज्जाणे । चंपापुरीए बाहिं पविसामि मंडियसरीरे ॥१०३।। तइए पउट्टपरिहारगम्मि पालित्तु वीसवासाइं । मंडियदेहं पि तओ चयामि वाणारसिपुरीए ॥१०४॥ काममहावणनामम्मि चेइए घेत्तु राहदेहं तु । इगुवीसं वासाई पालेत्तु चउत्थपरिहारे ॥१०५॥ राहस्स वि तं देहं, आलभिया पुरवरीए बाहिम्मि । मुंचामि पत्तकालयवणम्मि नियसमयविहिणा उ ॥१०६॥ गिण्हामि रोहगुत्तस्स संतियं दढसरीरयं कमसो । अट्ठारसवासेहिं पंचमयपउट्टपरिहारे ॥१०७॥ वेसालीनगरीए उज्जाणे कंडियायणे रम्मे ।। मुंचामि भारदाइस्स विग्गहं रोहगुत्तस्स ॥१०८॥ १. ला. वाराणसि || Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः अज्जुणगस्स सरीरं, अणुपविसामि कमेण विहिपुव्वं । सतरसहिं वासेहिं छट्ठम्मि पउट्टपरिहारे ॥१०९॥ सावत्थीनयरीए हालाहलकुंभकारिनामाए। कुंभारावणमज्झे मुयामि अज्जुणगदेहं तु ॥११०।। गोसालगस्स देहं थिरं ददं सीय-वाय-उसिणसहं । उवसग्ग-खुहा-तण्हा-दंसाइखमं ति काऊणं ॥१११॥ तं सोलसवासाइं सत्तमयम्मि पउट्टपरिहारे । तेत्तीसयवाससए उ होति सव्वे विमे सत्त ॥११२।। तं सुट्ठ णं कासवा ! तुम ममं एवं वयासि सो हु णं गोसालो मंखलिपुत्तो मम अंतेवासी" । तओ भगवं महावीरो गोसालगं भणइ-"गोसाला ! जहा कोइ चोरो गामेल्लएहिं परब्भमाणो कंचि निलुक्कणजोगं ठाणमपस्संतो उण्णालोमं वा कप्पासपोम्हं वा तणसूयं वा अंतरा दाऊण निलुक्कइ । तओ अत्ताणं अणावरियं पि आवरियं ति मण्णइ एवमेव तुमं पि गोसाला । अण्णेसंते अप्पाणं अण्णमिइ भणसि, तं न तुज्झ एयारिसं वोत्तुं जुत्तं जओ सो चेव तुमं नो अण्णो" । तओ गोसालो भगवया एवं भणिओ आसुरुत्तो समणं भगवं महावीरं उच्चावयाहि आउसणाहि आउसइ, उच्चावयाहिं उद्धंसणाहिं उद्धंसेइ, निब्भच्छणाहिं निब्भच्छेइ, तज्जणाहिं तज्जेइ, तज्जेत्ता य भणइ, अवि य हं भो न होसि अज्जं कासवया ! नट्ठओ विणट्ठोऽसि । मह कोवजलणजालावलीहिं खयमेसि सलहो व्व ॥११३।। संपइ न दीससि च्चिय होसि खणद्धेण भासरासि त्ति । न तुम मुणसि विसेसं जेण महं अप्पणो तह य ॥११४॥ इय जंपंतं.दटुं कोवमहाजलणभासुरसरीरं। सव्वाणुभूइसाहू गुरुपरिभवमसहमाणो उ ॥११५॥ उद्वित्ता गोसालग-सामीणं अंतरम्मि ठाऊणं । जंपइ फुडक्खरेहिं जह ट्ठियं एरिसं वयणं ॥११६॥ "हं भो गोसालगा ! जो जस्स अंतिए किंचि अक्खरं वा पयं वा सिक्खइ सो तं देवयं पिव वंदइ नमसइ पज्जुवासइ, तुमं पुण भगवया चेव मुंडाविए, भगवया चेव पव्वाविए, भगवओ चेव पसाएण इत्तियाए रिद्धीए भायणं जाओ, संपयं भगवओ चेव १. ला. दिढं ॥ २. सं.वा.सु. “यासि गोसा' ॥ ३. ला. अत्तणो ॥ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः मिच्छं संपडिवन्नो ! ता तुज्झ न जुज्जए एयारिसं वोत्तुं' । सो वि तं तारिसं हियमवि सव्वाणुभूइभणियं सोच्चा महु-घयपक्खेवेणं व हुयवहो गाढयरं पज्जलिओ तं सव्वाणुभूई अणगारं नियतवोतेएण भासरासिं करेइ । पुणो तं चेव भणमाणो भयवंतं हीलेइ ।। एत्थंतरम्मि य दट्ठण वि नियसरीरावायं उढिओ परिसामज्झाओ नियगुरुभत्तिपरावसीकयमाणसो सुनक्खत्तो नाम महरिसी । तहेव सो विभणइ । तओ पुणो वि आसुरुत्तेणं सो वि नियतवोतेएणं अच्वत्थं परिताविओ, तेण य परिताविज्जमाणो समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ सयमेव पंच महव्वयाइं उच्चारेइ, गोयमाईए समणे समणीओ य खामित्ता कालं गओ। तम्मि य कालगए पुणो वि गोसालगो तहेव भगवंतं हीलिउं पयत्तो । तओ भगवया सयमेव भणिओ जहा-गोसालग ! मए चेव पव्वाविओ, मए चेव मुंडाविओ, इच्चाइ सव्वं सयमेव भणइ जाव ममं मिच्छं पडिवन्नो । तओ भगवया जाव सयमेव भणिओ ताव रूसिऊण तेयासमुग्घाएणं समोहणइ भगवओ वहाय तेयं निसिरइ । तओ जीए णं तेएण मंगाणं वंगाणं मगहाणं कलिंगाणं मालवगाणं अच्छाणं कच्छाणं पोढाणं लोढाणं वज्जीणं मालीणं कोसलाणं अवहाणं सुभुत्तराणं भासरासीकरणाए सा तेउलेसा महागिरिवरस्स व घाउक्खलिया भगवओ सपक्खं पडिदिसि परियंचइ । तओ सा तेउलेसा भगवओ सरीरे । अपहुप्पंती आयाहिणं पयाहिणं करेत्ता तमेव गोसालगसरीरं निद्दहेमाणी अंतो अमुप्पविट्ठा । तओ सो गोसालगो तीए नियतेउलेसाए डज्झमाणो भणई-'हं भो कासवा ! तुमं मम तेएणं अन्नाइट्ठो समाणो अंतो छण्हं मासाणं छउमत्थो चेव कालं काहिसि' । भगवया भणियं-'अहं णं एत्तो अन्नाई सोलसवासाइं जिणो सुहत्थी केवलिपरियागेण विहरिस्सामि, तुमं पुण एएणं चेव नियतेएणं डज्झमाणो अंतो सत्तरत्तस्स छउमत्थो चेव कालं काहिसि' । तओ भगवं महावीरो गोयमाई समणे आमंतेत्ता एवं वयइ, अवि य 'जह किल भो तुसरासी भुसरासी तह य तिणगरासी य । निद्दड्डा जलणेणं नि कि पि कज्जं पसाहेइ ॥११७॥ तह एसो वि असारो गोसालो न य चएइ काउं जे। उवसग्गं, ता तुब्भे पडिचोयह धम्मवयणेहिं' ॥११८॥ तो समणेहिं एसो पुच्छाहिं निरुत्तरो कओ तह य । पडिचोइओ ये सम्मं जहवट्ठियरूवकहणेण ॥११९॥ १. ला. "हाणं मलयाणं माल' ॥ २. ला. य तत्तो जं ॥ Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ 'हा हा अणज्ज निग्घिण ! नियगुरुपडणीय ! धम्मपब्भट्ठ । भमिहिसि भवे अपारे जिणस्स आसायणं विहिउं ॥ १२०॥ जं च हया गुणनिहिणो सुसाहुणो हियपलाविणो तुज्झ । तं मण्णे जिणबोही दूरं दूरेण तुह नट्ठा' ॥१२१॥ एवं भणिओ कुविओ बाहं साहूण काउमचयंतो । रोसेण धंगधगिंतो चिट्ठइ जह गयविसो सप्पो ॥१२२॥ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः ते य आजीविगा समणा गोसालं तह निरुत्तरं कज्जमाणं दट्ठूणं केवि भगवंतं उवसंपज्जंति, केवि गोसालं चेवं पडिवज्जंति । तओ गोसालगो जस्सट्ठाए हव्वमागओ तमत्थं असाहेमाणो दीहुन्हे नीसासे नीससमाणो दाढियालोमाइं लुंचमाणो अंवालुयं कंडुयमाणो दो । वि करयले पप्फोडित्ता धुणमाणो दाहिणपाएण भूमि कुट्टेमाणो 'हहा अहो हओऽहमिति भणमाणो समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ पडिनिक्खमित्ता जेणेव सावत्थी नयरी जेणेव हालाहलाए कुंभकारावणे तेणेव उंवागच्छइ । तओ सावत्थीए बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ "एत्थणं संपयं सावत्थीए कोट्ठए उज्जाणे दो जिणा परोप्परमुल्लवंति - 'एगे वयइ तुमं पुव्वं कालं काहिसि अण्णे वयइ तुमं पुव्वं कालं काहिसि' तत्थ के सम्मावाई के मिच्छावाई ?” तत्थ जो पहाणो सो भगवंतं सम्मवाई वयइ गोसालं मिच्छावाई वयइ । तत्थ य कुंभकारावणंसि गोसालगो कि काउमारद्धो, अवि य अंब उणगहत्थगओ पियमाणो मज्जपाणगं विविहं । गायंतो नच्चतो वारंवारं अभिरमेइ ॥ १२३ ॥ तीए य कुंभकारीए (?करिए) पुणो पुणो अंजलि पकुव्वंतो । सीयलयमट्टियापाणएण गायाई सिंचंतो ॥१२४|| एवं सो दाहत्तो डज्झतो निययतेउलेसाए । एवंविहट्ठाओ कुणमाणो चिट्ठए जाव ॥ १२५ ॥ ताव य अयंपुलो नाम आजीविओवासगो रयणीए संजायसंसओ समागओ नियधम्मायरियसगासं । तं च तहाविहचिट्ठापरायणं दट्ठूण लज्जिओ सणियं सणियं पच्चोसक्कइ । तं च पच्चोसक्कमाणं आजीविया थेरा एवं वयंति - आगच्छ इओ अयंपुला ! गओ य अयंपुलो ताण सगासं । भणिओ य तेहिं भद्द ! तुह रयणीए एयारिसो १. ला. धमधर्मेतो ॥ २. ला. अवाडुयं ॥ ३. सं.वा.सु. समाओ ॥ ४. ला. निययध° ॥ Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः संसओ समुप्पण्णो 'कि संठिया णं हल्ला ?' भद्द ! किं सच्चमेयं हताऽसच्चं ?" [अयंपुलेण भणियं-'सच्चं'] तओ तेहिं भणियं-जइ एवं तो पुच्छ नियधम्मायरियं गोसालगं गंतुं, जओ तुह धम्मायरिओ सिज्झिउकामो अपच्छिमं किरियं पयंसेमाणो चिट्ठइ । तओ सो अयंपुलो हट्ठतुट्ठो गोसालगसमीवं गओ । तिपयाहिणपुरस्सरं गोसालगं वंदित्ता निसन्नो । तओ गोसालगेणं भणिओ-"हं भो अयंपुला ! अज्ज तव पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुंबजागरियं जागरमाणस्स एयसंसओ समुप्पण्णो जहा 'केरिसियाणं हल्ला भवइ ?' तओ उप्पण्णसंसओ मम समीवं हव्वमागओ, तं भद्द ! सच्चमेयं ?" अयंपुलेण भणियं-'हंता सच्चं'। जइ एवं तो वसीमूलसंठियाहल्ला भवइ । एवं च छिण्णसंसओ हट्टतुट्ठो गिहं गओ । गोसालगो वि आजीवियथेरे सद्दाविऊण भणइ, अवि य "हं भो ! मं कालगयं जाणित्ता सुरहिसीयलजलेण । हाविज्जह लिंपेज्जह गोसीसेणं सुगंधेणं ॥१२६।। आहरणेहिं विविहेहिं आहरेज्जाह तह नियंसेह । वरहंसलक्खणं साडगं च कुसुमेहिं पूएह ॥१२७॥ सावत्थीनयरीए मझमझेण एव भणमाणा । जह 'एसो हु जिणिदो चउवीसाए जिणिदाणं ॥१२८॥ चउवीसमो महप्पा केवलनाणेण भवियसंघायं । पडिबोहिऊण संपइ संपत्तो सासयं ठाणं' ॥१२९॥ एवं च महारिद्धीए महनीहरणं करेज्जह" । ते वि आजीवियथेरा तव्वयणं आणाए विणएणं पडिस्सुणंति तओ तस्स गोसालगस्स सत्तमदिवसे परिणममाणे चिंता समुप्पण्णा, अवि य 'अजिणो जिणप्पलावी पावोऽहं पावकम्मकारी य । रिसिघायगो जिणस्स उ अवण्णवाई य पडणीओ ॥१३०॥ ता दुट्ठ मए विहियं जिणस्स आसायणा कया जं तु ।' तं नूर्ण संसारे भमियव्वमणोरपारम्मि' ॥१३१॥ इय चिंतिऊण तत्तो पुणरवि हक्कारिऊण ते थेरे । विविहेहिं सवहेहिं सावित्ता तो इमं भणइ ॥१३२॥ १. सं.वा.सु. पइंसे' ॥ २. ला. मूलं ठिया ॥ ३. सं.वा.सु. “या भवइ ॥ ४. ला. घाई ॥ Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः "भो भो ? मं कालगयं जाणेऊणं मुहम्मि तिक्खुत्तो । पाएण आहणेत्ता तत्तो वामम्मि पायम्मि ॥१३३॥ सुंबेणं बंधित्ता कसिणबइल्लेहिं नयरिमज्झम्मि । भामित्तु तिय-चउक्काइएहिं जंपिज्जह इमं तु ॥१३४॥ जह 'एसो गोसालो मंखलिपुत्तो न चेव य जिणिंदो । न य केवली य अलियं जिणसदं अप्पणो काउं ॥१३५॥ जिणनाहपच्चणीओ पावो रिसिघायगो मओ इण्हि । छउमत्थो चेव' इमं भणिउं छंडिज्जह सरीरं" ॥१३६।। एव भणंतो तो सो कालगओ ते वि तं वियाणेउं । कुंभारियावणाओ झडत्ति दाराई ढक्कंति ॥१३७॥ खडियाए आलिहिउं सावत्थि तिय-चउक्कठाणेसु । भामिति मट्टियामयकसिणर्बलद्देहि भणमाणा ॥१३८।। 'एसो मंखलिपुत्तो' इच्चाई सवहमोयणं काउं । सणियं सणियं तत्तो महाविभूईए नीणंति ॥१३९॥ इओ य भगवं महावीरो सावत्थीओ निग्गंतूण मिंढियगामं नाम नगरं गओ । तत्थ सालकोट्ठगे उज्जाणे समोसढो । तहिं च भगवओ महारोगायंका पाउब्भूया अवि य रुहिरेणं अइसारो दाहो पित्तज्जरो य दुव्विसहो । समकालं चेव इमे उप्पण्णा भयवओ देहे ॥१४०॥ तं च दटुं पभूयलोगो भणिउमाढत्तो - एवं खलु भगवं महावीरो गोसालगस्स तेउलेसाए अभिभूओ समाणो दाहवक्तीए छउमत्थो चेव कालं करिस्सइ । इओ य तत्थनगरे सालकोट्ठगस्स नाऽइदूरे अत्थि मालुयाकच्छओ नाम कच्छओ, जो य बहुगुच्छगुम्मवल्लीसंकिण्णो विविहतरुवरसणाहो । फल-पुप्फपत्तजुत्तो अइकसिणो मेहखंडं व ॥१४१॥ तस्स य मालुयाकच्छयस्स पच्चासण्णे सीहो नाम भगवओ अणगारो आयावणं आयावेइ, अवि य १. ला. बइलेहिं ।। २. ला. दट्टणं प’ ॥ ३. सं.वा.सु. भूयो दाह' ॥ ४. ला. 'ल-फुल्ल-प' ॥ ५. ला. "म अण ॥ Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः तवसोसियललियंगो सूराभिमुहो य उड्डबाहाहि । छटुंछट्टेण तवोकम्मेण निरंतरकएण ॥१४२॥ धम्मज्झाणोवगओ निच्चलकयलोयणो निरासंसो । आयावेइ महप्पा गुत्तो मण-वयण-काएहिं ॥१४३॥ तस्स य झाणंतरियाए वट्टमाणस्स चिंता समुप्पणा-"एवं खलु मम धम्मायरियस्स समणस्स भगवओ महावीरस्स सरीरगंसि महारोगायंका पाउब्भूया, तं जइ कहंचि कालं करिस्सइ तो भणिस्संति अण्णतित्थिया-जहा गोसालगेण भणियं तहा छउमत्थो चेव कालगओ' । इमेण य एयारूवेण' माणसिएणं महादुक्खेणं अभिभूओ समाणो आयावणभूमीओ पच्चोरुहित्ता मालुयाकच्छगमणुपविसित्ता महया सद्देणं कुहुकुहस्स परुण्णो। तओ भगवया भणिया नियसाहुणो जहा-'भो सीहो अणगारो इमेणं एयारूवेणं दुक्खेणं अभिभूओ मालुयाकच्छयस्संतो रुयइ, ता लहुं सद्देह' । ते वि 'तह त्ति भणिऊण तत्थ गच्छंति, सीहं अणगारं एवं वयंति-'सीहा । समणो भगवं सद्दावेई' । सो वि 'इच्छं ति भणिऊण समागओ, भगवंतं वंदित्ता निसण्णो । तओ भगवया भणिओ-"सीहा ! तुम मा अधिई करेहि, नो खलुः अहं गोसालगस्स तवोतेएणं अभिभूओ अंतो छण्हं मासाणं कालं करिस्सामि । अहं णं इओ अद्धसोलसवासाणि विहरिस्सामि । तं गच्छ णं तुम सीहा ! मिढियगामं नगरं रेवईए गाहावइणीए गिहं । तत्थ तीए दुवे उसहकुडगा पक्का। एगो बिज्जउरगेहिं मम निमित्तं, न तेण पओयणं । बीओ सट्टाए कुंभंडेहिं, तेण पओयणं। तं मग्गेहि" । तओ सो सीहो हठ्ठतुट्ठो तत्थ गओ । दिट्ठो य रेवईए आगच्छंतो । दट्ठणय हट्ठतुट्ठा उट्ठिया अणुगच्छित्ता य तिपयाहिणं काउं वंदइ, भणइ य-'आइसह किमागमणपओयणं ?' सीहेण जंपियं-देवाणुप्पिए । जे तए वेज्जोवएसेण दुवे उसहकुडगा पक्का, ताणं जो भगवओ निमित्तं कओ सो अच्छउ, जो य अप्पणो अट्ठाए निव्वत्तिओ तं चेव देहि' । रेवईए भणियं-'सीह ! को एस नाणी जेणेयं मम रहस्सं तुह कहियं ?' । सीहेण भणियं-'भद्दे ! पेसिओऽहं भयवया तेलुक्कबंधुणा, तेण चेव एवं रहस्सं मम कहियं' । तओ रेवई हट्ठतुट्ठा तमाणेउं सीहस्स पत्तगंसि निसिरइ । तेण य पत्त-चित्तवित्तसुद्धेणं दाणेणं रेवईए संसारो परित्तीकओ, देवाउयं च निबद्धं । तओ सो सीहो तमोसहं गहाय भयवओ समीवं समागंतूणं तं सव्वमोसहं भयवओ करयलंसि निसरइ । भगवं पि अमुच्छिओ तमाहारेइ । तेण भगवओ ते रोगायंका झ त्ति उवसामिया । पुणण्णवसरीरं च भयवंतं दट्टण किं संजायं, अवि य १. ला. “य तणुयंगो ॥ २. ला. “रयम्मि म ॥ ३. ला. समाओ ॥ ४. ला. “यलम्मि पक्खिवइ । भग ॥ मूल.२-७ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः तुट्ठा समणा सव्वे, समणीओ हरिसनिब्भरा जाया । अइवियसिया य सड्डा, हट्ठाओ सावियाओ वि ॥१४४॥ परिओसगया देवा, पमोइयाओ य सयलदेवीओ। आणंदियं असेसं पि तिहुयणं, किं च बहुणा उ? ॥१४५।। सच्छसरीरं भयवंतं नाऊणं पुच्छियं भगवया गोयमेणं-'भगवं ! जो तुम्हाणं अंतेवासी सव्वाणुभूई अणगारो गोसालेणं तवोतेएणं दड्डो सो मरिऊणं कहिं समुप्पण्णो ?' । भगवया भणियं-'गोयमा ? सहस्सारे कप्पे अट्ठारससागरोवमाऊ दिव्वकंतिधरो तियसो समुप्पण्णो, तत्तो य चविऊण महाविदेहे सिद्धि पाविस्सइ' । पुणो वि पुच्छियं गोयमेण-'जइ एवं तो सुनक्खत्तमहरिसी कहिं गओ ?' । भगवया भणियं- 'गोयमा ! अच्चुए कप्पे बावीससागरोवमठिई देवो समुप्पण्णो, सो वि तहेव महाविदेहे सिज्झिही' । पुणो वि पुच्छियं गोयमसामिणा 'सो तुम्हाणं कुसिस्सो गोसालगो मंखलिपुत्तो नियंतवोतेएणं निद्दड्डो कालं काऊण कहिंगओ ?' । भगवया भणियं-"गोयमा ! अरहंतपडणीओ समणघायगो बहुं असुहकम्मं निकाइऊणं आउनिबंधकाले पच्छायावपरद्धो अच्चुए कप्पे बावीससागरोवमठिई किब्बिसियदेवो समुप्पण्णो । सो वि. ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं चुओ समाणो इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे विंझगिरिपायमूले पुंडेसु जणवएसु सयदुवारे नगरे सम्मुइस्स रण्णो भद्दाए भारियाए कुच्छिसि पुत्तत्ताए समुप्पज्जिही । साय नवण्ठं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारगं पसविस्सइ । तस्स य दारगस्स जम्मराईए सयदुवारे नगरे सब्भितरबाहिरे भारग्गसो कुंभग्गसो य पउमवासं रयणवासं च वासिही । तओ तस्स दारगस्स मायापियरो निव्वत्तबारसाहस्स महापउमु त्ति गुणनिप्पण्णं नामधेज्जं करिस्संति । तओ तं महापउमं कुमारं साइरेगऽट्ठवासजायं जाणित्ता सम्मुई राया महारज्जाभिसेएणं रज्जम्मि अभिसिंचिस्सइ । तओ सो पणमंतमहासामंतमउलिमालामिलंतचलणकमलजुयलो फुरमाणपयावप्पसाहियपुहविमंडलो महानरवई भविस्सइ । अण्णया तस्स महापउमस्स रण्णो माणिभद्द-पुण्णभद्दनामाणो दो देवा सेणाहिवत्तं पडिवज्जिस्संति । तं च दट्ठण राईसर-तलवर-भाडंबियकोडुंबियसेट्ठि-सत्थवाह-गणकदोवारिग-मंति-महामंतिप्पमुहा देवसेणो त्ति दोच्चं गुणनिप्पन्नं नामं करिस्संति तओ पुणो वि तस्स देवसेणस्स रण्णो अण्णया पहाणो हत्थिराया समुप्पज्जिस्सइ, अवि य १. सं.वा.सु. “यतेएणं ॥ २. सं.वा.सु. सुमइस्स ॥ Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः संरवउलविमलवण्णो चउदसणो मयभमंतभमरउलो । लक्खणसत्थ पसत्थो उप्पज्जिस्सइ महाहत्थी ॥१४६॥ परितुट्ठा रायाई नामं तच्चं पि से करिस्संति । सिरिविमलवाहणनिवो होउ इमो गोण्णनामेणं ॥१४७॥ एवं च विसिट्ठरज्जमणुपालयंतस्स तं गोसालगभवनिव्वत्तियं उइज्जिस्सइ असुहकम्मं । तओ भविस्सइ समणाण पच्चणीओ, अवि य अक्कोसेहि केवि हु उवहसिही केवि, केवि निछुभिहिई । निब्भच्छेहिइ केविहु केविहु बंधेहिं बंधिहिई ॥१४८॥ निच्छोडेहिइ केविहु, केविहु रंभिहिइ, केवि छिंदिहिइ । मारिहिइ केवि, केवि हु उद्दविहिइ घोरपरिणामो ॥१४९॥ केसिंचि वत्थपत्तं पडिग्गहं कंबलं च रयहरणं । छिदिहिई भिदिहिई अवहरिही सो तया पावो ॥१५०॥ केसिंचि भत्तपाणं निवारिहिइ, तहय के वि निव्विस्सए । आइसिहिइ सो पावो उंब्बद्धो दुट्ठकम्मेणं ॥१५१॥ एवंविहं च तं नरनाहं दट्ठण सयदुवारनगर वत्थव्वगण्याईणो चिंतिस्संति-'जहा णं एस विमलवाहणे नरनाहे समणाणं निग्गंथाणं उवद्दवे वट्टइ तमेयं नो अम्हाणं, नो नरवइणो, नो रज्जस्स, नो टुस्स, नो बलस्स, नो वाहणस्स, नो पुरस्स, नो अंतेउरस्स हियं भविस्सइ; तं विण्णवेमो विमलवाहणनरिंद' एवं च चिंतिऊण विण्णविस्संति जहा- . 'नो एयं देव ! हियं होही अम्हाण, नेय तुम्हाणं । नो अंतेउर-पुर-जणवयाण सव्वेसि, किं बहुणा ? ॥१५२॥ [ग्रंथाग्रं ८०००] जं समणे निगंथे एवं पीडेहि विविह पीडाहिं । तं एत्थेव य जम्मे उप्पायं मण्णिमो एयं ॥१५३॥ परलोगे य दुहाई होहिंति नरिंद ! नत्थि संदेहो । ता परिहरसु नराहिव ! उवरोहेणाऽवि अम्हाणं ॥१५४॥ एवं भणिओ एसो ताणुवरोहेण मन्निही सव्वं । नियभावविप्पहूणो जाहिति इमे वि सट्ठाणं ॥१५५॥ १. ला. उद्धवो दु' ॥ २. सं.वा.सु. 'इणो बिति जहा ॥ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः इओ य भविस्सइ तम्मि नयरे उत्तरपुरत्थिमे दिसीभागे सुभूमिभागे नाम उज्जाणे । तस्स य अदूरसामंते विमलस्स अरहओ पउप्पए सुमंगलो नाम अणगारो छटुंछटेणं तवोकम्मेणं आयावणमायावेहिइ । इत्थंतरम्मि सो विमलवाहणो राया रहचरियाए निग्यच्छिस्सइ । तओ तं सुमंगलं अणगारं पेच्छिस्सइ । तं च दट्ठण कोवमुवगच्छिस्सइ । तओ रहचरियाए कीलमाणो सुमंगलमणगारं रहसिरेण नोल्लाविस्सइ । सुमंगलो वि रह सिरेण नोल्लाविओ सणियं उठेहिई, पुणो वि आयावणमायावेहिइ । तओ सो विमलवाहणो राया तहेव तमायावितं दटुं पुणो वि रहसिरेण नोल्लाविस्सइ । तओ सो सुमंगलो दोच्चं पि रहसिरेण नोल्लाविओ समाणो सणियं सणियं उद्वित्ता विमलवाहणस्स रण्णो अईयं कालमाभोगेहिइ । आभोगिऊण य विमलवाहणं रायाणं एवं वइस्सइ, अवि य - 'नो तं सि विमलवाहणराया, नो होसि देवसेणो तं । नो होसि महापउमो नरनाहो, किंतु तं भद्द ! ॥१५६।। होसि तुमं गोसालो जो एत्तो तइयए भवग्गहणे । मंखलिपुत्तो होउं जाओ जिणनाहपडणीओ ॥१५७।। रिसिघायगोऽसि जेणं दड्डा ते गुणनिही महामुणिणो । आसाइयो य भयवं जिणनाहो वद्धमाणो त्ति ॥१५८।। तो जइ समत्थएण वि खमियं सव्वाणुभूइणा तुज्झ ।। तह य सुनक्खत्तेण वि मुणिणा अच्चुग्गतेएणं ॥१५९॥ तेलुक्कब्भहियविसिट्ठसत्ततवविरियसाहसेणाऽवि । नर-विज्जाहर-सुरपहुसमूहपरिवंदिएणाऽवि ॥१६०॥ जइ तइया ते खमियं पहुणा वि हु भगवया जिणिदेणं । न तहा अहं खमिस्सं जइ न वि एत्तो वि चिट्ठिहिसि ॥१६१॥ रह-सारहि-तुरएहि समयं चिय निययतेउलेसाए । काहामि भासरासि, किमित्थ बहुणा पलत्तेण ?' ॥१६२॥ तओ सो विमलवाहणो राया सुमंगलेण एवं वुत्तो समाणो आसुरुत्तो तइयं पि वारं सुमंगलं अणगारं रहतुंडेणं पेल्लाविस्सइ । तओ सो सुमंगलो रहतुंडेणं पेल्लाविओ समाणो कोववसमुवगओ आयावणभूमीओ पच्चोरुहिस्सइ, तेयगसमुग्घाएणं समोहण्णिहिइ, सत्तट्ठपयाई पच्चोसक्किहिइ, विमलवाहणं रायं सरहं सहयं ससारहिं नियतवोतेएणं भासरासिं १. ला. 'भागं नाम उज्जाणं । त । Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः करेहिइ" । सुमंगले णं भंते ! अणगारे विमलवाहणं रायं भासरासिं करित्ता कहिं उववज्जिस्सइ ? । “गोयमा ! बहुहिं चउत्थ-छ?-ऽट्ठम-दसम-दुवालसाइएहिं तवोकम्मेहि अप्पाणं भावित्ता बहूणि वासाणि सामण्णं पालित्ता मासियाए संलेहणाए कालं करित्ता सव्वट्ठसिद्धे महाविमाणे अजहण्णुक्कोसेणं तेत्तीससागरोवमट्टिई देवो समुपज्जिस्सइ । तओ अणंतरं चइत्ता महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ" । विमलवाहणे णं भंते ! राया सुमंगलेणं भासरासीकए समाणे कहिं उववज्जिस्सइ ? "गोयमा ! अहेसत्तमाए पुढवीए उक्कोसट्ठिइयंसि नरगंसि नो रइयत्ताए उववज्जिस्सइ । तत्तो उवट्टित्ता मच्छो भविस्सइ । तत्थ सत्थवज्झो दाहवकंतीए कालं किच्चा दोच्चं पि अहे सत्तामाए उक्कोसट्टिई नारगो उववज्जिस्सइ । तत्तो उवट्टित्ता दुच्चं पि य मच्छओ भवेऊणं । सत्थहओछट्ठाए तमाए पुढवीए गच्छिहिइ ॥१६२।। छट्ठाओ पुढवीओ उव्वट्टित्ताण इत्थिया होहिइ । तत्थ वि य सत्थवज्झो गच्छिस्सइ छट्ठियं पुण वि ॥१६४॥ उव्वट्टिऊण तत्तो होउं दोच्चं पि इत्थियत्तेण । पंचमधूमपभाए होहिइ पुढवीए नेरइओ ॥१६५॥ तत्तो आगंतूणं उरगेसुववज्जिही महाविसेसु । तत्थ वि य सत्थवज्झो दोच्चं पि य पंचमं जाहिइ ॥१६६।। पुण उरगो होऊणं उववज्जिस्सइ चउत्थपुढवीए । तत्तो सीहो होउं चउत्थियं पुण वि वच्चिहिइ ॥१६७॥ उव्वट्टित्ता य तओ दोच्चं सीहो भवित्तु तच्चाए । गच्छिस्सइ पुढवीए होहिइ पक्खी तओ आओ ॥१६८॥ तत्थ वि सत्येण हओ दोच्चं पि वि तच्चियाए गच्छिहिइ । दुइयं पि भविय पक्खी गच्छिस्सइ दोच्च पुढवीए ॥१६९॥ तत्तो सरीसिवेसुं उववज्जिय पुण वि दोच्चयं जाहिइ । दुइयं सिरीसिवेसुं होउं पढमाए गच्छिहिइ ॥१७०॥ १. ला. ०प्पज्जिहि ॥ Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ तत्तो उव्वट्टित्ता सप्पो होऊण मरिय अस(स्स) ण्णी । होउं पुणो वि पढमं रयणप्पहपुढवियं जाहि ॥ १७१ ॥ पढमाओ उव्वट्टिय समुग्गपक्खीसु लोमपक्खीसु । चम्मयपक्खीसु य विययपक्खिमाई खहयरेसुं ॥ १७२ ॥ मरिऊणं मरिऊणं उववज्जिस्सइ तर्हि तर्हि चेव । सत्थहओ दाहेणं अणेगसो पावकम्मेणं ॥ १७३ ॥ भुपरिसप्पेसु तओ गोहा - गोहेर - नउलमाईसु । उरपरिसप्पेसु तओ अहि- अजगरमा चित्तेसु ॥१७४॥ तत्तो चउप्पएसुं एगक्खुर- दुखुर - गंडिपाए । सणफयमाईसु तहा मरिऊण अणेगसो होही ॥ १७५॥ तत्तो य जलयरेसुं मच्छेसुं कच्छभेसुमयरेसुं । गाहेसु सुंसुमारेसु नक्कचक्काइएसुं च ॥१७६ चउरिदिए तत्तो अगरूवेसु सो भवेऊणं । तेइंदिसु तत्तो [तत्तो] बेइंदिएसुं च ॥१७७॥ या सव्वाणं जाई अणेगसो मओ जाओ । सव्वत्थ सत्थवज्झो मरिही दाहेण डज्झतो ॥१७८॥ तत्तो वणस्सईसुं पाएणं कडुयरुक्खमाईसु । तत्तो य वाउकाइयभेएस अणेगरूवेसु ॥ १७९॥ पुण उकाइए इंगालाईसु णेगभंगेसुं । पुण आउकाइएसुं उस्सण्णं खार - कडुसुं ॥१८०॥ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः तो पुढविकाइएसुं पाएणं खरविहाणठाएसुं । सत्थहओ सव्वत्थ वि मरिऊण पुणो पुणो होहि ॥१८२॥ तत्तो रायगिहपुरे बाहिं खरिया भवित्तु अइया वा । सत्थहया तत्थेव य खरिया अब्भंतरे होहिइ ॥१८२॥ तत्तो जंबुद्दीवे दीवे भरहम्मि विंझगिरिमूले । विभेलसण्णिवेसे भट्टकुले दारिया होहि ॥१८३॥ १. ला पाएणं विविहखरविहाणेसुं ॥ २. सं. वा.सु. पुरे खरिया य भवित्तु तो अईया || Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः पत्ता य जोव्वणम्मी पडिरूववरण माहणेण समं । तीसे अम्मा-पियरो पाणि गिण्हावइस्संति ॥ १८४ ॥ सा नियपइणो इट्ठा पाणेहिंतो वि होहिई बाला । गुव्विणिया कुलगेहं निज्जंती डज्झिहि दवेणं ॥ १८५ ॥ अग्गिकुमारसुरेसुं उववज्जिस्सइ, तओ वि चविऊणं । मणु सुवज्जित्ता बुज्झिस्सइ केवलं बोहिं ॥१८६॥ सामण्णं लद्धूणं विराहिऊणं च दाहिणिल्लेसुं । असुरे सुववज्जित्ता तओ चुओ माणुसो होइ ॥ १८७॥ मरिउं पुव्वकमेणं नागकुमारेसु दाहिणिल्लेसु । एवं मणुयंतरिओ दाहिणअसुरेसु सव्वे ॥१८८॥ अग्गिकुमारविरहिओ उववज्जिस्सइ विराहियवओ य । नियविहियकम्मपरिणइवसेण गोसालगस्स जिओ ॥ १८९ ॥ ततो मणुओ होउं सामण्णं पालिऊण पढमम्मि । कप्पम्मि सुरो होही तत्तो वि चुओ पुणो मणुओ ॥ १९०॥ अविराहियसामण्णो होही देवो सणकुमारम्मि । एएव कमेणं गच्छिस्सइ बंभलोगम्मि ॥१९१॥ एवं चेव य सुक्ने तह आणय - आरणेसु कप्पे । तत्तो मणुओ होउं जाहि सव्वट्टसिद्धिम्म ॥ १९२॥ तत्तो वि य चविऊणं महाविदेहम्मि नाम वासम्मि । उत्तमकुलम्मि होही कुमारओ देवसमरूवो ॥१९३॥ नामेण दढपइण्णो संपत्तो जोव्वणम्मि विसएसुं । अरमंतो गुरुमूले होही समणो समयपावो ॥ १९४ ॥ अप्पुव्वखवगसेढीकमेण पाविहिइ केवलं नाणं । तत्तो दढप्पइण्णो नामेणं केवली होही ॥ १९५॥ अह केवलनाणेणं तीयऽद्धं अप्पणो वियाणित्ता । मेलित्तु समणसंघं भणिही एवं जहा 'भो भो ! ॥१९६॥ १. ला. 'सु उवज्जित्ता ॥ ५५ Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः एत्तो अईयकाले आसि अहं ईसरो अणंतम्मि । अग्गीयत्थो समणो तत्थ य आसायणं विहिउं ॥१९७॥ जिण-गणहरतहपत्तेयबुद्धमाईण णंतसंसारं । भमिउं मंखलिपुत्तो अहयं गोसालगो जाओ ॥१९८॥ तत्थ य पमायवसगो पडणीयत्तं जिणस्स काऊण । हंतूणं तह समणे भमिओ संसारकंतारं ॥१९९॥ ता[इय ?] आयरियाणं होहिह तुब्भे वि मा हु पडणीया । मा गुणिगुणहीलाए भमिहह भीमे भवारण्णे' ॥२००॥ इय एवं सोऊणं परिसा संवेगमागया धणियं । 'इच्छं' ति भाणिऊणं संजाया धम्मकम्मरया ॥२०१॥ भयवं पि दढपइण्णो अणसणविहिणा चइत्तु तं देहं । सासयमउलमणंतं गच्छिस्सइ सिवपयं परमं ॥२०२।। गोसालगपुव्वभवा महानिसीहाणुसारओ कहिया । भगवइअणुसारेणं सेसा उ भवा समक्खाया ॥२०३॥ एसो सो गोसालो तुम्हाण समासओ समक्खाओ । जो णंतं संसारं गुणहीलाए परिब्भमिओ ॥२०४॥ एवं गुणहीलाए नाऊणं दारुणं दुहविवागं । वज्जेह भव्वसत्ता गुणाण हीलं पयत्तेणं ॥२०५।। ॥ गोसालकाख्यानकं समाप्तम् ॥३६।। इदानीं सङ्गमकाख्यानकं व्याख्यायते ___ [३७. सङ्गमकाख्यानकम्] अत्थि गिव्वाणपहाणविमाणबत्तीससयसहस्ससंकुलो इह कट्ठाणुढेयदुवालसविहतवोविहाणजिणवंदण-ऽच्चण-ण्हवणाइविविहसक्किरियाकलावकरणो वज्जियपंचप्पयाराऽणिदियविसयसुहसागरोवभोगो रूव-जोव्वण-लावण्ण-वण्ण संपण्णसग्गंगणासणाहतियसगणसंसेविओ समुज्जलंतलोयणदुरालोयफुलिंगाउलकरालजालाकलावकवलियंवइरिनिवहवज्जाउहपहुसमाहिट्ठिओ वज्जिदनील-महानील-कक्के यण-पुस्सरायपउमरायमरगयाईसोलसविहरयणरासिपसरंतकिरणनियरपणासियबहलंधयारपसरो सोहम्मो नाम कप्पो । तत्थ य १. ला. 'इसेलसिहरस्यण ॥ Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः अणेगजोयणसयसहस्साऽऽयाम - वित्थरसोहम्मवडिसयमहाविमाणमज्झभागसंठियसुवियडसुहम्म सभागब्भनिवेसियसक्कसीहासणसिरोवविट्ठो पणमंर्तसयलसामाणियतायत्तिसाऽऽयरक्खपारिसयलोगपालाणीयाणीयाहिवई पणयाभियोगकिब्बिसियकिरीडकोडिवियलंतपारियायमालोमालियचलणवीढसहाविहाओ विमलाऽवहिणाणावलोइयदाहिणलोयद्धो सोहम्माहिवई जाव चिट्ठइ ताव दिट्ठो सिरिसिद्धत्थरायकुलेविमलनहयलाभोयपयासणनिम्मलमयलंछणो देवदाणव-नरिंदविंदवंदिज्जमाणचरणारविंददंदो धरियदुद्धरसव्वविरइमहाभारो पुव्वदुक्कयकम्मोवत्तदुस्सहपरीसहसहणपरायणो एगराइपडिमट्ठिओ निवेसिय- अंबखुज्जयसरीरो ईसि पब्भारागयरुक्खपोग्गलावलग्गनिच्चलीकयलोयणो भयवं वद्धमाणसामी । तं च दट्ठूण भत्तिब्भरुच्छलंतसंभमवससमुग्गयबहलरोमंचकंचुओ समुट्ठिओ सीहासणाओ सुर्रिदो । - किरणजालावबद्धइंदधणुघाओमुयणाणंतरं सत्तट्ठपयाइं तित्थगराभिमुहाणुगमणं विहेऊण विहिपुव्वयसक्कत्थयभणणाणंतरकयपंचंगयपणिवाओ थोउमाढत्तो, अवि य | अमन्दानन्दनिष्यन्दबिन्दुसन्दोहदायक ! भवाब्धिनिपतज्जन्तुहस्तालम्ब ! नमोऽस्तु ते ॥१॥ दुर्वाराभ्यन्तरारातिदूरारब्धरणाजिरे । जयश्रिया परीताङ्ग ! जिननाथ ! नमोऽस्तु ते ॥२॥ प्रोत्सर्पद्दीप्रकन्दर्पसर्पदर्पप्रणाशने । सदधिष्ठायकोपेतमन्त्र ! नित्यं नमोऽस्तु ते ॥३॥ मदान्धद्वेषमातङ्गकुम्भस्थलविदारणे । दीप्रांशुदंष्ट्रायुक्ताऽऽस्यकण्ठीरव ! नमोऽस्तु ते ॥४॥ अजात्यदुष्टदुर्दान्तदूषीकाश्वविमर्दने । धैर्य-वीर्यसमायुक्तहयमर्द ! नमोऽस्तु ते ॥५॥ महामोहद्रुमस्कन्धनिर्मूलोन्मूलनक्रमः । [हे]प्रौढोन्मत्तमातङ्गसमप्रभ ! नमोऽस्तु ते ॥६॥ अज्ञानान्धजगज्जन्तुदृष्टिनिर्मलता । सत्सामग्रीयुतात्यर्थं महावैद्य ! नमोऽस्तु ते ॥७॥ १. सं. वा.सु. 'तसामा° ॥ २. ला. 'लविउल° ॥ ३. ला. 'पब्भारपयरुक्ख ॥। ४. ला. 'णाशिने ॥ मूल. २-८ ५७ Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८ कर्मवृक्षमहाकच्छक्षारत्वोत्पादनक्रमे । लसज्ज्वालाकुलाकीर्णदावानल ! नमोऽस्तु ते ॥८॥ अपारासारसंसारदुर्गकान्तारगोचरे । भ्रमतां प्राणिनां चारुसार्थवाह ! नमोऽस्तु ते ॥९॥ भव्यसंसारिसन्तानपद्मखण्डप्रबोधने । प्रचण्डाखण्डमार्तण्डमण्डलाभ ! नमोऽस्तु ते ॥ १०॥ रोग-शोकमहामेघवृन्दनिर्नाशमारुत । दुःखदारिद्र्यदुर्गाद्रिवज्रपात ! नमोऽस्तु ते ! ॥ ११ ॥ अक्रोधाऽमान ! निर्माय लोभाभिष्वङ्गवर्जित ! । श्वभ्र-तिर्यग्गतिद्वारकपाटयभ ! नमोऽस्तु ते ॥१२॥ सिद्धाधिवाससत्सौधस्कन्धमध्याधिरोहणे । समसोपानसत्पङ्क्ते ! महावीर्य ! नमोऽस्तु ते ॥१३॥ अनन्ताबाधसत्सौख्यचक्रवालविधायके । सत्सिद्धिललनोत्सङ्गे बद्धाबन्ध ! नमोऽस्तु ते ॥ १४॥ सजलाम्भोधिसंशब्दगम्भीरनिभृतध्वने । फुल्लोत्पलसमश्वासं नाथ ! नित्यं नमोऽस्तु ते ॥१५॥ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः निःशेषभावसद्भावभासिज्ञानसुदर्शन ! । चारुचारित्रसम्पूर्णकाययष्टे ! नमोऽस्तु ते ॥१६॥ नम्राखण्डलसन्मौलिगलन्मालाचितक्रम ! । नर-विद्याधराधीशैरभिष्ठुत ! नमोऽस्तु ते ||१७|| कस्ते शक्तो गुणान् स्तोतुं बह्वायुरपि मानवः । जिह्वाशतसमेतोऽपि जडधीः किमु मादृशः ||१८|| तथापि ह्रीं परित्यज्य संस्तुतस्त्वं मया जिन ! । विधेहि मुक्तिसौख्यं मे कृत्वा कारुण्यमुत्तमम् ॥१९॥ एवं थोऊण समुट्ठिओ, निविट्ठो नियसिंहासणे । तओ भयवओ गुणगणावलोयणुप्पन्नभत्तिवसपरव्वसो भणिउमाढत्तो, अवि य १. सं. वा.सु. फुल्लोत्फुल्लस° ॥ २. ला. स्तोतुं परायुं ॥ ३. सं.वा.सु. जलधीः ॥ Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः 'अहह अहो ! अच्छरियं पेच्छह तियसा ! जिणो महावीरो । जं एगराइयाए चिट्ठइ अइनिच्चलो झाणे ॥२०॥ जइ लग्गंति सुरिंदा असेससुर सेन्नपरिवुडा कहवि । तिलतुसमित्तं पि जिणो चालिज्जइ नेय झाणाओ ॥२१॥ जइ वा विहु असुरवई नर - विज्जाहरपहू वि जइ कहवि । चालंति तह वि न चलइ भयवं सद्धम्मझाणाओ ॥२२॥ अहवा जइ तेलुक्कं सव्वं मिलिऊण कहवि चालेइ । तहविहु न चलइ भयवं निक्कंपो सिद्धिखेत्तं व' ॥२३॥ तं सुरवइणो वयणं सोऊणं भत्तिनिब्भरंगस्स । इंदसमाणयरिद्धी संगमय क्खो सुरो तत्थ ||२४|| मिच्छत्तमोहियमणो पावो अइघोररोद्दपरिणामो । चितेइ पडिनिविट्ठो 'इंदो रागेण उल्लवइ ॥२५॥ कि माणुसमेतं पहु तियसा वि न खोभिउं समत्थ त्ति । ता सच्वं जं पहुणो नियइच्छाए पयंपंति' ॥२६॥ इय चिंतिऊण एसो जंपइ तियसाण मज्झयारम्मि | 'भो भो पेच्छह इंदो अघडंतं भणइ रागाओ ||२७|| तेलुक्कं असमत्थं ति पेहए जस्स चालणं काउं । अज्जेव पासह इमं मम वसगं भट्ठजोगतवं' ॥२८॥ इय भणिऊणं एसो समागओ भयवओ समीवम्मि । तारिसजोगसमग्गं दद्धुं वीरं तओ कुविओ ॥२९॥ मुंचइ धूलीवरिसं तेणं आनासियं समोहो । 'खुभिओ न व ?' त्ति जोयइ विभंगनाणेण सो दुट्ठो ॥३०॥ पासइ छज्जीवहियं झायंतं जिणवरं तओ रुट्ठो । मुंचइ पिवीलियाओ सुतिक्खतुंडाओ घोराओ ॥३१॥ तार्ह व सिरिवीरजिणो चालणिसरिसो तओ विणिम्मविओ । जा न वि खुभिओ तत्तो उसे सो विउव्वेइ ||३२|| १. सं. वा.सु. 'रसिद्धप । ५९ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः उण्होलाओ तत्तो च वज्जतुंडाओ सो पकप्पेइ । ताहिं वि अक्खुहियमणं नाऊणं विच्छुए मुयइ ॥३३॥ तत्तो अच्चुग्गविसे विउव्वई दीहरे महाभुयगे । दढनागपासबद्धं काऊण डसंति ते देहं ॥३४॥ अवहरिय ते वि तत्तो नउले अइतिक्खदंसणे कुणइ । तत्तो य मूसए पुण विउरुव्वइ अट्ठमे एसो ॥३५॥ खंडाई तोडित्ता खयाइ सिंचंति निययमुत्तेणं ।। तेहिं वि जा न वि चलिओ विउरुव्वइ करिवरं तत्तो ॥३६॥ सुंडादंडेणेसो घेत्तुं उव्विहइ दूरमागासं । दसणेहिं पुण पडिच्छइ लोलइ धरणीए पाएहि ॥३७॥ एवं हत्थिणिया वि हु चूरइ सा सुंडएहिं दंतेहिं । तत्थ वि अक्खुहिर्यमणं दट्ट पिसायं विउव्वेइ ॥३८॥ चलणंगुलिसुप्पनहं लोढयसमसरिससव्वअंगुलियं । नीसाहतुल्लचलणं अइदीहरतालजंघालं ॥३९॥ वित्थिण्णवंकयकडिं उट्टियकप्परसमाणगुरुपोटें । कूवयखंभयबाहं मेहवम्मसमाणकरजुयलं ॥४०॥ घाणयलट्ठिकरंगुलिसुप्पनहं वियर्डंभुग्गवच्छयलं । अइदीहफालदंतं लंबोटुं चिबिडनासग्गं ॥४१॥ रसलोलवयणनिग्गयदीहरलंबंतजुयलजीहालं । आऊसियगंडयलं रत्तच्छं दीहदाढिययं ॥४२॥ गुडुहयभुंभल (य)सिरं घाडुब्भडविसमतुंडभालयलं । आयारमेत्तसबलं हुयवहजालावलीकेसं ॥४३॥ जलभरियमेहवण्णं करयलपरिकलियकत्तियकरालं । नवउक्कत्तियसरुहिरगलंतगयकत्तिपरिहाणं ॥४४॥ १. ला. 'हरिया ते वि तओ न° ॥ २. सं.वा.सु. उव्वहइ ॥ ३. ला. “यमणं दुटुपि ॥ ४. ला. “सचरणअं ॥ ५. ला. रुपेढें ।। ६. सं.वा.सु. महचम्म ॥ ७. ला. उभग्ग ॥ ८. ला. 'नासायं ॥ ९. सं.वा.सु. 'कारिय || Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः नयण-मुह-पुच्छसंजुयअइभीसणवग्घचम्मउवरिल्लं । । नरसिर-नउल-सिरीसेवमालाकयउत्तरासंगं ॥४५॥ अट्टहासभीसणमुहकुहरविणितसिहिफुलिंगोहं । अप्फोडितं सहसा विउरुव्वइ भीमवेयालं ॥४६॥ तेण वि जा न वि भीओ ताव विउव्वेइ घोरवग्धं तु । सो तिक्खनक्ख-दाढाहिं फाडए सामिणो देहं ॥४७॥ तं संहरितु तत्तो सिद्धत्थनरिंदसंतियं रूवं । .. विउव्विउं पयंपइ अइकलुणपलावसद्देहिं ॥४८॥ 'हा पुत्त ! कहमणाहो अहयं वुड्डत्तणम्मि ते मुक्को !। होहामि अओ पुत्तय ! पालेहि य जाव जीवामि ॥४९॥ तुह भाउणा विनिक्कालिऊण अहयं गिहाओ परिमुक्को । ता काउं पिइभत्ति पच्छा उग्गं तवं कुणसु' ॥५०॥ एवं चेव पयंपइ तिसलारूवेण सो सुरो कलुणं । मायापवंचनिउणो खोभत्थं कूरपरिणामो ॥५१॥ भयवं पि देवमायं जाणंतो न वि कहंपि विचलेइ । अविचलियम्मि जिणिंदे संहरई ते तओ पावो ॥५२॥ विउरुव्वइ तो सिण्णं नरनाहसमण्णियं अपरिमेयं । आवासइ चउसुं पि वि दिसासु तं भगवओ पासे ॥५३॥ तत्तो नरवइसूओ मंगाले जाव कहवि नो लहइ । ताव चडावइ चरुयं परमेसरपायउवरिम्मि ॥५४॥ पज्जालइ सो जलणं जहा उ डझंति सामिणो पाया। तेण वि अक्खुभियस्सा विउरुव्वइ पक्कणसरूवं ॥५५॥ सो पक्खिपंजराई ओलयइ जिणिंदकण्णबाहासु । ते वज्जतुंडपक्खी तोडंति सरीरखंडाइं ॥५६॥ सिंचंति काइयाए तयं पि संहरिय मुयइ खरवायं । सक्कर-वेक्करपउरं तत्तो वि कलंकलीवायं ॥५७॥ १. ला. सिरीसिव ॥ २. ला. सभीमं मुह ॥ ३. सं.वा.सु. रुव्वियं प ॥ ४. ला. यमूलम्मि ॥ ५. ला. यस्स वि विउ ॥ Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः पाडेइ मंदरं पि हु जो सहसा तेण तो जिणो वीरो । चक्काऽऽइद्धो व्व खणं भमाडिओ, तं पि संहरिउं ॥५८॥ जा न वि चलइ कहिपि वि ता कुद्धो वहविणिच्छियमईओ। ता णेयलोहमारेहिं निम्मियं मुयइ गुरुचक्कं ॥५९॥ चूरेइ मंदरं पि हु जं तं पडियं जिणिदसीसम्म । थाणु व्व तेण खुत्तो जाणुपमाणं धरणिवढे ॥६०॥ तेणाऽवि य जा न मओ अणुकूलं ता करेइ उवसग्गं । विउरुव्वइ छप्पि उऊ समकालं तत्थ अवयरिए ॥६१।। आणेवि देविनिवहं सिंगारागारचारुवेसधरं । पंचप्पयारविसयाण साहणं कुणइ सव्वं पि ॥६२॥ ताव य सुरविलयाहिं विलासगुणघडणनिग्गया सहसा । जयगुरुणो कुसुमसर व्व पेसिया दिट्ठिविच्छोहा ॥६३॥ काए वि छेडिओ कुसुमसत्तभमेरोलिमुहलधम्मिल्लो। कुणइ व्व भुवणगुरुणो संगमसुहपत्थणाऽवणइं ॥६४॥ दढबंधं पि हु छोडेविकावि संजमइ पुणरवि कडिल्लं । सरलंगुलिविल्लहले विहुणइ करपल्लवे कावि ॥६५॥ कोमलमुणालवेल्लहलविब्भमिल्लाहिं बाहुलइयाहि । मयणरसनिब्भरंगी काविहु मोट्टाइयं कुणइ ॥६६॥ ल्हसिओउवरिल्लअंसुयसंठवणमिसेण कावि दंसेइ । उत्तुंगनिबिडचक्कलमणोहरं थोरथणवढे ॥६७॥ कावि वियंभइ कावि हु पुलइज्जइ कावि वेवइ सयण्हं । दीहुण्हमुक्कनीसासनिब्भरं कावि नीससइ ॥६८|| इय एवमाइबहुविहवियाखसनिब्भराओ देवीओ । अक्खुभियं दणं एवं जंपंति जिणइंदं ॥६९॥ 'सामिय ! कुण कारुण्णं दीणाणम्हाण कामतवियाई । अंगाई निययसंगमअभयरसेणं समोल्हवसु ॥७०॥ १. ला. तेण वि य जाव न मओ ॥ २. ला. 'मरालि ॥ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः किंवा वि हु अणुकंपं न कुणसि रमियव्वपरिचएणऽम्हु । मयणाउराण निक्किव ! मुणसि च्चिय झूरियव्वाइं ॥७१॥ को लहइ सुहय ! सुरसुंदरीण तेलोक्कदुल्लहं सुरयं । तत्थ वि किं निखेक्खो अम्ह अपुण्णेहिं संजाओ ? ॥७२॥ अच्छउ ता विविहविलासहासरसभावनिब्भरं पेम्मं । सामण्णाए दिट्ठीएं सुहय ! किं नो पलोएसि ? ॥७३॥ जे तुह मणम्मि मउए वि सायया मयरकेउणो भग्गो । ते चेय माणकढिणऽम्ह कहणु भिदंति सुहय ! मणं ? |७४|| अहवा अण्णसुहासंगरायरसिए जणम्मि अणुराओ । जं कीरइ तं जायइ अरण्णरुइयस्स सारिच्छो' ॥७५॥ इय जगगुरुणो मयणाउराण सुरसुंदरीण भणियाई । सिद्धिसुहसंगमुस्सुयमणस्स चित्तं न रामिति ॥७६॥ एवं च तासिं गीएण नेय, न य महुरतंतिसद्देण । करणंगहाररुइरेण मणहरेणं, न नट्टेणं ॥७७॥ न य हावभावविब्भमविलासबिब्बोयविविहचेट्ठाहिं । न य निउणजंपिएहिं य खुहियं जगबंधुणो चित्तं ॥७८॥ तं नाऊणं तियसो दंसेऊणं समुग्गयं सूरं । हिंडंतं च जणवयं जंपइ देवज्जय ! तुमं पि ॥७९॥, किं अज्ज वि इह चिट्ठसि ? हिंडइ सव्वो वि जणवओ जेण भयवं पि य सुरमायं जाणंतो चिट्ठइ तहेव ॥८०॥ इय अणुकूलुवसग्गो वीसइमो एस तेण निम्मविओ । एवं रयणी कया घोरा वीसं च उवसग्गा ॥८॥ तह वि हु छज्जीवहियं झायइ भयवं जिणेसरो वीरो। ओहीए तं नाउं पओसमहियं सुरो वहइ ॥८२॥ चिंतइ य पडिनिविट्ठो कल्लं काहामि कुणइ तह चेव । एवं जा छम्मासा निरंतरं कुणइ उवसग्गे ॥८३॥ Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः तत्थ ये छम्मासतवो उक्किट्ठो जिणवरस्स संजाओ । पज्जते वि य संतो निविण्णो जंपए एवं ॥८४॥ 'तुब्भे सच्चपइण्णा भट्ठपइण्णो अहं पुणो जाओ। ता देमि सग्ग-मोक्खे अण्णं वा भणह जंरुइयं ॥८५॥ जेण पयच्छामि तयं' तह वि न जंपेइ जिणवरो वीरो । 'वच्चह हिंडह न करेमि किंपि' पुण भणइ सो तियसो ॥८६॥ भयवं पि भणइ 'इत्थं नाहं कस्साऽवि हंत वत्तव्वो' । एवं भणिओ देवो सविलक्खो गयमुहच्छाओ ॥८७॥ उप्पइओ गयणतलं तमालदलसामलं खणद्धेण । । वच्चंतो य कमेणं पत्तो सोहम्मकप्पम्मि ॥८८॥ एत्तो य तत्थ देवा उवरयनाडय-मुयंग-गीयरवा । छम्मासं जाव ठिया अइदारुणदुक्खसंतत्ता ॥८९॥ एवं दुक्खासणसंठियाण देवाण देविसहियाणं । सो संगमओ देवो संपत्तो सुरवइसहाए ॥१०॥ दट्ठण तयं इंतं परम्मुहो ठाइ झत्ति सुरनाहो । जंपइ भो भो देवा ! निसुणह मह अवहिया वयणं ॥९१॥ 'एएणं पावेणं न कया अम्हाण चित्तरक्खा वि । तुम्ह वि न कया लज्जा धम्मो दूरेण पम्मुक्को ॥१२॥ भयवं तेलोक्कगुरू इमेण आसाइओ अणज्जेण । ता अम्हाण इमेणं तिलतुसमेत्तं पि नो कज्ज' ॥९३॥ इय वोत्तूणं इंदो हुंकारं मुयइ तेण तो तस्स । खडहडिय वरविमाणं पत्तं मेरुस्स चूलाए ॥९॥ तं उत्तरवेउव्वियविमाणमह मंदरस्स चूलाए । ठोहिइ अयरं इक्कं जं सेसं आउयं तत्थ ॥१५॥ तप्परिवारो वि समं वच्चंतो तेण तो सुरिंदेणं । देवीओ मोत्तूणं सेसो पडिसेहिओ सव्वो ॥१६॥ १. ला. ठाही अ° ॥ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः तत्थ य सागरमेगं अवसेसं भुंजिऊण सो तत्तो । भमिही चुओसमाणो अणोरपारे भवे भीमे ॥९७।। जं तित्थयरगुणाणं तेण अभव्वेण हीलणा विहिया । तेण अणंताणंतं अणुभविही दारुणं दुक्खं ॥९८॥ सुयिरेण वि कालेणं न य सो पाविहिइ सिद्धिवरसोक्खं । जेण अभव्वो पावो पावमई घोरपरिणामो ॥१९॥ संसारियं पि सोक्खं जवमेत्तं पि हु न तस्स किर होही । कालमणंतं जाव उ कया जिणासायणा जम्हा ॥१००॥ इय एसो संगमओ कहिओ तुब्भं गुणाण हीलाए । जो भमिही संसारं, तम्हा गुणहीलणं चयह ॥१०१॥ ॥ सङ्गमकाख्यानकं समाप्तम् ॥३७॥ पूर्वोक्तमेवाऽर्थं निगमयन् कृत्यशेषमाहगुणवंतीण तो हीलं निखिसं च वज्जए । निवारिज्ज जहाथामं दुस्सीला पावकारिणो ॥१२९॥ गुणवतीनां पूर्वोक्तप्रकारेण गुणयुक्तानाम्, तस्मात् हीलाम् अवज्ञारूपाम्, निन्दां= 'धिगेताः शौचादिवर्जिताः' इत्येवम्प्रकाराम, खिसां= "धिग् मुण्डिताः' इत्येवम्भणनस्वभावाम्, वर्जयेत् परिहरेत् । ततश्च निवारयेत् निषेधयेत् [यथास्थामं यथाशक्ति ?], दुःशीला:= दुःस्वभावा द्यूतकरादयः, पापकारिणः =शीलभङ्गादिपातकविधायिन इति श्लोकार्थः ॥१२९॥ इदानीं समस्तप्रकरणोपसंहारमुपदेशसर्वस्वं च वृत्तेनाऽऽह महव्वया मूलगुणाविसुद्धा, पिंडव्विसोहीपभिई विहाणं । कालोचियं दुक्करकारियाणं, अज्जाण कुज्जावरनिज्जरं ति ॥१३०॥ महाव्रतानि=प्राणातिपातविरमणादीनि रात्रिभोजनविरमणपर्यवसानानि, मूलगुणानि मूलगुणत्वेन प्रसिद्धानि, विशुद्धानिकलङ्करहितत्वान्निर्मलानि । प्राकृतत्वात् पुंलिङ्गनिर्देशः । तथा पिण्डविशुद्धिप्रभृति=पिण्डविशुद्धयादि, तत्र पिण्डविशुद्धिर्द्विचत्वारिंशद्दोषविशुद्धपिण्डादिग्रहस्तत्प्रभृति तदादि, १. ता. ति ॥ १३०॥ संजईणं ति पंचमं ॥ मूल. २-९ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः पिंडविसोही समिई, भावण पडिमा य इंदियनिरोहो । पडिलेहण गुत्तीओ अभिग्गहा चेव करणं तु ॥३४३॥ (ओघ. नि. भागा. ३) इत्येवंरूपं विधानं कुर्वतीनामिति शेषः, कालोचितं दुःषमाकालयोग्यं कृत्यमिति भावः, दुष्करकारिकाणां= जघन्यकालेऽप्येवंविधदुष्करसदनुष्ठानकारिकाणाम्, आर्याणां= साध्वीनां कुर्यात् विदध्यात्, वरनिज्जरं प्रधानं निर्जराहेतुः, इति:=प्रकरणपरिसमाप्ताविति वृत्तार्थः ॥१३०॥ श्रीदेवचन्द्राचार्यविरचिते मूलशुद्धिविवरणे साध्वीस्थानकं पञ्चमं समाप्तम् । [ श्रावककृत्याख्यं षष्ठस्थानकम्] व्याख्यातं पञ्चमं स्थानकम् । तदनन्तरं षष्ठमारभ्यते । अस्य च पूर्वेण सहाऽयमभिसम्बन्धः-पूर्वत्र साध्वीकृत्यमुक्तम् तत्र सङ्घमध्ये साध्वीनामनन्तरं श्रावका उक्ताः, अतस्तत्स्थानकम, तस्य चाऽऽदिसूत्रमिदम् तित्थेसराणं बहुमाण-भत्ती सत्तीए सत्ताण दया विरागो । । समाणधम्माण य वच्छलत्तं जिणागमे सारमुदाहरंति ॥१३१॥ तीर्थेश्वराणां तीर्थाधिपतीनाम्; तत्र तीर्यतेऽनेन संसारसागर इति तीर्थं चतुर्विधश्रीश्रमणसङ्घरूपं प्रथमगणधररूपं वा, उक्तं च "तित्थं चाउवण्णो समणसंघो पढमगणहरो वा' अतस्तेषाम् ‘बहुमाणभत्ति'त्ति बहुमान-भक्ती=आन्तरप्रीति-बाह्यक्रियारूपे, 'सत्तीए' त्ति शक्त्या, सत्त्वानां=प्राणिनाम्, दया रक्षणबुद्धिः, विरागः=निरभिष्वङ्गता, चकारस्य व्यवहितसम्बन्धात् समानधर्मवात्सल्यं च सार्मिकवत्सलता च, जिनागमे=अर्हत्सिद्धान्ते, सारं=प्रधानमः एतदेव पूर्वोदितं सर्वधर्मानुष्ठानसारमिति -भावः, उदाहरन्ति=कथयन्तीति वृत्तार्थः ॥१३१॥ .. यस्मादेवं तस्मात् साधर्मिकप्रीतौ यतितव्यमिति, अत आहजिणाणं मण्णमाणेणमुदारमणसा तओ । साहम्मियाण वच्छल्लं कायव्वं पीतिनिब्भरं ॥१३२॥ जिनाज्ञां तीर्थकरादेशम्, मन्यमानेन एवमेतदिति प्रतिपद्यमानेन, उदारमनसा= विस्तीर्णचित्तेन, ततः = तस्मात्, सार्मिकाणां = समानधर्मिकाणाम्, वात्सल्यं = भोजनादिदानप्रतिपत्तिः कर्तव्यं = विधेयम्, प्रीतिनिर्भरम् = आन्तरबहुमानसंयुक्तमिति श्लोकार्थः ॥१३२॥ - Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः यः कश्चिदेतेष्वपि मन्दस्नेहो लक्ष्यते स कथम्भूतो ज्ञेयः ? इत्यत आहकिमण्णाणेण सो अंधो ? किं मोहविसघारिओ ? । किं सम्मत्ते वि संदेहो, मंदनेहो इमेसु जो ॥१३३॥ 'किम्' इति प्रश्ने, अज्ञानेन=अज्ञतया, 'स'इति यो मन्दस्नेहः, अन्धः चक्षुविकलः, किंमोहविषयघारित:=मोहनीयगरलव्यातः, किं सम्यक्त्वेऽपि सन्देहः=दर्शनेऽपि सन्दिग्धता, यत उक्तम् साहम्मिइ घरि आइ यइ, जासु न वट्टइ नेहु । तसु जाणेज्जसु नीसुइणि, सम्मत्ति वि संदेहु ॥३४४॥ यः किं ? यो मन्दस्नेहः अल्पप्रीतिः, इमेषु एतेषु सार्मिकेष्विति सम्बध्यत इति श्लोकार्थः ॥१३३॥ किमित्यतिगौरवं तेषु प्रतिपाद्यते ? इत्यत आह गत्तं पुत्ताय मित्ता य बंधवा बंधणं धणं । दारा वि दोग्गइं देंति, संधारो धम्मबंधवा ॥१३४॥ 'गत्तं' ति गर्तः= अवटः, प्राकृतत्वाल्लिङ्गव्यत्ययः, पुत्राश्च= सुताः, मित्राणि च=सुहृदः, चकारस्य व्यवहितसम्बन्धाद्, बान्धवाश्च सहोदराः, प्रथम चकारश्च शेषस्वजनसंसूचनार्थः, बन्धनं संयमनं, धनं द्रव्यम् । यद्वा गात्रं शरीरं बन्धनमित्यत्र सम्बध्यते । दारा अपि= कलत्राण्यपि, दुर्गति=कुगतिम् ददति= प्रयच्छन्ति, अतः संधारः =सन्धीरणं धर्मबान्धवाः साधार्मिका इति श्लोकार्थः ॥१३४॥ कस्माद्धर्मबान्धवाः सन्धीरणं भवन्तिं ? इत्यत आहधम्मबंधूण सुद्धाणं संबंधेणं तु जे गुणा । दुग्गईओ निरंभंति, धुवं ते दिति सुग्गइं ॥१३५॥ धर्मबन्धूनां= धर्मभ्रातृणाम्, शुद्धानां निरवद्यानाम्, सम्बन्धेन सम्पर्केण, तुशब्दादनुमोदनकरणादिपरिग्रहः, ये गुणाः=ज्ञानादयः, दुर्गती: नरक-तिर्यक्-कुमानुषकुदेवत्वरूपाः, निरुम्भन्ति=निरुन्धन्ति, ध्रुवं निश्चितम्, ते पूर्वोक्ताः, ददति सुगति= सुमानुषत्व-सुदेवत्व-सिद्धिरूपामिति श्लोकार्थः ॥१३५॥ यस्मादेवं तस्मात् १. ता. सो अण्णाणेण किं अंधो ? ।। २. ता. जं ॥ ३. ला. 'नसम्बन्धनार्थः । Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः विद्धि-वद्धावणाईसु संभरे नेहनिब्भरं । सम्माणेज्जा जहाजोग्गं, वत्थं तंबोलमाइणा ॥१३६॥ वृद्धि-वर्धनादिषु तत्र वृद्धिः विवाहादिका, वर्धनं पुत्रप्रसवादिकम् आदिशब्दात शेषोत्सवपरिग्रहः, 'संभरे' त्ति स्मरेत्, स्नेहनिर्भर बन्धुप्रीत्या, स्मृत्वा च सन्मानयेत = पूजयेत्, यथायोग्यं = यथार्हम्, वस्त्र-ताम्बूलादिना; मकारोऽलाक्षणिक इति श्लोकार्थः ॥१३६॥ द्रव्यकृत्यकरणमभिधाय साम्प्रतं भावकृत्यकरणमाहसुत्तं सम्मं पढंताणं विहाणेण य वायणा । . सुत्तऽत्थाणं पयत्थाणं, धम्मकज्जाण पुच्छणा ॥१३७॥ सूत्र प्रकरणादिकम्, सम्यक् भावप्रधानतया, पठताम्=अधीयानानाम्, विधानेन च वाचना=परिपाटीदानम् चः पूरणे, सूत्राऽर्थयोः=वाच्य-वाचकयोः, पदार्थानां जीवाऽजीवादीनाम् धर्मकार्याणां=धर्मप्रयोजनानां चैत्यवन्दनादीनाम्, प्रच्छना=पृच्छा ‘कीदृशमिदं सूत्रम् ? कीदृग्वाऽस्याऽर्थः ? कीदृशोऽयं पदार्थः ? किं निर्वहतीदं धर्मप्रयोजनम् ? इत्येवं साधर्मिकः जिज्ञासापरीक्षानिर्वाहणार्थं प्रष्टव्य इति श्लोकार्थः ॥१३७।। तथा - परियट्टणा-ऽणुपेहाओ जहासत्तीए कारए । तहा धम्मकहा कुज्जा संवेगाई जहा जणे ॥१३८॥ परावर्तनानुप्रेक्षे =गुणनिका-चिन्तनिके, यथाशक्ति (क्त्या)= यथासामर्थेन, कारयेत्=विधापयेत् । तथा धर्मकथाः कुर्यात् यथा संवेगादयो जन्यन्ते=उत्पाद्यन्ते, शक्तौ सत्यामिति श्लोकार्थः ॥१३८॥ किञ्च-. भावणाए पहाणाए धम्मट्ठाणं वियारए । बहुस्सुयसयासाओ विसए संपहारए ॥१३९॥ भावनया=अन्तर्वासनया, प्रधानया सर्वोत्कृष्टया, धर्मस्थानं= धर्मप्रयोजनम्, विचारयेत् ='किमेतदेवमन्यथा वा ? इति, विचारयतां च यदि सन्देहो भवति ततो बहुश्रुतसकाशात् विशिष्टागमवेदिपाश्र्थात्, विषये स्थाने, सम्प्रधारयेद् व्यवस्थापयेदिति श्लोकार्थः ॥१३९॥ अन्यच्च १. ला. भावनया ॥ २. ला. 'दृश्णुपे ॥ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः पावयणम्मि निग्गंथे तहा सम्मं थिरावए । जहा सक्का न खोभेउं देवेहिं दाणवेहिं वा ॥ १४०॥ प्रवचने= शासने, नैर्ग्रन्थे = अर्हत्सम्बन्धिनि, तथा = तेनैव प्रकारेण, सम्यग् =यथावस्थिततया 'एसणं देवाणुप्पिया ! निग्गंथे पावयणे अट्ठे अयं परमट्ठे, सेसे अणट्टे' इत्यादि भगवतीप्रभृतिसिद्धान्तवाक्यस्मारणतः स्थिरीकुर्यात् । कथं यथा न शक्यते = न पार्यते, क्षोभयितुं देवैः = वैमानिकैः, दानवैश्च = भवनपतिभिः चकाराच्छेषदेवैर्विद्याधरादिभिश्चेति श्लोकार्थः ॥१४०॥ तथा तद्यथा पियाणमणुकूलाणमब्भत्थाणं भवे भवे । लोगागमविरुद्धाणं सेवणार निवारणा ॥ १४१ ॥ प्रियाणाम् = अभीष्टानाम्, अनुकूलानां = मनोभिरुचितानाम्, अभ्यस्तानां = भूयो भूयोऽनुष्ठितानाम् भवे भवे = जन्मनि जन्मनि, लोकागमविरुद्धानां = जनप्रवाहसिद्धान्तदूषितानाम्, सेवनायाः = अभ्यासस्य, निवारणं = निषेधनं यथा - इदमिदं च लोकसिद्धान्तगर्हितं तस्मान्मा कार्षीः, इति श्लोकार्थः ॥ १४१ ॥ अन्यच्च ६९ धम्माणुट्ठाणमग्गम्मि हिए लोयाण दोह वि । पमायकम्मदोसेणं सीयंताणं तु चोयणा ॥ १४२॥ धर्मानुष्ठानमार्गे = धर्मकृत्यपंथि, हिते = अनुकूले, लोकयोर्द्वयोः = इहलोक - परलोकयोः, प्रमादकर्मदोषेण = धर्मशैथिल्यजनितमलदुष्टतया, सीदतां = शिथिलभावमनुभवताम्, चोदना = प्रेरणा, कर्तव्येति शेषः, साधर्मिकाणामिति सर्वत्र योजनीयमिति श्लोकार्थः ॥१४२॥ प्रमादस्वरूपं प्रेरणां च श्लोकद्वादशकेन सूत्रकृत् प्रतिपादयति माओ य मुणिदेहिं भणिओ अट्ठयओ । अण्णाणं संसओ चेव- मिच्छानाणं तहेव य ॥ १४३ ॥ गोदोसोसईभंसो धम्मम्मि य अणायरो | जोगाणं दुप्पणीहाणं अट्ठहा वज्जियव्वओ || १४४॥ प्रमादश्च मुनीन्द्रैः=तीर्थकृद्गणधरैः, भणितः = प्रतिपादितः, अष्टभेदः = अष्टप्रकारः, अज्ञानम्=अज्ञता; समस्तदोषनिधानं चैतद् उक्तं च Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७० यतः अज्ञानं खलु कष्टं क्रोधादिभ्योऽपि सर्वदोषेभ्यः । अर्थं हितमहितं वा न वेत्ति येनाऽऽहतो लोकः ॥ ३४५ ॥ अण्णाणंधो जीवो जत्थ भयं तत्थ मग्गए ठाणं । अरिंग कीड-पयंगा पडंति अण्णाणदोसेण ॥ ३४६ ॥ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भाग: ‘संसओ' सन्देहः किमेतदेवमन्यथा वा ? इति संशीतिः, एषोऽप्यनर्थकृत्, यतः संदेहाओ अणिच्छियमइणो नो किंचि सिज्झए कज्जं । संसयमिच्छत्तं चिय जायइ, तम्हा न कायव्वो ॥३४७॥ चेवशब्दः सूक्ष्म-बादरसंशयभेद सूचनार्थः, मिथ्याज्ञानं = विपरीतज्ञानम्, तथैव च = तेनैव प्रकारेणैतदपि न भव्यम्, तथाहि विवरीयं नाणाओ पयट्टमाणो उ पावएऽणत्थं । जह मरुमरीइयाए नीरत्थं धावमाणो उ || ३४८॥ ॥१४३॥ रागः =अभिष्वङ्ग : द्वेषः = अप्रीतिलक्षणः, संसारप्रधानहेतू चेमौ, तथाऽऽह राग-द्दोसेहिं जिओ हिंडइ संसारसायरमपारं । दूरंदूरेण तओ परिहरियव्वा सुहऽत्थीहिं ॥३४९॥ स्मृतिभ्रंशः = विस्मरणशीलता; दोषाय चाऽसौ यतः - वीसरइ जस्स कहियं धम्मं कम्मं नरस्य सो कह णु । साहिस्सइ परमत्थं विसिट्ठमइवज्जिओऽहन्नो ? ॥३५०॥ धर्मे चाऽनादरः = अनुद्यमः, सोऽपि न भद्रकः, यतःइहलोइयं पि कज्जं न होइ फलयं अणायरकयं तु । नो कायव्वो तम्हा विसेसओऽणायरो धम्मे ॥ ३५१ ॥ योगानां=मनो-वाक्-कायानाम्, दुःप्रणिधानं दुष्टताकरणम् तदपि न विधेयम्, = मण-वय- कायाणं पुण दुप्पणिहाणं करेइ जो मूढो । सो निवडइ संसारे सुधम्मकम्माफलत्ताओ ॥३५२॥ अष्टधा = अष्टविधानेन च, मिथ्यात्वा ऽविरति प्रमाद - कषाय- दुष्टयोगाः कर्मबन्धहेतवः प्रत्युक्तास्तथा चाऽज्ञान- संशय - मिथ्याज्ञानैर्मिथ्यात्वम्, रागेणाऽविरतिः, द्वेषेण कषायाः, स्मृतिभ्रंश-धर्मानादराभ्यां प्रमादः, योगदुः प्रणिधानेन दुष्टयोगाः तस्माद्वर्ण्यः = विवर्जनीय इति Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः श्लोकार्थः ॥१४४॥ तथा चवरं हालाहलं पीयं, वरं भुत्तं महाविसं । वरं तालउडं खद्धं, वरं अग्गीपवेसणं ॥१४५।। सुगमश्चाऽयम्, केवलं हालाहलं द्रवविषम्, महाविषं तु कवलखाद्यम्, तालपुटं तु यत् तिलतुषत्रिभागमात्रमपि तालादानमात्रकालेनाऽपि जिह्वाग्रे दत्तं प्राणानपहरति ॥१४५।। तथा - वरं सत्तूर्हि संवासो, वरं सप्पेहिं कीलियं । खणं पि न खमं काउं, पमाओ भवचारए ॥१४६।। सुगमम्, परं क्षणमपि= अल्पकालमपि, न क्षम=न युक्तं प्रमादः कर्तुम्, भवचारके=भवगुप्तिगृहे ॥१४६।। एक्कम्मि चेव जम्मम्मि मारयं ति विसाइणो । पमाएणं अणंताणि दुक्खाणि मरणाणि य ॥१४७॥ स्पष्टः ॥१४७॥ पमाएणं महाघोरं पायालं जाव सत्तमं । पडंति विसयाऽऽसत्ता बंभदत्ताइणो जहा ॥१४८॥ व्यक्तः, किन्तु महाघोरं महारोद्रम्, यत उक्तम् "निच्चंधयारतमसा ववगयगहनक्खत्तचंदतारगा महाघोरंधयारा पूय-वसा-मंसमेयकद्दमचिलिच्चिला विरसा दुब्भिगंधा उत्तासणाय" इत्यादि । पातालं सप्तमं सप्तमनरकपृथ्वीम्, ब्रह्मदत्तादयः=द्वादशमचक्रवर्तिप्रभृतयः आदिशब्दात् चण्डपुत्रप्रभृतयो गृह्यन्ते, यथा यद्वदित्यक्षरार्थः ॥१४८॥ भावार्थस्तु कथानकगम्यः । तत्र ब्रह्मदत्तचरितं तावदाख्यायते - [३८. ब्रह्मदत्ताख्यानकम्] अत्थि गयणग्गलग्गदेवकुलभवणतोरणमालालंकियं अलंकियासेसनर-नारीजणसंघायं संघायट्ठियगो-महिसिपसुसमाउलं समाउल देसंतरागयवणियजणसमाणियविविहपणियं सागेयं नाम नयरं ति । १. स.वा.सु. मारइंति ॥ २. ला. 'कपृथिवीम् ॥ Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः तत्थ उदिण्णसमाउलसेणो सेणाखंडियरिउभडमाणो । माणावज्जियगुरुयणचरणो चरणवसीकयदुज्जयकरणो ॥१॥ करणसमागयनाणयसारो सारसुदंसणकयसुहवारो । वारंतेउरमुहजियचंदो चंदवर्डिसय नाम नरिंदो ॥२॥ तस्स य सयलगुणगणसमाउत्तगत्तो मुणिचंदो नाम पुत्तो । सो य उवरए पियरम्मि रज्जं परिपालिऊण निक्खंतो सुगुरुसमीवे । अण्णया य गुरूहिं सह वच्चंतो देसंतरं भिक्खट्ठा पविट्ठो एत्थ गामे । गहिय पाण- भत्तो य जाव निग्गच्छइ ताव भोलिओ सत्थस्स पविट्ठो महाडविं । तत्थ य संजायचउव्विहाहारतिरत्तोववासेणं लंघिया अडवी । तओ निरसणो त्ति पहपरिखीणो त्ति सूरावयवपरिकिलामिओ त्ति निवडिओ एगत्थ तरुच्छायाए निवडंतो य दिट्ठो चउहिं गोवेहिं, 'अव्वो ! माणुसं किंपि निवडियं' ति करुणाए धाविऊण समासासिओ पाओगिय [द] हितक्क- वाणिएणं, नीओ य नियगोउलं । भुत्तावसाणे य भयवया काऊणं धम्मदेसणा चत्तारि वि पव्वाविया । ताण मज्झाओ दुवे 'अहो ! सोहणो धम्मो परं मलमलिणसरीरत्तणओ असुइ' त्ति दुगुंछं काऊण गया देवलोगं । तओ चुया समाणा दसणे जणवए वसंतपुरे संडिल्लस्स माहणस्स जसमईए दासीए तेणेव माहणेणं पुत्ता जाया । ते य अण्णया कयाइ परिवड्ढियसरीरा गया नियखेत्तरक्खणत्थं । रयणीए तत्थेव वडपायवस्स हेटुओ पसुत्ता । रयणीए य वडकोट्टरविणिग्ग्रएण डक्को एक्को भुयंगमेण बीओ य भुयंगमोवलंभनिमित्तमिओ तओ परिब्भमंतो डक्को तेणेवाऽहिणा । अकयपडियारा य मरिऊण उप्पण्णा कालिंजरनगे एगाए मिगीए उयरम्मि जमलत्ताए । जाया कालक्कमेण । जोव्वणत्था य पीईए एगत्थ रममाणा एगेणं वाहजुवाणएणं एक्कसरप्पहारेण विणिवाइया समाणा मया गंगातीराए एगाए रायहंसीए उयरम्मि हंसत्ताए उववण्णा । तत्थ वि एगत्थं चेव पीईए रममाणा पासिया एगेणं जालिएणं गहिऊण, कंधरं वलिऊण विणिवाइयासमाणा वाणारसीए महानयरीए महाधणसमिद्धस्स भूयदिण्णाहिहाणस्स पाणाहिवइणो भारियाए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उववण्णा । जाया कालक्कमेणं । चित्त-संभूय त्ति पट्टियाई नामाई वङ्कंति रूयाइगुणेहिं । एत्तो य संखराया नामेणं अत्थि तीए नयरीए । तस्स वि बुद्धिपहाणो मंती नामेण नमु इत्ति ||३|| सो अण्णया कंयाई चुक्को अंतेउरम्मि रायस्स । तो पच्छण्णो वज्झो समप्पिओ भूयदिण्णस्स ॥४॥ १. ला. 'ओ नियदीयडतक्क ॥ २. ला. तेणाहिणा ॥ ३ ला 'ण समुप्य ॥ Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः पाणेण वि सो भणिओ 'जइ मे पाढेसि पुत्तगे दो वि । भूमिगिहे पच्छण्णं जीयं रक्खेमि तो तुज्झ ॥५॥ मंती वि जीवियट्ठी पडिवज्जिय तस्स तें तहा वयणं । पाढेइ दो वि पुत्ते जाव कलापारगा जाया ||६|| अह तम्मि ताण माया अणुरता भुंजए पइदिणं सो । तं हवि भूयदिण्णो जाणित्ता चितए एवं ॥७॥ 'सिद्धं ता मह कज्जं जेण कुमारा कलासु निम्माया । पावो उ इमो दुट्ठो चुक्को मह भुंजए भज्जं ॥८॥ ता संपइ मारेमी रायाएसो विहोइ जेण कओ' । तव्वहेकयपरिणामो चिट्ठइ समयं निरूवेंतो ॥९॥ तं कुमरा नाऊणं 'एसो अम्हाण किल उवज्झाओ' । इय चिंतिय एगंते ठियस्स साहिति से कज्जं ॥१०॥ मंती वि मरणभीओ पच्छण्णं चेव ताण समएणं । निग्गंतूण पलाणो संपत्तो हत्थिणायपुरं ॥ ११ ॥ तर्हि च पणमंतबत्तीसमउलिबद्धसामंतसहस्ससिरोमालो मालियचलणजुयलो छक्खंडभरहाहिवो सणकुमारचक्की परिवसइ तेण य नमुइबुद्धिमाहप्परंजिएणं ठाविओ मंतिपए । ७३ इओ य ते चित्त-संभूया मायंगदारया उक्तिट्ठरूय- जोव्वण- कलाकोसल्लयाइगुणेहिं पत्ता परं सिद्धि । अण्णया य समागओ सयलनर-नारीजणकामुक्कोयकारओ विविहसिंगारपयारफारतरुणजणकीलारसविसेसुवज्झाओ वसंतमासो । तत्थ य कीलिउं पयत्तो समत्थतरुणसत्थो, अवि य चूयपरायरत्तकलकोइलकलयलरावरम्मए, कयकंदप्पदप्पवसकामिणिकामुयरमणनम्मए । वियसियकुसुमलुद्धफुल्लंघयकयझंकारताणए, सुरहिसुगंधसीयमलयानिलदीवियपंचबाणए ॥१२॥ १. ला. तओ ॥ २. ला. 'हपरिणामो सो त्ति ॥ ३. सं.वा.सु. "ति नियकज्जं ॥ मूल. २ -१० Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः इय एरिसए वसंतए पत्तयम्मि विरहीयणगहियवसंतए । कीलणत्थनिग्गओ नयरीलोयओ निययरिद्धिभर रिओ धम्मविलोइउ ॥१३॥ निग्गच्छंति य नयरीजणाण तरुणाण चच्चरिसयाई । अंदोलयकीलाओ तह य पयर्टेति तरुणीओ ॥१४॥ गाइज्जइ सुइसुहयं तंती-तल-वेणुसद्दसंवलियं । मुरवाईसद्देण य नच्चिज्जइ चच्चरी रम्मा ॥१५॥ नच्चइ चित्तो गायइ, संभूओ कामिणीक उक्कंठं । कइया वि हु संभूओ, नच्चइ गाएइ पुण चित्तो ॥१६॥ एवं ते नच्चंता संपत्ता नयरमज्झयारम्मि । भग्गाओ य खणेणं सव्वाओ नयरिपेच्छाओ ॥१७॥ ताणं च गीय-वाइय-नच्चियरंगेण सव्वनयरिजणो । पाएणं अक्खित्तो चिंतइ तो चोउवेयजणो ॥१८॥ जह सव्व च्चिय नयरी एएहिं विणासिया अणज्जेहिं । तो विण्णविठं रायं नयरिपवेसो अह निसिद्धो ॥१९॥ तओ विमणदुम्मणा गया नियगेहं । अण्णया य समागए कोमुइमहूसवे पयट्टे निब्मरे कीलारसे गेहे चिट्ठिउमचयंता अगणिऊण रायसासणं अपरिभाविऊण लोगविरुद्धं अचिंतिऊण नियनीयत्तणं पविट्ठा नेयरमज्झे । तत्थ य ताणं विविहकीलाओ पेच्छंताणं कोल्हुयाणं व अवरकोल्हुयरसियं समायण्णिऊण वयणं भंजिऊण निग्गयं गेयं । तओ एगत्थ पएसे वत्थावगुंडियवयणा गाइडं पयत्ता । तं च सोऊण विम्हिओ लोगो चिंतिउं पयत्तो, किं एएते तुंबुरु-हाहा-हूहूण के वि अण्णयरे ? । . अहवा वि किन्नरा कि समागया इह सयं चेव ? ॥२०॥ अहवा वि के वि अण्णे तियसा एत्थं समागया नूणं । इय कोउगेण लोगो उग्घाडइ ताण वयणाई ॥२१॥ तओ ते चेव पाणे दट्ठण रुटेण सव्वलोगेण जट्ठि-मुट्ठि जाणु-कोप्पर-लउडपत्थरप्पहारेहि पराभविऊण निद्धाडिया नयरीओ, चितिउं च पयत्ता- . १. ला. निग्गच्छद नय' ॥ २. ला. भाविओ ॥ ३. ला. 'वाइयस' || ४. ला. नयरपे ॥ ५. सं.वा.सु. चाउविज्जमिणं ॥ ६. ला. नयरिम ॥ Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः ' "विज्जा विण्णाणं जोव्वणं च सव्वं कलासु कोसलं । __ अकयत्थं चिय जायं जह रण्णे मालईकुसुमं ॥२२॥ ता किमेएण सयलपरिभवकारएण विण्णाणाइसएण ? न सकेमो इमं पराभवं विसहिउं, ता केणइ उवाएण पाणे परिच्चयामो।" इय सामत्थिऊण निग्गया गेहाओ । पट्ठिया एगं दिसं गहाय जाव पुरओ पेच्छंति एगं महंतं गिरिवरं । पडणकयनिच्छएहि य दिट्ठो तत्थ एगो साहू, अवि य तवसोसियतणुयंगो दुद्धखयभरयधरणमहधवलो। तं दटुं विणएणं चलणेसुं तस्स पणमंति ॥२३॥ तओ तेण साहुणा काउस्सग्गमुस्सारिऊण पुच्छिया आगमणपओयणं । तेहि वि सव्वं सवित्थरं साहियं । तओ भणियं साहुणा-भद्द ! जम्मंतरनिव्वत्तियासुहकम्मं न एवमवणेइ, किंतु तवेणं खोडिज्जइ जओ भणियमागमे _ 'पुट्वि दुच्चिण्णाणं कडाण कम्माणं दुप्पडिकंताणं वेयइत्ता मोक्खो, नत्थि अवेयइत्ता, तवसा वा झोसयित्ता ।' - तओ एयमायण्णिऊण भणियं तेहिं मायंगदारएहिं जहा-भयवं ! जइ जोग्गा अम्हे कस्सइ तवोणुट्ठाणस्स ता देहि अम्हाणं किंचि वयविसेसं । मुणी 'अइसयनाणि' त्ति कलिऊण देइ ताण सव्वविरई । ते वि संवेगाइसयाओ करंति उग्गं तवोणुट्ठाणं पत्ता परं पसिद्धि । अण्णया य विहरमाणा गया हत्थिणारं । तत्थ य भिक्खट्ठा पविट्ठो संभूओ नयरब्भंतरं । तत्थ वि कम्मधम्मसंजोएण नमुइमंतिणो गेहं गओ । दिट्ठो य तेण मंतिणा उवरिमतलमत्ताबलंबट्ठिएण । दट्ठण य चिंतियं - अहो ! सो एस मायंगदारओ, जइ मं कस्सइ साहिस्सइ ता अवस्सं मज्झ छायाभंसो भविस्सइ, ता तहा करेमि जहा एस चेव इओ निग्गच्छइ । एवं चिंतिऊण आइट्ठा नियपुरिसा जहा - एयं कयत्थिऊण इओ निव्वासेह । तेहिं वि कट्ठ-लेट्ठ-मुट्ठिपभिइप्पहारेहिं तहा निद्दयं ताडिओ जहा कोवमुवगओ चिंतिउं पवत्तो-अहो ! एए अणज्जा निग्गच्छमाणं पि ममं न मुंचंति, न य एए लोगा निवारिति, ता दंसेमि एयस्स एयाणं च अत्तणो माहप्पंति । चिंतयं तस्स विणिग्गओ मुहकुहराओ धूमुप्पीलो, अंधारियं च तेण पलयकालजलहरेण विय तमालदलसामलं गयणपलं, विज्जुलाउ व्व वियंभियाओ हुयवहजालाओ । तं च तारिसं दट्ठण पुच्छियं सणंकुमारचक्कवट्टिणा जहा-भो ! किमेयमेवमपुव्वकरणं पिव दीसइ ? तओ साहियं केणावि जहा-देव एस केणावि तवस्सी कोविओ सो सव्वं नयरं दहेउमाढत्तो तं च सोऊण Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः सणंकुमारचक्कवट्टी ससंभमो सहस त्ति समागओ साहुपासं । वंदिऊण य विणएण पायविलग्गो खामेउमाढत्तो, अवि य खमसु महायस ! इण्हि जं अवरद्धं अयाणमाणेहिं । पणिवइयवच्छल च्चिय हवंति तुम्हारिसा जेण ॥२४॥ तं दटुं चित्तो वि हु समागओ तत्थ तुरियपयखेवं । उवसामइ तं साहुं आगमवयणेहिं महुरेहिं ॥२५॥ तो लोय-राय-साहूण वयणमायण्णिऊण सो साहू । उवसंतो य खणेणं पुण संजाओ सहावत्थो ॥२६॥ तं वंदिऊण लोगो खामेऊणं गओ नियं ठाणं । साहू वि चित्तमुणिणा पुणरवि नीओ तमुज्जाणं ॥२७॥ चितंति तओ दोन्नि वि घिसि धिसि आहारमित्तकज्जेणं । पविसिज्जइ नयरमिमं तत्थ वि पाविज्जए वसणं ॥२८॥ ता पज्जत्तं तेणं आहारेणं इमं विचितेउं । गिण्हंति चउविहस्स वि संविग्गा अणसणं ताहे ॥२९॥ पुच्छइ सणंकुमारो वि केण साहू चडाविओ कोवे । जाणिय परमत्थेणं केणाऽवि हु अक्खियं सव्वं ॥३०॥ तं सोऊणं राया जाओ तिवलीतरंगभंगिल्लो । जंपइ रे रे ? आणह बंधेउं तं महापावं ॥३१॥ वयणाणंतरमेव य बंधित्ता आणिओ अह भडेहिं । राया वि तयं घेत्तुं जाइ तओ मुणिसमीवम्मि ॥३२॥ पभणइ य एस पावो भयवं ! जेणं कयत्थिया तुब्भे । ता लेमि अज्ज सीसं एयस्स अहं सहत्थेणं ॥३३॥ तो करुणाए साहूहिं मोइओ जेण पावयस्साऽवि । न कुणंति मुणी पावं सव्वस्स अपावपरिणामा ॥३४॥ तो रण्णा सो भणिओ मुक्को रे पाव साहुवयणेणं । तम्हा गच्छसुतुरियं नामं पि न जत्थ निसुणेमि ॥३५॥ Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः एवत्तो तत्थ सुनंदा सवत्तिचउसट्ठिसहसपरिवारा । मुणिपयमूले पत्ता थीरयणं चक्कवट्टिस्स ॥३६॥ सा जाव आयरेणं संभूयरिसिस्स पणमए पाए । ता तीए अग्गकेसाण फंसणं वेइयं तेण ॥३७॥ तो तेणं फासेणं साहू संजायरायपरिणामो । विगयम्मि नरवरिंदे नियाणमेवंविहं कुणइ ॥३८॥ जइ अत्थि इमस्स फलं तवस्स अइदुक्करस्स चिण्णस्स । तो इत्थीरयणवइ होज्जा ऽहं आगमिस्साए ॥३९॥ तं सोउं चित्तमुणी जंपइ मा कुणसु एरिसं भद्द ! । किसिकरणि व्व पलालं मोक्खत्थी लहइ विसयसुहं ॥४०॥ जह कागिणीए हेउं कोडिं नासेइ मंदबुद्धीओ । तह तं पि सिद्धिसोक्खं मा नाससु विसयकज्जम्मि ॥४१॥ एवं पि तेण वुत्तो न चयइ सो जाव आगहं निययं । ता दुगुणियसंवेगो चित्तो लग्गो सकज्जम्मि ॥४२॥ इय काऊण अणसणं मरिठं अह सुंदरे विमाणम्मि । जाया दोण्णि वि तियसा भासुरवरबंदिसंजुत्ता ॥४३॥ एत्तो य अस्थि इहेव जंबुद्दीवे दीवे सयलजणवयसमिद्धिबंधुरो पंचालो नाम जणवओ । तत्थ य विणिज्जियतियसपुरिसोहासमुदयं कंपिल्लं नाम महानयरं । जत्थ य सुजणमेत्तीओ व्व दीहराओ रत्थाओ, सुपुरिसहिययमणोरहो व्व वित्थिण्णो हट्टमग्गो, माणधणनरिंदाभिप्पाय व्व तुंगाइं भवण-देवउलाई, महामुणिचरियाई पिव निम्मलाई सरोवराई, अवि य सूरो सरलो सुहओ चाई य पियंवओ कयण्णू य । पढमाभासी दक्खो वसति जहिं पुरिसवग्गो त्ति ॥४४॥ लज्जालुओ. विणीओ गुरुयणभत्तो पियम्मि अणुरत्तो । सीलकलिओ गुणड्डो वसहि तहिं इत्थिवग्गो त्ति ॥४५॥ तं एयारिसनयरं तियसाणं पुरवरं महीवढे । अवयरियं व गणिज्जइ तं पालइ नखई बंभो ॥४६॥ १. सं.वा.सु. संभूरि ॥ Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः जो य दिक्खागुरू पडिवक्खकामिणीयणवेहव्ववयपडिवत्तीए, पलयानिलो रिवुसेणाबहलजलयपडलाणं, मयलंछणो नियजणवयजणकुमुयागराणं जलयागमो पणइयणसिहंडिनिवहाण अवि य रूवेण जो अणंगो कण्णो चारण गयवइ गईए । सोंडीरयाइ सीहो कलाहिं जो पुण्णिमाइंदो ॥४७॥ तस्सऽत्थि पिया चुलणी रूवेण रई विणिज्जिया जीए । सो तीए समं भुंजइ विसयसुहं जणियआणंदं ॥४८॥ अह तीए गब्मम्मि देवो चइऊण देवलोगाओ । संभूयसाहुजीवो नियकम्मवसेण उप्पण्णो ॥४९॥ तो चोद्दस सुमिणाई पेच्छइ देवी अणण्णसरिसाइं । साहेइ निययपइणो सो वि पयंपेइ तुट्ठमणो ॥५०॥ देवि ! तुह पणयनरवइकिरीडमणिमसिणिओरुकमवीढो । सयलधराविलयाए नाहो होही वरो पुत्तो ॥५१॥ 'एवमिणं देवाणं गुरूण पाएहिं सुप्पसण्णेहिं । तुहं च पभावेणं होज्जा' अभिणंदए देवी ॥५२॥ अह जायम्मि पभाए गया सद्दित्तु सुविणुवज्झायं । पुच्छइ सुविणाण फलं सो वि हु तुट्ठो परिकहेइ ॥५३॥ देव ! सुओ देवीए होही तिसमुद्दमेहलाए उ । पुहइविलयाए नाहो चक्कहरो पणयसामंतो ॥५४॥ एवं च कमेण संपत्ते पसवसमए पसूया देवी सव्वंगसुंदराभिरामं तियसकुमारसरिसं दारयं । तओ ससंभमखलमाणगइप्पसराहिं निवडंतु तरिज्जाहिं कंपंतगुरुपओ हरभारसमुप्पण्णखेयवससासावूरिज्जमाणदासचेडीहिं वद्धाविओ नरवई । तासिं च दाऊण मउडवज्जंगलग्गाभरणसणाहपिईदाणपुव्वयं मत्थए धोविऊण समाइसइ वद्धावणयमहूसवं, अवि य वज्जत महारवमद्दलयं, नच्चंतविलासिणिगुंदलयं । घुम्मंतमणोहरवामणयं कीरंतमहल्लयहासणयं ॥५५॥ तुटुंतसुतारयहारलयं सुव्वंतसुईसुहगेयलयं । दिजंतकरिंद-रहोह-हयं उब्मितसजूतवयचक्कधयं ॥५६॥ Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः अच्चुब्मडवेसभडाउलयं गिजंतनियंबिणिमंगलयं । कारावियमाणपवट्टणयं मुच्चंतअसेसयबंदिणयं ॥५७॥ इय दंडकुदंडविवज्जियए परितोसियसव्वजणुज्जियए । विणिवारियचारभडाविणए सयलम्मि वि वित्तइ वद्धएण ॥५८॥ एवं च कमेण पत्ते बारसमे दिणे महाविभूईए कयं दारयस्स नामं बंभदत्तो त्ति वड्डए देहोवचएणं कलाकलावेण य । इओ य तस्स बंभस्स राइणो अच्चतुत्तमवंससंभवा महारायाणो आसि चत्तारि मित्ता, तं जहा-कासीजणवयालंकारवाणारसीपुराहिवई कडओ १ गयउवई कणेरुदत्तो २ कोसलानयरसामी दीहो ३ चंपाहिवई पुष्फचूलो त्ति ४ एए य अच्चंतपियत्तणओ साहीणविहवत्तणओ य समुइया चेव सरज्जेसुं संवच्छरमेक्केक्कमणिवारियप्पसरमकयपडिहाराइजंतणं 'मा परोप्परं विओगो होउ' त्ति कलिऊण विविहकयकीलाविसेसेहिं चिटुंति, भणियं च किं ताए सुंदराए वि सिरीए जा होइ सयणपरिहीणा । मित्तेहिं समं जा नेय जं च सत्तू न पेच्छंति ॥५९॥ एवं च परोप्परबहुनेहनिब्भराण वच्चए कालो । एवं च जाए बारसमे संवच्छरे बंभदत्तकुमारस्स अणिच्चया कवलिओ सिरोरोगेणं कालगओ बंभराया । काऊण य मयकिच्चाइयं कडयाइणो वयंसया भणिउमाढत्ता-जाव बंभदत्तकुमारो सारीरबलोववेओ भवइ ताव परिवाडीए अम्हाण एकेको इमं रज्जं परिवालउ' ति मंतिऊणं सव्व सम्मएणं दीहो ठविओ रज्जे । अण्णे पुण सरज्जाइं गया । गएसु य तेसु सो दीहो राया परिपालए सयलसामग्गियं रज्जं । पुव्वपरिचिय त्तणओ समुप्पण्णपहुत्तणाभिमाणओ य पडियग्गए रहतुरय-गइंदाइयं, पलोयए भंडारं, नियच्छए सयलट्ठाणाणि, पविसइ अंतेउरं, मंतेइ समं चुलणीए । तओ दुण्णिवारयाए इंदियाणं, बलवत्तणओ मयरकेउणो, दुद्धरत्तणओ मोहपसरस्स, रमणीयत्तणओ जोव्वणविलासाणं, अगणिऊणं बंभराइणो सुकयाणि, अवगण्णिऊण वयणीययं, उज्झिऊण चारितं, अवलंबिऊण निल्लज्जयं, मइलिऊण नियकुलक्कम, बहुमण्णिऊण नियकुलकलंकवायं, खंडिऊण निम्मलसीलप्पसरं, संपलग्गो समं चुलणीए, अहवा सयलाववायकारणं चेव महिलासंममो, भणियं च एस च्चिय नेहगई किं कीरउ जं कुलुग्गयाणं पि । महिलासंगो मइलेइ साडयं तेल्लघडओ व्व ॥६०॥ १. सं.वा.सु. “यचाडुभ ॥ २. सं.वा.सु. अवमण्णि ' ॥ Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८० तिलसंबद्धत्तणकयसिणेहपसरा खलत्तपरिणामा । महिला चक्कियसाल व्व कस्स नो मइलणं जण ॥ ६१ ॥ परपेरिया सलोहा अगणियनिययाववायसंदोहा । तेलियकुसि व्व महिला खलस्स वयणं पणामेइ ॥ ६२ ॥ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः इय अगणियनिययकुलक्कमाण पम्मुक्कलज्जियव्वाण । खलमहिलाणं न हु नवरि कुवुरिसाणं पि अहमंग्गो ॥ ६-३ ॥ एवं च पवड्ढमाणसिणेहपसरंतविसयसुहरसाणं वच्चंति वासरा । एयं च समाचरणं भस्स राइणो बीयहिययभूएणं धणुनामेणं मंतिणा सव्वमेवमवितहं वियाणिऊण चितियं जहा - "अविवेयबहुलाए महिलयाणं घडउ नाम एयं, जं पुण पडिवण्णयं पि अंगीकरेऊण अयसमसिमुहमक्खणं कयं दीहेण तमत्थि चोज्जं । अहवा दुण्णिवारयाए महामोहविलसियस्स न किंचि चोज्जं । ता जो एवंविहं पि अकज्जमायरइ तस्स किमण्णमकज्जमत्थि " त्ति । चितिऊण वध नाम निययसुओ बंभदत्तस्स अईवसिणेहाणुरत्तो एगंते निवेसिऊण भणिओ जहा-वच्छ ! कुमारो बालसहावो न मुणइ पयइकुडिलाण महिलाण विलसियाई ता एयस्स जणणीसरूवं जाणावेहि । तओ जाणावियमेगंते वरधणुणा । कुमारो वि जहा । वत्थियं परिक्खिऊण ढबद्ध रहुत्त पक्खपेतं घेत्तूण परहुयाहिट्ठियमरिष्टुमंतेउरमज्झेणं वच्चंतो ताण पच्चक्खं रायउत्ततरलत्तणलीलाए भणइ, अवि य - निसुणंतु असुयपुव्वा जह एसा उत्तमा वि परपुट्ठा । एएण निगिट्टेणं बलिपुट्टेणं समं वसइ ॥६४॥ इय वण्णसंकरो न हु राईणोवेक्खिऊण खलु जुत्तो । तेणेयाणं एवं मए कओ निग्गहो घोरो ॥ ६५ ॥ अण्णो वि को वि एवं जो काहिइ सो वि नणु मए नियमा । निग्गहियव्वो एवं निग्गच्छइ एव कीलंतो ॥६६॥ तं च दट्ठूण भणियं दीहेणं-पिए ! न सोहणो कुमारस्सुल्लावो जओ तुमं कोइला अहं काओ । तीए जंपियं-बालत्तणेणं कुमारो विचित्तकीलाहिं रममाणो जंवा तं वा उल्लवइ, कओ एयस्स एवंविहो वियप्पो ? । तओ बीयदियहे भद्दकरणि संकिण्णगएण सह बंधिऊण जंपइ, अवि य १. ला. 'कलंकावायं ॥ २. ला. काही सो ॥ Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम् - द्वितीयो भागः भद्दकरणि वि होउं संकिण्णगएण जा समं रमइ । सा एव निग्गहेज्जइ सुणंतु सव्वे वि वयणमिणं ॥ ६७ ॥ तं च सोउं भणियं दीहेणं - पिए ! म बालविलसियमेयं, किंतु साभिप्पायं । ती भणियं-जइ वि एवं तहावि किमेइणा ? । पुणो तइयदिवसे रायहंसिं बगेण सह बंधित्ता समाणिऊण जंपिउं पवत्तो, अवि य कलहंसिया वि एसा छिछइया असरिसे जओ रत्ता । तेण न सहामि एवं सुणंतु अण्णे वि किं बहुना ? ॥६८॥ ८१ एयं च समायण्णिऊण पुणो वि जंपियं दीहेण पिए ! कुमारो वडमाणो निच्छएण रइविग्घकारी भविस्सइ, ता मारिज्जउ । तीए भणियं कहं रज्जधरं नियपुत्तं विणासेमि ? तेण जंपियं ममम्मि साहीणे अण्णे तुह सुया भविस्संति, अहवा जे मह पुत्ता ते तव पुत्ता चेव, जओ दोसु विरज्जेसु तुमं चिय सामिणी । तओ रइनेहपरव्वसत्तणओ एरिसं पि हियएणावि अर्चितणीयं पडिस्सुयमिमीए भणियं च हिययाई नेहरसियाण कमलदलकोमलाई महिलाण । ताइं चेव विरत्ताण होंति करवत्तकढिणाई ॥६९॥ भणियं च तीए - जइ कहवि तेणोवाएण मारिज्जइ जहा जणाववायदोसो रक्खिज्जइ 'को उण सो उवाओ ?' त्ति चिरं चिंतिऊण, 'हुं मुणियं कुमारस्स विवाहधम्मं करेमि, तओ वासभवणं तन्निमित्तं पवरजालऽद्धयंदनिज्जूहयसणाहं अणेगवायायणमत्तवारणविभूसियं गूढनिग्गमपवेसं करेमु जउहरं, तत्थ य सुहपसुत्तस्स जलणं दाहामो' त्ति मंतिऊण वरिया चुलणीए नियभाउणो पुप्फचूलाहिहाणस्स धूया । पारद्धा सयलसामग्गी । ओ मइपगरिसत्तणओ सव्वं तव्विलसियं लक्खिऊण अमच्चधणुणा विण्णत्तो दोहराया - देव ! एस मह पुत्तो वरधणू सयलकलाकुसलो रज्जमहाभरुव्वहणधुरधवलपरिपालणक्खमो, अहं पुण वयपरिणयत्तणओ न सक्केमि काउं खडप्फडं, ता तुमए अणुण्णाओ इच्छामि नियहियाणुट्ठाणं काउं तओ एयमायण्णिऊण दीहराइणा चिंतियं - एस महामई मायामंतप्पओगकुसलो बहिं निग्गओ नियमा अणत्थाय भविस्सइति । चितिंऊण कइयवोवयारविरइयसामपुव्वयं भणिओ तुम विणा किमम्हाण रज्जेण पओयणं ?, का वा हिययनिव्वुई ? ता अलं कत्थइ पउत्थेणं, किंतु इह ट्ठिओ चेव असणप्पयाणाइणा धम्ममावज्जसु । इमं चाऽऽयण्णिऊण धणुणा गंगानईतीरे महंतं सत्तमंडवं काराविऊण पंथिय-परिव्वायग्गईण दवावियं पगाममण्णपाणं । दाणमाणोवयारसंगहियपच्चइयपुरिसेहिं य खणाविया दुगाउयप्पमाणा जउहरं जाव सुरंगा । पच्छन्नलेहपेसणेण य जाणाविओ एस मूल. २- ११ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः वइयरो पुप्फचूलस्स । तेण वि गहियपरमत्थेण न पेसिया नियधूया, किंतु अण्णा दासचेडि त्ति इयरेहिं वि पवेसिया महाविभूईए । पत्तं च वारिज्जयदिणं । तओ नच्चंत नड-नट्ट-जल्ल-मल्ल-मुट्ठिय-वेलंबय-कहग-पवग-लासग-आइंखग-लंखमंख-तुंबवीणियतालायर-संवाहबहलं गिज्जंतमहुरमंगलालावमुहलं निवेसिज्जमाणदूरागयजणं अविरयपडतलाय-कुसुमपयरच्चियभूमिभागं देवण्णुग्घुट्ठसुव्वंतपुण्णाहसदं वत्तं पाणिग्गहणं । विवाहाणंतरं च विसज्जिए सयलम्मि जणसमूहे पवेसिओ कुमारो वासभवणपरियप्पणाए सवहूओ जउहरं । तओ तत्थ पासनिसन्नस्स नववधूसमन्नियस्स नाइदूरोवविट्ठवरधणुसहायस्स विसज्जियासेसपरियणस्स वेसंभनिन्भरं वरघणुणा समं मंतयंतस्स समहिगयमद्धजामिणीए ताव य चियानलेण दुवारदेसाओ समारब्भ पलीवियं वासभवणं । उच्छलिओ हाहारवो, कूइयं पुरजणवएणं, संवलग्गं तओ जउ भवणं, अवि य अइबहलकसिणनवजलयसरिसधूमम्मि पसरमाणाहिं । विज्जुलयाहि व जालाहिं सव्वओ तं समुप्पुण्णं ॥७७॥ चुंपालयजालगवक्खविवरपविसंतसिहिसिहोहेहिं । समवत्तिणो करेहि व तं नज्जइ पूरियं सव्वं ॥७८॥ जमजीहासमपसरियउब्भडजालाकलावदुप्पिच्छं । डज्झइ तं सव्व त्तो, तडयडरावं विमुंचंतं ॥७९॥ तं च तारिसं दट्ठण किंकायव्वविमुहियमाणसेण 'किमयं ? ति पुच्छिओ वरघणू । तेणाऽवि साहियं संखेवेण । बंभयत्तेण भणियं-कहमेयं तुब्भे वियाणह ? तेण जंपियं - देव ! तुम्ह कज्जोव उत्ताण किमण्णमम्हाण पओयणं ? बंभयत्तेण भणियं-जइ एवं ता किमित्थ कायव्वं ? वरघणुणा भणियं-कयं चेव सव्वमक्खूणमेत्थ मह जणएण, जओ पुव्वमेव भणिओ अहं 'जइ किंचिवि एत्थ पविट्ठाणं तुम्हाणं विसमं समावडइ तो कुमारं अमुगत्थ पएसम्मि पण्हिप्पहारं दावेज्जसु जेण पयडीहोइ सुरंगामुहं ति, ता देह एत्थ प्पएसे पण्हिप्पहारं । तओ कुमारेण तहेव कए पयडीहूया सुरंगा । तीए य जाव निग्गच्छंति ताव मंतिणा समप्पिया दोण्णि जच्चतुरंगमा । तेहिं य समारुहिऊण पणट्ठा गया पण्णासं जोयणाणि । सासाऽऽवूरियहियया य मया तुरंगमा । तओ पाएहि चेव गच्छंता पत्ता कोट्ठगाभिहाणं गामं । एत्यंतरम्मि य तण्हाछुहाकिलितेणं भणिओ वरधणू कुमारेण-मित्त ! दढं छुहाभिभूओऽम्हि । तेणाऽवि चिंतियं 'अहो ! सच्चं केणाऽवि भणियं, जहा नत्थि पंथखेयाउ परा वय परिणई, नेय रुंददारिद्दसमो वि हु परिभवो । मरणयाहि न वि जायइ अण्णभयं परं, वेयणा वि न छुहाए समा किर जंतुणो ॥८॥ Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः जोव्वणसिरिसोहग्गयअहिमाणपरकमोरुसत्ताई । लज्जं बलावलेवउ रवणेण एक्का छुहा पणासेइ ॥८१॥' चिंतिऊण पविट्ठो कुमारं तत्थेव मोत्तूण गामे । समागओ य लहुं कासवयं घेत्तूण । सिहामेत्तं च मोत्तूण मुंडावियं सीसं कुमारस्स । परिहाविओ थोरकसायवत्थाणि, पच्छाइयं वच्छत्थलं सिरिवच्छचिंधं चउरंगुलपमाणपट्टएणं, पक्खित्तं कंठे जण्णोवइयं । अप्पणा वि परिवत्तिऊण वेसं पविट्ठा गामब्मंतरं । ताव य एक्कदियवरगेहाओ निग्गंतूण दासचेडएहिं भणिया-एह भुंजह ति । तओ गया तत्थ । भुत्ता रायाणुरूवपडिवत्तीए । भोयणावसाणम्मि य समागया अमलियविसट्टकोरिटकुसुमच्छवि दीहरदारोणयनिबिडंगुलिकरयलप्पमाणलोयणजुयलं बंधुमइकयाभिहाणं कण्णयं गहाय एका मज्झिमवया नारी । कुमारुत्तमंगम्मि अक्खए दाऊण कुसुमसणाहं सियवत्थर्जुयलं च दाऊण भणियमणाए एस इमाए कण्णयाए वरो त्ति । एयं चाऽऽयण्णिऊण भणियं मंतिसुएण-भो ! किमेयस्स अणहियवेयवयणस्स मुक्खबडुयस्स जणियायरेण अप्पाणं खेयह । घरसामिएण भणियं"सामि ! सुव्वउ, अत्थि किंचि विण्णवियव्वं जहा पुव्वमम्हहिं पुच्छिएण नेमित्तिएण साहियं जहा 'इमाए बालियाए सयलपुहइमंडलाहिवई भत्ता भविस्सई' । 'कहमम्हेहिं सो नायव्वो ?' त्ति पुच्छिएण तेण भणियं-जो समित्तो पट्टोच्छाइयवच्छो तुम्ह गेहे भुंजिस्सइ, जं च दट्ठण इमीए बहलपुलउब्मओ बाहजलाविलंब च नयणजुयलं भविस्सइ सो इमीए भत्तै'त्ति भणंतेण पणामियं करदाणसलिलं कुमारस्स । वरघणुणा भणियं-भो ! एस जम्मदारिद्दडोड्डो, कुओ पुहइमंडलाहिव तणमिमस्स ? घरवइणा भणियं-जो होउ सो होउ पणामिया मए इमा इमस्स । तओ तम्मि चेवदियहे कयं पाणिग्गहणं । तं निसं तहिं चेव वसिया पहायाए रयणीए भणियं वरधणुणा-भो सहयर ? किं सुहासीणो चिट्ठसि ? किं विसुमरियं दूरंगंतव्वं? ति वाहित्तेण कुमारेण बंधुमईए सिट्ठो सब्भावो, ता पिए ? न कस्सइ साहेयव्वं वीसत्थाए य चिट्ठियव्वं जावाऽहमागच्छामि । तं च समायण्णिऊण अविरलगलंत-बाहजलकलुसियकवोलमंडलाए पणमिऊण भणियमिमीए, अवि य नियकुलनहयलमंडणमयलंछण ! सुणसु मज्झ विण्णत्ति । अम्हारिसदीणजणं खणं पि मा पम्हुसेज्जासु ॥८२॥ . तइ समयमिमं वच्चइ मह हिययमसरण यं ममं मोत्तुं । सोक्खं च सोक्खदायग ! इमाण तत्ति वहेज्जासु ॥८३॥ १. ला. 'जुवलयं च ॥ Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः रइया य तुज्झ पुरओ वेणी तह कज्जलाइयं मुक्कं । इय नाउं नाह ! दयं काउं लहु संगमं देज्ज ॥८४॥ तओ तं नेह कायरं संठवेऊण निग्गया वियडपयक्खेवं वच्चंता पत्ता अंतिमग्गामनामगामं । तत्थ य सलिलपाणनिमित्तमइगओ वरधणू । लहुं चाऽऽगंतूणं भणियं-कुमार ! गामसहासु जंपिज्जए जहा-किर अईयदिणे बंभदत्त-वरधणुणो पलाणा, दड्डे जउहरम्मि य पलोयंतेहिं न दिट्ठाई अट्ठियाई, दिवा य सुरंगा, तओ दीहराइणा बंधाविया सयलरायमग्गा । ता एह उम्मग्गेण वच्चामो त्ति पयट्टा विसमदुग्गदेसेण । पडिया य महाडईए, अवि य भीसणसावयसयसंकुलाए बहुविडविगहणगुविलाए । बहु जाइ पक्खिसदुद्भुयाए अइदूरपाराए ॥८५॥ जाय मंभीसइ व्व कत्थइ, पवणपहल्लंतपल्लवकरहिं । कत्थइ निवडिरपक्कप्फ लेहिं पूयइ व पहिययणे ॥८६॥ कत्थइ तरुवरसंरुद्धरविकरा हरइ सत्तसंतावं । दवदद्धयाइ कत्थइ, मइलइ संगाउ कुडल व्व ॥८७॥ इय बहुविहवुत्तंताए ताए वच्चंति ताव ते दो वि । ता सु सियकंठउट्ठो तिसाए परिपीडिओ कुमरो ॥८८॥ ' तओ तं तारिसं कुमारं दट्ठण वरधणू बहलदलनग्गोहच्छायाए मोत्तूण कुमारं गओ सयं जलऽण्णे सणत्थं । _____ ताव य दिणावसाणसमयम्मि दिट्ठो अण्णेण दूरदेसत्थो जमभडेहिंव दीहरायपुरिसेहि हम्मतो तयलक्खं लहु पलायसु त्ति सणं च कुणमाणो वरधणू । तं चाऽवगच्छिऊण पलाणो कुमारो । पलायंतो य पडिओ दुग्गमं कंतारं, तं च केरिसं - वियडगिरिकूडसंकडतडनियडपडतनिबिडविडवोहं । अइभीसणसावयगरुयमुक्कबुक्काररवपउरं ॥८९॥ मयभिभलमयगलकुलभज्जंतमहंततरुदुसंचारं । गुरुवंसघस्सणुट्ठियदवग्गिडझंतकंतारं ॥१०॥ अइपसरियवीरीसद्दभीसणं बंभयत्तवरकुमरो । नियकम्मपरिणई पिव भमइ महाघोरकंतारं ॥११॥ तत्थ य अरस-विरसफलाइकयाऽऽहारो तइयदिवसम्मि पेच्छइ तावसमेगं । तं च Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८५ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः दवण पुच्छियं कुमारेण-भयवं ! कत्थ तुम्हाऽऽसमपयं ? तेण विनीओ आसम पयं । दिट्ठो कुलवई । वंदिओ धरणिलुलंतकुंतलकलावभालयलेणं । आसीवायदाणपुव्वयं च भणियमणेण-वच्छ ! सुकुमालसरीरो तुमं दीससि, अइदुग्गभीसणं चाऽरण्णं, ता कहमिह तुहाऽऽगमणं ? तेण वि गुरू त्ति सव्वं जहावत्तं साहियं । तव्वयणाणंतरं च सागयं सागयं ति भणमाणेण परिरद्धो कुलवइणा, भणियं जहाऽहं तुह पिउणो बंभराइणो चुल्लभाइ त्ति, तो जहासुहं चिट्ठसु, तुह संतियं चेवाऽऽसमपयं ति तत्थ चिट्ठमाणस्स समागओ पाउसो । तत्थ सो तेणऽज्जएण सयलकलाओ महत्थविज्जाओ य गुणाविओ । अण्णया य गलियजलहरधवलियदियंतरालम्मि कुवलयदलसामलोवलक्खिज्जमाणनहयलम्मि समागए सरयकाले फलाइनिमित्तं पट्ठिएसु तावसेसु सह निरुज्झमाणो वि कुलवइणा गओ सोऽरण्णं । तओ च- क्खुलोलत्तणओ इओ तओ पलोयंतेण तेण दिटुं तक्खणविमुक्कं गयवरमुत्तपुरीसं । तओ ‘पच्चासण्णो एत्थकरी भविस्सइ' त्ति भणंतो तरलत्तणओ कुमारत्तणसहावस्स निवारिज्जंतो वि तावसेहिं लग्गो गयाणुमग्गओ 'इमो गच्छइ इमो गच्छइ' त्ति परायत्तमाणसो गओ पंच जोयणाणि दिवो सो करी, अवि य गलमाणगंडणीरं अग्गपएसम्मि उन्नयसुदंतं ।। उप्पायपव्वयं पिव चलमाणं नियइ गयनाहं ॥९२॥ तओ अप्पाणयं च परिवारविरहियं दट्ठण कोउगेण कयं गलगज्जियं । तयायण्णणाओ य तड्डवियकण्णजुयलो करविमुक्कसुंकारनियरो गलगज्जियविणिज्जियसजलजलहरो पत्तो कुमारस्संतियं करी । जाव य पसारियकरो किर कुमारं न गिण्हइ ताव कुमारेण संविल्लिऊण खित्तं से पुरओ उत्तरीयं । तेणाऽवि अमरिसवसेण खित्तमंबरतले निवडमाणं च तक्कलणाए जाव दसणेहिं पडिच्छइ ताव परिवंचिऊणाऽणेण गहिओ वालग्गहाए । सतुरियं चलंतस्स य चलणंतरविनीहरिएण छित्तो करेण चलणकरेसुं । तओ तस्स रोसवसविइण्णसुण्णवेज्झस्स करजुयलसमुक्खयपक्खित्तपंसुपिहियलोयणपसरस्स विलग्गो कंठपएसे जाव य करग्गेण परामुसइ ताव य ह च्छत्तणओ एक्ककरकलियवालहिडंडो झत्ति समागओ धरणियलं । एत्थंतरम्मि य पसरंतनिब्भरासारथोरजलधारानिरुद्धलोयणवहं पवत्तं वरसिउं । तओ सो करी दढं परिस्संतो वासेण य परब्भाहओ विरसमारसिऊण पलाणो । कुमारो वि जाव चलिओ पिट्ठओ ताव जलपूरालक्खिज्जमाणनिन्नुन्नयविहाओ दिसामूढो समोइण्णो जलपुण्णमेकं सरियं । तीए य वुज्झमाणो समुत्तिण्णो बीयदिणम्मि तडट्ठियं एक्कमुव्वसियपुराणपुरवरं, अवि य - Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः उत्तुंगगरुयगोउरनिवडणपडिरुद्धनिग्गमपवेसं । संभग्गसुरालयतुं गसिहरदरदिद्धगब्भहरं ॥१३॥ घरभित्तिसमुग्गयवियडविडडविखडहडियतुंगधवलहरं । वणकरिविसाणपेल्लणभज्जंत कवाडसंपुडयं ॥९॥ वणमहिसतिक्खसिंगग्गभिन्ननिवडंतवलहियावयवं । कोलउलुक्खयभूमीदीसंतनिहाणकंठग्गं ॥९५।। इय एवंविहनयरं कोउयरसपसरपूरिओ कुमरो । जा वियरइ ता पेच्छइ वंसकुडंगं महाकायं ॥१६॥ तीए य पासट्ठियं वसुनंदयं मंडलग्गं पच्छिऊण अइसोहणं ति कोऊहलेण घेत्तूण वाहियं तम्मि वंसकुडंगे खग्गं, एकप्पहारेण चेव पाडिया वंसाण सट्ठी । तदंतरालट्ठियं च दरफुरंतोट्ठउडं निवडियं एकं मणोहरायारं सिरकमलं । तं च दट्टण संकंतेण निरूवियं वंसकुडंगं । दिटुं च उद्धनिबद्धचलणं धूमपियणलालसं कबंधं । 'अहो ? विज्जासाहणुज्जओ को वि एस महाणुभावो मए विणासिओ' त्ति भावें तेणं बहुसो निदियमत्तणो बाहुबलं । तओ खणंतरेण जाव अग्गओहुत्तं पट्ठिओ ताव पेच्छइ नंदणवणसंकासं महंतमुज्जाणं तदंसणकोउयरसपसरपसारियनयणजुयलो नाणातरुनिक्खित्तदिविच्छोहो जाव पविसइ ताव पेच्छइ सुरविमाणकरिसुव्वहमाणमेगं सत्तभूमिगं महापासायं । तं च दट्टण कोउगेण समारूढो सत्तमभूमिगाए । तत्थ य सिचयपइच्छाइयमणिमयपल्लंकोवरिट्ठिया, निविलृ पिव नियं वत्थले, समुग्गयं पिवगंभीरनाहिमंडलाओ, वित्थरियं पिव भुयालयासु, किसलइयं पिव करपल्लवेसु, कुसुमियं पिव नह किरणनियरेसु, फलियं पिव थोरर्थणेसु, जोव्वणमुव्वहंती सुकसिणसुसिणिद्धकुंतलकलावोवसोहियवयणमंडलादिट्ठा एक्का पवरबालिया, अवि य दंडाहयकसिणभुयंगभंगसमसरिसविहियवेणीया। एक्ककरट्ठियमंगलवलया गयसेसआहरणा ॥९७।। नियवामपाणिपल्लवपल्हत्थि यवयणपंकयाभोया । तुहिणकरुक्केरोलुग्गपंकया सिसिरनलिणि व्व ॥९८॥ अणवरयसोगसंगलियबाहजलकलुसियोभयकवोला । दिट्ठा वारिपरिच्छूढवे विरा सा करेणु व्व ॥१९॥ १. ला. 'थणएसु ॥ २. ला. रविलया । Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८७ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः तओ गलियविज्ज व्व विज्जाहरसुंदरी चिंतानिरुद्धतणुप्पयारा उवसप्पिऊण पुच्छिया कुमारेण-सुंदरि ? काऽसि तुमं ? को वा इमो पएसो ? किं वा एगागिणी ? किं वा सोयकारणं ? । तओ सज्झसपरव्वसाए जंपियं तीए-महाभाय ? महंतो मह वइयरो, ता तुमं चेव पसायं काऊण साहसु, को तुम ? कहिं वा पयट्टो ? किं वा पओयणं ? । तीए य करकलियवल्लईकोमलारावरंजिएण भणियमणेण-सुंदरि ? अहं खु पंचालाहिवइणो बंभराइणो तणओ बंभयत्तो नाम । जाव एत्तियं भणियं कुमारेण ताव सा आणंदवाहसलिलावूरियनयणजुयला समुन्भिज्जंतरोमंचकंचुया सहस च्चिय समन्मुट्ठिया, निवडिऊण य कुमारचलणेसु भणिउं पवत्ता, अवि य मह लोयणवियसा वय ! अमयमयाणंददायग ! कुमार ? । मह असरणाए सुंदर ! सुंदरमिह आगओ जं सि ॥१०॥ करचरणसमुत्थेहिं सव्वुत्तमलक्खणेहिं मह जइ वि। सिरिवच्छलछणो वामबाहुफुरणाइ सिट्ठोऽसि ॥१०१। तह विहु संदेहविणासणथमिह पुच्छिओऽसि गुणनिलय । ता कुमर ! सागयं तुह भणमाणी रोविउं लग्गा ॥१०२॥ तओ कुमारेणाऽवि ‘मा रुव्वउ'त्ति भणंतेण उन्नामिऊण सिरकमलं पुणो पुच्छियाका तुमं ? किं वा रुवणकारणं ? ति । तओ पप्फुसियलोयणा जंपिउं पयत्ता-कुमार ? अहं खु तुह माउलगस्स पुप्फचूलस्स धूया पुप्फवई नाम कण्णया तुह चेव दिण्णा विवाहदिणं पडिच्छमाणी नियघरुज्जाणदीहियापुलिणपरिसरे रमंती दुट्ठविज्जाहरेण नट्टम्म त्तयाभिहाणेण इहाऽऽणीया, जणयाइबंधुवियोगजलणजालावलीकरालियकलेवरा नियभागधेयाई उवालभमाणी जाव चिट्ठामि ताव अतक्कियरयणवुट्ठि व्व तुमं समागओ, ता होसु संपयं मह असरणाए सरणं । तओ कुमारेण भणियं-सुंदरि ? कत्थ पुण संपयं सो महवेरी जेण परिक्खामि से बलं । तीए जंपियं - सो हु मे दिट्ठिमसहमाणो विज्जासाहणत्थं एगत्थ वंसकुडंगम्मि उद्धबद्धचलणजुयलो धूमपाणपरायणो विज्जं साहइ सिद्धविज्जो य किर मं परिणिस्सइ, अज्जं च किर-तस्स विज्जासिद्धी भविस्सइ । तओ कुमारेण सिट्ठो तीए तन्निहणणवइयरो । तं च सोऊण हरिसुप्फुल्ललोयणाए जंपियं-अज्जउत्त ? सोहणं कयं जं सो दुरायारो निहओ, ता संपयं पूरेहि चिरचिंतिए मह मणोरहे । कुमारेण वि परिणीया सा गंधव्वविवाहेण । निवसिओ य समं तीए तत्थ, रयणीए अहिणवरायनिब्भराणं च निव्वत्तं तं जं सयलजणाणं रमणीयं पि तह विलज्जणीयं, सुपसिद्धं पि एगंतसमहिगम्म, दिण्णगरुया १. ला. 'लंछणेण य बाहुप्फुरणाइणा सिट्टो ॥१०॥ Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः णुण्यपसरं पि जणियविण्यत्तणं, उब्भडजणियसिंगारं पि कयविसयासयं ति । पसुत्तो य सुहेणं। पहायसमयम्मि य निसुओ दिव्वविलयाणकारी मणहरालावो । पुच्छियं च तेण- कस्स पुण सद्दो ? भणियं च तीए ससंभंताए-अज्जउत्त ! एयाओ खु तस्स तुह वेरिणो नट्टम्मत्तस्स भइणीओ खंड-विसाहाना माओ विज्जाहरकुमारीओ - तन्निमित्तं विवाहोवगरणं घेत्तूण समागयाओ, ता तुम्हे ताव ओसक्कह लहुं जावाऽहं तुहगुणसंकहावइयरेण भावमेयासिमुव लहामि, जइ एयासि तुम्होवरि गुणाणुराओ भविस्सइ तओऽहं पासायस्सुवरि रत्तंसुयपडायं समुब्भिस्सामि, अण्णहा सियपडायं ति, तं च मुणिऊण गंतव्वं तुमए । भणिया य सा तेणसुंदरि ! अलमलं संभमेण, किं मह इमाओ काहिति ? । तीए भणियं-न भणामि एयाहिंतो भयं, किंतु जो एयासिं संबद्धो सहोयराइओ नहंगर्णयारी भडसमूहो मा सो तुम्हाणुवरि विरुज्झिही । तओ सो तच्चित्ताणुवित्तिं कुणमाणो संठिओ विवित्तप्पएसे। गया पुष्फबई । दिट्ठा य नाइचिरवेलाए मंदं मंदं दोलमाणा धवलपडाया । कलिऊण संकेयाभिप्पायं सणियं सणियमवक्रतो तप्पएसाओ । पयत्तो वियडवणंतरालमाहिडिउं । अइखेयनिस्सहो य दिणावसाण समयम्मि समुत्तिण्णो कंतारंतराओ । दिटुं च पुरओ वियडसिलासंघायनिबद्धवित्थिण्णथोरपालिपेरंतं उत्तुंगपालिपरूढनाणादुमसंडमंडियाभिरामं लयाहरब्भंतरसरसकिसलयसेज्जासुहपसुत्तवणयराइ-मिहुणं निवडियसुरहिकुसुमवासवासिज्ज- माणसिसिरजलविसेसं एवं महासरवरं । तओ अभिवाइज्जमाणो व्व कलभमरविरुएहि, वाहिप्पमाणो व्व महुरकोइलालावेहिं, अग्घिज्जमाणो व्व पक्खित्तकुसुमोवयारलयावहूर्हि, वंदिज्जमाणो व्व फलभरोणमंत-सिहरिसिहरेहिं, परिरब्भमाणो व्व सलिलसंगसीयलेण सुरहिपवणेण पत्तो तत्तीरप्पएसं । तं च विविहफणिफणामंडलेहिं पिव कमलकुवलउप्पलेहिं विराइज्जमाणं दट्ठण कयमज्जण-जलकीलो नाणाविहनेवत्थविरइयविविहवेसायण- गोट्ठीनिविट्ठमणुयमंडलीओ नियच्छंतो संपत्तो उत्तरपच्छिमं तीरलेहं ।। दिट्ठा य तत्थ अइमणहररूवजोव्वणावूरिज्जमाणसरीरावयवा कुसुमियपियंगुकुसुमसरिसदेहच्छवी सव्वालंकारमणहरा उन्नामिए क भुयलया पयासियपवरबाहुमूला कुसुमावचयं कुणमाणी एका पवरकण्णया चिंतियं चाऽणेण-अहो ! इमम्मि चेव जम्मे जायं मह दिव्वरूवविलयादसणं, अहो ! मे पुण्णपरिणई, अहो ! पयावइणो विण्णाणपयरिसो जेणेसा रूवगुणनिहाणमुप्पाइया । तओ सा वि सिणेहाणुरायरसनिब्भरं बंभयत्तं पलोयंती नियदासचेडीए य समं किंपि मंतयंती पत्थिया तप्पएसाओ । सो वि तं चेव निरिक्खंतो पत्थिओ अण्णओहुत्तं जाव गहियवत्थालंकारतंबोलासमागया इक्का. दासचेडी । तीए य १. ला. 'णगामी भ॥ Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः वत्था इयं समप्पिऊण भणिओ - "महाभाग ! एसा जा तुम्हेहिं दिट्ठा तीए पेसियमिणं, भणिया य अहं जहा 'हला ! वणकिसलइए ! एवं महाणुभावं अम्ह तायमंतिणो मंदिरे सयणीयट्ठि कारवेसु, जहावट्ठियं च से साहेज्जसु" त्ति । भणंतीए अलंकियविभूसिओ समुवणीओ नागदेवामच्चस्स | साहियं च जहा- 'एस महाणुभावो रायधूयाए सिरिकंताए वासयनिमित्तं तुम्ह घरे पेसिओ, ता सगउरवं उवचरियव्वो त्ति भणिऊण गया सा मंतिणा वि नियसामिसरिसपडिवत्तीए वासिओ । पभाए य अलंकियविभूसिओ कज्जदिसं दरिसयंतेण नीओ नरवइसमीवं । नरवइणा वि समब्भुट्ठिऊण सायरमवयासिओ, द्ववावियं च अत्तणो समीवम्मि आसणं । उवविट्ठो य पढममुवविट्ठे कुमारे । जंपियं च जहा - " महाभाग ? सोहणं कयं जं ....यपाय पंकहिं अलंकियं अम्ह गेहंगणं, जओ भणियं नाऽपुण्णभाइणो मंदिरम्मि निद्दलियदरियदालिद्दा | बहुवणवि विहमणिकिरणसंवलिया पडइ ॥ १०३॥ वसुहास संपाडियसयलसमीहियत्थवित्थारवड्ढियाणंदं । कस्स व पुण्णेहिं विणा पवरनिहाणं घरमईइ ॥१०४॥ अहिजाई-सयलकलाकलावकलियं हिओवएसरयं । संपडइ मंदभायाण नो सुमित्तं कलत्तं च ॥१०५॥ इच्चाइसमालावेहिं चिट्ठमाणाण समागओ मज्झण्हसमओ । भोयणावसाणे य भणिओ कुमारी राइणा जहा - महाभाग ! अम्हारिसेहिं तुम्हारिसाण महाणुभावाण अण्णं विसिट्ठयरं न किंपि कज्जं काउं तीरइ ता पडिच्छह अम्हाण धूयं सिरिकंताभिहाणं कण्णयंति । भणिऊण विसिट्ठमुहुत्ते कारिओ कुमारो पाणिग्गहणं । तओ तीए सह विसयसुहमणुहवंतेण अण्णया कयाइ पुच्छिया सा कुमारेण-पिए ! किं पुण कारणं मह गागिणो तुमं ताएण दिण्णा ? तीए भणियं - नाह ! निसामेहि, एस मह जणओ वसंतपुराहिवइणो वयरसेणरायस्स पुत्तो रज्जे पइट्ठिओ । तओ महाबलपरक्कमदाइय पेल्लिओ किंपि कारणमुद्दिसिऊण तत्थ विसमारण्णगिरिमज्झयारे सबलवाहणो पल्लि निवेसिऊण द्विओ । उवणया य सव्वभिल्ला । तओ अनिव्वहंतो गामघायाइणा नियपरियणं पोसेइ । संजाया य अहमेयस्स सिरिमईए देवीए चउण्हपुत्ताणमुवरिमेगा कण्णया । अईववल्लहा जणणि-जणयाणं । अण्णया य दरारूढजोव्वणा गया पिउणो पायवंदणत्थं । तेणाऽवि दट्ठूण १. ला. तुम्ह पासे पे ॥ ८९ मूल. २- १२ Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९० मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः भणियाऽहं पुत्ति ! विरुद्धा मह सव्वरायाणो, ता तुमं एत्थ पल्लीए सयंवरा, जं किंचि निययाभिरुइयं पुरिसं समागयं पेच्छसि तं मह साहिज्जसु । तेओऽहं तप्पभिई सवरतीट्ठिया पइदिणं समागयपुरिसे पलोएमि, जाव मह भागधेएहिं संपत्तो तुम-ति । ता एयमित्थ कारणं।" एवं च सुहेण चिट्ठमाणस्स तत्थ कुमारस्स गओ सो पल्लिनाहो गामघायत्थं । कुमारोऽविगओ सह तेण । तओ लूडिज्जंते गामे कमलसरसमीवट्ठियस्स कुमारस्स वियडवणंतरालाओ निग्गंतूण पच्चभियाणिऊण य विलग्गो कंठे वरधणू । विमुक्तकंठं च रोवमाणो संठविओ कुमारेण । उवविट्ठा य एगत्थ छायाए । पुच्छियं च वरधणुणा जहाकुमार! तया मए पलायणसण्णाए कयाए किं तुमे पावियं अवत्थंतरं ? ति पसाएण साहिज्जउ । कुमारेण वि सव्वं साहेऊण भणिओ एसो-साहसु संपयं तुमं पि नियवुत्तंतं । वरधणू वि 'जहाऽऽर्णवेई' त्ति भणिऊण कहिउं समाढत्तो जहा-"कुमार ! अत्थि ताव तुब्भे वडच्छायाए मोत्तूण गओऽहं जलन्नेसणत्थं थोवंतरे य दिटुं मए महासरवरं, अवि य कारंडव-सारस-हंस-चक्कमाइहि सउणिनिवहेहि। सेविजंतं सययं महासमुदं व वित्थिण्णं ॥१०६॥ तं च दट्ठण 'जीविओ मि' त्ति मण्णंतो तुम्ह निमित्तं भरिऊण सलिलस्स दोण्णि नलिनीदलपुडए 'अप्पणा किर पियामि' त्ति समुप्पाडिओ करयलंजली ताव य सुमरियं तुम्हाण, चिंतियं च मए धिद्धी दुरंतवसणायडम्मि पडियम्मि निययसामिम्मि । तण्हुण्हाभिहर्यम्मी सत्तुपरद्धे असरणम्मि ॥१०७।। रे रे जीव ! कयग्योऽसि जं सि वीसारिऊण पहुसुकयं । इच्छसि तेणेव विणा वि जीविउं सलिलपाणेण ॥१०८॥ इय एवं परियट्टियचिंतासंजणियतिव्वसंतावो । मोत्तूण सलिलपाणं विणिग्गओ सरवरहितो ॥१०९॥ जाव य तुह समीवं गंतुं पयत्तो ताव य सहस च्चिय संनद्धबद्धपरिकरायारेहि कयंतदूए हिं व ताडिओ दीहरायभडेहिं, बद्धो य नियं, 'रे रे वरधणु ! कहिं बंभयत्तो ?' त्ति पुणरुत्तं भणमाणेहिं नीओ नियसामिणो सयासं । सो य मं दट्ठण अब्भुट्ठिऊण सरहसं जयउ भट्टिदारओ' त्ति जयकारो कओ छोडिऊण य बंधे भणिउं पयत्तो जहा-महाभाग ! अहीयं मया तुह जणयसयासे, १. ला. णवेसि त्ति ॥ २. ला. 'यम्मि स || Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः भाया तुमं, अहं च ओलग्गिउं पयत्तो कोसलाहिवई ता साहिज्जउ कत्थ कुमारो ? मया भणियं न याणामि, तओ तेण वारिज्जमाणेहिं पि दढयरं तेहिं ताडिओ । पीडिज्जमाणेण य भणियं जहा-जइ अवस्सं तुम्हाण निब्बंधो ता कुमारो खइओ वग्घेण तेहिं संलत्तं-दंसेहि तं पएसं । तओ असमं जसनिहित्तपयनिक्खेवो समागओ तुह दंसणगोयरं । 'पलायसु' त्ति काऊण तुम्ह सण्णं, पक्खित्ता परिव्वायगदिण्णा मए वयणम्मि गुलिया । तप्पभावेण य पणट्ठचेट्ठो मओ व्व संजाओ । तओ ते 'मओ' त्ति कलिऊण गया । अहं पि चिरगएस तेसु उट्ठिऊण तुह गवेसणं काउमाढत्तो । अपेच्छमाणो उ दढमहं परितप्पिउं पयत्ता, अवि य कह होही ? कं भणिही ? को दाही तस्स भणियमेत्तेण । कत्थ व वसिही ? कत्थ(स्स) व नियच्छिही वयणयं मुद्धो ? ॥११०॥ एस कुमारो एसो मह सदं कुणइ सुन्नयं चेव । पासाइं पलोएमि मुहा पयच्छामि पडिवयणं ॥१११॥ सुक्कतरुपत्तरावं सोउं तत्तो वलेइ मह दिट्ठी । को वा वत्तं कहिही सयं च दच्छामि कह कुमरं ॥११२॥ एवं च तुह. वियोगपसरियदीहरनीसासायाससोसियसरीरो पत्तो कहकहवि किलेसेण एक गामं । तत्थ मया दिट्ठो एक्को परिव्वायगो । कयं च से अभिवायणं । तेण भणियंवरधणू विवलक्खिज्जसि मया भणियं-भयवं ! कीस मूढोऽसि ? तओ तेण मह सवहे कुणमाणेण सिटुं जहाऽहं तुह तायस्स पियमित्तो वसुभागो नाम, वीसत्थो होऊण साहसु 'कुमारो कत्थ वट्टइ ?' त्ति मया वितस्स सव्वमवितहं साहियं । तओ सो विसायसामलियमुहमंडलो मह साहिउंपयत्तो जहा-पलाणो अमच्चधणू, तुह जणणी य कोसलाहिवइणा पाणवाडए पक्खित्ता । एवं चाहमसणिपडणाइरित्तं तस्स वयणं सोऊण वित्तयंदूसवे व इंदद्धओ धसत्ति वसुहायलम्मि निवडिओ समासत्थस्स य तुह विरहजलणजालाकरालियंगस्स महाखए खारो व्व, मालनिवडियस्स पयप्पहारो व्व, समरंगणे सुद्दस्स ऊसास व्व वियंभिओ जणणि-जणयावमाणणुब्भवो सोयपयरिसो । भणिओ अहं वसुभागेण-वरधणु ? अलं परिदेविएण, न कायव्वो खेओ, न परियप्पियव्वं तुमए, कस्स वा विसमदसापरिणामो न होइ? । मया भणियं कि मर्म परियप्पिएण कीरिही, जओ भणियं १. ला. °ण कहसु ।। २. ला. वत्तइंदसवि व्व इंद ॥ Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः जस्स परिओस-रोसा वि निष्फला जंति जंतुणो भुवणे । उच्छुपसूणस्स वि निष्फलेण किं तस्स जम्मेणं ? ॥११३॥ तओ काऊणं महहेऊदाहरणाईहिं समासासणं, दाऊण बहुविहे गुलियाजोगे, तुम्हाणमन्नेसणत्थं पेसिओऽम्हि त्ति । अहं पुण परिव्वायगवेसं काऊण कंपिल्लपुरमइगओ । तत्थ य मए सव्वलोयस्स अहिगमणीयं अवलंबियं कावालियत्तणं, केरिसं च ? नरसिरकवालमालट्ठिभूसणं गहिरनेउरखड्डे । बहुविहगपिच्छविरइयआमेलं च लणयसणारं ॥११४॥ उद्दामसद्दडमरुयअणवरयारावभीसणाडोवं । बहुजणजणियचमकं विणिम्मियं तं मए रूवं ॥११५॥ __परिब्भमंतो य पत्तो पाणवाडयं । तत्थ वि घराघरि वियरंतो 'भयवं किमयं ?' ति पुच्छिओ य साहामि एस मायंगीए विज्जाए कप्पो त्ति एवं च वियरमाणस्स जाया आरक्खियमयहरेण सह मेत्ती । अण्णदियहम्मि य भणिओ सो जहा-मह वयणेण भणिज्जसु अमच्चभज्जं तुह पुत्तमित्तेण कंडिण्णमहावइगेण तुज्झऽभिवायणं पेसियं ति बीयदिणे. य गुलिगासगब्भं विज्जपूरयं सयं चेव गंतूण दिण्णं भक्खिए य तम्मि जाया निच्चेयणा सा । विण्णत्तं चमयहरेण राइणो जहा-देव ! अमच्चभज्जा परलोगंगया, राइणा वि पेसिया नियपुरिसा जहा-सक्कारं करेह । तओ ते जाव तत्थ गया ताव भणिया मए-जइ एयम्मि अवसरे एईए सक्कारं करेह तो तुम्हाणं राइणो य महंतो अणत्थो । तओ ते एयमायण्णिऊण गया सट्ठाणे मए वि समागयाए वियालवेलाए भणिओ मयहरो-जइ तुम सहाओ होहि तो अहं इमीए सव्वलक्खणसंपुण्णाए अमच्चीए सरीरेण साहेमि एगं महामंतं । तेण वि 'तह' त्ति पडिवन्ने गया तं गहाय दूरदेसट्ठियं महामसाणं । तओ कवडेण विरइऊण मंडलाइयं सपरिवारो पेसिओ मयहरो नगरदेवयाणं बलिदाणनिमित्तं । गए य तम्मि अण्णगुलियापयाणेण निद्दाख'य व्व वियंभमाणा उट्ठविया नियजणणी । निवडिऊण य चलणेसु जाणावियमप्पाणं । सा वि मं ओलक्खिऊण रोविउं पयत्ता । 'न कालो रोवियव्वस्स' त्ति संठविऊण नीया उत्तरदिसाए जोयणमित्तसंठियं कच्छाभिहाणं गामं । तत्थ य मह पिउमित्तो देवसम्मो नाम बंभणो । तस्स य गेहम्मि ठविऊण समासत्थाए सिट्ठो कुमार ? तुह संतिओ वइयरो सोऊण य मए निरुब्भमाणा वि बहलंसुसलिल- पडिरुद्धलोयणप्पसरा पलावबहुलं च परिदेविउं पयत्ता, अवि य १. ला. सहाइओ ॥ सं.वा.सु. 'खइव्व ॥ Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९३ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः कमलदलदीहलोयण ! लायण्णामयरसोल्ल सव्वंग ! । वरियालुद्धय ! मुद्धय कुमार ! कइया णु दट्ठव्वो ॥११६॥ जणणी वि वच्छ ! कह ते एवंविहदुक्खकारणं जाया । कह सोच्छिसि कढिण कुमार ! संकुले महियलाभोए ॥११७॥ तण्हाए पीडिओ कं वरधणुविरहम्मि वच्छ ! पत्थिहसि । तुह सुमरणेण हिययं, न फुट्टई तं सिलमयं व ॥११८॥ चंडालकुलनिवासो न तहा मह दहइ जह तुहाऽवत्था । वरधणु ! तह वि न सुकयं जमिहं पत्तो पहुं मोत्तुं ॥१॥ ता पुत्त ! वच्च सिग्धं अण्णिससु पहुं ति एव जंपती । संठविउं नमिऊण य इहाऽऽगओ तुम्ह मिलिओ य ॥२॥ एवं च वीसंभनिब्भरं मंतयंताण अइक्कंता काइ वेला ताव य समागओ एक्को गामेहंतो मणुस्सो, भणिउं च पयत्तो-महाभाय ? न कत्थइ हिंडियव्वं तुम्हेहि जेण तुम्ह समाणरूवविसे सं पडिमु लिहिऊण पुरिसजुयलमाणीयं कोसलाहिवइणो निउत्तपुरिसेहि, दंसिऊण य भणियं तेहि-एवंविहरूविणो न एत्थ दोन्नि पुरिसा समागय ? त्ति, एवं च पेच्छिऊण समागओ तयंतियाओ अहं, दिट्ठा य तव्विह रूवोवलक्खिया तुम्हे, संपयं जं वो अभिमयं तं कुणह त्ति भणिऊण विगए तम्मि दोण्णि वि ते वणगहणंतरालेण वि पलायमाणा समागया कोसंबि । तत्थ य नगरबाहिरुज्जाणम्मि दिटुं दोण्हं सिट्ठिसुयाणं सागरदत्त-बुद्धिलनामाणं पणीकाऊण सयसहस्सं संपलग्गं कुक्कुडजुझं । पहओ सागरदत्तकुक्कुडेण बुद्धिलकुक्कुडो । पुणो बुद्धिलकुक्कुडेण सागरदत्तकुक्कुडो पहओ, भग्गो य पराहुत्तं सागरदत्तकुक्कुडो, तयाभिमुहं कीरमाणो वि न समहिलसइ जुज्झिउं । तं च निप्पडिमुहं दट्ठण भणिओ वरधणुणा सागरदत्तो - भो ! कीस एसो सुजाई वि भग्गो कुक्कुडो? तो पेच्छामि णं जइ न कुप्पह तुब्भे । तओ सागरदत्तेण भणियं-भो महाभाग ! पेच्छ, न य मह एत्थ दव्वलोभो किंतु अहिमाणमेत्थावरज्झइ । एत्थाऽवसरम्मि य पलोइओ वरधणुणा बुद्धिलकुक्कुडो । दिट्ठा य चलणेसु निबद्धा लोहसूई । लक्खियं च बुद्धिलेण निहुयं चेव पडिवण्णं वरधणुणो अद्धलक्खं अणुवलक्खं व । साहिओ एस वइयरो कुमारस्स वरधणुणा । कुमारेण वि बुद्धिलकुक्कुडस्स कड्डिऊण सूई भेडिओ सागरदत्तकुक्कुडस्स। पराजिओ य तेण । परितुट्ठो सागरदत्तो पप्फुल्लवयणपंकओ य 'एहि अम्ह गेहं गच्छामो' त्ति भणिऊण ते वि लइऊण संदणम्मि गओ सागरदत्तो नियगेहं । १. ला. नगरिबा ॥ २. ला. हुत्तो सा ॥ ३. ला. “स पुण एसो ॥ Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः तत्थ य ताण तेण गोरवेज्जमाणाणं वोलीणा कइवि वासरा । अण्णया य बुद्धिलपेसिओ दासचेडो समुट्ठविऊण वरधणुं वि वित्तम्मि किंपि भणेऊण गओ । तम्मि य गए वरधणुणा कुमारस्स साहियं जहा-जं तं मह बुद्धिलेण अद्धलक्खं पडिवन्नं तप्पवेसणत्थं चत्तालीससहस्सीओ हारो एयस्स हत्थे पेसिओ, दंसिओ उग्घाडेऊण करंडयं । पलोइओ कुमारेण पलोयंतेण य तत्थ ट्ठिो सनामंकिओ लेहो । तं च दट्ठण 'कस्सेसो लेहो ?' त्ति पुच्छियमणेण । वरधणुणा भणियं-को जाणइ बहवे खलु बंभयत्तनामोवलक्खिया पुरिसा भवंति किमित्थ चोज्जं ? । एवं च जाव परोप्परमालावो वट्टइ ताव तिपुंडमंडियतण समागया वच्छा नाम परिव्वायगा । अक्खयकुसुमाइयं च पक्खिविऊण ताण उत्तमंगम्मि 'पुत्त ! वाससयसहस्सं जीवह' त्ति भणंतीए एकंतम्मि वाहित्तो वरधणू । तेण य समं मंतिऊण किंपि पडिगयाए पुच्छिओ वरधणू कुमारेण जहा-किमेसा जंपइ ? त्ति । वरधणुणा भणियं-"एयाए इमं संलत्तं जहा-जो तुम्हाण बुद्धिलेण रयणकरंडयम्मि हारो पेसिओ तेण सह लेहो समागओ तस्स पडिलेहं समप्पह । मए भणियं-एसो खु बंभयत्तनामंकिओ दीसइ ता साहह तं अणुवरोहेण 'को एस बंभयत्तो ? त्ति । तीए भणियं 'वच्छ सुव्वउ, किंतु न तए कस्सइ साहियव्वं, अत्थि इहेव नयरीए सेट्ठिधूया मयणघरणि व्व रूवाइगणारामग्गा रयणवई नाम कण्णया । सा य आबालभावओ च्चिय चेव मया समं जणियवसंभसब्भावनिब्भरा रहस्सकहापरायणा चिट्ठइ त्ति अण्णया य नाइपभूयदिणगयाए दिट्ठा सा मए पवरपल्लंकगया पल्हत्थतणुलया अणमिसोवलक्खिज्जमाणनयणजुयला पुरओ संकप्पलिहियं पिव पेच्छमाणा किंपि हिययगयत्थं झायमाणी आले क्खलिहिय व्व संठिया । तं च तहाविहं अणणुहूयमवत्थंतरं तीसे दट्ठण पकंपमाणहियव(हिय?)या गयाऽहं तीए समीवं, भणिया य मए-पुत्ति ! रयणवइ ! कि विचितेसिं ? त्ति न किंचि जंपइ । पुणो पुच्छिया । पुणो न किंचि जंपइ । तओ सासंकाए 'किमेयं ?' ति पुच्छिओ परियणो । भणियं च तीए बीयहिययभूयाए नियछायाइ व्व सया पासाणुव्वत्तिणीए पियंगुलइयाभिहाणाए जहा-अज्जे ! अज्जप्पभिइमणाए नियभायबुद्धिलसिट्ठिसागरदत्तसिट्ठीणं सयसाहस्सियपणेणं पवत्ते कुक्कुडयवारे कोउगत्थं गयाए दिट्ठो मयणो व्व पच्चक्खो रूवसंपयाए, पडिपुण्णससि व्व सयलकलासंजुओ अमयमयदंसणीओ समित्तो कोइ जुवाणओ, तप्पभिइमेसा न पूएइ देव ए नाऽऽराहए गुरुयणं, नाभासए सहियणं, न कीलए विचित्तकीलाए, न पडि[य]ग्गए सुयसारिगाईणि, तग्गय-हियया तक्कहाखित्तमाणसा एवं चिट्ठइ ।' तओ 'कामवियारो एसो अओ लज्जाए न जंपइ' त्ति जाणिऊण मए तहा तहा भणिया जहा जंपियमणाए-भयवइ ! तुमं मम जणणी सही गुरूदेवया, तं नत्थि किंचि जं तुह पुरओ न साहिज्जइ, परं जो Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः ९५ एयाए पियंगुलइयाए कहिओ सो जइ मह भत्ता न भवइ तो निच्छएणं मरणं सरणं ति । एयमायण्णिऊण मए भणियं-पुत्ति ! धीरा होहि तहा तहा करिस्सामि जहा तुह तेण सह थोवदिणेहिं चेव संजोगो भवइ । तओ सा पढमजलहरबिंदुसित्त व्व मेइणी निव्वुया जाया । अईयदिणम्मि य साहियं मए तीए जहा-पुत्ति ! दिट्ठो सो मए तुह हिययानंदणो बंभयत्तकुमारो । तीए जंपियं-भयवइ ! तुह चलणप्पसाएणं सव्वं सोहणं भविस्सइ, परं तच्चित्तवियाणणत्थं एयं हारं रयणकरंडए काऊण बंभयत्त नामंकियं लेहं च पेसेहि । अणुट्ठियं च तं मए कल्लं ।' ता कुमार ! एसो लेहवइयरो । मए वि समप्पिओ तीए पडिलेहो ।" एवं च वरधणुणा साहियं निसामिऊण अदिट्ठाए वि रयणवईए पवडिओ कुमारस्स तदुवरि दंसणाभिलासो, वियंभिओ मयणसंतावो तइंसणसमागमोवायमण्णिसमाणाण गयाणि कइवि वासराणि । अण्णदियहम्मि य संभंतेण बाहिराओ समागंतूण साहियं कुमारस्स वरधणुणा जहा-कुमार ! इह नेयरिसामिणोणा कोसलाहिवेण अम्हाण गवसणत्थं पेसिया पच्वइया पुरिसा, पारद्धो इमिणा उवक्कमो, पयत्तो नयरीए हलहलारवो । सुणिऊण एवं वइयरं सागरदत्तेण गोविया भूमिहरयम्मि समागयाए वरयणीए भणिओ अणेहिं सागरदत्तो जहा-अम्हे इओ अवक्कमामो तहा करेहि । तेण वि सण्णद्धबद्धकवएणं संदणमारोविऊण नीया थोवं भूमिभागं । तओ अणिच्छमाणं पि तं नियत्तिऊण जाव अग्गओ वच्चंति ताव उज्जाणजक्खालयसमीवे नाणाविहपहरण पडिपुण्णरयणमयरहवरारूढा दिट्ठा तियसविलयाणकारिणी समारूढन-वजोव्वणा एगा कण्णया। तओ तीए सायरमब्भुट्ठिऊण भणियं-किमेत्तियाओ वेलाओ तुम्हे समागय ? त्ति । तमायण्णिऊण कुमारेण जंपियं-सुंदरि ? के पुण अम्हे ? तीए भणियं-सामि ? तुब्भे खु बंभयत्तवरधणुणो । तेण भणियं-कहमेयं तए नायं ? तीए भणियं "जइ एवं ता अवहिएण सोयव्वं, आसि इहेव नयरीए महा धणो धणप्पवरो नाम सिट्ठी । तस्स रयणसंचया नाम पणइणी । जाया य तीसे अट्ठण्ह पुत्ताणमुवरि अहं वल्लहा जणणि-जणयणाणं । अइक्कंता उ बालत्तणाओं अण्णया य विब्भमेक्ककुलहरे सयलजणा-भिलसणीयंम्मि संपत्ते जोव्वणे अपरितुस्समाणा य सामण्णवरेसुं सव्वुत्तमवरपावणत्थं समाढत्ता एयं जक्खमाराहिउं । असाहारणभत्तितुटेण पच्चक्खमेव भणिया अहं जक्खेण-पुत्ति ! तिसमुद्दपज्जंतपुहइनाहो मह वयणप्पसाएण बंभयत्तो ते भत्ता भविस्सइ । मए भणियं-कहं पुण सो मए नायव्वो ? जक्खेण भणियं-पवत्ते बुद्धिल-सागरदत्तसेट्ठिकुक्कुडयजुज्झे अणण्णसरिसागिई सयललक्खणसमग्गो सिरिर्वच्छलंछिओ पहाणेक्कसहाओ जो समागमिस्सइ सो नियभत्त त्ति मंतव्वो, मह भवणपासट्ठियाए य तेण सह पढमो मीलगो भविस्सइ त्ति । १. ला. नयरसा ॥ २. ला. "वच्छालंकिओ ॥ Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः ता सामि ? लक्खणेहि जक्खाएसाओ तह य तं नाओ । तुज्झ पउत्तिवियाणणभएण सिटुं न अण्णस्स ॥१२१॥ तेण सयं चिय भण्णसि पहुत्तलज्जाउ परिहरेऊण । तुह विरहजलणतवियं मं संगजलेण निव्ववसु ॥१२२॥ एवं च तव्वयणमायण्णिऊण वियंभियाणुरायपसरमब्भुवगयमणेण । समारूढो तीए रहवरं पुच्छिया य सा कुओहुत्तं गंतव्वं ? रयणवईए भणियं-अत्थि मगहापुरम्मि मह पिउणो कणिट्ठभाया धणावहो नाम सिट्ठी, सो उ तुम्हाण मुणियवइयरो अवस्समागमणं बहुभण्णिस्सइ, ता ताव तत्थ गमणं कीरउ, उत्तरकालम्मि पुणो जहिच्छा तुम्हाणं तओ रयणवइवयणेण पयट्टा तत्तोमि मुहं । ठिओ सारहित्ते वरधणू । गामाणुगामं गच्छमाणा निग्गया कोसंबिजणवयाओ, पत्ता य निबिडगिरिकूडसंकडिल्लं महाडइं । तत्थ य कंटयसुकंटयाभिहाणा दुवे चोरसेणावइणो । ते य दट्ठण रयणनियरोवभूसियं रहवरं अप्पपरिवारा य वरजुवइसमण्णिया ते 'हेला सज्झ' ति कलिऊण पयत्ता अभिद्दविउं, कहं ? दट्ठोटुभीमफुडभिउडिभंगभंगुरियभालभंगिल्ला । हण हण हण त्ति गद्दब्भसद्दपम्मुक्कहकरवा ॥१२३॥ आयण्णकड्डिओमु ककढिणगुणघायघडियटकारा । विधग्यिपउरनारायभल्लवावल्लसंघाया ॥१२४॥ हेलाइ च्चिय अह कुमरमुक्कबहुसत्थपहरविद्दविया । • सूरकराहयतिमिरं व झत्ति चोरा अह पणट्ठा ॥१२५।। भग्गेसु य तेसु भणियं वरधणुणा जह- कुमार ? दढं परिस्सं ता तुम्हे मुहत्तंतरं निद्दासुहमिहेव रहवरट्ठिया सेवह त्ति । पडिवज्जिऊण य णुवण्णो समं रयणवईए । ताव य पहायाए रयणीए गिरिनई संपाविऊण थक्का तुरंगमा । पडिबुद्धो य एसो उट्ठिओ वियंभमाणो। पलोइ याई पासाइं न दिट्ठो वरधणू । पाणियनिमित्तमोइण्णो त्ति वाहित्तो ससंभमं । पडिवयणमलहमाणेण य पलोइयं रहधुरग्गं, दिटुं च तं बहललोहियालिद्धं 'वा वाइओ वरधणु' त्ति कलिऊण गरुयवियंभमाणसोगप्पसरो 'हा ! हओ मि' त्ति भणमाणो निवडिओ रहुच्छंगे । लद्धचेयणो य 'हा ! भाय ! वरधणु' त्ति भणमाणो पलावे काउमाढत्तो। तओ भणिओ रयणवईए-सामि ! न सो सोयणिज्जो, जओ भणियं ते पहु ! मया वि न मया, अहवा ते च्चेव नवर जीयंति । मरणेण जाण निव्वहइ सामि-सुहि-मित्तकज्जोहा ॥१२६।। १. ला. तुब्भे ॥ २. ला. जीवंति ॥ Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः मरणं पि ताण छज्जइ जयम्मि असमं महाणुभावाणं । कुंदिंदुकासविसओ जाण जसो भमइ भुवणम्मि ॥१२७।। तस्सेय नवर सहलं जयम्मि मरणं महाणुभावस्स । जस्स पहू जणियगुणाणुरायसोयं समुव्वहइ ॥१२८॥ इय सव्वस्स वि मरणे साहीणे किं न तस्स पज्जत्तं । जस्स पहु-मित्त कज्जुज्जयस्स संपडइ मरियव्वं ॥१२९॥ एवं च भणमाणीए मोत्तूण सोगप्पसरं भणियाऽणेण रयणवई जहा-सुंदरि ! न नेज्जइ फुडं मओ किं वा जीवइ त्ति, ता अहं मग्गओहुत्तं वच्चामि अण्णेसिउं । तीए भणियंअज्जउत्त! न एस अवसरो पच्छाभिमुहं गच्छियव्वस्स, कुओ ? जेणाऽऽहमेगागिणी, चोरसावयाइण्णं च भीसणमरण्णं, कलत्ताभिभवणं च परिभवट्ठाणं माणिणो, इह नियडवत्तिणा य वसिमेण भवियव्वं जेण परिमलियकुसकंटया दीसइ वणत्थली । पडिवज्जिऊण य तं सो पयट्टो । पत्तोय मगहाविसयसंधिसंठियं एक गामं । तत्थ पविसमाणो दिवो सभामज्झट्ठिएण गामठकुरेण, 'न एसो सामण्णो' त्ति भावितेण नीओ य सगिहं । दिण्णमावासट्ठाणं । उवविट्ठो य पुच्छिओ ठकुरेण-महाणुभाव ! ससोगो विय लक्खिज्जसि ? बंभयत्तेण भणियं-एवमेयं, जओ मह भाया चोरेहि सह जुज्झंतो न नज्जइ किंपि पाविओ, ता मए तयन्नेसणनिमित्तं तत्थ गंतव्वं ति । ठक्कुरेण भणियं - अलं खेएण जइ इहाडवीए भविस्सइ तो अहं लभिस्सामि त्ति । भणिऊण पेसिया नियपुरिसा। गयपभुच्चा गएहिं य सिटुं तेहिं जहा-न अम्हेहिं कोइ कहिंचि सच्चविओ, केवलं पहारनिवडिओ एस बाणो पाविओ त्ति । तव्वयणायण्णणाओ य 'नूणं विणिवाइओ' त्ति परियप्पिऊण गुरुसोगाउलिज्जंतमाणसस्स समोत्थरिया सव्वरी । निवसिओ दइयाए समं । ताव य एक्कजामसेसजामिणीए सहसा तम्मि गामम्मि निवडिया चोरधाडी । साय कुमारपहारकदुयाविया भग्गा परम्मुहा अभिणंदिओ य सयलगामाहिट्ठिएणं गामपहुणा । गोसम्मि आउच्छिऊण गामठकुरं तत्तणयसहाओ पत्थिओ रायगिहं । पत्तो जहाणुक्कमेणं । तत्थ य नयरबाहिरियाए एक्कम्मि परिव्वायगासमेठविऊण रयणवइं जाव तत्थ पविसइ ताव पेच्छइ एक्कम्मि महापासाए तवियतवणिज्जपुंजुज्जलदेहाओ णवजोव्वणुद्धराओ कयफारसिंगाराओ दोण्णि नारीओ भणियं च ताहि-जुत्तं नाम भत्ताणुरत्तं जणं मोत्तुं एवं परिब्भमिउं ? कुमारेण भणियं-को अणुरत्तभत्तो ? केहि वा चत्तो ? कोवा अहं ? ति । ताहि भणियं-आगच्छह ताव वीसमह मुहत्तगं । तओ पविट्ठो सो । कयण्हाणभोयणा . १. ला. नज्जए फुडं किं वा मओ ॥ २. ला. कहं ॥ मूल. २-१३ Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः इसयलवावारस्स सुहासीणस्स साहि उं पवत्ताओ-महाभाग ! सुव्वंउ जमेत्थ भणियव्वं अत्थि रयणमयतुंगसिहरग्गसंठियजिणाययणभूसिओ सुरसिद्धमिहुणरमणट्ठाणं सयलविज्जाहरनिवासो रुप्पमओ वेयड्डो नाम पव्वओ । तस्स य दाहिणसेढीए सिवमंदिरं नाम नयरं । तम्मि य पणमंतमहंतविज्जाहररायमउलिमालोमालियचलणजुयलो जलणसिहो नाम राया । तस्स य अच्चं तहिययदइयाए विज्जुसिहाए देवीए नट्टम्मत्ताभिहाणपुत्ताणुजायाओ अम्हे दुवे धूयाओ । पत्ताओ य जोव्वणं । अण्णया य अम्ह जणओ पवरपासायतलम्मि अग्गिवाय-अग्गिसिहाभिहाणेहिं खयरमित्तेहिं अम्हाहि य समयं विविहसंकहाहिं चिट्ठइ । ताव य पेच्छइ नियनियदेहप्पहाजालुज्जोवियनहंगणा भोयं विविहजाण विमाणारूढं सुरसमूहं अट्ठावयाभिमुहं संपट्ठियं । तं च दट्टण 'अम्हे वि चेइयवंदणत्थं वच्चामो' त्ति भणमाणो अम्हेहिं खयरमित्तेहिं य सह विमलकरवालनिम्मलं समुप्पइओ गयणयलं । तओ पत्ताणि य अट्ठावयं । दिटुं च विविहरयण-मणिसिलासंघायनिम्मियं सिद्धाययणं । वंदियाओ तत्थ भयवंतपडिमाओ निव्व ते य मज्जणपूयण-पेक्खणाइए सुरेहिं दट्टण तं थोउं पयत्ताणि, कहं - दुद्धरपंचबाणबाणावलिविहडणवज्जफलहयं, निरुदुलंघभवसायरनिवडियजणसंताणफलहयं । अइपइंड[दंड]महमोहनरेसरमाणमलणयं , नमिमो जिणवराण पयपंकयमहतरुगहणजलणयं ॥१३०॥ एवं च थोऊण निग्गंतूण सिद्धाययणाओ जाव एगत्थ किर उवविसामो ताव रत्तकंकेल्लिबहलदलच्छायातलोवविटुं विगयरइरागप्पसरं कोह-मय-माण-मायामहणं निरवज्जसंजमुज्जोयसज्जियमई दुट्ठिदियदलियउद्दामदप्पपसरं दुट्ठट्ठकम्मनिट्टरनिट्ठवणकयचेट्ठियं संसारवोच्छेयजणियमच्छरुच्छाहनिच्छयं दिटुं चारणसमणजुयलं उवसप्पिऊण य भावसारं उवविट्ठाणि तदंतिगे । पत्थुया ताण मज्झाओ एक्केण धम्मदेसणा जहा-"खणभंगुरं सरीरं, सरयब्भविब्भमं जीवियं, तडिविलसियाणुयारि जोव्वणं, किंपाकफलोवमा भोया, संझारायसमं विसयसोक्खं, कुसग्गजललवचवला लच्छी, सुलहं दुक्खं, दुलहं सुहं अणिवारियप्पसरो मच्चु त्ति एवं ववत्थिए छडिज्जउ मोहप्पसरो, रुभिज्जउ सयलिंदियत्थो भाविज्जउ संसारसरूवं, कीरउ जिणवरभणिए धम्मे मणो त्ति ।' तओ एयमायण्णिऊण महियलमिलंतभालवटेण पणमिऊण मुणिवरे 'भयवं ? एवमेयं' ति भणिऊण मुणि गुणाणुक्कित्तणपरायणा जहागयं पडिगया सुरगणा । लद्धावसरेण य भणियं अम्हाण पिउमित्तेण जहा-भयवं ! एयाणं पुण बालियाणं को भत्ता भविस्सइ ? तेहिं भणियं Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः ९९ एयाओ भाइवहयस्स पणइणीओ भविस्संति । तओ एयमायण्णिऊण चिंतावससामलियमुहमंडलो राया अहोमुहं संठिओ । एत्थावसरम्मि य भणियं अम्हेहिं जहा-ताय ? संपयं चेव साहियं मुणिवरेहिं संसारसरूवं, सिट्ठा विसयपरिणई, ता अलमम्हाण एवंविहविवायावसाणेण विसयसुहेणं । पडिवन्नं च तं ताएण । एवं च वल्लहयाए भाउणो सिढिलियनियसरीरसुहप्पसराओ तस्स चेव मज्जण-भोयणाईयं सरीरट्ठिइं चिंतयंतीओ चिट्ठम्ह जावऽण्णदिणम्मि तेण अम्ह भाउणा भमंतेण पुहइमंडलं दिट्ठा तुम्ह माउलगस्स धूया पुप्फवई नाम कण्णया । तत्तणयरूवाइसयसोहग्गऽक्खित्त माणसो तं अवहरिऊणाऽऽगओ । तद्दिट्ठिमसहमाणो य विज्जं साहिउं गओ तम्मि गिरिनिउंजे जत्थ तं तुम्हेहिं निवाडियं वंसेहिं सद्धि सिरं । अओ उवरि तुम्हे मुणियवुत्तंता । ता हो महाभाग ! तम्मि अवसरे तुम्ह सयासाओ समागंतूण पुप्फवईए भणियाओ अम्हे सामपुव्वयं साहिओ भाउणो वुत्तंतो । तमायण्णिऊण य वियंभिऊब्भडसोगपसराओ बहलंसुसलिलमइ- लियकवोलमंडलाओ रोइउं पयत्ताओ । पुणो कह कहवि विणिवारियाओ तीए, भणियाओ य-'हला ! एरिसो चेव एस संसारो जओ भणियं संसारदुग्गममहाडई भमिरस्स जंतुहरिणस्स । कस्स न जायइ भीसणकयंतबाहाओ मरियव्वं ? ॥१३१॥ कस्स व समग्गसयलिंदियत्थसंजणियसयलसोक्खाइं । जायंति निययकम्माणुभावओ नेय मणुयस्स? ॥१३२॥ अच्चंतनेहनिब्भरपरव्वसाऽऽसंघजणियपसरस्स। इट्ठवियोगाजायंति दिव्ववसओ न कस्सेह ॥१३३॥ इय सुंदरीओ कलिउं असारसंसारकारणमियाणि ।। सिढिलिज्जउ सोगो सुलहमेरिसं सव्वसत्ताण ॥१३४॥ ता परिचइऊण सोगं, सुमरिऊण य जं तुब्भे चेव मह सिटुं मुणिवयणं पडिवज्जिज्जउ अज्जउत्तो' त्ति । तमायण्णिऊण य पत्ताऽणुरायपसराहिं पडिवण्णे अम्हेहि अइरहसपरवसाए अण्णा चेव संकेयपडाया चालिया तीए । तप्पभिई अणेगठाणेसु वि तुमं गविट्ठो न य दिट्ठो । अज्ज पुण अप्पतक्कियहिरण्णवुट्ठि व्व जायं तए सह दंसणं । ता महाभाग ? सुमरिऊण पुष्फवइवइयरं कीरउ अम्हाण पाणिग्गहणेण पसाओ । तओ गंधव्वविवाहेण विवाहिऊण तं रयणि तत्थेव ताहिं समं पसुत्तो । गोससमयम्मि य भणियाओ तेण एवं-गच्छह ताव तुब्भे पुष्फवइसमीवं, तीए समं ताव अच्छियव् जाव मे १. ला. 'मुहो सं ॥ २. ला. ओ तेण मणु ॥ ३. सं.वा.सु. सोगो सव्वमे || ४. सं.वा.सु. महाणुभाग । Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः रज्जलंभो होइ त्ति । ‘एवं चेव कीरइ' त्ति भणिऊण गयाओ ताओ । गयासु य तासु जाव पलोएइ पासाई ताव न तं धवलहरं नेय सो परियणो । चिंतियं च तेण - एसासा विज्जाहरीमाया, अण्णहा कहमेयं इंदयालविब्भमं? ताण विलसियं । तओ सुमरियं रयणवईए, तयन्नेसणनिमित्तं च गओ आसमाभिमुहं जाव न तत्थ रयणवई नेय अण्णो कोइ त्ति । तओ 'कं पुच्छामि ?' ति कलिऊण पलोइयाइं पासाइं, न य को वि सच्चविओ एत्थाऽवसरम्मि य वियंभिओ सोगप्पसरो, पवडिओ रणरणओ, पसरिया अरई । 'अहो ! महं विसमदसावत्थानिवडियस्स तहा रयणवईविओयदुक्खं बाहइ जहा वरधणुमरणं ति, भणियं च - दइयाविओयदुक्खं पुहईलंभो य नेय नासेइ । ववगयरज्जदुहं पुण सुमित्तलंभो पणासेइ ॥१३५॥ एवं च चितंतस्स समागओ एक्को कल्लाणागिई नाइवयपरिणओ पुरिसो, पुच्छिओ य सो तेण-महाभाग, एवंविहरूव-नेवत्थविसेसा अईयदिणम्मि अज्ज वा न दिट्ठा एत्थ एक्का पवरमहिलला ? तेण भणियं पुत्तय ! किं सो तुमं रयणवईए भत्ता ? तेण भणियंआमं । इयरेण जंपियं-"कल्लं अवरण्हवेलाए विमुक्ककलुणदीहनीसणं रुव्वमाणी निसुया मए, अवि य हा ! सामिय ! कत्थगओ ऽसि उज्झिउं मं अणाहियं एक्कं । सयणजणविप्पहूणं पिययम ! विण कारणा रुइरिं ? ॥१३६॥ . तुज्झ विओए पिययम ! अहियं उत्थरइ जणियभयपसरो । छिदं दटुं नरनाह ? दुसहसोओ पिसाओ व्व ॥१३७॥ तुज्झ कयम्मि सहियणो सयणो तह परियणो कुलं सीलं । पिइ-माइ-भाइवग्गो तणं व कलिऊण मुक्काइं ॥१३८॥ एहि पसायं काऊण कीस कुविओऽसि मह अउण्णाए । जइ वि मए अवरद्धं तहवि तु तुम्हेहिं खमियव्वं ॥१३९॥ एवं च रुवमाणी दट्ठण पुच्छिया मए पात्त ? का तुमं? किंवा रोवसि ? कहिं वा गंतव्वं ? । तओ तीए दरभणियम्मि चेव पच्चभियाणिऊण मए भणिया (ग्रन्थाग्रं ९०००) जहा-तुमं मह च्चिय नत्तुई होसि । तक्कहणमुणियवुत्तंतेण यमए सिटुं तीसे चुल्लपिउणो गंतूण । तेणाऽवि जणियविसेसायरं पवेसिया नियमंदिरं । अण्णेसिया य तुब्भे नेय कहिं वि १. ला. “दीहनिस्सणं ॥ २. ला. तुब्भेहि ॥ Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः १०१ उवलद्धा । ता संपयं पि सोहणं कयं जमागय' त्ति भणिऊण नीओ तस्स गेहं । कयसव्वायरोवयारं च रयणवईए सह वत्तं पाणिग्गहणं । ठिओ तीए सह विसयसुहमणुहवंतो । अण्णया य वरधणुणो 'मयकिच्चं' ति कलिऊण पयप्पियं भोयणं बंभणाणं भुंजंति बंभणा जाव सयं चेव वरधणू जणियबंभणवेसो भोयणनिमित्तमागओ भणिउं च पयत्तो जहा-साहिज्जउ तस्स भोज्जकारिणो 'जइ मज्झ भोयणं पयच्छह ता तस्स परलोगवत्तिणो सयं चेव वयणोयरम्मि उवणमइ' त्ति । सिटुं च तेहिं तमागंतूण बंभयत्तस्स। विणिग्गओ सेरहसं । पच्चभियाणिऊण पहरिसविसट्टपुलयमवयासिओ। पविट्ठा मंदिरं । असद्दहणीयमवत्थंतरमणुहवमाणा ठिया मुहुत्तंतरं ति । निव्वत्तमज्जण-भोयणावसरम्मि य पुच्छिओ वरधणू कुमारेण निययपउत्तिं साहिउं पयत्तो जहा-"तीए रयणीए निद्दावसमुवगयाणं तुम्हाणं अभिउत्तो ऽहं चोरेहिं कुडंगंतरट्ठियतणुणा समाहओऽहमेक्केण बाणेण । पहारवेयणापरायत्तत्तणओ निवडिओ महियलम्मि । अवायभीयत्तणओ न साहियं तुम्ह । वोलीणो रहवरो तमंतरालं । अहर्मवि परिनिबिडतरुवरंतरालमग्गेण सणियसणियमवक्कममाणो कहकहवि संपत्तो तं गाम जत्थ तुम्हे निवसियाई साहिया तग्गामाहिवइणा तुम्ह पउत्ती । समुप्पण्णहिययाणंदो य संपत्तो इहई । पउणो पहारो । भोयणवत्थणाववएसेण य समागओ इहइं जाव दिट्ठा तुम्हे' त्ति । एवं अच्चंताणुरत्ताणं जंति दियहा । अण्णदियहम्मि य समालोचियं तेहिं जहा-कित्तियं पुण कालं पमुक्कपुरिसायारेहि अच्छियव्वं, भणियं च आवइपडियस्स वि सुपुरिसस्स उव्वहइ तहवि ववसाओ। विहडियववसायं पुण लच्छी वि न महइ अहिलसिङ ॥१४०॥ एवं च चिंतयंताणं निग्गमणोवा य ऊसुयमणाणं पत्तो य सयलजणजणियउम्माहओ वसंतसमओ । तत्थ वि वढ्ते मयणमहूसवे पवत्ते निब्भरकीलारसे अयंडम्मि चेव नियकरयलगलत्थल्लियनिवाडियाऽहोमुहाऽऽहोरणो दढविणिद्दलियरुंदंऽदुयसंखलवलंतचलणो मयपरव्वसत्तणओ भंजिऊणाऽऽलाणखंभं वियरिओ रायहत्थी विणिग्गओ रायंगणाओ । तओ समुच्छलिओ हलाहलारवो, विरसमुक्कूययंतो भंजिऊण कीलागोट्ठीओ दिसोदिसिं पलाणो जणवओ। एत्थंतरम्मि य तवणिज्जपुंज्जुज्जलच्छविनियदेहसोहाविणिज्जियामरसुंदरी भयभरुक्कंपिरोरुपरिगलिय गइप्पयारा संभमुन्भंततारतरललोयणजुयला 'कत्तो सरणं ?' ति मग्गमाणी पडिया करिणो दिट्ठिगोयरम्मि एक्का उत्तमजोव्वणा कन्ना धाविओ तम्मुहं करी । दरगहियाऽणेण सा । तओ उक्कूइयं परियणेणं, पयत्तो हाहारवो । एत्थंतरम्मि य हक्किओ करी १. ला. सहरिस ॥ २. सं.वा.सु. मवि तरु' ॥ ३. ला. उम्मत्तजो ॥ Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः कुमारेण । तं मुत्तूण कन्नयं चलिओ तम्मुहं । तओ हत्थिसिक्खापओगेहिं समाहणिऊण विलग्गो कंधराभोए निबद्धमासणं कुंभयले करप्फालणंकुसताडणाईहि वसमाणीओ रायहत्थी । एत्थावसरम्मि य समुच्छलिओ साहुवाओ 'जयइ कुमारो' त्ति पयट्टो बंदिसद्दो । कुमारेण वि नीओ आलाणखंभे करी । समप्पिओ पीलुवइणो । ताव य समागओ तमुद्देसं नरवई । दट्ठण सयललक्खणलंछियंगं कुमारं अणण्णसमचेट्ठिउप्पण्णविम्हएणं भणियं-को पुण एसो महाणुभावो ? तओ भणियं वरधणुणा साहति असिटुं पि हु चरियाई कुलं महाणुभावाणं । किं कहइ केयई निययपरिमलं भमरनिलयाणं ? ॥१४१॥ एत्थाऽवसरम्मि य साहिओ रयणवईए चुल्लपिउणा सव्वो वइयरो । तओ तुटेण राइणा भणियं को सीहकिसोरयं मोत्तूण अण्णो मत्तगए निवारेइ ?, ता सोहणमणुट्ठियं जमिहाऽऽगओऽसि, नियनिहेलणं चेव तुह एयं ति । भणिऊण महाविच्छड्डेण परिणाविओ नियधूयं । सुहेण य अच्छंताण तत्थ अण्णदिणम्मि समागया एका परिणयवया नारी, भणियं च तीए-'कुमार ? अत्थि एत्थ वेसमणसत्थवाहधूया सिरिकंता नाम जा य तुमे हत्थिसंभमाओं मोइया । सा य मए बालभावाओ आरब्भ पालिया । तीए य हथिभ ओम्मुक्काए 'पाणदायगो' त्ति कलिऊण पलोइओ तुमं सव्वंगं । तओ तप्पभिई चेव विमुक्कसयलिंदियवावारा पवरजोयिणि व्व निच्चलनिप्पंदा मोणमालंबिऊण थक्का, आलत्ता वि सहियणेणं न किंचि जंपइ । तओ मए अणेगवयणविण्णासेहिं भणिया । तहा वि न जंपइ । तओ मए भणियं-जइ तुमं एरिसी असब्भाविणी तो किं तुह पासे ठियाणं ? ति भणमाणी उट्ठिया । तीए सविलक्खहसियं काऊण भणियं-नत्थि किंचि तुज्झ अकहणीयं, परं लज्जा एत्थाऽवरज्झइ, जं पुण सेव्वं(?) जेणाऽहं हत्थिसंभमाओ मोइया सो जइ मह भत्ता न भवइ ता निच्छएण न समत्था पाणे धारिलं ति । तं च मए सिटुं तज्जणयस्स। तेणाऽवि पेसियाऽहं तुम्ह समीवे । ता देहे तीए सरणं ति । कुमारेण वि पडिवज्जिऊण तव्वयणं परिणीया महाविभूईए सा । वरधणुणो वि सुसेणामच्चेण नियधूयं दाऊण कयं वीवाहमंगलं तओ तत्थ विचित्तकीलापरायणाणं उच्छलिया सव्वत्थ पसिद्धी । पेसिओ दीहराइणा मगहाहिवइणो दूओ जहा-अप्पिज्जंतु बंभयत्त-वरधणुणो । पडिवण्णं च तं तेण तस्स पुरओ, पुण तेहिं समं मंतिउं पयत्तो-भो ? किमित्थ करणीयं ? ति । तओ कुमारेण भणियं-किमित्तियाए चिंताए ?, अम्हे वाणारसिं कडगराइणो समीवे गच्छि १. सं.वा.सु. 'यलफालण || २. सं.वा.सु. एयाव' ।। ३. ला. एत्यंतरम्मि ॥ ४. ला. तुज्झ ॥ ५. अत्रस्थाने सम्भं तथा सझं इति पाठभेदौ लभ्येते ॥ ६. ला. देहि ॥ ७. सं.वा.सु. रसिं पवेसेह । तहा । काऊण, पविसि ॥ Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः १०३ स्सामो त्ति । भणिऊण गया वाणारसिं । पविसिऊण य वरधणुणा साहिया सव्वा पउत्ती । तं च सोऊण सरहसं निग्गंतूण सम्मुहं महाविभूईए कडगराइणा पवेसिओ कुमारास । दिण्णा य चउरंगसेणासमण्णिया कडगवई नाम नियधूया । दूयजाणाविया य समागया पुप्फचूलकणेरुदत्तरायाणो सह महामच्चधणुणा, अण्णो य चंदसीह-भगदत्त-तुडिदत्त-सीहरायप्पमुहा रायाणो । अहिसित्तो वरधणू सेणा हिवई, पेसिओ दीहराइणो उवरि, पच्चासण्णीहूओ य अणवरयपयाणएहिं । तं च नाऊण पेसिओ दीहराइणा कडगराइणो दूओ, पत्तो य भणिउं पयत्तो जहा एक्कग्गामपवुत्थं पि सज्जणा बंधवं व मण्णंति । किं पुण सहजायाईचउविहमित्तीए जं मित्तं ॥१४२॥ तं पुण नियजाईए दोसेणं सरिसरमिय-जिमियाई । वीसारिऊण सहसा कह संपइ वेरिओ जाओ ? ॥१४३॥ एयमायण्णिऊण जंपियं कडगराइणा जहा"सच्चमिणं जं मित्ता अम्हे चउरो वि बंभनिवसहिया । सह जाया सह वड्डिय सह रमिया सह समुव्बूढो ॥१४४॥ परलोगगए बंभे तुज्झ पहूं दूय ! जोग्गकलणाए । बंभनराहिवतणयं बालं परिवालिङ मुक्को ॥१४५।। नवरि न तं चिय एकं रज्जं अंतेउरं पुरवरं च । तुह पहुणा पालंतेण दूसियं दूय ! नियगोत्तं ॥१४६॥ ता भो दूय ? परमहिला सामण्णा वि ताव वज्जणिज्जा किं पुण मित्तभज्जा ? तेण पुण सव्वं पि नियचिट्ठियमगणिऊण अम्हे चेव उवलद्धा ?, तो किमेइणा ?, कुणह संपयं जं नियचित्ताभिरुइयं ति । भणिऊण विसज्जिओ दूओ । सयं च सव्वसामग्गीए पत्तो वरधणुसयासं । दीहो वि दूयवयणमायण्णिऊण । 'न अण्णो उवाओ' त्ति भावतो विणिग्गओ सवडम्मुहो, पवत्तमाओहणं, अवि य तिक्खखरक्खुरउक्खयखमायलेणं तुरंगसेण्णेणं । गलगज्जियरवबहिरियनहेण मायंगनिवहेण ॥१४७।। वरसत्थनियरपूरियधयवडधुव्वंतरहसमूहेण । लल्लक्कहक्कबुक्कारपउरपाइक्कचक्केण ॥१४८॥ १. सं.वा.सु. “या । एयजाणा' || २. सं.वा.सु. "ढा ॥१४४॥ भो दूयय ! एवं ते तुज्झ ॥ Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः आवरियं सव्वतो पसरियखयकालजलहिसरिसेण । सिरिबंभयत्तसेण्णं दीहनरिंदस्स सेण्णेण ॥१४९॥ अह खणमित्तेण तओ अभग्गचित्तं पि गरुयपहरहयं । भग्गं कुमारसेण्णं बलेण सिरिदीहनरवइणो ॥१५०॥ भज्जंतं दट्ठणं कुमरो रणरहसपुलइयसरीरो । आसासिय निययबलं वरिसइ सरनियरधाराहि ॥१५१॥ तस्स सरनियरधारासमाहयं बहलरेणुपडलं व । जलधारानिहयं पिव नटुं अह दीहसेण्णं ति ॥१५२॥ तं च तारि नीसाहारं निययबलं भग्गंतं दट्ठण र रे मह पुरओ ठाहि' त्ति भणंतो ठिओ सवडम्मुहो दीहराया । तं च दट्ठण चिरसंचियवियंभियकोवानलेण वि भणियं बंभयत्तेण, अवि जं अम्हाण परोक्खे मह पिउरज्जं इमं तए भुत्तं । तं.इण्हि मोत्तूणं वच्चसु मुक्को मए राय ॥१५३॥ तओ भणियं दीहराइणा वणि-बंभणाण वित्ती कमागया न उण रायतणयाण । विक्कमभोज्जा पुहई सामेणं मुच्चइ कहण्णु ? ॥१५॥ एयं चाऽऽयण्णिऊण कोवानलजालाकरालियवयणमंडलेण छाइओ दीहो बंभयत्तेण सरवरिसेण । तेण वि तमद्धयंदेहि निवारिऊण विमुक्कं दुगुणतरमियरस्स । कुमारेण वि तमद्ध वहे चेव छिण्णं । एवं च परोप्परसत्थनिवारणेण जुझंताणमंतरं लहिऊण कुमारेण सहओ ससारही विद्धो सोलसहिं बाणेहिं दीहराया । तओ तेण रूसिऊण सेल्ल-वावल्ल-भल्लसब्बलाइयं विमुक्कमपरिमेयं सत्थनियरं । तं च दट्ठण बंभयत्तऽहिट्ठायगसुरेहिं 'न एयमण्णपहरणसझं' ति कलिऊण समप्पियं करयले चक्कं, अवि य उल्लसियजलणजालाकलावकवलियनहंतरालिल्लं । दीहनिवस्स वहट्ठा तं मुक्कं बंभयत्तेण ॥१५५॥ तेण वि य तस्स सीसं छिण्णं विणिवारिऊण सत्थो हं । बारसमो जयइ इमो चक्की सिरिबंभयत्तो त्ति ॥१५६॥ १. सं.वा.सु. "हारं भ' ।। २. ला. ठाहि पाहि त्ति ॥ ३. सं.वा.सु. अलसियज ॥ Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०५ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः तओ पविट्ठो महाविभूईए कंपिल्लपुरे । साहियं पुव्वचक्कवट्टिकमेण छक्खंडं पि भरहं। निव्वत्तिओ दुवालससंवच्छरिओ रज्जाभिसेओ । तओ चउसट्ठिसहस्संतेउरमज्झगओ पुव्वनियाणोवलद्ध थीरयणो उदारे चक्कवट्टिभोगे भुंजिउं पवत्तो । अण्णया कयाइ पवत्ते निब्भरे पिच्छणयकीलारसे उग्घाडिऊण करंडयं एगाए दासचेडीए अणेगसुय-मयणसालिगा-कोइलाइभत्तिचित्तो समप्पिओ एगो राइणो पुष्फदामगंडूसओ तं च दट्ठण चिंतिउं पवत्तो राया कहिं मण्णे एरिसओ मए दिट्ठपुव्वो त्ति । ईहापोहमग्गणगवेसणं करेमाणो संजायपुव्विल्लपंचाईसरणो देवलोगे मए एरिसो दिट्ठपुव्वो' त्ति समुप्पण्णहिययसंघट्टो मुच्छावसेण निवडिओ सीहासणाओ वाउदाणाइणा समासासिओ परियणेणे सत्थो चिंतिउं पवत्तो-अहो ! किमेयाए महरिद्धीए जइ सो मे सहोयरो न मिलइ ? ता तस्स वियाणणत्थमुवायं चिंतेमि त्ति । भावितेण ओलंबियं इमं सिलोगधं, अपि च __ अश्व-दासौ मृगौ हंसौ, मातङ्गावमरौ तथा ।१५७। । पू० । भणियं च जो इमं सिलोगस्स अद्धं पूरेइ तस्साऽहं रज्जस्स अद्धं देमि । तेण य लोभेण सव्वो वि लोगो पढिउमाढत्तो।। इओ य सो चित्तजीवो देवलोगाओ चविऊण पुरिमतालपुरे समुप्पण्णो महेब्भस्स पुत्तो । जोव्वणत्थो य सूरिसयासे देवलोगवण्णणं धम्मदेसणं समायण्णिऊण समुप्पण्णजाइस्सरणो संजायचरणपरिणामो पव्वइओ । विहरमाणो य एगल्लविहारपडिमा पडिवण्णो समागओ तत्थ । ठिओ य उज्जाणे काउस्सग्गेण । सोऊण य उज्जाणपालयारघट्टिएण पढिज्जमाणं तं सिलोगद्धं 'किमेयं पढसि ?' त्ति पुच्छियं । साहियं चाऽणेण जहावट्ठियं । साहुणा भणियं-जइ एवं तो एयं पढसु रण्णो सयासे गंतूणं, अपि च___ एषा नौ षष्ठिका जातिरन्योन्याभ्यां वियुक्तयोः ॥१५७॥ । उ० । पढियं च तेण गंतूणं । राइणा भणियं -भद्द ! फुडं साहिज्जसु, किमेयं तए पूरियं ? तेण भणियं-देव ! न मए किंतु मह उज्जाणत्थेण साहुणा । तओ दाऊण किंचि तस्स उचियं गओ नरवई साहुवंदणत्थं । वंदिऊण य भावसारं निसण्णो तयंतिए । तओ आसीसादाणपुव्वयं भणियं साहुणा नाऊणं संसारं असारयं नरवरिंद ! कुण धम्मं । नीसेसपमायं वज्जिऊण दुहनिवहसंजणयं ॥१५८॥ धम्मम्मि जो पमायं महमोहविमोहिओ नरो कुणइ । सो राय ! भमइ नूणं संसारे दुहसयावत्ते ॥१५९॥ १. सं.वा.सु. “जाइस्स दे ॥ २. ला. ण भणियं इमं ॥ ३. ला. 'गद्धं पू ॥ मूल. २-१४ Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः आभोगा इव नागाण दुहकरा निव ! जओ इमे भोगा । ता उज्झिऊण एए पडिवज्ज नरिंद ! चारितं ॥ १६०॥ ता भइ निवो भयवं ! दियलोयसमा इमे मए भोगा । पत्ता अणण्णसरिसा धम्मस्स वि नणु फलं एयं ॥ १६९॥ तो मोत्तूणं बंधव ! अइघोरमिमं वयं समणुहोहि । मह पुण्णसमुवलद्धे अणण्णसरिसे इमे भोगे ॥ १६२॥ तुह चेव जाणणत्थं एसो नणु लंबिओ मए पाओ । ता मह पसायबुद्धि काउं भुंजाहि रज्जमिणं ॥ १६३॥ इय भणिओ सो साहू पुणो पयंपेइ नरवइ ? ममं पि । आसि महंता रिद्धी किंतु मए देसणं सोउं ॥ १६४॥ परिचइउं सव्वं पि हु भवभयभीएण मोक्खसुहहेउं । सुगुरुसमीवे गहिया पव्वज्जा दुक्करा एसा ॥१६५॥ ता जइ सुमरसि नरवर जं गोवत्तम्मि आसि दुहकलिया । परकम्मकरा दीणा ता गिण्ह वयं मुय पमायं ॥१६६॥ जइ सुमरिसि दासत्ते खइया सप्पेण जंगया निहणं । सरणविहीणा खित्ते ता गिण्ह वयं चय पमायं ॥ १६७॥ जइ तं सुमरसि कालिंजरम्मि हरिणा वणम्मि वाहेणं । वहिया एक्कसरेणं तागिण्ह वयं चय पमायं ॥ १६८॥ जइ तं सुमरसि गंगानईऍ तीरम्मि हंसभावम्मि । गहिउं जाण हया ता गिण्ह वयं चय पमायं ॥ १६९ ॥ जइ तं सुमरसि वाणारसीए जं अंतयाण गेहम्मि । जाया दुगंछणिज्जा ता गिण्ह वयं चय पमायं ॥१७०॥ इय एवं सुमरंतो पमायलेसं पवज्जिउं राय । गिण्हसु जिणपण्णत्तं पव्वज्जं मुणिगणाइणं ॥ १७१ ॥ एव भणिओ वि राया पभणइ भयवं ? मुणेमि सव्वं पि । किंतु न सत्तो मोत्तुं भोए संसारसुहजण ॥ १७२ ॥ Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः १०७ तो पभणइ चित्तमुणी नियाणमसुहं कयं तया तुमए । जं तस्स इमो नरवर !, संजाओ फलविवागो त्ति ॥१७३।। ता गच्छामि इयाणिं मोहाओ पलवियं मए एवं । इय भणिय निग्गओ सो उग्गविहारेण विहरेत्ता ॥१७४॥ संलेहणाए देहं खविऊणं धुणियसयलकम्मंसो । केवलमुप्पाडेउं संपत्तो सासयं ठाणं ॥१७५।। सो वि बंभयत्तराया पमायवसगओ रज्जसुहमणुभवइ जाव सत्त वाससयाणि । पज्जंतसमए य पणइओ एगेणं बंभणेणं जहा-मह देहि निय परमण्णभोयणं । राइणा भणियं - भद्द ? मं मह थीरयणं च मोत्तूण न अण्णो तं परिणामिउं सत्तो, जओ तम्मि परिणमंते महंतो कामुम्माओ भवइ । बंभणेण भणियं - चक्की वि होऊण गासमित्तदाणे वि किविणत्तणेण एत्तियं वियारं करेसि ? तओ राइणा रुटेण जहिच्छं भुंजाविऊण महाथालं च भरिऊण समप्पियं कुडुंबजोग्गं । भुत्तं च तं कुडुंबेण । राईए परिणमंते तम्मि अगणियमाइभगिणी-सुण्हाइविभागं सव्वमसमंजसं चिट्ठिऊण विगुत्तं । परिणए य तम्मि पभाए चिंतियं माहणेण-हंत ? कहमहं विडंबिओ एएण अकारणवेरिणा निवेण ता करेमि किंचि एयस्साऽवयारं ति । चिंतिऊण निग्गओ नयराओ । दिट्ठो य एगो वडच्छायाए सुत्तो अयापालगो । सो य पसुत्तो लिडियाहिं जहाभिरुइयं वडपत्ताणि काणितो । तारिसं च दट्ठण बंभणेण उवयरिऊण भणिओ जहा-जो हट्टमज्झेणं हत्थिखंधारूढो एवंविहरिद्धीए समागच्छइ तस्स गोलियाजुयपक्खेवेण दो वि अच्छीणि फोडेहि । तेण वि तहा कयं । हम्मंतेण य भणियं जहा-ऽहं बंभणेण कारिओ । तओ रण्णा रूसिऊण उप्पाडावियाओ बंभणाणं अच्छीओ । भराविऊण य थालं हत्थेहिं मलइ, मलंतो य सुहं लहइ । एवं दिणे दिणे जाव कारवेइ ताव मंतीहिं करुणाए गुंदयफलाणं थालं भरिउं सम प्पियं । तं पि तव्वासणाए मलेइ । एवं च रुद्दपरिणामो मरिऊण समुप्पण्णो अहेसत्तमाए नरयपुढवीए त्ति । ॥ ब्रह्मदत्ताख्यानकं समाप्तम् ॥३८॥ साम्प्रतमादिशब्दोपात्तं चण्डपुत्राख्यानकमाख्यायते Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः [३९: चण्डपुत्राख्यानकम्] अत्थि इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे लच्छिमंदिरं नाम नयरं । जत्थ य तुंगाई देवकुलाइं कुलपुत्तयकुलाई च, विमलाइं धवलहराई सप्पुरिसचरियाइं च, सिणेहसाराओ वीहीओ सज्जणपीईओ य, सहावगंभीर्राओ बाहिं वावीओ, घरे परिहाओ. घरिणीओ य; रयणरेहिराओ पायारगोउरभित्तीओ विलासिणीओ य त्ति । अवि यनिज्जियरइरूवाओ नारीओ जत्थ पुरिसवग्गो वि । जियमयणरूवसोहो कि बहुणा एत्थ भणिएण ? ॥१॥ जं जं चिय रमणीयं तं तं सव्वं पि तत्थ संभवइ । नीसेसनयरसोहासमुदयसारेण घडियं व ॥२॥ तत्थ य राया दरियारिकुंभिकुंभयडदारणमयारी । सयलकलापत्तट्ठो नामेणं अत्थि हु जियारी ॥३॥ सयलं तेउरसारा तारा नामेण पणइणी तस्स । तीसे य अत्थि पुत्तो नामेणं चंडपुत्ते त्ति ॥४॥ सो य सहावेणं चेव चंडो निद्दओ निदक्खिन्नो परावयारी पभूयसत्तसंताणविणासणबद्धचित्तगत्तो, अवि य नीसेसदोसनिलओ समत्थसत्ताण मारणसयण्हो । विसपायवो व्व वड्डइ सो कुमरो चंडपुत्तो त्ति ॥५॥ परिणाविओ य समाणरूव-जोव्वण-लावण्ण-गुणसमण्णियं चंडसिरि नाम दारियं । सा य भत्तुणोऽणुरूवगुणा, अवि य__कूरा पयंडचित्ता जियवहनिरया य भीसणसहावा । . महु-मज्ज-मसलोला सिक्खियबहुसाइणीमंता ॥६॥ ताणं च एगसहावत्तणओ परोप्परमणुरत्तचित्ताणं कालो परिगलइ । अण्णया य नियआउक्खएण पंचत्तमुवगओ राया । तओ मंति-महामंति-सामंताइएहिं सो चेवाऽभिसित्तो रज्जे । जाओ पयंडसासणो नरवई । तओ रज्जसिर परिवालेमाणो रमेइ आहेडयं, जंपए अलियं, गिण्हए अदत्तं, सेवए परकलत्तं, करेइ अपरिमियपरिग्गहं, भुंजए रयणीए, देइ य १. सं.वा.सु. 'रायो परिहाओ घरिणीओ य ॥ २. ला. “यलदा ॥ Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः १०९ पइदियह एक्केकं णियगोत्तदेवयाए चामुंडाए पसुं, तप्पेइ मज्जेणं, पियइ सयं पि अणवरयं । एवं च तस्स राइणो तीए देवीए संह भोए भुंजमाणस्स समुप्पण्णा एगा धूया । तीए य गब्भत्थाए उवसामिया मारि ति अओ पइट्ठावियं से नाम संतिमइ त्ति । सा य पवड्डमाणा जाया सव्वगुणनिहाणं, अवि य लज्जालुया विणीया पसंतचित्ता सुरूवसंपन्ना । दढसीलसत्तजुत्ता पियंवया गव्वपम्मुक्का ॥७॥ दक्खा मायारहिया सुसोहिया सव्वसोयसंजुत्ता । सोहग्गभग्गकलिया कि बहुणा ? सव्वगुणनिलया ॥८॥ इओ य अत्थि तम्मि चेव नयरे धणवई नाम सेट्ठी । सो य मिच्छत्तमोहियमई, अवि य मिच्छत्तमोहियमई सो पावो घोररुद्दपरिणामो । अण्णो वि तत्थ सेट्ठी जिणपालो नाम विक्खाओ ॥९॥ अवि य सम्मत्तनाणकलिओ पंचाणुव्वय-गुणव्वयसमग्गो । जिणसाहुपायपंकयभसलो दीणाइदाणरओ ॥१०॥ साहम्मियपडिवत्तीपडिहत्थो सच्छचित्तयाजुत्तो । जीवाइपयत्थविऊ किं बहुणा ? सव्वगुणठाणं ॥११॥ तस्स य जसमइनामा भज्जा तीए य सगुणकलिया । चत्तारि सुया जाया इमेहिं नामेहिं सुपसिद्धा ॥१२॥ जिणदेवो जिणचंदो जिणेसरो तहय होइ जिणदत्तो । सव्वकलागमकुसला सव्वो वि जिणिदधम्मरया ॥१३॥ अह सो वि चंडपुत्तो जिणवरधम्मस्स सुट्ठ पडणीओ । न सहइ जत्ताईयं कीरतं जिणवरघरेसु ॥१४॥ एवं सव्वो वि जणो पडणीओ मज्ज-मंसकयलोलो । सच्चमिणं आहाणं जह राया तह पया होइ ॥१५॥ तओ तेण जिणपालसेट्ठिणा भणिओ सो राया जहा-देव ! न जुत्तं तुम्हाण एवंविहं असमंजसं चेट्ठिउं, अवि य १. सं.वा.सु. सह विसए भुं ॥ Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः हंतूणं परपाणे अप्पाणं जे करेंति सप्पाणं । अप्पाणं दिवसाणं कएण नासंति अप्पाणं ॥१६॥ भासंति जे अलीयं ते अण्णभवम्मि होंति नरनाह ? । अंधा जड-मूयलया वइहीणा पूइगंधमुहा ॥१७॥ तहा जे उण अदिण्णयं राय ! लिंति परदव्वलोहिया जीवा ।। ताणऽपरे जम्मम्मी न गासमित्तं पि संपडइ ॥१८॥ भुंजंति परकलत्तं मोहंधा जे नराऽहमा चेव । ते बहुदुक्खप्पउरा नपुंसया होंति मरिऊणं ॥१९॥ जे ओरालपरिग्गहआरंभेसुं पसुत्तया होति । ते दुग्गइगमणाई विरूवक्खाइं पावेंति ॥२०॥ अहवा वि हु सव्वेसि एयाण फलं अणुत्तरा नरया । ता मुंचसु एयाइं पावट्ठाणाई सव्वाइं ॥२१॥ घोरंधयारनरगे मा वच्चसि देव ! तं पमायंतो । ता उज्जमिउं धम्मे जिणवयणे आयरं कुणसु ॥२२॥ मा जिंदसु मुणिवग्गं हियसुहनिस्सेसकारयं सामि ! । तन्निदणाओ जीवा भमंति संसारकंतारे ॥२३॥ ता कुणसु धम्मबुद्धि सामिय ! मा अप्पवेरिओ होस् । जिणधम्मपभावेणं सव्वाओ वि होति रिद्धीओ ॥२४॥ एवं वुत्तो वि बहुं नरनाहो सिट्ठिणा उ अहिययरं । से धम्मम्मि पओसं करेइ मिच्छत्तमोहंधो ॥२५॥ एवं च एवंविहं महापउ8 रायाणं जाणिऊण तओ सो जिणपालसावगो न करेइ पयडं जत्ताविहाणं, चाउम्मासियाइसु वि रायाइभएण गिहचेइयाणं चेव करेइ महाबलिविच्छड्डातण्हवणं । एवं च कुणमाणस्स सपरियणस्स सिट्ठिस्स वच्चए कालो । एत्थंतरम्मि य सा संतिमई जाया संपत्तजोव्वणा, अवि य १. ला. ति य जे अलियं ।। २. ला सुहनीसेस' ॥ Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः वित्थयनियंबबिंबा अद्धोग्गयथोरथणयपब्भारा । उब्भिज्जमाणअइकसिर्णजहणनवरोमराइल्ला ॥२६॥ ण्हवियविलेवियदेहा सव्वालंकारभूसियसरीरा । पिउपायवंदणत्थं मायाए पेसिया बाला ॥२७॥ तओ रण्णातीए रूवसोहासमुदयं निएऊण जंपियं जहा-वच्छे ? दिण्णो मए तुह सयंवरो ता करेमि सामग्गि । तीए जंपियं-ताय ! महापसाओ, किंतु ण सयंवरामंडवो कायव्वो, जो ममाऽभिरुइओ तं सयमेव नयरमज्झे दट्ठण वरिस्सामि । राइणा भणियं-एवं होउ । तओ अण्णया चाउम्मासयदिवसम्मि सा चंडसिरी देवी कयपच्छन्नवेसा रयणीए निग्गयां नियचरियाए। तीए य संतिमईए नियजणणि अपेच्छमाणीए पुच्छिया अम्मधाई जहा-अम्मो! कत्थ मे जणणी ? तीए य विण्णायपरमत्थाए भणियं जहा-पुत्ति ? तुह जणणी एवंविहचिट्ठिया नियचरियाए निग्गया न नज्जइ कत्थइ गया । तीए चिंतियं-अहो ? मम जणणीए जहण्णत्तणं परं सोहणो एस ममाभिरुइयवरगवेसणोवाओ त्ति । परिभाविऊण भणिया अम्मधाई जहा-अम्मो ! पयट्ट मए सह जेण वच्चामि जणणीगवेसणत्थं, तओ 'मा अद्धिई करिस्सइ' त्ति मण्णमाणी पट्ठिया अम्मधाई सह तीए । तओ पढमं निरूवियं नियगेहं दिटुं च तं चंडियाययणं, अवि य हम्मंतजीवनिवहं गुरुरुहिरपवाहकद्दमाइण्णं । दारोलंबियखुर-पुच्छ-सीस-कण्णुट्ठ-नासउडं ॥२८॥ निग्गच्छमाणअइदुब्भिगंधफुटुंतनासियाविवरं । मुह-मज्ज-मंसपउरं दट्टणं चिंतए बाला ॥२९॥ अहह ! कह तायभवणे दीसइ अइदारुणं इमं कम्मं । जारिसयं अइदारुणसूणानाहस्स गेहम्मि ॥३०॥ एवं च चिंतिऊण निग्गया रायभवणाओ नयरमझे, रायदुहिय त्ति अणिवारियप्पसरा परिब्भमंती पत्ता धणवइसिट्ठिमंदिरं । तत्थ वि पव्वदिवसं ति काऊण विसेसओ निव्वत्तिया नियगुत्तदेवयाए पूया, अवि य रत्तंदणोवलितं काऊणं देवयं सुरत्तेहिं । कणवीरमाइकुसुमेहिं अच्चिया भत्तिजुत्तेहिं ॥३१॥ १. ला. 'णसिहिण' ।। २. ला. तुज्झ ॥ ३. सं.वा.सु. “या चरि ॥ ४. सं.वा.सु. "हणोवाओ त्ति ॥ ५. सं.वा.सु. 'माइजुत्तेहिं अ॥ Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः आणित्तु विविहमज्जाइं तप्पिउं देवयं तओ सेसं । सकुडुंबो सो धणवइसिट्ठी तं पियइ तप्पुरओ ॥३२॥ तं मज्जगंधमग्घाइऊण चितेइ संतिमइकुमरी । मम गेहाओ मणागं सोहणयं वट्टए एयं ॥३३॥ खणंतरेण य निग्गया तत्तो । सेसनयरं पि परिब्भमती पाएण तव्विहं चेव निएइ जाव कमेण पत्ता जिणपालमंदिरं । तं पि चाउम्मासयंति काऊण निव्वत्तियसविसेसगेहचेइयपूओवयारं पिच्छइ, अवि य घणसारपूर-मयणाहिमिस्सगोसीसचंदणरसेण । सव्वाण वि बिंबाणं विलेवणं पिच्छए विहियं ॥३४॥ सयवत्त-जाइ-कंदोट्ट-कुंदमचकुंदमाइकुसुमेहि । नाणाविहभंगेहिं रइया पूया जिणिदाणं ॥३५॥ कालागरु-घणघणसार-मीणउग्गार-मयमयाईहिं । कयपवरधूयडझंतगंधपरिवासियदियंतं ॥३६॥ ससुयंधसालिअक्खयविभत्तिआलिहियअट्ठमंगलयं । परिपक्कसाउफलनियरभरियबहुभायणविसेसं ॥३७॥ वरनेहपुन्नवट्टयवत्ती पज्जलियमंगलपईवं । गंधुक्कडघयजलपूरपुण्णमणिकणयभायणयं ॥३८॥ इय बहुविहकयपूयं जिणाण तं सिट्ठिमंदिरं दटुं । पेच्छइ पुणो वि सिढेि परिवारजुयं सुधम्मरयं ॥३९॥ वंदेइ को वि देवे को वि हु संथुणइ विविहथुत्तेहिं । को वि हु पंचपयारं सज्झायं कुणइ उवउत्तो ॥४०॥ को वि फलिहक्खमालावग्गकरो गुणइ पंचनवकारे। को वि हु पोसहनिरओ सामाइयसंठिओ को वि ॥४१॥ इय एवमाइबहुविहसुधम्मवावारवावडं सव्वं । तं सेट्ठिमंदिरं पेच्छिऊण अइहरिसिया बाला ॥४२॥ चितेइ इमाण पुणो मज्झाओ कं वरेमि वरकुमरं । इय चितंती पेच्छइ जिणदत्तं सिट्ठिलहुयसुयं ॥४३॥ १. ला. सव्वाणं बिं ॥ २. सं.वा.सु. सधम्म ॥ ३. ला. कारं ॥ Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः ११३ उवविटुं पडिमाणं पुरओ परिविहियजोगमुद्दाए । पढमाणं विविहथए कलकोइलकोमलसरेणं ॥४४॥ मयणं व रूवधारिं दटुं परिभावए इमं तुट्ठा । मोत्तूण इमं अण्णं विहेमि नियमा न भत्तारं ॥४५॥ इय निच्छयं विहेउं मह कज्जं सिद्धयंति कलिऊण । धाईय समं चलिउं संपत्ता निययगेहम्मि ॥४६॥ तओ य अण्णदियहम्मि भणिओ नरनाहो संतिमईए - ताय ! करेह पसायं मह तेण सयंवरवरेण, मुक्कलह सइच्छाए नयरमज्झे जेण गिण्हामि अभिरुइयं वरं ति.। राइणा भणियं - पुत्ति ! जं वो रोयइ तं तहा करेहि । तओ कंचुइ-खुज्जय-वामण-यनाणादेसयचे डियाचक्क वालसंपरिवुडा गेहंगेहेण निरूवयंती रायपुत्ताइए कु मारे पत्ता जिणपालसेट्ठिमंदिरं, दिट्ठो जिणदत्तो । तओ मयरंदगंधट्टणालुद्धमुद्धफुल्लं धयरुणरुणासद्दहलवोलिज्जंतदिसिवहं घेत्तूण उवट्ठिया वरमालं । तओ महामिच्छत्तोवहयरायदेवीदंसणसंजायगरुयभएण 'एसा वि ताण चेव धूया तारिसी भविस्सइ' ति मण्णमाणेण भणिया सिट्ठिणा जहा-वच्छे ! तुमं रायधूया एसो वि मह सुओ वणियपुत्तो ता हंसीकायाणं व न सोहए संबंधो, तम्हा अण्णं किं पि रायउत्तमाइयं कलाकोसल्ल-रूयजोव्वणसुंदेरसुंदरं कुमारं वरेहि । तीए जंपियं-ताय ! मह ताएण सयंवरो दिण्णो तओ । जमभिरुइयं तं वरं वरेमि, मम य एत्तियमित्तं नयरं परिब्भमंतीए एस चेवाऽभिरुइओ । सिट्ठिणा भणियं-वच्छे ! अम्हे सावगा, कायव्वं च अम्ह गेहे चेइयवंदणाइयं धम्माणुट्ठाणं, तं च तुह जणणि-जणयाण मणभिप्पेयं । तीए जंपियं-न एयं विरुद्धं किंतु परलोगहियं सइच्छयाए य कज्जमाणे न जणणि-जणयाण कोइ अहिगारो । सिट्ठिणा लवियं-जइ वि एवं तह वि अम्हाणं वणियाणं एस समायारो जहा कायव्वो सासूए जाव सवत्तीणं विणओ नाणाविहो य घरवावारो कायव्वो, तं च रायधूयत्तणेण न सक्किहसि काउं तीए भणियं ताय ! जो एवं करेइ सो एवंविहाणं सव्वाणं चित्तं देइ चेव, ता पसायं काऊणमणुमण्णह जेण वरेमि मणोभिरुइयं । सिट्ठिणा वि 'आसन्नभव्वा कावि एसा ता लहउ वराई सिवसोक्खं' ति मण्णमाणेण भणियं-पुत्ति ! जइ एवं ताजं वो रोयइ तं भवउ । तओ तीए हरिसभरसमुब्भिज्जमाणरोमंचकंचुयाए विलइया जिणदत्तस्स कंठे वरमाला । गया नियगेहं । पुच्छियं च राइणा जहा को वरिओ? कहियं च परियणेणं जहा-देव ! जिणपालसिट्टिपुत्तो जिणदत्तो तं च सोऊण पाउसकालजलयवलएणं व नहयलं अंधारियं वयणं राइणो, १. ला. करहि ॥ मूल. २-१५ Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः भणियं च-आ पावे ! किमेयर्मम्ह कुलविरुद्धं तए समायरियं वणियउत्तं सावयं च वरंतीए, ता न पाएणं सुट्टु अभिजायाऽसि । तीए भणियं - ताय ! सयंवरं दाऊण किमित्तियं खेयं करेसि ? जइ न एयं परिणामसुहावहं भविस्सइ तो नाऽहं निच्छएण अभिजाया । तओ नियवयणपडिबंधेण अणभिमयं पि बाहिरच्छायाए पडिवण्णं राइणा । कारावियं च अणायरेणं चेव पाणिग्गहणं । पेसिया सा ससुरगेहं । तओ जहोचियर्पडिवत्तिसव्वं कुणमाणि दट्ठूण तुट्टेण सेट्ठिणा कया से धम्मदेसणा अवि य संसारम्मि असारे लद्धूणं माणुसत्तणं दुलहं । वच्छे ! जिणवरधम्मं गिण्हसु चिंतामणिसरिच्छं ॥४७॥ नर - विज्जाहर- सुर-असुरनाहसुक्खाइं विविहरूवाइं । कमसो य जप्पभावेण लब्भए सिद्धिसोक्खं पि ॥४८॥ तिहुयणनयचलणं अट्ठारसदोससंगपरिमुक्कं । देवत्तणेण वच्छे ! पडिवज्जसु जिणवरं देवं ॥ ४९॥ अट्ठारसठाणेसुं जे सत्तीए जयंति ते मुणिणो । दुद्धरवय-नियमपरा गुरुणो मण्णेहि भावेणं ॥५०॥ रागद्दोसविउत्तेहिं जं जिणिदेहिं भणियमविरुद्धं । तं जिणवयणं पडिवज्ज भावओ आगमत्तेण ॥५१॥ इय सिट्ठिवयणमायण्णिऊण आनंद पुण्णतरलच्छी । सा संतिमई जंपई इच्छामऽणुसासणं ताय ! ॥५२॥ तओ थोवैदिवसेहिं चेव जाया परमसाविया । समुप्पण्णा य अण्णदेसेसु पसिद्धी जहा - तारिसे वि जहण्णे नरिंदे सव्वजणे वि नर्सिंदाणुमए सो चेव एक्को जिणपालसेट्ठी स परियणो सव्वगुणसमुदेओ, सविसेसओ तस्स चेव राइणो जामाउओ जिणदत्तो । एसा य पसिद्धी सवणपरंपराए समायण्णिया विजयपुरनिवासिणा विजयसेणराइणा । तेण य तमन्नायमसहमाणेण पसिओ दूओ चंडपुत्तस्स ! पविट्ठो य पडिहारनिवेइओ, भणियं च तेण-देव ! पेसिओ अहं सामिणा विजयसेणनरिंदेण, भणावियं च तेण जहा 'जमभक्खाईं भक्खसि अपेयपाणं च कुणसि अणवरयं । गच्छसि जमगम्माइं पयट्टसे विविहपावे ॥५३॥ १. ला. 'मम्हाण कु° ॥ २. ला. पडिवत्तं स° ॥ ३. सं. वा.सु. हिं भासियं तहियं । तं । ४. ला. थोवेहिं दि° ॥ ५. ला. 'दओ विसे ॥ ६. सं.वा.सु. 'च्छसि 'गम्मागम्मं प Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः तं न वि जुत्तं नरवर ! तुह काउं उभयकुलविसुद्धस्स । ता मंच नवइ ! इमं असमंजसचिट्ठियं तुरियं ॥ ५४ ॥ तं सुणिय चंडपुत्तो कोवफुरुप्फुरियओट्ठजुयलिल्लो । भिउडीकरालवयणो करघाउद्दलियमहिवीढो ॥५५॥ जंपइ रे रे ! तुब्भे मह सचिवपयम्मि ठाविया केण ! । एयं महंतयत्तं नियपिउणो कुणह गंतूणं' ५६॥ एवं भणिओ दूओ जंपइ रे तुज्झ कुट्ठ (प्पि ? ) ओ कालो । जं सामेण वि भणिओ जंपसि अइनिठुरं एवं ॥५७॥ हियमवि जंपंताणं जं एवं भणसि निठुरं पाव ! । तं धाउविवज्जासो तुह जाओ मरणकालम्मि ॥ ५८ ॥ ता होहि जुज्झसज्जो भणियं वा कुणसु मा भणिज्जासु । जह न वि पुव्वि कहियं' कुविओ इय जंप राया ॥५९॥ रे लेह लेह एवं पावंमारेह विरसरसमाणं । अह उट्ठिया य पुरिसा दूयस्स विणासणट्ठा ॥६०॥ तो महया कट्टेणं मंतीहि विमोइओ इमो जाव । तागंतुं नियरणो सव्वं साहेइ सविसेसं ॥ ६१॥ तो रुसिऊण पयाणयभेरिं ताडावर विजयसेणो तीए सद्देणे तओ संवूढा तक्खणं सुहडा ॥६२॥ I तयणंतरं च संवूढं सव्वं पि सेण्णं । दिण्णं च राइणा पयाणयं अणवरयपयाणएहिं य वच्चंतो पत्तो विसयसंधि । तं च समागच्छंतं नाऊण चंडपुत्तराया वि सव्वसामग्गीए पत्तो विसयसंधि जाव मिलियाणि दोन्ह वि अग्गाणीयाणि, पयट्टमाओहणं, अवि य चुण्णिज्जंति गइंदेहिं रहवरा रहवरेहिं वरसुहडा । सुहडवियारियदेहा पडंति धरणीयले सुहडा ॥६३॥ तुरयारोहप्पहया लोट्टंति महीए मत्तमायंगा । मायंगाहयभेरीरवेण नासंति कावुरिसा ॥६४॥ ११५ इय एरिससमरभरे वट्टंते चंडपुत्तसुडेहिं । तं विजयसेणसेण्णं खणेण विवरम्मुहं विहियं ॥६५॥ १. ला. तो रूसिउं प° ॥ २. सं. वा.सु. 'ण सव्वे सं° ॥ Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः भज्जतं दट्ठणं नियसेण्णं विजयसेणनरनाहो । अप्फालियगंडीवो हक्कंतो उट्ठिओ सहसा ॥६६॥ तस्स सरपहरपहया भग्गा ते चंडपुत्तवरसुहडा । ते भग्गे दट्टणं अमरिसिओ चंडपुत्तो वि ॥६७|| आरोविऊण चावं अब्भिट्टइ विजयसेणनरवइणो । दोण्हं पि ताण जाओ संगामो तियसतोसयरो ॥६८॥ एवं संगामभरे वटुंते विजयसेणनरवइणा । लहु हत्थयाए बद्धो वसीकओ चंडपुत्तनिवो ॥६९॥ बद्धम्मि तम्मि सेण्णं अनायगं विजयसेणरायाणं । सरणं उवसंपण्णं सो वि हु सम्माणिउं सव्वं ॥७०॥ पत्तो लच्छिनिवासं नयरं सम्माणिओ पुरजणेणं । पविसरइ रायभवणं अत्थाणत्थो य इय भणइ ॥७॥ 'आणेह चंडपुत्तं' आणीओ तेण तक्खणं चेव । भणिओ निवेण 'संपइ कि काहिसि उज्जमं धम्मे ? ॥७२॥ अज्ज वि न किंचि नटुं नियरज्जं कुणसु धम्मिओ होउं । मज्झ पसाएणिहि' तं सोउं जंपए एसो ॥७३॥ र रे का हेवसि तुम जेण पसायं ममाऽवि उल्लवसि ?' । तं सोउं आरुट्ठो विजयपुरस्सामिओ सहसा ॥७४॥ अप्पइ पाणाणेयं भणइ य र एत्थ चेव जम्मम्मि । दंसिज्जह पावफलं एयस्स उ नरयसारिच्छं' ॥५॥ देवी वि तस्स डुंबाण अप्पिया ते वि तारिसं भणिया । दियहे दियहे राया जाइज्जइ बहुपयारेहिं ॥७६॥ एवं नरयसमाणं अणुहवमाणस्स तस्स दुहनिवहं । अणुरत्ता पाणाणं धूया काणा अइकुरूवा ॥७७॥ तीए समं जा अच्छइ दिणे दिणे ताव ते वि चंडाला । सिढिलंति जायणाओ नियधूयानेहपंडिबद्धा ॥७८॥ १. ला. होसि ॥ २. ला. णाण तयं भणई रे ॥ ३. ला. “पडिवन्ना ॥ Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११७. मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः राया वि विजयसेणो तं नाउं निययचारपुरिसेहिं । कुट्टावइ खयरं (?खरय) पिव पाणाण वि कुणइ गुरुदंडं ॥७९॥ रोद्दज्झाणोवगओ. मरिठं अहसत्तमाइ उववण्णो । तत्तो उव्वट्टित्ता भमिही भवसागरे भीमे ॥८०॥ तीए वि तब्भज्जाए जाइज्जंतीए डुंबगेहम्मि । अइपाणपिओ खद्धो डुंबसुओ डाइणित्तेण ॥८१॥ तं नाऊणं डुबो विविहपयारेहिं जाइउं रुट्ठो । . मारेति सा वि मरिउं उववण्णा छट्ठपुढवीए ॥८२॥ सा वि तओ उव्वट्टिय संसारमणंतयं परिब्भमिही । एसो पमायदोसो एत्तियचरिएण अक्खाओ ॥८३॥ एम्हि तु सेसयं पि हु पगयं जं एत्थ अप्पमायस्स । फलसंसाहणहेउं कहेमि अक्खाणयं सुणह ॥८४॥ राया वि विजयसेणो नियदेसं सुमरिऊण चित्तम्मि । अत्थाणत्थो पुच्छइ अण्णम्मि दिणे तयं लोगं ॥८५॥ 'को एत्थ नयरमज्झे धम्मपरो भणह ?' ते वि जंपंति । सकुडुबो जिणपालो सिट्ठी इह धम्मिओ देव ! ॥८६।। तस्स वि सुओ विसेसेण धम्मिओ सयल गुणगणावासो । नामेणं जिणदत्तो जामाऊ चंडपुत्तस्स ॥८७॥ तं सोऊणं राया हरिसभरिजंतसयलसंहणणो । जंपइ रे रे ! तुरियं वाहरह सपुत्तयं से४ि ॥८८॥ ता वेगेणं गंतुं पडिहारो भणइ सिट्ठिजिणपालं । 'वाहरइ तुमं देवो सपुत्तयं तो समागच्छ' ॥८९॥ सेट्ठी वि जाइ नियए पुत्ते घेत्तूण राइणो पासे । सो वि निवो जिणभत्तो दटुं आवंतयं सिढेि ॥१०॥ रोमंचपुलइयंगो राया साहम्मिओ त्ति कलिऊण । नियनिद्धबंधवस्स व पडिवत्तिं कुणइ सविसेसं ॥११॥ Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः सेट्ठी वि पणमिऊणं उवविठ्ठो राइणो समीवम्मि । . विण्णवइ जोडियकरो 'आएसं देह मे देव !' ॥१२॥ उल्लवइ निवो वि तओ ‘सुकयत्थो तं सि चेव एकोऽत्थ । इय धम्मपउट्ठस्स वि निवस्स वासम्मि वसमाणो ॥१३॥ पालसि अक्खंडं चिय सव्वण्णुपणीयधम्मवररयणं । ता संपइ मह भाया तुमं जओ निच्चलो धम्मे ॥१४॥ अइपावओ त्ति काउं सिक्खं पि हु नेयगिण्हए कहवि । एएण कारणेणं एसो उप्पाडिओ राया ॥९५।। ता को सो तुह लहुओ पुत्तो जामाउओ इमस्सेव । दंसेहि जेण रज्जे ठवेमि एत्थं सहत्थेणं' ॥१६॥ तं निवइवयणमायण्णिऊण सेट्ठी पयंपए 'देव ! । वणियाणं अम्हाणं पओयणं किंच रज्जेण ॥९७|| साहम्मियस्स मज्झं पढमं चिय पत्थणा इमा एक्का । न हु कायव्वा विहला किं बहुणा एत्थ भणिएण ?' ॥९८॥ तो निब्बंधं नाउं सेट्ठी पाडेइ रायचलणेसु । जिणदत्तं सो वि तयं निरूवए अंगुवंगेसु ॥९९॥ बत्तीसलक्खणधरं अच्चब्भुयरूयजोव्वणसमग्गं । दटुं तुट्ठो राया आभासइ मंति-सामंते ॥१०॥ 'सव्वकलागमकुसलो एसो बत्तीसलक्खणुक्खिन्नो । तुम्हाण होउ राया सज्जह रायाभिसेयं से' ॥१०१॥ वयणाणंतरमेव य रायभिसेसो जणेण उवठविओ । ता विजयसेणराया अहिसिंचइ तं महीनाहं ॥१०२।। एवं सुत्थं काउं, राया निययम्मि जाइ रज्जम्मि । जिणदत्तो वि हु जाओ, पुहइवई निग्गयपयावो ॥१०३।। एवं च विलसमाणाणं जंति वासरा । अण्णया य भणियं संतिसिरीए-'नाह ! संपयंपयट्टेसु विसेसेणसुधम्माणुट्ठाणं, विहेसु जिणसासणस्सुन्नई, संबोहेसु सव्वं पि नियजणवयनिवासिजणं, कारावेहि य समत्थगामागर-नगर-खेड-कब्बड-मडंब-दोणमुहेसुं १. ला. सकयत्थो ॥ Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः ११९ जिणाययणमंडियंनियभुत्ति, पूएसु य विहीए सिरिसमणसंघ' । राइणा वि 'पिए ! जं तुहाऽभिरुइयं सो अम्हाणं मणोरहो चेव' त्ति भणमाणेण पयट्टियं सव्वं विसेसेणं एवं च विसिट्ठसावयधम्मपरायणाई अण्णया निसण्णाइं गवक्खावलोयणे तत्थय नाणाविहनयरसोहासमुदयं निएऊण विणियट्टतदंसणकोऊहलाए भणियं संतिसिरीए 'नाह ! संपयं विणियट्टू नयरदसणकोऊहलं, तो जाव जिणवंदणाए वेला भवइ ता पढेसु किंपि पण्होत्तरं, जओ एसो चेव विसिट्ठजणविणोओ त्ति । राइणा भणियं जइ एवं ता सुव्वउ को वयणवाइ सद्दो ? को वा वि धणी विहंगमं वयइ ? का चलचित्ता ? किं वा खविऊणं जंति सिद्धीए ॥१०४॥ मुच्छइ वसहो समरंगणम्मि कं सुपुरिसा पसंसंति । केरिसयं वा कन्हं भणंति सव्वे वि नणु लोगा ? ॥१०५।। तोतीततं । संतिसिरीए य पढियाणंतरमेव उवलहिऊण भणियं-गावीरयं । तओ पुणो वि पढियं राइणा कं इच्छइ सयलजणो? संबोहसु विच्छियस्स दुटुंगं । को भक्खइ सयलजणं चलणस्स य भणसु बोहणयं ॥१०६॥ संबोहेसु य नर्से अम्हं सद्दस्स को य पज्जाओ? । नीररयबोहणाई भण भेण सवणस्सई किं पि ॥१०७।। का जेलहीसंजाया ? को वा सद्दो पयंपई सदं ? । को पउमातो जायइ ? को वा निद्दलइ मायंगे ? ॥१०८॥ हरिणविसेसा पुच्छंति कोय लहु उग्गमेइ धण्णाणं । चउवत्थं तिसमत्थं पिययमे ! पण्होत्तरं मुणसु ॥१०९॥ ततो संतिसिरीए भणियं - 'नाह ! पुणो वि पढसु' । पुणो वि पढियं । ततो वीमंसिउं लहिऊण य भणियं कमलासणो । तओ भणियं जिणयत्तेण-पिए ! संपयं तुम पढसु । ततो भणियं संतिसिरीए-जइ एवं ता पहेलियमेक्कं सुणसु जिणयत्तेण भणियंपढसु। पढिया तीए, अवि य दो बाहा वरगत्ता, सालंबणसुहडगेहसंलग्गा । उद्धट्ठियलोएहि, चंपिज्जइ भणसु का नारी ? ॥११०॥ १. न सम्यगवगम्यन्ते इमान्यग्रेतनानि च प्रश्रोत्तराण्यस्माभिः । २. सं.वा.सु. भण सवणस्सयं किं ॥ ३. ला. जलहीओ जाया ॥ Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः जिणयत्तेण परिभाविऊण भणियं निस्सेणी । संतिमईए भणियं-जइ एवं ता सुणसु पण्होत्तरमेगं, अवि य संबोहं मायंगं को वा वज्जत्ति वायओ सद्दो ? । बोहेहि कमलजोणि सूररिंद व्व कं जिणइ ? ॥१११॥ का सोहइ विण्हुकरे ? किं वा वि हु देइ दुज्जणो लोए ? । कं व पविट्ठो पाणी दुक्खाणं भायणं होइ ? ॥११२।। पीडंति के य जीवं? को वा वि हु थोववायओ सद्दो ? । का बहु सत्ताउलया ? को वा सिग्धं वयइ सद्दो ? ॥११३।। केरिसयं च पसंसइ नरं जणो ? कहव होइ थी पुच्छा ? । को विण्हुवाइसद्दो ? किं सत्यं सत्तुनिट्ठवणं ? ॥११४॥ केरिसियं दारिदियकुलं भवे ? केरिसं च निवभवणं । पुच्छंति करी सहसा का भज्जइ वानरेहिं कहिं ? ॥११५।। अविलंकाहरमेयं थयं व कह वयइ भणसु आवासी। चउवत्थचउसमत्थं पिययम ! पण्होत्तरं मुणसु ॥११६॥ राइणा भणियं-पिए ! पुणो पढसु । पुणो वि पढियमेईए । तयणंतरं च लहिऊण भणियं राइणा-पिए ! लद्धमेयं गयालंकारं । एवं समत्थबुहयणपसंसणिज्जे हिं धम्मियजणाभिमएहिं तियसलोगाभिलसणिज्जेहिं मिच्छत्तोवहयमइपाणिगणदूमणिज्जेहि पावभरपसरपूरियसत्तसंघायहसणिज्जेहिं अभव्वजणकडक्खएहिं विणोएहिं चिटुंताणं कालो परिगलइ । अह अण्णया कयाई, निउत्तपुरिसेण पणयसीसेणं । भणियं 'वद्धाविज्जसि, इह चेव वरम्मि उज्जाणे ॥११७॥ देवाइवंदणिज्जो आगमकिरियाविहाणकयचित्तो । सुपसंतो गुणवंतो दीप्पंतो नाणलच्छीए ॥११८॥ भवियाण कप्परुक्खो, नामेण गुणायरो महासूरी । बहुसीससंपवुिडो समोसढो एत्थ नयरम्मि ॥११९॥ तं सोऊणं राया भत्तिवसुल्लसियबहलपुलइल्लो । दाऊण पारितोसियदाणं वद्धावयनरस्स ॥१२०॥ १. ला. नरिंदो ॥ २. ला. 'हरमियं पयं च कह चयइ भणसु आयासं । चउ ॥ Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२१ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः सयलनरनाहजुत्तो देवीए समं गओ गुरुसयासे । तिपयाहिणं विहेउं उवविट्ठो अह महीवटे ॥१२१॥ भयवं पि कहइ धम्मं भो भो ! जह एत्थ पुव्वसुकएण । लब्भंती धम्मेणं अचिंतसत्तीओ पयवीओ ॥१२२॥ ता तं पुणो वि संपइ करेह सुद्धं मणं विहेऊण । सद्धम्मकम्ममणहं समत्थदुक्खाण निद्दलणं ॥१२३॥ तं सोऊणं राया विण्णवइ गुरुं पराइ भत्तीए । 'भयवं ! जाव करेमी सुत्थं रज्जस्स ता तुब्भं ॥१२४॥ पयमूले पव्वज्जं घेत्तुं सफलं करेमि मणुयत्तं । वाउप्पाडियसिंवलितूलविलोलत्तणसुतरलं' ॥१२५।। 'मा काहिसि पडिबंध' गुरुणा भणिए गओ नियं गेहं । सामंत-मंतिपमुहं आपुच्छिय परियणं सव्वं ॥१२६॥ पुत्तं संतिमईए जिणसेहरनामयं वरकुमारं । अहिसिंचइ रज्जम्मि नीसेसप्पयइपरियरिओ ॥१२७॥ पणमित्तु तओ जंपइ 'पुत्त ! मए लालियाओ एयाओ । साहम्मियपयईओ पालेयव्वाओ जत्तेणं ॥१२८॥ पयईओ वि हु पभणइ ‘एसो तुम्हाण सामिओ एहि । जइ होइ गुणसमग्गो सेवेयव्वो पयत्तेण' ॥१२९॥ एवं सिक्खविऊणं सिबियारूढो महाविभूईए । संतिमईएसमेओ अणुगम्मतो नरिंदेणं ॥१३०॥ पत्तो सूरिसमीवं काऊण पयाहिणं च तिक्खुत्तो । पभणइ भवभीओऽहं संपइ तुह सरणमल्लीणो ॥१३१॥ ता तह करेसु संपइ भयवं? न भवामि जह भवोहम्मि । इय भणिओ भयवं पि हु दिक्खेइ तयं सहत्थेणं ॥१३२।। अज्जा वि हु संतिमई समप्पिया सिरिमईए गणिणीए । सिक्खंति दो वि सिक्खं जायाइं अह सुगीयाई ॥१३३॥ १. सं.वा.सु. तुह चलण' ॥ मूल. २-१६ Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः नाणाविहे तवे वि हु काऊणं पच्छिमम्मि कालम्मि । अणसणविहिणा दोण्णि वि पत्ताई देवलोगम्मि ॥१३४॥ तत्तो चुयाई कमसो माणुस्सं विग्गहं लहेऊण । पव्वजं वरनाणं लद्धं मोक्खं लहिस्संति ॥१३५॥ सो चंडपुत्तराया पमाददोसेण सत्तमि पत्तो । तस्स य देवी वि तहा पत्ता घोरम्मि नरयम्मि ॥१३६।। एवं इमो पमाओ कीरंतो नारयं दुहं देइ । जह चंडपुत्तराया देवी वि य तस्स सिरिचंडा ॥१३७|| इय दारुणभवदुक्खं नाऊणं ताण तो पमायं तु । धम्मविसओ पमाओ परिहरियव्वो पयत्तेण ॥१३९॥ . चण्डपुत्राख्यानकं समाप्तम् ॥३९॥ किञ्चपमाएणं परायत्ता, तुरंगा कुंजराइणो । कसंकुसाइघाएहिं, बाहिज्जंति सुदुक्खिया ॥१४९॥ सुखावबोधः, परं कुञ्जरादय आदिशब्दावृषभ-महिष-वेसरखरप्रभृतयो गृह्यन्ते, कसा-ऽङ्कशादि, अत्राऽप्यादिशब्दाद्वर्ध(ी)प्रतोद-लकुटादयोऽवबोद्धव्याः ॥१४९॥ पमाएणं कुमाणुस्सा, रोगाऽऽयंकेहिं पीडिया । कलुणा हीण दीणा य, मरंति अवसा तओ ॥१५०॥ प्रमादात् कुमनुष्याः=महादारिद्रयाद्यभिभूतकुत्सितमानवाः, रोगातङ्कः पीडिताः तत्र कालान्तरघातिनो रोगाः, सद्योघातिन आतङ्काः, करुणाः= करुणास्पदम्, हीनाः सर्वजनाधमाः, दीनाश्च दैन्यवन्तो म्रियन्ते, अवशा:=परवशाः, ततः तदनन्तरमिति ॥१५०॥ पमाएणं कुदेवा वि, पिसाया भूय किब्बिसा । आभिओगत्तणं पत्ता, मणोसंतावताविया ॥१५१॥ सुगमः, नवरं किल्बिषा: किल्बिषिका अन्त्यजातय इवाऽस्पृश्या निन्द्यकर्म- कारिणश्च इह विग्रहादिरुचयो सङ्घादिबहिष्कृता मृत्वा ये देवेषूत्पन्नाः, उक्तं च विग्गह-विवायरुइणो, कुल-गण-संघेण बाहिरकयस्स । नत्थि किर देवलोगे, वि देवसमिईसु अवगासो ॥ (उ० मा० गा० ७०) १. ला. सुज्ञानः ॥ Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः 'आभिओगत्तं (त्तणं)' पारवश्यं प्राप्ताः, मनः सन्तापतापिताः = 'हा ! किमस्माभिः पापैः प्रमादवशवर्तिभिरिदं कृतं येनैवंविधाः सञ्जाताः' इत्यादिचित्तखेदवन्त इति ॥ १५१ ॥ पाणं महासूरी, संपुण्णसुयकेवली । दुरंता - ऽणंतकालं तु, णंतकाए वि संवसे ॥१५२॥ प्रमादात्=शैथिल्यात्, महासूरिः = प्रसिद्धाचार्यः, सम्पूर्ण श्रुतकेवली = चतुर्दशपूर्ववित्, दुरन्ता - ऽनन्तकालं तु = दुःखेनाऽन्तो यस्याऽसदुरन्तः; न विद्यतेऽन्तो यस्याऽसावनन्तः, दुरन्तश्चाऽसावनन्तश्च दुरन्तानन्तः स चाऽसौ कालश्च । तम्, यावदनन्तकायेऽपि, आस्तामन्ययोनिषु, वसति=तिष्ठति । तथा ह्यसौ महासूरिः प्रमादाद्विस्मृतचतुर्दशपूर्वो मिथ्यात्वं प्राप्तोऽनन्तकायेषूत्पद्यत इत्यागमे श्रूयत इति ॥ १५२ ॥ पमाणं भमंताणं, एवं संसारसायरे । तिक्खाणं दुक्खदुक्खाणं, वोच्छेओ नत्थि पाणिणं ॥१५३॥ सुखावबोधः, परम् ‘एवं ति पूर्वोक्तप्रकारेण, तीक्ष्णानाम् = अतिनिशातशस्त्राग्रवदसह्यानाम्, दुःखदुःखानां दुःखादप्यतिदुःखानामिति ॥१५३॥ ता पमायं पमुत्तूण, कायव्वो होइ सव्वहा । उज्जमो चेव धम्मम्मि सव्वसोक्खाण कारणं ॥ १५४॥ = सुगमश्चाऽयम्, नवरमुद्यमश्चैव इत्यत्र चैवशब्दस्याऽवधारणार्थत्वाद्धर्म एवोद्यमः कर्तव्य इति ॥ १५४॥ अत आह सव्वे संसारिणो सत्ता, कम्मुणो वसवत्तिणो । कम्णो यवसितं तु, जीवाणं दुक्खकारणं ॥ १५५ ॥ १२३ तस्मात् सर्वे=समस्ताः, संसारिणः = भववर्त्तिनः, सत्त्वाः = प्राणिनः कर्मणः । = दैवस्य, वशवर्तिनः = परवशाः, ततः किं कर्मणस्तु वशवर्तित्वं जीवानां दुःखकारणम्= अशर्मकृदिति श्लोकार्थः ॥ १५५॥ - निम्मूलुम्मूलणत्थं च तम्हा दुट्ठट्ठकम्मुणो । कायव्वो भद्द ! निच्चं पि, धम्मो सव्वण्णुभासिओ ॥१५६॥ निर्मूलोन्मूलनार्थं तस्माद्दुष्टाष्टकर्मणां कर्तव्यः = विधेयः, 'भद्र !' इति प्रमादवशवत्सा धर्मिकामन्त्रणम्, नित्यं= सदा, धर्मः = सर्वज्ञभाषित इति श्लोकार्थः ॥ १५६॥ Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः कस्माद्धर्म एव विधातव्यः इत्यत आहमाणुस्सं उत्तमो धम्मो, गुरू नाणाइसंजुओ । सामग्गी दुलहा एसा, जाणाहि हियमप्पणो ॥१५७॥ मानुष्यं =मानुषत्वम्, उत्तमः प्रधानम्, धर्म: दुर्गतिप्रपतदङ्गिगणधारकः शेषधर्मापेक्षया जिनधर्म इति, गुरुः यथावस्थित शास्त्रार्थप्ररूपकः, सोऽपि ज्ञानादिसंयुतः=ज्ञानदर्शन-चारित्राद्यनेकगुणगणालङ्कृतः, सामग्री समुदायः, दुर्लभा दुःप्रापा, एषा=पूर्वोक्ता, जानीहि अवबुध्यस्व, हितं= श्रेयः, आत्मनः= स्वस्यैतदिति शेष इति श्लोकार्थः ॥१५७॥ ततश्च एवंविहार्हि वग्गूर्हि दायव्वमणुसासणं । पच्चक्खं वा परोक्खं वा गुणवंतं पसंसए ॥१५८॥ एवंविधाभिः पूर्वोदिताभिरिति भावः, 'वग्गूहिति वाग्भिः वचनैः दातव्यं = विधेयम्, अनुशासनम् =अनुशास्तिः, प्रत्यक्षं वा समक्षम्, परोक्षं' वा तदसमक्षं वा, वाशब्दादुभयथाऽपि, गुणवन्तं गुणयुक्तम् प्रशंसयेत्= श्लाघयेदिति श्लोकार्थः ॥१५८॥ किमेतदेव कृत्यमुताऽन्यदपि ? अत आह अवत्थावडियं नाउं, सामत्थेणं समुद्धरे । परोप्परं सधम्माणं, वच्छल्लमिणमो परं ॥१५९॥ अवस्थापतितं दुःस्थतामापन्नम्, ज्ञात्वा, सामर्थ्येन स्वशक्त्या, समुद्धरेत् =द्रव्यतो भावतश्च, तत्र द्रव्यतो नीवीद्रव्याद्यर्पणतो निर्वाहकरणेन; भावतो धर्मस्थिरीकरणादिना, परस्परम्= अन्योन्यं 'सधम्माणं' ति सार्मिकाणाम्, वात्सल्यं = प्रतिपत्तिः इदम् एतत्, परं प्रधानमिति श्लोकार्थः ॥१५९॥ साधर्मिककृत्यं प्रकरणोपसंहारं च वृत्तेनाह अण्णं पि साहम्मियकज्जमेयं जिणागमे पायडमेव जं तु । साहारणं पोसहसालमाई कुज्जा गिही सीलगुणावहं ति ॥१६०॥ १. 'ततश्च' इति ला. प्रतौ नास्ति ।। २. सं.वा.सु. 'मक्षं वा, वाशब्दा' ॥ ३. ला. नीव्याद्यर्प ॥ ४. ता. "ज्जमेवं ॥ ५. ता. "ति ॥१६०|| सावयाणं ति छटुं॥ Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः १२५ अन्यदपि= आस्तां तावत् पूर्वोक्तं तद्व्यतिरिक्तमपि, सामिक कृत्यं = समानधार्मिकप्रयोजनम्, 'एय'ति एतद्वक्ष्यमाणम्, पाठान्तराद्वा ‘एवं'ति अनेनैव पूर्वोक्तप्रकारेण, जिनागमे= अर्हद्दर्शने, 'पायडमेव' त्ति प्रकटमेव प्रसिद्धमेव दीर्घत्वमलाक्षणिकम् 'जं तु' त्ति यकत्. तु, साधारणं सर्वसामान्यं द्रव्यमिति गम्यते, साधारणसमुद्भवनिरूपणमिति भावः, पौषधशालादि= पौषधगृहप्रभृति पौषधशालायां पौषध-सामायिक-प्रतिक्रमणादि विधीयते, यत उक्तम् साहुसैमीवे वा पोसहसालाए वा चेईहरे वा गिहेगदेसे व त्ति," । यद्वा साधारणं सर्वसामान्यं पौषधशालायेव, आदिशब्दाद्विनय-वैयावृत्त्यादिग्रहः 'कुज्ज' त्ति कुर्याद्=विदध्याज्जिनोक्तत्वादिति भावः । तथा च भगवत्यामुक्तम् "तए णं संखे समणोवासए पोसहसालं पमज्जइ पमज्जित्ता अणुपविसई" (शतक१२ सूत्र १२) इत्यादि । गृही= गृहस्थः, 'सीलगुणावह' ति शीलं =सर्वविरतिरूपं तस्य गुणाः = क्षान्त्यादयस्तानावहति विदधाति यस्मात्तदिति शेषः, इति=प्रकरणसमाप्ताविति वृत्तार्थः ॥१६०॥ श्रीदेवचन्द्राचार्यविरचितेमूलशुद्धिविवरणे षष्ठस्थानकविवरणं समाप्तम् । [श्राविकाकृत्याख्यं सप्तमस्थानकम्] व्याख्यातं षष्ठं स्थानकम, साम्प्रतं क्रमायातं सप्तमस्थानकमारभ्यते । अस्य च पूर्वेण सहाऽयमभिसम्बन्धः । पूर्वत्र श्रीवकोचितकृत्यं कर्तव्यतयोक्तम्, तदनन्तरं श्राविकाकृत्यस्थानकम् । तस्य चेदमादिसूत्रवृत्तम् जं सावयाणं करणिज्जमुत्तं, तं सावियाणं पि मुणेह सव्वं । तित्थाहिवाणं (तित्थंकराणं?) वयणे ठियाणं,ताणं विभागेण विसेसकिच्च॥१६१॥ यत् श्रावकाणां= श्रमणोपासकानाम्, 'करणिज्ज' ति करणीयं कृत्यम् = 'उत्तं' ति उक्तं = प्रतिपादितम् तत् श्राविकाणामपि= श्रमणोपासिकानामपि 'मुणेह'त्ति मुणत वेत्थ, सर्व समस्तम्, तीर्थकराणाम् वचने शासने, स्थितानां तिष्ठन्तीनाम् 'ताणं' ति तासाम्, विभागेन= पृथग्भागेन, विशेषकृत्यं पृथक्करणीयमेतदिति शेषः । इति वृत्तार्थः ॥१६१॥ तदेव कृत्यं श्लोकेनाऽऽह १. सं.वा.सु. "समीवं ।। २. ला. श्रावकमधिकृत्य कर्त ॥ ३. सं.वा.सु. °थग्विभा' ॥ ४. इयमुत्थानिका ला. प्रतौ नास्ति ।। Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः साहम्मिणीण वच्छलं सावियाणं जहोचियं । कायव्वं सावयाणं व वीयरोगेहिं वण्णियं ॥१६२॥ 'साहम्मिणीणं' ति समानधर्मवतीनाम्, 'वच्छल्लं' ति वात्सल्यं = वत्सलता तत्कृत्यमिति भावः, श्राविकाणां= श्रमणोपासिकानाम्, 'साहम्मिणीणं' ति एतदस्यैव विशेषणम् यथोचितं यथायोग्यम् कर्तव्यं' करणीयम् श्रावकाणामिव वीतरागैगतरागद्वेषैस्तेषा-मलीकभाषणासम्भवात्, उक्तं च रागाद्वा द्वेषाद्वा, मोहाद्वा वाक्यमुच्यते ह्यनृतम् । यस्य तु नैते दोषास्तस्याऽनृतकारणं किं स्यात् ? ॥३५३॥ वर्णितं प्रतिपादितमिति श्लोकार्थः ॥१६२॥ अत्राऽन्तरे कश्चित् परः प्राहलोए लोउत्तरे चेव, तहाऽणुभवसिद्धिओ । सूरी भासंति भावण्णू नारी दोसाण मंदिरं ॥१६३॥ लोके = सामान्यजने, लोकोत्तरे चैवजिनदर्शने; चैवशब्दो लोकापेक्षया समुच्चयार्थः । तथाऽनुभवसिद्धितः= अनुभवसिद्धेश्च, 'सूरयः' पण्डिताः, भाषन्ते = प्रतिपादयन्ति, भोवज्ञाः तत्स्वभाववेदिनः, 'नारी' स्त्री, दोषाणां विरूपस्वभावानाम्, मन्दिरं गृहमिति श्लोकार्थः ॥१६३॥ यथाऽसौ दोषमन्दिरं तथा श्लोकत्रयेणाऽऽहनारीनाम मणुस्साणं, अभूमा विसकंदली । नारी वज्जासणी पावा, असज्झाऽणब्भसंभवा ॥१६४॥ नारी स्त्री, 'नाम' इति सम्भावनायाम्, 'मणुस्साणं' ति मनुष्याणाम्, अभूमा= भूमिरहिता, विषकन्दली=अभिनवोत्पद्यमानविषलता विषकन्दली हि भूमौ समुत्पद्यते इयं त्वभूमिजा विषकन्दली घारण-मारणात्मकत्वादिति भावः । तथा च जह उवभुत्ता विसकंदली उ घारेइ तह य मारेइ । तह उवभुत्ता नारी, घारइ मारेइ पुरिसगणं ॥३५४।। तथा वज्राशनिः विद्युत्, पापा पापस्वभावा, असाध्या अनिवारणीया, अनभ्र १. ता. 'रागेहि दंसियं ॥ २. ला. भावज्ञाः वक्ष्यमाणभाववे ॥ ३. ला. भूमावुत्प' ॥ ४. सं.वा.सु. “त्वात् । त॥ Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः १२७ सम्भवा=अभ्रव्यतिरिक्तसम्भूतिः वज्रासनी हि (शनिहि?)अभ्रादुत्पद्यते कथञ्चित्साध्या च भवति इयं त्वनभ्राऽसाध्या च मारणात्मकत्वादिति भावः ॥१६४॥ नारी अनामिया वाही दारुणा देइ वेयणा । नारी अहेडेओ मच्चू सिग्धं पाणे विणासइ ॥१६५॥ अनामकः = नामरहितः, व्याधिः = रोगसम्भूतिः, तथा हि यो व्याधिर्भवति स कास-शोषादिनामवान् भवति, इयं त्वनामको व्याधिः, ततश्च दारुणाः= अत्यन्तरौद्राः, ददाति= प्रयच्छति, वेदना:=पीडाः, तथा अहेतुकः= कारणरहितो मृत्युस्तथा हि यो मृत्युर्भवति सोऽध्यवसानादिकारणेभ्यो जायत इयं तु निष्कारणो मृत्युः, शीघ्रं =द्रुतम्, प्राणान् विनाशयति घातयति ॥१६५।।। नारी अकंदरा वग्घी कूरासंघारकारिया । पच्चक्खा रक्खसी चेव, पसिद्धा जिणसासणे ॥१६६॥ अकन्दरा=कन्दरारहिता, व्याघ्री=शार्दूली, सा हि गिरिकन्दरे भवति, इयं त्वकन्दरा व्याघ्री, ततश्च क्रू रा= क्रू रस्वभावा, 'संहारकारिका' प्राणशरीरसंहरणशीला, तथा प्रत्यक्षा=प्रकटा, राक्षसी चैव रक्षोभार्या सा ह्यप्रकटा भवति, इयं तु प्रकटा राक्षसी विनाशकत्वात्, प्रसिद्धा जिनशासने=अर्हद्दर्शने इति श्लोकत्रयार्थः ॥१६४-१६६॥ साम्प्रतं 'नारीदोषान् दृष्टान्तैः प्रतिपादयितुकामः श्लोकचतुष्टयमाहबद्धत्तर नियडीणं कूडाणं कवडाण य । निरायं पूरिया नारी जहा नेउरपंडिया ॥१६७।। बंद्धोत्तर=वक्रोत्तरं यथा श्वासः किं त्वरितागता, पुलकिता कस्मात् ? प्रसाद्यागता स्रस्ता वेण्यपि पादयोनिपतनात् क्षामा किमत्युक्तिभिः । स्वेदाः मुखमातपेन गलिता नीवी गमादागमाद् । __ ति म्लानसरोरुहद्युतिधरस्यौष्ठस्य किं वक्षसि ॥३५५।। निकृतयः मायाः, कूटानि परवञ्चनाद्यर्थः तथाविधप्रयोगविरचनानि, कपटं= स्वकृतदोषोत्तारणार्थमालजालप्रतिपादना, निरायं' ति नितरामत्यर्थम्, पूरिता= भृता, नारी=ललना, यथा नूपुरपण्डिता नूपुरोपलक्षितविदग्धेति श्लोकाक्षरार्थः ॥१६७॥ १. ता. 'उया म° || २. ला. पाणे पणा ॥ ३. ता. वट्टत्तर ॥ ४. सं.सु. बहुत्त । वा. वट्टोत्त' । Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः भावार्थस्तु कथानकगम्यस्तच्चेदम् - [४० नूपुरपण्डिताकथानकम्] अत्थिभरहद्धवासे जंबुद्दीवम्मि सयलगुणकलियं । नामेण वसंतपुरं नयरं तेलोक्कविक्खायं ॥१॥ तत्थाऽरिमयाहिवसप्पमाणगुरुदप्पदलणवणसरहो । पसरंतकित्तिसरिपूरगिरिवरो रायजियसत्तू ॥२॥ तस्स पडिवक्खतारातेओहावणपसिद्धमाहप्पा । ससिचंदिम व्व पयडा अत्थि पिया धारिणी नाम ॥३॥ तत्थ य नयरे सेट्टी नामेणं अत्थि देवदत्तो त्ति । तस्स य धूया पवरा विसिट्ठलावण्णरूवधरा ॥४॥ जीए य रूवजोव्वणसोहग्गोहामियाओ पुहईए । मण्णे सुरंगणाओ पच्चक्खं नेय वियरंति ॥५॥ सेट्ठी कुमारनंदी तीए नयरीए वसइ अण्णो वि । तस्सऽत्थि वरो पुत्तो, नामेणं पंचनंदि त्ति ॥६॥ सा तेणं परिणीया महाविभूईए लोगपच्चक्खं । तीए य समं भुंजइ भोए अच्चतमणुरत्तो ॥७॥ अह अण्णया कयाई, पहाणत्थं सा नई गया बाला । तं मज्जंतं दटुं अह एगो चिंतइ जुवाणो ॥८॥ कामकरिकुंभविब्भमचक्कलउत्तुंगथोरथणवढे । जो रमइ इमीए नरो सो च्चिय इह जियइ जियलोगे ॥९। कोमलमुणालविल्लहलसरलबाहाहिं देइ जस्सेसा । कंठम्मि पासयं सो एक्कोच्चिय धण्णओ एत्थ ॥१०॥ जो परिणयबिंबाफलसमाणअहरामयं पियइ पुरिसो। एईए सइच्छाए सहलं मणुयत्तणं तस्स ॥११॥ किं बहुणा ? सव्वंगं अवगूढो जो इमीए सुरयरसं । भुंजइ तेणित्थ जए पत्तं तेलोक्कसव्वस्सं ॥१२॥ १. ला. 'बाहल' || Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२९ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः इय निब्भराणुरागो तीए भावोवलक्खणनिमित्तं । सुवियड्डयाइ कलिओ एयं गाहुल्लियं पढइ ॥१३॥ 'सुण्हायं ते पुच्छइ एस नई मत्तवारणकरोरु ? । एए य नईरुक्खा अहं च पाएसु ते पडिओ' ॥१४॥ एयं सोऊणं सा चलंतसकडक्खदिट्ठिबाणेहिं । सव्वंगं विधेउं वियड्डयाए इमं भणइ ॥१५॥ सुभगा हुतु नईओ चिरं च जीवंतु जे नईरुक्खा । सुण्हाय पुच्छगाणं घत्तीहामो पियं काउं ॥१६॥ नाऊण तीए भावं घरमाइवियाणणत्थमेईए । सहआगयडिभाणं देइ फलाइं तडितरूण ॥१७॥ दाऊण फले पुच्छइ, ताई तओ कस्स एस णणु धूया ? कस्स व सुण्हा भज्जा ?, गेहं वा कत्थ एईए ॥१८॥ अइमुद्धडत्तणाओ, सव्वं एयस्स तेहिं परिकहियं । जह देवदत्त धूया, सुण्हा उ कुमारणंदिस्स ॥१९॥ भज्जा उ पंचनंदिस्स एस गेहं तु ताण अमुगत्थ । . इय सव्वं नाऊणं, गंतुं सो निययगेहम्मि ॥२०॥ तीए समागमहेउं पव्वाइयमेगमुवयरेऊणं । . तीए सयासं पेसइ सा वि गया तत्थ गेहम्मि ॥२१॥ दिट्ठा य तीए इंती पव्वाई भिसिय-कुंडियविहत्था । तो सा तीए पणामं काऊणं आसणं देइ ॥२२॥ पुच्छइ सुहासणत्थं 'किं भगवई ? किंचि दिट्ठमच्छरियं । सा भणइ 'दिट्ठमामं अच्छरियं एत्थ नयरम्मि' ॥२३॥ 'किं तं?' ति जपइ इमा पव्वाई बोल्लए 'इहं चेव । नयरम्मि सिद्विपुत्तो सुदंसणो नाम सुपसिद्धो ॥२४॥ जो य कुलीणो मइमं मज्झत्थो देस-काल-भावन्नू । गंभीरो मेहावी पडुओ दक्खो महासत्तो ॥२५॥ १. ला. “याए ॥ २. सं.वा.सु. तु ॥ ३. ला. तस्स ॥ मूल. २-१७ Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः चाई रसिओ रूवी बहु मित्तो ईसरो कलाकुसलो । सुभगो विऊ विणीओ, धम्मपरो पत्थणिज्जो य ॥२६।। पुव्वाभासी पडिवन्नवच्छलो सच्चवाइ नयजुत्तो । उज्जलवेसो जसमं सरणागयवच्छलो अहियं ॥२७॥ पावेहि तयं मुद्धे अणुरूवं रूवजोव्वणगुणड्ढे । अइअणुरत्तं भत्तं, भत्तारमणण्णसारिच्छं" ॥२८॥ 'तप्पेसियय'त्ति नाउं सुवियड्डा सा वि 'मा हु छक्कण्णं । होउ रहस्समिमं पि वि पव्वाई वंचयामि त्ति ॥२९॥ चिंतेऊणं एयं थालीतलकरणवावडाइ तओ । पंचंगुलीहिं पहया पव्वाई पुट्ठिदेसम्मि ॥३०॥ पभणइ य इमं 'पावे ? वइणी होऊण जीवसेकीस । कुलवहुसीलब्भंसणवयणाई पयंपमाणी उ?' ॥३१॥ तो सविलक्खा एसा पुट्ठिपहारं इमस्स दायंती । जंपइ 'पुत्त ! न जोग्गा तुह सा सीलम्मि पडिबद्धा' ॥३२॥ चितेति इमो वि अहो ! वियड्ढया तीएऽणण्णसारिच्छा । जं एसा विवराई पव्वाई वंचिया मुद्धा ॥३३॥ दिण्णो मह संकेओ कसिणाए पंचमीए रयणीए । पच्छिमपहरदुगम्मि ठाणं तु न सूइयं एत्थ ॥३४॥ ता पेसेमि पुणो वि हु संकेयट्ठाणजाणणनिमित्तं । एयं' ति चिंतिऊणं पव्वाइं भणइ पुण एसो ॥३५॥ 'जइ वि हु सा सीलवई तह वि हु गंतूण भणसु तह अम्मो ? । एकं वारं जेणं मह चित्तं मुयइ अणुबंध' ॥३६॥ तं पुणरवि पव्वाई गंतूणं भणइ महुरवयणेहिं । चिंतइ वहू वि एसा 'किमत्थ इह आगया पुण वि ? ॥३७॥ हुं नायं संकेय द्वाणं न य दंसियं मए तस्स । तेणेसा पट्ठविया' अहिययरं रूसिया बाला ॥३८॥ १. ला. 'लप्फंस || २. ला. रूसिउं । Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३१ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भाग: 'आ निल्लज्जे ! धिटे ! तह वि हु निब्भच्छिया पुणो आया । फेडिमि तुज्झ आसं' इय वोत्तुं उट्ठिया एसा ॥३९॥ घेत्तुं कंठम्मि तयं पव्वाइमसोगवणियदारेणं । निद्धाडइ सा वि तयं सव्वं साहेई इयरस्स ॥४०॥ सो विण्णायसरूवो, जंपइ 'अम्मो ! न तीए मह कज्जं । जा एवमणणुरागां तुज्झ वि वयणं न मण्णेइ' ॥४१॥ अह संकेयदिणम्मि पत्ते सो जाइ मज्झराईए । सा वि नियं भत्तारं रंजेउं सुरयसोक्खेणं ॥४२॥ सुत्तम्मि तम्मि पच्छा गच्छइ जारस्स अंतियं एसा । तेण वि संह सुरयसुहं भुंजइ विविहप्पयारेहिं ॥४३॥ अइसुरयचड्डणानिस्सहाई खिन्नाइं दो वि सुत्ताई। जा ताव तीए ससुरो समागओ देहचिंताए ॥४४॥ पेच्छइ विडेण समयं पासुत्तं नियवहुं तओ एसो । चिंतइ न एस पुत्तो मज्झं अन्नो विडो को वि ॥४५।। अइनिच्छयकरणत्थं पलोयए जाव वासभवणम्मि । ता पेच्छइ पल्लंके एक्कल्लं निय सुयं सुत्तं ॥४६॥ तं दट्ठणं कुविओ पच्चयहेउं तु तीए पायाओ । उत्तारित्ता सणियं घेत्तूणं नेउरं जाइ ॥४७॥ सा वि तयं घेप्पंतं ससुरेणं जाणिऊण भयभीया । उट्ठवइ तयं जारं साहइ सव्वं पि से कज्जं ॥४८॥ पभणइ य 'जाहि सिग्धं पत्थावं जाणिऊण साहिज्जं । नियपोढिमाइ सरिसं कायव्वं जं जहाजोग्गं' ॥४९॥ विगयम्मि तम्मि सा वि हु सणियं सणियं पइस्स पासम्मि । पल्लंकम्मि निसीयइ खणेण उट्ठाविउं कंतं ॥५०॥ जंपइ य एत्थ घम्मो असोगवणियाए जामु ता नाह ! । अवियाणियपरमत्थो सो वि गओ तत्थ तीए समं ॥५१॥ १. सं.वा.सु. “इ एयस्स || २. ला. सह विसयसुहं ।। ३. ला. इय नि ॥ Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः जा सुत्तो ताव तयं उट्ठावित्ता पयंपई एसा ।। "किं तुम्ह कुले एसो आयारोऽणण्णसारिच्छो ? ॥५२॥ जं नियपइणा वि समं सुत्ताए वहूए नेउरं ससुरो। पायाओ उत्तारिय घेत्तूणं जाइ' सो आह ॥५३॥ 'सुयसु पिए ? निच्चिता कत्थ तयं वच्चिही पभायम्मि । अप्पिस्सई' सा जंपइ ‘नणु मग्गसु संपयं चेव' ॥५४॥ सो भणइ 'पिए ! ताओ न चेव दूरं गमिस्सइ कहिं पि । सा भणइ 'अत्थि एवं परं कलंकं मह विलग्गं' ॥५५॥ सो भणइ 'मए साहीणयम्मि को तुज्झ कुणइ वयणिज्जं? । ता सुयसु जओ निद्दा आगच्छइ अम्ह अइअहियं' ॥५६॥ सा जंपइ 'जइ एवं ता सुयसु परं पभायकालम्मि ।। एयस्स पुण विवागं पेच्छिहिसि न एत्थ संदेहो' ॥५७॥ एवं जपंताई पासुत्ताइं खणंतरं जाव । ताव पभाया रयणी परिविंगलइ तारयानियरो ॥५८॥ वासंति तंबचूडा मूयं लिज्जंति घूयसंघाया। करकरकरंति काया चुहु चुहु वासंति घरचिडया ॥५९॥ पाहाउयतूराइं वज्जंति पयट्टए पहियलोगो । एत्थंतरम्मि जाया पुव्वदिसा रायरत्त व्व ॥६०॥ अहवा पइसंजोगे रत्त च्चिय इत्थिया हवइ बाढं । खणमित्तेण य विहसइ पहुछित्ता पोढमहिल व्व ॥६१॥ तत्तो कमेण उइओ दिणनाहो वियसमाणकरपसरो ।। पयडी काऊण व तीए दुट्ठचिट्ठाओ लोयाण ॥६२॥ तो उट्ठिऊण वच्चंति दो वि गेहम्मि जाव ता तेण । सिटुं सव्वं पि तयं एगंते ठविय नियपुत्तं ॥६३॥ सो भणइ 'ताय ! अहयं पि किं तए नणु परो त्ति परिकलिओ ?' । जणओ वि भणइ 'पुत्तय ! आसि तुमं निययसेज्जाए ॥६४॥ १. ला. दूरे ॥ २. सं.वा.सु. मह सहीणम्मि को ॥ ३. ला. "वियलइ ॥ ४. ला. गाढं । Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३३ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः एसा पुण अण्णेणं केण वि सह आसि पुत्त ! पत्तियसु । सुहनिदाए पसुत्तो तइय च्चिय बोहिओ न तुमं' ॥६५॥ सो भणइ 'ताय ! वुड्डत्तणेण ते लोयणा विसंवइया । निद्दावसेणे य पुणो रयणीए न सुटु पेच्छंति' ॥६६॥ थेरो भणइ 'न एवं मह पत्तिय होइ नऽन्नहा एवं' । तो तडियभिउडिभासुरवयणो पुत्तो पयंपेइ ॥६७॥ 'आ पावय ! किं चलिओ सि तंसि मह तीए तक्खणं चेव । सिट्ठ' मिय विवयमाणाण ताण तो जंपए वहुया ॥६८|| 'जइ एवं तो सुद्धा अहयं काहामि भोयणं अज्ज' । तं सोऊणं सयणो सव्वो वि हु तक्खणं मिलिओ ॥६९॥ जंपइ य तओ लोगो 'सुद्धी एयाए का हु दायव्वा' । केणाऽवि तओ भणियं 'किमित्थ बहुयाहिं सुद्धीहि ॥७०॥ सन्निहियपाडिहेरे जक्खे अप्पाणयं विसोहेउ । 'एवमिणं' सा जंपइ तो सामग्गी कया सव्वा ॥७१॥ ण्हाया कयबलिकम्मा सियकुसुमविलेवणा सियदुगुल्ला । संयणेहिं संपरिखुडा संचलिया जक्खभवणम्मि ॥७२॥ सो वि हु तीए जारो सव्वं एयं तु लोगवयणाओ। जाणित्ता कयकारिमगहवेसधरो समायाओ ॥७३॥ धूलीधूसरियतणू जरडंडीखंडनिवसणधरो उ । बहुडिंभविहियकोलाहलेण पूरंतदिसियक्को ॥७४॥ नच्वंतो गायंतो रोयंतो तह य पोक्करंतो य । आलिंगतो बहुविहनारिगणं जाइ तयहुत्तं ॥७५॥ सव्वंगं आलिंगइ तत्तो लोगेण पेल्लिओ दूरं । 'आ पाव ? किं तइ इमं छित्ता जक्खालयं जंती ?' ॥७६॥ तो पुणरवि पक्खालियदेहा जक्खालयं गया झत्ति । पूएइ तयं जक्खं विहीए लोए हिं परियरिया ॥७७॥ १. ला. तुह ॥ २. ला. “ण न पुणो रयणीए सुदु ।। ३. ला. सयणाईहि परि ॥ ४. लोएण ॥ Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः विण्णवइ 'जक्ख ! भयवं ! सच्चोऽसि तुमं ति जं किर असुद्धं । जंघातलेण जंतं चंपेऊणं दढं धरसि ॥७॥ ता निसुणसु विण्णत्तिं गुरुदेवविइण्णयं नियं कंतं । एयं च सव्वपयडं गहिल्यं मोत्तु जइ अन्नो ॥७९॥ लग्गो मह अंगम्मि सच्चेण इमेण साविओ तं सि। ता धरसु ममं अन्नह न वत्ति' इय जंपिउं सिग्धं ॥८०॥ अव्वो किमित्थ जुत्तं ? ईहापूहाइवट्टमाणस्स । जक्खस्स विणिक्खंता जंघाजुयलस्स मज्झेणं ॥८१॥ चिंतइ जक्खो वि इमं 'कह छलिओऽहं इमीए धुत्तीए ?' । एत्यंतरम्मि तीए उच्छलिओ साहुवाओ त्ति ॥८२॥ 'अहह ! महासइ एसा कज्जेण विणा खलीकया एवं । परिनिदिओ य ससुरो 'धिसि धिसि नाणस्स तुह पाव ?' ॥८३।। अह गहिरतूरसद्देहिं निययभवणं समागया एसा । विहियं वद्धावणयं तीए जणएहिं पइणा य ॥८४॥ ससुरस्स वि य अवक्खा जाया कह सो वि वंचिओ जक्खो । एईइ अवक्खाए निद्दा दूरेण ओसरिया ॥८५॥ तं च सुयं नरवइणा जह निद्दा नत्थि कुमरनंदिस्स । ता अंतेउररक्खो सुंदरओ होइ नणु एसो ॥८६॥ तो हक्कारिय ठविओ नरनाहेणं महल्लयपयम्मि । जा देवीओ रक्खइ ता पेच्छइ ताण मज्झम्मि ॥८॥ उट्टितनिसीयंतं चलवल्लुव्वेल्लयं करेमाणं । एकं देवि तत्तो पासुत्तयविड्डयं कुणइ ॥८८॥ तं सुत्तं नाऊणं जालगवक्खम्मि सा समारूढा । तस्स तले नरवइणो आगलियं हत्थिवररयणं ॥८९॥ तो मिठचोइएणं करिणा उत्तारिया करग्गेण । किं अइवेला विहिया मिढेणं संकलाइ हया ॥१०॥ १. ला. 'वयदिनयं इमं कंतं ॥ २. ला. लग्गइ मह ॥ ३. ला. सद्देण ॥ Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः जंपइ य ‘नाह ! मा ताडसु' त्ति जो अज्ज राइणा दिण्णो । अंतेउरआरक्खो एत्तियवेलाए सो सुत्तो ॥ ९१ ॥ तो तेण केसगहणाइपुव्वयं निब्भरं रमेऊण । पुण तेणेव कमेणं चडाविया मत्तवारणयं ॥९२॥ चितइ सेट्ठी वि तओ 'रक्खिज्जंताओ एवमेयाओ । जइ एवंचिट्ठाओ ता. अम्हे पुण्णभाइ ति ॥९३॥ जाणऽज्ज वि महिलाओ नीराइगयाउ इंति नियगेहं । इय चिंतिउं पसुत्तो निब्भरनिद्दाइ सो सेट्ठी ॥९४॥ जावुग्गए वि सूरे न उट्ठए ताव पुव्वपाहरिया । साहंति य नरवइणो जह 'अम्हे उग्गए सूरे ॥ ९५ ॥ उट्टंता एसो पुण न उट्ठए उग्गए वि सूरम्मि' | रण्णा भणियं 'मा उट्ठवेह जावुट्ठए न सयं' ॥९६॥ अह सत्तमम्मि दिवसे विगए सो उट्ठओ तओ रण्णा । दुद्धं घयगुलमीसं तु पाइओ विज्जवयणेण ॥९७॥ तो जाव सत्थओ सो संजाओ ताव पुच्छिओ रण्णा । 'किं अइबहुयं सुत्तो ?' तेणाऽवि हु जंपियं 'देव ? ॥९८॥ अत्थि इह कारणं किंतु देव ! साहेमि कुणह एगंतं' । अवलोइयमित्तेणं सव्वा ओसरइ सा परिसा ॥९९॥ तो साहिउं पवत्तो 'देव ! न याणामि का वि सा देवी । साहिन्नाणं पुण से पिट्ठीए संकलाघाओ ॥१००॥ १३५ एएण कारणं विगयावक्खस्स देव ? मह जाओ । बहुदिवससेवणिज्जो सहसा निद्दाभरो अहियं ॥ १०१ ॥ सम्माणिऊण सेट्ठी एण विसज्जिओ गओ गेहं । ती वियाणणत्थं, भिंडमयं कुणइ करिनाहं ॥ १०२॥ अंतेउरस्स मज्झे जंपइ 'देवीओ करिवरं एयं । गयवसणाओ लंघह मम विग्घविघायणट्ठाए' ॥१०३॥ १. ला. चिंतिऊण सुत्तो ॥ २. ला. उट्ठई ॥ ३. ला. सुत्तं ॥ ४. ला. पयत्तो ॥ ५. सं. वा.सु. पट्टीए संकलपहारो ॥ ६. एतदुत्तरार्द्ध ला. संज्ञकप्रतावेव ॥ Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः लंघति निव्वियप्पं ताओ सव्वाओ रायपच्चक्खं । गयवसणाओ नवरं जंपइ सा दुट्ठपत्ती से ॥१०४॥ "बीहेमि अहं एयस्स देव !' तो राइणा अणक्खेहिं । उप्पलनालेण हया निवडइ मुच्छाए धरणियले ॥१०५।। तो पुढेि जा जोयइ ताव य सो नियइ संकलपहारे । ते दट्ठणं कुविओ राया गाहुल्लियं पढइ ॥१०६॥ मत्तगयमारुहंतिए भिंडमयस्स हथिस्स बीहयंतिए । तत्थ न मुच्छिय संकलाहया, एत्थ य मुच्छिय उप्पलाहया' ॥१०७॥ तो कोवफुरियअहरेण नरवरिंदेण ताणि वज्झाणि । तिण्णि वि आणत्ताई मिंढो देवी गइंदो य ॥१०८॥ 'गयखंधे आरोविय पाडेह इमाणि छिण्णटंकाओ' । आरूढाई तिण्णि वि छिण्णटुं कम्मि तो लोगो ॥१०९॥ भणइ किं देव ! एसो तिरिओ हत्थी वियाणई जेण । मारिज्जइ राया वि हु न मुयइ कोवं तदुवरिम्मि ॥११०॥ चोइज्जंतो हत्थी एगं पायं ठवेइ आगासे । पुण चोइयो य बीयं पुणरुत्तं चोइयो तइयं ॥१११॥ जा तिहिं पाएहिं करी आगासे ठाइताव लोगो वि । हाहाकारं काउं जंपइ एयारिसं वयणं ॥११२॥ 'अहह ! अह निव्विवेओ एस नरिंदो न एत्थ संदेहो । जो एरिसकरिरयणं विणा वि कज्जं विणासेइ' ॥११३॥ तं सोउं नरनाहो वियलियकोवो पयंपइ मिठं । 'किं तरसि नियत्तेउं करि ?' तओ सो वि पडिभणइ ॥११४॥ जइ देवीए समाणं मह अभयं देसि तो नियत्तेमि' । रण्णा वि य पडिवण्णे नियत्तिओ तेण करिनाहो ॥११५॥ भणियाणि ताणि दोण्णि वि मह विसयं चइय जाह अन्नत्थ । ताणि वि हिंडंताई पत्ताई कमेण एगत्थ ॥११६।। १. सं.वा.सु. भंड' ॥ २. सं.वा.सु. गयंदो ॥ Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३७ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः नयरम्मि तत्थबाहिरदेवउले सुत्तयाई रयणीए । अण्णो वि तत्थ पविसइ नागरयपरद्धओ चोरो ॥११७॥ नागरएहिं य भणियं र रे वेढेह देउलं एयं । मा पविसंताणेसो घायं अदि(दि)?ओ काहिइ ॥११८॥ गिहिस्सामि(?मो) पभाए' वेढित्ता देउलं ठिया एए । भममाणो य भएणं लग्गो सो तीइ अंगम्मि ॥११९॥ तस्स य अउव्वफासं वेएउं मुच्छिया भणइ एसा । 'को सि ? तुमं भो ! साहसु सो जंपइ 'तक्करो अहयं ॥१२०॥ लोएहिं परब्भंतो एत्थ पविट्ठो मि' भणइ तो एसा । 'आहरणरयणपुण्णं पडिवज्जसि जइ ममं भद्द ? ॥१२१॥ तो रक्खेमि निरुत्तं तुम इमं अप्पिऊण लोगाण । नियनाहं' तेणाऽवि हु सुजुत्तिजुत्तं ति पडिवण्णं ॥१२२॥ रइसोक्खं कित्ति जीवियं च वित्तं च देइ जा तुट्ठा । तं सयमागच्छंती को मुंचइ कामधेणु व्व ॥१२३॥ जाए य तो पभाए तिण्णि वि गहियाई तेहिं पुरिसेहिं । जंपइ य तओ मिठो 'नाऽहं चोरो अहो भद्दा !' ॥१२४॥ जंपइ य सयललोगो 'दोण्णि इहं देसियाई एगो य । चोरो परं न नजड़ को चोरो पंथिओ को वा ?' ॥१२५।। पुट्ठा य तओ महिला भद्दे ? को तुह इमाण भत्तारो ?' । गहिउं करम्मि गोरं सा जंपइ 'एस मे भत्ता ॥१२६॥ दिण्णो देव-गुरूहि एसो पुण तक्करो' तओ तेहिं । सुद्धसहावो वि इमो गहिओ मिठो विचितेइ ॥१२७॥ "विहिणो वसेण कम्म जयम्मि तं किंपि पाणिणो पडइ । जं न कहिउं न सहिडं न चेव पत्थाइउं तरइ ॥१२८॥ सव्वाणं पि अणत्थाण मूलमेसा जगम्मि नणु महिला । तव्वसवत्ती जीवो पावइ दुक्खाई घोराइं ॥१२९॥ उक्तं च मूल.२-१८ Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः दुःस्वभावा यतश्चैता निसर्गादेव योषितः । ततो नाऽऽसां वशं गच्छेद्धितार्थी प्रेत्य चेह च (॥३५६॥) ॥१३०॥ गणयन्ति न रूपाढ्यं नाऽर्थाढ्यं न प्रभुं कुलीनं वा । मन्मथपीडितगात्राः स्वच्छन्दाः सम्प्रवर्तन्ते (॥३५७॥) ॥१३१॥ भ्रातृसमं पुत्रसमं पितृसमं यान्ति नेह लज्जन्ते । . मन्मथदाविष्टा गाव इवाऽत्यन्तमूढत्वात् (॥३५८॥) ॥१३२॥ त्यजन्ति भर्तृनुपकारकर्तृन् विरक्तचित्ता अपि घातयन्ति । खलेऽपि रज्यन्त इह स्वतन्त्रा भुजङ्गपत्न्यः प्रमदाश्च तुल्याः (॥३५९॥) ॥१३३॥ रागमेकपदमेव हि गत्वा, यान्ति शीघ्रमविचार्य विरागम् । चञ्चलत्वमिदमात्मवधार्थ, योषितां च तडितां च समानम् (॥३६०॥) ॥१३४॥ आधारो मानसानां कपटशतगृहं पत्तनं साहसानां, तृष्णाग्नेर्जन्मभूमिर्मदनजलनिधि: कोपकान्तारपारः । मर्यादाभेदहेतुः कुलमलिनकरी नित्यदुर्ग्राह्यचित्ता, स्त्री नामाऽतीवदुर्गं बहुभयगहनं वैरिणा केन सृष्टम् ? (॥३६१॥) ॥१३५॥ वचनेन हरन्ति वल्गुना, निशितेन प्रहरन्ति चेतसा । मधु तिष्ठति वाचि योषितां, हृदये हालाहलं सदा विषम् (॥३६२॥) ॥१३६॥ अत एव मुखं निपीयते, वनितानां हृदयं तु ताड्यते । पुरुषैः सुखलेशवञ्चितैः, मधुगृद्धैः कमले यथाऽलिभिः" (॥३६३॥) ॥१३७॥ इय चितंतो मिठो सूलाएं रोविओ तओ नेउं । अच्छइ जा खणमेक्कं जिंणदासो नाम ता सड्डो ॥१३८॥ तेणउं तेणं वोलइ दट्ठणं तं पयंपई मिठो। 'भई ! विसिट्ठो दीससि ता कुणसु ममोवरि दयं ति ॥१३९॥ पाएहि जलं सामिय ! तिसाभिभूओ जओ अहं अहियं'। तं सोउं जिणदासो पभणइ 'जइ भद्द ! सुमरेसि ॥१४०॥ एयं जिणनवकारं दुहगिरिवरदारणेक्कवरकुलिसं' । सो पाणियलोभेणं पढइ तयं सिट्ठिवयणाओ ॥१४॥ १. ला. ए तेहिं रोविओ नेउं ॥ २. सं.वा.सु. जिणयासो ॥ ३. ला. दीससि भह ! विसिवो ता ॥ Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३९ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः सेट्ठी वि सीयलजलं घेत्तूणं एइ जाव ता मिठो । दद्रुण जलं इंतं मणम्मि उक्करिसिओ बाढं ॥१४२॥ काऊण गरुयथाम उग्घोसइ जाव पंचनवकारं । भिन्ना झडत्ति सूला मरिऊण य वंतरो जाओ ॥१४३॥ दट्ठण निययरिद्धि ओहिन्नाणेण जा पलोएइ । ता पेच्छइ नियदेहं सूलाए उवरि संभिन्नं ॥१४४॥ पंचनमोक्कारफलं एयंति वियाणिऊण जा नियइ । तो पेच्छइ जिणदासं गहियं आरक्खियनरेहिं ॥१४५॥ चोरस्स भत्तदाई एसो ति निवेण ठाविओ दोसं । भामित्तु नगरमज्झे पच्छा वज्झो समाणत्तो ॥१४६॥ तं वज्झं निज्जंतं दटुं देवो समागओ तुरियं । नयरस्सुवरि विउव्वइ अच्चंतमहालयं सेलं ॥१४७॥ तं दटुं नरनाहो भयभीओ सयललोगपरियरिओ । धूवकडच्छुयहत्थो विण्णवई तम्मुहो होउं ॥१४८॥ 'देवो व दाणवो वा जो को वि हु कोविओ अयाणेहिं । सो खमउ अम्ह सव्वं' इय भणिए जंपए देवो ॥१४९॥ 'र रे पाव ! नराहिव ! अवियारियकज्जकारय ! अणज्ज । चूरेमि निच्छएणं' इय भणिए भणइ पुण वि निवो ॥१५०॥ 'अन्नाणेणं सामिय ! जं किंचि कयं खमेहि तं सव्वं । तुह आणानिद्देसे वट्टामो संपयं अम्हे' ॥१५१॥ रे रे ! निरावराहो अहयं पि विणासिओ विसेसेण । एसो पुण मज्झ गुरू वज्झो आइट्ठओ तुमए ॥१५२॥ पावेसु जो अपावो वंचणनिउणेसु जो सया सरलो । अदयेसु वि दयकलिओ सत्तूसु वि जो सया मित्तो ॥१५३॥ तियसाण वि जो पुज्जो जिणधम्मपरो समत्थगुणनिलओ । सो वि हु. वज्झो विहिओ एमेव य कह तए पाव ! ॥१५४॥ १. सं.वा.सु. जिणयासं ॥ २. ला. च ।। Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः ता जइ तं खामे महाविभूईए पेससि परम्मि । ता तुह मोक्खो अन्नह पुरिसहियं झत्ति चुण्णेमि' ॥१५५॥ तं सोउं नरनाहो सहस त्ति 'समुट्ठिओ सपरिवारो । खामेत्तु तयं सेट्ठि महाविभूईए आइ ॥ १५६ ॥ देवो 'वि निययचरियं संसिय नीसेसलोगपच्चक्खं । वंदित्ता जिंणदासं पुणो वि ओहिं पउंजेइ ॥१५७॥ एत्तो चोरेण समं वच्चइ पंथम्म हरिसिया देवी । साहिंती नियचरियं भयजणयं चोरपुरिसस्स ॥ १५८॥ सोऊण तीए चरियं भयभीओ जाइ इय वियप्पंतो । जह किर एसा पावा मारिस्सइ कत्थवि ममं पि ॥१५९॥ तो परिहरामि एयं चितंतो जाव जाइ ता पुरओ । पेच्छइ जेलपडिपुण्णं महानइं अइदुरुत्तारं ॥ १६०॥ तो भणिया तेणेसा 'वत्थालंकारमाइयं सव्वं । अप्पेहि जेण पारे मोत्तूणं णेमि तं पुण वि' ॥ १६१॥ तो तीए निव्वियप्पं चोरस्स समप्पियं तयं सव्वं । जहजायतणू थक्का, चोरो वि तयं गहेऊण ॥ १६२॥ उत्तरि जा चलिओ पुरओ ता तीए जंपियं एवं । 'किं मं मोतुं चलिओ ? हरेसि किं भंडगं एयं ॥१६३॥ भणियं चाऽऽवस्सयचुन्नीए ७ पुन्ना नई सा तडि कागपेया सव्वं चिमं भंडग तुज्झ हत्थे । जहा तुमं तीरंगंतु(?तीरमतीतु) कामो ध्रुवं तुमं भंडगहाउकामो ॥३६४॥ ॥१६४॥ तेण भणियं - A 'चिरसंथुयं चाऽलियसंथुएण में लेपि ताव ध्रुव अध्रुवेण । जाणेप्पि तुज्झं प्रकृतिस्वभावं अन्नो नरो को मुँह वीससेज्जा ? ( ॥ ३६५॥) ॥१६५॥ १. ला. पुरस° ॥ २. ला. 'मुट्ठिउं ॥ ३. सं.वा.सु. जिणयासं ॥। ४. ला. कत्थइ । ५. सं.वा.सु. जडप'. ॥ ६. A 4 एतच्चिद्वयान्तर्गतः पाठः ला. संज्ञकप्रतावेवोपलब्धः ॥ ७. " पुन्ना नई दीसति कागपेया" इति मुद्रितावश्यकचूर्णां ॥ ८. "जहा तुमं पारमतीतुकामो" इति मुद्रितावश्यकचूर्णी, दृश्यतां ४६४ तमं पत्रम् ॥ ९. थूओ वाड' मुद्रितावश्यकचूर्णौ ॥ १०. मेल्लेवि मुद्रितावश्यकचूर्णां ॥ ११. पण्णो मुद्रितावश्यकचूर्णौ ॥। १२. सं. वा. सु. तव ॥ Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४१ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः इय एवं जंपतो गओ इमो सा वि लज्जमाणी ये। सरथंबमावरित्ता चिट्ठइ अर्से झियाइती ॥१६६॥ एत्थंतरम्मि दिट्ठा देवेणं तो किवाए सो तत्थ । आगंतूण विउव्वइ कोल्हुगरुवं तहिं एकं ॥१६७॥ मुहगहियमंसपेसीसमण्णियं तह नईए तीरम्मि । उच्छल्लयं च मच्छं मयगं पिव अंइमहाकायं ॥१६८॥ मोत्तूण मंसपेसिं मच्छस्स पहाविओ इमो जाव । ता उच्छल्लिय मच्छो नइनीरे झत्ति संपत्तो ॥१६९॥ मंसं पि सउलियाए अक्खित्तं तं नियच्छिउं एसा । कलुणं झियायमाणं एवं तं कोल्हुगं भणइ ॥१७०॥ 'साहीणं मंसं उज्झिऊण पत्थेसि मूढ ! रे ! मीणं । इण्हि दुण्ह वि चुक्को अप्पाणं खायसु सियाल ?' ॥१७१॥ सियालेण भणियं'करसंछाइयगुज्झे ! मइलियसप्पुरिसकुलहरे ! पावे । नरनाह-मिठचोराण चुक्किया रुयसु अप्पाणं ॥१७२॥ तं सोऊणं एसा अव्वो तिरिया कहं णु जंपंति । भयवेविरसव्वंगा संजाया तक्खणं चेव ॥१७३॥ ता देवो तप्पुरओ रूवं मिठस्स विहिय अवयरिओ । साहेइ निययचरियं सवित्थरं जं जहावत्थं ॥१७४॥ कहियम्मि तम्मि तो सा जोडियकरसंपुडा तयं भणइ । 'आइस पावाए मए जं कायव्वं तयं इण्हि' ॥१७५॥ जंपइ य तओ देवो 'भद्दे ! तं सव्वपावनिद्दलणि । गिण्हसु जिणवरदिक्खं' इय भणिएं जंपए एसा ॥१७६।। अवणेहि कलंकमिणं जेणं सुद्धं करेमि सामण्णं । तो तेणं उप्पाडिय खणेण नीया वसंतपुरे ॥१७७।। १. ला. उ. ॥ २. ला. अह म ॥ ३. ला. “ए भणइ तो एसा ॥ Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः भेसविएणं रण्णा अइघोरपिसायरूवतियसेण । सम्मावि(णि?)या समाणी गिण्हइ जिणदेसियं दिक्खं ॥१७८॥ उग्गं काऊण तवं अणसणविहिणा मरित्तु सा तत्तो । .... वरकंति-सत्तिजुत्तो देवो तियसालए जाओ ॥१७९॥ नूपुरपण्डिताख्यानकं समाप्तम् ॥४०॥ नारी साहस्सिया कूरा, जहा भत्तारमारिया । नारी पच्छाउबुद्धीया जहा सा पियदंसणा ॥१६८॥ नारी साहसिका साहसवती, क्रूरा=दुष्टाध्यवसाया, यथा भर्तृमारिका पतिविनाशकारिणी, तथा नारी पश्चाद्बुद्धिः = पाष्णिकामतिः, यथा सा प्रियदर्शना= चन्द्रावतंसकभार्येत्यक्षरार्थः ॥१६८॥ भावार्थस्तु कथानकाभ्यां गम्यः तत्र तावत् पतिमारिकाकथानकमाख्यायते [४१. पतिमारिकाकथानकम्] अत्थि इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे भरुयच्छं नाम नयरं । जं च सप्पुरिसदेहं व नम्मयाकलियं, अरणं व वरसप्पायारं कसमीरं व पहाणफलिहाणुगयं, केलाससिहरं पिव धवलहरालंकियं, बंभाणं पिव सयाणंदे, विण्डं पिव पउमावासं, जिणेसरं पिव बहुसत्ताहारं, बुद्धं पिव सुगयं, अवि य जं देवेहिं समाएं उवमिज्जइ तस्स वत्तणा कहणु ? । .. धरणियलकोउगेण व अवयरियं सग्गनयरं व ॥१॥ तत्थ य अइउज्जुगो अत्थि गंगाइच्चो नाम थेरुवज्झायमाहणो, सो य पाढइ पभूयजडिंभरूवाणि, विढत्तं च बहुयं दव्वं । तओ परिणीया तेण पउरदव्वप्पयाणेण एगस्स दारिद्दमाहणस्स धूया नवजोव्वणुधुरा गोरी नाम कण्णया सा य अइवियड्डा, अवि य अइसुवियड्डा चउरा बहुकलकुसला सुरूवसंपन्ना। नवजोव्वणउम्मत्ता न हु तिप्पइ तेण सा पइणा ॥२॥ तो पिंडारो तीए अह विहिओ उववई मयंधाएं । छंडित्ता कुलसीले दिणे दिणे जाइ रयणीए ॥३॥ तस्स सयासं अच्छइ तेण समं रइसुहाई धुंजंती । न मुणइ य उवज्झाओ मुद्धो तीसे इमं चरियं ॥४॥ १. सं.वा.सु. संपुन्ना ॥ २. ला. मुणेइ उ ॥ Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः १४३ जया य बलिवइसदेर्वकाले उवज्झाओ कायबलिं पयच्छावेइ तया भणइ - अहं कायाणं बीहेमि । तओ सो उवज्झाओ उजुसहावयाए तीए कवडत्तणं पि सभावं मण्णमाणो चट्टे आइसइ, अवि य 'भो भो चट्टा ! एसा तुम्हाणोज्झायणी अइभयालू । धणुहत्था कायाणं वारंवारेण रक्खेह ॥६॥ ते वि हु गुरुणो वयणं तह त्ति पडिवज्जिऊण रक्खंति । वारंवारेण तयं धणुवरसरवावडकरग्गा ॥ ७॥ इओ य ताण मज्झे एगो चट्टो अइवियड्डो उदग्गजोव्वणो पत्ते नियवारऐ चिंतेइ 'हंत ! न एसा अइमुद्धा, किंचन बालो वि कायाणं बीहइ, एसा पुण एवं बीहइ, ता न एयं परमत्थेणं चेव एवंविहं संभावियइ किंतु कट्टरं किंपि वियक्केमि, ता निरूवियव्वा एसा अहोरत्तं' जाव अन्नदियहे तहेव निरूविउं पवत्तो, अवि य जं जं करेइ चिट्टं रंधण- पैयणाइयं तयं सव्वं । पच्छन्नठिओ एसो निरूवए निउणदिट्ठीए ॥८॥ इत्थंतरम्मि सूरो तीए नाहो व्व थेरओ जाओ । असमत्थो दिणलच्छि दइयं पिव रंजिउं सुरए ॥९॥ लोयाणं लज्जाए अवरसमुद्दद्दहम्मि सो लीणो । लज्जाए अहव सूरो पविसरइ जले व जलणे वा ॥ १० ॥ अइरत्तो वि वुत्तणम्मि सूरो पियं अरंजंतो । अहिमाणगरुययाए अत्थमणं सरणमल्लीणो ॥ ११॥ अत्थमियम्मि उ सूरे रत्ता रत्तंबरा य दिणलच्छी । जाया ऽहव पइमरणे कँरेइ एवंविहा इत्थी ॥१२॥ रामेउं असमत्थो वुड्डत्तेणं रवी दिणसिरीए । राउक्कडाइ खित्तो पेल्लेऊणं समुद्दम्मि ॥१३॥ पक्खित्ते नियदइए समुद्दमज्झम्मि अयसभयभीया । पच्छुत्तावेणऽहवा सा वि तर्हि चेव निव्वुड्डा ॥१४॥ पइवहणपावमसिगरुयलेवलित्त व्व कसिणया जाया । परियत्ति लावण्णा रयणिछलेणं व दिणलच्छी ॥१५॥ १. ला. 'वकायबलिं ॥ २. 'ए चिंतियं तेण 'हंत ! ॥ ३. सं.वा.सु. 'पइणा' । ४. सं. वा.सु. कीरइ ॥ Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः एरिसम्म य पओससमए जलाणयणदच्छलेण घडगं घेत्तूण पयट्टा नम्मया महानईपरतीरसंठियपरिचियमहिसीपालसमीवे, अवयन्ना य घडनावाए नम्मयं । एत्थंतरम्मिय अयाणमाणा केवि देसिया कुतित्थेणावइन्ना नम्मयं, गहिया य महामयरेण ओकूवियं तेहि महया सद्देणं । तओ तीए जंपियं जहा अच्छीणि ढंकह एयस्स मयरस्स । तओ तेहिं तहेव कए मोत्तू नट्टो मय । भणिया य ते तीए जहा - किं कुतित्थेणावइण्णा ? एवं च जंपमाणी गया परकूलं । रमिऊण य तेण समं पुणो समागया नियगेहे । दिट्ठे च तं सव्वं पिट्ठओ निरूवमाणेण तेण वियङ्कचट्टेण समागए य नियरक्खणवारए एगाइणि दट्ठूण भणिया सा तेण, अवि य १४४ - दिवा कागाण बीहेसि, रतिं तरसि नम्मयं । कुतित्थाणि य जाणासि अच्छीणं ढंकणौणि य ॥१६॥ ७ तमायण्णिऊण 'अहो ! दिट्ठ सव्वं मम चेट्ठियमणेणं' ति भावे माणीए भणियमिमीए जहा- तुम्हारिसाणं विओगे एयं मए अणुट्ठियं' । तेण भणियं - 'हा ! किमेवं भणसि किं न पिच्छेसि उवज्झायं' । तीए य चितियं जहा - उवज्झायभएण एसो ममं न पडिवज्जइ, ता विणासेमि उवज्झायं, जेण मम एएण सह निरंतरं विसयसुहं भवइ' । तओ रयणीए सुहप्पसुत्तो वावाइओ अणाए भत्ता, अवि य परपुरिसरागरत्ता विसयसुहाऽऽसायमोहिया पावा । मारेइ निर्ययदइयं अइघोरा घोरंपरिणामा ॥१७॥ चितेइ 'हंत एसो पभायसमयम्मि कहणु कायव्वो । ता रत्ति चेव इमं परिवेमि' त्ति चिंतेउं ॥ १८ ॥ छुरियाए खंडखंडं काऊणं भरिय पिडगमेगं तु । 'ता उज्झामि त्ति इमं चिंतंती निग्गयाबाहिं ॥ १९ ॥ इत्थंतरम्मि कुलदेवयाए दिण्णो कर्हिचि उवओगो । ता पेच्छइ तं तीए अइघोरं वइससं विहियं ॥२०॥ तं दट्टु कुलदेवी चिंतइ 'पावाइ केरिसं विहियं । अइनित्ति कम्मं मिच्छेसु वि न निव्वडइ ॥२१॥ १. 44 एतच्चिद्वयान्तर्गतः पाठः ला. प्रतावेवोपलब्धः ॥ २. सं.वा.सु. दिया ॥ ३. ला. 'णाई य ॥ ४. ला. एवं ॥ ५. ला. उज्झायं ॥ ६. ला. उज्झाय ॥ ७ ला. मं ॥ ८. ला. नियं द° ॥ ९. सं.वा.सु. खंडखंडि( डी ) का ॥ Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः ता एईए सीसे पाडेमि इमं ति चिंतिउं देवी । थंभेइ तयं पिडयं तह चेव य तीए सीसम्मि ॥२२॥ तो जा सीसाउ इमा पक्खिवइ महीए किर तयं पिडयं । ता न पडइ तं पिडयं तं दटुं चिंतए एसा ॥२३॥ "हंत ! इमं पावफलं उवट्ठियं नूण किं चि मण्णेमि । जं न वि एवं पिडयं निवडइ मह उत्तिमंगाओ ॥२४॥ ता वच्चामि इओ च्चिय ठाणाउ कहिं पि अण्णदेसम्मि । जत्थ महं नामं पि वि न मुणिज्जइ गरुयपावाए" ॥२५॥ इय चितिऊण चलिया जा ता पेच्छेइ नेय अच्छीहि । नयरे पविसंतीए जायइ साभाविया दिट्ठी ॥२६॥ तो तत्थ नयरबाहिं दिणाणि दो तिण्णि वा वि गमिऊण । तण्हा-छुहाकिलंता पविसई नयरस्स मज्झम्मि ॥२७॥ कुहियं च तयं कुणिमं पूइगलंतं मुहच्छिनासाण । मज्झेण दुब्भिगंधं देविपभावेण अणवरयं ॥२८॥ सव्वत्तो वि य अइदुब्भिगंधपसरंतप्यपवहेहि । अइबीभच्छसरीरा गेहंगेहेण परिभमइ ॥२९॥ 'देह पइमारियाए अम्मो ! गासं ति पावकम्माए' । इय घडखप्परहत्था भमडड सव्वत्थनयरम्मि ॥३०॥ "धीधीपावविलाए निग्घिणनित्तिंसकूरकम्मरए । हणिऊणं भत्तारं कह पुरओ होसि अम्हाणं ? ॥३१॥ ता ओसर निल्लज्जे ! मा चिट्ठसु मज्झ गेहदारम्मि । धिसि धिसि कह ते हत्था बूढा एवं कुणंतीए ॥३२॥ जं भत्तो अणुरत्तो सरलसहावो गुणाण आवासो । निहओ नियभत्तारो तेण अदिट्ठव्विया तं सि ॥३३॥ हा हा ! कह न विलीणा पावं एयारिसं करेऊण । ता जाहि जत्थ सुव्वइ नामं पि वि तुज्झ न हयासे" ॥३४॥ १. ला. -"इ सा नयरमज्झम्मि ॥ २. ला. च्चिय ॥ ३. ला. घिद्धि ॥ मूल. २-१९ Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः इय बहुविहनिंदणयं अवमाणं ताडणं च लोगाओ । हीलणखि सण-गरिहणदुहाई लोगाउ पाविती ॥३५॥ हिंडइ घरघरेणं दुस्सहछुह-तण्हपीडिया अहियं । न लहइ पायं गासं करुणाए को वि पक्खिवइ ॥३६॥ 'परपुरिसरया अहयं अहयं भत्तारघाइगा पावा । अहयं कुलदूसणिया इय गरिहंती' परिब्ममइ ॥३७॥ कालंतरेण केणइ दुक्करतवचरणसोसियंगाओ । सीलंगवरहारससहस्सभरभारियतणूओ ॥३८॥ नवबंभचेरगुत्तीसणाहवरबंभचेरकलियाओ । बायालीसेसणदोसवज्जणादिण्णचित्ताओ ॥३९॥ समतिण-मणि-मोत्ताओ गोयरचरियाए विहरमाणीओ । दिट्ठाओ समणीओ समत्थदुक्खोहदलणीओ ॥४०॥ दवण तओ ताओ पयडसमुभिज्जमाणरोमंचा । पइमारिया विचिंतइ "अहो ! कयत्थाउ एयाओ ॥४१॥ जाहिं इमो वावारो विसयगओ दूरओ परिच्चत्तो । कामासत्ताइ मए कयं पुणो कि पि तं पावं ॥४२॥ जेणं नरयसमाणं इह चेव य दारुणं महादुक्खं । जायं परलोगे पुण पडियव्वमवस्स नरयम्मि ॥४३॥ ता वंदित्तु इमाओ अज्ज पवित्तं करेमि अप्पाणं" । इय भाविऊण पडिया समणीणं चलणजुयलम्मि ॥४४॥ तो साहुणीण तेयं असहंती वंतरी पलाणा सा । पाएसु पडतीए पडियं पिडयं तओ झत्ति ॥४५॥ तं समणीणऽणुभावं दट्ठणं विम्हिया दढं एसा । एयाओ मे सरणं भाविती जाइ ताहिं समं ॥४६॥ दट्ठणुवस्सयं तो गंतूण जलासयम्मि नियदेहं । पक्खालिय सुइभूया पविसइ समणीण वसहीए ॥४७॥ १. ला. नस्यसमाणं जेणं ॥ Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४७ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः . दिट्ठा य तत्थ गणिणी निम्मलपडरयणपाउयसरीरा । अइधवलजलयछन्ना चंदस्स व चंदिमा सोमा ॥४८॥ तं दट्टणं एसा बहलसमुब्भिज्जमाणरोमंचा । वंदइ गणिणीपाए बाहजलोहलियगंडयला ॥४९॥ पुट्ठा य तओ तीए वच्छे ! तें आगयाकओ इहई । तीए य अपरिसेसा मूलाओ अक्खिया वत्ता ॥५०॥ तं सोऊणं गणिणी भणइ अहो ! दारुणं समणुभूयं । इह लोग च्चिय तुमए दुक्कडकम्मस्स फलमउलं ॥५१॥ पइमारिया वि जंपइ सामिणि ! मह कहसु किंपि तं इहि । जेणं भवंतरेसु वि न होमि दुहभायणं अहयं ॥५२॥ तो गणिणीए कहिओ धम्मो खंताइओ दसपयारो । जह वच्छे ? कायव्वा पढमं खंती पुढविसरिसा ॥५३॥ तत्तो य मद्दवं पुण गुरुयणविणयाउ होइ कायव्वं । सव्वत्थ(त्थु)ज्जुसहावत्तणेण अह अज्जवं तत्तो ॥५४॥ लोभच्चाएण तेओ मुत्ती निच्चं पि होइ कायव्वा । तत्तो दुवालसविहो बज्झो अब्भितरो य तवो ॥५५॥ तत्तो य सतरसविहो कायव्वो संजमो सुहत्थीहिं । दसविह चउव्विहं वा तत्तो सच्चं अणुढेयं ॥५६॥ उवगरण-भत्त-पाणाइएसु सोयं तओ विहेयव्वं । आकिंचणं पि तत्तो वराडियाए वि परिहारो ॥५७॥ तत्तो य बंभचेरं उग्गं अइदुद्धरं धरेयव्वं । एसो दसप्पयारो धम्मो सिवसंपयं देइ ॥५८॥ कम्मखओवसमेणं चित्तं एएण रंजियं तीए । भणइ य 'भयवइ ! अहयं जइ जोग्गा देहि तो एयं' ॥५९॥ जंपइ गणिणी 'वच्छे ! जोग्गा तं किंतु अण्णदेसम्मि । इइ भेणिए गणिणीए समंगया अण्णदेसम्मि ॥६०॥ १. सं.वा.सु. तं कत्थ आगया इहई ॥ २. ला. सव्वत्थ उ उज्जु ॥ ३. सं.वा.सु. अओ ॥ ४. सं.वा.सु. अणुढेउं ॥ ५. ला. भणिया ॥ Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ गहिऊण तत्थ दिक्खं काउं तवसंजमं अणण्णसमं । मरिऊण तओ जाया देवो सा देवलोगम्मि ॥ ६१ ॥ पतिमारिकाख्यानकं समाप्तम् ॥४१॥ साम्प्रतं प्रियदर्शनाख्यानकं व्याख्यायते मूलशुद्धिप्रकरणम् - द्वितीयो भागः [ ४२. प्रियदर्शनाऽऽख्यानकम् ] अत्थि इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे सुकइकव्वं व सुवण्णरयणालंर्कियं समत्थरसाणुगयं सालंकारं सुहयं सुगयं विबुहाणंदं सुभासाणुगयं साकेयं नाम नयरं, - तत्थ य जिंणदरिसणाणुरत्तो उत्तमसत्तो विसिट्ठसम्मत्तो । दरियारिजयपवत्तो जिण - मुणिपयपंकयासत्तो ॥१॥ अवगयवरसियवाओ गयमय माओ रणे अणुव्वाओ । कामो व्व पवरकाओ पणईयणनिच्चकयचाओ ||२|| सेवयकयप्पसाओ अट्ठारसपयइजणियअणुराओ । निच्चं चिय सण्णाओ कयपंचपयारसज्झाओ ||३|| पालियवरमज्जाओ सच्छाओ वरकलासुवज्झाओ । चंदवर्डिसयराओ समत्थतेलोक्कविक्खाओ ॥४॥ तस्स य चंदवर्डिसयमहारायस्स सुदंसणा - पियदंसणानामाओ दोण्णि अग्गमहिसीओ । तत्थ पढमाए सयलगुणगणाहारा रूवाइविणिज्जियसुरकुमारा उव्वूढदुद्धरमहारज्जभारा विण्णायकलागमसारा विहियजिणदंसणवियारा सागरचंद - मुणिचंद नामाणो अत्थि दुन्नि कुमारा, पियदंसणा वि तत्तुल्लगुणा चेव गुणचंद - बालचंदनामाणो संति दोणि पुत्ता । एवं च तस्स चंदवर्डिसयरायस्स पुत्त - कलत्तसमण्णियस्स वच्चए कालो । अण्णा य चाउद्दसीदिणे विसज्जियासेससामंताइपरियणो कयबंभचेरपोसहो सिज्जापरिचारिगामित्तपरियणो पविट्ठो वासभवणे तत्थ य निवायनिघाघायत्तणाओ अईवसोहासमुदय समण्णियं असेसावतमसविद्धंससमत्थलट्ठि (ट्ठि) पईवसिहमवलोइऊण चिंतियं जहा-करेमि एयं दीवयसिहमंगीकाऊण किंचि नियमविसेस, जओ संकेयपच्चक्खाणमेयं भयवया वैण्णियं, अवि य १. सं. वा.सु. कियं परमत्थवसाणु ॥ २. सं.वा.सु. सुइहयं ॥ ३. सं.वा.सु. जिणदरिसणाणुरत्तो उत्तमसद्धो ॥ ४. ला. चंडव' एवमन्यत्रापि ॥ ५. ला. 'णो दोनि ॥ ६. सं. वा.सु. 'सं संके ॥ ७ ला भणियं ॥ Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४९ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः अंगुट्ठ-गंठि-मुट्ठी-घर-सेऊ-सास-थिबुग-जोइक्खे । एय संकेयभणियं धीरेहि अणंतनाणीहि ॥५॥ तो जाव इमा पजलाइ दीवसिहा ताव णेय पारेमि । काउस्सग्गप्पडिमा इय चिंतिय ठाइ उस्सग्गे ॥६॥ एवं च पढमपहरे रयणीए वोलियम्मि सो दीवो । विज्झाइउं पयत्तो वियलियनेहो त्ति काऊण ॥७॥ तो सेज्जापालीए मज्झ पहू कह णु अंधयारम्मि । चिट्ठिस्सइ कलिऊणं नेहेणाऽऽवूरिओ पुण वि ॥८॥ एवं च बीयपहरे, तइए ये तहेव तीए परिविहियं । एवं सव्व(व्व)रयणि काउस्सग्गे ठिओ राया ॥९॥ तओ अईवसुकुमालत्तणओ सरीरस्स निग्गओ फुट्टिऊण चलणेसु रुहिरप्पवाहो, नित्थामं जायं सरीरं, वियलियाई अंगाई, मउलियाई लोयणाई, निरुद्धो सासप्पसरो, निवडिओ धरणिवढे तओ सविसेसापूरमाणधम्मज्झाणो कयपंचनमोकारो अत्थामं ति वियाणिऊण विहियचउव्विहाहारपच्चक्खाणो विमुक्को जीविएणं न य सत्तेणं, अवि य अवि चलइ सेलराया निवडतअसेससिहरपब्भारो । जलही वि सुसइ वियलियजलवीइतरंगरंगिल्लो ॥१०॥ रयणी वि होज्ज दिवसं ससि-सूरा वि हु उयंति अवराए । न य उत्तमा पइण्णं गहियं मुंचंति पलए वि ॥११॥ तो मरिठं सो राया सव्वुत्तमकंतिदित्तिसंजुत्तो । वेमाणियदेवेसुं उप्पण्णो झत्ति वरतियसो ॥१२॥ रण्णा य जीवंतएण चेव किर 'सागरचंदस्स रज्जं पयच्छिस्सामि' त्ति मुणिचंदकुमारस्स उज्जेणी कुमारभुत्ती दिण्णा । सागरचंदो वि उवरए पियरम्मि चितिउमाढत्तो, अवि य "असारो एस संसारो दुक्ख-क्केसाण भायणं । खणदिट्ठविणट्ठो य इंदियालसमप्पभो ॥१३॥ जीवियं धणरिद्धी य भज्जाओ भोगसंपया । खणेण दीसए सव्वं खणेणं चेव नासए ॥१४॥ १. आवश्यकनिर्युक्तौ गाथेयं १५७६ तमी ॥ २. ला. वि. ॥ ३. 'नवकारो ॥ ४. ला. मतिरूपसं ॥ Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः सरंधपुडए नीरं जहा गलइ निरंतरं । एवं निरंतरं जाइ जीवाणं पि हु जीवियं ॥१५॥ विविहोवक्कमेहिं च सूलाईहिं विणस्सए । झड त्ति ओसबिंदु व्व कुसग्गे जह वाउणा ॥१६॥ धणं चउप्पयाईयं खणद्धेणं न दीसए । छाहियाखे डुए चेव जहा गय-हयादओ ॥१७॥ एसा वि विविहा रिद्धी, खणदिट्ठविणस्सरा । गंधव्वनगरायारा, पेच्छंताणं विणस्सए ॥१८॥ भारियाओ सुरूवाओ मोहणीओ जमेण उ । विणासिज्जंति वारण, सिहाओ दीवयस्स व ॥१९॥ सद्दाई भोगरिद्धीओ, दिट्ठनट्ठाउ तक्खणं । सनीरमेहखंडे व्व, विज्जुलाओ व्व सव्वया ॥२०॥ ता न कज्जं ममेएण, पावसंतावकारिणा । सुंदरेणाऽवि रज्जेण, केसाऽऽयासविहाइणा ॥२१॥ गुणचंद-बालचंदाण, कुमारण इमं तओ । दाउं करेमि पव्वज्जं, सव्वदुक्खविमोक्खणी" ॥२२॥ एवं च चिंतिऊण भणिया पियदंसणा जहा-अम्मो । पडिच्छसु कुमाराण रज्जं जेण अहिसिंचिऊण गुणचंदं रज्जे, बालचंदं च जुवरज्जे करेमि अप्पणा पव्वज्जा-तवसंजमाइयं अणुट्ठाणं ति । पियदंसणाए वि 'एएण चेव एवं रज्ज' ति मण्णमाणीए जंपियं जह-पुत्त ! बाला कुमारा असमत्था रज्जपरिपालणम्मि, तुमए उ पव्वज्जते सव्वहा विणस्सए रज्जं ता तुमं चेव परिपालेहि, तुमए य रायाणए मह कुमाराण रज्जं चेव, ता सव्वहा न तुमए पुणो वि एरिसं मंतेयव्वं । तओ सागरचंदो अणिच्छमाणो वि रज्जविणासभएण अहिसित्तो मंतिसामंतेहिं रज्जे । जाओ य महारायाहिराओ । अणुरत्तपयइसामंतो य पालए रज्जं । अण्णया य महाविभूईए निग्गच्छंतमागच्छंतं च सागरचंदं महारायं दट्ठण 'पच्छाबुद्धि महिल' ति काऊण चिंतियं पियदंसणाए, अवि य "अहह ! कह मंदभग्गाए पावकम्माए एरिसं विहियं । गेहम्मि कामधेणू दंडेण हया पविसमाणी ॥२३॥ १. ला. जीवाओ वि हु ॥ २. ला. 'वसंभारका || ३. ला. 'तमइग' ॥ . Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५१ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः निययंगणर्मि कप्प हुमो वि उटुंतओ मए छिन्नो । पत्तो वि कामियघडो भग्गो पण्हिप्पहारेण ॥२४॥ . जं एरिसरायसिरी दिज्जंती वि हु इमेण पुत्ताण । दुब्बुद्धिहयाए मए निप्पिहवयणेहिं परिहरिया ॥२५॥ मह पुत्ता वि हु एवं ललंतया जइ तया न वारिती । तो कह इहि लब्भइ इमा इमेणं जियंतेणं ॥२६॥ ता केण उवाएणं एयं विणासेमि जेण अणिदिएणेव विहिणा मम पुत्ताणं रज्जसिरी भवइ" । एवं च चितिउं नरवइणो छिड्डाई गवेसिउं पयत्ता । अण्णया य पुव्वदिणकयतवोविसेसस्स बीयदिणे विसेसेण छुहा बाहिउं पयत्ता राइणो । तओ समाणत्तो सूवयारो जहा-'अज्ज मह रायवाडियागयस्स किंचि पढमालियं पच्छण्णं पट्टविज्जसु । सुयं च एवं राइणो वयणं पियदसणाए 'अहो सोहणं छिड्डुति चिंतिऊण पढममेव विसभाविए हत्थे काऊण ठिया । सूवयारेण वि चिरगयस्स राइणो दासचेडीहत्थे पेसिओ पच्छन्नमेव एगो सुसंभिओ सीहकेसरयमोयगो । सा य गच्छंती भणिया पियदंसणाए-'भद्दे ! किमेयं ?' तीए वि जणणि त्ति काऊण निव्वियप्पाए सव्वं साहियं । तओ तीए जंपियं जहा-'पेच्छामि केरिसा पढमालिया ! तओ तीए दंसिओ मोयगो । तओ पियदसणाए गहिओ विसलित्तेहिं हत्थेहिं सो मोयगो लोलित्ता य चिरं 'अहो ! सोहणो अहो ! सुयंधो' त्ति भणंतीए पच्चप्पिओ । दासचेडी वि गया राइणो समीवं । पच्छण्णं च समप्पिओ । एत्थंतरम्मि य ते दो वि कुमारा राइणो समीवे चिटुंति । ते य दट्ठण चिंतियं राइणा-अहाहि ! कहमहं इमेहिं बालेहि समीवत्थेहिं एगागी भुंजिस्सं ति तओ सो मोयगो दुहा काऊण तेर्सि दुण्ह वि दिण्णो । ते य जाव भुंजिउमाढत्ता ताव य किं संजायं तेसिं ?, अवि य धमधमियं अंगेहिं वियलिति य सव्व संधिबंधा उ । जीहा लल्लविलल्ला अइजड्डा तक्खणं जाया ॥२७॥ आवंति य विसवेगा खणे खणे नीससंति अइदीहं । तत्तो मउलियनयणा सहसा धरणीयले पडिया ॥२८॥ तओ राया विसवियारु ति नाऊण आउलीहुओ भणिया य पासवत्तिणो-रे रे लहं पाहाणमाणेह । आणीओ वयणाणंतरमेव । तओ तत्थ राइणा घसिऊण सद्धसोलसवण्णिया सुवण्णमुद्दियारयणं पाइया कुमारा । अचिंतमाहप्पयाए सुवण्णस्स जाया सच्छसरीरा कुमारा । १. ला. “यणेण ॥ २. ला. 'ती ॥ कह इन्हि लब्मइ इमा इमेण परिजीवमाणेणं ॥२६॥ ३. ला. चितिऊणं ॥ ४. ला. 'वाहियालि गय ॥ Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः पुच्छिया य दासचेडी जहा-भद्दे । को निविण्णो नियजीवियस्स? दासचेडीए भणियं-सामि ! णियसूवयारं एयाणं च मायं ममं च मोत्तूण न अन्नस्स कस्सइ हत्थे चडिओ । राइणा चिंतियं अहो ! तीए पावाए दुट्ठचेट्ठियं, जओ तया रज्जं दिज्जमाणं पि नेच्छियं संपयं पुण वावाएउमिच्छइ, ता सव्वहा जारिसयं तित्थयरेहिं वण्णियं तारिसं चेव इत्थीण चेट्ठियं, जओ भणियं महिला य रत्तचित्ता उच्छूखंडं व सक्करा चेव । सा पुण विरत्तचित्ता विसअंकूरे विसेसेइ ॥२९॥ महिलादिज्ज करेज्ज व मारेज्ज व संठविज्ज व मणुस्सं । संतुट्ठा व जियावेज्जऽहव नरं बंधेयाविज्जा ॥३०॥ मारेइ जियंतं पि हु मयं पि अणुमरइ कावि भत्तारं । विसहरगइ व्व चरियं वंकविवंकं महिलियाणं ॥३१॥ एवं च चिंतिऊणं गेहं गंतूण तं इमं भणइ।। हा ! दुटु कयं अम्मो जं तइया नेच्छसे रज्जं ॥३२॥ इण्डिं पुण अकयतवो तुमए खित्तो मि आसि संसारे ॥ बालाण य एयाणं मणयं मरणं न संजायं ॥३३॥ ता गिण्हसु रज्जमिणं इण्हि पि न कज्जअ(म)म्हमेएण । संसारकारणेणं अइदारुणदुक्खजणएण ॥३४॥ एवं च जंपिऊणं हक्कारित्ता उ मंति-सामंते । अहिसिंचइगुणचंदं रज्जे इयरं तु जुवरज्जे ॥३५॥ तत्तो भलाविऊणं सामंताईण ते उ सव्वेसि । गिण्हइ जिणवरदिक्खं सुगुरुसमीवे विभूईए ॥३६॥ - उग्गं तवं कुणंतेण जह उ मुणिचंदभाइणो पुत्तो । बीओ पुरोहियसुओ उवसग्गरया मुणिजणाण ॥३७॥ सिक्खविऊण निबुद्धेण दो वि पव्वाविया जहहढेणं । सम्मं च परिणया जह पव्वज्जा रायउत्तस्स ॥३८॥ इयरो पुरोहियसुओ हढेण पव्वाविओ त्ति गुरुविसयं । काऊण य प्पओसं ईसिदुगुंछं च धम्मम्मि ॥३९॥ १. सं.वा.सु सामि ! सू ॥ २. सं.वा.सु. बंधिया ॥ ३. ला. गेहे ॥ Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५३ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः आराहणाइविहिणा दुण्णि वि पत्ता जहेव सुरलोए । जह कहिओ उ जिणेणं दियपुत्तो दुलहबोहीओ ॥४०॥ माउय ! पडिबोहिज्जसु बीयं अब्भत्थिऊण च विय इहं । जह जाओ मेअज्जो परिणइ जह अट्ठ कण्णाओ ॥४१॥ कद्वेण बोहिओ जह देवेणं पुण वि परिणिउं कण्णं । नवमं सेणियधूयं भोत्तुं भोए अणण्णसमे ॥४२॥ पत्तो महामुणित्तं सुवण्णगारस्स जह गओ गेहं । अदृटुं कणयजवे जह तेणं मुणिवरो पुट्ठो ॥४३॥ तेण वि जीवदयाए जवावहारी न कुंचओ सिट्ठो । कुद्धेण य अइघोरो उवसग्गो जह कओ तेण ॥४४॥ उप्पाडिऊण नाणं पत्तो मोक्खम्मि परमसोक्खम्मि । जह सो तह सव्वं पि वि सवित्थरं मुणह अण्णत्तो ॥४५॥ सागरचंदमुणी वि हु सुद्धं परिपालिऊण पव्वज्जं । अणसणविहिणा मरिउं संपत्तो देवलोगम्मि ॥४६॥ प्रियदर्शनाख्यानकं समाप्तम् ॥४२॥ तथाबंधुनेहखयंकारी, नारी पउमावई इव । नारी जालावली चेव, महासंतावकारिणी ॥१६९॥ बन्धुस्नेहक्षयकारिणी= भ्रातृप्रेमानुबन्धविनाशविधायिनी नारी, उक्तं चस्त्रीणां कृते भ्रातृयुगस्य भेदः, सम्बन्धभेदे स्त्रिय एव मूलम् । अप्राप्तकामा बहवो नरेन्द्रा, नारीभिरुत्सादितराजवंशाः ॥३६६।। पद्मावतीव=कोणिकभार्येव, तथा नारी ज्वालावलीव=ज्वालावल्यभिधानस्त्रीवत्, यद्वा ज्वालानामावली ज्वालावली= वह्निशिखासन्ततिरिव, महासन्तापकारिणी प्रचुराशर्मविधायिनीति श्लोकाक्षरार्थः ॥१६९।। . भावार्थस्तु कथानकाभ्यामवसेयः । तत्र पद्मावती कथानकं कथ्यते - १. ला. आराहिऊण वि ॥ २. "बोधिबीजम्" इत्यर्थः ।। ३. ला. वि जहा द॥ मूल. २-२० Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः [४३. पद्मावतीकथानकम्] अत्थि इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वसंतपुरे नयरे जियसत्तू राया । तस्स य सयलंतेउरप्पहाणा रूयाइविणिज्जियामरसुंदरी धारिणी नाम देवी । तीसे य गब्भसंभवो अणेगगुणसंभवो बाहत्तरिकलाकुसलो सुमंगलो नाम अइकोउयासत्तो पुत्तो । ताणं च अमच्चपुत्तो सेणगो नाम, सो य कुरूवो, अवि य अइपिहुलथूलपाओ सुप्पनहो मडहविसमजंघालो । घोलोरू वंककडी पलंबपोट्टो विसमकुच्छी ॥१॥ निन्नन्नयवच्छयलो लहुबाहो विसमखंध-लहुगीवो । जियदंतच्छयअइवंकदसणओ लंबअहरुट्ठो ॥२॥ अइचिबिडभग्गनासो मंजारच्छो य भुंडभालयलो । अवलक्खणसवणजुओ सिहिसिहसमकेसपब्भारो ॥३॥ इय एवंविहरूवो सो मंतिसुओ जणोहहसणिज्जो । तं सो रायस्स सुओ सुमंगलो हसइ तद्दियहं ॥४॥ तह य कयत्थइ अहियं विडंबणाहिं बहुप्पगाराहिं । कीलाए रायसुओ अमच्चपुत्तं तयं सययं ॥५॥ एवं च तस्स पइदियहं तेण कयत्थिज्जमाणस्स समुपण्णं वेरग्गं, चिंतियं च तेण, अवि य "तं किं पि कयं पावं पुव्वभवे जेण एरिसदुहाई । पत्ताई इह जम्मे नारयदुहसरिसरूवाइं ॥६॥ ता तं करेमि संपइ जेणऽण्णभवे वि नेय पावेमि । एरिसविडंबणाई" चिंतिय नयराउ निक्खंतो ॥७॥ तओ परिब्भमंतो विविहगामा-ऽऽगर-नगरेसु हिंडमाणो पत्तो एगं तावसासमं । दिट्ठो य तत्थ कुलवई । पणमिओ य भावसारं दिण्णा य तेण आसीसा, पुच्छिओ य जहा'वच्छ! कओ तुमं किं वा कारणेणमिह आगओसि ?' तेण जंपियं-वसंतपुराओ गिहनिव्विण्णो इह आगओ मि । तओ तेण पत्तभूओ त्ति नाऊण कया धम्मदेसणा । तं च सोऊण जाओ तावसो । संवेगाइसयाओ करेइ उग्गं तवोणुट्ठाणं जाव जाओ उट्टियाखमओ । संपत्तो य विहरमाणो वसंतपुरं । जाया य पसिद्धी जहा-एरिसो तारिसो एस महा-तवस्सि ___१. ला. दरी सुंदरी ॥ २. उट्टियरव ॥ Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५५ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः त्ति । सुयं च एयं राइणा जहा-एत्थ कोइ महामुणी समागओ । तओ परमभत्तीए गओ राया से वंदणत्थं । वंदिऊण य पुच्छिओ जहा-भयवं किं तुम्ह वेग्गकारणं ? मुणिणा भणियंमहाराय ! संसारो चेव पढमं निव्वेयकारणं बीयं पुण सुमंगलो नाम रायपुत्तो परमकल्लणमित्तो वेग्गकारणं ति । राइणा भणियं कहं चिय ? तओ मूलाओ आरब्भ कहियं सव्वं पि नियचरियं तओ य जह जह निसुणइ राया नियदुच्चरियं इमेण सीसंतं । तह तह लज्जामइओ व्व जायए तक्खणं राया ॥८॥ पाएसु पणमिऊणं राया खामेइ सो अहं पावो । तुह उव्वेययकारी ता मरिससु जं कंयमकज्जं ॥९॥ ता खमह तया तुब्भे कयत्थिया जं निरावराहा वि । दटुं तुब्भे संपइ अहियं उत्तम्मए हिययं ॥१०॥ तओ चिंतियं तेण 'अहो ! लज्जिओ एस राय' त्ति चिंतिऊण भणियमणेणमहाराय ! अलमुव्वेयेणं को तुज्झ दोसो ?' परममित्तो तुम जेण, तुह निमित्तेणं पाविओ मए धम्मो त्ति । राइणा चितियं-अहो ! महप्पा एसो जेण दोसो वि गुणपक्खे ठविओ। तओ भणिओ रिसी-मह गिहागमण-भोयणाइणा अणुग्गहेसु में पावकम्मकारिणं । तेण भणियं-महाराय ? मज्झ एस कप्पो जहा-मासाओ मासाओ पारेमि, तत्थ वि पढमघराओ चेव लाभे वा अलाभे वा नियत्तिऊण पुणरवि पविसामि उट्टियं, एस मे भोयणे पइण्णाविसेसो, ता अज्ज वि न पारणयदिणो समागच्छइ । राइणा भणियं - अविग्घेण पत्ते पारणयदिणे मेह गेहाओ न अन्नत्थ गंतव्वं । [तेण भणियं-?]अंतरायं मोत्तूणमेवं काहामो । 'महापसाओ' त्ति भणंतो हरिसिओ राया। पत्ते य पारणगदिणे गओ एसो राइणो मंदिरं । कम्मधम्मसंजोगेण य गाढमसत्थीभूओ तम्मि दिणे राया । तओ तव्वाउलत्तणाओ वयणमित्तेण वि न केणावि उल्लाविओ । निग्गओ य रायमंदिराओ । पविट्ठो गंतूण उट्टियं । सच्छसरीरेण य पुच्छियं राइणा जहा-किमागओ अज्ज रिसी नव ? त्ति । लोगेण य भणियं जहा-आगओ आसि परं तुम्ह सरीरकारणवाउलत्तणाओ न केणावि संभासिओ । 'हा! दुटुकयं मए पावेणं' ति चितंतो गओ सयमेव तत्थ- राया । बहुप्पयारं च निदिऊण अप्पाणं भणिउमाढत्तो भयवं ? महंतो मम एस संतावो जमकयपारणओ तुमं गेहाओ पडिनियत्तो । तेण भणियं-महाराय ! अलं संतावेण, को तुज्झाऽवराहो ? । राइणा भणियं-भयवं ? १. ला. “रणं । तो रा || २. ला. व्व तक्खणं जायए राया ॥ ३. ला. कयं कज्जं ॥ ४. सं.वा.सु. मह ॥ ५. ला. मम ॥ Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः तहावि मम न एस संतावो नियत्तइ जाव तए मम गेहे पारणयं न कयं । तेण भणियंजइ एवं ता करिस्सामो । तओ 'महापसाओ' त्ति भणिऊण पडिनियत्तो राया । दुइयपारणयकाले वि तहाविहभवियव्वयाए पुणो वि असत्थीहूओ राया । तत्थ वि तह चेव नियत्तिऊण पविट्ठो उट्टियं रिसी । सत्थीभूओ य नाऊण तहेव अप्पा(प्पं ?) निदंतो गओ राया। दिट्ठो य अच्वंतं सुसियसरीरो । सविसायं च पायपडिओ भणिउमाढत्तो राया-भयवं ! लज्जिओऽहं इमेण बुहयणपरिनिदिएण पमायचिट्ठिएण, तुह सरीरपीडाजणिएण य पावकम्मुणा निबद्धं नरयाउयं ति, अवि य जं परिभविओ पुट्वि तं चिय मं दहइ जं पुणो इण्हि । दोवारे तेण तुहं मुहं पि दाऊण न तरामि ॥११॥ 'अहो ! से महाणुभावया, अहो ! से पच्छायावो, अहो ! से पावकम्मभीरुत्तणं, जेण मए अकयपारणए एवं परितप्पइ ता सव्वहा एयस्स गेहे न जाव मए पारणयं कयं न ताव एसो धिई लहइ' त्ति चिंतिऊण भणियं तेण रिसिणा जहा-महाराय ! मा संतप्पसु निविग्ण परिसमत्तीए करिस्सामि तुह गेहे. पारणयं । राया वि 'भयवं ! महापसाओ' त्ति भणमाणो निवडिओ चलणेसुं, हरिसियमणो गओ नियगेहं । कमेण य पारणए तहाविहभवियव्वयाए तम्मि चेव दिवसे अच्चंतमसत्थीभूओ राया । एत्थंतरम्मि सुसियदेहो पारणट्ठा पत्तो दुवारदेसं सो मुणी । 'अहो ! जया जया एस महापावकम्मो रिसी गिहमागच्छइ तया तया एवंविहावत्थो भवइ राय त्ति अवि य पविसइ जत्थ अहव्वो तत्थ वसंताण निव्वुइं हरइ । अहवा सुक्कइ डालं कपोडगो जत्थ अल्लियइ ॥१२॥ चितंतेहिं अकयपारणओ गलच्छिऊण नीणियो दोवारियनरेहिं । थोववेलाए य उवसंतवेयणेण मुणिओ एस वुत्तंतो राइणा । 'अहो ! मे असुहपरिणई जेण जं जं करेमि तं तं विवरीयं परिणमइ, ता कहं पुणरुत्तकयनाणाविहावराहं मुणिणो अप्पाणं दंसेमि[त्ति] भावंतो न गओ राया । समुप्पण्णकोवानलेण य चिंतियं मुणिणा-अहो ? गरुओ वेराणुबंधो एयस्स नरिंदाहमस्स ममोवरि जेण ममं गिहत्थं विडंबंतो तहा इयाणि पि विडंबइ, ता करेमि से पच्चुवयारं । चिंतंतेणं कयमणसणं ति । 'जइ इमस्स तवनियमस्स फलमत्थि तोऽहं इमस्स वहाए भविज्जामो'त्ति कयनियाणो मरिऊण जाओ अप्पिड्डिओ वाणमंतरो । तन्निव्वेएण य जाओ सुमर्गलराया वि तावसो । कालमासे य मओ समाणो जाओ सो वि वाणमंतरसुरो । कमेण य तत्तो चविऊण समुप्पण्णो रायगिहे नयरे पैसेणइस्स १. ला. दाउं न पारेमि ॥ २. ला. गलो राया ॥ ३. सं.वा.सु. पसेणियरायस्स रण्णो ॥ Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः रण्णो पुत्तो सेणिओ नाम । सो कालंतरेण य जाओ महासासणो न[ग्रंथाग्रम् १०००० ] aई । सो वि सेणगजीवो तत्तो चविऊण सेणियस्स रण्णो चेल्लणाए देवीए कुच्छिसि जाओ पुत्तत्ताए । तीसे य चेल्लणाए देवीए तम्मि गब्भत्थम्मि जाओ डोलो जहाँ सेणियस्स अंताणि भक्खेमि, दीसंतो अमयमओ जो पुव्वि आसि सो च्चिय इयाणि । विससरिसो संजाओ अइदारुणगब्भदोसेणं ॥ १३॥ १५७ तओ तारिसं डोहलं समुप्पण्णं जाणिऊण चितियं तीए-हंत ? को वि एस राइणो वेरिओ समुप्पण्णो मम गब्भे ता गब्भसाडणाईहिं साडेमि । तओ सोडिउमाढत्ता । सो य कर्हिचि जाव न सडइ ताव डोहलए अपूरमाणे सा झिज्जि उमाढत्ता । पुच्छिया य तओ सेणियराइणा न य साहइ । तओ कहकहवि सवहसावियाए महया कट्ठेण सिद्धं । रण्णा वि 'पिए ! वी सत्था चिट्ठसुतहा करिस्सामि जहा तुह चित्तस्स निव्वुई भविस्सइ' त्ति समासासिऊण सिद्धं अभयस्स । अभएणवि सेणियस्स पोट्टोवरि छगलगंताओ ठविऊण अविभाविज्जंत चीवरेण छाइऊण उत्ताणयस्स ठियस्स तीसे पेच्छमाणीए अलियवियणो - वेगाऽऽउरत्तणं कुणंतस्स उक्कत्तिऊण दिण्णाओ । तओ भक्खिउमादत्त त्ति । अवि य चितेइ जाव गब्भं ताव धि होइ रायतणयाए । चितेइ जाव रायं ता अहियं दुक्खिया होई ॥१४॥ अवणीए डोहले मोहवसमुवगयाए पगुणीभूओ दाविओ राया । तओ सत्थचित्ता जाया । एवं च अणिच्छमाणीए विगब्भधारणं समागओ पसूइसमओ, जाओ दारओ । तओ रायवेरिओत्ति काऊण भणिया दासचेडी - हला ! एयं एगंते उक्कुरुडियाए छड्डेहि । सावि तह त्ति पडिवज्जिऊण गया असोगवणियाएँ । तत्थ मोत्तूणं जाव समागच्छ ताव दिट्ठा सेणियनिवेण, पुच्छिया य-भद्दे ? कहिं गया आसि ? तीए य भउब्धंताए साहियं । तओ गओ सयमेवतत्थराया जाव पेच्छइ निययप्पभाजालेणुज्जोवियं सव्वमसोगवणियं । तं च दहूण चिंतियं राइणा- अहो ! चंदेण विय उज्जोविया सव्वा असोगवणिया इमेणं, ता मुद्धा देवी जा एवंविहं पि परिचयइ । तओ घेत्तूण समागओ चेल्लणासमीवं, अंबाडिऊण य भणिया सा जहा-किंनिमित्तमेसो परिचत्तो ? तीए भणियं - तुम्हाणं वेरिओ त्ति काऊण । तओ भणियं सेणिएण-भद्दे ? जइ एयं जेटूपुत्तं परिचयसि तो तुज्झ अन्ने पुत्ता थिय न १. सं.वा.सु. अंताओ ॥ २. ला. साडिठं समाढत्तो ॥ ३. 'लगअंताओ ॥ ४. ला. 'वरेणुच्छा' ॥ ५. ला. 'णा' ॥ ६. ला. 'ए। एत्यंतरं मो' । ७. ला. समीवे ॥ Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः भविस्संति । [त्ति ] भणमाणेण समप्पिओ । तीए वि अणिच्छमाणीए विपरिपालिओ । असोगचंदो त्ति नामं कयं तस्स । असोगवणियाए उज्झियस्स एगा अंगुलिया कुक्कुडियाए. पिंछेण कूणिया, सा य पूयं गलइ, तीए य वेयणाए निरंतरं रोयमाणं दट्ठूण राया मंगुलिय मुहे धरइ तओ सो रोयमाणो विरमइ । अवि य १५८ कुक्कुडयपिच्छविद्धं अंगुलियं पूयरुहिरबीभच्छं । जाहे चूस राया ताहे वियणा न से होइ ॥ १५॥ तेण य कारणेणं रमंतस्स डिभरूवेहिं कोणिओ त्ति बीयं नामं ठवियं । तस्स य अणुमग्गजाया हल्ल-विहल्लाभिहाणा कुमारा । ते य तिण्णि वि राइणा सह रायवाडियाए निग्गच्छंति । ताण य 'रायसत्तु त्ति कोणियस्स चेल्लणा गुलमोयगे हल्ल- विल्लाणं पि खंडमोयगे पेसेइ । सो चिंतेइ मम एयं सेणिओ कारवेइ । एवं च जाव पत्तो जोव्वणं कोणिओ ताव परिणाविओ पउमावईनाम रायधूयं । एवं च अभयकुमाराईया सुरसरिसा सेणियस्स वेरतणया । उप्पण्णा कयपुण्णा आनंदियमहियलाभोगा ॥१६॥ तओ सव्वजेट्ठो सयलगुणगणवरिट्ठो नीसेसकलापत्तट्ठो चउव्विहबुद्धिलद्धो समत्थरज्जभरुव्वहणपैत्तट्ठो त्ति काऊण भणिओ अभयकुमारो सेणियराइणा - पुत्त ! पडिच्छाहि रज्जं । तेण य पुट्ठो भयवं वीरनाहो- को रायरिसीणं अपच्छिमो ? भगवया भणियं - उद्दायणो । तेण य गहिया पव्वज्ज त्ति काऊण न पडिच्छियं रज्जमभएण गहिया पव्वज्जा । तओ सेणिएण 'कोणियस्स रज्जं दाहामि त्ति हल्ल - विहल्लाणं दिण्णो सेयणगकरी, सो रज्जतुल्लो, अट्ठारसचक्कहार-कुंडलजुयल - वत्थजुयलाणि य, एयाणि य सव्वाणि कहमुप्पन्नाणि ? तओ सेयणगस्स उप्पत्ती अत्थि एगत्थमहारणे एगं करिजूहं । तस्स य जो जूहाहिवई सो जाए जाए गयकलभगे विणासेइ, मा समत्था जूहं हरिस्संति । अण्णया य एगा करिणी आवण्णसत्ता चितेइ जहा - एएण मम बहुपुत्ता विणासिया ता एगं केणइ उवाएण रक्खेमि त्ति । चिंतिऊण य कओ कुंटयवेसो, मंद मंदं च परिसक्कइ । तओ सो करिवरो थोवंतरं गंतूण पडिवाले, मा अण्णो कोवि करिवरो रामेहिइ । एवं दिणे दिणे अहियाहियं सा कुंटत्तं दरिसंती अद्धपहराओ पहराओ दिणाओ दोन्हं तिण्हं वा दिवसाणं मिलइ । एवं च वीसासेऊण तिणपूलियं उत्तमंगे काऊण गया तावसासमं निवडिया ताण चलणेसु । तेहिं वि 'सरणागया १. सं. वा.सु म थूयं । अन्ने य अन्नदेवीणं अभयकुमारपभिइओ अणेगपुत्ता जायत्ति, अवि-यअभयकुमाराईया ॥ २. ला. वरपुत्ता ॥ ३. तो ॥ ४. ला. वं महावीर ॥ Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः १५९ एसा वराईणि' त्ति मण्णमाणेहिं तावसेहिं भणिया जहा-वच्छे ? अच्छ वीसत्था । तओ सा अण्णम्मि दिणे पसूया पहाणं हत्थिरयणं । अवि य ससहरकरनियरसमं चउदसणं सव्वलक्खणसमग्गं । भूमिपइट्ठियसत्तंगरेहिरं जणइ करिनाहं ॥१७ __ तं च तत्थेव मोत्तूण झड ति मिलिया जूहस्स । तओ अंतरंतेणाऽऽगंतूण पोसेइ तं गयपोययं । सो य वड्डूंतो ते तावसकुमारे गएहिं आरामरुक्खए सिंचंते दट्ठण जलभरियसुंडादंडेण सिंचइ । तओ तावसेहिं सेयणगो त्ति नामं कयं सो परिवतो कमेण जाओ महाकुंजरो । अण्णया य नईए जलपाणत्थं गएण दिट्ठो सो जणयजूहाहिवई । तओ तं च दट्ठणं लग्गो जुज्झिउं, अवि य विधंति दंतमुसलेहिं दो वि पहणंति सुंडदंडेहिं । कोवाऽऽयंबिरनयणा खिवंति तह पत्थरे दो वि ॥१८॥ एवं जुज्झंताणं सो जणयकरी इमेण तरुणेण । जरजज्जरियसरीरो पंचत्तं पाविओ सहसा ॥१९॥ तओ. अहिट्ठिऊणतं जूहं जाओ सयमेव जूहाहिवई । चिंतियं च तेण जहा-किल जणणीए अहं - छउमेण रक्खिओ, ता भंजिऊण तं आसमपयं तहा करेमि जहा अण्णा वि कावि एवं न रक्खइ त्ति । चिंतिऊण भग्गं तं आसमपयं । तओ तेहिं तावसेहि 'पेच्छ पावस्स कयग्घत्तणं' ति रुडेहिं कहिओ सेणियनिवस्स जहा-एरिसो तारिसो तुह भवणजोग्गो रण्णे रायकुंजरो चिट्ठइ ता सो धिप्पउ । सेणिएणाऽवि तक्खणं चेव गंतूण बंधिऊणाऽऽणीओ । तओ आगलिओ आलाणखंभे । एत्यंतरम्मि य तेहिं तावसेहिं भणिओ जहा-भो सेयणग ? केरिसी तुह अवत्था वट्टइ ? त्ति, पत्तं अम्ह आसमपयभंजणस्स फलं । तेण वि 'अहं एएहिं एवंविहं अवत्थं पाविओमि' त्ति रूसिऊण भंजिऊणाऽऽलाणखंभं चूरंतो पच्चासण्णतावसे गओ वणंतरालं । सेणिओ वि अणुप्पएणप्पहाविओ । सो य हत्थी देवयाहिट्ठिओ । तओ तस्स देवयाए साहियं जहातए एरिसं कम्मं विहियं जेण सेणियस्स वाहणेण होयव्वं ति बला वि निज्जिहिसी, ता सयं गच्छंतस्स गोखो सेयणगो विहिओवएसं गिण्हिऊण गओ सयमेव ठिओ आलाणथंभे । सेणियस्स कहियं लोगेहि-देव ! हत्थी सयमेवाऽऽगओ, सेणिएण वि सदेवओ त्ति कलिय कओ पट्टहत्थी । एसा सेयणगस्स उप्पत्ती । १. ला. सयलल' ॥ २. गडूए' ॥ ३. ला. कावि न करेज्ज इमं ति चिंति ॥ ४. ला. च्छ एयस्स ॥ ५. ला. अणुपिट्टओ पहा ॥ ६. ला. निव्वत्तियं ॥ ७. "णखंभे ॥ ८. ला. कलिऊण ॥ Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भाग: इयाणिं. हाराईणं अत्थित्थ भरहवासे कोसंबीपुरवरीए सुपसिद्धो । राया सयाणिओ त्ति य सूरोवीरो य विकंतो ॥२०॥ अण्णो वि तत्थ निवसइ, मुक्खदिओ सेडुउ त्ति नामेणं । सो गुव्विणीए भज्जाए पणइओ घय-गुलाईयं ॥२॥ तेण वि भणियं भद्दे ! अहं न याणामि किंचि विण्णाणं । सा भणइ पुप्फहत्थो ओलग्गसु नरवरं गंतुं ॥२२॥ तो तीए उवएस, तह चेव य सो करेइ अणवरयं । अह पत्तो उज्जेणीपूरीए निवचंडपज्जोओ ॥२३॥ आगंतूण सयाणियरायं विग्गहइ सो वि तस्स भया । उत्तरिठं कालिदि उत्तरकूलम्मि संठाइ ॥२४॥ उत्तरिठं अचयंतो कालिदि सो वि दाहिणे कूले । चिट्ठइ इयरो वि तयं पीडइ उक्खंदबाणेहिं ॥२५॥ उक्खंदेहिं परद्धो पज्जोओ वलइ निययपुरहत्तं । दिट्ठो पुप्फ-फलाणं गएण सेडुययभट्टेण ॥२६॥ आगंतुं वद्धावइ सयाणियं सेडुओ जहा देव ! । नियघरहत्तं वच्चइ सेण्णं पज्जोयरायस्स ॥२७॥ तेणं पियवयणेणं तुट्ठो राया पयंपई विष्पं । 'मग्गसु जं तुह रुइयं' सो जंपइ 'देव ! नियपत्तिं ॥२८॥ पुच्छित्ता मग्गिसं' राया वि हु भणइ होउ एवं ति । सो गंतुं नियगेहे साहइ सव्वं पि भज्जाए ॥२९॥ . भट्टिणि ! जह मह तुट्ठो राया मग्गेमि भणसु जं रुइयं । सा जंपइ मग्ग निवं भोयणमग्गासणे भट्ट ! ॥३०॥ पइदियहं तह दीणारदक्खिणं पुणखणंतरं एकं । उस्सारगं तु मग्गसु इय भणिओ जाइ निवपासे ॥३१॥ १. सं.वा.सु. नरवई ॥ २. ला. 'यघरहुः ॥ Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः मग जह सिक्खवियं राया वि हु मुद्धओ त्ति कलिऊण । पडिवज्जिय तं सव्वं दिणे दिणे कुणइ अक्खलिय ॥३२॥ ऊसारगट्ठियं तं दद्धुं लोगो विचितए एवं । 'एसो निववल्लहओ भयामु अम्हे वि जेणेसो ॥३३॥ अम्हाणं पि हु कज्जं विण्णवई तह य आवईए य । जायइ य परित्ताणं इय चितिय भणइ से लोगो ||३४|| तो दक्खिणलोभेणं पुव्विल्लं वमियं अन्न गेहेसु । जाइ तओ वित्थरिओ रिद्धी पुत्त - मंडेहिं ॥३५॥ वमणस्स कुसुद्धीए कोढो अइदारुणो समुप्पण्णो । मंतीहिं तयं दद्धुं विण्णविओ नरवई एवं ||३६|| संचारिमरोगोऽयं बाढं ता देव ! भोयणमिमस्स । अग्मासम्म पुत्ता कुणंतु तं मण्णए राया ॥३७॥ तो भणिओ मंतीहि भट्ट ! तुमं संपयं निययपुत्ते । इदंससि रायाणो अणुवत्तइ ता तह च्चेय ||३८|| तेण वि तं पडिवज्जिय निययसुया दंसिया नर्रिदस्स । भणियं च देव ! एए मह पडिवत्तीए दट्ठव्वा ॥३९॥ रण्णा वि तहा विहियं तत्तो पायं घरम्मि सो थक्को । लज्जतेहिं य तेहिं पुत्तेहिं घरस्स दारम्मि ॥४०॥ कुडियं काउं ठविओ सूयायंतीओ ताओ वहुयाओ । उव्वरियं भत्ताई दिति अवण्णाए दूरत्था ॥ ४१ ॥ किं बहुणा ? सव्वं पि हु कुटुंबमह पासिउं तयं भट्टं । निवई सूयाए तं दद्धुं चितए एसो पेच्छह कह पावाई ॥४२॥ मज्झ पैसाए पत्तविहवाइं । जायाइं तह वि महं कुणंति नणु परिभवंकह णु ? ॥४३॥ तो एयाणं एयं (वं) उम्मत्ताणं सिरम्मि पाडेमि । दुव्विलसियफलमेयं जंपर हक्कारिडं पुत्ते ॥४४॥ १. सं.वा.सु. सूयाइंतीओ ॥ २. सं. वा.सु. पभावेण ॥। ३. सं.वा.सु. "भवं गरुयं ॥४३॥ मूल. २-२१ १६१ Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः पुत्त ! अहं निव्विणो इमस्स दुहयउरजीवियव्वस्स । ता वेयविहाणेणं चयामि तित्थम्मि नियजीयं ॥ ४५ ॥ ता आणह पसुमेगं मंतविहाणेण जेण पोसेउं । तुम्हाणं दाऊणं पच्छा तित्थम्मि वच्चामि ||४६ ॥ तो तेहिं हरिसिएहिं बलवं सुपमाणओ अओ एक्को । आऊणं बद्धो खट्टाए तस्स पासम्मि ॥४७॥ सो नियदेहं उव्वट्टिऊण भक्खावए तयं सव्वं । थोवेहिं य दियेहेहिं महकुट्ठी छगलओ जाओ ॥४८॥ अभिमंतिऊण य तयं अप्पर पुत्ताण जह इमं पुत्ता ! | वेयविहियं ति काउं भक्खह सह दार - पुत्तेर्हि ॥ ४९॥ तेहि वि सव्वं विहियं कालेणं ते वि रोगिणो जाया । इयरो वि य निग्गंतुं वच्चइ उट्टंकगिरिसिहरं ॥ ५०॥ तत्थ य बहुविहतरुवरकसायपउरे गिरिस्स कुहरम्मि । आकंठं परिपीयं तेण विरिक्को लहुं एसो ॥५१॥ कइवयदियहिं तओ पगुणीहूओ पुणण्णवो जाओ । चितइ 'गिहम्मि गंतुं पेच्छामि ताण जं जायं ॥५२॥ अह आगओ गिहम्मि पुच्छिज्जइ सयण-नगरलोएणं । ' कह एरिसयं देहं संजायं भट्ट ! तुह ? कहसु' ॥५३॥ सो वि हु मायाजुत्तो जंपर 'तुट्ठाए देवयाए इमं । विहियं' इय जंपतो पत्तो निययम्मि भवणम्मि ॥५४॥ जा पेच्छइ ताणि तओ गलंतंकोढेण सडियअंगाणि । पण य 'मज्झ दुव्विणयविलसियं भुज्जए एयं ॥५५॥ तेहि तओ पडिभणियं 'किं तुमए एरिसं कयं कम्मं ?' | सो भणइ 'ऐँवमेयं अन्नस्स कओ इमा सत्ती ? ' ॥५६॥ तं सोडं सव्वो विह नयरजणो भणइ 'कि कयं पाव ? | पियरेण वि होऊणं अच्वंतं निद्दयमकज्जं ? ॥५७॥ १. “अजः” इत्यर्थः ॥ २. सं. वा.सु. 'यहेहिं तारिसओ छ ॥ ३. ला. 'तकुट्टेण ॥ ४. सं.वा.सु. एवमेवं ॥ Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६३ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः सो जंपइ 'पियरम्मि वि ममम्मि एयाण किं तयं जुत्तं । जं एएहिं विहियं ?' तहावि परिखिसए लोगो ॥५८॥ खिसाभएण सो वि हु गंतुं रायगिहनगरदारम्मि । दोवारियस्स पासे समस्सिओ चिट्ठए जाव ॥५९॥ ता भयवं भवमहणो समोसढो तत्थ वीरनाहजिणो । हल्लप्फलो य लोगो निग्गच्छइ वंदणट्ठाए ॥६०॥ तं पोलीय दुवारे ठविऊणं भणइ दारपालो उ । 'खायसु तुमं जहिच्छं दुवारदेवीए नेवजं ॥६॥ मोत्तूण दारदेसं अन्नत्थ कहिं पि नेय गंतव्वं' । इय तज्जिऊण एसो वच्चइ जिणवंदणनिमित्तं ॥६२॥ बहुभक्खणा उ सो वि हु अच्चंतं पीडिओ नणु तिसाए । दोवारियबीहंतो न गच्छए नीरपाणत्थं ॥६३॥ 'नीरंनीरं' ति तओ झायंतो मरिय एक्कवावीए । संजाओ मंडुक्को सालूरीगब्भमज्झम्मि ॥६४॥ गब्भाओनीहरिलं जा जाओ जोव्वणम्मि संपुण्णो । ताव य पुणो वि पत्तो तिलोगबंधू जिणो वीरो ॥६५॥ तो तस्स वंदणत्थं निवस्स वच्चंतयस्य उल्लावे । सोऊणं सो चिंतइ नणु सुयपुव्वो इमो सद्दो ॥६६।। ईहापूहाइ तओ जाइस्सरणं इमस्स उप्पण्णं । चलिओ य वंदणत्थं उप्फिडमाणो जिणिदस्स ॥६७॥ जा पत्तो रायपहे ता सेणियरायसेण्णतुरएणं । अकंतो सुमरंतो जिणवीरं पाविओ निहणं ॥६८॥ नामेण दडुरंके विमाणपवरम्मि सुरवरो जाओ ।। दट्टणं पुव्वभवं एइ दुर्य जिणसयासम्मि ॥६९॥ निसुओ य सुरिंदेणं वण्णिज्जंतो उ सेणियनरिंदो । जह सम्मत्तम्मि इमो दढचित्तो सेलराओ व्व ॥७०॥ १. ला. जिणस्स ॥ Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः तो तस्स परिक्खत्थं कोढियरूवं विउव्वियं तियसो । लिंपइ नियरसियाए निरंतरं सामिणो पाए ॥१॥ तं दट्ठण नरिंदो कोवफुरप्फुरियउट्ठजुयलिल्लो । चिंतइ "पिच्छह पावो परिभवइ कहं तिलोयगुरुं ॥७२॥ ता निहणामि एयं गुरुपरिभवकारिणं महापावं । अहव न जुत्तं एयं परमेसरपायमूलम्मि ॥७३॥ जम्हा हु उवसमंती समत्थवेराणि भगवओ पुरओ । ता निग्गच्छउ एसो पच्छा काहामि जं जोग्गं" ॥७४॥ एत्थंतरम्मि छीए जिणेण सो भणइ 'मरसु सिग्छ ति । अहिययरं परिकुविओ "पावस्स अहो ! अवण्ण त्ति ॥७५॥ जम्हा सामण्णेण वि, छीयम्मि जणो पयंपई 'जियसु' । एसो उ भयवओ वि हु कह जंपइ निट्ठरं वयणं?" ||७६॥ एवं चितंतेणं छीयं तेणेव सेणियनिवेण । अह कुंढिएण पलत्तं 'सुइरं तं जियसु नरनाह !' ॥७७|| चितइ पुणो वि राया 'हुं मज्झ भएण भणइ जियसु' त्ति । अभएण वि छीयम्मि 'मरसु व जीवसु व' सो भणइं ॥७८॥ कालयसोयरिएण वि छीए 'मा जीव मा य मरसु' त्ति । इय जंपिऊण तियसो निक्खंतो समवसरणाओ ॥७९॥ अह सन्निया य पुरिसा दिट्ठीए सेणिएण जह एयं । गिण्हह ते पुट्ठीए जा लग्गा ताव सो तियसो ॥८०॥ गयणम्मि समुप्पइओ होऊणं ललियकंडलाभरणो । पुरिसा वि सेणिएणं घरम्मि पत्तेण परिपुट्ठा ॥८१॥ तेहिं वि सव्वं कहियं तओ नरिंदस्स विम्हओ जाओ। बीयदिणम्मि य पुट्ठो वुत्तं सिरिजिणो भयवं ॥८२॥ कहिओ य भगवया से 'एसो देवो हु दडुरंको' ति । भणइ निवो 'जइ देवो ता रसियं लायए कीस ?' ॥८३॥ १. "विकुर्व्य" इत्यर्थः ॥ २. ला. एरिसं व ॥ ३. ला. कुट्टिणा प" || Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः भयवं पि भणइ न हु सा रसिया गोसीसचंदणं तं तु । किंतु तुह दिट्ठीमोहो परिक्खणत्थं कओ तेण' ॥८॥ भणइ निवो 'जइ एवं छीयाईयं कहं णु संघडइ' । भयवं पि भणइ "सच्चं सव्वं पि हु तेण तं भणियं ॥८५।। मझं मयस्स मोक्खो होही जीवंतयस्स पुण दुक्खं । तुह पुण इहइं रज्जं मयस्स नरयम्मि पुण गमणं ॥८६॥ अभओ अज्जेइ गुणे इहई पाविहिइ पुण परे सग्गं । सोयरिओ पुण पावं कुणइ परे वच्चिही नरयं" ॥८७॥ . सोऊण जंपइ निवो 'तुब्भेहिं विसामिएहिं किं नरयं । वच्चिस्सामि ?' जिणिदो भणइ इमो “भाविओ भावो ॥८८॥ होति' नियतिक्खनारयदुहमोहविमोहिओ नरवरिंदो । जंपइ 'तहा वि भयवं ! किमत्थि विणिवारणं किं पि.? ॥८९।। जेण न गम्मइ नरये' भयवं पि हु भणइ 'अत्थि जइ कविलं । दावसि जईण भिक्खं सोयरियं रक्खसे हिंसं' ॥१०॥ इय एवं सोऊणं वंदित्ता जा गिहम्मि संचलिओ । तुट्टेण दडुरंकेण ताव दिण्णो नरिंदस्स ॥११॥ अट्ठदसचक्कहारो वट्टयजुयलं च जंपियं तह य । तुट्टमिमं जो हारं संधिस्सइ सो धुवं मरिही ॥९२॥ दिण्णो य चेल्लणाए हारो वट्टयजुयं च नंदाए । रुट्ठा जंपइ 'किमहं जुग्गा एयस्स दाणस्स ? ॥९३॥ डिभाणं चिय जोग्गं एयं' एवं पयंपमाणीए । अप्फोडियं च खंभे सहस च्चिय रोसभरियाए ॥१४॥ एक्कत्तो वत्थजुयं कुंडलजुयलं तहेव बीयाओ । निक्खंतं महमोल्लं धावित्ता गिण्हए तुट्ठा ॥१५॥ कविला वि नरवरेणं, भणिया 'भिक्खं पयच्छ साहूणं । जेण पंयच्छामि धणं जं रुइयं तुज्झ चित्तस्स' ॥१६॥ १. ला. 'दणं किंतु । तुह दिट्ठीए मोहो ॥ २. ला. य ॥ ३. सं.वा.सु. पइच्छा ॥ Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः सा जंपइ 'सव्वंगं जइ वि हु वरकणयनिम्मियं कुणसि । जम्मंतरे वि तह वि हु एवमहं नो करिस्सामि' ॥९॥ सोयरिओ वि हु भणिओ, 'चय हिंसं देमि गाम-नगराई । सो भणइ “वल्लहं पिवपियं न सकेमिमं चउं ॥९८॥ को वा पहु ! इह दोसो थोववहे जेण भूरि जीवंति । जीवा अओ न हिंसं पाणच्चाए वि वज्जेमि" ॥१९॥ एवं जाव उवाओ न सकिओ नरवरेण काउं जे । तो अधिईसंपण्णो वच्चइ जिणपायमूलम्मि ॥१००॥ भणिओ जिणेण 'नरवर ! मा झुरसु जेण आगमिस्साए । होहिसि पढमजिणिदो नामेणं पउमनाहो' त्ति ॥१०१॥ तं सोऊणं जाओ हरिसवसुल्लसियबहलरोमंचो । वंदित्ता य जिणिदं पुणो वि निययं गओ गेहं ॥१०२॥ एवं हारस्स इमा, उप्पत्ती तह य कुंडलजुयस्स । वत्थजुगस्स य कहिया संपइ पगयं निसामेह ॥१०३॥ तओ अभयकुमारमायाए सुनंदाए अभयकुमारेण सह पव्वयंतीए दिण्णाणि हल्लविहल्लाणं कुंडलजुयल-वत्थजुयलरयणाणि । चेल्लणाए वि ताण चेव दिण्णो अट्ठारस वंको हारो। एत्थंतरम्मि य चिंतियं कोणिएणं जहा-न देइ मज्झ रज्जं सेणिओ ता बला वि गिण्हामि' त्ति चिंतयंतेण भेइया कालादयो दस कुमारा, भणिया य ते कोणिएण जहा'बंधामो तायं, पच्छा रज्जं एक्कारसहिं विभागेहि भुंजिस्सामो' त्ति । सामत्थिऊण, बद्धो सेणियनरिंदो, पक्खित्तो कट्ठहरण । चेल्लणा वि न लहइ पयर्ड पवेसं, देइ य दिणे दिणे अट्टत्तरसयं कसघायाणं । चेल्लणा वि सयंधोयसुराए केसपासं वोलिऊण कुम्मासपिडियं च गोविऊणं देइ दिणे दिणे तेण य मज्जपाणएणं न वेएइ ते कसघाए सम्मं । एवं च विभत्तमेक्कारसहिं विभाएहि रज्जं ।। ___ अण्णया कोणियस्स पुत्तो पञ्मावईकुच्छिसमुब्भवो उदाई नाम कुमारो, तेण य उच्छंगगएण कोणिओ भोयणं भुंजइ । तओ तेण थाले मुत्तियं । 'मा पीडा होहि' ति न चालिओ । तत्तियं च थालाओ कूरमवणेऊण सेसं भुत्तुमाढत्तो । इओ य तम्मि चेव समए चेल्लणा से पासपरिवत्तिणी । तओ संजायाणंदेण य पुट्ठा जणणी कोणिएण-'अम्मो ! किम १. ला. `त्ती कुंडलाण जुयलस्स ॥ Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः १६७ ण्णस्साऽवि एयारिसो सुओ वल्लहो जारिसो ममं?' चेल्लणाए भणियं-अइअहव्व ! केयारिसो एस तुह वल्लहो ?, जारिसो तुमं नियपिउस्स वल्लहो आसि, जओ एयं तुह अंगुलियं पूईयसिडिहिडंतयं राया वेयणावहरणत्थं वयणम्मि धरंतओ आसि, तहावि नियजणयस्स तए एरिसं ववसियं । तेणं पडिभणिया-जइ एवं तो रायवाडियागयाणं अम्हाणं कीस मम गुलमोयगे पेसिंतो हल्ल-विहल्लाणं पुण खंडमोयगे ?' चेल्लणाए भणियं-'आ अणज्ज ! तं सव्वं रायवेरिओ त्ति काऊण अहं कुणंती' । तओ कोणिएण भणियं-'अम्मो! जइ एवं ता असोहणं कयं मए जं नियपिया आवइं पाविओ । ता संपयं नियले भंजिऊण रज्जे ठावेमि त्ति परसुं गहाय नियलभंजणत्थमुद्धाइओ। दिट्ठो य पाहरिएहिं तहा समागच्छंतो । दट्ठण य पायवडिएहिं विण्णत्तो तेहिं सेणिओ जहा-'देव ! अण्णया सो तुम्ह दुप्पुत्तो कसविहत्थो आगच्छंतो अज्ज पुण परसुविहत्थो समागच्छइ' । सेणिएर्ण वि 'न नज्जइ केणइ कुमारेण मारिहिइ' त्ति चितिऊण तालपुडविसं जीहग्गे दिण्णं । तेण य सेणिओ पंचत्तमुवगओ । तं च तारिसं दट्ठण कोणिओ विसायमुवगओ विलविउमाढत्तो, अवि य खमसु महायस ! जं मे अयाणमाणेण तुज्झ अवयरियं । पणिवइयवच्छल च्चिय हवंति लोगम्मि नणु जणया ॥१०॥ पडिवयणपयाणेणं दुक्खमिमं ताय ! हर ममाहितो । नत्थि तुमाओ अण्णो जो सोगमिमं पणासेइ ॥१०५॥ कयपुन्नसुएहिं तो जणया पावेंति सव्वसोक्खाई। पत्तं ममाउ मरणं ताएण विसुद्धभावेण ॥१०६॥ इय एवमाइबहुविहविलवंतो उज्झिऊण नियरज्जं । निव्वावारो चिट्ठइ सोगानलताविओ राया ॥१०७।। 'अहो ! विणटुं रज्जं इमिणा मोहमुवगएण, ता किमित्थ कायव्वं ?' ति चितंतेहिं भणिओ राया मंतीहिं - देव ? अलं सोगेण परलोगगयस्स पिउणो, पवत्तेसु पिंड-जलाइ-दाणं जेण सो- तत्थ पावइ । तओ तह त्ति पडिवज्जिऊण पवत्तियं सव्वमिणं कोणिण । कालेण अप्पसोगा जाओ । तप्पभिई च सव्वलोगेण वि पवत्तियं पिंडदाणाइयं । तस्स य कोणिय नरिंदस्स तत्थ रायगिहे नयरे पिउणो कीलाइठाणाणि पेच्छमाणस्स पइदिणमुप्पज्जए सोगो । तओ भणिया तेण महंतया जहा-अण्णं पुरं निवेसह। तेहि वि तह त्ति पडिवज्जिऊण वत्थुविज्जाजाणगा पेसिया नयरजोग्गट्ठाणगवेसणनिमित्तं । १. सं.वा.सु. ण चिंतियं न नज्ज ॥ २. "वास्तुविद्याज्ञापकाः" इत्यर्थः । Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६८ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः तेहिं वि दिवो एगत्थ ठाणे महंतो अइपरूढवित्थरो पुप्फाइसोहासमुदओववेओ अणेगसउणगणसेविज्जमाणो चंपयरुक्खो । तं च दट्ठण चिंतियमणेहि-'अहो ! जइ एत्थ ठाणे नयरं कीरइ तो एवं सोहासमण्णियं पभूयजणाहारं च भवइ' । एवं च चिंतिऊण निवेसिया तत्थ ठाणे चंपा नाम महापुरवरी । गओ य तत्थ सबलवाहणो कोणियनरिंदो, भुंजए य सइच्छाए महारज्जसिर । अण्णया य ते हाल-विहल्ला कुमारा सेयणयमहा- गंधहत्थिखंध-समारूढा हाराइरयणविभूसिया देवकुमार व्व कीलंति, अवि य सेयणगगंधहत्थि आरूढा सुरवर व्व दीसंति । हारोत्थयवच्छयला वरकुंडलभूसियकवोला ॥१०८॥ वरदेवदूससंवुयदेहा निच्चं ललंति परितुट्ठा । दट्ठण ताण लच्छि चितइ पउमावई देवी ॥१०९॥ 'रज्जं परमत्थेणं हल्ल-विहाण अम्ह पर सद्दो । दोगुंदुगदेवा इव रमंति जे विविहकीलाहिं' ॥११०॥ एवं च चितिऊण भणिओ कोणियनरिंदो जहा-'नाह ! नाममित्तेण चेव अम्ह रज्जं, परमत्थओ पुण कुमाराण, ता मग्गेहि एयाण पासाओ रयणाणि' । तओ भणियं राइणा-'देवि ! कहं पिउणा अंबाहिय दिण्णाणि रयणाणि मग्गिज्ज'ति ?, महंतो एस अयसो, ता एयं न करेमि त्ति', भणिए ठिया तुण्हिक्का देवी । तओ पुणो वि अण्णया य भणिओ तत्थ वि निसिद्धा । तइयवाराए एवं जंपियं पउमावईए-नाह ! अवस्समेव कायव्वमेयं जइ मए जीवमाणीए पओयणं । तओ पडिवन्नं राइणा अणवरयभणिएणं तम्मोहमोहिएण य, यत उक्तम् - पाषाणजालकठिनोऽपि गिरिविशालः, सम्भिद्यते प्रवहता सततं जलेन । कर्णोपजापनिपुणैः परिधृष्यमाणः, को वा न याति विकृति दृढसौहृदोऽपि ॥३६७।। तथा ददाति शौचपानीयं, पादौ प्रक्षालयत्यपि । श्लेष्माणमपि गृह्णाति, स्त्रीणां वशगतो नरः ॥३६८॥ किं न दद्यात् किं न कुर्यात्, स्त्रीभिरभ्यर्थितो नरः । अनश्वा यत्र हेषन्ते ऽपर्वणि मुण्डितं शिरः ॥३६९।। किञ्च १. सं.वा.सु. अम्ह एस गहो । दो॥ २. स्वस्तिकद्विकमध्यगः पाठो ला. संज्ञकप्रतौ नास्ति ॥ Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः स्त्रीणां कृते भ्रातृयुगस्य भेदः, सम्बन्धभेदे स्त्रिय एव मूलम् । अप्राप्तकामा बहवो नरेन्द्रा, नारीभिरुत्सादितराजवंशाः ॥ ३७० ॥ तओ अण्णदियहम्मि भणिया कुमारा राइणा जहा - वच्छा ! समप्पेह मे रयणाइं, जेण देमि तुम्हाणं रज्जस्सद्धं । कुमरेहिं कवडेण भणियं-जं देवो आणवेइ ति । भणिऊण गया नियगेहं । तओ परोप्परं मंतियमिमेहिं जहा-न सोहणो एयस्साऽभिप्पाओ, ता वच्चामो रयणाणि घेत्तूण अज्जयसयासं । को य तेसिं अज्जओ ?, अवि य अत्थि नयरी पहाणा पोराणा सयलगुणगणमहग्घा । वरसाला सुविसाला वेसाला सोहियट्टाला ॥ १११ ॥ तं च परिपालए हयकुलुब्भवो चेडओ नाम महाराया, जो य अहिगयजीवा -ऽजीवो उवलद्धपुण्ण- पावो आसव-संवरनिज्जरा-किरिया - ऽहिगरणबंध-मुक्खकुसलो - असहेज्जदेवा - ऽसुरगरुल-गंधव्व - जक्ख - किन्नराइएहिं देवगणेहिं णिग्गंथाओ पावयणाओ अणइक्कमणिज्जो, निग्गंथे पावयणे निस्संकिओ निक्कंखिओ निव्वितिगिंछो अमूढदिट्टु अट्ठिमिंजपेमाणुरागरत्तो, अयमउसो निग्गंथे पावयणे अट्ठे, अयं परमठ्ठे सेसे अणट्टे, ऊँसियफलिहो अवंगुयदुवारो वियत्तंतेउरघरप्पवेसो चाउद्दसि - अट्ठमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं समणुपालेमाणो, समणे निग्गंथे फासुएसणिज्जेणं असण- पाण- खाइमसाइमेणं वत्थ-पडिग्गहकंबल - पायपुंछणेणं पीढफलग - सेज्जासंथारएणं पडिला भेमाणो, विहरइ । ( ) ॥ १६९ १. सं. वा. सु. 'हिं भ° ॥ २. ला. 'माउसा ॥ ३-४ ला ऊससिय° ॥ - स्पष्टश्चाऽयं वर्णकः परं, 'असहेज्ज' त्ति असह्याः = सोढुमशक्याः असहाया वैकाकिनोऽपि सामर्थ्यवन्तो ये देवादयस्तैः । 'अट्ठिमिंज' त्ति अस्थिमज्जा = अस्थ्यन्तवर्ती षष्ठो धातुः, साऽपि जिनदर्शनप्रेमानुरागरक्ता यस्य स तथा, तथाहि - यथा कस्यचित् प्राणिनः केनाऽपि योगेनाऽऽषष्ठधातुर्व्याप्तो भवति न च कथञ्चिदुत्तरति, एवमस्याऽपि जिनदर्शनानुराग इति भावः । 'ऊँसियफलिह' त्ति उच्छृतम् = उच्चं स्फटिकमिव स्फाटिकं निर्मलत्वात् सम्यक्त्वं यस्येति भावः, यद्वोच्छ्रितपरिघः = ऊर्ध्वकृतद्वारार्गलः । 'अवंगुयदुवारे' त्ति अप्रावृत-द्वारो दीनानाथादिप्रवेशार्थं परतीर्थिकप्रवेशेऽपि मम परिवारस्य क्षोभयितुमशक्यत्वादित्याशयेन वा जिनधर्मप्राप्त्या वा उद्घाटशिरास्तिष्ठामीत्यभिप्रायेण वा । 'वियत्तं' ति प्रीत्या । 'उद्दिट्ठ' त्ति उद्दिष्टाऽमावास्या, 'पुण्णमासिणी' इति पूर्णमासी । मूल. २-२२ Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७० मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः एवंविहो य सो चेडओ राया । तेण य भगवओ सयासे दिणमज्झे 'एगं बाणं मोत्तूणं न बीयं मुयामि' त्ति अभिग्गहो गहिओ । तस्स य चेल्लणा 'धूय' ति काऊण अज्जओ भवइ हल्ल-विहल्लाणं । जहा चेल्लणा परिणीया तहा सुलसाकहाणए पुव्वमावेइयं । तओ ते हल-विहल्ला रयणीए रयणाणि अंतेउरंच गहाय गया चेडयसमीवं। पभाए य कोणिएण नायं तओ चिंतियं-हन्त ! मम धण-मित्तनासो संजाओ जओ कुमारा वि न जाय त्ति । चिंतिऊण चेडयस्स दूयं विसज्जेइ । कमेण य पत्तो तत्थ दूओ । पडिहाराणुन्नाओ य पविट्ठो । कयजहारिहकायव्वो य विण्णवइ, अवि य 'विण्णवइ देव ? कोणियराया जह पणयकोवपरिकुविया । पेसिज्जंतु कुमारा गयाइरयणेहिं संजुत्ता' ॥११२॥ तओ भणियं चेडएण, अवि य'जे रुसिऊण पत्ता ते जइ सयमेव जंति तो लटुं । मड्डाए पुणो कुमरे रे दूय ! अहं न पेसेमि' ॥११३।। तओ पुणो वि जंपियं दूएण, अवि य "जइ सरणागयवच्छल ! कुमरे नो पट्ठवेसि ता तुरियं । पेसेसु य रयणाणि उ' भणिओ दूएण नरनाहो ॥११४॥ तेण वि भणिओ दूओ जइ य सयं दिति करिवरं कुमरा । ता गिण्हिऊण वच्चसु राया कुमरा वि मम सरिसा ॥११५॥ दूएण वि सविसेसं गंतूण साहियं कोणियस्स जहा-न अप्पेइ रयणाणि अज्जगो। तं च सोऊण रोसवसतडियभिउडिभासुरतिवलीतरंगभंगुरभालवद्वेणं भणियं राइणा-अरे ? लहुं गंतूण भणसु अज्जयं 'जइ रयणाणि न अप्पेसि तो जुज्झसज्जो भवाहि । तहा कहिए य दूएण चेडएण भणियं-जं रोयइ तं कुणसु, नाऽहं बलामोडीए कुमारे रयणाणि वा अप्पेमि जओ सरणागयं चयंता अयसं गिण्हंति सासयं पुरिसा । . . नियसत्तीए तं चिय रक्खंता निरुवमं कित्तिं ॥११६।। तओ गंतूण सव्वं निवेइयं दूएण कोणियस्स । तव्वयण-सवणाणंतरं च ताडाविया कोणिएण पयाणयभेरी, अवि य फोडइ व गयणमग्गं दलइव्व महीयलं असे पि । कोणियनिवपत्थाणयभेरीसद्दो समुच्छलइ ॥११७॥ १. ला. दलइ व महिमंडलं अ॥ Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७१ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः सोऊण तीइ सदं खुहिया सव्वा वि पुरवरी सहसा । सन्नज्झिउं पवत्तो सव्वो वि हु तत्थ पुरलोगो ॥११८॥ कालाइया कुमारा चउविहनियसिनपरिखुडा तुरियं । संपत्ता निवपासे सो वि हु सुहलग्गजोगम्मि ॥११९॥ ण्हाओ कयबलिकम्मो सियवत्था-ऽऽहरण-कुसुमसोहिल्लो । धरियधवलायवत्तो विणिग्गओ झ त्ति नयरीओ ॥१२०॥ कालाइकुमाराणं एक्केक्कस्स य झरंतगंडाणं । तिण्णेव य तिण्णेव य लक्खा हत्थीण तुंगाणं ॥१२१॥ संगामकरणदच्छा आउहआवरणपूरिया सझया । वरतुरयसंपउत्ता तत्तियमित्ता वररहा वि ॥१२२॥ मणपवणजइणवेगा सावरणा पवरजोहपरिगहिया । खुरखुन्नखोणिवट्ठा तत्तियमित्ता तुरंगा वि ॥१२३॥ एक्कलपाइक्काणं कोडीओ तिण्णि तिण्णि पत्तेयं । सन्नद्धबद्धकवयाण विविहवरपहरणकराणं ॥१२४॥ जाव इयं तु दसण्ह वि सेण्णं कालाइयाण कुमराणं । तावइयं एक्कस्स वि सिरिकोणियराइणो सेण्णं ॥१२५॥ कालाईहिं समेओ अणवरयं जाइ कोणियनरिंदो । दसहिं दियंतेहिं समं पाउसमेहो व्व गज्जंतो ॥१२६॥ सव्वं पि इमं सिटुं चेडयरायस्स चारपुरिसेहिं । सो वि तयं सोऊणं मेलइ सव्वं पि नियसेण्णं ॥१२७॥ अट्ठारस वि नरिंदा गणरायाणो समागया झ त्ति । तेसि पि य बलसंखा नायव्वा होइ एगस्स ॥१२८॥ तिण्णि सहस्सकरीणं इत्तियमेत्ता रहा तुरंगा वि । तिण्णेव य कोडीओ पाइकाणं सुपक्काणं ॥१२९॥ सव्वेसि बलसंखा एसा एयाण होइ पत्तेयं । एयाण सव्वसंखातिगुणा सिरिचेडयबलस्स ॥१३०॥ १. ला. “या तुरियं । ते॥ Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२ पासण-1 मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः एवं च चेडयबलं पि अणवरयपयाणेहिं गच्छंतं पत्तं विसयसंधि जाव मिलियाई दोण्णि वि अग्गाणीयाई, पवाइयाइं रणतूराई अवि य वाइय जमलसंख अइभीसण, वाइय भाणयसमढक्कासण । -- वाइय काहल अइतारस्सर, वाइय भेरिचक गहिरस्सर ॥१३१॥ वाइय पडह भुयंग समद्दल, गुरुयनायउक्कंपियपरबल । वाइय झल्लरि केरड सुनिद्दय, वाइय कंसालय वरसद्दय ॥१३२॥ वाइय डमरुय डक्क भयंकर, वाइय पडहय दारियकायर । इय वाइउ खरतूरमहागणु, गहिरसद्दि जह फुडइ नहंगणु ॥१३३॥ इय एवं सोऊणं समरमहागहिरतूरनिग्धोसं। जयसिरिलुद्धाई दढं भिडंति अह दुन्नि वि बलाइं ॥१३४॥ तुरया तुरंगमाणं रहाण रहिणो गयाण वि गइंदा । समयं चिय संलग्गा सुहडा दप्पुद्धरभडाणं ॥१३५।। एवं च जायं महासंगरं, अवि य पडंतछत्तचिंधयं, लुढंत छिनगत्तयं । पयट्टलोहियावहं, भमंत भूरिसावयं ॥१३६।। पडंतमत्तकुंजरं, जायंतबाणपंजरं । भज्जंतसंदणोहयं, छिज्जंतचिंधसोहयं ॥१३७॥ खिप्पंतसेल्ल-सव्वलं, अणेगसत्थसंकुलं । घोसंतनाम-गोत्तयं, पढंत भट्टजुत्तयं ॥१३८॥ छिज्जंतणेयसीसयं, हेसंत भिन्नआसयं ।। तुटुंतखग्गभीसणं, सुव्वंतणेयनीसणं ॥१३९॥ इय कायरजणकयबीहणयं, सुहडोहविमुक्कसुसीहणयं । रइछाइयदिसिकयमोहणयं, इय जायं तं रणयंगणयं ॥१४०॥ इय गंधव्व-सिद्ध-विज्जाहरछाइयगयण मग्गए, ___ भीमभमंतदुट्ठकत्तियकरडाइणिसयसमग्गए । १. सं.वा.सु. करडि सुसह्य ॥ २. सं.वा.सु वाइय ॥ ३. ला. 'गरुयतू ।। Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः चेडयसेण्णदिण्णअइदारुणघायविभिन्नगत्तयं, कोणियरायसेण्णु नीसेसु वि भग्गं मुक्कसत्तयं ॥ १४१ ॥ तं भग्गं दट्ठूणं आ॒सासिंतो खणेण सेणाणी । कालयघणो व्व वरिसइ कालो सरनियरधाराहिं ॥ १४२ ॥ तस्स सरनियरधारासमाहयं सायरं व पक्खुहियं । सायरवूहं सव्वं चेडयराएण जं रइयं ॥१४३॥ तं भिदेउं एसो पविसइ मज्झम्मि तस्स वूहस्स । जत्थऽच्छइ सयमेव य चेडयरायाहिराओ त्ति ॥१४४॥ तं दट्ठूणं चितइ चेडयराया अहो ! णु एयस्स । न वि े छुट्टइ मह सेण्णं जा न वि वावाइओ एसो ॥ १४५॥ इय चिंतिऊण मुक्को दिव्वसरो तेण तेण सो भिन्नो । संपत्तो - कालघरं कालो सेणावई सहसा ॥ १४६ ॥ तो नायगपरिहीणं तं सेण्णं वल कोणि वि 1 उवसंहरिडं समरं दिणसेसे ठाइ सट्टाणे ॥ १४७॥ अह बीयदिणम्मि तओ महकालो नाम बीयओ भाया । सयमेव कोणिएणं सित्तो सेणाहिवत्तेण ॥ १४८॥ सो वि हु एगसरेणं बीयदिणे घाइओ नरिंदेण । एवं दसहिं दिणेहिं पट्ठविया दस वि जमगेहं ॥१४९॥ अह कोणिओ विचितइ 'अज्जयबाणस्स को किर समत्थो । पुरओ ठाउं तम्हा मज्झ वि पुण्णोऽवही मण्णे' ॥ १५०॥ इय चिंतंतस्स तओ तस्स मई एरिसा समुप्पण्णा । जह 'आराहेमि अहं सुरनाहं पुव्वसंगइयं ॥१५१॥ तो सुरनाहारहणहेउं सो कुणइ तिण्णि उववासे । चलियासणो खणेणं समागओ सुरवई तत्तो ॥१५२॥ मह ठाणाओ चविउं एसो नणु कोणिओ समुप्पण्णो । मह तुल्लो आसि इमो इय नाउं एइ चमरो वि ॥१५३॥ १. ला. तेण तह य सो ॥ १७३ Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः इय असुरिंद-सुरिंदा दोण्णि वि जंपंति कोणियं एवं । 'भण किं कीरउ नरवइ ?' सो जंपइ 'चेडयं ह ह ॥ १५४ ॥ जंपंति ते वि 'साहम्मियस्स वरसावयस्स एयस्स । पहरामो न कर्हिचि वि भण अण्णं किं पि करणिज्जं ॥१५५॥ तो कोणिओ पयंपइ जइ एवं आगयं महं मरणं । को चेsयबाणाओ किर छुट्टइ चक्कवट्टी वि ॥१५६॥ तं सोऊणं इंदा भांति तुह देहरक्खणं कुणिमो । जंपर कोणिओ एवं होउ व पुण्णं महं णेण' ॥ १५७ ॥ चमरेण तओ विहिओ महासिलाकंटओ य रहमुसलो । दो संगामा घोरा कोणियरायस्स हियहेउं ॥ १५८॥ पढमम्मि कंटओ विहु सत्थपहाराओ होइ अब्भहिओ । तह कक्करो वि लग्गो महासिलासान्निहो होइ ॥ १५९ ॥ बीयम्मि रहो मुसलं च दो वि सुण्णा सणाई हिंडंति । चमरस्स पभावेणं जणनिवहर्महाखयकराणि ॥१६०॥ इय तत्थ तिण्णि इंदा सुरिंद-असुरिंद-माणुसिंदा य । चेडनिवेण सद्धि कुणंति अइभीसणं समरं ॥ १६१॥ अह चेडयनरवइणो वरुणो नामेण सारही सुहो । रहमुसलं संगामं देइ समं कोणिय निवेण ॥ १६२॥ जा सो गाढपहारो जाओ ता नींसरितु समराओ । इउं तणसंथारं तत्थ निसण्णो इमं भणइ ॥ १६३॥ सरणं मम अरहंता सिद्धा साहू सुयं च धम्मो य । पच्चक्खामि य सव्वं आहारं चउपयारं पि ॥ १६४ ॥ एवं आराहेउं पंचनमोक्कारसुमरणपसत्तो । उववण्णो सुरलोए देवो वरकंति - दित्तिधये ॥ १६५ ।। तम्मि हए वरसुहडे चेडयसेणावइम्मि वरुणम्मि । कलयलखं कुणंतं उच्छलियं कोणियस्स बलं ॥१६६॥ १. ला. 'महक्खय' ॥ २. सं. वा.सु 'णो नामेणं सारही वरुणसुहडो ॥ Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७५ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः तो उठ्ठिया नरिंदा गणरायाणो सरेहिं वरिसंता । पाउसकालघणा इव अंधारियसयलदिसिविवरा ॥१६७॥ तो तक्खणेण भग्गं कोणियरायस्स तंबलं सव्वं । गणराईणं तेसिं सरनियरपहारजज्जरियं ॥१६८॥ तं दट्ठणं भग्गं उठुइ सयमेव कोणियनरिंदो । गज्जतो वग्गंतो सीहो इव कुंजरघडाणं ॥१६९॥ तो तेण मयंदेण व करिजूहं पिव विलोलियं दटुं । कुविओ चेडयराया तस्स वहाए मुयइ बाणं ॥१७०।। फालियसिलं विउव्विय अवंतरे पडिहयं तयं हरिणा । न य बीयं सो मिल्लइ अभिग्गहो जेण तस्सऽत्थि ॥१७१॥ तो चेडयस्स बाणं तममोहं पडिहयं पलोएत्ता । पुण्णक्खओ त्ति मुणियं चेडयगणराइणो नट्ठा ॥१७२॥ ते नढे दट्ठणं निययबलेणं तु नयरमज्झम्मि। पविसित्तु चेडयनिवो रोहयसज्जो ठिओ झ त्ति ॥१७३।। कोणियनिवो वि नयरिं सव्वं संरोहए असंचारं । दियहे दियह य तओ संजायइ ताण संगामो ॥१७४॥ ते वि य हल्ल-विहल्ला सेयणयकरिम्मि आरुहेऊणं । रयणीए पइदियहं उक्खंदं दिति कडयम्मि ॥१७५।। पइदियहं तेहिं तओ कडगं सव्वं पि तं उवद्दवियं । न य जंति कह वि घेत्तुं सेयणयकरिट्ठिया जम्हा ॥१७६।। तो कोणिओ पयंपइ कह मारिजंति दो विमे कुमरे । . जम्हा सव्वं सेण्णं पाएणमभिदुयमिमेहिं ॥१७७॥ . . तो भणइ मंतिवग्गो देव ! न जीयंतयम्मि हथिम्मि । मारेऊणं एए सक्किजंते अइपयंडा ॥१७८॥ तो भणइ कोणियनिवो, जइ एवं तो गयं पि मारेह । । मा थोवयदिवसेहिं अम्हाण खयं करिस्संति ॥१७९॥ १. ला. नयरिम' || २. ला. 'हे तेसिं संजायइ गरुयसंगामो ॥ ३. ला. पि बहु उ ॥ Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः मंतीहिं तओ विहिया खायरडंगालपूरिया खड्डा उवरिं कया अलक्खा मग्गम्मि तस्स हत्थिस्स ॥१८०॥ संपत्तो रयणीए सो हत्थी जाव तम्मि ठाणम्मि । ता मुणिय विभंगेणं चोइज्जतो वि नो कमइ ॥ १८९॥ तो तेहिं दुत्थिओ सो 'रे पावय ! तुह कएण अम्हेहिं । आवइमहासमुद्दे पक्खित्तो अज्जओ एसो ॥१८२॥ जाव तुमं पिये थक्को' इय भणिओ निययपुट्ठिदेसाओ । उत्तारइ ते कुमरे दुसहं पहुवयणमसहंतो ॥ १८३॥ देइ सहस त्ति झंपं खड्डाय मओ य पढमपुढवीए । उवणो कुमरा वि हु भणेण एवं विचितंति ॥ १८४॥ 44 'अकयण्णुयाण अम्हाण दुट्ठवयणेहिं मारिओ अप्पा | संरक्खिऊण अम्हे करिणा किं अम्ह जीएण ? ॥ १८५ ॥ संपाविओ य वसणं सरणागयवच्छलो महाराओ । अट्ठारसहिं समेओ पुहईनाहेहिं सबलेहिं ॥१८६॥ कुलमाणगव्वियाणं नराण कोडीउ सह तुरंगेहिं । माराविया उ दूरं अम्हेहिं असुद्धभावेहिं ॥१८७|| समयं रहेहिं लक्खा तियसिंदगयंदविब्भमगयाण । पट्ठविया जमगेहं नियदेहसमा य रायाणो ॥ १८८॥ धणो अभयकुमारो जो रज्जं उज्झिऊण पव्वइओ । अम्हे वि पव्वयामो अलाहि पावेण रज्जेण ॥ १८९॥ इ एवं ते कुमरा दोणि वि वडुंतचरणपरिणामा । भावसमण त्ति काउं उद्धरिडं पवयणसुरी ॥ १९०॥ विहरतयस्स परओ किंचि समब्भहियजोयणसयस्स । नीया तेलोक्कदिवायरस्स वीरस्स पासम्मि ॥१९१॥ नरयाणलस्स हेउं रज्जं मोत्तूण मोक्खतरुबीयं । गिण्हंति असामण्णं सामण्णं जिणसमीवम्मि ॥ १९२॥ १. ला. वि ॥ २. ला. एएण ॥ ३. ला. ओयरिठं ॥ Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः तह वि न सक्कइ घेत्तुं वेसाली जाव ताव नरवइणा । अमरिसवसेण गहिया इमा पइण्णा अइपयंडा ॥१९३॥ जइ रासभजुत्तेणं हलेण नयरिं इमं न खेडेमि । ता गिरिणो अप्पाणं मुयामि जलणे व्व पविसामि ॥१९४॥ नयरीए अभंगेणं खेइयचित्तस्स राइणो देवी । कूलयवालयसमणंगरुट्ठा गयणंगणे भणइ ॥ १९५॥ समणे जइ कूलवालए मागहियं गणियं गमिस्सए । लोया असोगचंद वेसालि नगलि गहिस्सए ||३७१ || || १९६ ॥ एयं च निसामिऊण भणियं कोणिएणं बालया जं च भासंति जं च भासंति इत्थिओ जा य उप्पाइया भासा, न सा भवइ अण्णा ||३७२ ॥ ॥१९७॥ ता कत्थ सो कूलवालओ ? कत्थ सा मागहिया गणिया ? । तओ भणियं मंतीहिं- देव ! मागहिया ताव तुम्हाण चेव नगरीए पहाणगणिया, कूलवालयं पुण न पाणाम। तओ नरोहगे सेसबलं निजोजिऊण सयं गओ चंपं । सद्दाविऊण भणिया मागहिया- 'भद्दे ! जहा कूलवालयसाहू ते पई भवइ तहा करेहि' । तओ भणियमणाए, अवि य r १७७ नियरूवबुद्धिजोव्वणपुलइयभणिएहिं तियसनाहं पि । आमि वसं पत्थव ? का संका सेसपुरिसेसु ॥१९८॥ तओ माया या कवडसाविया । तओ परमसाविय व्व करेइ जिणाययणेसु पूयाओ, पयट्टावए ण्हवण-बलि-जत्ता - महूसवे, देइ दीणा - ऽणाहाईसु दाणाई, पडिलाहए साहु- साहुणीओ गोरवेइ सिरिसमणसंघं, विहेइ साहम्मियति । तओ पत्ता परं पसिद्धि । पुच्छिया य तीए सूरिणो जहा-भयवं, को एस कूलवालओ ? तेओ अमुणियतयभिप्पाओ सूरी भणिउमाढत्तो -साविए ! अत्थि एगो पंचविहायारसुद्धिओ पवयणाहारो आयरिओ । तस्स एगो चेल्लओ । सो य असमायारिपयट्टो सारण - वारणाईहिं चोइज्जमाणो रोसमुवागच्छइ तहा वि आयरिया न विरमंति, जओ भणियमागमे रूसउ वा परो मा वा विसं वा परियत्तउ । भासियव्वा हिया भासा सपक्खगुणकारिया ॥ ३७३ ॥ १. सं. वा.सु. वाहेमि ॥ २. ला. 'या कूडसा° ॥ ३. ला. भणिउं पयत्तो ॥ मूल. २-२३ Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७८ एवं च पुणरुत्तं सामपुव्वयं च भणिओ न सम्मं वट्टइ, अवि य गुरुणा महुरं भणिओ जंपइ 'फरुसं' सुणेसु 'न सुणेमि' । 'चिट्ठसु' भणिओ वच्चइ आयारं कुणसु 'न करेमि ॥ १९९॥ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः अइसुंदरं पि भणियं हियए किं ठाइ पावकम्मस्स । अहवा गरकल्लोले ठाणं किं होइ अमयस्स ? ॥ २००॥ जलइ कुसीसो वडवानलो व्व वयणामएहिं सिंच्चंतो । सुंदरसीसो सरयागमो व्व फलरेहिरो होइ ||२०१|| चिततो वि य न तरइ धम्मपभावेण मंगुलं काउं । अह विहरंता कमसो गिरिनयरे सूरिणो पत्ता ॥ २०२॥ तो अन्नया कयाई उज्जितमहागिरिम्मि ते चडिया | चेइयवंदणहेउं तेणेव य खुड्डएण समं ॥२०३॥ देवे वंदित्ताणं समोयरंताण ताण सूरीणं । उवरिट्ठिएण खित्तो चालेउं गंडपाहाणो ॥ २०४ ॥ तक्खडहडं सुणेउं अवलोयइ पिट्ठओ तओ सूरी । गंडलं अवयच्छइ दो वि जंघाओ ॥ २०५ ॥ ताणंतरेण सो वि हु पाहाणो निग्गओ न य गुरूणं । मणयं पि कया पीडा गुरुणा रुट्ठेण ता उत्तो ॥ २०६॥ 'इत्थीइ सयासाओ तुज्झ विणासो त्ति होहिई' गुरुणा । भणिए पडिभणइ "तुमं अवस्स अलियं करिस्सामि ॥२०७॥ नारी वयणं पि हु जत्थ न पेच्छामि तत्थऽरण्णम्मि । अच्छेऊणं नियमा दुक्करतवचरणनिरएणं ॥२०८॥ एवं च जंपिऊणं अवक्कंतो गुरुसयासाओ । गओ एगं निम्माणुस्सं महाडविं । तत्थ य एगाए गिरिनईए कूले ठिओ काउस्सग्गेणं पावासुयाइसयासाओ अद्धमासाओ मासाओ वा पारेइ । एवं च तस्स तवं कुणंतस्स समागओ पाउसकालो, अवि य गज्जंति नहे मेहा, चमक्कए वेज्जुला पडइ नीरं । थाणत्थो पहियगणो भज्जंति पवाण मंडवया ॥ २०९ ॥ १. सं. वा. सु. सिंचंतो ॥ २. ला. अच्छेयव्वं नि° ॥ Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७९ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः विरडंति दद्दुरगणा गिरिसरियाओ वहति पूरेणं । एवंविहम्मि काले जलपूरपवाहपउरम्मि ॥२१०॥ तओ चिंतियं तीए गिरिनइदेवयाए-हंत कहमेयं महातवस्सि नियपूरेणं पेल्लिस्सं ति। चितंतीए वालियं नियकूलं देवयाए, पयट्टा अण्णदिसाए । तप्पभिई तस्स साहुस्स कूलवालओ नामं जायं । सो य अमुगत्थ पएसे चिट्ठइ" । तं च सोऊणं हरिसुप्फुल्ललोयणा कयसयलसामग्गीविसेसा तित्थजत्ताछलेण वंदंती य कमसो चेइयाइं गया तमुद्देसं । दिट्ठो साहू । वंदिओ सविणयं, भणियं च 'वंदाविओऽसि मुणिवर ! सित्तुंज्जुज्जितमाइतित्थेसु । नाणाविहजिणवरचेइयाई' इय जंपिए तीए ॥२११॥ उस्सारिऊण सो वि हु उस्सग्गं देइ धम्मलाभं से । वंदित्तु चेइयाई परिपुच्छइ 'साविए ! कत्तो ॥२१२॥ तुब्भेत्थ. आगयाई' सा जंपइ "सामि ? चंपनयरीओ। तित्थाण वंदणत्थं समागया एत्थ ठाणम्मि ॥२१३॥ तित्थाण परमतित्थं तुब्भे इह जंगमं सुया तित्थं । तो तुम्ह वंदणत्थं इह पत्ता भत्तिसंजुत्ता ॥२१४॥ ताऽणुग्गहेहि भयवं ! फासुयएसणियसंबलेणऽम्ह" । इय भणिओ सो साहू तीए सह जाइ सत्थम्मि ॥२१५॥ पडिलाभिओ य विहिणा संजोइयदव्वमोयगेहिं तु । ते पारियमेत्तस्स उ होइ तओ तस्स अइसारो ॥२१६॥ तेणेसो अइकट्ठ गिलाणयं पाविओ महाघोरं । किं बहुणा ? अंगाइं वि न सक्कए संवरेऊणं ॥२१७॥ तं पासिऊण एसा निदइ अप्पाणयं बहुपयारं । "हा ! अम्ह निमित्तेणं जाओ तुम्हाण अइसारो ॥२१८॥ ता कहं एयावत्थगया तुब्भे मोत्तूण मम पाया वहंति ?" एयं जंपिऊण ठिया तत्थेव एसा । तओ ओसहदाणनिमित्तं उव्वट्टणाइनिमित्तं च अल्लियइ । तओ तहा तहा उव्वट्टणाइयं विहेइ जहाजहा नियावयवाणं से फंसो भवइ । कओ य कालक्खएण पगुणो । रंजियं च चित्तमेयस्स तीए असाहारणाए भत्तीए । तप्फंस-कडक्खविक्खेव जंपिएहिं य १. सं.वा.सु. कह एयं ॥ २. ला. सुयं ॥ ३. सं.वा.सु. क्ख-जं ॥ Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८० मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भाग: चलियं चित्तं निबद्धो दइयसद्दो त्ति, अवि य सइदंसणाउ पेम्मं पेम्माउ रई रईइ वीसंभो । वीसंभाओ पणओ पंचविहो वट्टि(ड्डि)ओ मयणो ॥२१९॥-- तओ नीओ तीए कोणियसयासं, भणियं-च देव ! एस मए कूलवालओ अप्पपई काऊण य इहाऽऽणीओ, ता संपयं भणसु जमेएण कायव्वं । कोणिएण भणियं तहा करेसु जहा वेसाली लहु भज्जइ । सो वि आएसो त्ति भणित्ता लिंगिणो रूवेण पविट्ठो नयरीए । निरूविउमाढत्तो नगरवत्थूणि जाव दिटुं मुणिसुव्वयसामिथूभं तं च दट्ठण चिंतियमणेण "हंत ! एरिसे लग्गे एवं पइट्ठियं जारिसे एयम्मि विज्जमाणे इंदेहिं वि न भज्जए नयरी, ता केणइ उवाएण एवं ऊसारावेवेमि" ति चिंतंतो भमइ नयरीमज्झे । तं च दट्ठण लोगो पुच्छइ जहा-भयवं ! जाणसि किंचि कया अम्हाणं रोहगो फिट्टिहिइ ?' तेण भणियं 'सुटु जाणामि, जावेयं थूभं चिट्ठइ न ताव तुम्हाणं रोहगो अवेइ, एयम्मि अवणीए पुण नियमा अवेहिइ, पच्चओ य एयमवणिताणं चेव किंचि सरिस्सइ परचक्कं' । लोगो वि आदण्णो जाव उक्किल्लिउमाढत्तो ताव णेण गाउयदुगमेत्तमोसारिओ कोणिओ । तओ संजायपच्चएण लोगेण निम्मूलमुप्पाडियोणि से वत्थूणि । कोणिएण वि समागंतूण भग्गा नयरी । भणाविओ य चेडयराया जहा 'अज्जय ! भण संपयं किं ते पियं कीरउ ?' चेडएण भणियं 'मुहुत्तमित्तं विमालिऊण नयरीए पविसिज्जसु । चेडओ वि अणसणं गहेऊण लोहमयपुत्तलियं गले बंधिऊण पविट्ठो अत्थाहसलिलं। तओ साहम्मिओ त्ति काऊण नीओ धरणिंदेण नियभवणे। तत्थ य आलोइयपडिक्त सव्वपावकम्मो पंचनमोक्कारपरायणो समाहीए कालगओ समुप्पण्णो तियसो तियसालये त्ति नयरीलोगो य सच्चइणाउप्पाडिऊण नीओ नेवालवत्तिणीए । कोणिएण वि रासहजुत्तेहिं हलेहिं खेडाविया नयरी, अवि य घोरागारो जाओ बारस वरिसाणि ताण संगामो । जो वण्णिउं न तीरइ जीएण वि दीहकालेण ॥२२०॥ जत्थ सयं अवयरिओ सक्को चमरो य कोणियगुणेहिं । अन्ने य विविहतियसा, चेडयगुणनियरपडिबद्धा ॥२२१॥ पडिया जत्थ सहस्सा निबद्धमउडाण नरवइसुयाणं । करिणो य लक्खसंखा रहेहिं सह सेलसरिसेहिं ॥२२२॥ जच्च तुरंगमदप्पुद्धराण पुरिसाणऽणेगकोडीओ । नियबंधूहि समया खंधारनरा असंखेज्जा ॥२२३।। १. सं.वा.सु. “याइं ॥ २. ला. नीओ नीलया वंतगुहाए । को ॥ ३. "जीवेन=बृहस्पतिना" इत्यर्थः ॥ Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः किं जंपिएण बहुणा ? दुवालसंगीए भासियं गुरुणा । ओसप्पिणीइमीसे न एरिसो अण्णसंगामो ॥२२४॥ इओ य सेणियस्स भज्जाहिं पुच्छिओ तेलोक्कमहापईवो समवसरणत्थो भयवं महावीरो कालाईण नियपुत्ताणमागमणं । भगवया वि धम्मदेसणापुव्वयं तहा कुमाराण मरणमाइटुं जहा मुणियसंसारसरूवाओ साहुणीओ संवुत्ताओ त्ति, अवि च तह जिणवरेण सिटुं, संसारासारयाए सह मरणं । पुत्ताण जहा सव्वा, निक्खंता मुणियसब्भावा ॥२२५।। कोणिओ वि सव्वबलसमण्णिओ पत्तो चंपं । तत्थ समोसरिओ तेलोक्कचूडामणी भगवं वद्धमाणा । कयं तियसेहिं समवसरणं । संपत्ता तियसिंदाइणो कोणिएण चिंतियं'अव्वो ? मह रिद्धी तारिसी जारिसी चक्किस्स, ता कह एयाए रिद्धीए अहं चक्की न व? त्ति ता संपयं किं वियप्पेण ? पुच्छामि भगवंतं' । चिंतंतो गओ सव्वबलसमुदएणं भगवओ वंदणनिमित्तं । वंदिऊण य जहावसरं भणियमणेण जहा 'अपरिचत्तकामभोगा कत्थोववज्जति चक्किणो ?' भगवया भणियं-'अहे सत्तमाए पुढवीए' । तेण भणियं 'अहं कत्थोववज्जिस्सामि?' भगवया भणियं-'छट्ठीए' । तेण भणियं किमहं सत्तमीए न वच्चामि ?' भगवया भणियं 'तुमं चक्कवट्टी न भवसि । तेण भणियं 'ममं पि जत्तिया चक्किणो गयंदतुरय-संदण-पाइक्काइणो तत्तिया संति' । भगवया भणियं 'रयणाणि तुज्झ नत्थि' । तओ कित्तिमाणि लोहमयाणि एगिदियरयणाणि काऊण महाबलसमुदएणं ओयवितो भरहं, उत्थायंतो रिउणो करितो ववत्थाओ, पूरितो पणइयाण आसं, माणितो माणणिज्जे, पत्तो तिमिसगुहां कयतिरत्तोववासेण य आहयाणि तेण दंडरयणेण पउलीकवाडाणि । 'अव्वो ? को एस कयंतमंदिरुक्कंठिओ पउलीकवाडाणि ताडेइ ?' त्ति भावेंतेण भणियं कयमालदेवेण-'को एस?' कोणिएण भणियं 'अहं असोकचंदो चक्कवट्टी समुप्पन्नो' । कयमालेण भणियं 'समइक्कंता दुवालस चक्किणो, तो अलमेयाए अपत्थियपत्थणाए, वच्चसु नियगेहं । तेण भणियं 'अहं तेरसमो चक्की संजाओ' । कयमालेण भणियं 'भो कोणिय ! किमेयाए असब्भूय भावणाए अप्पाणमावयाण मंदिरं कुणसि ? ता लहुं नियत्तसु त्ति, अवि य खरनहरपहरनिद्दलियमत्तमायंगकुंभभायस्स। मयगव्विरो विहरिणो कह केसरिणो हवइ सरिसो ? ॥२२६॥ अच्चुब्भडवियडफणाणिहायमाहप्पदप्पकलियस्स ।। दप्पुद्धरो वि भिक्को फणिणो कि होइ सारिच्छो ? ॥२२७॥ १. ला. समत्थब’ | २. ला. अव्वो ! जारिसी मम रिद्धी तारिसीए अहं ॥ ३. सं.वा.सु. 'भकेसरिणो । मं ॥ ४. सं.वा.सु. कह सरिसो होइ एयस्स? || Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ नियरूव-कंति-जोव्वणकलाकलाविक्कमंदिरं जइ वि । कह सामण्णनरिंदो उवमिज्जइ तियसनाहस्स ॥ २२८ ॥ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः मणहरजिण भवणविभूसियस्स भुवणम्मि सुप्पसिद्धस्स । न कयाइ खुद्दसेलो संकासो होइ सुरगिरिणो ॥ २२९॥ इय जइ वि तुमं कोणिय ! नियरिद्धिबलेण गव्विओ भमसि । तह वि न होसि सरिच्छो महाणुभावेहिं चक्कीहिं" ॥२३०|| एवं पि भणिओ तुरयारूढो जाहे न चिट्ठइ ताहे संजायामरिसवसेण उग्घाडियाणि पउलीकवाडाणि । तओ र्तदुम्हाए दड्ढो जओ महाचक्कवट्टीणं तुरया पिट्ठओ दुवालस जोयणाणि ओसरंति न तहा तस्स तुरओ ओसक्किउं सक्किओ । मरिऊण य उववण्णो छट्ठीए तमाहिहाणाए पुढवीए उक्कोसाऊ महानारगो । सेस राईएहिं य अहिसित्तो तस्स पुत्तो उदाई नाम रायाहिराओ त्ति । 1 एवं जं निवकोणिय - हल्ल-विहल्लाण सोयराणं पि । जाओ नेहस्सखओ, अइदारुणवेरहेउ ति ॥२३१॥ जं चेsय - कोणियनरवराण अइनिद्धबंधवाणं पि । जाओ वेराबंधो, कालाइनरिंदखयहेऊ ॥२३२॥ अण्णा व बहुविहनरवराण अवरोप्परं सुबंधूणं । जं जाओ संगामो वरभडबहुकोडिखयजणओ ॥२३३॥ तं कारणमिह जाया देवी पउमावई महापावा । रयणाण मग्गणेणं सेसित्थीणं पि एस गई ||२३४|| पद्मावतीकथानकं समाप्तम् ॥४३॥ [ ४४. ज्वालावलीकथानकम् ] अधुना ज्वालावलीकथानकं कथ्यते अत्थि इहेव जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे गंधिलावईविजए जयउरं नाम नयरं । तत्थ य जयसिरिसंकेयठाणं सिरिचंदो नाम राया । तस्स य सयलंतेउरप्पहाणा भाणुसिरी नाम देवी । सा य निरवच्चत्तणेण देइ उवाइयाई, आलिहावए मंडलाइ, करेइ ण्हवणयाई, पिय ओसहाई, लिहावए रक्खाओ, पयट्टावए मंत-तंत - जंताई, बंधावए मूलियाओ, कारावए सव्वदेवयाणं पूयाओ, किं बहुणा ? १. सं.वा.सु. तदुहाए ॥ २. ला. संजाओ नेहखओ ॥ ३. सं.वा.सु. 'मो बहुभडखयकोडिसंजणओ ॥ ४. ला. महादेवी ॥ Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८३ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः पुत्तत्थिणीए तीए तं नत्थि जयम्मि जं न परिविहियं । आसापिसाइयाए विनडिज्जइ अहव सव्वो वि ॥१॥ आसापिसायगहिया जाउंडियलोयभक्खठाणम्मि । सा वट्टए वराई इय एवमिमं जओ भणियं ॥२॥ होरा-हस्तनिरीक्षणमन्त्र-वशीकरण-कोमलकथाभिः । प्रायो बृहस्पतेरपि नार्योऽनायें: प्रतार्यन्ते ॥३७४॥ एवं च तीए खिज्जमाणीए बहुकालेणं तहाविहभवियव्वयानियोगेण जाया एगा धूया। 'ताणं जालामालिणी गोत्तदेवय' त्ति काऊण कयं दारियाए नामं जालावलि त्ति । सा य पवड्डमाणा विसलय व्व जाया सव्वजणउव्वेयकारिणी, अवि य कूरा निद्दयकम्मा साहसिया कवडवंचणपहाणा । अहियं निम्मज्जाया संजाया वड्डमाणी उ ॥३॥ एवंविहचिट्ठिएहिं य अच्चत्थं खेइओ पिया समत्थपरियणो य । तहावि नियधूय त्ति काऊण जोव्वणत्था समाणी परिणाविया कंचणपुरनयराहिवइदुज्जोहणमहारायसुयसूरपालकुमारेण । नीया य तेण नियनयरे । ठविया अंतेउरब्भंतरे । तओ तेण वि सह न वट्टए सम्मं, करेइ अविणीयत्तणं, भंजए मज्जायाओ । तओ पइदिणमविणयपराए संताविओ एसो । तओ तेण दिट्ठा अणायरेणं । अभिमाणकोहपरव्वसा य समारूढा पडणत्थं गवक्खगे कम्मधम्मसंजोएण य तेणंतेण वोलेमाणो दिट्ठो तत्थ पओयणागओ महानरिंदमहसेणपुत्ते इंददत्तो नाम । पंचसरपहारविहुरियसरीराए पलोइओ सव्वंग सो साभिलासं । तेण वि तल्लावण्णावज्जियमाणसेण निरूविया सा सव्वंगं, जाओ साभिलासो । तओ तीए खग्गं दंसिऊण दंसियमप्पाणयं जहा-जइ खग्गदुइओ समागच्छसि तो ममं पावसि त्ति । सो वि तं सव्वं हियए संपहारिऊण गओ निययावासे । जाए य बहले अंधयारे कयवंठवेसो गओ तत्थ । पविट्ठो विज्जुक्खित्तकरणेणं । जाओ वीसंभो । अणुभूयं च दोहिं वि सरससुरयसुहं । भणियं च जालावलीए जहा-नाह ? जइ इओ ममं हरसि तो सोहणं भवइ । तेण वि अच्चंताणुरत्तचित्तेणं उत्तारिया वरत्तापओगेणं । पट्ठियाणि निययावास-सम्मुहं । एयं च सव्वं दिटुं वीरचरियाए विणिग्गएण सूरपालेण 'हंत ! किमेयं थी-पुरिसजुयलं मम वासभवणाओ समुत्तिण्णं ?' लग्गो पट्ठीए । सम्मं निरूवंतेण य दो वि विण्णायाणि । तओ समुच्छलतकोवानलामरिसवसपरावसीकयमाणसेणं हक्किओ एसो जहा 'रे रे दुरायार ! सारमेयचरिय ! महाकुलसमुन्भवरायपुत्तो वि होऊण एवं उभयकुलविरुद्धं ववससि ?, ता पुरिसो भवाहि' । तओ एयमायण्णिऊण वलिओ एसो । Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८४ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः तओ दप्पुद्धराणं ताणं दोण्हं वि रायपुत्ताणं आवडियमाओहणं, अवि य पहरंति दो वि धणियं दो वि हु वच्चंति दो वि वगंति । आरण्णयमत्तमहागय व्व उम्मुक्कपरिवारा ॥४॥ तो इंददत्तकुमरो कहिचि छलिऊण सूरपालेण। तह खग्गेणं पहओ जह जाओ दोन्नि खंडाइं ॥५॥ दट्ठण ताणं जुझं निहयं नाऊण इंददत्तं तु । जालावली उ पावा भयकंपिरथोरथणवट्ठा ॥६॥ बहले तमंधयारे अलक्खिया सूरपालकुमरेण । नासित्तु जाइ सिग्घं आवासे इंददत्तस्स ॥७॥ एत्यंतरम्मि य वियलिया रयणी, पणस्संति तारया, निलुक्कंति धूया, करयरंति काया, चुहुचुहंति चिडया, पणस्संति सावया, थुव्वंति देवसंघाया वजंति नाणाविहाई पाहाउयतूराहं, तओ कमेण य जाया आवंडुरा नहलच्छी, अवि य वियलियताराहरणा विमुक्कतमकेसिया य पंडुइया । कुमरस्स भारिया इव नहलच्छी रुयइ विहगेहिं ॥८॥ इत्थंतरम्मि सूरो समुग्गओ पहयतिमिरभरपसरो । परदारपसत्ताणं इमा गई दंसणत्थं व ॥९॥ तओ पुच्छिओ तीए एगो पुरिसो जहा 'कस्सेसो खंधावारो ?' कहियं च तेण जहा-रयणपुरागयइंददत्तकुमरस्स' । तीए य विण्णायकुमारवहपरमत्थाए जंपियं जहा 'मारिओ तुम्हाण सामी वीरचरियाविणिग्गयसूरपालकुमरेण, जइ न पत्तियह ता निरूवह अमुगट्ठाणे' । तओ जाव निरूवियं ताव तहेव दिटुं । हाहक्कंदपरायणं अनाययं ति काऊण पणहूँ इंददत्त सेण्णं । साहिओ य एस वुत्तंतो इंददत्तपिउणो । सो वि महसामग्गीए समागओ सूरपालस्सुवरि । जाओ य महासंगामो । तओ कहिंचि वियाणिऊण नियपुत्तदुव्विलसियं खमाविऊण सूरपालं गओ निययट्ठाणं इंददत्तपिया महसेणनरवई । ... सा वि जालावली भएण पणस्समाणी मिलिया महापुरनगरगामिणो धणदत्तसत्थवाहस्स । तेण वि तीए रूवज्जोव्वणऽरिवत्तमाणसेण पडिवन्ना भारियत्तेणं । पत्तो य एसो महापुरं । तत्थ वि दुव्विणीय त्ति काऊण सिढिलीकया सत्थवाहेण, किं बहुणा ? निव्वासिया नियगेहाओ । तओ पउट्ठचित्ता गया नयरारक्खियसमीवं । तेण वि दट्ठण पडिवण्णा भज्जत्तेणं । पउट्ठाए य तीए निवेइयं सत्थवाहसंतियं सुंकचोरियाखूणं । तेण वि Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भाग: १८५ सपच्चयं नाऊण कहियं राइणो । राइणा विरुद्वेण सकुडुबो पक्खित्तो गुत्तीए सत्थवाहो । महाकट्ठणं सव्वस्सावहारं काऊण मुक्को सत्थवाहो । आरक्खिएण वि कहिचि दुच्चिट्ठिए निद्दयं ताडिया सा । तओ तदुवरि कुविया समाणी निग्गया रयणीए गेहाओ । तहाविहभवियव्वयाए य समासाइया भिल्लचोरेहिं । तेहिं वि आभरणाइयं घेत्तूण पहाण पाहुड त्ति काऊण समप्पिया पल्लीवइणो । तेण वि 'अहो ! सोहणं पाहुडं समाणीयं' ति तुद्वेण दिन्नमेएसिं पभूयं पारिओसियं । सा वि कयाऽणेण सव्वासिं पहाणा नियघरिणी । अणुरागपरव्वसो य अच्छए तीए चेव आएसं कुणमाणो । अण्णया य भणिओ तीए पल्लीवई, अवि य "पिययम ! जइ सि समत्थो एक पत्थेमि जइ तयं कुणसि' । तेण वि भणियं 'सुंदरि ! साहसु जं ते मणभिरुइयं ॥१०॥ तच्चित्तं नाऊणं पयंपए सा जहा 'महपुराओ । आणित्तु चंडविरियं मह पुरओ बहु विडंबेहि ॥११॥ तओ पल्लीवइणा भणिया 'पिए ! जं तवाऽभिरुइयं तं निच्छएण मए कायव्वं' ति । समाणत्ता नियभिल्ला जहा 'अरे ! कहिचि चंडविरियं बंधित्ता इहाऽऽणेह' । तओ ते चोरपुरिसेहिं तो तस्स छिडं जाणंति जहा 'सो अज्ज नयरस्स पंचगाउयमेत्ताडवीए चंडियाययणे मज्जपाणासत्तो चिट्ठइ' । तओ तं नाऊण महावेगेण गया ते भिल्ला, पिच्छंति य, अवि य कयआवाणयबंधं, बहुमज्जापियणनीसहसरीरं । भूमीए लुढमाणं बीभच्छे वंतिचिक्खल्ले ॥१२॥ तो तेहिं भिल्लेहिं गाढं बंधित्तु निययसामिस्स । उवणीओ तेणाऽवि हु भणिया जालावली एवं ॥१३॥ 'पिच्छ पिए ! तुह वेरी गाढं बद्धो इहाऽऽणिओ इण्हि । जं किंचि तुज्झ रुइयं कुणसु सहत्थेण तं दइए' ॥१४॥ तीए विडंबणाओ नाणारूवाओ तस्स विहियाओ । पभणंतीए तइया 'किं जाणसि मं कयत्थंतो' ॥१५॥ तह तीए सहत्थेहिं कयत्थिओ निद्दयाए सो वरओ । जह कहिउं पि न तीरइ तह चेव य पाविओ निहणं ॥१६॥ मूल. २-२४ Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८६ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः तओ तेण पल्लीवइणा संह सब्भावसारं सुहमणुहवंतीए वच्चए कालो, अवि य जह जह वीसंभो सिं पवड्डए पइदिणं तह तहेव । कामो वि हु परिवड्डइ न य तित्ती जायए कह वि ॥१७॥ तणकट्ठेहिं व अग्गी नई सहस्सेहिं उअहिनाहो व्व । जह न वि तिप्पइ कह वि हु तह सा वि हु मोहणसुहिं ॥ १८ ॥ अन्नदिणम्मि य एसा पल्लीवइणा नियत्तवेएणं । कह कह विहु न वि रमिया पभणंती बहुपयारं पि ॥ १९ ॥ तो तीए रुसिऊणं पल्लीवइणो कणिओ भाया । अइमोहमोहियाए विन्नत्तो एरिसं वयणं ॥२०॥ 'भुंजसु मए समाणं विसयसुहं नाह ! निच्चमक्खलियं । एयं कट्ठहरम्मि पक्खिविय करेहि तह रज्जं ॥२१॥ इय भणिओ सो तीए लोहमहामोहमोहिओ संतो । भेइत्ता ते भिल्ले बंधइ पल्लीवई तुरियं ॥२२॥ नियलेऊणं बाढं, पक्खिवई कट्ठहरयमज्झमि । सयमेव कुणइ रज्जं आएसं तह इमीए वि ॥२३॥ अह सो विपल्लिनाहो अणुदियहं दुक्खिओ वसइ तत्थ । अह अन्नया कयाई नियलाई तस्स सिद्धानं ॥२४॥ भवियव्वयावसेणं दढं पमत्ताण रक्खवालाण । उट्ठत्तु सणियसणियं गच्छ तव्वासहरयम्मि ॥ २५॥ रयणीए तीए समं सुहं पसुत्तस्स तस्स पासाओ । गिण्हेउं करवालं छिंदइ लहुभाउणो सीसं ॥२६॥ दारुणरोसवसेणं तीए वि य लेइ कण्णनासो । पक्खिवइ महाघोरंधयारगुत्तीए बंधेउं ||२७|| तत्थ बहुवेयणट्टा अणुहविडं तिक्खदुक्खसंघायं । मरिऊणं उववण्णा नेरइओ छढवी ॥२८॥ १. ला. सह सिणेहसब्भाव ॥ Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः तत्तो उव्वट्टित्ता भमिही भवसायरं महादुहयं । एवं संतावयरी एसा बहुयाण संजाया ॥२९॥ अवि य गब्भठियाए जणिओ संतावो ताव निययमायाए । बालत्तणम्मि दुहया जाया डिभाण सव्वाणं ॥३०॥ तत्तो पवड्डूमाणी पिउणो उव्वेयकारिणी जाया । जोव्वणसमए पइणो संतावो दारुणो दिन्नो ॥३१॥ तत्तो उवप्पईणं कमसो विहियं महादुहं तीए । एवं नारी संतावकारिणी होइ अन्ना वि ॥ ३२॥ जालावलीकथानकं समाप्तम् ॥४४॥ १८७ तथा नारी विवेगविगला, जहा सा सुकुमालिया । नारी वज्ज व्व वज्जेज्जा, दिट्टंतो कट्ठसेट्ठिणा ॥१७०|| नारी विवेकविकला=सुन्दरा - ऽसुन्दरविवेचनविरहिता यथा सा सुकुमारिका नारी वज्रेव विभक्ति व्यत्यद्वज्रमिव वर्जयेत् = परिहरेत्, अत्रार्थ दृष्टान्तः = निदर्शनम्, काष्ठश्रेष्ठिना= काष्ठाभिधानवणिग्वरेण यथा तेन काष्ठश्रेष्ठिना निजभार्या परित्यक्तेति श्लोकाक्षरार्थः ॥ १७०॥ भावार्थस्तु कथानकाभ्यामवसेयः । तत्र सुकुमालिकाकथानकम् [ ४५. सुकुमारिकाकथानकम् ] अत्थि जंबुद्दीवभरहमज्झट्ठिय अणवरयपयट्टमाणमहामहूसवसमुइयजणनियरविराइयतिय- चउक्क - चच्चरो वसोहियचंपाभिहाणरायहाणिविहियनिवासो निप्पंदमंदीकयनियडिपरवेरिवारपणइरुत्तमंगमउलिमालामलिय-चलणकमलो सिरिजियसत्तू नाम राया । तस्स य सिसिरकिरिणस्स व रोहिणी, धरणिधरस्स व लच्छी, ससिसेहरस्स व गोरी अच्वंतवल्लहा सयलंतेउरपहाणा रुवाइगुणगणसमन्निया सुकुमालिया नाम देवी, अवि यरूवेण विजियरंभा लावण्णेणं समुद्दवेल व्व । कंती ससिमुत्ती दित्तीए सूरबोंदि व्व ॥१॥ १ - २. सं. वा.सु. "मारिका ॥ Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८८ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः गयतालुयं व सुकुमालयाए सोहग्गयाए गोरि व्व । वल्लहिया नियपइणो अहियं सुकुमालिया देवी ॥२॥ तओ तीए सुकुमालसरीरफासमोहिओ अणवरय-सुरयवावारतप्परो अवमन्नियसयलविलयायणो अवहत्थियरज्जकज्जो अगणियजणाववाओ अपरिभावियहिओ वएसयमहामंतिवयणपरमत्थो असंभावियपच्तरायसामत्थो निरत्थीकय विवेयनाणविन्नाणो दूरीकयधम्मसत्थवित्थरसवणवावारो अगुणियकलाकलावो अदिन्नसयलसेवयपरितोसकारयत्थाणो सव्वहा तम्मउ व्व तयंगंऽगं-उंगीभावपरिणओ व्व तयणुप्पविट्ठो व्व विमुक्कसेसिंदियविसयविसेसवावारो तीए चेव बहु मन्नियसुकुमालफासिक्कविसओ अंतेउरमज्झगओ चेव चिट्ठइ । तओ 'मारतिमिरंतरियलोयणजुयलो नरवई न पस्सइ' त्ति काऊण पबलीभूयाणि समंतओ परचक्काणि, पाडंति वत्तिणीओ चोरा, खणन्ति नयरमज्झम्मि खत्ताणि तक्करा, तोडंति जुवईजणसुवन्नपुण्णकन्ने जूइयरा, छिदंति वणियजणस्स हिरण्णुत्तरीयगंठीओ गंठिछेयया, रमंति परदाराणि पारदारिया, वंदंति ईसरजणं बंदिया, किं बहुणा ? नायगरहिय व्व पुरी जाया असमंजसा समत्था वि । न सुहेणको वि निदं लहइ खणद्धं पि नयरीए ॥३॥ तओ तं तारिसं पुरवरीउवद्दवमवलोइऊण चिंतियं विमलमइमहामंतीहिं-अहो ! विणटुं रज्जमेयं जइ अन्नो राया न कीरइ, जओ बहुभणिओ वि नरवई विसयवसणं न मुयइ । एवं परिभाविऊण भणिओ एगंते जेट्ठपुत्तो राइणो जहा 'भो कुमार ? नीइसत्थ विणिवारियवम्महकीलाभिरओ तुज्झ पिया हारेइ लग्गो परेहिं संपयं कुलक्कमागयं रायलच्छि, तं जइ तुम्हारिसा वि रज्जमहाभरधुराधरणदढकंधराधोरेया वि एवमुविक्खंति तओ हंत ! हया मणस्सिया, ता केण वि पओगेण एवं नियजणयं निव्वासिऊण वसीकयचाउरंगबलसमुदओ सयं पडिवज्ज रायलच्छि, जेण तुह चरणतरुय (व)रसिसिरच्छायं समासाइऊण नियतसमत्थपरपक्खोवद्दवतावा सुहं सुहेण चिट्ठामो' । तओ तं मंतिवयणमायण्णिऊण भणियं कुमारेण 'भो भो मंतिणो ? तुब्भे तावाऽवस्समेव जं कीरमाणं सुंदरं भवइ तमुवइसह अन्नहा सचिवपयमेव पुव्वरायाणो नाऽऽरोवियवंतो, अओ जं तुम्हाण अभिरुइयं तमविलंबियं करिस्सामि' । तओ महापसाओ त्ति भणमाणा हट्ठतुट्ठा पप्फुल्लवयणकमला समुट्ठिया मंतिणो । तओ अन्नदिणम्मि नीसेसबलं वसीकाऊण कुमारेण देवीसमन्निओ पाइओ जोगमइरं जणओ, जीए पियाए परव्वसो व्व मुच्छिओ व्व परायत्तो व्व खणमेत्तेणेव १. ला. पणओ ॥ २. ला. तोडयंति ॥ ३. ला. “यसुहं ।। ४. ला. रसिर । Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः १८९ विवसो जाओ। तओ कुमारेण मयवसपरव्वसो वट्टए इमो त्ति पुरिसेहिं महारिहपल्लंकारूढो सह देवीए नरवई उक्खिविऊण अइगहणमहामहीरुहसमूहसमाउलाए कायरजणजणिय- भयसंभमाए महाडवीए नेऊण मुक्को वत्थंचले य लिहिऊण बद्धं पत्तयं, अवि य वसणासत्तो त्ति तुमं कलिऊणं सयलरायलोगेण । मुक्को सह देवीए एयम्मि महा अरण्णम्मि ॥४॥ ता एवं नाऊणं न हु वलियव्वं पुणो इओहुत्तं । मा भणिहिसि न हु भणिओ इय नाउं कुणह जहजुत्तं ॥५॥ तओ रयणीविगमे गयमयपसरो पच्चागयजीविओ व्व समुवलद्धसन्नो जाव दिसालोयं करेइ ताव पेच्छइ अइभीमतरुगहणं विविहसावयपयविचित्तिय धरणीयलं महाडविं, तं च पेच्छिऊणचिंतियमणेण 'हंत ! किमेयर्मिदयालं पिव पडिहासइ । जाव एवं चिंतइ ताव पेच्छइ नियवत्थंचलनिबद्धं पत्तयं । तं च वाइऊण विण्णायपरमत्थेण भणिया देवी 'पिए! अइकामासत्ताणि त्ति काऊण परिचत्ताणि नियपरियणेण, ता को मह संतियं रज्जमवहरइ' त्ति । भणिऊण समुट्ठिओ खग्गं गहाय । सुकुमालियाए भणियं 'नाह ! मा एवं करेहि, न परिवारविरहियाणं पुरिसयारो जुज्जइ, ता संपयमिओ अवक्कमामो, पुणो जहाजुत्तं करेज्जासि' । तओ पयट्टाणि उत्तरदिसिमंगीकाऊण । जाव य कियंतं पि भूभागं गच्छंति ताव अइसुकुमालयाए सा सुकुमालिया तिसाए अईव बाहिज्जमाणी नरवई भणइ 'अज्जउत्त ! अइतिसाभिभूयत्तणेण न किंचि महमच्छीहिं पेच्छामि, ता जइ जलं न पाविसि तो निच्छएण मयमिव मं वियाणाहि । नरवई वि सिणेहवसपरवसो 'पिये ! धीरा भवसु जेणाऽऽणेमि पाणियं' ति तमेगत्थ तरुवरच्छायाए धरिऊण गओ जलगवेसणत्थं नाणावणावलिगुविलगिरिवरनिज्झरेसु, जाव य न किंचि जलमुवलद्धं ताव य दट्ठण पुरओ तुवरट्ठियं नियभुयाओ छुरियग्गेण सिराओ मोत्तूण भरिओ रुहिरस्स पलासपुडओ, तुयरट्ठियापओगेण य जलं काऊण समागओ तीए पासे । भणिया य 'पिये ! समासाइयं मए एयं अइकलुसमुदयं अच्छीओ निमीलिऊण सायमगिण्हती तण्हारोगोवसमण-कडुगोसेहमिव पियसु, अन्नहा ते दुगुंछा भविस्सइ' । तओ सा तह त्ति पडिवज्जिऊण निमीलियच्छी जलबुद्धीए पियइ तं नियपइरुहिरं, जाया य सच्छा, तओ पुणो वि जाव जाइ कित्तियं पि पएसं ताव भणियं सुकुमालियाए-नाह ! संपयमइभुक्खिय त्ति काऊण न सक्के मि गंतुं ता देहि समाणिऊण कुओ वि किंचि भोयणं जइ मए जीवंतियाए कज्जं । तओ सो राया तव्वयणचोइयो जाव न किंचि भक्खमुवलभइ ताव छित्तूण छुरियाए नियऊरु १. ला. पत्तं ॥ ला. 'सहं पिव पि ॥ ३. ला. रुमंसं सं॥ Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९० मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः मंसाणि संरोहिणीए संरोहिऊण सवप्पाणि, वणदवग्गिपक्काणि य काऊण आणिऊण दिन्नाणि, तीए भक्खियाणि य । तदुवटुंभेण य जाया पुणो वि गमणसमत्था । कमेण य लंघिऊण अइभीसणसावयनिनायसवणसंजायरोमंचं महाडवि पत्ताणि वाणारसीए पुरीए । तत्थगएण य तं तारिसमदिट्ठपुव्वमत्तणोऽवत्थमवलोइंऊण परिभावियं "अहो ! भवियव्वयासामत्थं जओ एयाए अवलोइयाण पाणीणं तं नत्थि जं न दीसए, अवि य कत्थऽम्हे नरवइसीसमउलिमणिकिणियचरणसरसिरहा । करडतडगलियमयजलजयकुंजरखंधरारूढा ॥६॥ सयलकलापरिपूरियससहरसंकास धरियपुंडरिया । उद्धव्वमाणसियरुइरतंतुवरचामरुक्खेवा' ॥७॥ . मत्तकरि-तुरय-रह-भडसंकडअइवियडकडयपरियरिया ?। कत्थ व इयरजणोच्चिय बहुदुहया दारुणावत्था ! ॥८॥ सव्वहा नत्थि कोइ सो जमावयाओ न विद्दवंति, उक्तं चसमाहतं यस्य करैविसर्पिभिस्तमो दिगन्तेष्वपि नाऽवतिष्ठते । स एष सूर्यस्तमसाऽभिभूयते, स्पृशन्ति कं कालवशेन नाऽऽपदः ? ॥३७५॥ तओ अज्ज वि जाव पाणा धरिजंति ताव अवस्सं कालजावणाकारणं किंचि कायव्वं, तत्थ न ताव सेवाए मह चित्तमुच्छहइ, जओ सेवाए वट्टमाणेहि भवियव्वं सेवणिज्जस्स नीयवित्तीहिं, कायव्वाणि बहूणि चाडुयसयाणि, विहेया तप्पिएण सत्तुणा वि सह मेत्ती, रूसियव्वं नियनिद्धबंधूणं पि तयप्पियाणं, चिट्ठियव्वं सुणहेण व पइक्खणं 'जीव देव !' त्ति भणंतेहिं तदग्गओ, न खलणीयमद्धरत्ते वि तम्मुहविणिग्गयं वयणं, न य एयमम्हेहिं धणलवलाहाभिप्पाएण पाणच्चाए वि चइज्जते काउं ति, तहा न किसिकम्माइए वि मणयं पि अम्हाणं मणो पयट्टइ, जओ किसिकम्माईणि कुणंतेहिं सहियव्वं सिसिरसमए तुहिणकरनियरसंचलियपवणुप्पइयउक्कंपिरगत्तयाए दंतवीणं वायंतेहिं सीयं, मरिसियव्वं गिम्हकाले मुम्मुरायमाणपयंडमत्तंडकिरणनियरोवजणियमुहसोसयाए हाहाह त्ति कुणंतेहिं उण्हं, तितिक्खणीओ पाउसे सजलजलहर गज्जियरवबहिरीकयकन्नविवरयाए किमेयमेयं? ति तसतेहिनिसियसरसरिसवारिधारापेवाओ; एयं पि पुव्वमणणुभूयसीयवाययाए दुक्करमिव पडिहासइ। अओ थोवपयासं वाणिज्जं कुणंतेहिं कालो गमियव्वु" त्ति परिभाविऊण नियसरीरालंकारेहिं गहिय हट्टं भंडं च जच्चवणिओ व्व ववहरिउमाढत्तो । कयं च हट्टासन्ने सभवणं । तओ कइहि वि दिणेहिं भणियं सुकुमालियाए 'अज्जउत्त ! जाव तुमं सव्व १. ला. पवाहो ॥ Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम् - द्वितीयो भागः १९१ दिवसं पि ववहरंतो चिट्ठसि ताव अहमेगागिणी एत्थ घरे न सक्केमि चिट्ठिउं, ता आणेहि किंचि मह दुइज्जयं माणुसं' । तओ राइणा वि 'सच्चं भणइ वराई, जओ जा एसा पुव्वमणेयचेडियाचक्कवालपरिवुडा दिणमइवाहयंती सानिच्छएणं एगागिणी दुक्खेणं चिट्ठइ, अओ किंचि सहायं करेमि त्ति चिंतयंतो गओ हट्टमग्गं । तत्थ दिट्ठो एगो पंगू । तं च दट्ठूण चिंतियं नरवइणा 'हंत ! निरवाओ एसो त्ति, ता करेमि एयं सहायं' ति परिभाविऊण भणिओ सो 'भद्द ! जइ मम महिलाए घरपाहरिओ चिट्ठसि ताऽहं ते पइदिणं भोयणं दावेमि' । तेण वि निग्गइयत्तणओ पडिवन्नं तव्वयणं । तओ धरिओ सो निवइणा तीए सहाओ । सो य अच्वंतसुस्सरयाए किन्नरं पि अहरीकरिंतो तीए समीवे सयलं दिणं कायलीगीयगायणपरो चिट्ठइ । तओ अहियं सा तस्स गीएण रंजिज्जए, अवि य जह जह सो महुरसरं नाणाविहवन्नसंकरसणाहं । अइघोलमाणकंठं गायइ निर्यडओ ती ॥९॥ सुकुमालिया वि तह तह मिगि व्व अहियं परव्वसा होइ । वाहेण व तेण तओ बद्धा सा नेहपासेहिं ॥ १० ॥ तओ ती अण्णदिणम्मि परिचइऊण कुलीणयं, वीसरिऊण लोयायारं, छड्डिऊण धम्मपक्खवायं, अविगणिऊण नियपइसिणेहं अणालोइऊण आवयं पडिवन्नो सो तीए । अन्नया य तम्मोहमोहियाए चिंतियं, अवि य जावेसो नरनाहो जीवइ ता मज्झ एइणा सद्धि । अणवरयसुरयलीलासुहं कओ होइ निस्संकं ॥ ११॥ सासंकमणुहवेज्जं तयं पि न य कुणइ चित्तसंतोसं । ता एयं नरनाहं पेसेमि जमालयं कह वि' ॥१२॥ एवं च चिंतंतीए समागओ को वि महूसवो । तम्मि य राइणा सह कीलानिमित्तं सा सुकुमालिया गंगातीरं गया । तत्थ ण्हाणनिमित्तं विसमतडीसंठिओ दिट्ठो तीए, चितियं च - 'अहो ! एस पत्थावो मम समीहियस्स' त्ति भाविऊण निद्दयं पिल्लिऊणे खित्तो गंगाए महानईए जलवेगे य वुज्झिउमाढत्तो, अवि य नीसेसकलाकुसलो वि सुरनईतिक्खनीरवेगेहिं । उव्वत्तिरं पयत्तो विसमावडिओ वि नरनाहो ॥ १३ ॥ १. ला. 'यडे ठिओ ॥ २. ला. नोल्लिऊण ॥ ३. सं. वा.सु. तह उज्झिउं पवुत्तो ॥ Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९२ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भाग: गुणजुत्तो वि नरिंदो कह खित्तो निद्दयं पणोल्लेउं । पावाए तीए सव्वाहमम्मि पंगुम्मि रत्ताए ॥१४॥ राया वि भवियव्वयानिओर्गेणाऽऽसाइयफलगखंडो दूरदेसं गंतूण समुत्तिण्णो । तत्थ य गओ पच्चासन्ने सुप्पइट्ठिए महानयरे । पसुत्तो य बहलतरुवरच्छायाए । इओ य तम्मि नयरे मओ अपुत्तो राया । तओ मंतिपुरस्सरेहिं सामंत-पउरेहिं . रज्जमहाभरुव्वहणपुरिसगवेसणत्थं अहिवासियाणि पंचदिव्वाणि, अवि य हत्थी आसो छत्तं भिंगारो तह पइन्नयाओ य । एयाई देवयाहिट्ठियाइं हिंडंति उद्दामं ॥१५॥ सव्वत्थ तिय-चउक्काइएसु नयरस्स मज्झयारम्मि । भमिऊण नयरबाहिं पत्ताई तत्थ ठाणम्मि ॥१६॥ जत्थऽच्छइ जियसत्तू तरुवरछायाए सुहपसुत्तो उ । तं दटुं जयहत्थी करेइ गलगज्जियं सहसा ॥१७|| हेसारवं च तुरओ तदुवरि संठाइ आयवत्तं पि । भिंगारो मुयइ जलं वीयंति य चामराओ वि ॥१८॥ तं च दट्ठण पलोइओ मंतिपमुहेहिं जाव दिट्ठो अनियट्टमाण-तरुच्छायापसुत्तो सव्वंगलक्खणधरो । तओ कओ जयजयारावो । विबुद्धो समाणो अभिसित्तो महारज्जाभिसेएण । जयकुंजरारूढो महाविभूईए य पविट्ठो नयरं । जाओ पुव्वं व सामंतमउडकोडितडकिणीकयपायपंकओ महानरिंदो । इओ य सा सुकुमालिया तं नरवइविढत्तदविणजायं तेण पंगुणा सह भक्खिऊण अन्नजीवणोवायमपेच्छंती तं पंगुमुत्तमंगारूढं काऊण गाम-नगरा इसु तग्गेयऽक्खित्त जणाओ भिक्खाइणा कयपाणवित्ती परिब्भमइ । लोगो य तीसे रूवाइगुणसंपयं पेच्छिऊण पुच्छइ 'भद्दे ? किमेवं विहरूवा वि होऊणं तुमं एवं पीढसप्पिणं सीसेणं वहसि ?' सा भणइभद्दा ! किं करेमि एवंविहो चेव मे देवेहिं गुरूहि दिन्नो एस भत्त ति, तओ पइव्वयावयमणुसरंती सीसेणं वहामि' । एवं च कमेण परिब्भमंती पत्ता तं सुप्पइट्ठियनयरं । अन्नदियहम्मि राइणो पुरओ जंपियं लोगेहिं जहा, 'देव ! एत्थ नगरे रूवोवहसियसुरसुंदरी सीससमारोवियकिन्नरस्सरपंगुभत्तारा पइव्वयावयमणुचरंती संपयं गिहे गिहे भिक्खं परिब्भमइ एगा नारी । तओ राइणा ‘सा एसा पावा भविस्सइ' त्ति भाविऊण १. ला. गेणं समासाइ ॥ २. सं.वा.सु. सीसे व ॥ ३. ला. °णुसरंती ॥ ४. ला. चिंतिऊण ॥ Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः कोऊहलाऊरियमाणसेण समाइट्ठा पडिहारा जहा 'भो ! सद्दावेह तं जीए पइव्वयावयं चरंतीए गायणो पंगू सीसेण वुब्भइ, पेच्छामो केरिसं गायइ ?' । आएसाणंतरमेवाऽऽणीया सा पडिहारेहिं । दूराओ चेव दट्ठूण पच्चभिजाणिऊण सन्निओ एगो पुरिसो जहा 'पुच्छाहि एयं 'तओ पुच्छिया तेण भद्दे ! किं कारणं तुममेयं पीढसप्पिणं परिव्वहसि ?' तीए वि असंभवति करिय अणोलक्खियनरनाहाए भणियं 'महाभाग ! देव - गुरूहिं एरिसो चेव मे दिन्नो भत्ता, तं च पइव्वयावयमणुचरंतीए न चइउं पारिज्जइ' तओ तारिसनारीचरियसवणजणियविम्हयभरा-वूरिज्जमाणमाणसेण भणियं नरवइणा, अवि य 'बाहवो रुधिरमापीतं, भक्षितं मांसमूरुजम् । भागीरथ्यां पतिः क्षिप्तः, साधु साधु पतिव्रते ? ॥ १९ ॥ तं च सोऊण 'पच्चभिन्नायाऽहमणेणं' ति लज्जाए ठिया वयणमहोमुहं काउंति ओ विण्णत्तो राया मंतीहिं 'देव ! को एस वुत्तंतो' ? राइणा भणियं 'अलमेयाए संकहाए' । मंतीहिं भणियं 'तहावि देव ! महंतमम्हाण कोउगं ता साहिज्जउ जइ अकहणीयं न भवइ' । तओ तन्निच्छयं नाऊण भणियं राइणा - जइएवं ता निसामेह - 'अत्थि कयाइ निसामियं तु भेि जहा - चंपाहिवो जियसत्तू नाम राया सुकुमालियाए देवीए सुकुमालफरिसेण अइप्प सत्तो । सीयंतयं रज्जं नाऊण तीए सह जोगमइरा पमत्तो निव्वासिओ परियणेण' । तेहिं भणियं 'देव ! समायन्निय मम्हेहिं' । राइणा भणियं 'जइ एवं तोऽहं सो जियसत्तू एसा य सा सुकुमालिया । तओ अडवीए मज्झे वच्चंताणं एसा तिसाभिभूयाइच्चाइ सव्वं सवित्थरं साहियं नरवइणा । तओ अच्चंतविम्हइया सव्वे, भणंति य 'अहो ! जहन्नत्तणमेईए जमे या एरिस पुरिसरयणं परिच्चइय एसो सव्वाहमो पंगू अंगीकओ, अहो ? विवेयवियलत्तणमेईए' । एयं च निसामिऊण 'अहो ! कहं सो चेव एसो जीविओ रज्जं च पत्तो ?' त्ति भएण थरथरंतसव्वंगा 'इत्थीणं विसज्जणं दंडो' त्ति काऊण कया निव्विसया । जं च तीए तारिसं रायाणं मोत्तूण अंगीकओ पंगू तं तीए विवेयविगलत्तणं ति [ गतं सुकुर्मालिकाकथानकम् ॥४५॥] अधुना 'वज्राकथानकम् ।— १९३ - [-४६. वज्राकथानकम् ] अत्थि इव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे अपरिमियगुणनिवासयं सुहावासयं नाम नयरं । तत्थ य पयईए चेव भद्दगो उचियन्नू हि या - ऽहियवियारनिउणो कट्ठो नाम सेट्ठी । तस्स य विवेयसेलवज्जासणी वज्जा नाम सहचारिणी । ताणं जम्मंतरोवज्जियपुन्नसंभारो १. सं. वा. सु. 'मारिका ॥ २. ला. वज्राख्यानकम् ॥ मूल. २-२५ Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९४ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः पुन्नसारो नाम पुत्तो, अन्नं च पभूयसत्थत्थसूइओ तुंडिओ नाम सूयओ, तह अइफुडक्खालावगा मयणसलागा नाम सोलहिगा, अन्नो य पभूयलक्खणसंपन्नो जुज्झम्मि परकुक्कुडाण अजेओ रयणसेहरो नाम कुक्कुडो । पुत्तभंडाणि विय सिट्ठिणा सयं संवड्डियाणि नियपाणेहितो वि सेट्ठिस्स वल्लहाणि । तह नेव्वे(? तच्चे)यल्लो य देवसम्मो नाम दियवरदारगो । ताणं च जहाणुरूवं सुहमणुहवंताणं वच्चए कालो । अन्नया य रयणीए सिट्ठिस्स चिंता जाया, अवि य अइसंचिओ वि अत्थो रक्खिज्जंतो वि थोवदिवसेहिं । अप्पवएण वि निट्ठइ जहंजणं खलु सलायाए ॥१॥ उभयभवविहलजीया अत्थविहिणा हवंति गुणिणो वि । साहसमाणधणा वि हु पावंति पराभवं पुरिसा ॥२॥ ता सव्वपयारेहिं वि अत्थत्थं उज्जमो गिहत्थेण । निच्चं पि य कायव्वो न य कायव्वं तर्हि वसणं ॥३॥ तओ एवं चिंतिऊण सिट्ठिणा कया गमणसामग्गी, गहियं चउव्विहं भंडं, पगुणीकयाणि पवहणाणि, मेलिओ सत्थो, कओ बहिं सत्थनिवेसो, भणिया य वज्जा, अवि य कंते ! हं अत्थत्थी संपइ देसंतरम्मि वच्चामि । ता तुमए भवणमिणं पडियरियव्वं पयत्तेण ॥४॥ पाढेयव्वो य इमो पुत्तो बहुणा वि दव्वदाणेण । पालेयव्वाणि तहा जत्तेणं पक्खिरूवाणि ॥५॥ कि बहुणा भणिएणं? सव्वपयारेहि अप्पयं चेव । रक्खेयव्वं निच्चं परिहरियव्वा कुसंसग्गी ॥६॥ मा काहिसि उव्वेयं जम्हा थोवेहि चेव दियहेहिं ।। आगच्छिस्सामि लहुं इय भणिउं जाइ सो सिट्ठी ॥७॥ तीए वि सयासे पइदिणं समागच्छइ देवसम्मो, आलावाईहिं य घडिया वज्जा सह तेण, उक्तं च आलावो संवासो वीसंभो संथवो य इत्थीणं । . परपुरिसेहिं समाणं अहिओ च्चिय नत्थि संदेहो ॥८॥ १. ला. सालही ॥ २. सं.वा.सु. निब्बलो ॥ ३. सं.वा.सु. "विहूणा ।। Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः परिहासरंजणिज्जा परिहासपरा चला य पयईए । अविवेगसारहियया परनरसंगं कहं जिणउ ॥९॥ तओ अकाले वि तस्साऽऽगमणपसंगं आलावाइसमायारं च दट्ठण विन्नाओ परमत्थो सूयगेण सालहिगाए य । तओ चिंतियं सूयगेण 'हंत ! अइजहन्नत्तणमेईए जो वीसारिऊण तायगुणे एवं करेइ ता किं निवारेमि ? अहवा न जुत्तमुवइसिउं रागाउराणं, उक्तं च गह-विस-भूय पणासण अत्थि अणेय नर, अत्थि जि वाहि पणासहिं तक्खणि वेज्जवर । जाणमि विज्जु सुलक्खु सुसत्थागम वहइ । नेहगहिल्लहचित्तह जो ओसहु करई ॥१०॥ तहा रागाउरहिययाणं विवेगरहियाण एत्थ जीवाणं । वियलियकुलसीलाणं जो उवएसो स अप्पवहो ॥११॥ जल-जलण-विसहराणं चोर-विसाणं च रुंभणं अत्थि । अणुरत्ताणं कत्थइ हिययाण नियत्तणं नत्थि ॥१२॥ अइसुंदरं पि काले जुत्तीजुत्तं तहा हियं पि सया। अणुरायपरवसाणं वयणं सुहिणो वि न सुहाइ ॥१३॥ मित्तो वि होइ सत्तू पिओ वि अपिओ निओ वि होइ परो । होइ गुरू वि अगुरुओ पुडिकूलपलाविरो लोए ॥१४॥ ता न किंचि एत्थ भणियव्वं ति । ठिओ मोणेणं । सालहिगा उण थीसहावत्तणओ चवलत्तणओ य कुरुकुराइउं पयत्ता, अवि य को एसो निल्लज्जो अकालवेलाए तायगेहम्मि । पविसइ तायविहीणे लोगायारं पि नवि मुणइ ॥१५॥ सामिपरोक्खम्मि गिहे परनारीसंजुयम्मि जो विसइ । सो लोगाओ निंदं लहइ तहा आवईओ य ॥१६॥ १. सं.वा.सु. कहइ ।। २. ला. 'जुत्तं पि तह य हिययं पि । अ॥ ३. ला. 'कूलुल्लाविरो ॥ Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९६ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः किं तायस्स न बीहसि रे धिट्ठ ! अणज्जकज्ज ! पाविट्ठ ? । भणिहिसि जह नवि कहियं जइ एहिसि पुण वि इह गेहे ॥१७॥ एवं कुरुकुरंती भणिया सूयगेण जहा "भद्दे ! जो अन्नियाए दइओ तं चेव तायं मन्नाहि अन्नहा न सोहणं पेच्छामि, जओ भणियं पडिकूलकरण-जंपण-अप्पियसंगेण मम्मवेहेण । दाऊण अदाणेण य पिओ वि अपिओ जणो होइ ॥१८॥ खलु पि विसं विसमं, कुविओ वि अरी अही दसंतो वि। देज्ज न देज्ज व मरणं देइ च्चिय मम्मिओ मणुओ ॥१९॥ ता जइ पाणे धरिउं इच्छसि सलिलं च सीयलं पाउं । चिट्ठसु मूणवएणं आगच्छइ जा परं ताओ" ॥२०॥ अविवेयबहुलयाए नवि चिट्ठइ भणइ 'जीयलुद्धोऽसि । तुंडिय ! तायपसाए नाविक्खसि पइदिणं विहिए' ॥२१॥ एवं पि भणिया जा न पडिवज्जइ ता अवहीरिया सूयगेण तओ पइदिणं किरिकिरती दगुण जंपियं बडुएण जहा 'न सोहणा एरिसा रइविग्घकारिणी जओ अइपभूयं जंपतीए इमाए लोगो निसामिस्सइ ता विणासेहि एयं' । तीए भणियं 'कहं पुत्तभंडतुल्ला एसा वराई विणासिज्जइ' ? देवसम्मेण भणियं 'जइ न एवमेयं कीरइ तो अम्हाणं अवस्सं रइविग्घकारिणी जणावण्णवायजणगा य भविस्सइ' । तीए वि तव्वयणमन्नहा-काउमचयंतीए कंधरं वलिऊण पक्खित्ता चुल्लीजलणम्मि । दिट्ठा सूयगेण चडफडंती, अवि य तह तीए पावाए रइरसलद्धाइ निद्दयमणाए । सा सालिगा वराई पक्खित्ता जलणमज्झम्मि ॥२२॥ जह बहुविहं रसंती पंचत्तं पाविआ खणद्धेण । कित्तियमेत्तं एयं अहवा वि हु विसयलुद्धाणं ॥२३॥ तं दट्ठ तुंडिओ वि हु चितइ "कह चा वलेणिमा वरई । वारिजंती वि मए न ठिया नियसामिभत्तिगया ॥२४॥ ता सव्वहा मए नियतुंडं रक्खियव्वं, मा मज्झ वि एसा गई भविस्सइ' त्ति चितंतो ठिओ अप्पमत्तो । अन्नया य पविटुं तग्गिहे भिक्खट्ठा साहुजुवलयं । ताणं च एगेण कुक्कुडलक्खणवियाणगेण साहुणा दिसालोयं काऊण भणिओ बीओ जहा १. ला. कहिओ जइ एसि पुणो वि । २. ला. 'ओ वेरी ॥ ३. ला. जीवलु ॥ Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९७ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः 'जइ सच्चं सामुद्दियसत्थं ता कुक्कुडस्स एयस्स ।। जो उवभुंजइ सीसं सो नियमा नरवई होइ' ॥२५॥ तं च निसुयं कुटुंतरिएण तेण देवसम्मेण चिंतियं च'उवसंतवेसधारी तवसुसियंगा अराग-दोसिल्ला । जम्हा एए तम्हा सच्चं नियमेण एयं' ति ॥२६॥ तओ भणिया तेण वज्जा जहा-पिये ! एयं कुक्कुडं विणासेउं देहि एयस्स मंसं जेण भक्खेमि । वज्जाए भणियं-देमि अन्नस्स कुक्कुडस्स मंसं, मा एयं सयं संवड्डियं पुत्ततुल्लं निरवराहं विणासेहि । तेण भणियं-एएण चेव मह पओयणं, किंच जइ मए कज्जं ता एयं सिग्धं विणासेहि । तओ तम्मोहमोहियाए पडिवन्नमेईए, गहियो य कुक्कुडो विणासिओ य, अवि य तह सो चडप्फडंतो तीए अणज्जाइ दुट्ठवज्जाए । वावाइयो जहा सूयगस्स दुगुणं भयं जायं ॥२७॥ चिंतियं जहा 'अहो ! संकडं समावडियं, जेण ममं पि मारिस्सए एसा निद्दया' । ठिओ णिल्लुक्किऊण पंजरेगदेसे । जाव तं कुक्कुडयमंसं रंधइ ताव गओ सो नईए ण्हाणत्थं । एत्थंतरम्मि य भोयणं विमग्गंतो समागओ लेहसालाओ तीए पुत्तो पुन्नसारो । विमग्गिया य तेण भोयणं । तव्वावडाए य तीए न किंचि अन्नं कयं । तओ भोयणमलहंतो रोविउं पयत्तो । तीए वि तं रुयंतं दट्ठण 'एयमज्झाओ चेव किंपि अप्पमंसं देमि' त्ति चिंतिऊण डोएण चालिऊण दिन्नं तकुक्कुडयस्स उत्तिमंगं । तं च खाइडं गओ लेहसालं । एत्थंतरम्मि य समागओ एसो, भणियं च तेण 'किं सिद्धं न वंत्ति । तीए भणियं 'सिद्धं, उवविससु' । उवविट्रो य सो हतुट्टो । जाव परिवेढें तं ताव सव्वओ गवसंतो वि न तं सीसं पेच्छइ । तओ पुच्छिया सा तेण 'किमित्थ सीसं न दीसइ' ? तीए भणियं "दिन्नं मए तमसारं ति काऊण रुवंतस्स बालयस्स । तेण भणियं 'दुट्ठ कयं, जओ मए तस्स कारणे एसो विणासाविओ, ता अलमेइणा, संपयं जइ मए कज्जं ता तस्स चेव नियपुत्तस्स सीसं देहि । तओ तीए तमइविरुद्धं पि तन्नेहमहामोहमोहियमणाए अज्झवसियं पडिवन्नं च । निसुओ य एस ताण समुल्लावो तस्स चेव पुन्नसारस्स धाईए चिंतियं च-'अहो ! महामोहविलसियं, अहो रागुक्कडयाए वियंभियं, अहो इंदियाणं दुव्विलसियं, अहो ! अन्नाणस्स माहप्पं, अहो ! कम्माणं दारुणया, जमेयाए पावकम्माए एयं पि अकरणीयं पडिवन्न' ति चितिऊण १. ला. °मा होइ नरनाहो ॥ २. सं.वा.सु. मए पओयणं ता एयं विणा ॥ ३. यं च जहा 'अहो सव्वहा संकडमावडियं' ।। ४. ला. तह वावडा॥ Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९८ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः गया लेहसालं एगंते य धरिऊण साहिओ सब्भावो पुन्नसारस्स । भएण य एसो रोविडं पयत्तो | संधीरिओ य धाईए 'पुत्त ! मा बीहेहि तहा करिस्सामि जहा तुह सोहणं भविस्सइ' त्ति । घेत्तूण तं निग्गया नयराओ । मिलिया य महासालनयरगामिणो सत्थस्स । पत्ता य कमेण तत्थ, जाव य तत्थ नयरबाहि पसुत्तो कुमारो जंबुरुक्खच्छायाए । तद्दिवसं च तम्मि नयरे अपुत्तो राया पंचत्तमुवगओ अहिवासियाणि दिव्वाणि सव्वत्थ वि भैमि पत्ताण पुन्नसारस्स समीवं । दट्ठूण य सव्वलक्खणसंपुण्णो त्ति काऊण कओ दिव्वेर्हि गया । उच्छलिओ जयजयारवो । पविट्ठो महाविभूईए नयरे । पालए पणमंतसामंतरज्जं । सो वि कट्ठसेट्ठी विढविऊण पभूयंदेविणजायं समागओ नियनगरे | जाव पविसइ नियगेहे ताव केरिसं तं पेच्छइ ?, अवि य सव्वत्थ पडियसडियं परियणपरिवज्जियं विगयदव्वं । गयगोरुयं असोहं महामसाणस्स सारिच्छं ॥२८॥ तं च तारिसं दट्ठूण चिंतिउं पयत्तो सेट्ठी - अहो ? किमेयं मम भवणं चेव न भवइ, उयाहु मज्झ चेव मइमोहो ?, किं वा मया सा वज्जा ?, किं वा अन्नो को वि वृत्तंतो ? | एवं चितयंतस्स निग्गया बाहिं सा वज्जा । पुच्छिया य परमत्थं । जाव न किंपि जंपइ, तओ पुणो विनिवयंते दिट्ठो पंजरमज्झेक्ककूणनिलुक्को सूयओ, भणिओ य 'अरे! तुमं पिन किं पि साहसि ?' वज्जा य दूरट्ठिया चीरं वलंती अंगुलियाए तज्जेइ 'जाणिहिसि जइ साहसि' ? तओ सेट्ठिणा नायं जहा वज्जाभएण एस वराओ न पंजरगओ वज्जरइ' । तओ मुक्को पंजराओ। आरूढो तरुसाहाए, भणियं च तेण 'ताय ! पुच्छह संपयं जेण सव्वं साहेमि, सेट्ठिणा भणियं 'वच्छ ! साहेहि को एस घरवुत्तंतो ? तेणाऽवि कंहियं सवित्थरं । सेट्टिणा भणियं - अवि जासि सा धाई दारयं गहाय कत्थ वि गया ? तेण भणियं 'ताय ! न याणामि'। तओ तीए चरियसवणायन्नणसंजायवेरग्गमग्गो चितिउं पयत्तो सेट्ठी, अवि य सवित्थ । रे जीव ! जाण कज्जे आरोहसि भीमजलयररउद्दे । दुत्तारम्मि समुद्दे ताणित्थीणं इमं रूवं ॥२९॥ रे जीव ! जाण कज्जे पविससि अइतिक्खपहरणकराले । दुव्विस संगामे ताणित्थीणं इमं रूवं ॥३०॥ रे जीव ! जाण कज्जे किसिकम्मं कुणसि पसुसमो होउं । सी- उन्ह - वासदुहिओ ताणित्थीणं इमं रूवं ॥३१॥ १. सं. वा.सु. भमिउव्वायाणि गयाणि पुन्न° ॥ २. ला. दव्वजा° ३. ला अणेण ४. ला. कहिओ Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः १९९ रे जीव ! जाण कज्जे वाणिज्जं कुणसिगरुयदुहहेउं । बहुअलियं जंपंतो ताणित्थीणं इमं रूवं ॥३२॥ रे जीव ! जाण कज्जे धाउव्वायं धमेसि पइदियहं । मेलेसि मूलजाले ताणित्थीणं इमं रूवं ॥३३॥ रे जीव ! जाण कज्जे आराहसि भूय-पेय-वेयाले । महमंसविक्कएणं ताणित्थीणं इमं रूवं ॥३४॥ रे जीव ! जाण कज्जे अन्नाणि वि सहसि भीमदुक्खाइं । नाणाविहरूवाइं ताणित्थीणं इमं रूवं ॥३५॥ रे जीव ! महामोहेण मोहिओ धम्ममवि न चिंतेसि । जासु पसत्तो ताओ परपुरिसेसुं पसज्जति ॥३६॥ रे जीव ! जोण रत्तो वंचसि मित्तं सहोयरं पियरं । अइनिग्घिणाओ ताओ वज्ज व्व अणत्थपउराओ ॥३७॥ ता किं इमिणा परिचिंतिएण परिचइय ताओ नारीओ । सग्गा-ऽपवग्गसुहयं करेमि तवसंजमुज्जोयं ॥३८॥ इय चिंतिऊण सेट्ठी पभणइ र कीर ! खमसु जं बद्धो । एत्तियकालं धरिलं संपइ परिभमसु सेच्छाए' ॥३९॥ इय भणिओ सो कीरो महापसाओ त्ति ताय ? जंपंतो। पणमित्तु सिट्ठिपाए उप्पइओ न ह यलं विमलं ॥४०॥ सेट्ठी वि जाव वलिओ नियए सत्थम्मि ताव पेच्छेइ । ण्हायं कयबलिकम्मं वच्चंतं लोयसंघायं ॥४१॥ पुट्ठो य तत्थ को वि हु 'कत्थेसो जाइ जणवओ सव्वो' । तेण वि भणियं 'सुंदर ! वंदणवडियाए सूरिस्स ॥४२॥ नामेण पसंतस्स उ सुयनीरमहोदहिस्स संतस्स । तीआ-ऽणागय-परिवट्टमाणविन्नायभावस्स' ॥४३॥ तं सोऊणं कट्ठो पहिट्ठमुहपंकओ पयडपुलओ। . गंतूण तत्थ सूरि वंदइ परमेण विणएण ॥४४॥ १. सं.वा.सु. जाण कज्जे वं॥ Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ००० मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः वंदित्तु सेसए वि य मुणिणो धरणीयलम्मि उवविट्ठो । भयवं पि गहिरसद्दो आढत्तो देसणं काउं ॥४५॥ भो भो जीवा ! इहयं अणोरपारम्मि भवसमुद्दम्मि । .. बुड्डताण जियाणं चउरंगं दुल्लहं एयं ॥४६॥ जओ भणियमागमे चत्तारि परमंगाणि दुलहाणीह जंतुणो । माणुसत्तं सुई सद्धा संजमम्मि य वीरियं ॥३७६॥ कम्माणं तु पहाणाए आणुपुव्वि काइ उ। जीवा सोहिमणुप्पत्ता आययंति मणुस्सयं ॥३७७॥ आलस्समोहऽवन्ना, थंभा कोहा पमाय किविणत्ता । भय सोगा अन्नाणा वक्खेवकुऊहला रमणा ॥३७८॥ एएहि कारणेहिं, लभूण सुदुल्हं पि माणुस्सं । न लहइ सुई हियकरि संसारुत्तारणि जीवो ॥३७९॥ आ'हच्च सवणं लद्धं सद्धा परमदुल्लहा । सोच्चाणेयाउयं मग्गं, बहवे परिभमिस्सइ ॥३८०॥ ता भो देवाणुपिया ! चउरंगं दुल्हं लहेऊण । वज्जेऊण पमायं धम्मम्मि समुज्जम कुणह ॥५२॥ पुत्त-कलत्ताईसुं वामूढा मा हु एत्थ संसारे । भमह जणा ! सिवसुहकारयम्मि धम्मम्मि उज्जमहा ॥५३॥ इय सूरिवयणमायन्निऊण संजायचरणपरिणामो । विन्नवइ कट्ठसेट्ठी, रोमंचुच्चइयसव्वंगो ॥५४॥ 'भयवं ! निमज्जमाणं इमम्मि भीमम्मि भवसमुद्दम्मि । उत्तारेहि महायस ! नियदिक्खाजाणवत्तेण ॥५५॥ भयवं पि भणइ 'जुत्तं एयं तुम्हारिसाण भव्वाण' । सेट्ठी वि तओ दव्वं विणिओयइ कुसलपक्खम्मि ॥५६॥ १. गाथेयमुत्तराध्ययनसूत्रस्य तृतीयेऽध्ययनेऽस्ति ॥ २. इमे द्वे गाथे उत्तराध्ययननिर्युक्तौ १६०-१६१ अङ्काङ्किते वर्तेते ॥ Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०१ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः गिण्हइ मुणिवरदिक्खं विहेइ तवसंजमं महाघोरं । कालेण गहियसिक्खो गीयत्थो भाविओ जाओ ॥५७॥ तओ कमेण संवेगाइसयाओ अणुन्नाओ गुरुणा पडिवन्नो एकल्लविहारपडिमं । विहरंतो ये पत्तो कमेण महासालं नाम नयरं, जत्थ से पुत्तो राया जाओ । भिक्खासमए य पविट्ठो तत्तो रायाइभएण नासिऊण बडुएण सह तत्थ पुव्वागयाए वज्जाए गेहं । दूराओ चेव ओलक्खिओ तीए । न नाया सा तेण । तओ नियचित्तदुट्टयाए चिंतियमणाए 'हंत ! भवियव्वं इमाओ इत्थ वि मम लाघवेणं, जओ न चिट्ठइ अयाणियमेयं मह चरियं विसेसओ एएण एत्थ चिटुंतेण, तओ निव्वासावेमि एयं केणइ उवाएंण' । चिंतिऊण भत्तमज्झे पक्खिविऊण नियसुवन्नयं पक्खित्तं साहुपत्तए । जाव पयट्टो साह ताव पुक्करियं तीए, अवि य दे धाह धाह एसो हरिऊण सुवन्नयं महं जाइ । तं सोऊणं गहिओ साहू आरक्खियनरेहिं ॥५८॥ निरूवंतेहिं य दिटुं सुवन्नयं । सलोद्दो ति काऊण नीओ रायउलं । 'लिंगि' त्ति सवियक्के हिं साहिओ रायस्स, तेणाऽवि मीमंसाकोऊहलेहि य मंतीहिं आणाविओ नियसमीवे। आणिज्जतो य दूराओ चेव दिट्ठो धाईए, ओलक्खिऊण य 'हा ! ताय' त्ति भणंती पडिया पाएसु रोविउं समाढत्ता । तओ 'कस्स पायवडिया मम जणणी रोवइ' त्ति सवियक्को समागओ सामंतपरिखुडो राया, पुच्छियं च जहा 'अंबे ! को एस' ? तीए निवेइयं जहा 'देव ! एसो तुह जणओ कट्ठो नाम' । चिरदिटुं पि ओलक्खिऊण निवडिओ राया वि से चलणेसु । नीओ सहामंडवं । निवेसिओ सीहासणे । भयवया वि कया भवनिव्वेयजणणी धम्मदेसणा । पडिबुद्धो राया पभूयलोगो य । राइणा जाव गवेसाविया दरायारा ताव एयं वइयरं निसामिऊण पणा वज्जा । राया वि पइदिणं धम्ममायन्नयंतो जाओ जिणधम्मपरायणो । साहू वि अन्नत्थ विहरमाणो 'पच्चासन्नो पाउस'त्ति काऊण विन्नत्तो नरिंदेण, अवि य 'भयवं ! तुह प्पसायाउ पाविओ दुल्लहो इमो धम्मो । चिंतामणिरयणसमो संसारमहासमुद्दम्मि ॥५९॥ जह चिंतियनीसेसत्थसाहगो सामि ? तुज्झ विरहम्मि । लुप्पिहिई कुप्पवयणपासंडियचोरनिवहेहिं ॥६०॥ १. ला. य कमेण संपत्तो महा ॥ मूल. २-२६ Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः संसाराडविमज्झे महानिहाणं व पाविओ एस । धम्मो तुह पहु ? विरहे घिप्पिहिई मोहराएण ॥६१॥ सयलतरुविरहियाए संसारमरुत्थलीय मज्झम्मि । पत्तो कप्पतरू विव कप्पियफलदायगो धम्मो ॥६२॥ सो सामिय ! तुह विरहे पमायकव्वाडिएण बलिएण । अवहरिउं मज्झ बलं कप्पो(प्पे?)यव्वो न संदेहो ॥६३॥ ता एवं नाऊणं अम्हाणुवरोहओ इहं चेव । एगं वरिसाकालं कुणह पसायं विहेऊण" ॥६४॥ भयवं पि गुणंतरं नाऊण ठिओ तत्थेव । उवसंतं च समत्थं नयरं । पडिवन्नो सव्वलोगेण जिणप्पणीओ धम्मो । तं च तारिसं पवयणप्पभावणं दट्ठण पउट्ठा माहणा । ओहावणानिमित्तं च भयवओ कओ कवडोवाओ । इच्छियर्दव्वप्पयाणेण उवयरिया गुव्विणी खुद्दकुट्टणी, भणिया य "भद्दे ? अइक्कंते पाउसे जया सव्वलोग-सामंत-मंतिपरिवुडो एयस्स समणगस्स अणुव्वयत्थं वच्चए राया तया तुमए परिव्वाइयावेसेण पुरओ ठाइऊण भणियव्वं जहा 'भयवं ! मह पोट्टं करिऊण संपयं कत्थ चलिओऽसि?" । वत्ते य वरिसकाले जया विहारनिमित्तं पट्ठिओ भयवं राइणा अणुगम्मतो तया सा परिव्वाइया-रूवेण पुरओ ठिया, अवि य कासायवत्थसंवुयदेहा उद्दाम चमरियविहत्था । कयपुंडयचच्चिका जइपुरओ संठिया एसा ॥६५॥ जंपइ 'किं मह पोट्टे काउं अन्नत्थ पत्थिओ तं सि । किं तुह जुज्जइ एयं दयापहाणा जओ मुणिणो' ॥६६॥ तं च सोऊण चिंतियं मुणिणा 'अहो ! निल्लज्जत्तणं, अहो ! पावाए धिद्वत्तमं, अहो! पवयणस्सुवरि पच्चणीयया, अहो ! पावकम्मसमायरणसीलत्तणमेईए, ता सव्वहा पाणाइवाएणावि पवयणस्सुन्नई कायव्व, त्ति चिंतिऊण भणिया साहुणा, अवि य "जइ तुज्झ इमो गब्भो मज्झ सयासाउ हंत ! उप्पन्नो । ता नियसमए जोणीदारेण विणिग्गमिज्जा उ ॥६७॥ अह पुण अन्नह एसो निष्फन्नो तो तड त्ति भित्तूण । कुच्छि संपयमेव य निग्गच्छउ मज्झ सच्चेणं" ॥६८॥ ____१. ला. 'दविणप्प ॥ Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०३ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः इय जंपियम्मि मुणिणा चरणपभावेण तस्स विमलेण । भित्तुं तड त्ति कुच्छि पडिओ धरणीयले गब्भो ॥६९॥ ता विलविउं पयत्ता, "इमेहिं पावेहि कारिया अहयं । धिज्जाइएहिं एयं तं मह मत्थंतियं जायं ॥७०।। धी धी मह बुद्धीए पावाए पावकम्मनिरयाए । एएसि वयणेण जीए इमं एरिसं विहियं" ॥७१॥ एवं विलवंतीए करुणाजुत्तेण साहुणा पुण वि । नियतवतेयबलेणं अवहरिया वेयणा तीए ॥७२॥ गब्भो य तडफडेउं मओ अनिष्फण्णओ त्ति काऊण । सव्वजणम्मि य जाया जिणसासणउन्नई गरुया ॥७३॥ इय उन्नई विहेउं धम्मस्स मुणी वि विहरिओऽन्नत्थ । आलोइय पडिकंतो जाओ आराहगो एसो ॥९॥ कुविएण माहणा ते निव्विसया कारिया नरिंदेण । वज्जा वि भवसमुद्दे अणोरपारम्मि परिभमिही ॥१५॥ वज्राकथानकं [ समाप्तम्] ॥४६॥ एताश्च कामयमानस्य ये दोषा भवन्ति तान् श्लोकेनाऽऽह कामयंतो वियट्ठोवि नारीणं होइ खेल्लणं । दासो व्व आवयाओ य पावो पावेइ दुम्मई ॥१७१॥ कामयमानः=ताभिः सह विषयसुखमनुभवन्, विदग्धोऽपि पण्डितोऽपि, नारीणां= स्त्रीणाम् भवति जायते 'खेल्लणं' ति क्रीडनकम्, दासवत् निजकिङ्करवत्, यत् उक्तम् - नो रक्खसीसु गिज्झेज्जा(ज्ज) गंडवच्छासु णेगचित्तासु । जाओ पुरिसं पलोभिय, खेलंति जहा व दासेहिं ॥३८१॥ (उ. अ. ८ गा. १८) आपदश्च शरीरादिबाधाः, चकाराद् मानसिकपीडाश्च, पापः पापकर्मा, प्राप्नोति= लभते, दुर्मतिः=दुष्टबुद्धिर्यतः जो थीणं वसवत्ती, होइ नरो मोहमोहिओ. पावो । सो खिवई अप्पाणं, आवइनीरायरे घोरे ॥३८२॥ १. ला. मच्छंतियं ॥ २. ता कार्मितओ वि ॥ ३. ला. मोहिओ महपावो ॥ Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः इति श्लोकार्थः ॥१७१॥ यतश्चैवं तस्मात् एवं तत्तं वियास्ति तत्तो विरत्तचित्तओ । दूरं नारी परिच्चज्ज धम्मारामे रमे नरो ॥१६२।। एवम् अनेन प्रकारेण, तत्त्वं= परमार्थं स्त्रीणां सूत्रकारोदितं. तं श(तच्छ ?)रीरा वयवासारतारूपं वा यथा गलल्लालाकरालेऽपि दृश्याऽस्थिस्थानसङ्कले । - मुखाख्ये विवरे सारं मोहात् किमपरं भवेत् ॥३८३॥ मांसासृक्पूतिपिण्डेषु, चर्मणा वेष्टितेषु च । पयोधरेषु रागान्धा ! ब्रूत किं रामणीयकम् ? ॥३८४॥ इत्यादि विचार्य= परिभाव्य, ततश्च दूरं विप्रकृष्टम्, नारी =ललनाम्, परित्यज्य= त्यक्त्वा । धर्मारामे= धर्मोपवने, रमेत-क्रीडेत । यतस्तत्र विशेषतो नयनमनांस्यारमन्ति, नर:=पुमानिति श्लोकार्थः ॥१७२॥ किमेतत् सर्वमेवम् ?, अन्यथा वा ? इति परप्रश्ने सत्याह एमेयं नऽन्नहा सम्मं, भाविज्जंतं जहट्ठियं । कीवाणं कायराणं च, राग-द्दोसवसाण य ॥१७३॥ प्राकृतत्वादेवमेतन्नाऽन्यथा सम्यग्निश्चितम्, भाव्यमानं= पर्यालोच्यमानम्, यथास्थितं = यथावत्स्वरूपम्, क्लीबानां स्त्रीदर्शनादिष्वपि विह्वलीभवताम् कातराणां=निःसत्त्वानाम्, राग-द्वेषवशकानां च तद्वशवर्तिनाम्, ये त्वेतद्विपरीतास्तेषां स्त्रीसम्बन्धेऽपि न चित्तक्षोभः सम्पद्यते, यत उक्तमागमे-जे णं सव्वुत्तमे पुरिसे से णं पच्चंगुब्भडजोव्वण-सव्वुत्तम-रूवलावण्ण-कंतिकलियाए वि इत्थीए सन्निज्झे वाससयं पि वसेज्जा नो णं मणसा वि तं इत्थियं अभिलसेज्जा () अतस्तस्यै तदन्यथाऽपि सम्भाव्यत इति श्लोकार्थः ॥१७३॥ किमेतद्दोषजालं स्त्रीणामेवोच्यते आहोस्वित् पुरुषाणामपि ? इति प्रश्ने श्लोकमाह तं च तुल्लं नराणं पि, जं इत्थीणं सवित्थरं ।। दंसित्ता दोसजालं तु, दंसियं समए समं ॥१७४।। ★ तच्च = पूर्वोक्तं स्त्रीदोषजालम्, तुल्यं समम्, नराणामपि यत् स्त्रीणां सविस्तरं दर्शयित्वा दोषजालं= दूषणकदम्बकम्, दर्शितं कथितम्, समये सिद्धान्ते, समं=तुल्यमिति श्लोकार्थः ॥१७४॥ ततश्च- * __१. ला. सत्यम् ? अ° २. उत्थानिकेयं ला. संज्ञकप्रतावेवोपलब्धा | ३. ★★ एतच्चिह्नद्वयान्तर्गत पाठः केवलं ला. संज्ञकप्रतावेवोपलभ्यते ॥ Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः जिणागमाणुसारेण, वज्जेयव्वा सुदूरओ । सभूमियानिओगेण, कायव्वमुचियं तहा ॥१७५॥ = जिनागमानुसारेण=जिनसिद्धान्तकथितानुवर्तनेन 'वज्जेयव्व' त्ति वर्जनीयाः = परिहर्तव्याः, सुदूरतः दूराद्दूरेणेति तथा स्वभूमिकानियोगेन = निजावस्थासामर्थ्येन, 'कायव्वं' ति कर्तव्यं = विधेयम् उचितं = यद्योग्यम्, तथा' इति यथा वर्जनं कर्तव्यं तथोचितमपि कर्तव्यम्, अयं भाव इति श्लोकार्थः ॥१७५॥ पूर्वं वर्जनं महदादरेण प्रतिपाद्य कस्मादुचितमपि तथोच्यते ? इति प्रश्ने श्लोकमाह पुव्वं तित्थंकरेणाऽवि, कयं तित्थं चउव्विहं । नतं पुण्ण विणा ताहिं, पहाणंगमिणं पि हु ॥१७६॥ २०५ पूर्वम्=आदौ तीर्थकरेणाऽपि कृतं = निर्वर्तितम्, तीर्थं=सङ्घरूपम्, चतुर्विधं= चतुःप्रकारम्, न=नैव तत् पूर्णं विना = विनैव, ताभिः = स्त्रीभिः, अतः प्रधानाङ्गं= सारावयवं तीर्थस्येति भावः, इदमपि = स्त्रीलक्षणमिति श्लोकार्थः ॥ १७६ ॥ यतः चाउव्वण्णस्स संघस्स, मज्झे सुव्वंति साविया । सद्दंसणेण नाणेण, जुत्ता सीलव्वएहि य ॥ १७७॥ यतश्चतुर्वर्णस्य=साधु-साध्वी - श्रावक-श्राविकालक्षणस्य, सङ्घस्य तीर्थस्य, मध्ये श्रूयन्ते = समाकर्ण्यन्ते, श्राविकाः = श्रमणोपासिकाः सद्दर्शनेन = प्रधानसम्यक्त्वेन, ज्ञानेन= श्रुतज्ञानादिना, युक्ताः = समेताः, शीलव्रतैश्च = चारित्ररूपैरिति श्लोकार्थः ॥१७७॥ कास्ताः श्राविकाः श्रूयन्ते सङ्घमध्य इति प्रतिपादनार्थं श्लोकमाह रेवई देवई सीया, नंदा भद्दा मणोरमा । सुभद्दा सुलसाईया, पायडा तियसाण वि ॥ १७८॥ रेवती देवकी सीता नन्दा भद्रा मनोरमा सुभद्रा सुलेसादिकाः । तत्र रेवती=भगवदौषधदात्री, देवकी = वासुदेवमाता, सीता = रामभार्या, नन्दा अभयकुमारजननी, भद्रा = धन्यकजनेता मनोरमा = सुदर्शनप्रिया, सुभद्रा = चम्पायां कृतशासनोत्सर्पणा, सुलसा = देवकीसुतप्रतिपालयित्री पूर्वप्रतिपादिता वा, आदिशब्दाद् नर्मदा सुन्दरी - अभय श्रीप्रभृतयः । कियन्त्यः शृङ्गग्राहं कथ्यन्ते 'पायड' त्ति प्रकटयः=प्रसिद्धाः, १. ला. 'व्यमिति भावार्थः ॥ १७५ ॥ २. ला. 'साद्याः ॥ ३. ला. धन्यजनयित्री ॥ Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः दीर्घत्वं प्राकृतत्वात् त्रिदशानामपि देवानामपीति श्लोकाक्षरार्थः ॥१७८॥ [४७. रेवतीकथानकम्] भावार्थस्तु कथानकेभ्योऽवसेयः । तत्र रेवतीकथानकम् अत्थि इह भरहवासे पभूय धण-धण्णनिब्भ रंरम्मं । . नीसेसगुणनिहाणं मिढियगामं ति वरनयरं ॥१॥ तत्थ य पभूयधण-धन्नरिद्धिविच्छड्डधन्न पूरिया अहियं । रेवइनामा निवसइ गाहावइणी गुणसमग्गा ॥२॥ सम्मत्त-नाण-चारित्तरयणपरिमंडिया समणभत्ता । तवनियमरया जीवाइवत्थुपरिवित्थरविहण्णू ॥३॥ किं बहुणा तियसेहिं वि धम्माओ चालिउं न जा सका। खाइयसम्मत्तधरी पसंसणिज्जा मुणीणं पि ॥४|| आगामिणीइ चउवीसिगाइ होऊणे जिणवरिंदो जा । नामेणं सयकित्ती दसमो देविंद नयचलणो ॥५॥ अह अन्नया कयाई दिप्पंतो जिणवरिंदरिद्धीए । संपत्तो वीरजिणो विहरंतो गाम-नगरेसुं ॥६॥ नामेण सालकोट्ठयउज्जाणे विरइयम्मि ओसरणे । देव-मणुया-ऽसुराए परिसाए अक्खए धम्मं ॥७॥ अह अन्नया जिणिदस्स तत्थ देहम्मि रत्तअइसारो । संजाओ दाहो वि य जो दुसहो इयरपुरिसाणं ॥८॥ तं दटुं रेवइ सावियाए पुच्छित्तु सन्निहियविज्जं । -- पक्का दो बिज्जउरा सिरिवीरजिणस्स अट्ठाए ॥९॥ पत्तो य तम्मि दियहे सीहो नामेण भगवओ साहू । उज्जाणअदूरट्ठियमालुयकच्छस्स आसन्ने ॥१०॥ आयावितो निसुणइ, "छउमत्थो चेव काहिई कालं । वीरजिणो गोसालगतेएणेऽऽइद्धओ सत्तो" ॥११॥ १. सं.वा.सु. “यदिअवन्नणियं रम्मं ॥ २. ला. धम्माओ न चालिठं कहवि सक्का ॥ ३. सं.वा.सु. ण नरवरिंदो ॥ ४. सं.वा.सु. “मो सिज्झिहिइ नयच ॥ ५. ला. 'णायडिओ ॥ Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०७ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः तं निसुणिउं परुन्नो मालुयकच्छंतरम्मि पविसेउं । .. सद्दाविऊण तत्तो भणिओ सिरिवीरनाहेण ॥१२॥ "मा कुणसु एत्थ अधिई पनरस वासाइं सद्धयाई अहं । केवलिपरियाएणं विहरित्तु सिवं गमिस्सामि ॥१३॥ ता वच्च तुमं रेवइगाहावइणीए भद्द ! गेहम्मि । जे मह अट्ठाए कया बिज्जउरा ते पमोत्तूणं ॥१४॥ अन्ने कुंभंडिफला बहुदेवसिया सअट्ठया पक्का । तीए ते मग्गेउं आणेहि" तओ इमं भणिओ ॥१५।। रेवइगिहम्मि सीहो पत्तो तं इंतयं इमा दटुं । अब्भुट्ठिऊण वंदइ परेण विणएण भत्तीए ॥१६॥ भणइ य 'आइसह पओयणं' ति तेण वि इमा तओ भणिया । 'भद्दे ! ओसहकज्जे समागओ एत्थ अहयं ति ॥१७॥ किंतु तुमे बिज्जउरा जे पक्का भगवओ निमित्तेणं । ते मोत्तुं जे सऽट्ठा पक्का ते देहि पूसफला' ॥१८॥ तो रेवई पयंपइ 'केणायं तुज्झ सीह ? अक्खायं । मज्झ रहस्सियमढे 'तिलोगनाहेण' सो भणइ ॥१९॥ तो पयडुद्धियरोमंचकंचुया जाइ भत्तहरयम्मि । घेत्तूण तयं वियरइ सीहस्स सुसाहुसीहस्स ॥२०॥ तो पत्त-चित्त-वित्ताइएहिं सुद्धेण तेण दाणेण । देवाउँए निबद्धे तओ चुयाए जिणिदत्तं ॥२१॥ उप्पाडियनाणवरा संबोहियसयलभव्वसंघाया । तेलोक्कपणयवरपायपंकया वच्चिही मोक्खं ॥२२॥ सीहो वि तयं अप्पइ जिणस्स भयवं पि तदुवओगेण । जाओ हट्ठसरीरो तुट्ठमओ तिहुयणं सयलं ॥२३॥ धन्ना य पुण्णवंता, पगुणो भयवं जदोसहेणं तु । मणुया-ऽसुर-देवेहिं पसंसिया रेवई एवं ॥२४॥ १. ला. “सुणित्तु प’ || २. ला. उयं निबद्धं ॥ Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः इय एवमाइएहिं गुणेहिं तियसाण पायडा एसा । संखेवेणं एवं रेवइचरियं मए कहियं ॥२५।। __ [गतं रेवतीकथानकं ॥४७॥] इदानीं देवकीकथानकमाख्यायते _ [४८. देवकीकथानकम्] अत्थि इह जंबुद्दीवे रायगिहं नाम पुरवरं पयडं । तत्थऽत्थि जरासंधो राया पडिवासुदेवो त्ति ॥१॥ तस्स य जीवजसाए सुयाइ भत्ता महाबलसमग्गो । कंसो त्ति सुप्पसिद्धो, पुत्तो सिरिउग्गसेणस्स ॥२॥ एत्तो य सोरियपुरे समुहविजयाइया दस दसारा । संति बहुगुणसमग्गा लहुओ अह ताण वसुदेवो ॥३॥ बलविरियसत्तकलिओ तेलोक्काब्भहियरूवसोहग्गो । तस्स य कंसेण समं वड्डइ परमा दढं पीई ॥४॥ अह अन्नया कयाई पोलासपुराहिवस्स नरवइणो । देवयरायस्स सुया नामेणं देवई कन्ना ॥५॥ कंसेण निययपित्तियभगिणी वसुदेवकारणे वरिया । गंतुं पोलासपुरे वसुदेवसमन्निएणेव ॥६॥ परिणीया सुहलग्गे तत्तो कंसस्स रायहाणीए । महुराए दो वि गया वद्धावणयं तर्हि जायं ॥७॥ तत्थ य पमोयदिवसे अइमुत्तो नाम मुणिवरो पत्तो । कंसस्स लहुयभाया वरनाणी गुणगणसमग्गो ॥८॥ सो मत्ताए तीए जीवजसाए खलीकओ अहियं । दियरु ति भणंतीए तेण तओ सा इमं भणिया ॥९॥ "पावे ! जीए पमोए नच्चसि हल्लप्फला तुमं अज्ज । कंठग्गहाइएहिं ममं पि एवं कयत्थेसि ॥१०॥ १. ला. देवक्याख्यानक' ॥ २. ला. य कइवयदि ॥ Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०९ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः तीसे सत्तमगब्भो तुह पइ-पिइमारगो न संदेहो । होही" इय भणिऊणं नीसरिओ तीए गेहाओ ॥११॥ सा वि तयं नियपइणो साहइ एसो वि चिंतए एवं । 'मह भाउगस्स वयणं पलए वि न अन्नहा होइ' ॥१२॥ तो मत्तयचेड्डेणं गेहे गंतूण भणइ वसुदेवं । दिज्जंतु मज्झ सामिय ! सत्त वि अह देवईगब्भा ॥१३॥ तब्भावमयाणेउं पडिवन्ना तस्स पत्थणा तेण । तो हट्टतुट्ठचित्तो चिट्ठइ जा गब्भसमओ से ॥१४॥ समयम्मि य रक्खावइ पयत्तओ देवई सपुरिसेहिं । गिण्हित्तु तीए पुत्ते सिलाए अच्छोडए कंसो ॥१५॥ एत्तो य मलयविसए भहिलनयरम्मि नागवरइब्भो । निवसइ तस्स य सुलसा भज्जा अह जायनिंदु त्ति ॥१६॥ नेमित्तिएणसिट्ठा आराहइ सा तओ पयत्तेण । हरिणेगमेसिदेवं तुट्ठो सो जंपई एवं ॥१७॥ 'भद्दे ! एरिसकम्मं तुमए विहियं अहऽन्नजम्मम्मि । पसविहिसि तुमं पुत्ते मइल्लए नत्थि संदेहो ॥१८॥ किंतु तुह भत्तितुट्ठो परिवत्तिय देमि अन्ननारिसुए । सा भणइ होउ एवं ते वि महं अत्तया चेव ॥१९॥ ता सो सुरसेणवई समकालं कुणइ गब्भसंबंधे । पसवदिणम्मि य तत्तो वंचित्ता कंसपाहरिए ॥२०॥ देवइसुयं जियंतं अप्पइ सुलसाइ तीइ मयगं तु । मुंचइ देवइ पासे कंसो वितयं विणासेइ ॥२१॥ एवं छण्ह सुयाणं सुरेण परिवत्तणं कयं जाव । ता सत्तमम्मि गब्भे वसुदेवं देवई भणइ ॥२२॥ 'रक्खेहि इमं एगं मज्झ सुयं सामि ! पावकंसाओ । किमहं इमस्स दासी जेणेवं हणइ मह पुत्ते' ॥२३॥ १. सं.वा.सु. `णा चेव ॥ २. ला. पुत्तं ॥ ३. ला. मयल्लए । मूल. २-२७ Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१० मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः 'एव करिस्सामि पिए ! आसासेउं तयं पसवदियहे । सत्तमगब्भे जायं नवमं अह केसवं जणओ ॥२४॥ गिण्हित्तु जाइ तुरियं देवीसन्निज्झओ नियवयम्मि। . अप्पेइ जसोयाए सा वि तयं गिण्हए बालं ॥२५॥ 'भद्दे ! बालेण समं भलियव्वं' जंपिऊण वसुदेवो । गिण्हइ अहिणवजायं तद्भूयं तीए हत्थाओ ॥२६॥ वेगेण गओ गेहं, धरइ तयं देवईए पासम्मि । कंसनरा य विउद्धा किं जायं इइ पयंपंता ॥२७॥ पेच्छंति देवईए पासे तं कन्नयं तओ घेत्तुं । गंतूण तुरियतुरियं ते वि हु अप्पंति नियपहुणो ॥२८॥ सो चिंतइ 'कह एसो इत्थीभावेण सत्तमो गब्भो । जाओ अंह इत्थीए को हम्मइ' चिंतिऊणेवं ॥२९॥ ईसिं विदारिऊणं एगं नासाउडं अवज्झ त्ति । इत्थि त्ति पुणो वि तयं मेल्लावइ देवई पासे ॥३०॥ कयकण्हनामधेओ विद्धिगओ नवमवासुदेवो वि । नियसावक्कयभाइयबलदेवसमण्णिओ गोट्टे ॥३१॥ वद्धतेण य निहओ कंसो मल्लूसवम्मि वÉते । जीवजसा पइमरणं साहइ गंतूण नियपिउणो ॥३२॥ तस्स भएणं नट्ठा दस वि दसारा सके सव-बला वि । पच्छिमसमुद्दतीरे बारवई तेहिं निम्मविया ॥३३॥ .. हणिऊण जरासंधं भरहद्धं साहियं तओ हरिणा । कुणइ तहिं सो रज्जं चिंतारहियं भयविमुक्को ॥३४॥ अह अन्नया कयाई बुद्धो बुद्धारविंदसरिसमुहो । कुवलयदलसामतणू समुद्दविजयस्स अंगरुहो ॥३५॥ अच्चुब्भडनवजोव्वणरायमईसंगचागदुल्ललिओ । सिद्धिपुरंधीसंबंधबंधुरो तिहुयणपईवो ॥३६॥ १. ला. अहवित्थीए । २. ला. रहियं ॥ Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भाग: देवा-ऽसुर-नरवरमाणमलणकंदप्पदप्पविद्दवणो । देविंद-चंद-असुरिंदवंदपरिवंदियच्चलणो ॥३७॥ लोयालोयविलोइयकेवलउवलद्धसयलतेलोक्को । तवतणुयवरट्ठारससहस्समुणिजणियपरिवारो ॥३८॥ आगासपत्तधयधम्मचक्करिद्धीपबंधचसुसमिद्धो । जउकुलनहयलचंदों समोसढो रिटुनेमिजिणो ॥३९॥ आयासपत्तसिहरग्गखलियरविरहतुरंगमे दुग्गे । उज्जिते णाणाविहवणस्सईसंकुले रम्मे ॥४०॥ अवि यजत्थ हिताल-तालातला सालया, केलि-एला-ऽऽमली- लवलि-वरसरलया । अक्ख-रुद्दक्ख-दक्खा-वड-ऽक्खोडया, बोरि-बिज्जउरि-जंबीरि-साहोडया ॥४१॥ नाग-पुन्नाग-कडहंग-नारंगया, पूग-सागा-उंगरू-तगर-वरगंगया । [ग्रंथाग्रम् ११०००] निंब-काउंबरीओवरं-5वाडया, उंब-काउंब-अंबोइया ताडया ॥४२॥ केयई-कुडय-कंकेल्लि-कंकोलया, कुंद-मचकुंद-करमद्दिया करलया । सल्लई-मल्लईवेल्ल-अंकोल्लया, मालईपाडला तिलय-विरिहिल्लया ॥४३॥ लउय-छत्तोय-सत्तच्छया कुज्जया, अज्जुणा-ऽणोज्जखजूरि-वरसज्जया । चंदणा वंदणा बाण-कणवीरया, मयण-मचकोलि-मंदार-साहारया ॥४४॥ १. ला. यपयप्सो के || २. सं.वा.सु. पवंचसु ॥ ३. ला. 'तालीतला ॥ ४. ला. पूगसा [ ग्रन्थाग्रम ११०००] गागरू' ॥ ५. ग्रन्थश्लोकसंख्यात्मक एष पाठः सं.वा.सु. प्रतीनां ज्ञेयः ॥ ६. ला. अंबकायंब ॥ ७. ला. 'लि-साहार-मंदारया ॥ Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः सिस्सवा हिंसिवा संति संताणया, सत्तली सिरिस-सयवत्ति-जासुयणया । पिप्पलं-ऽबिलिय-जाइप्फला बउलया, सिंबली पीलु-नालेर-पेयालया ॥४५॥ दाडिमी वाइमी चंपयाछिया, वंस-सीवन्नि-कोसंब-कविअट्ठया । खइर-कप्पूर-टिंबरुय-कणियारया, राइणी खीरिणिया(खीरिणी) करवरी वारया ॥४६॥ सिंदुवारा रुया वरुणफेलिहट्टया[?], फणस-अइवंतया भुज्ज-हालिद्दया । महुय-फणिवेल्लि-धव-धम्मणा गुंदया, किंपि कल्हारि-कंथारि-तयंतिदुया ॥४७॥ हरडई जूहिया फरुससोहिंजणा, किकिरी किंसुया सुरतरू अंजणा । अरणिया रलुय-नरहुल्ल-लव-केसरा, लोद्द-किरिमालया कुरव-दंतस्सरा ॥४८॥ फलिणि-फुडसिंगिया रत्तिरोहीडया, लिंब-ऊयारविजा समी हरडया । जत्थ वणजाइ एमाइया णेगसो, तं नगं वण्णऊ कह व अम्हारिसो ? ॥४९॥ किंच नाणाविहजाइविहंगरावपूरंतनहयलाभोगे । भोगपरायणजायवमिहुणसमारद्धकीलणए ॥५०॥ णयणाभिरामकिन्नरजुवइसमारद्धमहुरसंगीए । संगीयरवायन्नण निच्चलदीसंतहरिणउले ॥५१॥ हरि-णउलपमुहभीसणसावयसयसंचरंतमेहलए । मेहलयनीरतम्मितसेलपवहंतनिज्झरणे ॥५२॥ १. ला. सित्वावा, अशुद्धोऽयं पाठः ॥ २. ला. फललहठ्ठया ॥ ३. सं.वा.सु. वल्लि--वरथ ॥ ४. सं.वा.सु. किंकिरी ॥ Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१३ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः निज्झरणरावपूरियगुरुकुहरसमुच्छलंतपडिसद्दे । पडिसद्दतच्छ-वानरंसीघविमुर्चतबुक्कारे ॥५३॥ इय एवमाइबहुविह-अच्चब्भुयसयसमाउले रम्मे । उज्जिते नेमिजिणो समोसढो तिजगपणयपओ ॥५४॥ वद्धावएण तत्तो कण्हो वद्धाविओ जहा 'देव ? । वड्वसु पीईइ दढं समोसढो रिटुनेमिजिणो ॥५५॥ उज्जितसेलसिहरे सहसंबवणम्मि देवरमणिज्जे' । . कण्हो वि तस्स वियरइ निउत्तवित्तिं समब्भहियं ॥५६॥ तो जिणवंदणहेउं विणिग्गओ सयलहरिगणसमग्गो । . वंदित्तु जिणवरिंदं उवविट्ठो निययठाणम्मि ॥५७॥ सक्काईया य सुरा विज्जाहर-नर-तिरिक्ख-मणुया य । वंदिय जिणमुवविट्ठा पुच्छंति निए य संदेहे ॥५८॥ भयवं पि ताण धम्मं कहेइ भवजलहितारणसमत्थं । तं सोउं पडिबुद्धा बहवे अह पाणिणो तत्थ ॥५९॥ कण्हाइया वि हरिणो वंदित्ता जिणवरस्स पयपउमं । वारवईए पविट्ठा जाया सद्धम्मकम्मरया ॥६०॥ एत्तो अरिटुनेमीजिणस्स सीसा गुणायरा छ च्च । समवयरूवसमग्गा सुरवरकुमर व्व पच्चक्खा ॥६१॥ वारवईनयरीए इरियासमिया कमेण विहरति । संघाडगत्तिगेणं घरपरिवाडीए भिक्खट्ठा ॥६२॥ पत्तं च पढमजुयलं कमेण वसुदेव-देवइगिहम्मि । गहणुग्गम-उप्पायणदोसे सव्वे विवज्जतं ॥३॥ तं जुयलं जणी विव दट्ठणं देवई वि विम्हइया । आणंदमुव्वहंती देवकुमारोवमं पवरं ॥६४॥ फुरमाणवामनयणा तत्तो सा रोहिणी इमं भणइ । "मुणिवेसेणं एवं छलणत्थं राम-कण्हाणं ॥६५॥ १. सं.वा.सु. रलिईवमु ॥ २. ला. “तपोक्कारे ॥ ३. ला. "ति य निययसं ॥ ४. 'रोहिणीम्' इत्यर्थः ॥ Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः सुरजुयलं दुद्धरिसं विबुद्धवरकमलसरिसनयणिल्लं । बलरूवगुणसमेयं अणण्णसरिसं समायायं ॥६६॥ न य दिट्ठा जेण मए इमेण रूवेण साहुणो एत्थ । ता होज्ज सच्चमेए मायाए सुरा समायाया" ॥६७॥ अह आह देवइं रोहिणी वि न "फुसंति मेइणि देवा । न य उम्मेसनिमेसो नेय मलो देह-वत्थेसु ॥६८॥ एएहि कारणेहिं देवइ ! अमरा न हुँतिमे साहू । रायकुमारा एए लक्खणकलिया जओ पेच्छ ॥६९॥ ता पडिलाहह एए विउलेणं फासुएण अन्नेणं । न चिरं चिटुंति जओ देवइ ! भिक्खागया साहू" ॥७०॥ तत्तो रसोइणि देवई वि साहूण फासुयं अन्नं । पभणइ देह जहिच्छं दिण्णं तीए गया साहू ॥७१॥ तत्तो मज्झिमजुयलं समागयं तत्थ गोयरकमेणं । दिटुं च देवईए मण्णंतीए पढमजुयलं ॥७२॥ पुणरवि महाणसिं तं पभणइ ‘इच्छाइ देह साहूणं' । मण्णंतीए 'न जुत्तं दिण्णं' तीए गया ते वि ॥७३॥ तत्तो य तइयजुयलं तेणेव कमेण आगयं तत्थ । तं चेव य मण्णंती दटुं तं देवई आह ॥७४॥ "किं दोण्णि वारदत्ते, भयवं ! पुणरवि समागमो तुम्ह ? । किं होज्ज न पज्जत्तं ? किं वा अवरं इमं किं पि? ॥५॥ धण-कणयसमिद्धाए किं वा नयरीए वासुदेवस्स । न लहंति जई भिक्खं ? किं वा मइविब्भमो मज्झ ?" ||६|| सुणिऊण इमं साहू देवजसो नाम पंचमकुमारो । पभणइ "महाणुभावे ? न वयं ते साहुणो होमो ॥७७॥ जे भिक्खं गहिऊणं विणिग्गया एत्थ तुम्ह गेहाओ । किंतु निसामह कज्जं जेण न नाओ किर विसेसो ॥७८॥ - १. ला. इयरं ।। Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः भद्दिलपुरम्म नयरे नागो नामेण अत्थिवरसेट्ठी । सुलसा य तस्स भज्जा छत्तणया ताण किर अम्हे ॥ ७९ ॥ अण्णोगयागारा सव्वे वि सहोयरा सरिसरूया । सव्वे वि तवं कुणिमो अण्णोण्णं साणुरागा य ॥८०॥ पिंहुपिहुसंघाडेहिं गेहम्मि समागया य तुम्हऽम्हे । न य अम्ह तए नाओ समरूवाणं इह विसेसो" ॥८१॥ सुणिऊण देवई वि य, एयं रोमंचकंचुयसरीरा । उत्थाय वंदिऊण य सुद्धन्नं देइ नेहेण ॥८२॥ सविसेसं च पलोयइ पेच्छइ सिरिवच्छअंकियसुवच्छे । नीलुप्पलदलनय कण्हसमे नियसरूवेण ॥८३॥ मेयमत्तपीलुगयगामिणे(?णो) य दट्ठूण पत्थिए दो वि । पभणइ य रोहिणि तं हरिसेणं देवई एवं ॥ ८४॥ “निसुणह जं संजायं रुहिरसुए पोलसे पुरा नयरे । अइमोत्तगो त्ति साहू समागओ अम्ह गेहम्मि ॥८५॥ तेण य मम आइट्ठ 'पहाणपुरिसस्स भारिया कण्णा । जीवंतऽसुयाण य जणणी सिविच्छ्वच्छाणं ॥८६॥ होहिसि न हु संदेहो भरहद्धमहंतसामिणी' भणिउं । उप्पइओ सो साहू तमालदलसामले गयणे ॥८७॥ जाया पहाणपुरिसस्स भारिया छस्सुया ये मम पढमं । जाया य देवयाए ते नूणं मोहिउं कंसं ॥८८॥ अवहरिडं सुलसाए समप्पिया होज्ज घाइया अन्ने । कंसेण डिंभगा किल एयं सामत्थणं मज्झ ॥८९॥ वामं च फुरइ नयणं खरंति खीरं पयोहरा दो वि । रूवेण हरिसरिच्छा तेणेए मम सुयाऽवस्सं ॥९०॥ २१५ १. सं. वा.सु. विहविहसं ॥ २. सं. वा.सु. वरमत्तपीलुवरगामिणे ॥ ३. सं.वा.सु. पोलासए ॥ ४. ला. 'याणं ज° ॥ ५. सं.वा.सु. होहि त्ति न संदेहो ॥ ६. ला. मह ॥ ७ ला एवं साहइ मणं मणं मज्झ ॥ Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१६ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः मोत्तूण सिर्वादेवी तुमं च अहयं च नावरा नारी । सिरिवच्छंकियवच्छं तणयं पसवइ जओ का वि ॥९१॥ किंवा वि वियारेणं ? सव्वण्णुं सव्वदंसिणं नेमिं । पुच्छे पच्चूसे, करेमि निस्संसयं एयं" ॥९२॥ तं आह रोहिणी विय सव्वं कण्हस्स विणयरूवेहिं । सरिसापगे अवस्सं जायइ सुयसंगमो तुम्ह ॥९३॥ अह सा विगमइ स्यणि किच्छेणं सुयसमूसुगा कह वि । सुहा समूहसहिया गया पभाए जिणंतम्मि ॥९४॥ सव्वसुरा-ऽसुर-जायवसमूहमज्झट्ठियं जिणं तत्थ । तिपयाहिणिउं पुरओ पभणइ थुइमंगलं एयं ॥९५॥ “जयहि सिवदेविअंगरुह ! तिजगीसरा !, जयहि सुर-असुरपहुपणय ! परमेसरा ! । जयहि ताला - लि-सिहिगलयसमवण्णया!, जयहि पम्मुक्करायमइवरकण्णया ! ॥९६॥ जयहि हरिवंससरसलिलसियहंसया !, जयहि इलविलयसुइसोह अवयंसया ! | जयहि नियरूवसोहग्गजियम [य]णया !, जयहि नीसंगपरिचत्तधणसयणया ! ॥९७॥ जयहि जयसुहडकंदप्पभडदलणया !, जयहि महमौहदढमल्लबलमलणया ! । जयहि भवभीयभव्वाण कयसरणया!, जयहि उज्जितपडिवन्नगुरुचरणया ! ॥९८॥ जयहि संजमभरुव्वहणधुरधवलया !, जयहि पसरतजसपसरभरधवलया ! । जयहि कम्मट्ठधरदलणवरवज्जया !, जयहि अपवग्गपुरगमणजिणसज्जया !" ॥९९॥ इय भव भय भीयाऽहं पणया तुह नेमिनाह ! पयपउमे । नीसेसभयविमुक्तम्मि सामि ! मं नेहि सिवनयरे ॥१००॥ नमिऊण भणइ पुणरवि "भयवं ! अइमुत्तगेण मम मुणिणा । आइटुं बालत्ते किल 'अट्ठ सुयाण जणणि त्ति ॥ १०१ ॥ जीवंताण' किमलियं ? जं किल कंसेण मम सुया निहया" ॥ भयवं पि आह 'सच्चं जं मुणिणा तुज्झ आइटुं ॥१०२॥ देवइ ! एयं निसुणसु वणिदुहिया अत्थि भद्दिलपुरम्मि । सुलसा सा बालत्ते निंदू निउणेहिं आइट्ठा ॥१०३॥ १. 'शिवादेवीम्' इत्यर्थः ॥ २. सं. वा.सु. 'सायगे ॥ ३. ला. हलविलय' ॥ ४. ला. 'दलमल्ल' ॥ Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम् - द्वितीयो भागः हरिणेगमेसिदेवो तीए जीवंतसुयनिमित्तेणं । आराहिओ तवेणं तेण य मुणिसाववित्तंतं ॥ १०४॥ नाऊण तुज्झ तणया कंसे वहणुज्जयम्मि अवहरिडं । पढमम्मि जायमेत्ता सुलसाए समप्पिया नेउं ॥ १०५॥ सुलसाए परियणस्स य हत्थगया नागसेट्ठिगेहम्मि । ते देवकुमारा इव पवड्डिया हरिकुलमियंका ॥ १०६॥ पढमो य अणीयजसो अणंतसेणो य अजियसेणो य । तह निहयसत्तुनामो देवजसो सत्तुसेणो य ॥१०७॥ भुंजंति सुरवरा इव भोए ते नागसेट्ठिगेहम्मि । एक्केक्स्स य तेसिं बत्तीसं रायकण्णाओ ॥ १०८॥ दिण्णाउ सेट्ठिणा जाइऊण रूवेण सुरवहूउ व्व । केऊर-कडय-कंठय-मणि - मेहले - हारसोहाओ ॥१०९ ॥ कीलंति ताहिं समयं पिहपिहपासायपरिगया सव्वे । अण्णोणनेहक लिया अण्णोण्णादेसकारी य ॥११०॥ एत्थंतरम्मि अहयं देवइ ! गामा -ऽऽगरेसु विहरंतो । संपत्तो तम्मि पुरे समोसढो बाहिरुज्जाणे ॥ १११॥ देवा चउव्विहा वि य समागया तत्थ मम समोसरणे । पुंडो य नरवरिंदो भद्दिलपुरसामिओ नाउं ॥ ११२॥ तं दिव्वसमोसरणं मम आगमणं च जाणिउं सहसा । पउरंतेउरसहिओ वंदणभत्तीए नीहरिओ ॥११३॥ दूराउ मुक्कजाणो भत्तीए ममंतिगम्मि संपत्तो । तत्थं ममं नमिऊणं उवविट्ठो समसिलावट्टे ॥११४॥ ते वि य जे तुज्झ सुया छ प्पि जणा नागसेट्ठिगेहाओ । पिपिहरहेहि चलिया वंदणभत्तीए मम तुरियं ॥११५॥ अवयरिऊण रहाण य दूराउ ममंतिगम्मि संपत्ता । तिपयाहिणिऊण मर्म वंदिय भूमीए उवविट्ठा ॥ ११६ ॥ १. ला. 'लजायसो' ॥ २. ला पिहुपिहुपा ॥ ३. पिपिहुर ॥ मूल. २-२८ २१७ Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः उद्दिसिउं ते कुमरे अह अक्खाओ मए दयामूलो । धम्मो सिवसुहफलओ अचिंतचिंतामणिसरिच्छो ॥११७॥ सो पुण खंतिविसुद्धो मद्दवजुत्तो तहज्जवसमेओ । मुत्तीए संपण्णो तवसहिओ संजमगुणडो ॥११८॥ कयसच्चव्वयसारो सोयसमेओ अकिंचणाइण्णो । नवबंभगुत्तिगुत्तो विसुद्धबंभव्वयजुओ य ॥११९॥ चारित्त-नाण-दसणसुविसुद्धगुणंकिओ परमतत्तो । गयकोह-माण-माओ निल्लोहो निम्ममो असढो ॥१२०॥ राग-दोसविमुक्को मोहविहीणो अमच्छरो अमलो । राईभोयणरहिओ अविरहिओ चरणकरणेहिं ॥१२१॥ इय एवमाइधम्मं जईण संबंधि सावयाणं च । सोऊणं छ प्पि जणा संवेगगया इमं आह ॥१२२।। 'कयकरयलंजलिउडा सहरिसरोमंचकंचुयसरीरा । भयवं ! मायापियरं आपुच्छेउं ततो अम्हे ॥१२३।। सव्वमिमं आएसं काहामो तुम्ह सीसभावेण । संसारभउव्विग्गा मोक्खत्थं सव्वदुक्खाण' ॥१२४॥ इय भणिउं नमिऊण य तम्मि पुरे नियगिहम्मि गंतूणं । नमिउं माया-पियरं भणंति सव्वे इमं वयणं ॥१२५।। 'संसारसागराओ भीया जर-मरणवाहिनीराओ । नायं च तदुत्तरणं इच्छामो जइ विसज्जेह ॥१२६।। भयवंतसासणम्मी सव्वे वि हु सव्वदुक्खदलणम्मी । होहामो भवभीया सुद्धमणा निम्ममा समणा' ॥१२७॥ जणयाइ इमं सुणिउं वज्जासणिनिट्ठरं दुसहवयणं । भूमीए निवडियाई जाओ हाहारवो सयणे ॥१२८॥ बत्तीसं बत्तीसं तेसिं भज्जाउ सयणवग्गो य । अकंदिउं पवत्तो कुररीण कुलं व दीणमणो ॥१२९॥ १. सं.वा.सु. र इमं व ॥ Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः तं बंधवजणविहियं घोरुवसग्गं सुदूसहं सहिउं । संबोहिऊण जणयं उवट्ठिया वयविहाणत्थं ॥१३०॥ तेसिं निक्खमणमहं रिद्धीए कुणइ उच्छुगो सेट्ठी । सणेण य सिबियाओ रइयाउ विमाणसरिसाओ ॥ १३१ ॥ तक्कालविहियवेसा ते वि य सिबिगागया विहाणेण । परमाए महिमाएं समागया मम समोसरणे ॥ १३२ ॥ सिबिगाण समुत्तरितं मम पासमुवागया य विणण । विहिणा य मए दिण्णा पव्वज्जा ताण छण्हं पि ॥१३३॥ अप्पेण वि काले दुवालसंगं पि पवयणमिमेहिं । साहुसमायारिजुयं अहिज्जियं गणहरसयासे ॥ १३४॥ छट्ठ-ऽट्ठम-दसम-दुवालसेहिं मास - ऽद्धमासखवणेहिं । जुगवं च पारणेहिं अच्चत्थं भाविओ अप्पा ॥ १३५॥ एवं च इमे सव्वे मए समाणं कमेण विहरंता । इह संपत्ता पत्ता भिखट्ठा तुज्झ गेहम्मि ॥१३६॥ ता देवइ ! तुज्झसुया एए सिरिवच्छवच्छसा सव्वे । भिक्खागया गिम्मी जे तुमए वंदिया कल्लं ॥१३७॥ अण्णभवम्मि य देवइ ! तुमए अइनिम्मलाई रयणाई । हरियाइं सवत्तीए छ त्तेसिं सुय विओय फलं ॥१३८॥ एवं जिणेण भणिया वाहाविललोयणा य हरिजणणी । धरिया कैरेहिं हरिणा निवडंती गरुयमुच्छाए ॥ १३९॥ तं दठुं रुयमाणिं सव्वे बलभद्द-केसवप्पमुहा । रुइया जायववसहा वाहाविललोयणा कलुणं ॥१४०॥ तत्तो समुट्ठिऊणं सूयसुरहि व्व सा सुए सरिउं । खीरं पओहरेहिं विक्खिरमाणी गया पासे ॥१४९॥ तत्थ य तमणीयजसं नेहेणाऽऽलिंगिऊण सव्वंगं । पभणइ सवाहनयणा गग्गरकंठा इमं वयणं ॥ १४२ ॥ १. ला. भिक्खटुं ॥ २. ला. 'वच्छ्या ॥ ३. ला. करेण ॥ २१९ Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२० मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः 'हा ! सव्वे अवहरिया पसूयमित्ता सुया इमे मज्झ ।। अहुणा य मए नाया सिट्ठा सव्वन्नुणा सव्वे' ॥१४३॥ एवं च रुयंतीए आणंदेणं दसारहकुलं पि। आलिंगिऊण रुन्नं हरिपमुहं देवईतणए ॥१४४॥ । पभणइ य देवई तं जेट्ठसुयं 'भवसु पुत्त ! तं राया। कुलपूइया य सेसा अणंतसेणो य जुवराया ॥१४५॥ आणाविहो य कण्हो दंडधरो पुत्त ? तुज्झ इह होही । रामो वि वयणकारी सेसा वि हरीसरा सव्वे' ॥१४६॥ हरिणा वि इमं वयणं समत्थियं तह य चेव हलिणा वि । सेसेहिं वि पडिवण्णं सउरीहिं जायवेहिं च ॥१४७॥ तत्तो य अणीयजसो पभणइ "सुण अंब ! एत्थ परमत्थं । रज्जाइया पयत्था हवंति दुक्खाय जंतूणं ॥१४८॥ तह पुव्वकम्मभवियव्वयाए उववज्जिऊण तुह उयरे । पित्थं च वणियगेहे भमाडिया पावकम्मेण ॥१४९।। होऊण रायतणया हरिवंसे पित्थ पागयनर व्व । , उववण्णा वणियगिहे एत्तो किं होज्ज कट्ठयरं ? ॥१५०॥ खीवालेण ये हरिणा, तह चेव महायसा बलेणाऽवि । पत्ता वियोगदुक्खं जणणी-जणएहि य समं च ॥१५१॥ चत्ता य इमे भोगा पुणरवि जइ भुजिमो भवनिमित्तं । हसणिज्जा होज्ज तओ नराण कुगईगमो तह य" ॥१५२॥ एत्थंतरे य भयवं अस्टुिनेमी जिणेसरो कण्हं ।। पभणइ 'देविंदो वि य न समत्थो चालिउं एए ॥१५३।। सव्वे वि चरमदेहा चरिमभवा वज्जरिसहसंघयणा । अलमेत्थ पलावेणं तुण्हिक्का होह हरिवसहा !' ॥१५४॥ सुणिउं जिणवयणमिमं थुणिउं च जिणेसरं च तेहिं समं । संभोसेउं विहिणा वारवई जायवा जंति ॥१५५॥ १. ला. 'यं पुत्त ! होहि तं ॥ २. सं.वा.सु. सुयणेहिं ॥ ३. सं.वा.सु. एत्थं ॥ ४. सं.वा.सु. एत्थ ॥ ५. सं.वा.सु. य तह चेव बंधुणा महयसा ॥ ६. ला. भासिउं च वि ॥ Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः २२१ इयरे वि महापुरिसा विहिऊण महातवं चिरं कालं । नमिउं जिणमणुनाया जउमंतनगं गया सव्वे ॥१५६।। तत्थ य पायवगमणं एवं मासं नगोवरि विहिउं । वसुदेवसुया सिद्धि मरिऊण निरंजणा पत्ता ॥१५७॥ एत्तो य देवई वि हु गिहम्मिगंतूण चितए एवं । नियसुयवियोगदुहिया वाहजलुप्पीलपुण्णऽच्छी ॥१५८॥ "धण्णा कयपुण्णाओ ताण सुलद्धं च माणुसं जम्मं । जाओ नियकुच्छिमज्झब्भवाणे लहुर्डिभरूवाणं ॥१५९॥ कमलदलकोमलेहिं करेहिं घेत्तूण दिति उल्लावे । मम्मणपयंपिराओ मम्मणवयणे भणंताणं ॥१६०॥ थणदुद्धलुद्धयाणं मुद्धडयाणं च जाणुठवियाणं । नाणाविहरामणए जाओ जंपति नेहेणं ॥१६१॥ अहयं तु पुण अहण्णा एत्तो एगयरमवि न संपण्णा" । इय चिंताए धणियं अह जाया देवई दीणा ॥१६२॥ ओलुग्गपंडुरंगी उम्मंथियनयणकमलजुयलिल्ला । नित्तेयदीणेवयणा करयलयलपल्हत्थियकवोला ॥१६३॥ अट्टज्झाणोवगया झियायमाणी उ चिट्ठए जाव । ता जणणिवंदणत्थं समागओ तत्थ महुमहणो ॥१६४॥ तं तयवत्थं दहूँ जोडिय करसंपुडो भणइ एवं । "केणं च तुम्ह आणा न कया ? साहेह मह एयं ॥१६५॥ जेण तयं पाहुणयं पेसेमि जमस्स नत्थि संदेहो । अहवा वि जं न रुइयं पुज्जइ तुम्हाण तं कहह" ॥१६६॥ इय भणिया भणइ तओ 'पुत्तय ! दीहाउओ तुम होहि । तं नत्थि जं न सिज्झइ तुह प्पभावेण मह कज्जं ॥१६७॥ किंतु न मे तुम्हाणं अणुहूयं बालचिट्ठियं तेण । । जाओ मणसंतावो" इय सुणिउं भणइ नरनाहो ॥१६८॥ १. सं.वा.सु. सिरंजणा || २. सं.वा.सु. 'ण नियर्डि' ॥ ३. सं.वा.सु. जाओ संपत्ति ने ॥ ४. सं.वा.सु. ओलग्ग ॥ ५. सं.वा.सु. णविमणा करयलतलधरियवयणिल्ला ॥ ६. ला. हरिनाहो ॥ Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः 'अम्मो ! मुय उव्वेवं तहा करिस्सामि जह महं भाया । होइ कणिट्ठो' एवं वोत्तूणं जाइ नियठाणे ॥ १६९ ॥ समयम्मि तओ कण्हो पोसहसालाए अट्ठमं भत्तं । हरिणेगमेसिदेवं मणम्मि काउं पगिहे ॥ १७० ॥ उम्मुक्कमणि- सुवण्णो ववगयमाला - विलेवणो तत्थ | तणसंथारर्निवि(व)ण्णो चिट्ठइ जा अट्ठमं पुण्णं ॥१७१॥ चलियासणो य तत्तो समागओ सुरवरिंदसेणाणी । 'भणसु महायस ! कज्जं जेण तए सुमरिओ अयं ॥ १७२ ॥ तो भइ वासुदेवो 'धुज्जंति मणोरहा जहंबाए । तह कुण सुरसेणाहिव ?' सो जंपइ “थोवैदिवसेहिं ॥१७३॥ होही मणोरहाणं संपत्ती कण्ह ? तुज्झ जणणीए" । इय भणिऊणं तियसो संपत्तो देवलोगम्मि ॥१७४॥৷ जाओ य देवईए कमेण पुत्तो अईव सुकुमालो । गयतालुयसारिच्छो सव्वजणाणंदहेउ ति ॥ १७५ ॥ तो जणणी - जणएहिं गयसुकुमालो त्ति से कयं नामं । जणणीमणोरहम्मी पुण्णे अह जोव्वणं पत्तो ॥ १७६॥ उक्किट्ठरूव-लावण्ण-वन्न - कलकोसलाइसंपुणो । पाणेहिंतो वि दढं अइप्पिओ वासुदेवस्स ॥१७७॥ कमपत्तजोव्वणं जाणिऊण हरिणा नरिंददुहियाओ । जणणीए अणुमणं वरियाउ पहाणरूयाओ ॥१७८॥ धूया य सोमसम्मस्स कण्णया रूव-जोव्वण- गुणड्डा । जाया य खत्तिणीए सोमा सोमाणणा वरिया ॥ १७९ ॥ गोविंदो जा चितइ अणुयस्स विवाहमंगलं मुइओ । ता भयवं विहरंतो वारवई जिणवंरो पत्तो ॥ १८०॥ मुणिउं जिणआगमणं सव्वे वि विचित्तवाहणा हरओ । भत्ती जयगुरुणो विणिग्गया वंदनिमित्तं ॥ १८९ ॥ १. ला. निसिणो ( सण्णो ) ॥ २. सं. वा.सु. सुरसेणवइ ! ॥ ३. ला. थोयदियहेहिं || Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२३ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः तं नयरिं दट्टणं हलहलयं पुच्छए गयकुमारो । 'कंचुइ ! नयरीमज्झे किं एयं वट्टए अज्ज ?' ॥१८२॥ सो जंपइ "कुमर ! तए कह नवि नाओ तिलोगपयडो वि । जउकुलनहयलचंदो समुद्दविजयस्स अंगरुहो ॥१८३॥ उप्पण्णदिव्वनाणो सुरिंद-असुरिंदवंदियच्चलणो । दिप्पंतो संपत्तो अणण्णसरिसाए रिद्धीए ॥१८४॥ इह चेव समोसरिओ उज्जितमहागिरिम्मि रम्मम्मि । तस्स य वंदणहेउं जंति इमे कुमर ! हरिवसहा" ॥१८५॥ तं सोउं कुमरो वि हु जाओ रोमंचपुलइयसरीरो । नेमिजिणवंदणत्थं गओ य वररहवरारूढो ॥१८६॥ वंदित्तु जिणवरिंदं भत्तीए तदंतिगम्मि उवविट्ठो । जिणमुहनिहित्तनयणो तव्वयणं सुणइ एगमणो ॥१८७॥ भयवं कहइ य धम्मं जोयणनीहारिणीए वाणीए । तं सोउं कुमरो वि हु पडिबुद्धो जंपए एवं ॥१८८॥ 'भयवं ! अम्मापियरं आपुच्छित्ताण तुम्ह पासम्मि । घेच्छामि समणधम्म' इय भणिउं जाइ गेहम्मि ॥१८९।। महया कद्वेण तओ जणणी-जणयाइए विमोएउं । निक्खमइ जिणसमीवे महाविभूईए सो कुमरो ॥१९०॥ कण्हाइया वि सव्वे वंदित्ता नियघरेसु संपत्ता । पुच्छइ वियालसमए गयसुकुमालो वि जिणंइंदं ॥१९१॥ 'भयवं ! महामसाणे काउस्सग्गेण ठामि रयणीए ?' । अणुजाणइ भयवं पि हु गुणंतरं तस्स नाऊण ॥१९२॥ जाव ठिओ उस्सग्गे वियालवेलाए सो महासत्तो । ता सोमिलेण दिट्ठो तं दटुं चिंतए पावो ॥१९३॥ 'एएण मज्झ धूया अदिट्ठदोसा विडंबिउं मुक्का । ता सोहणपत्थावो संपइ वेरस्स निज्जवणे' ॥१९४॥ १. ला. कंचुय ॥ २. ला. वरवसभा ॥ ३. ला. आपुच्छेऊण || Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२४ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः इय चिंतिऊण सीसे बंधित्ता मट्टियाए से पालि । पक्खिवइ जलजलंते चियाउ आणित्तु इंगाले ॥१९५॥ एवं करित्तु पावो पविसइ सिग्धं पुरीए मज्झम्मि । मुणिणो वि य संजाओ परिणामो एरिसो चित्ते ॥१९६।। 'हा हा अहो ! अकज्जं इमस्स जं दुग्गईए पडणम्मि । जाओ अहं निमित्तं कस्स वि जीवस्स एयस्स' ॥१९७॥ इय चितंतस्स तओ उप्पण्णं तस्स केवलं नाणं । आउक्खएण समयं संपत्तो सिद्धिसोक्खम्मि ॥१९८॥ कण्हो वि बीयदिवसे वंदित्ता पुच्छए जिणं 'भयवं ! । कत्थऽच्छइ गयसाहू ?' जंपइ भयवं पि 'सिद्धिपुरे' ॥१९९॥ .. कण्हो वि भणइ 'भयवं ! कह लहुसिद्धो ? कहेह परमत्थं' । भयवं पि भणइ 'नरवर ! उवसग्गो दारुणो सहिओ' ॥२०॥ कण्हो वि आह 'भयवं ! मज्झ कणिट्ठस्स तुम्ह सीसस्स । केणुवसग्गो एवं विहिओ निविण्णजीएणं ?' ॥२०१॥ भय पि आह 'नयरीदारे पविसंतयं तुमं दटुं । फुट्टिहिइ जस्स सीसं खंडाई सत्त तं मुणसु' ॥२०२॥ अह वंदिऊण भयवं कण्हो पविसरइ जाव नयरीए । ता चितइ सो पावो "अहो ! अकज्जं मए विहियं ॥२०३।। कण्हस्स लहुयभाया निहओ तं जाणिउं जिणिंदाओ । मारिहिइ कहं पि ममं न नज्जए ता पणस्सामि" ॥२०४॥ इय चिंतिऊण तो सो निग्गच्छइ जाव पउलिदारेणं । ताव सहस त्ति कण्हो समागओ सम्मुहं तस्स ॥२०५॥ फुटुं च सत्त खंडाणि मत्थयं अइभएण अह तस्स । कण्हेण वि नयरीए भमाडिओ कसिणवसहेहिं ॥२०६॥ इय देवईय चरियं संखेवेणं मए समक्खायं । वित्थरओ पुण जाणह सव्वं वसुदेवहिडीओ ॥२०७॥ १. ला. जा पओलि ॥ Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः २२५ इय सव्वत्थ वि पयडा एसा तियसाण अह विसेसेणं । गयसुकुमालुप्पत्ती तेणं एयं मए कहियं ॥२०८॥ इति देवकीकथानकं समाप्तम् ॥४८॥ इदानीं सीताकथानकं कथ्यते । [४९. सीताकथानकम्] अत्थित्थ जंबुदीवे, भारहखित्तस्स मज्झयारम्मि । अच्छेरयसयकलियं साकेयपुरं तु सुपसिद्धं ॥१॥ तम्मि य पुरम्मि राया, इक्खागकुलुब्भवो महासत्तो । अत्थि तिलोगक्खाओ नामेणं दसरहो गया ॥२॥ तस्स ऽत्थी देवितिगं पढमा अवराइतय त्ति सुपसिद्धा । बीया सुमित्तनामा तइया पुण केगईनामा ॥३॥ पढमाए रामदेवो पुत्तो बीयाइ लक्खणकुमारो । तइयाइ भरहनामो तिण्णि वि सव्वत्थ विक्खाया ॥४॥ मिहिलाहिवजणयसुया सीया नामेण तिजगविक्खाया । जियसयलविलयरूवा परिणीया रामदेवेणं ॥५॥ अह अण्णया कयाई केगइदेवीए दसरहो राया । सारत्थे तोसविओ देइ वरं सव्वपच्चक्खं ॥६॥ राहवरज्जऽभिसेयं उवट्ठियं जाणिऊण तो रायं । जंपइ केगइ देवी "देव ! तए जो महं तइया ॥७॥ पडिवण्णो आसि वरो सो संपइ देहि मह कुमारस्स । कीरउ रज्जाऽभिसेओ सव्वनरिंदाण पच्चक्खं" ॥८॥ तं सोऊणं राया समत्थनरनाहसंजुओ अहियं । संजाओ विमणमणो हियएणं चिंतए एवं ॥९॥ 'पेच्छह कह नारीओ अविवेयपराउ होंति लोयम्मि । मोत्तुं रामं रज्जं जेणेसा दावए भरहे' ॥१०॥ १. ला. सीताख्यानकं ॥ २. सं.वा.सु. 'हखंडस्स ॥ ३. सं.वा.सु. य कुलम्मि ॥ ४. ला. तस्सऽथि य दे ॥ ५. ला. देह ॥ मूल. २-२९ Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भाग: इय चिंतिऊण राया हक्कारइ राहवं ससोमित्ति । पभणइ पुत्त ! न जुत्तं तहावि पत्थिजसे एवं ॥११॥ "तुद्वेण मए दिण्णो आसि वरो केगईए सो तीए । रज्जऽभिसेओ भरहस्स मग्गिओ ता तयं वच्छ ! ॥१२॥ तस्स करिस्सामि अहं मझुवरोहेण ता तुर्म पुत्त ! । सोमित्ति-सीयसहिओ अणुमण्ण तयं" तओ रोमो ॥१३।। 'आएसो' त्ति भणित्ता लक्खण-सीयासमण्णिओ रामो । निग्गंतुं वसिमाओ पविसइ अडविं महाभीमं ॥१४॥ राया वि तओ भरहं रज्जम्मि निवेसिऊण निक्खंतो । रामो वि य अडवीए हिंडइ सच्छंदलीलाए ॥१५॥ अह अण्णया कयाई कीलंतो लक्खणो गओ दूरं । पेच्छइ कयबहुपूयं वरखग्गं चंदहासं ति ॥१६॥ तं दट्टणं कुमरो गिण्हइ कोऊहलेण अप्फुण्णो । वाहइ वंसकुडंगे पाडइ वंसाण पब्भारं ॥१७॥ तस्स य मज्झे पडियं वरकुंडलमउडभूसियं रम्मं । विज्जाहरस्स सीसं तं दटुं लक्खणो सहसा ॥१८॥ जाव निरूवइ सम्मं ता पेच्छइ उद्धबद्धनियपायं । धूमाऽऽवियणसयण्हं गयसीसं कस्स य धडं ति ॥१९॥ तं दट्टणं कुमरो निदइ बहुयं भुयाबलं निययं । 'हा हा अहो ! अकज्जं कयं मए एव' भणिऊण ॥२०॥ तो घेत्तुं तं खग्गं गंतूणं राहवस्स पासम्मि । जं जहवत्तं तं तह कहइ तओ राहवो भणइ ॥२१॥ 'कुमर ! न जुत्तं विहियं एयस्स कएण होहिई अम्हं । अइरुद्दो संगामो' जावेवं जंपए रामो ॥२२॥ १. सं.वा.सु. “ज्जए ॥ २. सं.वा.सु. पण तयंत्तरोमंवो (? तयन्तरे रामो)॥ ३. सं.वा.सु. वीरो ॥ ४. ला. तओ रज्जं भरहम्मि नि ।। ५. सं.वा.सु. सुज्जहासं ॥ ६. ला. नियसीसं धूमप्पाणसयण्हं । ७. सं.वा.सु. अह्म हि) यं ॥ ८. सं.वा.सु. करेड़तारा० ॥ तयन्तरे रामो ॥ ३. सं.वा.सु. वीरो ॥. ला Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२७ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः ताव य माया पत्ता भत्तं गहिऊण तस्सकुमरस्स । जो लक्खणेण निहओ संबुक्को नाम नामेणं ॥२३॥ सा सुप्पनहा भगिणी रावणरायस्स दट्ठ नियपुत्तं । गयजीवं विलवंती लग्गा अन्नेसिउं सत्तुं ॥२४॥ लक्खणपयमग्गेणं संपत्ता जाव ताण पासम्मि । ता दट्ठ ताण रूवं मयणेण परव्वसा जाया ॥२५॥ काउं तरुणतरर्टी रूवं तो ताण पासमल्लीणा । पत्थेइ बहुपयारं पडिवज्जइ राहवो नेय ॥२६॥ ता सा रुसिउं तुरियं नहेहि अप्पाणयं वियारित्ता । खरदूसणस्स पुरओ नियपइणो अक्खएं एवं ॥२७॥ "सामिय ! तुमम्मि नाहे निहओ पावेहि पुत्तसंबुक्को । मझं इमा अवस्था विहिया भूगोयरेहिं दढं ॥२८॥ सामिय ! अणिच्छमाणी वियारियाकररुहेहि दयरहियं" । तं सोऊणं राया पज्जलिओ पलयजलणो व्व ॥२९॥ 'अज्ज दलेमि समत्थं दप्पमहं ताण दुट्ठपुरिसाण' । इय भणिऊणं सहसा सन्नज्झइ बहुभडसहाओ ॥३०॥ तो आगासतलाओ इंतं विज्जाहराण तं सिन्नं । दट्ठण राहवेणं भणिओ अह लक्खणो एवं ॥३१॥ 'वच्छ ! तए जो वहिओ तस्स कुढं आगयं इमं मण्णे । ता रक्खसु वइदेहिं परम्मुहं देमि अहमेयं ॥३२॥ तो भणइ लक्खणो वि य सामि ! तुमं चिट्ठ इत्थ सीयाए । पासम्मि इमं अहमेव देमि विवरम्मुहं सिणं ॥३३॥ भणिओ य राहवेणं 'जइ कह विगयस्स तुज्झ संदेहो । होइ तओ मुत्तव्वो वच्छ ! तए सीहनाओ' त्ति ॥३४॥ 'एवं ति होउ पडिवज्जिऊण अभिडइ लक्खणो ताण । हणिऊण बहुभडोहं कुमरेणं दूसणो निहओ ॥३५॥ १. ला. वहिओ ॥ २. ला. कुमरसंबुक्को । मज्झ य इमा ॥ Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२८ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः सेसा पुण रायाणो सरणं अह लक्खणं समल्लीणा । हयनायग ति काउं अह सुप्पनही विरोवंती ॥३६॥ साहइ रक्खसर्वइणो तं सोउं एइ सो वि परिकुविओ। पेच्छई वणंतरम्मी रामं सीयाइ संजुत्तं ॥३७॥ दटुं सीयारूवं, विद्धो सो कामदेवबाणेहि । इच्छइ हरिउँ सीयं रामसमीवाउ न य चयइ ॥३८॥ ता विज्जाय बलेणं संकेयं ताण जाणिउं सहसा । मुयइ गुरुसीहनायं तं सोउं राहवो जाइ ॥३९॥ रक्खसवई वि सीयं हरिऊणं जाइ अंतरे तम्मि । रामो वि लक्खणेणं भणिओ "किं आगओ तं सि ?' ॥४०॥ 'तुह मुक्कसीहनायं सोऊणं' राहवेण भणियम्मि । जंपइ लक्खणकुमरो "न सीहनाओ मए मुक्को ॥४१॥ सीयाअवहरणत्थं नूणं केणाऽवि होहिई विहिओ । ता गच्छ लहुं राहव । सीयं परिरक्खयाहि त्ति ॥४२॥ तुह चरणपभावेणं निहओ सत्तू इमो मए चेव । ता सेण्णमिमं घेत्तुं आगच्छिस्सं तुह समीवे" ॥४३॥ इय एवं सा हरिया सीया लंकाहिवेण रहुणा वि । छम्मासरणं काउं हणिउं लंकाहिवं तत्तो ॥४४॥ आणीया नियगेहे समागया सिद्धमद्धभरहं पि । जाओ य वासुदेवो अहऽट्ठमो लक्खणकुमारो ॥४५॥ पेउमो वि य बलभद्दो, समागया पुण अउज्झनयरीए । कुव्वंति रज्जमउलं पणमंतमहंतसामन्ता ॥४६॥ अह अण्णया कयाई सीया नियभत्तुणा सहऽच्छंती । भुंजंती विसयसुहं जाया आवण्णसत्त त्ति ॥४७॥ गब्भपभावेण तओ समइक्तेसु दोसु मासेसु । संजाओ डोहलओ 'जइ किर वंदामि जिणभवणे' ॥४८॥ १. सं.वा.सु. पुण ।। २. सं.वा.सु. वयणो ॥ ३. ला. इ अवंत' ।। ४. ला. “वा य न ।। ५. ला. रामो वि य बलदेवो, ॥ Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२९ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः तं नाउं रामेणं पुरेसु चेइयहरेसु आइट्ठो । अट्ठाहियामहो सयलरिद्धिविच्छड्डुसंजुत्तो ॥४९॥ 'वंदसु पिए ! जिणिदे' भणिया सा पयडजायरोमंचा । भत्तिभरनिब्भरंगी वंदइ नयरीए जिणबिंबे ॥५०॥ भणिया य पुणो 'सुंदरि ! वंदाविस्सामि सेसपुहइयले । कारिम-अकारिमाई जिर्णिदचंदाण भवणाई' ॥५१॥ एवं सा वीसत्था संजाया पुण्णडोहला सीया ।। एत्तो य रामपासे आगंतुं भणइ पडिहारी ॥५२॥ 'देव ! पुरीए महल्ला नीसेसमहायणेण परियरिया । चिट्ठति दारदेसे तुह दंसणउस्सुगा सव्वे' ॥५३॥ भणियं च राहवेणं 'लहुं पवेसेहि' तीए ता सव्वे । भणिया 'पविसह' ते वि हु समागया रामपासम्मि ॥५४॥ मुक्कर्मि दंसणीए भणिया रामेण 'भणह भो ! कज्जं' । भयउक्कंपिरहियया ते वि हु एवं पयंपंति ॥५५॥ 'भयभीयाणं सामिय ! न अम्ह वायो बहिं विनिक्खमइ । अभएण कुण पसायं मुक्कभया जेण विण्णविमो' ॥५६॥ रामेण वि पडिभणियं 'अभओ तुम्हाण भद्द ! सव्वेसि । पभणह जं भणियव्वं' इय भणिए ताण मज्झाओ ॥५७।। विण्णवइ विजयनामो महंतओ "सामि ! सयलनयरीए । लोओ अणज्जकज्जो परदोसग्गहणतल्लिच्छो ॥५८॥ जंपइ 'दसाणणेणं अणुरायपरव्वसेण जा भुत्ता । सा सीयारामेणं इहाऽऽणिया अहह ? न हु जुत्तं ॥५९॥ नीईए कुसलस्स उ इक्खागकुलुब्भवस्स रामस्स । नवि जुज्जइ इय काउं' एवं भणिरस्स लोगस्स ॥६०॥ सामिय ! करेहि दंडं' इय भणिए राहवो तओ सहसा । वज्जेण ताडिओ विवि इय चितेउं समाढत्तो ॥६१॥ १. सं.वा.सु. "म्मि बयसणम्मी भ ॥ २. ला. “या कर्हिचि नि ॥ ३. सं.वा.सु. रायस्स ।। Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः "अहह ! कहं विण्णत्तं इमेहि अइनिठुरं इमं कज्जं । जं सीयाअववाओ चितिज्र्ज्जतो वि दुव्विसहो ॥६२॥ ससहरकरधवलो वि हु एसो इक्खागरायवरवंसो । मह महिलाअववाएण झ त्ति मलिणीकओ सव्वो ॥६३॥ संभवइ य एवं पि हु अणुणिज्जंती य रक्खसिंदेणं । कुसुमायरउज्जाणे ठिया य बहुमन्नियं वयणं ॥ ६४॥ ता परिचयामि एवं सुण्णारण्णम्मि अयसभयभीओ । न य अण्णहा पय़ाणं जायइ चित्तस्स परियत्ती" ॥६५॥ इय चिंतिय सोमिति सद्दावइ सो वि आगओ तुरियं । भणिओ य राहवेणं लक्खण ? निसुणेहि मह वणं ॥६६॥ 'सीयाए अववाओ दुव्विसहो अज्ज पउरलोगेण । विण्णत्तो' तं सोउं आरुट्ठो लक्खणो भणइ ॥६७॥ " अवि चलइ मेरुचूला अवि सूरो उग्गमेज्ज अवराए । सीया महासईए न चलइ पलए वि पुण चित्तं ॥६८॥ जो पुण अलियपलावी परवसणी एस निद्दओ लोगो । तं अज्जेव निरुत्तं करेमि सव्वं पि लुयजीहं" ॥६९॥ दंडकरणुज्जयं तं नाऊणं लक्खणं सुमहुरेहिं । वयणेहिं अणुणेउं अह जंपइ राहवो एवं ॥७०॥ ‘छड्डेमि वच्छ ! सीयं कुलाववायस्स सुट्रु भीओऽहं' । भणियं च लक्खणेणं "तुह पहु ! नवि जुज्जए एवं ॥ ७१ ॥ अवियारिऊण सहसा दुज्जणवयणेहिं सीलपरिकलियं । नीसेसगुणसमग्गं जं चयसि महासई सीयं" ॥७२॥ भणियं च राहवेणं एत्तो पुरओ न किंचि वत्तव्वं' । इय भणिओ सोमेत्ती विमणो निययं गतो गेहं ॥७३॥ रामेण वि सेणाणी कयं तवयणो झड त्ति आहूओ । सन्नद्धबद्धकवओ सो पत्तो रहवरारूढो ॥७४॥ १. सं. वा.सु. तो य अइदुसहो ॥ २. सं. वा.सु. अणुरज्जंती इ र ॥ ३. सं.वा.सु. महायसं ॥ ४. ला. ओ पत्तो सो ॥ Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३१ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः तं दटुं भणइ जणो 'कस्स वि अवराहियं अइमहंतं' । विण्णवइ सो वि रामं 'सामिय ! मह देहि आणं ति ॥७५॥ 'जिणवंदणच्छलेणं सीयं मोत्तुं महाअरण्णम्मि । सिग्धं नियत्तियव्वं मह आणत्ती इमा तुज्झ' ॥७६॥ 'जं आणवेसि सामिय !' इय भणिउं जाइ सीयपासम्मि । पभणइ "उट्ठसु सामिणि ! आरुहसु महारहे एत्थ ॥७७॥ वंदसु जिणभवणाई समत्थतेलोक्कवंदणिज्जाई" । इय भणिया जणयसुया आरुहइ रहम्मि परितुट्ठा ॥७८॥ आपुच्छिऊण सयलं सहीयणं परियणं च वइदेही । जंपइ 'जिणभवणाइं पणमिय सिग्धं नियत्तेमि' ॥७९॥ एत्थंतरे रहो सो कयंतवयणेण चोइओ सिग्छ । चउतुरयसमाउत्तो वच्चइ मणवेयसमवेओ ॥८०॥ अह सुक्कतरुवरत्थं दित्तं पक्खावलि विहुणमाणं । दाहिणपासम्मि ठियं पिच्छइ रिटुं करयरंतं ॥८॥ सूराभिमुही नारी विमुक्ककेसी बहुं विलवमाणी । तं पेच्छइ जणयसुया अन्नाणि वि दुन्निमित्ताणि ॥८२॥ निमिसियेमित्तेण रहो उल्लंघइ जोयणं परमवेगो । सीया वि पिच्छई महिं गामा-ऽऽगर-नगरसंकिणं ॥८३॥ नग-नइ-निज्झर-तरुवर-सावयसयसंकुलं परमघोरं । रण्णं च सच्चवंती बहुसद्दसमाउलं जाइ ॥८४|| एत्थंतरम्मि सदं अइमहुरसरं निसामिउं सीया । पुच्छइ कयंतवयणं 'सद्दो किं राहवस्सेसो ?' ॥८५॥ तेण वि य समक्खायं 'सामिणि ! सद्दो न होइ रामस्स । एसो खु जण्हवीए सद्दो अइमहुरगंभीरो' ॥८६॥ जावेवं सो जंपइ ता पत्ता जण्हवि जणय धूया । उभयतडट्ठियपायवनिवडियकुसुमच्चियतरंगा ॥८७॥ १. सं.वा.सु. तुह ॥ ला. 'यमेत्तम्मि रहो ॥ ३. ला. “इ तओ गा ॥ ४. सं.वा.सु. वपाडियकुसुमुवियत' ॥ Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः गाह-झस-मगर-कच्छवसंघट्टच्छलियवियडकल्लोला । कल्लोलनिवहसंगमनिबद्धफेणावलीपउरा ॥८॥ पउमवरकमलकेसरनलिणीगुंजंतमहुयरुग्गीया । उग्गीयरवार्यन्नणसारंगनिविट्ठउभयतडा ॥८९॥ उभयतडहंस-सारस-चक्कायरमंतऽणेयकल्लोला । कल्लोलजणियकलरवसमाउलाइण्णगयजूहा ॥१०॥ गयजूहसमायड्डियविसमसमुव्विल्लविडविसंघाया । संघायजलाऽऽपूरियनिज्झरणझरंतसद्दाला ॥११॥ एयारिसगुणकलियं पेच्छंतीए महानइं गंगं । उत्तिण्णा वरतुरया परकूलं चेव संपत्ता ॥१२॥ अह सो कयंतवयणो वीरो वि य तत्थ कायरो जाओ । धरिलं सुदंसणरहं रुयइ तओ उच्चकंठेणं ॥९३॥ तं पुच्छइ वइदेही 'किं रुयसि तुम इहं अकज्जेणं ?' | तेण वि सा पडिभणिया "सामिणि ! वयणं निसामेहि ॥९४|| दित्तग्गि-विससरिच्छं दुज्जणवयणं पभू निसुणिऊणं । डोहलयमिसेण तुमं चेएइ अववायभयभीओ' ॥१५॥ तीए कयंतवयणो कहेइ नयराहिवाइयं सव्वं । दुक्खस्स य आमूलं सीयाए जं जहावत्तं ॥१६॥ "लच्छीहरेण सामिणि ! अणुणिज्जंतो वि राहवो अहियं । अववायपरिब्भीओ न मुयइ एयं असग्गाहं ॥९७।। न य माया नेव पिया न य भाया नेव लक्खणो सरणं । तुज्झ इह महारण्णे सामिणि ! मरणं तु नियमेणं" ॥९८।। सुणिऊण वयणमेयं वजेण व ताडिया सिरे सीया । ओयरिय रहवराओ मुच्छाविहलंघला पडिया ॥९९।। कह कह वि समासत्था पुच्छइ सेणावई इमं सीया। 'साहेहि कत्थ रामो? केदूरे वा वि साएयं ?' ॥१०॥ १. ला. यन्नियसा' || २. ला. धीरो ॥ ३. ला. धरिऊण संदणवरं रु° ॥ ४. ला. दोहलयनिहेण ॥ ५. सं.वा.सु. चत्ता अववायभीएण ॥ ६-७. ला. नेय ॥ ८. ला. 'वई तओ सी ॥ Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः अह भणइ 'कयंतमुहो अइदूरे कोसलापुरी देवि ! | अइचंडसासणं पुण कत्तो च्चिय पेच्छसे रामं ॥ १०१ ॥ तहवि य निब्भरनेहा जंपइ एयाइं मज्झ वयणाई । गंतूणं भणियव्वो पउमो सव्वायरेण तुमे ॥ १०२॥ जह “नय-विणयसमग्गो गंभीरो सोमदंसणसहावो । धम्माऽधम्मविहणू सव्वकलाणं च पारगओ ॥ १०३ ॥ अभवियजणवयणं भीएण दुगुंछणाइ अइरेणं । सामिय ? तुमे विमुक्का एत्थ अरण्णे अकयपुण्णा ॥१०४॥ जइ वि य तुमे महायस ! चत्ताऽहं पुव्वकम्मदोसेणं । तहवि य जणपरिवायं मा सामि ! तुमं गणेज्जासु ॥१०५॥ लोयाववायभयभीयएण जह सामि ! हं तए चत्ता । निद्दोसा- वि अरण्णे तह मा छड्डेज्ज सम्मत्तं ॥ १०६॥ दुक्खेण जओ लब्भइ एयं भवसायरस्स मज्झम्मि । एएणं चत्तेणं जीवा नरयम्मि निवडंति ॥ १०७॥ चिरसंवसहीएँ दुहं दुच्चरियं जं कर्ये तु मे सामि ! । तं मज्झ खमसु सव्वं मउयसहावं मणं काउं ॥ १०८॥ सामिय ! तुमे समाणं मयाए मह होज्ज दरिसणं णूणं । जइवि य अवरहसयं तहवि य सव्वं खमिज्जासु" ॥१०९॥ सा एव जंपिऊणं पडिया खरकक्करे धरणिवट्ठे । मुच्छानिमीलयच्छी पत्ता अइदारुणं दुक्खं ॥ ११०॥ दण धरणिवडियं सीयं सेणावई विगहामो । चितेइ "इहाऽरेण्णे कल्लाणी दुक्करं जियइ ॥१११॥ धिद्धी किं च विमुको पावोऽहं विगयलज्ज - मज्जाओ । जं निंदियमायारो परपेसणकारओ भिच्चो ॥ ११२ ॥ २३३ भिच्चस्स नरवईणं दिण्णाऽऽएसस्स पावनिरयस्स । न य हवइ अकरणिज्जं निंदियकम्मं तु जियलोए ॥११३॥ १. सं. वा. सु. कोसला इ वइदेहि ॥ २. सं. वा.सु. सामि फुडं ग° ॥ ३. सं. वा.सु 'ए बहुं दु° ॥ ४. सं.वा.सु. तुमं ॥ ५. सं. वा. सु. 'रण्णे एकल्ली दु° ॥ मूल. २-३० Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३४ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः पुरिसत्तणम्मि सरिसे जं आणा कुणइ सामिसालस्स । तं सव्वं पच्चक्खं दीसेइ फलं अहम्मस्स ॥ ११४॥ धिद्धी अहो ! अकज्जं जं पुरिसा इंदिएसु आसत्ता । कुव्वंति य भिच्चत्तं न कुणंति सुहालयं धम्मं" ॥११५॥ याणि य अण्णाणि य विलविय सेणावई तर्हि रणे । मोत्तूण जणयतणयं चलिओ साएयपुरहुत्तो ॥११६॥ सीया य तम्मि विगए रुयइ खणं मुच्छए खणं एकं । आससइ पुणरविखणं विलवइ अइगरुयसद्देणं ॥११७॥ " हा पउम ! हा नरुत्तम ! हा वि हलियजणसुवच्छल ! गुणोह ! । सामिय ! भयद्दियाए किं न महं दंसणं देसि ? ॥ ११८ ॥ तुह दोसस्स महाजस ! थेवस्स वि नत्थि इत्थ संदेहो । अइदारुणाण सामिय ! मह दोसो पुव्वकम्माणं ॥ ११९॥ किं इत्थ कुणइ ताओ कि च पई किं च बंधवजणो मे । दुक्खे अणुहविव्वे संपइ य उवट्ठिए कम्मे ॥ १२०॥ नूणं अण्णामि भवे घेत्तूण वयं पुणो मए भग्गं । तस्सोदएण एयं दुक्खं अइदारुणं जायं ॥१२१॥ अहवा पउमसरित्थं चक्कायजुयं सुपीइसंजुत्तं । भिण्णं पावाइ पुरा तस्स फलं मे धुवं एयं ॥ १२२॥ अहवा वि कमलसंडे विओइयं हंसजुयलयं पुवि । अइनिग्घिणाए संपइ तस्स फलं चेव भोत्तव्वं ॥ १२३॥ अहवा विमए समणा दुगंछिया परभवे अपुण्णाए ।. तस्स इमं अणुसरिसं भुंजेयव्वं महादुक्खं ॥१२४॥ हा ! पउम ! बहु गुणायर ! हा! लक्खण ! किं तुमं न संभरसि । हा ! ताय ! किं न याणसि एत्थाऽरण्णे ममं पडियं ? ॥ १२५ ॥ हा ! विज्जाहरपत्थिव ! भामंडल ! पाविणी इहं रणे । सोयण्ण वे निमग्गा तुमं पि किं मं न संभरसि ? ॥ १२६॥ १. सं. वा. सु. दरिसणं देहि ॥ २. सं.वा.सु. किं मे न ॥ Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः अहवा वि इहाऽरण्णे निरत्थयं विलंविएण एएण । किं पुण अणुहवियव्वं जं पुव्वकयं मए कम्मं" ॥१२७॥ एवं सा जणयसुया जावऽच्छइ ताव तं वणं पढमं । बहुसाहणो पविट्ठो नामेणं वज्जजंघनिवो ॥१२८॥ पुंडरियपुराहिवई गयबंधत्थं समागओऽरणे । घेत्तूण कुंजरवरे निग्गच्छइ साहणसमग्गो ॥ १२९॥ ताव य जे तस्स ठिया पुरस्सरा गहियपहरणा वरणा । सोऊण रुण्णसद्दं सहसा खुहिया विचिर्तिति ॥ १३० ॥ "गय- महिस-सरह - केसरि-वराह - रुरु- चमरसेविए रणे । का एसा अइकलुणं रुयइ इहं दुक्खिया महिला ? ॥१३१॥ किं होज्ज दिव्वकण्णा सुखइसावेण महियले पडिया ? । कुसुमाउहस्स किं वा कुविया य रई इहाऽरणे ?" ॥१३२॥ एवं सवियक्कमणा न य ते वच्वंति तत्थ पुरहुत्ता । सव्वे वि भडव्विग्गा वग्गीहूया य चिट्ठति ॥१३३॥ जावेवं तस्स चमू रुद्धा गंग व्व पव्वयवरेणं । ताव कणेरुविलग्गो पराइओ वज्जजंघनिवो ॥१३४॥ पुच्छ्इ आसण्णत्था 'केणंचिय तुम्ह भो ! पहो रुद्धो ? । दीसह समाउला भयविहलविसंठुला सव्वे' ॥१३५॥ जाव च्चिय उल्लवं दिति नरिंदस्स निययचारभडा । ताव य वरजुवईए सुणइ रुयंतीए कलुणसरं ॥ १३६ ॥ सरमंडलविण्णाया भणइ निवो 'जा इहं रुयइ मुद्धा । सा गुव्विणी निरुत्तं पउमस्स हवे महादेवी' ॥१३७॥ भणिओ भिच्चेर्हि पहू 'एव इमं जं तुमे समुल्लवियं । न कयाइ अलियवयणं देव ! सुयं जंपमाणस्स' ॥१३८॥ २३५ जाव य एसाऽऽलावो वट्टइ ताव य नरा समणुपत्ता | पेच्छंति जणयतनयं पुच्छंति य 'का तुमं भद्दे ? ॥१३९॥ १. ला. रोविएण ए ॥ २. ला. केण च्चिय तुम्ह गड़पहो ॥ ३. सं. वा.सु. 'स्स चारुसमरभडा ॥ ४. सं.वा.सु. ताव य नरा सम° ॥ Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३६ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भाग: सा पिच्छिऊण पुरिसे बहवे सन्नद्धबद्धतोणीरे । भयविहलवेविरंगी ताणाऽऽभरणं पणामेइ ॥१४०॥ तेहिं वि सा पडिभणिया 'किं अम्ह विभूसणेहि एएहिं । चिटुंतु तुज्झ लच्छी ववगयसोगा इओ होहि ॥१४१॥ .. पुणरवि भणंति "सुंदरि ! मोत्तुं सोगं भयं च एत्ताहे। जंपसु सुपसण्णमणा किं न मुणसि नरवई एयं ॥१४२॥ पुंडरियपुराहिवई सो य इहं वज्जजंघनरवसभो । चारित्त-नाण-दसणबहुगुणनिलओ जिणमयम्मि ॥१४३॥ संकाइदोसरहिओ निच्चं जिणवयणगहियपरमत्थो । पडिवण्णयसोडीरो सरणागयवच्छलो वीरो ॥१४॥ दीणाईणं च पुणो विसेसओ कलुणकारणुज्जुत्तो। पडिवक्खगयमयंदो सव्वकलाणं च पारगओ ॥१४५॥ एयस्स अपरिमेया देवि ! गुणा को इहं भणिउकामो । पुरिसो सयलतिहुयणे जो य महाबुद्धिसंपण्णो ?" ॥१४६।। जाव य एसाऽऽलावो वट्टइ तावाऽऽगओ नरवरिंदो । अवयरिय करेणूतो करेइ विणयं जहाजोग्गं ॥१४७॥ तत्थ निविट्ठो जंपइ 'वज्जमओ सो नरो न संदेहो । इह मोत्तुं कल्लाणी(णि?) जो जीवंतो गओ सगिहं' ॥१४८॥ ऐत्यंतरे पवुत्तो मंती सच्चाविऊण जणयसुयं । "नामेण वज्जजंघो एसो पुंडरियपुरसामी ॥१४९।। पंचाणुव्वयधारी वच्छे ! सम्मत्तउत्तमगुणोहो । देव-गुरुपूयणरओ साहम्मियवच्छलो धीरो" ॥१५०॥ एवं चिय परिकहिए सीया तो पुच्छिया य नरवइणा । 'साहेह कस्स दुहिया ? कस्स व महिला तुमं लच्छी ? ॥१५१॥ जं एव पुच्छिया सा सीया तो भणइ दीणमुहकमला । "अइदीहा मज्झ कहा संपइ निसुणेहि संखेवं ॥१५२॥ १. सं.वा.सु. तुज्झ ॥ २. सं.वा.सु. तु ।। ३. सं.वा.सु णनिचओ ॥ ४. ला. धीरो ॥ ५. सं.वा.सु. एत्यंतरं ॥ ६. सं.वा.सु. “कहिए ॥ ७. ला. कहा नरवइ ! नि | Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः २३७ जणयनरिंदस्स सुया भइणी भामंडलस्स सीयाऽहं । दसरहनिवस्स सुहा महिला पुण रामदेवस्स ॥१५३।। केगइवरदाणनिहे दाउं भरहस्स निययरज्जं सो । अणरणपत्थिवसुओ पव्वइओ जायसंवेगो ॥१५४॥ रामेण लक्खणेण य समंगया दंडयं महारणं । संबुक्कवहे नरवइ ! हरियाऽहं रक्खसिदेणं ॥१५५॥ अह ते बलेण सहिया नहेण गंतूण राम-सुग्गीवा । लंकापुरीए जुज्झं कुणंति समयं दहमुहेणं ॥१५६॥ बहु भडजीयंतकरे समरे लंकाहिवं विवाएउं । रामेण आणियाऽहं निययपुरि परमविभवेण ॥१५७॥ दट्ठण रामदेवं भरहो संवेगजायसब्भावो । घेत्तूण य पव्वज्जं सिद्धिसुहं चेव संपत्तो ॥१५८॥ सुयसोगसमावण्णा पव्वजं केगई वि घेत्तूणं । सम्माराहियर्चरणा तियसविमाणुत्तमं पत्ता ॥१५९॥ मज्झ य गब्भवसेणं जिणवंदणडोहलो समुप्पण्णो । ता नगरचेइयाई पणयाई मए असेसाई ॥१६०॥ पुप्फविमाणेण पिओ दंसिस्सइ जाव सेसजिणभवणे । ताव य महायणेणं विण्णत्तो राहवो एवं ॥१६१।। 'सामिय ! जणो पयंपइ जा सीया रावणेण परिभुत्ता । सा रामेणाऽऽणीया अहह ! न जुत्तं कयं पहुणा' ॥१६२।। इय तव्वयणं सोउं अयसकलंकस्स बीहमाणेण । निदोसा वि महायस ! मुक्का इह भीमरण्णम्मि ॥१६३॥ उत्तमकुलस्स लोए न य एवं खत्तियस्स अणुसरिसं । बहुसत्थपंडियस्स य धम्मठिई जाणमाणस्स" ॥१६४॥ एवं चिय वित्तंतं परिकहिऊणं ततो जणयधूया । माणसजलणुम्हविया रोवइ कलुणेण सद्देणं ॥१६५॥ १. सं.वा.सु. 'चरिया ॥ Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३८ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः रोयंतिं जणयसुयं दट्ठूण नराहिवो किवावणो । संथावणमइकुसलो जंपइ एयाई वयणाई ||१६६|| " मा रुयसु तुमं सीये ! जिणसासणतिव्वभत्तिसंपन्ने ? | किं वा दुक्खाऽऽयाणं अट्टज्झाणं समारुहसि ? ॥१६७॥ किं वा तुमे न नाया लोगठिई एरिसी निययमेव । अधुवत्त-असरणत्ता कम्माण विचित्तया चेव ? ॥१६८॥ किं ते साहुसयासे न सुयं जह निययकम्मपडिबद्धो । जीवो कम्मेण हओ हिँडइ संसारकंतारे ? ॥१६९॥ संजोग - विप्पओगा सुह- दुक्खाणि य बहुप्पयाराणि । पत्ताइं दीहकालं अणाई - निहणाई जीवेणं ॥ १७० ॥ जो सुसमणआरामं दुवयण अग्गीहिं डेहइ अविसेसो । अयसानलेण सो च्चिय पुणरुत्तं डज्झइ अणाहो ॥१७१॥ धण्णा तुमं कयत्था सलाहणिज्जा य एत्थ पुहइयले । चेइहरनमोक्कारं डोहल यं जा समल्लीणा ॥ १७२॥ अज्ज विय तुज्झ पुण्णं अत्थि इहं सीलसालिणी बहुयं । दिट्ठाऽऽसि मए जं इह गयबंधत्थं पविद्वेणं ॥ १७३॥ अहयं तु वज्जजंघो पुंडरियपुराहिवो जिणाऽऽणरओ । धम्मविहाणेण तुमं मह बहिणी होहि निक्खुत्तं ॥१७४॥ उट्ठेहि मज्झ नयरं वच्चसु तत्थेव चिट्ठमाणीए । तुह पच्छायवतविओ गवेसणं काहिई रामो" ॥१७५ ।। महुरवयणेहिं एवं सीया संथाविऊण (विया य ? ) नरवइणा । अह धम्मबंधवं तं लद्धूणं सा धि पत्ता ॥ १७६॥ अह तक्खणेण सिबिया उवणीया सुरविमाणसंकासा । ती समारुहिऊणं पुंडरिय पुरं गया सीया ॥ १७७॥ तत्थ य सुहंसुहेणं सा अच्छइ वज्जजंघनरवइणा । पूइज्जती निच्चं सीया भामंडलेणेव ॥१७८॥ १. ला. डज्झइ विसेसो ॥ Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३९ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः जं जं मणोभिरुइयं तं सव्वं कुणइ धम्मभगिणि त्ति । काऊण वज्जजंघो सीयाए पडिच्छए आणं ॥१७९॥ 'जय देवि ! सरस्सइ ! लच्छि ! कित्ति बुद्धी ! सिरीय ! बंभाणी !' । इय भण्णंती सा परियणेण तत्थऽच्छइ सुहेणं ॥१८०॥ सो वि य कयंतवयणो अहियपरिस्संतरहवरतुरंगो । सणियं सणियं जंतो संपत्तो पउमपासम्मि ॥१८१॥ पायपडणुट्ठिओ सो जंपइ "अइ भीसणम्मि रण्णम्मि । तुम्हाऽऽएसेण मए गुरुहारा छड्डिया सीया ॥१८२॥ सीह-ऽच्छभल्ल-चित्तय- गोमाऊरसियभीमसद्दाले । खर-फरुस-चंडवाए अण्णोण्णालीढदुमगहणे ॥१८३॥ जुझंतवग्घ-महिसय-पंचमुहावडियमत्तमायंगे । नउलोरगसंगामे सीहचवेडाहयवराहे ॥१८४॥ सरमुत्तासियवणयरकडयडभज्जंतरुक्खसद्दाले । करयररडंतबहुविहतरुच्छडाझडियपक्खिउले ॥१८५॥ गिरिणइसलिलुद्धाइयनिज्झरझज्झत्तिझत्तिनिग्घोसे । तिव्वऽच्छपरिग्गहिए अण्णोण्णच्छित्तसावज्जे ॥१८६॥ एयारिसविणिओए भयंकरे विविहसावयसमिद्धे । तुज्झ वयणेण सीया सामि ! मए छड्डिया रण्णे ॥१८७॥ नयणंसुदुद्दिणाए जं भणियं देव ! तुज्झ महिलाए । तं निसुणसु संदेसं साहिज्जंतं मए सव्वं ॥१८८॥ पायप्पडणोवगया सामि ! तुम भणइ महिलिया वयणं । 'अहयं जह परिचत्ता तह जिणभत्तिं म मुंचिहिसि ॥१८९॥ नेहाणुरागवसगो वि जो ममं दुज्जणाण वयणेणं । छड्डेहि अमुणियगुणो सो जिणधम्मं पि मुच्चिहिसि ॥१९०॥ निद्दोसाए वि महं दोसो न तहा जणो पहासिहिई । जह धम्मवज्जियस्सउ नरवइ ! लज्जाविहीणस्स ॥१९१॥ १. सं.वा.सु. तिव्वमुहापरिगहिए । Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः एयम्मि य एक्कभवे दुक्खं होही उ मं मुयंतस्स । । सम्मत्त-नाण-दसणरहियस्स भवे भवे दुक्खं' ॥१९२॥ एयं चिय संदिटुं सीयाए नेहनिब्भरमणाए । संखेवेण नराहिव ? तुज्झ मए साहियं सव्वं ॥१९३॥ सामिय ! सहावभीरू अहिययरं दारुणे महारण्णे । बहुसत्तभीसणरवे जणयसुया दुक्करं जियइ" ॥१९४॥ सेणावइस्स वयणं सुणिऊणं राहवो गओ मोहं । पडिकारेण विउद्धो कुणइ पलावं बहुवियप्पं ॥१९५।। "हा हा ! दुज्जणवयणेहिं तज्जिएणं मए अणज्जेणं । मूढेणं पक्खित्ता सीया अइदारुणे रण्णे ॥१९६।। हा ! पउमपत्तनयणे ! वियसियवरपउमगब्भसमगोरे ! । हा ! गुणरयणनिहाणे ! कत्तो मग्गेमि तं इण्हि ? ॥१९७॥ हा ! सोमचंदवयणे ! वयणं मे देहि देहि वैदेहि!। जाणिसि य तुज्झ विरहे मह हिययं कायरं निच्चं ॥१९८॥ निद्दोसा वि मयच्छी ! किवाविमुक्केण उज्झियाऽसि मए । रण्णे उत्तासणए न य नज्जइं कि पि पाविहिसि ? ॥१९९॥ हरिणि व्व जूहभट्ठा छुहा-तिसावेयणापरिग्गहिया । रविकिरणसोसियंगी मरिहिसि कंते ? महारण्णे ॥२००॥ किं वा वग्घेण वणे खद्धा सीहेण जइ(अह)व घोरेणं । किं वा वि धरणिसइया अकंता मत्तहत्थीणं ? ॥२०१॥ पायवखयंकरेणं जलंतजालासहस्सपउरेणं । किं वणदवेण दड्डा सहायपरिवज्जिया कंते ? ॥२०२॥ को रयणजडीण समो होइ नरो सयलजीवलोयम्मि। - जो मज्झ पिययमाए आणइ वत्ताइ विहलाए ?" ॥२०३॥ पुच्छइ पुणो पुणो वि य परमो सेणावइं पयलियंसू । 'कह सा घोरे रण्णे धरिही पाणे जणयधूया ?' ॥२०४॥ १. ला. होही ममं मु ॥ २. सं.वा.सु. "हि पडिवयणं ॥ ३. सं.वा.सु. जइवि ॥ ४. सं.वा.सु. किं वा दवेण ॥ Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४१ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः एव भणिओ कयंतो लज्जाभरपिल्लिओ समुल्लावं । न य देइ ताव रामो कंतं सरिठं गओ मोहं ॥२०५॥ एत्थंतरम्मि पत्तो सहसा लच्छीहरो पउमनाहं । आसासिऊण जंपइ "नाह ? निसामेह मह वयणं ॥२०६॥ धीरत्तणं पवज्जसु सामिय ? मोत्तूण सोयसंबंधं । उवणमइ पुव्वविहियं लोगस्स सुहा-ऽसुहं कम्मं ॥२०७॥ आयासे गिरिसिहरे जले थले दारुणे महारण्णे । जीवो सकम्मपडिओ रक्खिज्जइ पुव्वसुकएणं ॥२०८॥ अह पुण पावस्सुदए रक्खिज्जतो वि धीरपुरिसेहिं । जंतू मरइ निरुत्तं संसारठिई इहं लोए" ॥२०९॥ एवं सो पउमो पबोहिओ लक्खणेण कुसलेण । छड्डेइ किंचि सोयं देइ मणं निययकरणिज्जे ॥२१०॥ सीयाए गुणसमूहं सुमरंतो जणवओ नयरवासी । रुयइ पेयलंतनित्तो अईव सीयं पसंसंतो ॥२१॥ वीणा-मुयंग-तिसरिय-वंसखुग्गीयवज्जिया नयरी । जाया कंदियमुहला तद्दियह सोगसंतत्ता ॥२१२॥ रामेण भद्दकलसो भणिओ 'सीयाए पेयकरणिज्जं । सिग्घं करेहि विउलं दाणं च जहच्छियं देहि' ॥२१३।। 'जं आणवेसि सामिय !' भणिऊणं एव निग्गओ तुरियं । सव्वं पि भद्दकलसो करेइ दाणाइकरणिज्जं ॥२१४॥ जुवईण सहस्सेहिं अट्ठहिं अणुसंतयं पिं परिकिण्णो । पउमो सीएक्कमणो सुविणे वि पुणो पुणो सरइ ॥२१५।। एवं सणियं सणियं सीयासोए गए विरलभावं । सेसमहिलासु पउमो कह कहवि धिइं समणुपत्तो ॥२१६।। अह पुंडरीयनयरिट्ठियाए सीयाए गभभावेण । आपंडुरंगलट्ठी सामलवयणत्थणा जाया ॥२१७॥ १. ला. एयं ॥ २. सं.वा.सु. पइलिन्तनित्तो ।। ३. ला. आणवेहि ॥ ४. सं.वा.सु. पि करणिज्जो ॥ ५. ला. "भबीयाए । मूल. २-३१ Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४२ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः बहुमंगलसंपुण्णं देहं अइविन्ममा गई मंदा निव्वायनयणदिट्ठी मुहकमलं चेव सुपसण्णं ॥२१८॥ पिच्छइ निसासु सुमिणे कमलिणिदलपुडयविमलसलिलेणं । अहिसेयं कीरंतं गएसु अइचारुरूवेसु ॥२१९॥ मणि-दप्पणे विसंते निययमुहं असिवरे पलोएइ । मोत्तूण य गंधव्वं सुणेइ णवरं धणुयसदं ॥२२०॥ चक्खं देइ अणिमिसं, सीहाणं पंजरो यरत्थाणं । एवंविहपरिणामा गमेइ सीया तहिं दियहा ॥२२१॥ एवं नवमे मासे संपुण्णे सवणसंगए चंदे । सावणपंचदसीए सुयाण जुयलं पसूया सा ॥२२२॥ अह ताण वज्जजंघो करेइ जम्मूसवं महाविउलं । गंधव्व-गीय-वाइयपडुपडह-मुयंगसद्दालं ॥२२३॥ पढमस्स कयं नामं अणंगलवणो अणंगसमरूवो । तस्स गुणेसु सरिच्छो बीओ मयणंकुसो नामं ॥२२४॥ अह ते दोन्नि वि कुमरा पवड्डमाणा कमेण संजाया । नीसेसकलाकुसला बहुजणमणकयचमक्कारा ॥२२५॥ संपत्ता य कमेणं बहुकामिणिजणमणोहरमुयारं ।। नीसेसविलाससहं तारुण्णमणंगकुलभवणं ॥२२६॥ अह वज्जजंघराया भोगसमत्थे इमे वियाणेउं । पाणिग्गहणनिमित्तं निरूवए ताण कण्णाओ ॥२२७।। लच्छीमईए धूया ससिचूला नाम उत्तमा कण्णा । बत्तीसकण्णयजुया पढमस्स निरूविया रण्णा ॥२२८॥ बीयस्स निमित्तेणं पिहूनरिंदस्स संतियं कण्णं । नामेण कणयमालं सुमरिय दूयं विसज्जेइ ॥२२९॥ सो जंपइ पिहुरायं 'देव ! अहं वज्जजंघनरवइणा । पट्ठविओ तुह पासे इमेण कज्जेण निसुणेसु ॥२३०॥ १. सं.वा.सु. णं कामिणिजणमणमणो || २. ला. लच्छिम ॥ Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४३ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः नामेण कणयमाला जा धूया तुम्ह गुणजुया सा उ । मयणंकुसस्स दिज्जंउ' इय भणिओ भणइ पिहुराया ॥२३१॥ 'जस्स कुलं पि न नज्जइ कह धूयं देमि तस्स रे दूय !' । इय भाणिरो तुमं पि हु निग्गहजोग्गो फुडं होसि ॥२३२।। इय भणिओ सो दूओ साहइ सव्वं पि वज्जजंघस्स । सो वि रुसिऊण वच्चइ विक्खेवेणं पिहुस्सुवरि ॥२३३॥ तं विग्गहं सुणेउं सनिमित्तं ते तओ कुमारवरा । रुब्भंता वि कुमारेहिं झत्ति पत्ता निवसमीवं ॥२३४॥ तो तेहिं कुमारेहिं पिहुरायं सबलवाहणं समरे । जिणिऊणं सा कण्णा परिणीया सव्वपच्चक्खं ॥२३५॥ अन्ने ये बहू देसा वसीकया तेहिं बलसमग्गेहिं । जाया महानरिंदा विक्खाया सयलभुवम्मि ॥२३६।। अह अन्नया कयाई एवं ते नारएण संलत्ता । 'राहव-लक्खणलच्छि वच्छ ! तुमे दोवि पावेह' ॥२३७॥ तेहिं तओ पडिभणियं 'के ते मुणि ! राम-लक्खणा जाण । रिद्धीए आसीसह ?' नीसेसं कहइ एसो वि ॥२३८॥ तो तव्वयणं सोउं रुसिऊणं दो वि सव्वरिद्धीए । गंतुं जणएहि समं कुणंति समरं महाघोरं ॥२३९॥ जाव य निरत्थयाइं जायाई ताण सव्वसत्थाई । लवकुमरस्स वहत्थं ता रामो मुयइ हलमुसले ॥२४०॥ ताई पि निष्फलाइं जायाइं तम्मि खेत्तमेत्ताई। ता चि तासोयमहण्णवम्मि अह राहवो पडिओ ॥२४१।। चिंतइ "विहलाइं कहं जायाई मज्झ दिव्वसत्थाई । एवं अदिट्ठपुव्वं पच्चक्खं दीसए अज्ज" ॥२४२॥ लच्छीहरो वि रुसिउं गयमाहप्पेसु सव्वसत्थेसु । संख-गया-धणुमाइसु सुमरइ अह चक्करयणं तु ॥२४३।। १. ला. 'त्ता पिहुस' ॥ २. ला. वि ॥ ३. ला. रुसिङ ते दो ॥ ४. सं.वा.सु. "ति घोरं महासमरं ।। ५. ला. निप्पभाई ॥६. ला. सयलस ॥ Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४४ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भाग: करपत्तं तममोहं चक्कं जालासहस्सपरिवारं । लच्छीहरेण मुक्कं कुर्सस्स तेलोक्कभयर्जणयं ॥२४४॥ गंतूण कुसंसयासं तं चक्कं वियलियप्पहं सिग्धं । पुणरवि य पडिनियत्तं संपत्तं लक्खणस्स करे ॥२४५।। तं लक्खणेण चकं खेत्तं मयणंकुसस्स रोसेणं । विफलं तु पडिनियत्तं पुणो पुणो पवणवेगेणं ॥२४६॥ दट्ठण तहाभूयं रणंगणे लक्खणं समत्थभडा । जति विम्हियमणा "किं एवं अन्नहाजायं ? ॥२४७।। किं कोडिसिलाईयं अलियं चिय लक्खणे समणुजायं । कज्जं मुणिवरविहियं चक्कं जेणऽन्नहाकुणइ" ॥२४८॥ अह भणइ लच्छिनिलओ विसायपरिवज्जिओ धुवं एए । बलदेव-वासुदेवा उप्पण्णा भरहेवासम्मि ॥२४९॥ तं लक्खणस्स वयणं सोऊणं लव-कुसाणुवज्झाओ । सिद्धत्थो नामेणं सनारओ सिद्धपुत्तो उ ॥२५०।। जंपइ "मा कुण अधिई लक्खण ! तं केसवो इहं भरहे । रामो य बलो कि होइ अण्णहा जमिह मुणिभणियं ॥२५१॥ सीयासुया य एए लवणं कुसनाम कुस दोण्णि वि कुमारा । गब्भट्ठिएसु जेसुं वइदेही छड्डिया रण्णे ॥२५२॥ सिद्धत्थ-नारएहिं तम्मिय सिढे कुमारवुत्तंते । लक्खण-रामा दोण्णि वि बाहजलोहलियगंडयला ॥२५३।। वच्चंति सुयसमीवं ते वि हु दट्टण ते समायते । अइनेहनिब्भरंगा पडंति पाएसु दुण्हं पि ॥२५४॥ अवगूहिऊण पुत्ते कुणइ पलावं तओ पउमनाहो । अइनेहनिब्भरमणो विमुक्कनयणंसु जलनिवहो ॥२५५॥ 'हा हा ! मए अणज्जेण पुत्त ! गब्भट्ठिया अकज्जेणं । सीयाय समं चत्ता भयजणणे दारुणे रण्णे ॥२५६॥ १. सं.वा.सु. लवस्स ॥ २. ला. जणणं ॥ ३. सं.वा.सु. लवस' ॥ ४. सं.वा.सु. णे तक्खणे स' ॥ ५. सं.वा.सु. हमज्झम्मि ॥ ६. सं.वा.सु. लवण-मयणंकुस दोण्णि Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः हा ! विउलपुण्णया वि हु सीयाए जं मए वि संभूया । उयरत्था अघोरं दुक्खं पत्ता उ अडवीए ॥ २५७॥ तुभेहिं दिट्ठेहिं सीया जियइ त्ति निच्छ्यं एयं । एसो य वज्जजंघो परमत्थेणं महं बंधू ॥२५८॥ ईय भणिऊणं दोण्णि वि लक्खण-रामा मणोरहसएहिं । कोसलपुरीइ परमं आणंदमहं पयट्टंति ॥२५९॥ तत्तो बिहीसणाई समत्थसुहडा भणंति पउमाभं । "सामिय ! दुक्खं चिट्ठइ जणयसुया परविएसम्म ॥ २६०॥ ता काऊण पसन्नं चित्तं आणेज्जऊ इहं सीया" । 'कह जणजणियववायं पेच्छामि तयं' भणइ रामो ॥ २६९ ॥ 'जइ पुहइयलं सयलं एयं सवहेण पत्तियावेइ । तो तीइ समं वासो होहि न य अन्नभेएणं ॥ २६२॥ एवं ति खयरेहिं पडिवज्जिय मेलिओ जणो सव्वो । आवासियो य तुरियं नयरीए बाहिरुद्देसे ॥ २६३॥ मंचा कया विसाला पंच्छामिहि मंडवा मणभिरामा । तेसु य जणो निविट्ठो सवहिक्खणकंखुओ सव्वो ॥२६४॥ तो रामसमाइट्ठा सुग्गीवाई भडा खणद्धेणं । पुंडरियपुरं गंतुं सीयाभवणम्मि पविसंति ॥ २६५ ॥ काऊण य जयसद्दं सीयं पणमंति खेयरा सव्वे । विय ससंभमाए अहियं संभासिया तीए ॥ २६६ ॥ अह ताण निविट्ठाणं जंपइ सीया सनिंदणं वयणं । " एयं मज्झ सरीरं कयं च दुक्खासयं विहिणा ||२६७|| अंगाई इमाई मह दुज्जणवयणाणलेण दड्ढाई । खीरोयसायरस्स वि जलेण नइ निव्वुइं जंति" ॥२६८॥ २४५ अह ते भांति "सामिणि ! एयं मेल्लेहि दारुणं सोयं । सो पावाण वि पावा जो तुज्झ लएइ अववायं ॥ २६९ ॥ १. ला. महाबंधू ॥ २. ला. एव भणिऊण ॥। ३. ला. पवट्टंति ॥ ४. सं.वा.सु. पेच्छामिह मंडवा ॥ ५. ला. नय ।। ६. ला. तुम्ह ॥ Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४६ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः को उक्खिवइ वसुमई ? को पियइ फुलिंगपिंगलं जलणं ? । को लेहइ जीहाए ससि - सूरतपूणि मूढप्पा ? ॥२७०॥ जो गिण्हइ अववायं इत्थ जए तुज्झ सुद्धसीलाए । सो मा पावउ सोक्खं कयाइ लोए अलियवाई ॥ २७१ ॥ एयं पुप्फविमाणं विसज्जियं तुज्झ पउमनाहेणं । आरुहसु देवि ! सिग्घं वच्चामो कोसलानयरिं ॥ २७२॥ पउमो देसो य पुरी न य सोहं दिति विरहियाणि तुमे । जह तरुभवणागासं विवज्जियं चंदमुत्तीए " ॥ २७३ ॥ सा एव भणिय संती सीया अववायविहुणणट्ठाए । आरुहिय वरविमाणं साएयपुरी गया सुजवा ॥२७४॥ रामस्स सन्नियासं तच्चरियंतीए जणयधूयाए । सह पत्थवेहिं अग्घं विहेइ लच्छीहरो विहिणा || २७५ || दट्ठूण आवयंति सीयं चिंते हो तो । 'कह उज्झिया वि न मुया एसा सत्ताउले रण्णे ? ' ॥२७६॥ काऊण अंजलिपुडं पणिवइया राहवस्स चलणेसु । सीया बहुप्पयारं परिचितंती ठिया पुरओ ॥२७७॥ भइ 'जइ वहसि नेहं एवं गए वि य पयच्छ मे आणं । होऊण सोमहियओ कि कायव्वं मए एत्थ ?' ॥ २७८ ॥ रामो भइ 'तुह पिए ! अहयं जाणामि निम्मलं सीलं । नवरं जणाऽववायं विगयमलं कुणसु दिव्वेणं ॥ २७९॥ भणिऊण एवमेयं जंपइ सीया सुणेहि मह वयणं । "पंचसु दिव्वेसु पहू लोगमहं पत्तियावेमि ॥ २८०॥ आरोहामि तुलाए जलणं पविसामि लेमि फालं च । उग्गं च पियामि विसं अन्नं पि करेमि जं भणसि" ॥२८१॥ परिचिंतिऊण रामो जंपइ 'पविसरसु पावयं सीए !' । तीए वि य सो भणिओ 'एवमिणं नत्थि संदेहो ' ॥ २८२॥ १. सं.वा.सु. तह भ° ॥ Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४७ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः पडिवण्णम्मि य समयं तम्मि य सीयाए जणवओ सोउं । पयलंतअंसुनयणो जाओ अइदुक्खिओ विमणो ॥२८३॥ एयंतरे पवुत्तो सिद्धत्थो "सुणसु नाह ! महवयणं । न सुरेहिं वि सीलगुणा वण्णिज्जंती विदेहाए ॥२८४॥ पविसिज्ज व पायालं मेरू लवणोयहि व्व सूसिज्जा । न हु सीलस्स विवत्ती होज्ज पहू ! जणयधूयाए ॥२८५।। विज्जामंतेण मए पंचसु मेरूसु चेइयहराई । अहिवंदियाइं राहव ! तवो य चिण्णो सुइरकालं ॥२८६।। तं मे हवउ महाजस ? विफलं जं तत्थ पुण्णमाहप्पं । जइ सीलस्स विणासो मणसा वि य अस्थि सीयाए" ॥२८७॥ पुणरवि भणइ सुभणिओ सिद्धत्थो 'जइ अखंडियचरित्ता । सीया तो जलणाओ उत्तरिही कणयलट्ठिव्व' ॥२८८॥ गयणे खेयरलोगो जंपइ धरणीयरो महियलत्थो । 'साहु त्ति साहु ! भणियं सिद्धत्थ ! तुमेरिसं वयणं' .॥२८९॥ सीया सई सइ च्चिय भणइ जणो तत्थ उच्च कंठेणं । 'न य होइ विगारत्तं पउम ! महापुरिसमहिलाणं' ॥२९०॥ एवं सव्वो वि जणो रोवंतो भणइ गग्गरसरेणं । 'राहव ! अइनिक्कलुणं मा ववससु एरिसं कम्म' ॥२९१॥ पउमो भणइ 'जइ किवा तुझं चिय एत्थ अत्थि तणुया वि । मा जंपह अइचवला सीयापरिवायसंबंधं' ॥२९२॥ रामेण तओ भणिया पासत्था किंकरा खणह वावी । तिण्णेव य हत्थसया समचउरंसावगाढा य ॥२९३॥ पूरेह इंधणेहिं कालागरु-चंदणाइथूलेहिं । चंडं जालेह लहुं वावीए सव्वओ अग्गि ॥२९४॥ जं आणवेसि सामिय ! भणिऊणं एव किंकरगणेहिं । तं चेव वाविाई कम्मं तु अणुट्ठियं सव्वं ॥२९५॥ १. ला. 'माइं॥ Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४८ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः एत्थंतरम्मि केवलवरनाणं सयलभूसणमुणिस्स । तत्थेव समुप्पण्णं उज्जाणे तस्स महिमत्थं ॥२९६॥ सुरपण्डिो सुरिंदो समागओ तत्थ दिव्वरिद्धीए । अह सीयावुत्तंतो अवंतरालम्मि सच्चविओ ॥२९७॥ दटुं हरिणगमेसी जणयसुयासंतियं तु वित्तं । साहेहि अमरवइणो "पेच्छ पहू ! दुक्करं एयं ॥२९८॥ देवाण वि दुप्फरिसो हुयासणो सव्वसत्तभयजणणो । कह सीयाए महायस ! पवंचिओ घोरउवसग्गो ॥२९९॥ जिणधम्मभावियाए पयव्वयाए विसुद्धसीलाए । एवंविहाए सुरवइ ? कह होइ इमो उ उवसग्गो" ॥३००॥ सो सुरवइणा भणिओ अहयं वच्चामि वंदिउं साहुं । तं पुण वेयावच्चं करेहि सीयाए गंतूणं ॥३०१॥ इय भणिऊणं इंदो पायब्भासं मुणिस्स संपत्तो । हरिणगमेसी वि तओ गओ य सीयासमीवम्मि ॥३०२।। तं पेच्छिऊण वावि तणकट्ठसुपूरियं अइमहं तिं । पउमो समाउलमणो चितेइ बहुप्पयारं ति ॥३०३॥ "कत्तोऽहं वइदेहि पेच्छिस्सं विविहगुणसमाइण्णं । नियमेण एत्थ मरणं पाविहिइ हुयासणे दित्ते ॥३०४॥ जंपिहिइ जणो सव्वो जह "एसा जणयनंदणी सीया । अववायजणियदुक्खा मया य जेलणं पविसिऊण ॥३०५॥ तइया हीरंतीए नेच्छंतीए य सीलकलियाए । लंकाहिवेण सीसं किं न लुयं मंडलग्गेणं ॥३०६॥ एवंविहाइ मरणं जइ न हु हुंतं च जणयतनयाए । निव्वडिओ सीलगुणो होतो य जसो तिहुयणम्मि ॥३०७।। अहवा जं जेण जहा मरणं समुवज्जियं सयललोए । तं तेण पावियव्वं नियमेण न अन्नहा होई" ॥३०८॥ १. सं.वा.सु. जलणम्मि वि ॥ २. ला. हवइ ॥ Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४९ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः एयाणिय अन्नाणि य चितंतो जाव तत्थ पउमाभो । चिट्ठइ ताव हुयवहो पज्जलिऊणं समाढत्तो ॥३०९॥ चंडानिलाहएणं धूमेणं बहलकज्जलनिभेणं । संछण्णं गयणयलं पाउसकाले व्व मेहेहिं ॥३१०॥ धगधगधगितसद्दो पज्जलिओ हुयवहो कणयवण्णो । गाउयपरिमाणासु य जोण्हासु नहं पदीवंतो ॥३११॥ कि होज्ज दिणयरसयं समुग्गयं किं च महियलं भेत्तुं । उप्पायनगवरिंदो विणिग्गओ दूसहपयावो ॥३१२॥ अइधवलचंचलाओ सव्वत्तो विप्फुरंति जालाओ । सोयामणीउ नज्जइ गयणयले उग्गतेयाओ ॥३१३॥ एवंविहम्मि जलणे पज्जलिए उट्ठिया जणयधूया । दाऊण काउसग्गं थुणइ जिणे उसहमाईए ॥३१४।। सिद्धा य तहाऽऽयरिया साहू जगविस्सुया उवज्झाया । पणमइ विसुद्धहियया पुणो विमुणिसुव्वयं सिरसा ॥३१५।। एए नमिऊण तओ जंपइ "सच्चेण साविया सव्वे । निसुणंतु लोगपाला मह वयणं सासणसुरा य ॥३१६।। जइ मण-वयण-तणूहिं रामं मोत्तूण परनरो कोइ । सुविणे वि हु अहिलसिओ तो डहउ इमो ममं अग्गी ॥३१७॥ अह पुण मोत्तूण पई निययं अण्णो ने वासिओ हियए । ता मा डहउ हुयवहो जइ सीलगुणस्स माहप्पं" ॥३१८॥ सा एव जंपिऊणं तओ पविट्ठाऽनलं जणयतणया ।। जायं जलं सुविमलं सुद्धा दढसीलसंपण्णा ॥३१९॥ ण य दारुयाणि न तणं ण य हुयवहसंतिया उ इंगाला । नवरं आलोइज्जइ वावी सव्वत्थ जलभरिया ॥३२०॥ भेत्तूण धरणिवढे उच्चलियं तं जलं गुलुगुलितं । वियडगभीरावत्तं संघटुटेतफेणोहं ॥३२१॥ १. ला. परिणाहासु ॥ २. ला. न यासि णे हियए । मूल. २-३२ Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५० मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः झज्झं ति झत्ति कत्थइ, अन्नत्तो दिलिदिलि त्ति सद्दालं । पवहइ जलं सुभीमं उम्मग्गपयट्टकल्लोलं ॥३२२॥ जाव य खणंतरिक्कं ताव च्चिय खुभियसागरसमाणं । सलिलं कडिप्पमाणं जायं च तओ जणाणुवरिं ॥ ३२३॥ सलिलेण तओ लोगो सिग्घं चिय वुब्भिउं समाढत्तो । विज्जाहरा वि सव्वे उप्पइया नहयलं तुरिया ॥ ३२४॥ र्वरसिप्पिएसु वि कया संखुभिया तत्थ मंचसंघाया । ताहे जणो निरासो वुब्धंतो विलविडं लग्गो ॥ ३२५ ॥ 'हा देवि ! हा सरस्सइ ! परितायसु धम्मवच्छले ! लोगं । उदएण वुब्भमाणं सबालवुड्डाउलं दीणं ॥ ३२६॥ दट्ठूण हीरमाणं लोगं ताहे करेसुं जणयसुया । सलिलं फुसइ पसंतं जायं वावीसमं सहसा ॥३२७॥ ववगयसलिलभओ सो सव्वजणो सुद्धमाणसो वाविं । पेच्छइ विमलजलोहं कमलुप्पलभरियकुवलयलं ॥३२८॥ सुरहिसयवत्तकेसरनिलीणगुंजंतमहुयरुग्गीयं । चक्काय-हंस-सारसनाणाविहसउणगुणकलियं ॥ ३२९॥ मणि-कंचणसोवाणं तीए वावीए मज्झयारत्थं । पउमं सहस्सपत्तं तस्स य सीहासणं उवरिं ||३३०|| दिव्वंसुयपरिछणे तत्थ उ सीहासणे सुहनिविट्ठा । रेहइ जणयनिवसुया पउमद्दहवासिणि व्व सिरी ||३३१|| देवेह तक्खणं चिय विज्जेज्जइ चामरेहिं दिव्वेहिं । गणाउ कुसुमवुट्ठी मुक्का य सुरेहिं तुट्ठेहिं ॥ ३३२ ॥ सीयाइ सीलनिहसं पसंसमाणा सुरा नहयलत्था । नच्वंति य गायंति य साहुक्कारं विमुंचंता ॥३३३॥ गणे समाहयाई तूराई सुरगणेहिं विविहाई । सद्देण सयललोगं नज्जइ आवरयंताई ||३३४|| १ - २. तृतीयार्थे सप्तमी ज्ञेयाऽत्र ॥ Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५१ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः विज्जाहरा य मणुया नच्चंता उल्लवेंति परितुट्ठा । सिरिजणयरायधूया सुद्धा दित्तानले सीया ॥३३५॥ एत्थंतरे कुमाराः लवणं-उंकुस नेहनिब्भरा गंतुं । पणमंति निययजणणि ते वि सिरे तीए अग्घाया ॥३३६।। रामो वि पेच्छिऊणं कमलसिरि चेव अत्तणो महिलं । जंपइ य समीवेत्थो मज्झ पिए ! सुणसु वयणमिणं ॥३३७।। "एयारिसं अकज्जं न पुणो काहामि तुज्झ ससिवयणे ! । सुंदरि ! पसण्णहियया होहि महं खमसु दुच्चरियं ॥३३८॥ महिलाण सहस्साइं अट्ठ ममं ताण उत्तमं भद्दे ! ॥ अणुहवसु विसयसोक्खं मज्झ वि आणा तुम दिती ॥३३९॥ पुप्फविमाणारूढा खेयरजुवईसु परिमिया कंते !। वंदसु जिणभवणाई समं मए मंदराईणि ॥३४०॥ बहुदोसस्स मह पिए कोवं मोत्तूण खमसु दुच्चरियं । अणुहव सलाहणीयं सुरलोगसमं विसयसोक्खं" ॥३४१॥ तो भणइ पई सीया "नरवइ ! मा एव होहि उव्विग्गो । न य कस्सइ रुट्ठाऽहं एरिसयं अज्जियं पुव्वं ॥३४२॥ न य देव ! तुज्झ रुट्ठा न चेव लोगस्स अलियवाइस्स । पुव्वज्जियस्स राहव ! रुट्ठाऽहं निययकम्मस्स ॥३४३।। तुज्झ पसाएण पहू ? भुत्ता भोगा सुरोवमा विविहा । संपइ करेमि कम्मं तं जेण न होमि पुण महिला ॥३४४॥ इंदधणु-फेण-बुब्बुयसमेसु भोगेसु दुरहिगंधेसु । किं एएसु महायस ! कीरइ बहुदुक्खजणएसु ॥३४५।। बहुजोणिसयसहस्सा परिहिंडंती अहं अपरितंता । इच्छामि दुक्खमोक्खं संपइ जिणदेसियं दिक्खं" ॥३४६|| एव भणिऊण सीया ववगयसोगा करेण वरकेसा । उप्पाडइ निययसिरे परिचत्तपरिग्गहारंभा ॥३४७।। १. सं.वा.सु. "वत्थो झत्तिं पिए ! सुणसु मह वयणं । २. ला. तुमं देवी ॥ ३. अत्र तृतीयार्थे सप्तमी ज्ञेया ॥ Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५२ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भाग: मरगयभिगंगनिभे केसे ते पिच्छिऊण पउमाभो । मुच्छानिमीलियच्छो पडिओ धरणीयले सहसा ॥३४८॥ जाव य आसासिज्जइ पउमाभो चंदणाइदव्वेहिं । ताव मुणि सव्वगुत्तो दिक्खियअज्जाण अप्पेइ ॥३४९॥ जाया महव्वयधरी चत्तेक्कपरिग्गहा समियपावा । मयहरियाए समाणं गया य मुणिपायमूलम्मि ॥३५०॥ गोसीस-चंदणाइसु आसत्थो राहवो निरिक्खेइ । सीयं अपिच्छमाणो रुट्ठो आरुहइ मत्तगयं ॥३५१॥ ऊसियसियायवत्तो सुललियधुव्वंतचामराजुयलो । परिवारिओ भंडेहिं नज्जइ इंदो व्व देवेहिं ॥३५२॥ अह भाणिउं पयत्तो "मह घरिणी विमलसुद्धचारित्ता । देवेहिं पाडिहेरं किं च कयं एत्थ वि सढेहिं ॥३५३।। सीयं विलुत्तकेसि जइ देवा मह लहुं न अप्पंति । देवाण न देवत्तं करेमि सिग्धं न संदेहो ॥३५४॥ को इच्छइ मरिडं जे कस्स कयंतेण समरियं अज्जं । : जो मज्झ हिययइटुं धरेइ पुरिसो तिहुयणम्मि ॥३५५।। जइवि य विलुत्तकेसी अज्जाणं तत्थ मज्झयारत्था । तह वि य आणेमि लहुं वइदेहिं संगयसरीरं" ॥३५६।। एयाणि य अन्नाणि य जंपतो लक्खणेण उवसमिओ ॥ पउमो नरवइसहिओ साहुसयासं समणुपत्तो ॥३५७।। सरयरविसरिसतेयं दट्टणं सयलभूसणं रामो । ओयरियगयवराओ पणमइ तं चेव तिविहेणं ॥३५८।। सोऊण तस्स पासे धम्म संवेगभाविओ रामो । लक्खणसहिओ पत्तो जत्थऽच्छइ साहुणी सीया ॥३५९॥ रामेण तओ सीया दिट्ठा अजाण मज्झयारत्था । सेयंबरपरिहाणा तारासहिय व्व ससिलेहा ॥३६०॥ Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५३ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः एवंविहं निएउं संजमगुणधारिणी पउमनाहो । चितेइ "कह पवण्णा दुक्करचरियं इमा सीया ॥३६१।। एसा मज्झ भुओयरमल्लीणा निययमेव सुहललिया। कह दुव्वयणचडयरं सहिही मिच्छत्तमहिलाणं ? ॥३६२॥ जाए बहुप्पयारं भुत्तं चिय भोयणं रससमिद्धं । सा कह लट्ठमलट्ठा भिक्खा भुंजिहिइ परदिण्णा ? ॥३६३।। वीणावंसरवेमं उवगिजंती उजासुहं सइया । सा कह लहिही निदं संपइ फरुसे धरिणिवढे ? ॥३६४॥ सा बहुगुणगणनिलया सीलवई निययमेव अणुकूला । परपरिवाएण मए मूढेणं हारिया सीया" ॥३६५॥ एयाणि य अन्नाणि य परिचितेऊण तत्थ पउमाभो । परमत्थमुणियकरणो पणमइ ताहे जणयधूयं ॥३६६।। तो भणइ रामदेवो 'एक चेव परिवसंतेणं । जं चिय तुह दुच्चरियं कयं मए तं खमिज्जासु' ॥३६७।। एवं सा जणयसुया लक्खणपमुहेहि नरवरिंदेहि । अभिवंदिया समाणी अहियं परितुट्ठहियएहिं ॥३६८॥ अभिवंदिऊण सीयं लद्धासीसो य राहवो चलिओ । भडचक्केण परिगओ संपत्तो अत्तणो भवणे ॥३६९॥ सीया वि निक्कलंकं सामण्णं पालिऊण पज्जते । अणसणविहिणामरिठं संजाया अच्चुए इंदो ॥३७०॥ अन्नभवे सीयाए वेगवईनामियाए लोगेण । पूइज्जंतो दिट्ठो सुदंसणो नाम वरसाहू ॥३७१॥ तो मच्छरेण तीए कहियं सव्वस्स तत्थ लोगस्स । जह 'एसो उज्जाणे महिलाए समं मए दिट्ठो' ॥३७२।। तत्तो गामजणेणं अणायरो मुणिवरस्स आढत्तो । तेण वि य कओ सिग्घं अभिग्गहो धीरपुरिसेणं ॥३७३॥ १. ला. सीलमई ॥ Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः 'जइ मज्झ इमो दोसो फिट्टिहिइ अलज्जदुज्जणनिमित्तो । तो होही आहारो' भणियं चिय एव साहूणं ॥३७४॥ तो वेगवईए मुहं मूणंचिय देवयानिओगेणं । भणइ तओ सा 'अलियं तुम्हाण मए समक्खाय' ॥३७५।। तत्तो सव्वो वि जणो परितुट्ठो मुणिवरस्स अहिययर । सम्माणपीइपमुहो जाओ गुणगहणतत्तिल्लो ॥३७६।। जं दाऊणऽववाओ विसोहिओ मुणिवरस्स कण्णाए । तेण इमाए विसोही जाया अह जणयतणयाए ॥३७७॥ दिट्ठो सुओ व दोसो परस्स न कयाइ सो कहेयव्वो । जिणधम्माहिरएणं पुरिसेणं महिलियाए वा ॥३७८॥ रागेण व दोसेण व जो दोसं संजयस्स भासेइ । सो हिंडइ संसारे दुक्खसहस्साई अणुहेतो ॥३७९॥ एवं सीयाचरियं समासओ पउमचरियमज्झाओ। अक्खायं वित्थरओ तत्तो च्चिय नणु मुणेयव्वं ॥३८०॥ एयं महासईए सीयाए कहाणयं सुणताणं । सीले निच्चलभावो होइ दढं मोक्खसोक्खं च ॥३८१॥ सीताकथानकं समाप्तम् ॥४९॥ साम्प्रतं नन्दाख्यानकं कथ्यते - [५० नन्दाख्यानकम्] अत्थित्थ जंबुदीवे भारहखेत्तस्स मज्झखंडम्मि । रायगिहं नाम पुरं विभूसणं पुहइनारीए ॥१॥ तत्थ य नियगुणनिज्जियसमत्थराओ पसेणई राया । तस्सऽत्थि सेणियाई पभूयकुमरा गुणसमग्गा ॥२॥ ताण य परिक्खणत्थं 'को किल रज्जा रुहो ?' त्ति चिंताए । एगत्थुवविट्ठाणं वरपायसपूरिए थाले ॥३॥ १. ला. “णनिउत्तो ।। २. ला. तत्तो सो गामजणो ॥ ३. ला. "हस्सं अणुहवंतो ॥ . Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५५ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः भोयणहेउं अप्पाविऊण मुंचावए तओ सुणहे । दढसंकलबंधाओ अइछुहिए वग्घसारिच्छे ॥४॥ ते आविते दटुं सव्वे वि हु उट्ठिया लहुं कुमरा । विट्टालणाभएणं न उट्ठए सेणिओ नवरं ॥५॥ पच्चासण्णयथालं उट्ठियकुमरस्स संतियं घेत्तुं । सुणगाणावंताणं पक्खिवई थोवथोवं तु ॥६॥ जा ते तं खायंती ता सो वि हु भुत्तओ सुवीसत्थो । तं दट्ठणं राया परितुट्ठो सेणियस्सुवरं ॥७॥ अन्नम्मि दिणम्मि तओ पच्चग्गकरंडए भरेऊण । वरमोयगाण नवए घडए य तहा जलस्साऽवि ॥८॥ नियमुद्दाए पुण मुद्दिऊण एक्कक्कयं कुमारणं । .. अप्पेऊणं छूढा ओ वरगेसुं विभत्तेसुं ॥९॥ भणिया य 'पुत्त ! एए भोत्तव्वा पाणियं च पायव्वं । मुद्दाउ अभिदंतेहिं तह य छिदं अकाऊण' ॥१०॥ न य केण वि तं भुत्तं सेणियकुमरो वि निययबुद्धीए । परिचालेइ करंडं जेणं परिगलइ अवचुण्णं ॥११॥ तं भुंजइ घडगस्स वि हिट्ठा कच्चोलयं ठवेऊणं । पियइ परिगलियनीरं तं दटुं नरवई तुट्ठो ॥१२॥ अण्णम्मि दिणे राया जाए उद्दित्तयम्मि जंपेइ । 'जो जं नीणइ कुमरो मह गेहा तस्स तं चेव' ॥१३॥ सव्वे रयणाईयं कुमरा घेत्तुं वयंति महमोल्लं । सेणियकुमरो वि तओ भंभं घेत्तुं विणिक्खंतो ॥१४॥ तं दट्ठणं राया पुच्छइ "कि भइँ ! कड्डियं एवं ?' । सो भणइ 'देव ! एसा राईणं रज्जसारत्ति ॥१५॥ ढक्कासद्दवसेणं जम्हा हु पयाणयं नरेंदाणं । तेणं चिय रायाणो रक्खंति इयं पयत्तेणं" ॥१६॥ १. ला. उट्रिओ ॥ २. ला. विणिति ॥ ३. सं.वा.सु. वि पुणो भं ॥ ४. ला. पुत्त ! ॥ Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५६ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः तो तुट्ठो नरनाहो नामं सो कुणइ भंभसारो त्ति । एवं परिक्खिऊणं कुमराणं देइ रज्जाइ ॥१७॥ मोत्तुं सेणियकुमरं मा एए मारिहंति एयं तु । एएणं चित्तेणं न पसायं देइ से कि पि ॥१८॥ तो सेणिओ कुमारो अभिमाणेणं विणिग्गओ तत्तो । वच्चंतो य कमेणं पत्तो बिण्णायडं नयरं ॥१९॥ पविसंतो तत्थ तओ उवविट्ठो भइसिट्ठिवीहीए । तम्मिय दिणम्मि नयरे महूसवो जणसमाइण्णो ॥२०॥ तत्थ य पभूयकइगा इंति न सि ट्ठीपचारए जाव । ता कुमरो पुडगाई लहुहत्थो बंधिउं देइ ॥२१॥ एवं पभूयदव्वं कुमरपभावेण विढवियं तेण । तुट्ठो पुच्छइ सेट्ठी 'तुब्भे कस्सेत्थ पाहुणया ? ॥२२॥ कुमरो वि भणइ 'तुब्भं' तो सेट्ठी चिंतए मणे "नूणं । रयणायरो मह गिहे पत्तो नंदं विवाहितो ॥२३॥ दिट्ठो सुविणम्मि मए रयणीए अज्ज सो इमो होही" । इय चिंतिऊण भणिओ उट्ठह गेहम्मि वच्चामो ॥२४॥ संवरिय तओ हट्टं गेहम्मि गया तहिं च सविसेसं । सव्वं ण्हाणाईयं आइसइ इमो कुमारस्स ॥२५॥ तत्तो वरवत्थजुयं परिहाविय भोयणं करावेइ । एवं अक्खुण्णेणं अच्छंतो अण्णदियहम्मि ॥२६॥ नंदं उवट्ठवेउं सो भणिओ सेटिणा 'जहा वच्छ ! । परिणेहि इमं कणं अम्हुवरोहेण गुणकलियं' ॥२७॥ सो जंपइ 'ताय ! 'कहं अन्नायकुलस्स देसि मे धूयं ?' । सो जंपइ 'तुज्झ कुलं गुणेहिं विमलेहिं मे कहियं' ॥२८॥ तो पडिवज्जिय कुमरो तव्वयणं परिणिउं तयं नंदं । पंचप्पयारभोए भुंजतो अच्छए तत्थ ॥२९॥ Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - २५७ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः तं सव्वं नरवइणो सविसेसं अक्खियं चरनरेहिं । सोउण तयं राया सुत्थो नियमाणसे जाओ ॥३०॥ अह अन्नया नरिंदो आयंके दारुणे समुप्पण्णे । नियआउयस्स अंतं जाणित्ता पेसए लेहं ॥३१॥ "सिरिजिणमुणिणो नमिउं रायगिहाओ पसेणई राया । बिण्णायडम्मि कल्लाणभायणं सेणियकुमारं ॥३२॥ आइसइ सिग्घमेव य आगंतव्वं पलोइडं लेहं" । वरियारूढा सचिवा गंतुं लेहं पणामिति ॥३३॥ गहियत्थेणं कुमरेण जंपिया सा पिया जहा "भद्दे ? । पंडरकुड्डा अम्हे गोपाला रायगिहनयरे ॥३४॥ जइ अम्हेहिं कज्जं आगंतव्वं तओ तए तत्थ" । इय अक्खरा विलिहिउं अप्पिय तीए चडड् वरियं ॥३५॥ रोयगिहं संपत्तो तं दटुं हरिसिओ मणे राया । अहिसिंचिय तं रज्जे घेत्तूणं अणसणं तत्तो ॥३६॥ पंचनमोक्कारपरो चउसरणगओ समाहिणा मरिठं । संपत्तो सुरलोए इमो विजाओ महाराया ॥३७॥ एत्तो च्चिय सा नंदा गब्भवई चेव भत्तुणा मुक्का । परिवडते गब्भे संजाओ डोहलो तीए ॥३८॥ 'जइ नीसेसजणाणं करिवरखंधट्ठिया विभूईए । कुणमाणी उवयारं अभयपयाणं पयच्छामि' ॥३९॥ विण्णविउं रायाणं दोहलयं तीए पूरए सेट्ठी । पडिपुण्णेसु दिणेसु पसवइ वरदारयं एसा ॥४०॥ सव्वंगसुंदरंगं जणमण-नयणाभिरामयं कंतं ।। वद्धावणयमहूसवमाइसइ सुतुट्ठओ सेट्ठी ॥४१॥ वत्ते वद्धावणए बारसमदिणम्मि गोण्णमह नाम । दोहल अणुसारेणं अभयकुमारो त्ति से ठवियं ॥४२॥ १. सं.वा.सु. अप्पइ ।। २. ला. रायगिहे ॥ ३. ला. 'ओ तओ राया ॥ ४. सं.वा.सु. तत्तो ॥ ५. ला. वित्ते॥ मूल. २-३३ Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५८ एवं सो वÎतो कमेण अह अट्ठवरिसिओ जाओ । बाहत्तरीकलाओ साइसयाओ य गहियाओ ॥४३॥ एत्थंतरम्मि समवयडिंभेहिं समं कहिं चि कलहंतो । तो एक्केणं सो डिंभेणं सभरिएणं ॥ ४४ ॥ 'रे रे ! किं तं जंपसि जस्स तुहं नज्जए न जणओ वि' । अभएण वि पडिभणिओ 'पाव ! न जाणासि किं भद्दं ॥४५॥ सो भइ 'मुद्ध ! भद्दो तुह जणणिपिया तुमं पुणो अण्णं । जाणेहि किं पि जणयं' इय भणिए संकिओ अभय ॥४६॥ पुच्छइ जणणि 'को मह पिया ?' इमा दायए तओ सेट्ठि । सो भणइ 'एस तुब्भं जणओ महसंतियं कहसु' ॥४७॥ तो अंसुवायव्वं नंदा जंपेइ " पुत्त ! केणाऽवि । देसंतरागएणं परिणीया सो वि मं मोत्तुं ॥४८॥ गब्भट्ठियम्मि तुम केहिं पि पुरिसेहिं दंसिए लेहे । वरियाए आरुहिउं कत्थ वि य गओ न याणामि" ॥४९॥ अभएण पुणो पुट्ठा 'किमंब ! जंतेण जंपियं किं पि ?' । सा अक्खराई दरिसिय भणइ 'इमं विलिहियं किं पि ॥५०॥ अभओ विहु भावत्थं नाउं तुट्ठो पयंपई 'अम्मो ! | मज्झ पिया नरनाहो रायगिहे तत्थ वच्चामो' ॥५१॥ सा भणइ 'पुच्छ सिट्ठि' पुट्ठे गहिऊण सो वि भावत्थं । सामग्गियं विहेउं विसज्जए ताणि तो तुरियं ॥५२॥ रायगिहे पत्ताइं जणणि मोत्तूण बाहिरुज्जाणे । सयमप्पपरीवारो अभओ पविसरइ नयरम्मि ॥५३॥ तो य सेणिएणं एक्केणूणाई पंच उ सयाई । मंतीण मेलियाई पहाणमंतिं गवेसेइ ॥५४॥ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः तस्स परिक्खणहेउं सुक्कयकूवम्मि तेण पक्खित्तं । निययं मुद्दारयणं पभणइ य "तडट्ठिओ जो उ ॥५५॥ १. सं. वा.सु. कहं ॥ २. सं.वा.सु. 'यणं भणई य ॥ Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५९ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः गिण्हइ इमं करेणं सो मह सव्वुत्तमो हवउ मंती" । इय सोउं सव्वो वि हु लोगो तं इच्छए घेत्तुं ॥५६॥ बुद्धिविगलत्तणाओ जाव न सक्केइ कोवि तं गहिउं । ताव य तत्थ पएसे संपत्तो पुच्छए अभओ ॥५॥ 'किं एयं ?' तेहिं तओ सिटे सव्वम्मि तस्सरूवम्मि । जंपइ 'किं नवि गिण्हह ?' भणंति ते 'जं न सक्केमो' ॥५८॥ 'गिण्हामि अहं' अभएण जंपिए ते भणंति गिण्हाहि । तो गोमएण अभओ उवरिं आहणइ तं मुदं ॥५९॥ तणपूलयअग्गीहिं सुक्कविउं सारणीए उदएणं । भरिऊण तयं कूवं तरमाणं गिण्हए सहसा ॥६०॥ तो आरक्खियपुरिसा गंतुं सव्वं निवस्स कहयंति । सो वि ये अभयकुमारं आणावइ अप्पणो पासे ॥६१॥ तो गएणं पुट्ठो ‘वच्छ ! तुमं आगओ कओ इहई । 'बिण्णायडनयराओ पत्तोऽहं' भणइ अभओ वि ॥६२॥ तो जंपइ नरनाहो 'अवि जाणसि तत्थ भइसेट्ठिति । नंदं च तस्स धूयं ?' सो जंपइ 'देव ! जाणामि' ॥६३।। उल्लवइ निवो 'तीसे कि जायं?' सो कहेइ 'पहु ! पुत्तो' । 'किं तस्स कयं नामं ?' 'अभयकुमारो' त्ति सो भणइ ॥६४॥ 'केरिसओ सो ! साहसु के च गुणा तस्स ?' जंपिए रण्णा । सो भणइ 'ममं दटुं पच्चक्खं मुणसु तं चेव' ॥६५॥ इय एवमाइउत्तरपच्चुत्तरसंकहाए खणमेक्कं । चिट्ठित्तु अभयकुमरो अप्पाणं अह पयासेइ ॥६६॥ तो सुयसिणेहपसरंतवाहजलपूरपुण्णणयणिल्लो । ठविऊणं उस्संगे अग्घायइ मत्थए कुमरं ॥६७॥ 'कुसलेण तुज्झ माया पुत्त ! ऽच्छइ ?' पुच्छिए तओ भणइ । 'ताय ! बहिं उज्जाणे कुसलेणं अच्छए एत्थ' ॥६८॥ १. ला. हु॥ Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः तं सोऊण ससंभमसिणेहरसपसरजायरोमंचो । आणवइ 'लहु पवेसह महाविभूईए देवि' ति ॥६९॥ तो पगुणा सामग्गी जाव कया ताव जाइ अभओ वि । जणणीपासे तं पुण पिच्छइ कयफारसिंगारं ॥७०॥ . जंपइ "पवसियभत्तारयाउ अम्मो ! नरिंदपत्तीओ । जाव न दिट्ठो भत्ता न ताव कुव्विति सिंगारं ॥७१॥ ता झ त्ति पवसियपई वेसं विरएहि जेण बलकलिओ । एसाऽऽगच्छइ ताओ अम्मोगइयाइ तुम्हाणं" ॥७२॥ ता पुत्तसमाइ8 जाव कयं तीए ताव नरनाहो । संपत्तो दिट्ठा सा पवेसए महविभूईए ॥७३॥ पंचाऽमच्चसयाणं अभयकुमारं पि सामियं ठविउं । नंदाए समं भोगे भुंजइ निच्चितओ राया ॥७४॥ तत्तोपाए अभए असरिसनियबुद्धिजायमाहप्पो । जणणीए समं जाओ तियसाण वि पायडो लोए ॥७४॥ नंदा-ऽभयाण य गुणा पुव्वं चिय वण्णिया मए किंचि । चरियं पि थोवथोवं कहियं अण्णण्णचरिएसु ॥७५॥ . नन्दाख्यानकं समाप्तम् ॥५०॥ साम्प्रतं भद्राख्यानकम् [५१. भदाख्यानकम्] अस्थि इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे कायंदी नाम नयरी, तत्थ य जियसत्तू नाम राया । तत्थ य भद्दा नाम सत्थवाही, उवरय-भत्तुया धण्णयाहिहाणबालपुत्तया समत्थमहायणप्पहाणा, जियसत्तुस्स बहूसु कज्जेसु पुच्छणिज्जा, अवि य अट्टा य अपरिभूया विच्छड्डियविउलभत्तवरपाणा । आओगसंपउत्ता पओगकलिया धणसमिद्धा ॥१॥ सयलनयरीपहाणा रण्णो वि हु पउरकज्जपुच्छणिया । उस्सुका मुक्ककरा अविचलसम्मत्तसंजुत्ता ॥२॥ १. ला. नंदा-अभयाण गुणा ॥ २. ला. "स्स रनो बहुयक ॥ Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः अहिगयजीवा - जीवा पंचाणुव्वय-गुणव्वयसमग्गा । सिक्खावओववेया जिणमुणिपयकमलवरभसली ॥३॥ दीणाइदाणपउरा पूइयर्जिणसमण-समणिवरसंघा । किं बहुणा ? तियसेहिं वि माणिज्जइ सा सयाकालं ॥४॥ तीए य धण्णनामो बाहत्तेरिकलवियक्खणो पुत्तो । जणणीनिक्खित्तभसे बहुविहकीलाहिं उवललइ ॥५॥ उत्तत्तकणयपिंगप्पहाहिं उत्तुंगथोरथणयाहिं । भज्जाहिं सह रमंतो चिट्ठइ दोगुंदुगु व्व सुरो ||६|| अण्णा य कयाई तं तारिसं रिद्धिवित्थरं रायसम्माणं च असहमाणेहिं अट्ठारसैसेणिप्पसेणीसमण्णिएहिं चिंतियं महायणपउरेहिं, अवि य य " एसा हु सत्थवाही भद्दा अम्हाण उक्कडा एक्का । रायस्स वि गोरव्वा पराभवो एस अम्हाणं ॥७॥ ता होउ समकरेसा नयरीओ वा बहिं विणिस्सरउ" । इय चिंतिऊण तेहिं विण्णत्तो नरवई एवं ॥८॥ 'कीरउ देव ! पसाओ सत्थाही होउ समकरा अम्हं । अहवा वि हु निग्गच्छउ नयरीओ किं च बहुएण ?' एवं च महायणेण विण्णत्ते चितियं राइणा 'हंत ! कहं एक्काए कारणेण समत्थनयरिं दूमेम ?' त्ति चिंतिंतेण भणियं 'जहा तुम्हाणं संतोसो भविस्सइ तहा करिस्सामि' त्ति । भणिऊण विसज्जिया । तत्तो भद्दा हक्कारिऊण भणिया राइणा जहा 'भद्दे ! न महायणविरोहेण खणमेकं पि अच्छिउं पारेज्जइ, ता महायणेण समकरा भवाहि, नयरीओ वा निग्गच्छाहि तओ भद्दा 'जं देवो आणवेइ' त्ति भणंती गया नियगेहं चितिउं पयत्ता, अवि २६१ "हंत ! जइ समकराऽहं भवामि तो माणखंडणं गरुयं । इयरह नयरीमज्झे न दिति वासं इमे लोया ॥१०॥ ता पुव्वसंगईयं देवं सुमरामि किं च बहुएण ?" । इय चिंतिऊणमच्छइ पोसहसालं वियालम्मि ॥ ११ ॥ १. सं. वा.सु. जिणबिंबसमणवर ॥ २. ला. 'तरिगुणवि ॥ ३. सं. वा.सु 'ससेणियप्प' " Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः तओ पुव्वसंगइयदेवस्साराहणट्टयाए पोसहं गिण्हिऊण तं देवं मणसीकरेमाणी चिट्ठ, ताव य समागओ सो पुव्वसंगइओ देवो, अवि य २६२ ललियाभरणविभूसियदेहो नियतेयपयडियदिसोहो । दिव्वंगवत्थधारी समागओ तक्खणं तियसो ॥ १२॥ भणियं च तेण 'भद्दे ! किं निमित्तमहं सुमरिओ ?' भद्दा वि तं दट्ठूण हट्ठट्ठा भणइ, अवि य भद्द ! इमं मम भवणं नयरीओ नेहि बाहिरुद्देसे । सो वि तयं पडिवज्जिय उप्पाडइ तीइ तो भवणं ॥१३॥ विउलम्मि चच्चरम्मी तें मुत्तुं पुरिबहि तदब्भासे । कुणइ महापासायं सोलसविहरयणनियरेहिं ॥ १४ ॥ नियकरपब्भारेणं उज्जोयंतं समत्थदिसियक्कं । कणयखचियंतकम्मं रूवयसयसंकुलमुयारं ॥१५॥ पंचविहविसयसाहणसमग्गसामग्गियाउलं दिव्वं । वरपुण्णुक्कुरुडं पिव मन्ने धन्नस्स पच्चक्खं ||१६|| अन्नं च कीलणसहं धैन्नकुमारस्स कुणइ आरामं । सव्वोउयफल-फुल्लोवरेहिरं लोगविम्हयणं ॥१७॥ एवं काऊण भद्दं च संभासिऊण गओ तियसो । पभाए य तं तारिसमच्चब्भुयं दट्ठूण नरनाहप्पमुहो सयललोगो भणिउं पवत्तो अवि य "एक्क च्चिय वरधण्णा भद्दा इह जियइ जीवलोगम्मि । जणणियचमक्कारो एरिसओ अइसओ जीए ॥१८॥ अहह ! कहमपुण्णेहिं खलीकया इय महासई एसा । अम्हे वि पुण्णभाई जं न इमीए खयं नीया" ॥१९॥ तओ एवं साहुक्कारमुहलो गओ सव्वो वि जणवओ नरवइसणाहो भद्दं खामिउं पयत्तो, अवि य 'खमसु महासइ ! इण्हि जं अवरद्धं अयाणमाणेहिं । तुम्हारिसी जेणं कुणंति पणयाण कारुण्णं' ॥२०॥ १. सं.वा.सु. "तं ॥ २. सं. वा.सु तो ॥ ३. ला. धन्नयकुमरस्स ॥ Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः इय भणिया सा भद्दा नीसेसजणस्स काउमुवयारं । जंप न मज्झ कोवो तुम्हाणुवरिं मणे अत्थि ॥२१॥ तो भद्दा चरियपसंसणमुहरो गओ सव्वो वि लोगो नियनियघरेसु । धन्नयकुमारो वि तत्थ पासायवडिसए संपज्जंतसयलसमीहियविसओवभोगसामग्गीकलावो अच्चुब्भडरूवजोव्वणलायण्णवण्णसंपुण्णघरिणीवंदमज्झगओ उदारभोगे भुंजंतो चिट्ठइ | अण्णा कयाई समोसढो भयवं वद्धमाणसामी तित्थयरो विणिम्मियं तियसेहि समोसरणं निग्गओ विसेसुज्जलनेवत्थो समत्थलोगो । तं च दट्ठूण किमेयं ? ति पुच्छियं कुमारेण । साहियं कंचुइणा, अवि य 'पणयसुरा-ऽसुरमणिमउडगलियमंदारचारुमालाहिं । सययच्चियकमवीढो समोसढो वद्धमाणजिणो' ||२२|| २६३ तं सोउं बहलुब्भिज्जमाणरोमंचकंचुओ धण्णो । भणइ 'जिणवंदणत्थं वच्चामि करेह सामरिंग' ॥२३॥ तो रहवरमारूढो पत्तों तित्थयरपायमूलम्मि । ओयरिय रहवराओ वंदइ परमेण विणएण ||२४|| उवविट्ठो सट्टा भयवं पि हु महुरदुंदुहिनिनाओ । अह अद्धमागहीए भासाए कहइ नियधम्मं ॥ २५ ॥ अवि य पडिवज्जह पंच महव्वयाई । तत्थ य पढमं सव्वपाणाइवायवेरमणं, तं च अहिंसाए परिपालिज्जइ, जा य भीयाणं पिवसरणं, समुद्दमज्झे व पोयगहणं, चउप्पयाणं व आसमपयं, दुहद्दियाणं व ओसहिबलं, अडविमज्झे व सत्थगहणं, एत्तो वि विसितरिया अहिंसा, जा य पुढवि - दग - अगणि- मारुय- वणप्फइ - बीय - हरिय- बि-ति- चउरिंदिय - जलयरथलयर-खहयर-तस - थावरसव्वभूयखेमकरी, एसा भयवई अहिंसा जा अणंतनाण- दंसणधरेहिं सीलगुण -तव-संजमनायगेहिं तित्थयरेहिं सव्वजगजीववच्छलेहिं तिलोगमहिएहिं सुठु दिट्ठा ओहिजिणेहिं उजु - विउलमईहिं विण्णाया, पुव्वधरेहिं य विइया, आमोसहि - विप्पोसहिखेलोसहि-जल्लोसहिपत्तेर्हि फासिया, खीरासव - महुयासव - अमयासवेहिं चारणविज्जाहरेहिं य वण्णिया, चउत्थभत्तियजावच्छम्मासिएहिं अंत-पंतलूह - अण्णायचरएहिं सेविया, अकं- डुयणआयावण-अँणिच्छुभणकरेहिं धूयकेस-मंसरोम-नखेहिं सव्वहा परिकम्मविप्पमुक्के हिं १. ला. भुंजमाणो ॥ २. ला. ओसहब° ॥ ३. ला. 'मधरेहिं ति ॥ ४. ला. अच्छुभ° ॥ Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः समणुचिण्णा, जे ते निच्चं सज्झायज्झाणरया पंचमहव्वयचरित्तगुत्ता समिया समीसु छव्विहजगजीववच्छला निच्चमप्पमत्ता एएहिं य अण्णेहिं य जा सा अणुपालिया भयवई इमं च पुढवि-दग-अगणि-मारुय-तरुगण-तस-थावरसव्वजगजीवदयट्ठाए सुटु उच्छु गवेसियव्वं, नवकोडीपरिसुद्धं न तिगिच्छामंत-मूल-भेसज्जकज्जहेडं, न लक्खणुप्पायजोइसनिमित्तं न वि गारव-पूयणट्ठाए, तवनियमट्ठयाए भिक्खं गवेसियव्वं । इमं च सुद्धं नेयाउयं अकुडिलं सव्वदुक्खपावाण विओसमणं पाणाइवायवेरमणं । तस्स रक्खवणट्ठा जुगमेत्तंतराए दिट्ठीए इरियव्वं, कीड-पयंग-तस-थावर-हरियपरिवज्जएण सव्वपाणाणं हिंसण-निंदण-गरिहण-छिंदण-वहणाणि वज्जणिज्जाणि । एवं इरियासमिईए भाविओ भवइ अप्पा बीयं च मणेण पावएण अहमं दारुणं निस्संसं वह-बंध-परिकिलेसबहुलं भयमरण-किलेससंकिलिटुं न कयाई पावयं किंचि समायरियव्वं, एवं मणसमिओ भवइ । तइयं च वईए पावियाए न कयाई पावयं किं चि भासियव्वं । चउत्थं आहारएसणाए सुद्धं अणाए अगढिए अगिद्धे अदीणे अविमणे अकलुसे अविसाई अपरितंतजोगी भिक्खू समुदाणेऊणं उच्छु गुरुजणस्स पासं गमणागमणाइयाण पडिकंते नट्टचलियवलियाइवज्जियं आलोइत्ता पुणरवि अणेसणाए पयए पडिक्कमेत्ता सुहनिसण्णे मुत्तमित्तं च झाणसज्झायगोवियमणे सद्धासंवेगनिब्भरमणे उदेऊण हतुढे जहारायणियं निमंतइत्ता भावउदिण्णे गुरुजणेणं उवविढे पमज्जिऊण ससीसं कायं अमुच्छिए अतुरियं अपरिसाडियालोयभायणे ववगयसंजोगिंगालधूमं णाणुलेवणभूयं भोत्तव्वं । पंचमं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारवत्थपाय-कंबल-रयहरण-मुहपोत्तियाइयं एवं पि संजमस्स उववूहणट्ठयाए रागदोसरहियं उवकरणं परिग्गहियव्वं, पडिलेहणपमज्जणाणि य अहो य राओ य अप्पमत्तेण सययं उवकरणस्स कायव्वाणि, एवं करेंतेण अहिंसा संपुण्णा पालिया होइ । तं च तित्थयरमुहविणिग्गयं जइधम्ममायण्णिऊण समुट्ठिओ धण्णओ, वंदिऊण भयवंतं भणइ-जाव जणणि आपुच्छामि ताव तुम्ह पायमूले पव्वज्जागहणेणं करिस्सामि सफलं मणुयत्तणं ति भणिऊण गओ जणणिसमीवे पायग्गहणं च काऊण भणिउमाढत्तो जहा 'अम्मो ! अज्ज मए समणस्स भयवओ महावीरस्स अंतिए धम्मो निसओ' तीए भणियं 'पुत्त ! सोहणं कयं' । तेण भणियं 'जइ एवं ता अहं संसारभउव्विग्गो समणस्स अंतिए पव्वइउमिच्छामि' । तओ तमणिट्ठमसुयपुव्वं वयणमायण्णिऊण परसुनियत्तिय व्व चंपयलया, निव्वत्तमहि व्व इंदलट्ठी विमुक्कसंधिबंधणा सव्वंगेहिं धस त्ति धरणीयलं सन्निवडिया । तओ वाउदाणाईहिं समासत्था विलविउं पयत्ता, "तुमं सि णं जाया मज्झ एगे पुत्ते इटे कंते पिए मणुण्णे भंडकरंडगसमाणे उंबरपुप्फ पिव दुल्लहे सवणयाए, किमंग पुण पासणयाए ? ता चिट्ठाहि १. ला. विओसवणं ॥ २. ला. सुगुरु' ॥ Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः . २६५ ताव जाव अहं जीवामि" । धण्णएण भणियं 'एवमेयं किंतु माणुस्सए भवे अधुवे असासए वसणसउवद्दवाहिभूए विज्जुलयाचंचले संझब्भरायसरिसे जलबुब्बुयसमाणे कुसग्गजलबिंदुचंचले सुविणगदसणोवमे सडण-पडण-विद्धंसण-धम्मे, ता को जाणइ के पुव्वि गमणाए ? के पच्छागमणाए ?'भद्दाए भणियं 'जइ एवं ता अणुहोहि जाव जा एवं इड्डिसक्कारसमुदयं, अणुभुंजाहि य एयाओ कुलबालियाओ' । तेण भणियं 'अम्मो ! एवमेयं, किंतु दव्वं राया-इसाहारणं अणेगपच्चवायबहुलं खणदिट्ठनटुं, कामा वि असुइणो वंत-पित्तमुत्त-खेल-सुक्क-सोणियसमुब्भवा, एत्थ वि सविवेयविण्णाणाणं न किंचि पडिबंधट्ठाणं' । भद्दाए भणियं पुत्त ! जुत्ता पव्वज्जा परं दुक्करा, जओ तिक्खं चंकमियव्वं गरुयं लंबे यव्वं, असिधारवयं चरियव्वं, महासमुद्दो इव भुयाहि तरियव्वो, गंगा इव महानई पडिसोयं गंतव्वा, जवा लोहमया इव चावेयव्वा, किं च-नो कप्पइ निग्गंथाणं समणाणं आहाकम्मिए इ वा उद्देसिए इ वा कीए इ वा चइए इ वा रइए इ वा दुब्भिक्खभत्ते इ वा वद्दलियाभत्ते इ वा गिलाणभोयणे इ वा बीयभोयणे इ वा हरियभोयणे इ वा फलभोयणे इ वा, तहा उच्चावया गामकंटया सहियव्वा, लोओ य दारुणो कायव्वो, इच्चाइ सव्वं दुक्करं, तुमं पुण सहलालिओ न सक्किहिसि काउं" धण्णण भणियं - 'सव्वमम्मो ! दक्करं कीवस्स कायरस्स, नो चेव णं धीरस्स महासत्तस्स कयववसायस्स, ता अम्मो ! मा करेहि विबंधं'। तओ सा जाहे नो संचाएइ धारेउं ताहे अकामया चेव महाविच्छड्डेण निक्खमणं करेइ । पुरिससहस्सवाहिणि सीयं समारुहिऊण गओ भयवओ समीवं । तओ सा भद्दा धण्णकुमारं पुरओ गविऊण एवं वयासी-'भयवं ? मम एस एगे पुत्ते पाणप्पिए भीए जम्मण-मरणाणं, निविण्णे णं संसारवासस्स इच्छइ भयवओ समीवे पव्वइत्तए, तं भयवओ सीसभिक्खं पयच्छामि, पडिच्छउ भयवं सीसभिक्खं' । भयवं पि सम्मं संपडिच्छइ । तओ सो धण्णो कुमारो उत्तरपुरत्थिमं दिसिभायमवक्कमइ, सयमेव आभरणमल्लालंकारं ओमुयइ । तए णं सा भद्दा सत्थवाहिणी हंसलक्खणेणं पडगसाडएणं तं आभरणमल्लालंकारं रोवमाणी कंदमाणी विलवमाणी हार-वारिधार-सिंदुयार-छिण्णमुत्तावलिप्पगासाइं अंसूणि विमुयमाणी पडिच्छइ । तए णं से धण्णे सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ । तओ सा भद्दा एवं वयासी जइयव्वं जाया! परक्कमियव् जाया ! अस्सि चणं अटे णो खणमवि पमाएयव्वं, अम्हं पि य णं एस चेव निज्जाणमग्गो भवउ' त्ति कट्ट जामेव दिसं पाउब्भूया तामेव दिसंपडिगया। सो वि धण्णो भयवया सयमेव दिक्खिओ महाअणगारो जाओ । इरियासमिओ भासासमिओ एसणासमिओ आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिओ उच्चारपासवणखेलसिंघाणजलपारिट्ठावणियासमिओ जद्दिवसं च णं पव्वइओ तद्दिवसं च णं इमं एयारूवं अभिग्गहं ___ १. ला. महया वि' ॥ मूल. २-३४ Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६६ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः गिण्हइ-कप्पई मे जावज्जीवं छटुं छटेणं अणिक्खेत्तेणं तवोकम्मेणं उड्डे बाहाहिं सूराभिमुहस्स आयावणभूमीए आयावितए, पारणगए वि उज्झियधम्मएणं पारावित्तए ति कट्ट अभिग्गहं गिण्हइ । तेणं च अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं सुक्के भुक्खे निम्मंसे किडिकिडियाभूए अट्ठिपंजरावसेसे किसे धवणिसंतए अवचिए मंससोणिएणं उवचिए तवोतेएणं भासरासिपलिच्छण्णहुयासणो व्व जाए । तओ भयवं कायंदीओ बहियाजणवयविहारं विहरमाणो जणव रायगिहे तेणेव उवागच्छइ । तहेव समोसरणं । सेणिओ सपरिसो धम्मं सोच्चा सगिहं पट्ठिओ । अंतराले य पेच्छइ धण्णमणगारं, वंदित्ता सेहरिसं जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पुच्छइ 'इमीसे णं भंते ! महइमहालियाए इसिपरिसाए मज्झे को दुक्करगारओ?' ति । तए णं समणे भयवं महावीरे एवं वयासी 'जहा णं सव्वे दुक्करगारया, परं संपयं विसेसेणं धण्णे दुक्करगारए' । तए णं से सेणिए भयवओ अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म हट्ठतुढे तिपयाहिणं काऊण धण्णं अणगारं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव सए गेहे तेणेव उवागच्छइ । धण्णो वि नियआउक्खयं नाऊण कयसंलेहणाकम्मो पाओवगमणं पडिवज्जित्ता अणसणविहिणा कालगओ सव्वट्ठसिद्धे महाविमाणे तेतीससागरोवमाऊ देवो समुप्पण्णो । तओ चुओ महाविदेहे सिंज्झिहि त्ति । एवं सा किर भद्दा सीलवई सयलगुणगणसमग्गा । सव्वत्थ वि क्खा(खा)यजसा तियसाण वि पायडा जाया ॥२६॥ भद्राख्यानकं समाप्तम् ॥५१॥ इदानीं मनोरमाऽऽख्यानकमाख्यायते । [५२. मनोरमाख्यानकम्] अत्थि इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे अच्चब्भुयगुणगणाहारा चंपा नाम नयरी । तत्थ य सयलनरिंदचक्कचूडामणी दहिवाहणो नाम राया । तस्स य सयलंतेउरप्पहाणा अभया नाम महादेवी, अवि य जा रूव-जोव्वणेहिं सोहग्गेणं कलाकलावेणं । नीसेसतिहुयणं पि वि मण्णइ तिण-तूलसारिच्छं ॥१॥ इओ य अत्थि तत्थ नयरीए सयलमहायणप्पहाणो उसभदासो नाम सेट्ठी । तस्स य जिणप्पहुप्पणीयपवरपवयणप्पभासियपहाणधम्माणुट्ठाणपरायणा अरिहदासी नाम भारिया । १. ला. सहरिसो ॥ २. ला. सिज्झिहिइ त्ति ॥ Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः २६७ ताणं च सुभगो नाम महिसीरक्खगो । सो य अन्नया कयाई पभायसमएमहिसीओ गहाय अडवि गओ पडिनियत्तं-तेण एगत्थपएसे निरावरणो पावरणवज्जिओ माहमासे वियालवेलाए काउस्सग्गसंठिओ दिट्ठो महातवस्सी, तं च दद्रुण चिंतियमणेण, अवि य 'धण्णो एस महप्पा जो एवं चिट्ठिही सयलरयणिं । एवंविहम्मि सीए अप्पावरणो निरावरणो' ॥२॥ इय चितंतो सुभगो गेहम्मि गओ पुणो वि रयणीए । ' सरिऊण तयं साहुं धणियं चिंताउरो होइ ॥३॥ तओ अप्पभाए चेव महिसीओ गहाय गओ साहुसमीवं । दिट्ठो तहट्ठिओ चेव । तओ भत्तिब्भरनिब्भरंगो पज्जुवासंतो चेव जाव चिट्ठइ ताव उग्गओ अंसुमाली । साहू वि 'नमो अरहंताणं' ति भणंतो समुप्पइओ तमालदलसामलं गयणयलं । सुभगो वि तं नमोक्कारपयं 'आगासगामिणी महाविज्जा एस' त्ति मण्णमाणो सम्मं पढइ उच्चिट्ठकाले वि न मुंचइ । तओ भणिओ सेट्ठिणा 'भद्द ! कहिं तए एयं भवसमुद्दनिब्बुड्डमाणजंतुसंताणतारणवरपवहणं पंचपरमेट्ठिनमोक्कारस्स पयं पावियं' ? तेण वि कहियमसेसं तओ सेट्टिणा भणियं "भद्द ! न केवलमेयमागासगमणकारणं किंतु समत्थकल्लाण कारणनिबंधणो एस परमेट्ठिनमोक्कारो, जओ जं किंचि एत्थ भवणे दीसइ मण-नयणहारयं वत्थु । तं सव्वं पि वि लब्भइ जिणनवकारप्पभावेणं ॥४॥ जाइं काई संसारियाई सोक्खाई जीवलोगम्मि । सव्वई ताई जाणसु जिणनवकारप्पभावेणं ॥५॥ एयस्स पभावेणं लहंति जीवा अणोवमं रिद्धि । पुत्त-कलत्ताईयं सव्वं पि हियच्छियं होइ ॥६॥ एयस्स पभावेणं हवंति रायाहिराइणो पुरिसा । बल-केसव-वज्जहरा तिलोगसामी जिणिंदा वि ॥७॥ इय कित्तियं च भण्णइ परमेट्ठीणं थुईय माहप्पं । जम्हा सव्वं भणिउं जइ पर तित्थंकरो तरइ ॥८॥ ता सुंदरं खु एयं भद्द ! तए पावियं परं किंतु । परमगुरूणं नामं न हु उच्चितुहिं घेत्तव्वं" ॥९॥ १. ला. "लसमए ॥ २. ला. भण्णउ ॥ Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६८ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः तेण वि भणियं 'सामिय ! खणं पि एयं चएमि नो मोत्तुं' । सेट्ठी वि भणइ "भद्दय ! जइ एवं गिण्ह तो सव्वं ॥१०॥ जेण इमाओ जायइ कल्लाणं एत्थ अण्णजम्मे वि" । इय भणिओ सो तुट्ठो पढइ असेसं पि नवकारं ॥११॥ -... एवं च तस्स पंचनमोक्कारपरावत्तपरायणस्स वच्चंति जाव केइ दिवसा ताव समागओ पाउससमओ । तत्थ य कलिकालि व्व आपूरियं अंबरतलं मिच्छादंसणपडलेहि अइकसिणबहलेहिं जीवसरूवं व तमालकालजलयनिवहेहिं, जलियकोवानलपसारियगरुयजालाहि व समंतओ विप्फुरियं सोयामणिलयाहिं, अयंडकुवियपयंडखलयणविसंखलु च्छलियपेसुन्नयरवो व्व उल्लसिओ गज्जियरवो, दुत्थियजीवसंघाय व्व विरडंति दडुरसंघाया, मलिणजणुण्णइदंसणदूमिया सुयण व्व पणस्संति रायहंसा, खलाणं व पयइमलिणाणं बरहीणवियंभिओ कवडेण व कोमलो केयारखो, रणरोसुब्भडसुहड ब्व जलया मुंचंति धारानिवहं, कुलडाउ व्व उभयकूलपाडणपराओ अंतो कलुसाओ कुडिलगइगमणाओ नीयाणुव्वत्तिणीओ पलोट्टाओ सरियाओ। उब्मिन्ननवतणंकुरनिरंतरं इंदगोवयाइण्णं । वेरुलियगब्भमरगयघडियं पिव जत्थ भूवीढं ॥१२॥ गहिउग्गविज्जुदंडो कालो कालो व्व जत्थ घणनिवहो । मारेइ विरहिणीओ गज्जंतो गरुयसद्देणं ॥१३॥ नूमइ सूरो सूरो व्व जत्थ लज्जाए अत्तणो रूवं । पेच्छंतस्स वि निहया जं नलिणिपिया जडेणावि ॥१४॥ एवंविहे य पाउससमए सो सुभगो महिसीओ गहाय गओ अडवीए । पुणो वियालवेलाए पयट्टो सगिहाभिमुहं । अवंतरालेय पूरेण समागया महानई दिट्ठा सुभगेण । तओ तं पासिय मणागं भयभीओ । एत्थंतरम्मि य अद्धपविट्ठाओ परकूले अन्नखेत्तम्मि महिसीओ । तओ नवकारं पढंतेण दिण्णा झड त्ति झंपा, नईए । तत्थ य कद्दममज्झखुत्तेणं अदिस्समाणेणं खइरकट्ठखोडीखीलएणं विद्धो हिययप्पएसे । पंचनमोक्कारपरावत्तणपरायणो य मम्मप्पहारेणं गओ पंचत्तं । उप्पण्णो तीए चेव नियसामिसालउसभदाससेट्ठिधरिणीए अरिहदासीए कुच्छिसि पुत्तत्ताए । जाओ य तीए दोसु मासेसु विइक्वतेसु डोहलो, अवि य १. ला. दियहा ॥ Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः "वंदेमि जइ जिणाणं बिंबे काऊण परमसक्कारं । ण्हवण-विलेवण-जत्तामहूसवे जइ य पिच्छामि ॥१५॥ पडिलाभित्ता भत्तीए मुणिवरे जइ नमामि अणवरयं । पूएमि समणसंघं दीणाणं देमि तह दाणं" ॥१६॥ इय एवमाइ उप्पन्नदोहला सा कहेइ सेट्ठिस्स । आणंदमुव्वहंतो सो वि तयं पूरए सव्वं ॥१७॥ एवं च संपुन्नदोहला नवसु मासेसु अद्धट्ठमदिवसाहिएसु विईक्कंतेसु सव्वंग- सुंदराभिरामं सयलजणसुभदंसणीयं पसूया दारयं । वद्धाविओ य सेट्ठी पियंकरियाहिहाणाए दासचेडीए । कयं च सेट्टिणा महावद्धावणयं, अवि य वज्जंत तूरगहिरं नच्चंतविलासिणीसमूहड्डुं । दिज्जंतविविहदाणं विहियं वद्धावणं परमं ॥१८॥ सेट्ठी वि तस्स नामं विहेइ नीसेससयणपच्चक्खं । होउ सुदंसणनामो जणनयणानंदणो जम्हा ॥१९॥ २६९ एवं च कमेण पवड्डमाणो जाओ अट्ठवारिसिओ । गहियाओ य साइसयाओ सयलगुणसमण्णियाओ बाहत्तरिं पि कलाओ । परिणीया य समाणकुल- रूव-जोव्वणगुणसमणिया मणोरमा नाम कुलबालिया । पेच्छए य राया तं महापीईए, किं बहुना सव्वरं पि जायं तम्मयं चेव । इओ य अत्थि तीए चेव नयरीए राइणो अब्भरहिओ कविलो नाम पुरोहिओ | य सह सुदंसणस्स परमपीई, पाएण सुदंसणस्स चेव पासे चिट्ठइ । तओ अन्नया पुच्छिओ कविलो कविलाभिहाणाए भारियाए जहा 'सामि ! कत्थ तुमं चिट्ठसि ? निययावस्सयवेलं पि न मुणसि' । तेण भणियं 'भद्दे ! सुदंसणपासे' । तीए भणियं 'को सो सुदंसणो ? तेण भणियं 'किं तए एत्तियं कालं सुदंसणो वि न नाओ ? अहो ! ते विहलं जीवियं' । कविलाए भणियं 'संपयं पि जाणावेहि । कविलेण भणियं "जइ एवं ता सुण, अवि य रूवेण पंचबाणो तेएण रवी ससि व्व सुहलेसो । सूरो सरलो सुभगो पियंवओ पढमआभासी ॥२०॥ किं बहुणा ? एक्केण वि गुणेण अह तेण तिहुयणं विजियं । गुणचूडामणिरयणं अक्खलियं धरइ जं सीलं ॥२१॥ १. ला. अइक्वं ॥ Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७० मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः अहवा वि गुणमओ च्चिय सो सव्वो निम्मिओ पयावइणा । अम्हारिसेहिं कत्तो वणिज्जइ मंदबुद्धीहिं" ॥२२॥ एवं च तीए तग्गुणवण्णणं सोऊण संजाओ परोक्खाणुरागो चितए पइदिणं तस्संगमोवायं । अण्णदिणम्मि य गओ कविलो रायाएसेण गामंतरं । तओ गया कविला सुदंसणपासं । कवडेण य भणियं जहा 'अज्ज ! तुह मित्तस्स गरुयं सरीरकारणं तेण कारणेण न तुह समीवमागओ, न तुमए विरहिओ खणं पि धिरं लहइ, अओ तुह हक्कारणत्थं अहं पेसिया, ता सिग्घमागच्छाहि' । सुदंसणो वि 'न मए नायं सरीरकारणं' ति भणंतो ससंभममुट्ठिऊण गओ तीए चेव सह तग्गेहं । भणिया य सा 'कत्थ कइलो' ? तीए भणियमब्भंतरे । निव्वियप्पो य पविट्ठो । पुणो वि पुच्छियं 'कत्थ कविलो' ? तीए भणियमब्भंतररे । तत्थ वि पविट्ठो । अपिच्छंतेण य पुणो वि पुच्छियं 'कत्थ कविलो' ? तओ तीए दुवारं रुंभिऊण उत्तरिज्जपच्छाइए वि मयणुक्कोयणनियसरीरावयवे ईसि पयडिऊण पच्छायंतीए दढबंधं नीवीबंधं सिढिलिऊण पुणो वि संजमयंतीए तारतरलसकडक्खविक्खेव- दिट्ठिच्छोहे पयच्छंतीए भणियमणाए, जहा 'नत्थित्थ कविलो किं च तेण ?, कविलाए चेव पढमं पडिजागरणं करेहि' । सुदंसणेण भणियं 'किं कविलाए पडिजागरियव्वं' ? तीए भणियं, अवि य "जप्पभिई सुहय ! तुहं कविलेणं साहिया गुणा मज्झ । तप्प भई चेव ममं सरेहिं परिताडइ अणंगो ॥२३॥ एत्तियमेत्तं कालं तुह संगमऊसुया ठिया नाह ? । अज्जं पुण कवडेणं इहाऽऽगओ मज्झ पुण्णेहिं ॥ २४॥ तु विरहतावियाई इमाई अंगाई मज्झ ता सुहय ! । नियसंगमसलिलेणं निव्वावसु करिय कारुण्णं" ॥२५॥ तओ सुदंसणेण गहियपरमत्थेण तत्थुप्पन्नमइमाहप्पदुल्ललियवियक्खणेण सविसायं जंपियं जहा 'भद्दे ! जुत्तमेयं मोहवसयाणं पाणीणं, परं अहं पंडगो पुरिसवेसेणं परावत्तियवेसो लोए चिट्ठामि' तओ तीए विरत्तचित्ताए दुवारं दाऊण भणियं 'जइ एवं तो दुअं निग्गच्छाहि' । निग्गंतूण य गओ सुदंसणो नियगेहं चितिउं च पयत्तो, अवि य " अहह अहो ! नारीणं अकज्जकरणम्मि उज्जमो अहियं । अविवेयबहुलया वि य साहस - कवडाण खाणित्तं ॥२६॥ Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः अहवा को जुवईणं पुच्छइ असमंजसाई कज्जाई । दोसाण आगरोच्चिय जाण सरीरे वसइ कामो ॥२७॥ २७१ मूलं दुच्चरियाणं हवइ य नरयस्स वत्तिणी विउला । मोक्खस्स परमविग्धं वज्जेयव्वा सया नारी ॥२८॥ ता कह मणयं छलिओ अज्ज अहं तीए पावकम्माए । अहवा किं एएणं ? कज्जे च्चिय निच्छयं कुणिमो ॥ २९ ॥ ता सव्वहा एस निच्छओ जमज्जप्पभिदं एगागिणा परगेहे न गंतव्व" मेवं निच्छयं काऊण जाओ संधम्मकम्मुज्जओ । अण्णया कयाई समागओ इंदमहूसवो । तत्थ य कीलानिमित्तं सुदंसणकविलसमण्णिओ सुपरजणवओ निग्गओ राया उज्जाणसिरिमणु भविउं । एत्तो य राइणो दहिवाहणस्स अग्गमहिसी अभया नाम तीए कविलाए सह महरिहजंपाणारूढा रायाणमणुगच्छइ । सुदंसणपिययमा वि मणोरमा छहिं पुत्तेहिं परिवारिया रोहिणी व्व तारयाणुगया पहाणजंपाणारूढा विणिग्गया । तं च दट्ठूण पुच्छियं कविलाए 'सामिणि ! का एसा ? सयलवणराईणं पिव कप्पलया नियसोहासमुदएणं सव्वमभिभवंती गच्छइ' ? देवीए जंपियं 'हला ? जगविक्खाया वि किं तए न नाया एसा सुदंसण - पिययमा ? तओ कविलाए भणियं 'जइ एसा सुदंसणपिययमा ता अहो ! निउणत्तणमेईए जमेत्तियाणि पुत्तभंडाणि ★ उप्पाइयाणि' । देवीए लवियं किमित्थनिउणत्तणं जं नियपियपसोयसंपत्तसुरयसुहाए अक्खश्रवायाए ( ? ) समुप्पज्जंति पुत्तभंडाणि । कविलाए जंपियं ‘अत्थि एवं, परमेस सुदंसणो पंडगो' देवीए जंपियं 'कहमेयं तए नायं' तीए भणियं 'विण्णासिओ सो मए इमिणा य वृत्तंतेण । अभयाए भणियं 'जइ एवं ता वंचियाऽसि तुमं वराई डोड्डिणी कामसत्थबाहिरत्ति काउं, जओ सो पंडगो परित्थीणं, न पुण सकलत्ताणं' । तओ कविलाए सविलक्खाए हसिऊण जंपियं 'जइ अहं कामसत्थबाहिरा वंचिया तो तुमए कामसत्थनिम्माया को अइसओ कओ' ? अभयाए भणियं 'किमित्थ चोज्जं जमहमइसयं करेमि । कविलाए भणियं 'देवि ! अइसोहग्गगारवो वि न कायव्वो' । अभयाए भणियं 'करेइ सो जस्स नियसामत्थमत्थि' । कविलाए भणियं 'जाणामि तुज्झ सामत्थं जइ एयं चेव सुदंसणं रामेसि' । देवीए भणियं " हला ! जइ नवि रामेमि इमं तो काउं इत्थिभावविणिवित्तिं । जावज्जीवं पि अहं पविसामि हुयासणं दित्तं" ॥३०॥ १. ला. सद्धम्म° ॥ २. ★★ एतच्चिह्नद्वयमध्यगः पाठो ला. संज्ञकप्रतावेवोपलब्धः ॥ Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७२ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः एवं जपंताओ ताओ पत्ताओ तत्थ उज्जाणे । रमिउं सुइरं कालं गयाओ नियएसु ठाणेसु ॥३१॥ तओ भणिया अभयाए नियया पंडिया नाम धाई जहा 'अम्मो ! मए एवं पइण्णा कया ता जहा तेण सह संपत्ती भवइ तहा करेहि' । पंडियाए भणियं "पुत्ति ! न सुटु मंतियं, जओ अवि चलइ तियससेलो सुक्कइ जलही वि पडइ गहचक्कं । तह वि सुदंसणचित्तं, मणयं पि हु चालिउमसक्का ॥३२॥ जम्हा सो हु महप्पा परनारीसंगमाउ विणियत्तो । इह-परलोगविरुद्धं न एरिसं कुणइ पलए वि ॥३३॥ न य आणेउं तीरइ जम्हा सो सावओ गुणसमग्गो । सयलवरनीइकुसलो तम्हा विहला तुह पइण्णा" ॥३४॥ देवीए भणियं 'जइ एवं तहावि एक्कवारं कहिंचि आणेहि, पच्छाऽहमेव भलिस्सामि' पंडियाए भणियं 'जइ एस ते निच्छओ ता अत्थि एक्को उवाओ जम्हा सो पव्वदियहेसु सुण्णगेहाइएसु काउस्सग्गेण ठाइ, ता जइ परं कहिंचि तहट्ठिओ चेव आणिज्जइ' । देवीए भणियं ‘एवं पि चिंतेहि आणयणोवायं' । एवं च वच्चंतेहि केहिचि दिणेहिं समागओ कोमुईमहूसवो । तत्थ य समाइटुं नरवइणा जहा "घोसेह पंडहेण सव्वत्थ-सयलनरलोएण सव्विड्डीए कोमुईमहूसवदंसणत्थमुज्जाणे गंतव्वं" । तह चेव घोसिए निउत्तपुरिसेहिं चिंतियं सुदंसणेण जहा 'अहो ! दुत्तरमेयं जओ जइ उज्जाणे गम्मइ तो चेइयाणं चाउम्मासियपूया न भवइ, चंडं च रायसासणं, ता. पढममुवाओ कीरइ' त्ति । चिंतिऊण गहियोवायणो गओ रायसमीवं, विण्णत्तो य राया जहा 'देव ! एत्थ कोमुईए अम्ह धम्मदिवसो ता जइ देवो पसायं करेइ तो देवपूयाइयं करेमो' । राइणा वि 'मा देवाणं पूयाविघाओ भवउ' त्ति मण्णमाणेण भणियं जहा 'करेहि कालोचियं धम्माणुट्ठाणं' ति । सुदंसणो वि 'देव ! महापसाओ' त्ति [ग्रं० १२०००] भणिऊण निग्गओ । समाढत्ता जिणाययणेसु पूया । तओ सव्वदिणं पि ण्हवणाईयं महाविच्छड्डेणं काऊण रयणीए कयपोसहो ठिओ नयरचच्चरे काउस्सग्गेण । तओ भणिया पंडियाए अभया 'पुत्ति ! कयाई अज्ज पुज्जं ति तुह मणोरहा, परं तए वि न गंतव्वमुज्जाणे' । तओ सा वि 'सिरं मे बाहइ' त्ति रण्णो उत्तरं काऊण ठिया । तओ पंडिया लिप्पमयमयणपडिममुत्तरिज्जपच्छाइयं काऊण पविसमाणी निरुद्धा दारपालेहि। १. ला. पडहएण ।। २. ला. स ग्रंथाग्रं १२००० व्वदिणम्मि ण्ह' ॥ Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः २७३ 'किमेयं ?' ति पुच्छियाए भणियमणाए जहा 'अज्ज महादेवी सरीरकारणेणं न उज्जाणं गया तओ मयणाइदेवयाणं घरे चेव पूयं करिस्सइ, एएण कारणेण एसा मयणपडिमा पवेसिज्जइ, एवमण्णाओ वि पडिमाओ पविसिस्सामि' । तेहिं भणियं 'जइ एवं तो दंसेहि एयं पडिमं' । दंसिया य तीए उग्घाडिऊण । तओ विसज्जिया अणेहिं । एवं दुइयवाराए वि । तइयवाराए पुण सुदंसणं गहाय उत्तरिज्ज पच्छाइयं काऊण पविट्ठा । निव्वियप्पेहिं दारवालेहिं न निरुद्धा । समप्पिओ य तीएं अभयाए महादेवीए । सा वि बहुप्पयारं खोभिउं पयत्ता, अवि य "कुणसु पसायं पिययम ! छलेण आणाविओ तुमं एत्थ । मयणमहागहगहियाइ मज्झ तं होहि वरवेज्जो ॥३५॥ तुह विरहमहोरगदसणगरलवसवेविराइं अंगाई । नियसुरयमंतजावेण ताई मह कुणसु सच्छाई" ॥३६॥ सुदंसणो विविण्णायपरमत्थो काउस्सग्गट्टिओ चेव जाओ सुरसेलो व्व निप्पकंपो । तो पुण वि हाव-भावाइएहि उवसग्गिउं भणइ एसा । " किं तुह वएण अहियं होही मम संगमाओ वि ? ||३७|| अणुरतं अइभत्तं सुरयवियङ्कं सुजोव्वणं सुभगं । माणेहि ममं सामिय ! देवाण वि दुल्लहं किमिणो ? ॥३८॥ मह दंसणं पि सुंदर ! सामन्ननरो न पावए कहवि । आलिंगण - सुरयसुहाई सुहय !- सुविणे वि न हुहुंति ॥ ३९ ॥ तुह पुण अणुरत्ताऽहं देमि जहिच्छाए ताइं अणवरयं । ता मा कुणसु विलंबं मन्नसु मह पत्थणं एवं ||४०|| तं सावओ दयालू सुव्वसि ता पसिय कुणसु मह इट्ठ । इयरह महमरणेणं थीवज्झा होहिई तुज्झ" ॥४१॥ एवं पिहु पडिभणिओ सुदंसणो जा न जंपए किंपि । ता कोमलकमलदलोबमेहिं हत्थेहिं फरसे ॥ ४२ ॥ कोमलमुणालदीहरभुयाहि कंठम्म घेतु अइगाढं । उत्तुंगपीणचक्कलथणेहिं पीडेइ वच्छ्यलं ॥४३॥ तह तीए तीस्स विहियाउ सुरयकिरियाउ पावहिययाए । जह लोहमओ वि नरो सहसा परिगलइ किं बहुणा ? ॥४४॥ मूल. २-३५ Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७४ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः सो पुण महाणुभावो जह जह सा कुणइ विविहउवसग्गं । तह तह धम्मज्झाणे अहिययरं निच्चलो होइ ॥४५॥ चितेइ य 'जइ कह वि हु उवसग्गाओ इमाओ छुट्टेमि । तो पारेमि अहऽण्णह एयं चिय अणसणं मज्झ' ॥४६॥ रुसिऊण ततो देवी भणइ य "भो ! जइ न कुणसि मह वयणं । तो नत्थि तुज्झ जीयं किं बहुणा एत्थ भणिएण ? ॥४७॥ ता कुणसु मज्झ वयणं निविण्णो जइ न निययजीवस्स" । इय भणिओ वि हु एवं धम्मज्झाणं समारुहइ ॥४८॥ इय नीसेसं रयणि कयत्थिओ ताव जाव न हु खुहिओ । दहूँ पभायसमयं दारइ नक्खेहि अप्पाणं ॥४९॥ पोक्करइ य 'दे धावह धावह एसो अणारिओ पुरिसो । मज्झ बलामोडीए खंडेउं इच्छए सीलं' ॥५०॥ तं सोउं पाहरिया धावित्ता जाव जंति तं देसं । काउस्सग्गेण ठियं पेच्छंति सुदंसणं ताव ॥५१॥ तओ 'असंभवणीयमेयं' ति मण्णमाणेहिं तेहिं वि निवेइयं नरवइणो । सो वि संभंतो झ त्ति समागतो । पुच्छिया सा 'देवि ! यं ?' किमे ति । तीए भणियं "नाह ! सुणेहि, ठियाऽहंजाव तुब्भे विण्णविऊण सरीरकारणेणमित्येव ताव कोवि अप्पतक्किओ चेव समागओ एसो, भणिया य अहमणेण बहुप्पयारं । तओ भणियं मए 'मूढ ! किमेयं पि तए न सुयं पढिज्जमाणं, अवि य सीहह केसर सइहि थण, करि आउहु सुहडाहं । मणि मत्थइ दव्वीकरहं, नवि घेप्पइ अमुयाहं ॥५२॥ तओ मए जाव एवं निब्भच्छिओ तावबलामोडी कुणंतस्संमए धाहावियं । ततो राइणा वि 'न मियंकबिंबाओ अंगारखुट्ठीओ पडंति' त्ति सुदंसणाओ तमसंभावयतेण पुच्छिओसायरं जहा 'फुडं साहसु को एत्थ परमत्थो' ? तओ देवीए अणुकंपट्ठयाए न किं पि जंपियमणेण । एवं च पुणो पुणो पुच्छिज्जमाणो वि न कि पि जंपइ तओ 'एयं पि संभवइ' त्ति मण्णमाणेण समाणत्तो वज्झो जहा 'पउराणमेयं दोसं निवेइऊण पच्छा एवं विणासेह' । तओ गहिओ सो दंडवासिएहिं, समारोविओ उब्भडरासहं, विलित्तो रत्तचंदणेणं, १. ला. संभाविज्जइ ति ॥ Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भाग: २७५ चच्चंकिओ तणमसीपुंडएहिं, पक्खित्ता सिरोहराए सरावमाला, कया रत्तकणवीरमुंडमाला, धरिजंतेणं उवरि छित्तरयछत्तेणं, वज्जतेणं खंडपडहएणं भमाडिउमाढत्तो सव्वत्थ नयरिमज्झे, उग्घोसिज्जए एयं जहा "निसुणंतु सयललोगा जह एसो किर सुदंसणो सेट्ठी । अंतेउरेऽवरद्धो त्ति करिय मारिज्जए एवं ॥५३॥ न य राया जुवराओ य को य अवरज्जई सुणह लोया ! । अवरज्झंति नियाई अत्तत्थ इमस्स कम्माई" ॥५४॥ एवं च निग्घोसणं निसामिऊण समत्थलोगो वि भणिउमाढत्तो अवि य "धी धी न जुत्तमेयं विहियं रण्णा जओ न एयस्स । गंधो वि एत्थ विज्जइ दोसस्स महाणुभावस्स ॥५५॥ अवि चंदमंडलाओ पडंति अंगारखुट्ठिसंघाया ।। नेय सुदंसणसेट्ठी इमाण कम्माण कारि त्ति ॥५६॥ एवं च जंपमाणाणं लोयाणं पत्तो उसभदाससेट्ठिघरदुवारे, दिट्ठो य बहिणिग्गयाए मणोरमाए, चिंतियं च, अवि य "अहह ! अणज्जो एसो विही जओ मह पइस्स वि इमेण । निद्दोसस्स वि विहिया एवं अइदारुणाऽवत्था ॥५७॥ नूणं भवंतरकयं इमस्स कम्मं उवट्ठियं किंचि । अकलंकस्स वि जेणं समागया आवया एसा ॥५८॥ राग-द्दोसवसगया जीवा असुहेहिं करणजोगेहिं । बंधंति कम्मजालं जमिहाऽसुहलेसजोगेण ॥५९॥ पाविति नियमसो च्चिय तस्सुदएणं निकाइयस्स पुरा । गरुयं विवायदुक्खं पमायरहिया वि निच्चं पि ॥६०॥ अइसयनाणी वि दढं साइसयं वरतवं तवंता वि । साइसयलद्धिया वि ये छुट्टति न पावकम्माओ ॥६१॥ गुरुयरपरक्कम्मा वि हु निम्मलवरसत्तसाहसधणा वि । हम्मन्ति अणेगे च्चिय कम्मविवागेण विवसा उ ॥६२।। १. ला. चच्चक्किओ ॥ २. ला. हु॥ ३. ला. 'वरचंडसासणध ॥ Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७६ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः अहवा जइ वि हु कम्मं बलिययरो तह वि भव्वजीवाणं । भवइ य वियंभमाणो अउव्वकरणानलो लोए ॥६३॥ ता किं इमिणा असंबद्धणं चिंतिएणं ? कज्जप्पहाणेहिं चेव होयव्यं, कज्जं च जं विसुद्धभावजोगेण देवयाराहणं" ति । तुरियमेव गया घरचेइयाणं पुरओ । काऊण य जिणपूयं ठिया काउस्सग्गेण, भणियं च "भयवइं ! पवयणदेवी !, निसुणसु मह संतियं इमं वयणं । कुण सन्निज्झं वर सा-वयस्स एयस्स नणु सिग्धं ॥६४॥ अह नवि करेसि एवं तो नवि पारेमि काउसग्गमहं । ऐवं चिय मह भयवइ ! निच्छयओ अणसणं होही" ॥६५॥ सुदंसणो वि सयलनरनायरजणवयणविणिग्गयं सुणमाणो हाहारवं नीओ मसाणभूमि । समारोविओ सूलाए । पवयणदेवयापभावेण य जाया सा कणयमयपउमासणं । तओ दिण्णो सिरोहराए करवालप्पहारो । सो विजाओ सियकुसुममालापयरो । तं च दट्ठण भयभीएहिं दंडवासिएहिं निवेइयं रण्णो । तओ सो वि संभंतो समारुहिऊण वारुयाए गओ मसाणं भूमि । खमाविऊण बहुप्पयारं भणिओजुत्तं नाम मज्झ वि असाहणं ? किं दिट्ठो कत्थ वि तएऽहमसब्भावेण ववहरंतो जेण मूणव्वयमालंबियं ?' ति भणमाणेण समारोविओ सहत्थेहिं घेत्तूण वारुयापरिकयाए । नीओ सबहुमाणं राउलं । पहाविओ 'मंगलकलसेहिं विलित्तो गोसीसचंदणेणं, परिहाविओ पवरवत्थालंकाराई, किं बहुणा ? सम्माणिऊण य अणेगप्पगारेहिं पुच्छिओ परमत्थं, तओ भणियं सुदंसणेण 'देव ! देहि एत्थ विसए अभयं' । दिण्णं चेव तुहाऽभिरुइयं तमण्णं पि किं पुण अभयं ?' ति । तओ साहिओ सवित्थरो रयणिवुत्तंतो । कुविओ अभयाए राया। पाएसु पडिऊण नियत्ताविओ सुदंसणेण । तओ वरकुंजरारूढो वजंतेहिं मंगलतूरेहिं, नच्चंतेहिं पायमूलेहिं पढंतेहिं भट्ट-मागहेहिं, वियरंतो महादाणं, अवणितो सयलनरनारीयणहिययसंतावं महाविभूईए सव्वत्थ नयरे भमिऊण पत्तो सभवणं । आणंदिया बंधवा । तुट्ठा जणणि-जणया । पमुइया मनोरमा । कयं तकालोचियं । ठिओ कियंतं पि कालं । अभया वि एयं वइयरं समायण्णिऊण अप्पाणं उब्बंधिऊण मया । पंडिया वि पणट्ठा । नस्संती य गया पाडलिपुत्तं नाम नयरं । तत्थ य ठिया देवदत्ताभिहाणाए गणियाए समीवे। वण्णेइ य पइदिणं देवदत्ताए पुरओ सुदंसणगुणा देवदत्ता वि सुदंसणगुणजणियानुरागा चिट्ठइ तद्दसणूसुया । १-२. ला. एयं ॥ ३. ला. "मयसिंघासणं ॥ ४. ला. रायकुलं । Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७७ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः सुदंसणो वि पुणोपुणो परिभातो दुरंतदारुणं कम्मपरिणामं, पेच्छंतो असारयं संसारस्स, निविण्णकामभोगो पव्वइओ सुगुरुसमीवे । उग्गतवसोसियसरीरो य एगल्लविहारपडिमापडिवण्णो विहरंतो पत्तो पाडलिपुत्तं नयरं । दिट्ठो य पंडियाए गोयरचरियाए पविट्ठो । कहिओ य देवदत्ताए जहा 'सामिणि ! सो एस सुदंसणो महप्पा जस्स गुणे अहं तुह पुरओ पइदिणं वण्णंती' । तओ तीए भणियं 'जइ एसो ता आणेहि भिक्खाछलेण मम गेहं' । तीए वि तहेवाणीओ । देवदत्ताए विदारं ढक्किऊण बहुविहपत्थणापुव्वयं कयत्थिओ सव्वदिवसं । तओ जाव न खुभिओ ताव वियालवेलाए मुक्को गओ उज्जाणे । तत्थ वि दिट्ठो तीए अभयावंतरीए । पउट्ठाए य कयत्थिओ बहुप्पयारं । भयवं पि तहा कयत्थिज्जमाणो वि समारूढो अपुव्वकरणं, रखवगसेढीकमेण पत्तो केवलनाणं ति । एत्थंतरम्मि य समागया सुरा-ऽसुरा । साहिओ भयवया धम्मो । पडिबुद्धा बहवे पाणिणो, विसेसेण पंडिया धावी-देवदत्ता-वंतरीओ य । कालंतरेण य संबोहिऊण भव्वलोयं पत्तो भयवं सासयसोक्खं मोक्खं ति । ता भो ! जं से तइया मणोरमाराहियाए देवीए । सन्निज्झं काऊणं निवत्तिओ घोरउवसग्गो ॥६६॥ तत्थ इमा तियसाण वि संजाया पायडा विसेसेण । मणुयाण सलाहणिया मणोरमऽक्खा महसइ त्ति ॥६७॥ मनोरमाख्यानकं समाप्तम् ॥५२॥ इदानीं सुभद्राख्यानकमाख्यायते - [५३. सुभद्राख्यानकम्] अस्थि समत्थमहोयहिदीवाणं मज्झसंठिओ रम्मो । पडिपुण्णचंदमंडलसंकासो जंबुदीवो त्ति ।१॥ तत्थ य भरहे वासे दाहिणअद्धस्स मज्झखंडम्मि । अंग त्ति सुप्पसिद्धो नामेणं जणवओ अत्थि ॥२॥ तत्थ पुरी पोराणा चंपा नामेण अत्थि सुपसिद्धा । ....बहुदिवसवण्णणिज्जा अलयाउरिसरिसवरविभवा ॥३॥ तीए य जियसत्तू नाम राया । तत्थ य जिणसासणाणुरत्तो अत्थि जिणदत्तो नाम सावओ । तस्स य अच्चंतुब्भडरूवाइगुणसमग्गा अत्थि सुभद्दा नाम धूया, अवि य- . १. ला. 'भावयंतो ॥ २. ला. भारहवासे ।। Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७८ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः रूवाइगुणसुभद्दा, कलकोइलरवसरिच्छवरसद्दा । आगामिचारुभद्दा मणेण निच्चं पि अक्खुद्दा ॥४॥ सरलसहावा भद्दा, धारियजिणनामधण्णवरमुद्दा । गयनिंदा सुभनिद्दा अदंदा साविय सुभद्दा ॥५॥ सा य अण्णया कयाइ दिट्ठा सभवणे ठिया कहिचि पओयणागएणं तत्थेव वत्थव्वगेण तच्चण्णियभत्तसेट्ठिपुत्तेण बुद्धदासेण, तं च दद्रुण चिंतियमणेण, अवि य "नूणं सो दुवो च्चिय विही अबीओ विणिम्मियं जेण । एसा परजणभोज्जा विहिया अइरूवकलिया वि ॥६॥ अहवा वि हु अंधलओ जो मुंचइ एरिसं इमं कण्णं । जइ सज्जक्खो हुँतो कह अमयं मुंचए दटुं ॥७॥ जइ पावेमि न एयं तो जायइ नित्तुलं महं मरणं । कामाउराण अहवा एवं चिय हुंति चिंताओ ॥८॥ इय चितंतो एसो विद्धो बाणेहिं पंचबाणेण । तो नियगेहे गंतुं वरणत्थं पेसए नियए ॥९॥ जिणदत्तो वि उचियपडिवत्तीए ते सम्माणिऊण पुच्छइ 'भणह किमागमणप्पओयणं' ? तेहिं वि सिटुं निययपओयणं । सेट्ठिणा भणियं "सव्वं संपुण्णमत्थि तम्मि जाइ-कुल-रूव-जोव्वण-लावण्ण-विहवाइयं, परमण्णधम्मियत्तणेण परोप्परमणणुवत्तीए न एयाणं नेहो भविस्सइ त्ति काऊण न देमि" । तओ तेहिं गंतूण सव्वं निवेइयमेयस्स । तेण वि चिंतियं 'जाव न कवडसावगत्तणमंगीकयं न ताव एसा लब्भइ' त्ति । चिंतिऊण गओ साहुसमीवे, भणिया य साहुणो 'संसार भउव्विग्गो अहयं तुम्हाण सरणमल्लीणो। ता रक्खेह महायस ! निययं कहिऊण मह धम्म' ॥१०॥ तो तेहिं तस्स धम्मो सिट्ठो जिणइंददेसिओ पवरो। सो वि तयं पडिवज्जइ भवभयभीओ व्व कवडेण ॥११॥ अह पइदिणसवणाओ परिभावंतस्स तस्स अणुदियहं । धम्मो जिणपण्णत्तो सहस च्चिय परिणओ चित्ते ॥१२॥ १. ला. जिणयंदः ॥ Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७९ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः तो भणइ वंदिऊणं गुरुणो "भयवं ? सुणेह मह वयणं । कण्णाकएण धम्मो पडिवण्णो आसि मे पुव्वं ॥१३।। इण्हि तु भावसारं एसो च्चिय मज्झ परिणओ चित्ते । कवडो वि हु सब्भावो संजाओ मज्झ पुण्णेहिं ॥१४॥ ताऽणुव्वयाइयाइं वयाई मह देसु सामि ! सव्वाइं । सिक्खावेह य सारं जमेत्थ जिणसासणे किंचि" ॥१५॥ तओ सव्वं सिक्खाविओ गुरूहि । थैवदियहेहिं चेव जाओ अभयकुमारसारिच्छो सावओ, अवि य ण्हवण-बलि-पूय-जत्ताइयाइं कारेइ जिणवरघरेसु । पडिलाहइ भत्तीए फासुयदव्वेहिं जिणमुणिणो ॥१६॥ साहम्मियपडिवत्तिं करेइ तंबोल-भोयणाईहिं । दीणाईणं दाणं देइ जहिच्छाए अणवरयं ॥१७॥ आवस्सयसज्झाए सामाइय-पोसहेसु उज्जुत्तं । दट्टण य जिणदत्तो सयमेव य देइ तं कण्णं ॥१८॥ तओ निरूवियं वारिज्जयलग्गं । आढत्ता सामग्गी दोसु वि कुलेसु । जायं महाविछड्डेणं पाणिग्गहणं । ततो जाव वच्चंति कइ वि दियहा ताव भणिओ जिणदत्तो जामाउगेण 'ताय ! विसज्जेह संपयं सुभई जेण नेमि नियगेहं' जिणदत्तेण भणियं 'पुत्त ! जुत्तमेयं, परं मिच्छादिट्ठीणि तुह माया-वित्ताणि तेण धम्मविपडिवत्तीए दाहिति इमीए कलंक' । जामाउगेण भणियं 'ताय ! जुवगगेहे धरिस्सं' । तओ विसज्जिया सा सेट्ठिणा । तेण वि ठविया जुवगगेहे । तीए य घरे पविसंति अणवरयं भत्त-पाणोसहाइनिमित्तं साहुसंघाडगा । तओ तमसहमाणेहिं [माया-वित्तेहिं ?] भणिओ से पई जहा 'न सोहणा ते महिला, अच्छइ पइदिणं सह समणेहिं । तेण भणियं "मा एवं पलवह, जओ न एवमेयं पलयकाले वि संभाविज्जइ, अवि य विसमनिवडंतबहुविह विमाणलक्खेहिं संकुला सग्गा । निवडंति नहयलाओ न य एसा चलइ सीलाओ ॥१९॥ अवि नेरइयसमग्गा असंखदुहसंकुला महानरया । निवसेज्ज व आगासे न य एसा चलइ सीलाओ ॥२०॥ १. ला. थोव ॥ २. ला. जुयग' ॥ Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८० मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः अवि तरइ जले सेलो अविवज्जं भिज्जए तणेणाऽवि । अवि पडइ हिमं जलणे न य एसा चलइ सीलाओ ॥२१॥ अवि जलइ जले जलणो सिल ब्व अवि होज्ज निच्चलो पवणो । अवि निवडइ सिद्धसिला न य एसा चलइ सीलाओ" ॥२२॥ एवंविहं च तव्वयणमायण्णिऊण दूमियचित्ताणि ठियाणि तुण्हिक्काणि सव्वाणि । अण्णया य पविट्ठो खवगमुणी सुभद्दागेहे भिक्खट्ठा । तस्स य पवणपेरियं पविट्ठमच्छिम्मि कणुयं, निप्पडिकम्मसरीरत्तणाओ य नाऽवणीयं मुणिणा । तं च दट्टण चिंतियं सुभदाए 'अहो ! महाणुभावया मुणिस्स जं निप्पडिकम्मसरीरत्तणेणमच्छिकणुगं पि नाऽवणेइ ता जइ एवं एमेव चिट्ठइ तो नियमा अच्छिवि घायं पि करेइ' । तओ भत्तं पयच्छंतीए नियकलालाघवेण जीहग्गेणाऽवणीयं तमेयाए । संकंतो य मुणिणो भालवटे तस्संतिओ चीणपिट्ठतिलओ । अणाभोगजोगओ य न लक्खिओ दोहिं वि सो । ततो चीणपिट्ठतिलयभूसियभालयलं मुणिं तग्गेहाओ निग्गच्छंतं दट्ठण पत्थावो त्ति हरिसियाहिं भणियं जणणि-भगिणीहिं 'पुत्त ! संपयं किमुत्तरं काहिसि ? जइ अम्हाणं ण पत्तियसि तो पेच्छ कहमेयस्स सेयभिक्खुणो भालयले एस से तिलओ संकेतो' ? तओ 'दढो पच्चओ' त्ति निव्वियप्पेण चिंतियमणेण-'अहो ! जइ नाम एसा उभयकुलविसुद्धा विण्णायजिणवयणपरमत्था वि संसारभउव्विग्गा वि धम्मपरा वि एवं ववसइ ता किमेईए उवरि पेमाणुबंधेणं' ति । भाविऊण सिढिलीकओ पेमाणुबंधो । तं च जाणिऊण चितियं सुभद्दाए, अवि य "जं नाम विसयभोगप्पराण संसारमावसंताणं । जायंति कलंकाई तं न हु अच्छेरयं कि पि ॥२३॥ घरवासवावडाए विसयासत्ताए जं महकलंकं । संजायं तं मह माणसम्मि थेवं पि न हु दुक्खं ॥२४॥ जं पुण मह कज्जेणं जायं जिणसासणस्स मालिण्णं ।' ससहरकरधवलस्स वि तं दूमइ माणसं मज्झं ॥२५॥ ता जाव न एयं पवयणस्स मालिण्णमवणियं कह वि । ता मह हिययस्स धिई न होइ जीयंतकाले वि" ॥२६॥ १. ला. खमग ॥ २. ला. 'मच्छिसि ॥ ३. ला. विसयपसत्ताए । Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः २८१ इय चिंतिऊण तो सा संझासमयम्मि गेहपडिमाणं । काउं विसिट्ठपूयं पमज्जिउं अह महीवीढं ॥२७॥ गिण्हइ महापइण्णं "जा नवि जिणसासणस्स मालिण्णं । एयं मएऽवणीयं ता न वि पारेमि उस्सग्गं ॥२८॥ जो जिणसासणभत्तो सो देवो होउ मज्झ पच्चक्खो । अवि नवि होइ निरुत्तं एयं चिय अणसणं मज्झ" ॥२९॥ इय जाव खणं एवं काउस्सग्गेण संठिया एसा । ता पयडियदिसियकं निययपहाजालपसरेण ॥३०॥ वरहार-मउड-कुंडल-पलंबपालंबमाणसोहिल्लं ।। देवंगसंवुयंगं पुरओ सा पिच्छए देवं ॥३१॥ सो भणइ 'साविए ! भण, कज्जेणं जेण सुमरिओ अहयं' । तं पेच्छिऊण तुट्ठा भणइ सुभद्दा तयं एवं ॥३२॥ 'जिणसासणाववायं अवणेहि इम' ति जंपियं तीए । तुट्ठो जंपइ देवो "मा सुंदरि ! कुणसु इह खेयं ॥३३॥ नयरीए दुवाराई चउरो वि अहं पभायकालम्मि । ढकिस्सामि न को वि हु उग्घाडिस्सइ तुमं मोत्तुं ॥३४॥ पभणिस्सामि य अहयं जा का वि सई इहऽत्थि नयरम्मि । सा उग्घाडउ दारे चालणिकयदगछडाहिं तु ॥३५॥ उग्घाडिस्ससि ताई तुममेव य नत्थि एत्थ संदेहो" । इय वोत्तूणं तियसो सहसा अइंसणीहूओ ॥३६॥ तओ काउस्सग्गमुस्सारिऊण सा सुभद्दा हद्वतुट्ठा रयणि गमेइ, पभाए य लोगेण जाव उग्घाडिउमाढत्ताणि पउलीकवाडाई ताव महंतेहिं वि पयत्तेहिं न उग्घडंति, भंजिज्जमाणाणि वि न भज्जंति । तओ खणमेत्तेण आउलीहूओ लोगो आरडभेरडीजातो चउप्पयसंघाओ । 'देवविलसियं किं पि एवं ति नाऊण अल्लपडसाडगो धूवकडच्छयहत्थो सपउरो राया विण्णविउ माढत्तो, अवि य 'देवस्स दाणवस्स व जस्सऽवरद्धं अयाणमाणेहिं । सो खमउ अम्ह सव्वं पसायपरमं मणं काउं' ॥३७॥ १. ला. एयं ॥ २. ला. 'डाणि ॥ मूल. २-३६ Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८२ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः तओ जंपियं देवेण, अवि य"भो भो ! निसुणह लोगा ! महवयणं अवहिया पयत्तेण । जा का वि इह पुरीए महासइत्तं समुव्वहइ ॥३८॥ .. सा चालणीय संठियजलेणऽछोडेउ तिन्नि वाराओ । जेणुग्घडंति दारा किमित्थ बहुणा पलत्तेण ?" ॥३९॥ एयं च वयणं समायण्णिऊण अहमहमिगाए राया-ऽमच्च-पुरोहिय-सेणावइसामंत-सेट्ठि-सत्थवाहपभिईणं भज्जा-धूया-वहुयाओ महासइत्तणगव्वमुव्वहंतीओ समागयाओ । सव्वाओ वि विगुत्ताओ चालिणीपरिक्खाए अवि य इय जाहे विगुत्ताओ ताओ सव्वाउ नयरनारीओ । ताहे भणइ सुभद्दा सासुयमाई उ पइपुरओ ॥४०॥ 'तुम्हाऽऽणाए अम्मो ! अहमवि विण्णासयामि अप्पाणं' । ताओ भणंति हसिउं "दिटुं च सइत्तणं तुज्झ ॥४१॥ जइ एयाउ संयीओ, उग्घाडेउं चयंति नो दारे। तो तं उग्घाडेहिसि जा निच्चं समणपस्भुित्ता" ॥४२॥ तो जंपेइ सुभद्दा 'अंब ! किमेएण ता परिक्खामि । वारेंतीण वि ताणं अह गिण्हइ चालणि एसा ॥४३॥ पक्खिवइ तत्थ उदगं जा न वि भूमीए. पडइ बिंदु पि । ता दूमियाउ ताओ पई वि परिओसमुव्वहइ ॥४४॥ तो चालणीए उदयं घेत्तुं सा जाइ जत्थ नरनाहो । चिट्ठइ पउरसमेओ सेसित्थिपरिक्खमिक्खंतो ॥४५॥ तो दगपूरियचालिणिहत्थं आवितयं तयं दटुं । अब्भुट्ठइ संभंतो समत्थजणपरिखुडो राया ॥४६॥ एहेहि साहुपुत्ते ! महासई ! देववंदियच्चलणे ! । उग्घाडेहि कवाडे अम्ह पसायं विहेऊण' ॥४७॥ तो गच्छइ य सुभद्दा पुव्वपओलीइ रायपरियरिया । संपत्ता कोडेणं सुरसिद्धगणा वि तत्थेव ॥४८॥ १. ला. सईओ ॥ २. सं.वा.सु. ए एहि ॥ Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भाग: २८३ तो पंचनमोक्कारं भणिय सुभद्दा उ तिन्नि वाराओ । अच्छोडइ चालणिसंठिएण नीरेण सा सहसा ॥४९॥ ता महया कुंचारवसद्देण समुग्घडंति अररीणि । तो दुंदुहीउ तुरियं पहयाओ सुरा-ऽसुर-नरेहिं ॥५०॥ निवडइ य कुसुमवुट्ठी तदुवरि गयणाउ तियसपम्मुक्का । 'जय बंभाणि ! महासइ !' इय जयसद्दो समुछेलइ ॥५१॥ 'तं धण्णा कयपुण्णा तुज्झ सुलद्धं च माणुसं जम्मं । जं तियसवण्णणिज्जं अक्खलियं धरसि वरसीलं' ॥५२॥ इय एवं थुव्वंती दाहिण-पच्छिमपओलिदाराई । उग्घाडिऊण वच्चइ उत्तरपासत्थियं पउलि ॥५३॥ तीए ये कवाडाइं अच्छोडित्ता जलेण तो भणइ । 'जा मह सरिसी का वि हु उग्घाडिज्जा उ सा एए' ॥५४॥ अज्ज वि तहेव चिट्ठइ तं दारं तीए चंपनयरीए । सा वि हु अणुगम्मंती असेसपुरनायरजणेणं ॥५५॥ वणिज्जंती सयणाइएहिं भट्टेहिं तह पढिज्जंती । नारीयणमंगलसद्दसंथुया जाइ जिणभवणे ॥५६॥ तत्थ वि 'नमो जिणाणं' भणमाणी चेइयाण सा पूयं । काऊण पुणो वंदइ जाइ तओ गुरुसमीवम्मि ॥५७॥ दाऊण य वंदणयं गुरूण भत्तीए बारसावत्तं ।। वंदित्तु समणसंघं नियघरहुत्तं तओ चलिया ॥५८॥ दीणा-ऽणाहाईणं वियरंती इच्छियं महादाणं । जिणसासणमाहप्पं एवं एयं पयंपंती ॥५९॥ संपत्ता नियभवणे पणमित्ता जंति नरवंराईया । नियनियठाणेसु तओ पई वि परमेण विणएण ॥६०॥ जंपइ 'खमसु महासइ ! मज्झ पिए ! जं अणज्जवयणेहिं । परिभूयाऽसि मणागं, सुरमहिए ! सुदढसम्मत्ते' ॥६१॥ १. ला. च्छलिओ ॥ २. ला. वि ॥ ३. ला. एसा ॥ Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८४ एवं सा सव्वाण वि, देवयभूया निएण सह पइणा । धम्माणुट्ठाणरया, भुंजइ सव्वुत्तमे भोगे ॥६२॥ एवं इमा सुभद्दा, महासई पायडा तिलोगम्मि । तह सव्वसावियाणं, उवमट्ठाणम्मि जा जाया ||६३ || सुभद्राख्यानकं समाप्तम् ॥५३॥ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः सुलसाख्यानकं तु प्रागुक्तमेव, आदिशब्दसूचितकथानकेषु तु तावद नर्मदासुन्दरी - कथानकमाख्यायते [ ५४. नर्मदासुन्दरीकथानकम् ] एत्थेव जंबुदीवे, दीवे भरहद्धमज्झखंडम्मि । अत्थि गुणाण निवासं, वरनयरं वडमाणं ति ॥१॥ तस्स पहू सिरिमोरियवंसप्पभवो कुणालअंगरुहो । तिक्खंडपुहइसामी, अत्थि निवो संपई नाम ||२|| अन्नो वि तत्थ नीसेसगुणमओ उसभसेणसत्थाहो । अत्थि जिणधम्मनिरओ, वीरमई तस्स वरभज्जा ॥३॥ तीसे य दुण्णि पुत्ता, सहदेवो तह य वीरदासो त्ति । सिरिदत्ता वि य धूया, पभूयनारीयणपहाणा ॥४॥ तीसे य रूवजोव्वणलुद्धा वरया अयंति रिद्धिजुया । न य देइ ताण जणओ, मिच्छादिट्टि ति काऊणं ॥५॥ भणइ 'दरिद्दजुओ वि हु रूवविहीणो षि जिणवरमयम्मि । जो होही निक्कंपो, दायव्वा तस्स मे एसा ||६|| ऐयं सुणिय पइण्णं, समागओ कूववंदनयराओ । नामेण रुद्ददत्तो, महेसरो तत्थ सत्थेण ॥७॥ अह संकामिय भंडं, नियमित्तकुबेरदत्तगेहम्मि । तव्वीहीए निव्विट्ठो जावऽच्छइ ताव नयरपहे ॥८॥ निययसहीयणजुत्तं निग्गच्छंतं निएइ सिरिदत्तं । तं दट्ठूणं एसो विद्धो मयणस्स बाणेहिं ॥९॥ १. सं. वा. सु. मिच्छावाइ ति ॥ २. ला. एवं ॥ Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८५ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः 'का मित्त ! इमा कण्णा' पुढे सो कहइ तस्सरूवं तु । तत्तो तल्लोहेणं, गच्छइ सो सूरिपासम्मि ॥१०॥ जाओ य कवडसड्डो, जिर्णमुणिपूयाइएसु बहुदव्वं । वियरइ अहवा पुरिसो रागंधो किं च न हु कुज्जा ? ॥११॥ तो दटुं तच्चरियं, अच्चत्थं रंजिओ उसभसेणो । सयमेव देइ कण्णं, वीवाहं कुणइ रिद्धीए ॥१२॥ भुंजंतो वरभोए चिट्ठइ जा तत्थ रुद्ददत्तो सो । ता पिउणा से लेहो, आहवणत्थं तु पट्टविओ ॥१३॥ तब्भावत्थं नाउं, ससुराओ मोइऊण अप्पाणं । सिरिदत्ताए सहिओ, संपत्तो कूववंद्रम्मि ॥१४॥ अभिनंदिओ य पिइमाइएहिं चिट्ठइ तहिं सुहेणेसो । कवडगहिय त्ति दूरंदूरेणं मुयइ जिणधम्मं ॥१५॥ सिरिदत्ता वि हु मिच्छत्तसंगदोसेण दूसिया अहियं । मोत्तूणं जिणधम्म, धणियं निद्धंधसा जाया ॥१६॥ . तं नाउं जणएहिं वि, आलावाई विवज्जियं सव्वं । जोयणदुगमित्तं पि हु संजायं जलहिपारं व ॥१७|| मयमत्ताणं ताणं, विसयपसत्ताण अन्नया जाओ । सिरिदत्ताए पुत्तो, रूवेणं सुरकुमारो व्व ॥१८॥ तस्स महेसरदत्तो ठवियं नामं गुरूहि समयम्मि । कालेण परिणयकलो उद्दामं जोव्वणं पत्तो ॥१९॥ एत्तो य वड्डमाणे पुरम्मि सिरिदत्तजे? भाउस्स । सहदेवस्स उ भज्जा संदरिनामा अणन्नसमा ॥२०॥ जिणधम्मरया निच्चं भुजंती नियपियेण सह भोए । गब्भवई संजाया उप्पज्जइ डोहलो तत्तो ॥२१॥ 'जाणामि जइ पिएणं समयं मज्जामि नम्मयासलिले । बहुपरिवारसमग्गा' तम्मि अपुज्जंतए तत्तो ॥२२॥ १. ला. जिण-गुरुपू ॥ Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८६ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयोभाग: कंठग्गयपाणा सा जाया अच्वंतदुब्बलसरीरा । चिंतावण्णा चिट्ठइ, तं दर्दू भणइ सहदेवो ॥२३॥ 'कि तुह पिए ! न पुज्जइ, संजाया एरिसा सरीरेण' । भणइ इमा "मह पिययम !, मणम्मि नणु डोहलो गरुओ ॥२४॥ जाओ गब्भवसेणं जइ किर मज्जामि नम्मयासलिले । तुमए सह" तो एसो आसासिय कुणइ सामग्गि ॥२५॥ बहुवणिउत्तसमेओ गिण्हिय नाणाविहाइं पणियाई । काऊण महासत्थं चलिओ अह सोहणदिणम्मि ॥२६॥ अणवरयपयाणेहिं वियरतो अत्थवित्थरं पत्तो । नम्मयनईए तीरे आवासइ सोहणपएसे ॥२७॥ दट्ठणं नम्मयं तो बहुतरलतरंगरेहिरावत्तं । अइगरुयविभूईए पिएण सह मज्जणं कुणइ ॥२८॥ संपुण्णे डोहलए तत्थेव य नम्मयापुरं नाम । रम्मनयरं निवेसिय कारावइ वरजिणाययणं ॥२९॥ ता सोउं सव्वत्तो आगच्छइ तत्थ भूरिवणिलोगो । जायइ य महालाभो पसिद्धमेवं पुरं जायं ॥३०॥ अह सुंदरी वि तत्थेव वरपुरे नियगिहे निवसमाणी। पसवइ पसत्थदिवसे वरकण्णं तीए सहदेवो ॥३१॥ कारइ वद्धावणयं परितुट्ठो जेट्टपुत्तजम्मे व । विहियं च तीए नामं जह नम्मयसुंदरी एसा ॥३२॥ कमसो परिवडती जाया नीसेसवरकलाकुसला । सरमंडलं च सव्वं, विण्णायं अह विसेसेण ॥३३॥ पत्ता य जोव्वणं सा असेसतरुणयणमणविमोहणयं । तत्तो परा पसिद्धी संजाया तीए सव्वत्थ ॥३४॥ सोऊण तीए रूवं सिरिदत्ता दुक्खिया विचितेइ । 'कह मह पुत्तस्स इमा होही भज्जा वरा कण्णा ? ॥३५॥ १. ला. 'मेयं ॥ Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८७ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः हा हा ! अहं अपुण्णा विवज्जिया जा समत्थसयहिं । अहवा कित्तियमेत्तं एवं परिचत्तधम्माए ? ॥३६॥ आलावो वि हु जेहिं परिचत्तो ते कहं महं कण्णं । दिति ?" इय माणसेणं दुक्खेणं रोवए एसा ॥३७॥ तं दट्ठणं भत्ता पुच्छइ "किं पिययमे ! तुहं दुक्खं । साहीणे वि मम म्मी ? भणसु तयं जेण अवणेमि" ॥३८॥ तो सा कहेइ सव्वं तं सोऊणं पयंपई पुत्तो। "ताय ! विसज्जेह ममं, जेणाऽहं तत्थ वच्चामि ॥३९॥ विणयाइएहि सव्वे आराहित्ता मए इमा कण्णा । परिणेयव्वाऽवस्सं कायव्वो जणणिसंतोसो" ॥४०॥ तो विविहपणियभंडेहिं पूरियं अइमहंतयं सत्थं । काऊणं जणएणं विसज्जिओ नम्मयानयरे ॥४१॥ पत्तो य तत्थ बाहिं सत्थस्स निवेसणं करेऊणं । मायामहस्स गेहं पविसइ सुपसत्थदियहम्मि ॥४२॥ मायामहमाईए सयणे दट्टण हरसिओ धणियं । गेहागयंति लोगट्ठिईइ गोरखए इयरे हिं ॥४३॥ विणयाइएहिं सव्वे तत्थ व संतोऽणुरंजए एसो । मग्गइ य आयरेणं तं कण्णं ते वि नो तस्स ॥४४॥ दिति तओ तेण इमे, अच्वत्थं जाइया ततो ते वि । कारविय विविह सवहे दिति तयं अन्नदियहम्मि ॥४५॥ जाए धम्मवियारे कण्णावयणेहिं सो हु पडिबुद्धो । सद्धम्मभावियमई जातो अह सावगो परमो ॥४६॥ तो तुट्ठा जणयाई पाणिग्गहणं विहीए कारेंति । भुंजइ विसिट्ठभोए तीए समं धम्मकयचित्तो ॥४७॥ केणइ कालेण तओ नियनयरं जाइ नम्मयासहिओ । जणयाई पडिवत्तीपुव्वं पविसरइ नियगेहे ॥४८॥ १. सं.वा.सु. वि पइम्मि ॥ २. ला. विसज्जेहि ॥ Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८८ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः सासू-ससुराईणं पडिवत्तिं नम्मया विहेऊणं । चिट्ठइ विणएण तओ अप्पवसं कुणइ सव्वं पि ॥४९॥ सो वि महेसरदत्तो धम्मम्मि दढो कयत्थमप्पाणं । लाभेण तीए मन्नइ विलसइ नाणाविणोएहिं ॥५०॥ सिरिदत्ता वि पुणो वि हु पडिवज्जइ पुव्वसेवियं धर्म । अहअन्नया कयाई सा नम्मयसुंदरी हिट्ठा ॥५१॥ आयरिसे नियवयणं पलोयमाणा गवक्खमारूढा । जा चिट्ठइ ता साहू तत्थ तले कहवि संपत्तो ॥५२॥ तो तीए पमायपरव्वसाए अनिरूविऊण पक्खित्ता । पिक्का मुणिस्स सीसे, तो कुविओ जंपए साहू ॥५३॥ "जेणाऽहं पिक्काए, भरिओ सव्वंगियं पि सो पावो । पियविप्पओगदुक्खं मह वयणेणं समणुभवउ ॥५४॥ बहुविहदुक्खकिलंतो पभूयकालं तु मज्झ वयणेणं" । तं सोउं नम्मयसुंदरी वि सहस त्ति संभंता ॥५५॥ उत्तरिय गवक्खाओ, निदंती अप्पयं बहुपयारं । लूहित्ता वत्थेणं, पणमइ मुणिचलणजुयलम्मि ॥५६॥ परमेणं विणएणं, खामित्ता भणइ "जगजियाणंद ! । संसारियसोक्खाई, मा मह एवं पणासेहि ॥५७॥ धिद्धी ! अहं अणज्जा जीइ पमायाउ एरिसं काउं । बहुविहदुक्खसमुद्दे खित्तो अइभीसणे अप्पा ॥५८॥ अज्जं चिय सामि ! महं सव्वाइं पणट्ठयाइं सोक्खाई । अज्ज अहं संजाया पाविट्ठाणं पि पावयरी ॥५९॥ तुम्हारिसा महायस ! कुणंति दुहियाण उवरि कारुण्णं । ता करुणारससायर ! भयवं! अवणेहि मह सावं" ॥६०॥ इय विलवंती बहुहा भणिया उवओगपुव्वयं मुणिणा । "मा मा विलवसु मुद्धे ! एवं अइदुक्खसंतत्ता ॥६१॥ १. ला. मम ॥ Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८९ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः कोववसमुवगएणं दिण्णो सावो तुहं मए भद्दे ! । संपइ पसण्णहियओ, तुह उवरि नत्थि मे कोवो ॥६२॥ किंतु अणाभोगेण वि, भणिओ भावो हु भाविओ एसो । तुमए अन्नभवंतरसुनिकाइयकम्मदोसेणं ॥६३॥ पियविरहमहादुक्खं अणुभवियव्वं तएं चिरं कालं। न हु नियकयकम्माणं संसारे छुट्टए को वि ॥६४॥ वच्छे ! हसमाणेहिं जं बज्झइ पावयं इह जिएहि । रोवंतेहिं तयंखलु नित्थरियव्वं न संदेहो" ॥६५॥ तो नाउं परमत्थं वंदिय साहू विसज्जिओ तीए । तम्मि गए रुवमाणी पिएण पुट्ठा कहइ सव्वं ॥६६॥ आसासिऊण तेण वि भणिया 'कुण जिणजईण पूयाई । दुरियविधायणहेउं न हु रुन्नेणं हवइ कि पि' ॥६७॥ पडिवज्जिय तव्वयणं कुणइ तवं पूयए जिणाईए । कइहिं वि दिणेहिं तत्तो पुणो वि भोगप्परा जाया ॥६८॥ एवं परिगलमाणे काले भित्तेहिं एरिसं भणिओ । सो हु महेसरदत्तो एगंते ठविय सव्वेहिं ॥६९।। "अत्थोवज्जणकालो मित्त ! इमो वट्टए सुपुरिसाणं । पुव्वपुरिसज्जियत्थं लज्जिज्जइ विलसमाणेहिं ॥७०॥ ता गंतु जवणदीवं विढवित्ता नियभुयाहिं बहु दव्वं । विलसामो" तव्वयणं पडिवज्जइ रंजिओ एसो ॥७१॥ अह महया कट्टेणं जणणी-जणयाण मोक्कलावेउं । गिण्हइ बहुप्पयारं जं जं भंडं तहिं जाइ ॥७२॥ . भणिया य नम्मयासुंदरी वि "कंते ! समुद्दपारम्मि । गंतव्वं मह होही चिट्ठसु ता तं सुहेणेत्थ ॥७३॥ जम्हा अइसुकुमालं; तुह देहं न हु सहिस्सई कटुं । तम्हा देव-गुरूणं, भत्तिपरा चिट्ठ अणुदियह" ॥७४॥ १. ला. “ए बहुं का ॥ २. ला. रुयमा ॥ ३. ला. याणि ॥ मूल. २-३७ Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९० तो भणइ इमा "पिययम ! मा जंपसु एरिसाई वयणाई । जम्हा उं तुज्झ विरहं न समत्था विसहिउं अहयं ॥ ७५ ॥ कुटुं पितए समयं वच्चंतीए अईव सुहजणयं । ता निच्छएण तुमए सह गंतव्वं मए नाह ?" ॥७६॥ तन्नेहमोहिमई पडिवज्जिय तो महंतसत्थेण । गंतूण जलहितीरे आरुहइ पहाणवहणेसु ॥७७॥ जा जाइ जलहिमज्झे पहाणअणुकूलवायजोगेण । ताव तर्हि केणाऽवि हु उग्गीयं महुरसद्देण ॥७८॥ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः तं सोऊणं बाला सरलक्खणजाणिया पहिट्ठमुही । जंपइ "एसो पिययम ! गायइ कसिणच्छवी पुरिसो ॥७९॥ अइथूलपाणिजुयलो, बब्बरकेसो रणम्मि दुज्जेओ । उण्णयवच्छो साहस्सिओ य बत्तीसवारिसिओ ॥८०॥ गुज्झमि य रत्तमसो इमस्स ऊरुम्मि सामला रेहा " । इय सोउं से भत्ता, गयनेहो चितए एवं ॥ ८१ ॥ "नूणं इमेण समयं वसइ इमा तो वियाणई एवं । ता निच्छएण असई एसा अच्चंतपाविट्ठा ॥८२॥ आसि पुरा मह हियए महासई साविया इमा दइया । किंतु कयं मसिकुच्चयदाणमिमीए कुलदुगे वि ॥८३॥ ता किं खिवामि एयं उयहिम्मि उयाहु मोडिउं गलयं । मारेमि आरडंती किं वा घाएमि छुरियाए" ॥८४॥ इय चितइ जावेसो बहुविहमिच्छावियप्पपरिकलिओ । ता कूवयट्ठियन जंपइ रे ! धरह वहणाई ॥८५॥ एसो रक्खसदीवो, गिण्हह इह नीर - इंधणाईयं" । ते वि तयं पडिवज्जिय धरंति तत्थेव वहणाई ॥ ८६ ॥ पेच्छंति तयं दीवं गिण्हंती इंधणाइयं सव्वं । सो वि महेसरदत्तो मायाए जंपए एवं ॥८७॥ Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९१ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः 'अइरमणीओ दीवो सुंदरि ! ता उत्तरित्तु पेच्छामो' । सा वि परितुट्ठचित्ता तेण समं भमइ दीवम्मि ॥८८॥ अण्णण्णेसु वणेसुं कमेण पिच्छंति सरवरं एकं । उत्तुंगपालिसंठियनाणाविहतरुवरसणाहं ॥८९॥ अइसच्छ-साउ-सीयलजलपुण्णं सयलजलयरसणाहं । दट्ठण तयं मज्जंति दो वि तत्तो वि उत्तरिउं ॥९॥ जा तव्वणगहणेसुं भमंति ता सच्चवंति एगत्थ । रमणीयलयाहरयं तम्मज्झे करिय सत्थरयं ॥११॥ दोण्णि वि णुवण्णयाइं खणेण ★ निद्दावसंगया बाला । तो चिंतइ से भत्ता निग्घिणहियओ जहा "एत्थ ॥१२॥ मुंचामि इमं जेणं मरइ सयं चेव एगिया रण्णे" । इय चिंतिऊण सणियं सणियं उस्सक्किउं जाइ ॥९३॥ वहणेसुं विलवंतो माइल्लो उच्चउच्चसद्देहिं । सथिल्लएहिं पुट्ठो, 'रुयसि किमत्थं ?' ति सो भणइ ॥१४॥ "सा मम भज्जा भाउय ! ख द्धा घोरेण छुहियरक्खेण । तं दटुं भयभीओ अहमेत्थ पलाइउं पत्तो ॥९५।। तो पूरह वहणाई मा एत्थ समागमिस्सई रक्खो" । ते वि तओ भयभीया पूरंति झड त्ति वहणाई ॥१६॥ सो वि हु आहाराई दुक्खकंतो व्व मुच्चइ खणेण । रोवइ विलवइ कुट्टइ उर-सिरमाईणि मायाए ॥९७॥ हियएणं पुण तुट्ठो चिंतइ 'नणु सोहणं इमं जायं । जं लोगऽववाओ वि हु हु परिहरिओ एवविहियम्मि' ॥९८॥ सथिल्लएहिं तत्तो पडिबोहिय भोइओ इमो वि तओ । अइमहया कट्टेणं संजाओ विगयसोगो व्व ॥९९॥ पत्ता य जवणदीवं सव्वेसि वि हिययवंछियाओ वि । जाओ अहिओ लाभो कमेण गिण्हित्तु पडिपणिए ॥१०॥ १. ला. अइअच्छ ॥ २. ★★एतच्चिह्नद्वयान्तर्गतः पाठः ला. संज्ञकप्रतावेवोपलब्धः ॥ Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९२ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः वलिऊणं खेमेणं पत्ता सव्वे वि कूववंदम्मि । सो वि महेसरदत्तो अक्खइ सयणाण रोवंतो ॥१०॥ जह 'मह दइया खद्धा रक्खसदीवम्मि घोररक्रोण' । .. ते वि तओ दुक्खत्ता कुणंति तीसे मयगकिच्चं ॥१०२॥ परिणाविओ य एसो अण्णं कुलबालियं अइसुरूवं । तीए य बद्धनेहो भुंजइ भोगे अणण्णसमे ॥१०३॥ एत्तो य नम्मयासुंदरी वि जा उट्ठिया खणद्धेण । तो न हु पिच्छइ कंतं तत्थ तओ चिंतए एवं ॥१०४॥ नूणं परिहासेणं ल्हिक्को नणु होहिई महंदइओ' । वाहरइ तओ "पिययम ! देसु महं दंसणं सिग्धं ॥१०५।। मा कुण बहु परिहासं बाढं उत्तम्मए महं हिययं" । जा एइ न एवं पि हु सासंका उट्ठिउं ताव ॥१०६॥ परिमग्गइ सव्वत्तो तह वि अपिच्छंतिया सरे जाइ । भमइ य वणविवरेसु कुणमाणी बहुविहे सद्दे ॥१०७।। 'हा नाह ! ममं मोत्तुं, दुहियमणाहं कहिं गओ इण्हि ?' | सोऊणं पडिसदं, धावइ तो तम्मुही बाला ॥१८॥ विज्झंती खाइरकंटएहिं पाएसु गलियरुहिरोहा । गिरिविवरे भमिऊणं पुणो वि सा जाइ लेयहरए ॥१०९॥ एत्थंतरम्मि सूरो दट्ठणं तीए तारिसमवत्थं । पडिकाउं अचयंतो लज्जाए व दूरमोसरिओ ॥११०।। अत्थगिरीए सूरो ल्हसिउं अवरोयहिम्मि निब्बुडो । अहवा अत्थमइ च्चिय सूरो पडिकाउमचयंतो ॥१११।। एत्थंतरम्मि तो सा तत्थेव लयाहरम्मि परिखिन्ना । सोगत्ता बीहंती नुवज्जए पल्लवत्थरणे ॥११२॥ उत्थरइ य हिमनियरो सव्वत्थोवहयलोयणप्पसरो । अहव पसरंति मलिणा परितुट्ठा मित्तनासम्मि ॥११३॥ १. सं.वा.सु. लुक्को ॥ २. ला. लइह ॥ Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः इय जा खणंतरेक्कं चिट्ठइ सा दुक्खिया तहिं बाला । ता उग्गमेइ राया राय व्व तमारिखयकारी ॥११४॥ तं दट्ठूणूससिया मण्णइ उज्जीवियं व अप्पाणं । अहवा पीऊसरुई आसासइ जं किमच्छेरं ॥ ११५ ॥ तो बहुविहचिंतावाउलाइ अइदुक्खियाए सा रयणी । चउजामनिम्मिया विहु जामसहस्सं व वोलीणा ॥ ११६ ॥ अह उग्गयम्मि सूरे सा नम्मयसुंदरी दुगुणदुक्खा । विडं पत्ता, सुमरिय नियनाहगुणनियरं ॥११७॥ अवि य हा ! पडिवण्णय वच्छल ! दक्खिन्नयनीरपूरसरिनाह ! | हा ! करुणायर ! अहयं, कह मुक्का एक्किया रणे ॥११८॥ एवं विलवंती सा पुणो वि गच्छइ सरोवरंतेण । पुणरवि हिंड्इ रण्णे पुच्छंती हरिणमाईए ॥११९॥ किं दिट्ठो मह भत्ता कत्थइ तुब्भेहिं एत्थ भमडतो ?' । पडिसद्दं सोऊणं पविसइ गिरिकुहरमज्झम्मि ॥ १२० ॥ तत्थ वि तमपेच्छंती पुणो वि निग्गच्छई तओ एवं । वोलीणा पंच दिणा आहारविवज्जियाइ दढं ॥ १२१ ॥ अह छट्ठम्मि दिणम्मी भमडंती जाइ उयहितीरम्मि । जत्थाऽऽसि पवहणाइं चितइ तं सुण्णयं दट्टु ॥१२२॥ "रे रे ! जीव ! अलक्खण ? मुहाएं किं खिज्जसे तुमं एवं । जं अन्नभवोवत्तं तं को हु पणासिउं सत्तो ? ॥ १२३ ॥ रे जीव ! तया मुणिणा आइट्टं जं तयं इमं मण्णे । ता सम्मभावणाए सहसु तयं किं वरुण्णेणं ?" ॥ १२४ ॥ इय चिंतिऊण तो सागंतूण सरोवरम्मि नियदेहं । पखालिय संठाविय ठवणं तो वंदई देवे ॥ १२५ ॥ काऊण पाणवित्ति फलेहिं तो गिरिगुहाय मज्झम्मि । मट्टियमयजिणपडिमं काउं वंदेइ भत्तीए ॥ १२६ ॥ १. ला. हरिणिमा ॥ २९३ Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९४ पूयइ वरकुसुमेहिं कुणइ बलिं बहुफलेहिं पक्केहिं । रोमंचचियदेहा संथुणइ मणोहरगिराए ॥१२७॥ अवि य "जय संसारमहोयहिनिबुड्डुजंतूण तारणतरंड ? । जय भवभीयजणाणं सरणयं ! जिणनाह ! जगपणय ! ॥ १२८॥ जय दुहियाणं दुहहर ! रागद्दोसारिविरियनिद्दलण ! । जय मोहमल्लमूरण ! जय चिताव ( च ? )त्त ! जिणनाह ! ॥१२९॥ जय निद्दापरिवज्जिय ! छुहा पिवासा - जरा - भयविमुक्क ! | मय-माय-खेयवज्जिय ! गयजम्मण-मरण ! जयनाह ! ॥ १३०॥ जयहि अविम्हय अपमाय देव ! सासयसुहम्मि संपत्त ! | सिवपुरपवेसणेणं कुणसुदयं मज्झ दुहियाए" ॥१३१॥ इय जिणथुइजत्ताए सुनिकाइयकम्ममणुहवंतीए । जा जाइ कोइ कालो ता चितइ अन्नया एसा ॥१३२॥ 'जइ कहवि भरहवासे गमणं मह होइ पुण्णजोगेण । तो सव्वसंगचायं काऊण वयं गहिस्सामि ॥१३३॥ इय चिंतिऊण रयणायरस्स तीरम्मि उब्भियं तीए । चिधं महामहंतं जं पयडइ भिन्नवहणित्तं ॥१३४॥ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः एत्थंतरम्मि तीसे चुल्लपिया वीरदासनामो जो । बब्बरकूलं जंतौं संपत्तो तप्पएसम्मि ॥१३५॥ दट्ठूण तयं चिधं लंबाविय पवहणं समुत्तरि ं । यमग्गेणं पत्तो थुणइ जिणं नम्मया जत्थ ॥१३६॥ सोऊण तीए सद्दं सासंको 'नम्मया किमेस ? "त्ति । जा पत्तो दिट्ठिपहे ता सहसा उट्ठिया बाला ॥१३७॥ दट्टू चुल्लपियरं कंठम्मि विलग्गिउं घणं रुन्ना । सो वि तयं ओलक्खिय, मुंचइ नयणेहिं सलिलोहं ॥१३८॥ १. ला. गयजम्मण ! मरणपरिमुक्त ॥ १३० ॥ २. सं.वा.सु. 'तो पत्तो तम्मि प्पए ॥ Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९५ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः पुट्ठा य 'किं गुणोयहि ! वच्छे ! तं इत्थ एक्किया रण्णे ?' । सा वि असेसं वत्तं जं जहवत्तं परिकहेइ ॥१३९॥ पेच्छह विहिणो दुव्विलसियं ति भणिऊण नेइ तं वहणे । ण्हाणाई काराविय भुंजावइ मोयगाईयं ॥१४०॥ चलिओ य ततो कमसो पत्तो अणुकूलवायजोगेण । बब्बरकूले तत्तो ताडावइ पडउडि रम्मं ॥१४१॥ उत्तारिय भंडाई पडउडिमज्झम्मि नम्मयं ठविउं । गिहिय उवायणाइं गच्छइ नरनाहपासम्मि ॥१४२॥ नरवइणा सम्माणे विहिए तो जाइ निययठाणम्मि । जावऽच्छइ कइ वि दिणे ता जं जायं तयं सुणह ॥१४३॥ अत्थि तहिं वत्थव्वा हरिणी नामेण सुंदरा गणिया । नीसेसकलाकुसला गोरव्वा नरवरिंदस्स ॥१४४॥ वेसायणप्पहाणा उब्भडलावण्णजोव्वणुम्मत्ता । सोहग्गवरपडागा सुपसिद्धा रिद्धिपरिकलिया ॥१४५।। सा रण्णा परिभणिया समत्थ वेसाण भाडियविभागं । गिण्ह तुम मज्झं पुण विढविसि जं तं तयं देयं ॥१४६॥ जो य इह पोयसामी आगमिही सो य अट्ठसहसं तु । दीणाराणं देही तुझं मज्झ प्पसाएण ॥१४७॥ एसा तत्थ ववत्था वेसाणं अत्थि राइणा समयं । हरिणीए तओ चेडी पट्टविया वीरदासस्स ॥१४८।। पासम्मि तीए भणिओ सो जह 'वाहरइ रिण्णिया. तुब्भे' । तेण वि सा पडिभणिया "जइ वि हु रूवाइगुणकलिया ॥१४९॥ अण्णित्थी तह वि अहं भुंजामि न वज्जिउं नियकलत्तं" । तीए वि तओ भणियं 'आगंतव्वं तए तह वि' ॥१५०॥ तो जाणिय भावत्थो, अप्पइ दीणारसहसमट्ठहियं ।। सा वि तयं घेत्तूणं, वच्चइ हरिणीए पासम्मि ॥१५१॥ Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९६ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः सा तं दटुं जंपइ 'किमेइणा ? एउ वणियपुत्तो' त्ति । सा वि पुणो गंतूणं अक्खइ हरिणीए जं भणियं ॥१५२॥ तं सुणिय वीरदासो चिंतइ हियएण "किं मह इमाओ । कार्हिति जओ सीलं भंजेमि न पलयकाले वि ॥१५३|| गच्छामि ताव तहियं पच्छा काहामि जं जहाजुत्तं" । इय चिंतिऊण गच्छइ तीए भवणं अइसुरम्मं ॥१५४॥ तो महुरमंजलाहि वियड्डभणिईहिं साणुरागाहिं । सा जंपइ सवियारं तहवि न सो चलइ मेरु व्व ॥१५५।। एत्थंतरम्मि कण्णे कहियं हरिणीए तीए चेडीए । जह "सामिणी ! एयघरे अच्छइ महिला अणण्णसमा ॥१५६।। सा जइ कहिचिं तुब्भं आएसं कुणइ तो हु रयणाणं । पूरइ निस्संदेहं, तुह गेहं कित्थ बहुएणं ? ॥१५७॥ जम्हा हु रूव-जोव्वणलावण्णगुणेहिं तीए सारिच्छा । दीसइ न मच्चलोए" तं सोउं हरिणिया लुद्धा ॥१५८।। चिंतइ अवहरिऊणं, आणेत्तु धरेमि कहवि पच्छण्णं । तत्थुप्पण्णमई सा तो भणइ तयं वणियपुत्तं ॥१५९॥ 'अप्पेहि नाममुदं खणमेकं जेण ईए सारिच्छं।। अण्णं नियकरजोग्गं मुदं कारेमि' तो एसो ॥१६०॥ अप्पइ य निव्वियप्पो सा वि तयं देइ दासचेडीए । हत्थम्मि तत्तो एसा गंतूणं नम्मयं भणइ ॥१६१॥ 'सो वीरदाससेट्टी, हक्कारइ पच्चयत्थमह तेण । एयं मुद्दारयणं पट्टवियं तुज्झ ता एहि' ॥१६२॥ दट्ठण वीरदासस्स संतियं नाममुद्दियारयणं । तो सा वि निव्वियप्पा, तीए समं जाइ तत्थ गिहे ॥१६३।। अवदारेण पवेसिय छूढा गुत्तम्मि भूमिहरयम्मि । मुदं पि वीरदासस्स अप्पियं कुणइ पडिवत्तिं ॥१६४॥ Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९७ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः उट्ठित्तु ततो एसो सट्टाणे जाइ तत्थ तमदटुं । गविसइ सव्वत्तो च्चिय, पुच्छंतो परियणं सेव्वं ॥१६५॥ जाव न केण वि सिट्ठा तीए वत्ता वि तो गवेसेइ । उज्जाण-हट्ट-माइसु तत्थ वि नो जाव उवलद्धा ॥१६६॥ तो दुक्खपीडियंगो इमं उवायं विचिंतए एसो । 'जेणऽवहरिया बाला किं सो पयडेइ मह पुरओ?' ॥१६७।। तो वच्चामि इओऽहं बालं पयडेइ जेण सो दुट्ठो । इय भावणाइ भंडं, घेत्तूणं चलइ घरहुत्तं ॥१६८॥ पत्तो भरुयच्छपुरे संजत्तियवणियसंकुले रम्मे । तत्थऽत्थि तस्स मित्तो जिणदेवो नाम वरसडो ॥१६९॥ तस्सऽक्खइ सो सव्वं भणिओ 'तं जाहि तत्थ वरमित्त ! । कत्थ वि गवेसिऊणं तं बालं एत्थ आणेहि' ॥१७०॥ सो वि तयं पडिवज्जिय सामगि करिय जाइ तत्थेव । जाणाविया य वत्ता नम्मयपुरिसव्वसयणाणं ॥१७१॥ सोऊण तयं ताणि वि दुक्खत्ताई रुवंति अइकलुणं । एत्तो य नम्मयाए जं वित्तं तं निसामेह ॥१७२॥ । नाऊण वीरदासं गयं तओ हरिणियाए सा वुत्ता । "भद्दे ! कुण वेसत्तं माणसु विविहाइंसोक्खाई ॥१७३॥ सद्द-रस-रूव-गंधे फासे अणुहवसु मणहरे निच्चं । महघरवत्ता एसो, सव्वा वि हु तुज्झतणिय" त्ति ॥१७४॥ तं सोउं नम्मयसुंदरी वि विहुणित्तु करयले दो वि । पभणइ ‘मा भण भद्दे ?, कुल-सीलविदूसणं वयणं' ॥१७५॥ तो रुसिऊणं हरिणी ताडावइ त कसप्पहारेहिं ॥ फुल्लियर्किसुयसरिसा, खणेण जाया तओ एसा ॥१७६॥ 'अज्ज वि न किंचि नटुं, पडिवज्जसु मज्झ संतियं वयणं' । इय मेहरीए भणिए भणइ इमा 'कुणसु जं मुणसि' ॥१७७॥ १. ला. सयलं ॥ २. सं.वा.सु. जा न वि के ॥ ३. ला. विविहाणि सोक्खाणि ॥ मूल. २-३८ Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९८ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः गाढयरं रुसिऊणं जाव पवत्तेइ तिक्खदुक्खाई । सा वेसा ता इयरा सुमरइ परमिट्ठिवरमंतं ॥१७८॥ तस्स पभावेण तओ, तड त्ति पाणेहिं हरिणिया मुक्का । रण्णो निवेइयम्मि, तम्मरणे भणइ तो राया ॥१७९।। "किंचिसरूवं अण्णं तट्ठाणे ठेवसु गुणगणसमग्गं+. भो मंति ! ममाऽऽणत्ति सिग्घं संपाडसु इम' ति ॥१८०॥ नरवइणो आणाए मंती जा तत्थ जाइ ता सहसा । दट्ठण नम्मयं सो अच्चंतं हरिसिओ चित्ते ॥१८१॥ जंपइ 'मेहरियपयं भद्दे ! तुह देमि रायवयणेणं' । सा वि तयं पडिवज्जइ परिभाविय निग्गमोवायं ॥१८२॥ ठविऊण मेहरिं तं मंती वि हु जाइ निययठाणम्मि । सा वि हु हरिणीदव्वं, वेसाणं देइ परितुट्ठा ॥१८३॥ तं कहियं केणाऽवि हु रण्णो तेणाऽवि जंपियं एवं । आणेह तयं एत्थं जंपाणं जाइ तो रम्मं ॥१८४॥ आरोविऊण तम्मि जा पुरिसा निति नयरमज्झेणं । ता चितइ "मह सीलं को खंड जीवमाणीए ? ॥१८५॥ को पुण इत्थ उवाओ?" चितंती नियइ एगठाणम्मि । अइकुहियदुब्भिगंधं पवहंतं गेहनिद्धवणं ॥१८६॥ तं पेच्छिऊण जंपइ 'भो भो बाढं तिसाइया अहयं' । तो मेल्लावइ जाणं जाणवई दरिसिउं विणयं ॥१८७॥ जा आणंति जलं ते ताव इमा उत्तरित्तु जाणाओ । सव्वंगियमप्पाणं चिक्खिल्लेणं विलिपेइ ॥१८८॥ . पियइ तयं दुग्गंधं अमयं नीरं ति भाणिउं बाला । लोलए महीइ पंसुं खिवइ सिरे देइ अक्कोसे ॥१८९॥ पभणइ य 'अहो लोया ! अहयं इंदाणिया ममं नियह' । गायइ नच्चइ रोवइ भयभीया सीलभंगस्स ॥१९०।। १. सं.वा.सु ठवह ॥ . Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९९ . मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः पुरिसेहिं तयं सिटुं निवस्स सो मण्णिउं गहं लग्गं । पेसेइ मंत-तंताइवाइणो तेहिं किरियाए ॥१९१।। आढत्ताए भाले चढाविउं लोयणे फुरुफुरंती । आकोसिऊण गाढं अहिययरगहं पदंसेइ ॥१९२॥ तो तेहिं परिचत्ता हिंडइ नयरस्स मज्झयारम्मि । डिभेहिं परियरिया, हम्मंती कट्ठलिट्टहिं ॥१९३॥ इय एवमाइ सव्वं कवडग्गहदंसणं पयासेइ । सीलस्स रक्खवणत्थं, धम्मं हियएण सरमाणी ॥१९४॥ अह अण्णया कयाई बहुविहलोए हिं परिखुडा बाला । निम्मल्लमालियतणू गायइ जिणरासयं रम्मं ॥१९५।। तं दटुं जिणदेवो पुच्छइ 'को तं गहोऽसि जिणभत्तो ?'। . सा भणइ 'ससागारं तेण न साहेमि नियनाम' ॥१९६।। बीयम्मि दिणे उज्जाणसम्मुहं जाव चल्लिया एसा । तो डिभाई लोगो नियत्तिउं जाइ सट्ठाणे ॥१९७॥ सा वि हु एगंतठिया वंदइदेवे विहीए जा तावए । कत्तो वि हु जिणदेवो समागओ तो तयं दटुं ॥१९८॥ वंदामो त्ति भणित्ता पणमइ सीसेण सा वि वरसड्ढुं । नाऊणं नियचरियं अक्खइ सव्वं जहावत्तं ॥१९९॥ तो जंपइ जिणदेवो "वच्छे ! तुह गविसणत्थमायाओ । भरुयच्छाओ अहयं पट्ठविओ वीरदासेण ॥२०॥ जम्हा सो मह मित्तो, पाणपिओ पेसिओ अहं तेण । ता परिचयसु विसायं सव्वं पि हु सुंदरं काहं ॥२०१॥ पर किंतु हट्टमग्गे घडगसहस्सं घयस्स महतणयं । जं चिट्ठइ तं तुमए लउडपहारेहिं भेत्तव्वं" ॥२०२॥ इय संकेयं काउं दोन्नि वि पविसंति नयरमज्झम्मि । विहिउं च बीयदिवसे सव्वं जं मंतियं आसि ॥२०३॥ १. ला. 'लोएण ॥ Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०० मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः तो निवई हक्कारिय जिणदेवं भणइ "हा कहं तुज्झ । हाणी महामहंता विहिया एयाइ पावाए ॥ २०४॥ ता रयणायरपारे अम्हऽवरोहेण खिवसु एयं ति । जेणित्थं अच्छंती कुणइ अणत्थंतरे बहुए" ॥२०५॥ आसो त भणित्ता नियलाविय नेइ निययठाणम्मि | छोडित्ताण्हावेउं परिहाविय भोइउं विहिणा ॥ २०६ ॥ वहणे चडाविऊणं पत्तो खेमेण पुण वि भरुयच्छे । पविसित्तु निययगेहे जाणावइ नम्मयपुरम्मि ॥२०७॥ जा ते संवहिऊणं चलंति ता एइ सो तयं घेत्तुं । जणयाई दट्ठूणं कंठविलग्गा रुवइ तो सा ॥२०८॥ ता उसभसेण - सहदेव - वीरदासाइ बंधवा सव्वे । सरिऊणं बालत्तं तीसे रोयंति अइकलुणं ॥ २०९॥ पुट्ठा य तेहि सव्वं जा सा साहेइ निययवृत्तंतं । सुणमाणाणं दुक्खं, सव्वाण वि तक्खणे जायं ॥२१०॥ अह तीए संगमम्मी विहिया पूया जिणिदचंदाणं । सम्माणिओ य संघों दिण्णाणि महंतदाणाणि ॥ २११ ॥ विहियं वद्धावणयं विम्हयजणणं समत्थलोयाणं । जिणदेवसावओ वि हु जाइ पुणो निययनयरम्मि ॥ २१२ ॥ जा नम्मय सुंदरिसंगमम्मि दिवसा सुहेण वोलिति । कइ वि तर्हि ता पत्तो विहरंतो साहुपरियरिओ ॥ २१३॥ तियसाइवंदणिज्जो दसपुव्वपगासपयडियपयत्थो । भव्वारविंदभाणू सूरी सिरिअज्जहत्थि त्ति ॥ २१४॥ तो नाऊणं सूरिं समागयं तस्स वंदणट्ठाए । भत्तिभरनिब्भराई संव्वाइं जंति उज्जाणे ॥२१५॥ वंदित्तु तओ सूरिं, नच्चासन्नम्मि सन्निविट्ठाई । सूरी वि ताण धम्मं कहेइ जिणदेसियं रम्मं ॥ २१६॥ १. सं. वा. सु. 'ज्जो चठविहवरनाणपयडिय ॥ २. ला. सव्वाणि वि जंति ॥ Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः जह 'एत्थं संसारे सकम्मफलभोइणो इमे जीवा । पाविति सुहं दुक्खं जं विहियं अण्णजम्मम्मि ' ॥२१७|| तं सुणिय वीरदासो पुच्छर करसंपुढं सिरे काउं । "भयवं ! किमण्णजम्मे विहियं मह भाइधूयाए ? ॥२१८॥ जेणं सीलजुया विहु पत्ता एवंविहं महादुक्खं" । सूरी वि भणइ " सावय ! जं पुटं तं निसामेह ॥ २१९ ॥ अत्थि इह भरहवासे, मज्झिमखंडम्मि पव्वओ विंझो । उत्तुंगसिहरसंचयसमाउलो खलियरविपसरो ॥ २२०॥ तत्तो इमा पसूया, महानई नम्मया जइणवेगा । तीए य अहिट्ठाइगदेवी विं हु नम्मया अत्थि ॥२२९॥ सा मिच्छत्तोवहया नम्मयतडसंठियं महासत्तं । धम्मरुई अणगारं दट्ठूणं कुणइ उवसग्गे ॥२२२॥ नाणाविहे सुघोरे निच्चलचित्तं मुणि मुणेऊण । उवसंता संजाया सम्मत्तधरा ततो चविउं ॥ २२३ ॥ एसा हु नम्मयासुंदरि त्ति जाया सुया उ तुम्हाण । पुव्वभवभासेण य एईए नम्मया इट्ठा ॥ २२४॥ जं तइया सो साहू खलीकओ दुट्ठचित्तजुत्ताए । तं सुनिकाइयकम्मं भुत्तं एयाइ दुव्विसहं " ॥ २२५॥ तो सोउं नियचरियं संजायं तीए जाइसरणं तु । संवेगगयाए तओ गहिया दिक्खा गुरुसमीवे ॥२२६॥ दुक्करतवनिरयाए ओहिण्णाणं इमीए उप्पण्णं । तत्तो पवत्तिणित्ते ठविया सूरीहिं जोग्ग ति ॥ २२७॥ विहरंती य कमेणं संपत्ता कूववंदनगरम्मि | सिरिदत्ताए गेहे वसहिं मग्गित्तु उत्तरिया ॥२२८॥ बहुसाहुणीहिं सहिया कहइ य धम्मं जिणिदपण्णत्तं । सुइ महेसरदत्तो सिरिदत्तासंजुओ निच्चं ॥२२९॥ 2 ३०१ Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०२ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः अह अण्णम्मि दिणम्मी संवेगत्थं इमस्स सा गुणइ । सरमंडलं असेसं, जहा इमेयारिससरेण ॥२३०॥ होइ नरो इयवन्नो तहा इमेयारिसेण इयवरिसो । एवंविहेण य पुणो इयआऊ होइ अवियप्पो ॥२३१॥ एवंविहसद्देणं होइ मसो गुज्झदेसभायम्मि । एवंविहेण य पुणो, रेहा ऊर(रु)म्मि संभवइ" ॥२३२॥ एमाई अन्नं पि हु सव्वं सरलक्खणं सुणेऊण । सो हु महेसरदत्तो चित्तम्मि विभावए एवं ॥२३३॥ 'नूणं मह दइयाए सरलक्खणजाणियाए आइट्ठो । गुज्झपएसम्मि मसो, रेहा वि य तस्स पुरिसस्स' ॥२३४॥ तो विलविउं पयत्तो, "हा हा ! अइनिग्घिणो' अहं पावो । कूरो अणज्जचरिओ अवियारियकज्जकारि त्ति ॥२३५॥ जेण मए सा बाला सरलक्खणजाणिया अरण्णम्मि । एगागिणी विमुक्का ईसावसविनडियमणेण ॥२३६॥ करपत्तं वररयणं हारवियं निच्छयं अपुण्णेण । मरणेण विणा सुद्धी नत्थि महं किं बहुएण ?" ॥२३७॥ इय विलवंतं सोउं भणइ इमा "नम्मया अहं साउ । कहइ य जं जहवत्तं, नीसेसं अप्पणो चरियं ॥२३८।। ता संपइ मह भाया तुम अओ कुणसु संजमं विउलं" । सो वि तयं सोऊणं खामइ परमेण विणएण ॥२३९॥ 'खमसु तयं जं तइया अइनिद्दयकूरचित्तजुत्तेण । घोरम्मि दुहसमुद्दे पक्खित्ता सुद्धसीला वि' ॥२४०॥ तो भणइ नम्मयासुंदरी वि 'संतप्प मा तुमं एवं । अणुभवियव्वे कम्मे निमित्तमित्तं तुम जाओ ॥२४१॥ जंपइ तओ महेसरदत्तो गिण्हामि संजमं इण्हि । नीसेसकम्मदलणं आगच्छइ को वि जइ सूरी ॥२४२॥ १. सं.वा.सु. *णो महापावो ॥ Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः एत्थंतरम्मि पत्तो अज्जसुहत्थी गूरू तओ एसो । तस्स सासे गिoes सिरिदत्तासंजुओ दिक्खं ॥२४३॥ काऊण तवं दोणि वि पवरविमाणम्मि सुरवरा जाया । तत्तो वि चुया कमसो मोक्खं जार्हिति गयदुक्खं ॥ २४४॥ महरिया विहु निययं जाणित्ता आउयस्स पज्जंतं । विहिउं विहिणाऽणसणं तियसो तियसालये जाया ॥२४५॥ तत्तो चविउं होही अवरविदेहे मणोरहो नाम । सुओ गुणकलिओ भोत्तुं रज्जं तर्हि विउलं ॥२४६॥ लद्धूण संजमसिरिं, उप्पाडित्ता य केवलं नाणं । संबोहिऊण भविए, गच्छिस्सइ सासयं ठाणं ॥ २४७॥ इय पवरसईए नम्मयासुंदरीए, चरियमइ पसत्थं कारयं निव्वुईए । हरिजणयसुर्हिडीमज्झयाराउ किंची, लिहियमणुगुणाणं देउ सोक्खं जणाणं ॥२४८||| इति नर्मदासुन्दरीकथानकं समाप्तमिति ॥५४॥ तदनन्तरमभय श्रीकथानकं कथ्यते [ ५५. अभय श्रीकथानकम् ] जंबुद्दीवे दीवे भारहखेत्तम्मि अत्थि सुपसिद्धं । रयणावासयनयरं बहुविहवरनयरगुणकलियं ॥१॥ तत्थ य अभग्गसेणो अत्थि निवो नरवरिंदविक्खाओ । तस्सऽट्ठ सुया जाया देवीए विजयसेणाए ॥२॥ सव्वे वि रज्जभरधरणधोरिया रणपयंडया धीरा । दुम्मुहपमुहा सिरिसेणपच्छिमा ताण सिरिसेणो ॥३॥ जोग्गो त्ति कैरिय रण्णा - रज्जे संठाविओ इमेहिं पिं । - पणयसिरेहिं सम्मं पडिच्छिओ तस्स वरदेवी ॥४॥ नामे अभयसिरी महासई णेयगुणगणसमग्गा । तीए वि य पवरसही अत्थि सुभद्द त्ति नामेणं ॥५॥ १. ला. कलिय ॥ २. सं.वा.सु. तु ॥ ३०३ Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०४ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः वरसाविया वणियसुया तीए सगासम्मि जाइ अणवरयं । सा देवी तीए विय विबोहिया जिणवरमयम्मि ||६|| अह अण्णया कयाई पसवई देवी अणोवमं पुत्तं । तस्स पियामहनामं अभग्गसेणो त्ति परिविहियं ॥७॥ सो जाव किंचि वत्तो जाओ ता मेलिऊण एगं ते । निययसहोयरवंदं पभणइ अह दुम्मुहो राया ॥८॥ 'पिउणो पुट्ठीए सुओ पालइ रज्जट्ठिई जओ एसा । एएण कारणं रज्जं तुम्हाण नत्थि ति ॥९॥ . इरेहिं तओ भणिओ 'दुम्मुह ! मा भणसु एरिसं वयणं । सिरिसेर्णपिट्ठओ नणु जं जोग्गं तं करिस्सामो' ॥१०॥ तो दुम्मुहेण भणियं 'जो भणिही तस्स अग्गओ एवं । सो जमरायस्स गिहे वच्चिस्सइ पाहुणो सिग्घं ॥११॥ एयं च तक्कुमंतं सोउं एगेण मंतिणा कहियं । धावीए सा वि तओ अभयसिरीए कहइ सव्वं ॥ १२ ॥ ती विपणो सिट्ठे सो च्चिय आलोचिऊण सह तीए । निग्गमणं मह जुत्तं इय हियए निच्छयं कुणइ ॥ १३ ॥ अभयसिरी वि सहीए पुत्तं घेत्तूण जाइ पासम्मि । अक्खइ सव्वं कज्जं संगग्गयं सा ततो भणइ ॥१४॥ 'कह वच्चिहिसि धराए अइखरफरुसाए भगिणि ! पाएहिं । किंतु नियकम्मवसया जीवा पावेंति सुह - दुक्खे' ॥१५॥ तो जाव छण्णवेसो समागतो नरवई ततो ताणि । निग्गंतुं नयराओ मग्गम्मि कति दुक्खेणं ॥ १६ ॥ चलइ सुद्दा वितओ अब्मणुवंचेवि ताणि वि कमेण । रयणीए जंताई पडियाई महा अरण्णम्मि ॥१७॥ संपीडियाइ अहियं छुहा - तिसाईहिं गिम्हकालो त्ति । वारंवारेण तयं वहंति कुमरं सुदुक्खेण ॥१८॥ १. ला. 'णपुटुओ ॥ २. ला. सगग्गरा सा ॥ Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०५ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः एत्थंतरम्मि सूरो समुग्गओ तदुवयारहेडं व । किं वा चोज्जं मित्तो गोरवइ जमेत्थ पहियजणं ॥१९॥ अह तक्खणम्मि ताई सत्थं पेच्छंति रण्णमज्झम्मि । मित्तेण व नियगेहं पयासियं चित्तसुहजणयं ॥२०॥ तं पेच्छिऊण ताई सत्थे वच्चंति हिटुचित्ताई । पुट्ठाई धणएणं सत्थाहेणं 'कुओ तुब्मे' ? ॥२१॥ तो जंपइ अभयसिरी "एसो रज्जाउ टालिओ ताय ! । नियदाइएहिं एत्थं पडिओ भीमम्मि रणम्मि ॥२२॥ के दूरे नंदपुरं? गंतव्वं ताय ? तत्थ अम्हेहिं । ता जंपइ सत्थाहो "दूरे तं पुरवरं पुत्त ! ॥२३॥ किंतु भए सह तुब्मे वच्चंताई सुहेण पाविहह" । तो ता इं तेण समयं वोलिति सुहेण तमरणं ॥२४॥ कुमरो वि नियगुणेहिं हत्थं हत्थेण तत्थ संचरइ । सत्थम्मि इय कमेणं पत्ताई तत्थ नयरम्मि ॥२५॥ आपुच्छवि सत्थाहं विमणमणाई नियत्तिउं तत्थ । बहुसुक्कतरुवरम्मी आरामम्मी पविट्ठाई ॥२६॥ तत्थ य मालागारिं पुष्फसिरि भणइ अभयसिरिदेवी । "किं भद्दे ? आरामो बहुसुक्को दीसए एसो' ? ॥२७॥ तो जंपइ पुष्फसिरी 'भगिणि ! न जाणामि कारणं एत्थ । किंतु अकम्हा सुक्का जे जे रुक्खा इह पहाणा' ॥२८॥ 'उप्पाउ' ति मुणित्ता नियसीलगुणेण साविठं झ त्ति । अप्पुव्वपत्त-फल-फुल्लरेहिरै कुणइ तं देवी ॥२९॥ तो रोमंचियदेहा पुष्फसिरी गिहिउं तयं कुमरं । खिल्लावंती जंपइ 'तुब्मे कस्सित्थ अतिहीणि' ? ॥३०॥ देवीइ तओ भणियं 'तुब्भं चिय भगिणि ?' तो इमा तुट्ठा । घेत्तूण ताणि सिग्धं वच्चइ निययम्मि गेहम्मि ॥३१॥ मूल. २-३९ Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०६ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः पहाणाईयं सव्वं कयं तओ भणइ पुष्फसिरिजणणी । वच्छे ! तं मह धूया एसो जामाउओ तम्हा ॥३२॥ चिट्ठह निच्चिताई मह गेहे तो इमाणि तत्थेव । चिट्ठति तओ देवी कोड्डेणं गुहइ पुप्फाणि ॥३शा पुष्फसिरीए भणियं 'भगिणि ! तुमं कुणसि जइ इमं कम्मं । तो आरामतिभागो तुह दिण्णो' मण्णइ तमेसा ॥३४॥ जाणित्तु तयं निवई माणसियमहादुहेण अक्तो । जंपइ “हा दिव्व ? तए कि एयं दारुणं विहियं ?॥३५।। जा हिंडंती जंपाणजाणमाईहिं वाहणेहिं सया । सा कह परकम्मकरी भूमीए भमइ विसमाए ? ॥३६॥ जा विविहचाडुएहिं सामिणि ! परमेसरि त्ति भण्णंती । सा कह इण्हि देवी भणिज्जए मालगारि त्ति ? ॥३७॥ ता जीविएण इण्हि किमिपा एवं विडंबणपरेणं" । . तं सोऊणं देवी जंपइ "मा सामि ! भण एवं ॥३८॥ सत्थेसु जओ सुव्वइ को वि निवो सह नियग्गमहिसीए । रज्जब्भट्ठो माहणवेसेणं वलइ सुत्तं ति ॥३९॥ तं विक्किणई देवी कालमुविक्खंतओ ठिओ एवं । समएणं संजाओ पुणरवि सो नाह ! नरनाहो ॥४०॥ ता मा कुणसु विसायं एवं चिय एत्थ पत्तयालं ति" । इय संबोहिय रायं तं कम्मं कुणइ अभयसिरी ॥४१॥ विज्जाहरबंधाई अपुव्वगुंफेहिं गुंफिडं कुसुमे । हट्टम्मि नेइ जा ता कइगेहिं न लब्भए मग्गो ॥४२॥ तो सुंदरिमालागारिणि त्ति लोगेहिं से कयं नामं । एवं विढविय दव्वं समप्पए नरवरिंदस्स ॥४३॥ तेणं दव्वेणं सो वाणिज्जं कुणइ जच्चवणिओ व्व । अप्पेण विकालेणं वित्थरिओ किंच रिद्धीए ॥४४॥ १. ला. विक्किणेई॥ Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०७ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः जाओ य तत्थ पुत्तो बीओ वद्धावणाइ काऊण । सोहणदिणम्मि नामं तस्स कयं पुष्फचूलो त्ति ॥४५॥ एत्थंतरम्मि संखो पत्तो नाइत्तगो विदेसाओ । तेण य देवी दिट्ठा हट्टे पुष्पाणि विकंती ॥४६॥ दट्ठण तस्स रागो जम्मंतरकयनियाणदोसेण । जाओ तत्तो दाउं दो दीणारे इमो भणइ ॥४७॥ 'कल्लं वेलाऊले घेत्तुं पुप्फाणि एज्ज तं भद्दे ?' । सा वि तयं पडिवज्जिय जायपहायम्मि तो तत्थ ॥४८॥ पुप्फाणि अप्पणत्थं जावाऽऽरूढा इमा तहिं वहणे । लोगेण समं ताव य पूरावइ सो तयं वहणं ॥४९॥ धाहावंती देवी हरिया तेणं अणज्जकज्जेणं । रोवइ कलुणसरेणं नवि ठाइ कहिचि तो तेण ॥५०॥ भणिया "सामिणि एवं मा रोवसु कुण पसण्णयं चित्तं । मह उवरि जेण अहं सपरियणो किंकरो तुज्झ ॥५१॥ एयाण अणेगाणं धणकोडीणं विहेहि उवरि करं" । तं सोउं अभयसिरी जंपइ 'भाया तुम मज्झ' ॥५२॥ तो सासंकमणेणं भणिया संखेण 'मा भणसु एवं । सामिणि ! मए समाणं भुंज अणण्णस्समे भोगे' ॥५३॥ देवीए तओ भणियं 'आ पाव ! किमेरिसं असंबद्धं । जंपसि जेणं जायइ कुलम्मि मसिकुच्चयपयाणं' ॥५४॥ तो रुसिय इमो जंपइ 'भंजेमी सीलगव्व तुहमेयं' । इय भणिय ताडणाई हेउं जावु?ई ताव ॥५५॥ सासणदेवी कुद्धा सहसा उप्पाइयाई काऊण । वोलेऊणाऽऽढत्ता तं वहणं नीरनाहम्मि ॥५६॥ तो भयभीओ संखो थीवेसं करिय चलणजुयलम्मि । अभयसिरीए पडिओ 'सरणं सरणं'ति जंपतो ॥५७॥ १. सं.वा.सु. ती तेणं नीया देवी अण' ॥ २. सं.वा.सु. भुंजसु णण्ण ॥ Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०८ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः विण्णवइ "खम महासइ ! महमोहविमोहिएण जं सि मए । खलियरिया इण्हि पुण मह भगिणी तं सि अवियप्पं ॥५८॥ एत्तो य पडिनियत्तो मेलिस्सं भगिणि ! निव्वियप्पेण । सयणाणमओ सोयं मुय मह उवरि दयं काउं" ॥५९॥ इय सोऊणं देवी उवसामइ तस्स तं उवस्सग्गं । अभयसिरी वि य चिंतइ कि मेलइ एस सयणाणं ॥६०॥ जो इय अवहरिऊणं आणइ तो अणसणं महं जुत्तं । इय चितिय जाऽणसणं गिण्हइ ता देवया झ ति ॥६१॥ पयडीहोउं जंपइ "भद्दे ? मा कुणसु अणसणं जम्हा । मिलिहिसि पइ-पुत्ताणं बारसमे वच्छरे तंसि ॥६२॥ पउमिणि खेडम्मि पुरे" तो सा पडिवज्जिऊण तं कुणइ । छट्ठ-ऽट्ठम-दसम-दुवालेसाइ विविहं तवच्चरणं ॥३॥ एत्तो य निवो जंपइ पुष्फसिरि 'किंपि नणु चिरावेइ । सा तुह भगिणी भद्दे ! ता गंतुं तं गवेसेहि' ॥६४॥ तो सा चउहट्टय-देवभवणमाईसु भमइ पुच्छंती । 'सुंदरिमालागारी किं दिट्ठा केणवि कहिचि ?' ॥६५॥ जाव न तीए लद्धं पउत्तिमित्तं पि ताव आगंतुं । अक्खइ निवस्स जह ‘सा मण्णे केणावि हरिय' त्ति ॥६६॥ तं सोऊणं राया वज्जेणं ताडिओ व्व सव्वंगं ।। सोयइ बहुप्पयारं दोण्णि वि कुमरे पलोयं तो ॥६७॥ ते वि कुमारा दो वि हु जणणिमदटुं रुवंति रयणीए । दुक्खेण रोयइ निवो तेसु पसुत्तेसु सयमेव ॥६८॥ निग्गंतुं सवत्थ वि गवेसए जाव सव्वरयणि त्ति । दिवसस्स बि पहरम्मी गयम्मि अच्चंतपरिखिण्णो ॥६९॥ वलिऊण गओ गेहं ते वि कुमारा अपेच्छिउँ जणए । विलवंति बहुपयारं इंतं दटुं तओ जणयं ॥७०॥ १. ला. खमसु महसइ ! ॥ २. सं.वा.सु. लसेहिं ॥ Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०९ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः कंठे विलग्गिऊणं विमुक्तकंठं अणेगहा रुण्णा । राया वि हु सोगत्तो संठवइ जलाविलच्छीओ ॥७१॥ ण्हविओ पुष्फसिरीए भणइ तयं भोयणावसाणम्मि । "भद्दे ! कुण संबलयं जोगं कुमराण नणु किं पि ॥७२॥ जेणऽप्पिऊण एए दो वि सुहहाए तं गवेसामि । जइ लद्धा तो जीयं महऽण्णहा निच्छयं मरणं" ॥७३॥ निवनिच्छयं मुणेउं कुणइ इमा संबलं तओ राया । कुमरे घेत्तुं चलिओ पच्चूसे सा वि दुक्खत्ता ॥७४॥ वलिया वोलावेउं राया वि हु जाइ अग्गओ कुमरं । अंगुलियाए लाइय जेटुं लहुयं करिय कंधे ॥७५॥ कम्मवसेण य एसो बहुसावयजूहसंकुले विसमे । गिरि-तरु-सरिसंघट्टे, पडिओ भीमे महारण्णे ॥७६॥ तत्तो वियालसमए पन्नूरं अत्थरेइ नरनाहो । एगत्थ तरुतलम्मी वीसमणट्ठाए पह खिण्णो ॥७७॥ पुणरवि जणणि सरिठं 'अम्मो ! अम्मो ! पयंपिरे कुमरे । दटुं सोयप्पुण्णो राया भणिउं समादुत्तो ॥७८॥ "हा देवि ! इमे बाला अइभोला सयलगुणगणविसाला । कस्स (त्थ?)तए नणु मुक्का अहं च अइनेहसंबद्धो ? ॥७९॥ हा देवि ! कत्थ सि गया ? मह विरहे कहवि धारिहिसिपाणे ? । लब्भिसि किं वाऽणत्थं ? किं वा वि गया दिसाभागं?" ॥८॥ इय एवं सोयंतो जा सोवइ ते कुमारए ताव । सहस त्ति अंबरतलं अप्फुण्णं जलयवलएहिं ॥८१॥ गज्जियरवेण समयं चमक्किया विज्जुला खणद्धेण । अह वरसिउं पवत्ता जलया अइगरुयधाराहिं ॥८२॥ निवई वि सुए तणुणा वत्थेहिं य आवरित्तु संठाइ । मेहा वि सयलरयणि वरसिय थक्का पभायम्मि ॥८३॥ १. ला. किंचि ॥ २. सं.वा.सु. जीयं न अण्णहा ॥ ३. सं.वा.सु. 'कले रणे । गि। Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१० मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः सीएणं वाएणं विज्झडिओ जलपवाहवुडियंगो । ॐ सूरुग्गमम्मि चिक्खल्लबोले(लि)ए खो(खा)लिय कुमारे ॥८४॥ जा जाइ अग्गओ नीरपूरसंपूरियम्मि मग्गम्मि । ता पेच्छइ पूरेणं समागयं गिरिनइं पुरओ ॥८५॥ तो चिंतइ तत्थ निवो 'कह नित्थरिहामि नणु इमं सरियं ? । हुँ एक्ककं कुमरं तरिऊणं नेमि परतीरं' ॥८६॥ तो संठाविय जेटुं लहुयं घेत्तुं तरित्तु परकूले । ठविऊण जा नियत्तइ ता कहवि हु ठाइ नो बालो ॥८७॥ तं रुक्खे संजमिउं नईए मज्झम्मि देइ सो झंपं । तत्थ विलग्गाउ तले अदिस्समाणम्मि जंघाओ ॥८८॥ सुक्कयरुक्खम्मि तओ तेण वि सो वुब्भिउं समाढत्तो । तं दट्ठणं कुमरा विलवहि 'हा ताय ! ताय !' त्ति ॥८९॥ दूरं गए नरिंदे उभयतडट्ठा विओइया कुमरा । कुरुलंति दो वि अहियं रयणीए जहा रहंगाई ॥१०॥ चितइ अभग्गसेणो ‘हा हा किं एरिसंम्ह संजायं । जं आसि एगमच्छि तं पि हु उप्पाडियं विहिणा' ॥११॥ ते विलवंते दटुं सिरिसेणो चिंतई य "हा दिव्व ! । किं अइदारुणमेयं विहियमवत्थंतरं मज्झ ? ॥१२॥ जइ ता रज्जब्भंसो दिव्व ! कओ मज्झ नणु अउण्णस्स । ता कि परकम्मकरी मालागारी कया देवी ? ॥९३।। जइ ता तयं पि विहियं ता कि अवरं विणिम्मियं एयं ? । जं तीए समं विरहो चिंतिज्जंतो वि दुव्विसहो ॥९४॥ जइ ता तीए वि समं नणु विरहो मह कओ तए दिव्व ? | ता किं सुएहि समयं एवमयंडे विसंघडिओ ? ॥१५॥ जइ ता विओइओऽहं सुएहिं तो किं थ मज्झ पच्चक्खं । एए वि हु दो तणए निग्घिण ! विहडा विया एवं ? ॥१६॥ १. स्वस्तिकद्विकमध्यगः पाठो ला. संज्ञकप्रतावेवोपलब्धः ॥ २. ला. तं दृट्टणं चिंतइ 'कह ॥ Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः जइ नाम विसंघडिया एए ता किं नईए मज्झम्मि । एवमहं पक्खित्तो संदेहे जीवियस्सावि ?" ॥९७॥ एवं बहुप्पयारं सोयंतो नियमणम्मि सिरिसेणो । कट्टेण तेण नेउं पडमिणिखेडे पुरे खित्तो ॥ ९८ ॥ कट्ठम्मि तम्मि कूले लग्गम्मि विमोइऊण जंघाओ । वीसमइ तरुतलम्मी उज्जाणे पुरवरस्स बहिं ॥९९॥ तो य तत्थ नयरे अपुत्तराया परं भवं पत्तो । अहिवासियाइं तत्तो मंतीहिं वि पंच दिव्वाई ॥१००॥ बत्तीसलक्खणधरं रंज्जरिहनरं गवेसयंताइं । पत्ताइं तत्थ ठाणे सिरिसेणो जत्थ वीसमइ ॥ १०१ ॥ तो तेहिं तस्स अग्घो दिण्णो पंचहिं वि करिवरेणा वि । उक्खिविऊणं केंधे नियए आरोविओ सहसा ॥ १०२॥ तो सो राया जाओ पविसइ नयरम्मि नंदिघोसेणं । रायसहाए सीहासणम्मि उवविसइ विमणमणो ॥ १०३ ॥ तं दट्ठूणं मंती जंपइ 'किं देव ? दुम्मणा तुब्भे ? | रज्जभिसेओ जेणं पच्चूसे होहिई तुब्धं ॥ १०४॥ तो जंपइ पुहइवई 'मंति ? न रज्जेण किंचि मह कज्जं ' । 'किं कारणं ?' ति मंती पुच्छइ सो कहइ नीसेसं ॥ १०५ ॥ तं सोऊणं मंती जंपइ "देवेण दारुणं दुक्खं । अहह अहो ! अणुभूयं संपइ मण्णेमि तं खीणं ॥ १०६ ॥ जम्हा रज्जसिरी तुब्भे च्चिय नरवई इहं विहिया । ता तं चियरयणीए पुच्छह सव्वं किमण्णेण ?" ॥१०७॥ राया वि 'जुत्तिजुत्तं मंति! तुमे मंतियं' ति भणिऊण । रयणी सिरिदेवि इत्ता कुणइ पणिहाणं ॥ १०८॥ पडीहोऊण तओ जंपर देवी वि " मा कुण विसायं । देवी- सुएहिं जम्हा, मिलिहिसि तं नत्थि संदेहो ॥१०९ ॥ १. ला. रज्जरुह ॥ २. ला. खंधे ॥ ३११ Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१२ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः जइया तुह मेलावो होही तइया य चंपओ एसो । फुल्लिहिइ दुवारत्थो' इय भणिऊणं गया देवी ॥११०॥ वितयं सव्वं हायकालम्मि मंतिणोसिद्धं । सो जंपइ "जइ एवं सिंचिज्जउ तो इमो सययं ॥ १११ ॥ फुल्लइ जेण अयाले" पडिवन्ने तम्मि नरवरिंदेण । विहिओ रज्जभिसेओ एवं सो भुंजए रज्जं ॥ ११२ ॥ तो ते वि कुमारा दो वि हु विलवंति जो खणं एक्कं । ताव तहिं गोवाला पत्ता पुच्छंति लहुकुमरं ॥११३॥ जा सो किंपि न जंपइ ता इयरं आणिऊण पुच्छंति । तेण वि सिट्टं 'जणओ अम्हाण नईए नणु हरिओ' ॥११४॥ तेहिं वि करुणाइ तओ नेउं गोट्ठम्मि अप्पिया दो वि । धणसेणा नियमयहरीए बहुरिद्धिजुत्ता ॥ ११५ ॥ पुरहियाए तीए वि पुत्ते पडिवज्जिऊण नियगोट्टं । मेलेऊणं भणियं सव्वस्स वि सामिया एए' ॥ ११६ ॥ विहियाई नामाई दोणि वि नणु राम-लक्खणा एए । एवं सुहेण ते विहु दोण्णि वि चिट्ठति रममाणा ॥ ११७ ॥ अह अन्नया कयाई धणसेणा गिव्हिऊण ते कुमरे । रायस्स दंसणत्थं वच्चइ अह परमिणीखेडे ॥११८॥ ते दट्ठूणं राया कुमरे रोमंचकंचुइज्जं । चितइ जइ जीवंती तो पुत्ता मज्झ नणु एए ॥११९॥ तो भणिया धणसेणा " भद्दे ! तुह पुत्तया इमे दो वि । जणयंति मज्झ चित्तस्स निव्वुइं तेण एत्थेव ॥ १२०॥ चिट्ठ पुत्तेहिं समं मह गेहे चेव निव्वियारेण" । सा वि तयं पडिवज्जिय चिट्ठइ हिट्ठा नरिंदघरे ॥ १२१ ॥ कुमरो वि निवं दद्धुं एवं चिंतेइ 'मज्झ जणयस्स । अणुहर इमो या ता अम्हं जणयतुल्लो त्ति ॥ १२२॥ १. ला. जेणायाले ॥ २. ला. जाव खणमेकं ॥ ३. ला. किंचि ॥ ४. ला. नियमेहरीए ॥ Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१३ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः एवं चिटुंताणं सुहेण कुमराण रायपासम्मि । अह अन्नया कयाइ वसंतमासो समणुपत्तो ॥१२३॥ घोसावियं च रण्णा पडहयसद्देण सव्वनयरम्मि । जह 'सव्वो वि हु लोगो कील उज्जाणमाईसु' ॥१२४॥ सयमवि उज्जाणत्यो कुमरसमेओ विसिट्ठकीलाहिं । चिट्ठइ अभिरममाणो पिच्छंतो नाडयसयाई ॥१२५॥ एत्तो वि य सो संखो अभयसिरीए समण्णिओ जंतो । वहणेण समुद्दम्मी परकूलम्मी समणुपत्तो ॥१२६॥ बब्बर-पारसकूले सुवण्णभूमीतियालबहुतित्थे । वज्जरयमाइएसुं बारस वरिसाणि भमिऊण ॥१२७॥ पत्तो तम्मि पुरम्मी परमणिखेडम्मि विविहपणियाण । भरिऊणं वरवहणं देवीए समं विभूईए ॥१२८॥ लंबावियं च वहणं वेलाकूलम्मि नंगरसिलाहिं । देवीए वि य भणिओ एगो पुरिसो जहा पुत्त ! ॥१२९॥ जंइ कहवि जाइ संखो पउमिणिखेडम्मि तो मह कहिज्ज" । तेण वि भणियं 'सामिणि ? एयं तं परमिणीखेडं ॥१३०॥ एत्थंतरम्मि संखो थालं भरिऊण विविहरयणाणं । जाइ निवदंसणत्थं सहसा तत्थेव उज्जाणे ॥१३१॥ तो दिट्ठो नरनाहो उवविट्ठो पिच्छणम्मि रम्मम्मि । संखो वि तयक्खित्तो वियालवेलं ठिओ जाव ॥१३२।। गेहम्मि पत्थिएणं भणिओ संखो निवेण वच्चंतो । "सिट्टि ! तुमं पाहुणओ अम्हाणं होसु अज्ज' त्ति ॥१३३॥ संखेण तओ भणियं "एवमिणं किंतु मज्झ बोहित्थं । भगिणीए समं सुण्णं होही ता को वि पच्चइओ ॥१३४॥ पेसिज्जउ तत्थ" तओ रण्णा ते दो वि पेसिया कुमरा । आएसो त्ति भणित्ता झत्ति गया तम्मि वहणम्मि ॥१३५॥ १. ला. 'ण नयरमज्झम्मि ॥ मूल. २-४० Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१४ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः कोउगवसेण तत्तो आरूढा जावतत्थ ते ताव।। अभयसिरी दट्टणं आगयपण्हा विचितेइ ॥१३६॥ 'नूणं मह पुत्तेहिं पच्छण्णेहिं इमेहिं होयव्वं । एएणं वेसेणं' जाया एत्तरे रयणी ॥१३७॥ कट्ठोवरयम्मि ठिया देवी कुमरा य तढुवारम्मि । उवविट्ठा तो भणिओ लहुएणं भाउओ जेट्ठो ॥१३८॥ कहसु कहाणयमेगं भणइ इमो अम्ह संतिओ चेव । वुत्तंतो नणु भाउय ! कहाणयं किंच अन्नेण ?' ॥१३९॥ इयरेण वि पडिभणियं तं चेव य कहसु कोउयं मज्झ । सो जंपइ "रयणरे सिरिसेणनिवग्गमहिसीए ॥१४०॥ अभयसिरीए पुत्ता अम्हे णणु वच्छ ! दो वि निसुणेहि । अहयं अभग्गसेणो नाम तुमं पुष्फर्चुल त्ति ॥१४१॥ वच्छ ! अजायम्मि तए रज्जब्भट्ठाणि अम्हि नंदपुरे। पत्ताणि तत्थ अंबा मालागारितणं कासी ॥१४२॥ ताओ पुण वाणिज्जं चिटुंताणं कमेण तं जाओ । तो केणावि हु अंबा अवहरिया नेय जाणामो ॥१४३॥ तो अम्हे घेत्तूणं ताओ वि हु तग्गवेसणट्ठाए । वच्चंतो अडवीए नईए उत्तारिओ तं सि ॥१४४॥ जा मह आणणहेडं आगच्छइ ता नईए सो नीओ । अम्हे. वि हु धणसेणाए अप्पिया गोवपुत्तेहिं" ॥१४५।। जावेवं सो कुमरो जंपइ ता पयडपुलइया देवी । . भणइ 'अहं सा पुत्तय ! अभयसिरी तुम्ह जणणि' त्ति ॥१४६।। तो एवं सोऊणं कंठम्मि विलग्गिउं इमे रुण्णा । जंपइ अभग्गसेणो 'केण तुमं अंब ? अवहरिया ?' ॥१४७॥ भणइ इमा 'जो पुत्तय ! इमस्स वहणस्स सामिओ संखो । तेणऽवहरिया अहयं' कुविओ तं सुणिय सो कुमरो ॥१४८॥ १. सं.वा.सु. ते कुमरा । नू ॥ २. ला. 'चूलो ॥ Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भाग: ३१५ जंपइ 'अम्मो ! अज्जं इमस्स सीसं लएमि निवपुरओ । अइगरुयकिलेसायासकारिणो पावकम्मस्स' ॥१४९॥ तं सोउं भणइ इमा "जंपसु मा पुत्त ! एरिसं वयणं । जेण इमो तुम्हाणं असमाणो माउलो होज्जा ॥१५०॥ जम्हा पडिवण्णाऽहं तेण य भगिणी न खंडियं सीलं"। कुमरो वि हु जणणीए भावं नाऊण उवसंतो ॥१५१॥ चितइ देवी वि मणे 'मिलिया कुमरा न अज्ज वि नरिंदो' । एत्थंतरम्मि रयणी पविहाया उग्गओ सूरो ॥१५२॥ तो जणणि घेत्तूणं ते वि हु पविसंति नयरमज्झम्मि । एत्थंतरम्मि सो वि हु पप्फुल्लो चंपओ सहसा ॥१५३॥ तं दट्ठणं राया चिंतइ नणु एस पच्चओ पुण्णो । तहवि हु न मिलइ देवी' इय चितंतस्स ते कुमरा ॥१५॥ पत्ता जणणिसमेआ सा वि निवं पेच्छिऊण सहस त्ति । रोमंचंचियदेहा पणमइ सीसेण नरनाहं ॥१५५॥ राया वि हु परितुट्ठो पडिवत्तिं कुणइ तीए सविसेसं । भणइ य अभग्गसेणो देव ! इमा अम्ह जणणि त्ति ॥१५६।। नंदपुराओ पुव्वं इमेण संखेण अवहिया आसि । एसा पुण धणसेणा पडिवन्ना होइ माइ" त्ति ॥१५७॥ तं सोऊणं राया आणंदपवाहपुण्णतरलच्छो । उच्छंगे ठविऊणं दो वि हु कुमरे इमं भणइ ॥१५८॥ 'हा हा ! पुत्तय ! तुब्मे एत्थ वसंता वि नो मए सम्मं । विण्णाया किंतु मणे संदेहो आसि मे गरुओ' ॥१५९॥ तो पुट्ठा धणसेणा 'कत्थ तुमे पाविया इमे भद्दे ! ?' । तीय वि सव्वं कहियं अभयसिरी तो इमं भणइ ॥१६०॥ 'भगिणि ! तुम चिय धण्णा जीए इमे पालिया गुणविसाला' । जायं च संगमम्मी परोप्परं ताण वरसोक्खं ॥१६॥ १. ला. होई ॥ २. ला. माय ति ॥ ३. ला. तुम्हे ॥ Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१६ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः अहं आणिया सुभद्दा पुप्फसिरी वि य तओ य सव्वाई । चिट्ठति ललंताई रज्जसिरिं अणुहवंताई ॥१६२॥ संखो विहु सामंतो देवीवयणाउ राइणा ठविओ । एवं अच्छंताणं अन्नदिणे तत्थ वरसूरी ॥ १६३॥ संपत्तो विहरंतो चउविहवरनाणपयडियपयत्थो । मुणिसुव्वओ त्ति नामो सुसाहुगणपरिवुडो भयवं ॥१६४॥ तं नाउं पुरलोगो वंदणवडियाइ निग्गओ झ त्ति । कहियं च सुभद्दाए केण वि वरसूरिआगमणं ॥ १६५ ॥ तं सोऊणं सा विहु भत्तिवसुल्लसियबहलरोमंचा । देवी - पुप्फसिरीणं अक्खड़ तं ताउ तीए समं ॥ १६६॥ गंतूण निवर्समीवे भणंति “विण्णत्तियं पहु ? सुणेहि । एत्थं वरसूरी समागओ अम्ह पुण्णेहिं ॥१६७॥ ता तस्स वंदणत्थं गम्मउ" राया वि तं निसामेउं । सव्विड्डीए गच्छइ ताहिं समं मुणिवरं नमिउं ॥१६८॥ वंदित्तु मुणि धरणीयलम्मि उवविसइ नाऽइदूरम्मि । गुरुणा वि य पारद्धा धम्मकहा भैव्वसुहजणणी ॥१६९॥ अवि य जं किं चि इत्थ जीवा लहंति संसारवासमज्झमि । सोक्खं वा दुक्खं वा तं सव्वं पुव्वकम्मफलं ॥१७०॥ जेणेत्थ जए जीवा राग-द्दोसेहिं मोहिया संता । तं चिय पावं कम्मं कुणंति नणु जस्स दोसेण ॥१७१॥ पावेंति आवईओ नाणारूवाउ बहुदुहकरीओ । जं पुण विविहं सोक्खं तं सव्वं पुण्णमाहप्पं ॥ १७२॥ एत्थंतरम्मि देवी भणइ 'किमम्हेहिं अण्णजम्मम्मि । सामिय ! विहियं कम्मं असुहसुहो जस्स उ विवागो ?' ॥१७३॥ १. ला. 'समीवं ॥ २. ला. जह एत्थं ॥ ३. ला. सव्वसुह ॥ Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः तो जंप सूरिवरो “भद्दे ! निसुणेहि अण्णजम्मम्मि । सुहातलम्मि नयरे, आसि निवो सिद्धसेणो त्ति ॥१७४॥ अण्णो वि तत्थ निवसइ भीमो नामेण ठक्कुरो तस्स । भज्जाए धारिणीए धूया तं आसि गुणमाला ॥ १७५ ॥ रूवाइगुणगणजुया संपत्ता जाव जोव्वणं ताव । जणी तुमं दिण्णा नियभाइसुयस्स संखस्स ॥ १७६ ॥ जणएण तमवगण्णिय दिण्णा तं सिद्धसेणनरवइणो । परिणीया य कमेणं भुंजसि भोए अणण्णसमे ॥ १७७॥ सो वि हु माउलभाया अभिमाणधणो इमं विचिते । 'हंत ! मए भोत्तव्वा अवहरिऊणं इमा बाला' ॥१७८॥ रण्णा वि अग्गमहिसी तुमं कया नेय पावियं छिद्दं । संखेण तओ एसो अन्नाणतवं बहुं कुणइ ॥ १७९॥ पत्ते य मरणसमए नियाणमेवंविहं इमो कुणइ । " जइ अत्थि तवस्स फलं इमस्स तो अन्नजम्मे वि ॥ १८० ॥ जह अवहरामि एवं इमस्स पासाउ तह हविज्जामि" । इय चिंतिऊण मरिठं सो आई वंतरो जाओ || १८१ ॥ अह अण्णया य तुमए कीलंतीए नरिंदजुत्ताए । भवणुज्जाणसिरीए दिट्ठाई चक्कवायाई ॥१८२॥ रइकेलिपसत्ताइं धणियं अण्णोण्णबद्धनेहाइं । एगत्थ रमंताई उड्डावित्ताणि सहस त्ति ॥ १८३॥ विच्छोइयाई तुमए मयणुम्मत्ताइ केलिकलियाए । रण्णा वि तओ भणियं 'देवि ! कयं सुट्टु सुट्टु' त्ति ॥ १८४॥ ताणि विकुरुलंताई चिरेण मिलियाई तुज्झ वि कमेण । संजाया दुणि सुया कुसला बाहत्तरिकलासु ॥१८५॥ कइया वि तेहिं दोहिं वि कीलाहेडं गएहिं उज्जाणे । वानरडिंभा दुन्निउ दिट्ठा जणयाण पासम्मि ॥१८६॥ १. ला. वसुहाजलम्मि ॥ २. ला. 'या देवि ! सुया ॥ ३१७ Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१८ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः तो भेसिऊण एए एक्कक्कं गिहिऊण ते दो वि । पत्ता गिहम्मि चवले दलु तुब्भे वि तुट्ठाई ॥१८७॥ ताणि वि पुत्त विओए कंदंती वानराइं तो तुज्झ । गोवेहि तयं सिटुं करुणावन्नाए तुमए वि ॥१८८॥ भणिया कुमरा "पुत्तय ! मुंचह एए तर्हि चिय जओ उ । अइदुक्खिया इमेसि जणया तेहिं पि तत्थेव ॥१८९॥ नेऊणं परिमुक्का मिलिया जणयाण बारसमपहरे । इयचरियाई चिट्ठह जा तुब्भे धम्मरहियाइं ॥१९०॥ ताव य तुम्ह घरम्मी अह एक्को मुणिवरो समणुपत्तो । विहरंतो तुब्भेहिं वि भणिओ 'मुणि ! भणसु नियधम्म' ॥१९१॥ भिक्खागयाण जइ वि हुन कप्पए जंपिउं बहुं तह वि । नाऊण बहुगुणकरं सो अक्खइ तुम्ह जिणधम्मं ॥१९२॥ तं सोऊणं तुब्भे अहियं सद्धम्मभावियमणाई । चत्तारि वि पडिवज्जह सावयधम्मं अणण्णसमं ॥१९३॥ पडिलाहह भत्तीए य तं मुणि भत्त-पोत्त-पत्तेहिं । विगए य तम्मि चिट्ठह तग्गुणगणरंजियमणाई ॥१९४॥ एत्थंतरम्मि पव्वा इयाउ पत्ताउ तिण्णि तुह पासे । एगा तुह माउसिया दोण्णि उधूयाउ तस्सेव ॥१९५॥ ताण तुमे जिणधम्मो कहिओ जह साहुणा विणिद्दिट्ठो । कम्मखओवसमेण य ताण वि सो परिणओ सम्मं ॥१९६॥ भणियं च ताहिं 'तुब्भे धण्णाई जेहिं पाविओ धम्मो । अम्हे अज्ज प्पभिई दुदसंगमिमं करिस्सामो' ॥१९७॥ इय वोत्तूणं ताओ तिण्णि वि पत्ताउ निययठाणम्मि । इइ पालिऊण धम्मं गयाणि सव्वाणि सुरलोगं ॥१९८॥ तत्तो चवित्तु इहइं जायाणि पुणो वि तह य मिलियाणि । जा गुणमाला सा तं राया वि इमो निवो जातो ॥१९९॥ १. ला. य ॥ २. ला. अम्हे वि अज्जपभिई॥ Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः पुत्तावि इमे कुमरा माउसिया वि हु इमा सुभद्दति । पुप्फसिरी - धणसेणाउ ताउ भगिणीउ जायाओ ॥ २००॥ संखो विभवं भमिउं जाओ एसो पुणो वि संखो त्ति । तेण नियाणवणं अवहरिया तं सि एएणं ॥ २०२ ॥ जं चक्काइं तइया विओइयाइं तए निवेणावि । अणुमन्नियाई तेणं तुम्ह विओगो इमो जाओ ॥ २०२॥ जं ते वानरडिंभा बारस पहरे विओइया तेण । बारस वरिसो जाओ परोप्परं तुम्ह विच्छोहो ॥ २०३ ॥ जं केलीए कम्मं हसमाणेहिं निबज्झए तं तु । वेइज्जतं दुसहं संजाया जह य तुम्हाणं ॥ २०४॥ इय सूरिवयणमायण्णिऊण सव्वाण ताण संजायं । जाईसरणं तत्तो भवण्णवुव्विग्गचित्ता ॥ २०५ ॥ काऊण रज्जसुत्थं गहिया दिक्खा तहेव सिग्घं च । उप्पाडिऊण नाणं पत्ताइं सासयं ठाणं ॥ २०६॥ एसा सा अभयसिरी महासई पायंडासुराणं पि । संखेवेणं चरियं तीए एयं समक्खायं ॥ २०७॥ ३१९ अभय श्रीकथानकं समाप्तम् ॥५५॥ एवमन्यान्यपि कथानकानि भावनीयानी ति श्लोकार्थः ॥१७८॥ किं कारणमाश्रित्य तासामेवंविधा त्रैलोक्यानुयायिनी कीर्तिः इति प्रश्ने श्लोकमाहतेलोक्कमक्कमित्ताणं, कित्ती ताणं तु निम्मला । ठिया जं कारणं तत्थ, सइत्तं सीलसंपया ॥ १७९ ॥ त्रैलोक्यं = त्रिभुवनम्, आक्रम्य = व्याप्य, कीर्तिः = प्रसिद्धिः, 'ताणं तु' तासाम्, तुशब्दाद् अन्यासां चैवं विधानाम्, निर्मला = प्रोज्ज्वला, स्थिता = व्यवस्थिता, 'जं' यत्, कारणं=साधनम्, तत्र=तस्मिन्, सतीत्वं= पतिव्रतात्वम्, चकारस्य गम्यमानत्वात् शीलसम्पच्च= = चारित्रविभूतिश्चेति श्लोकार्थः ॥१७९॥ आस्तां कीर्तिरन्यदपि यत्सतीनां सामर्थ्यं तत् श्लोकाष्टकेनाऽऽह १. ला. "यसिरीक' ॥ २. ला. श्लोकभावार्थः ॥ ३. ला. साधकम् ॥ Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२० सईणं सुद्धसीलाणं, तिक्खदाढासुभासुरो । खुद्दो र्रुद्दो विकूरो वि, केसरी नेय अक्कमे ॥१८०॥ सतीनां=पतिव्रतानां शोभितानां वा, शुद्धशीलानां = निर्मलचारित्राणाम्, तीक्ष्णदंष्ट्रासु भासुरः = द्रुतभेदकारिदंष्ट्राविकरालः, क्षुद्रः = क्षोदनशीलो मायाशीलो वा, रौद्रोऽपि = भीषणोऽपि, क्रूरोऽपि = मांसाशित्वेन दुष्टाध्यवसायोऽपि, अपिशब्दावेवमेवैतदिति प्रतिपादनार्थी, केसरी = सिंहः, 'नेय' त्ति नैव, 'अक्कमे' त्ति आक्रमयति=चम्पयति क्रमदानेनेति श्लोकार्थः ॥१८०॥ तथा सईणं सुद्धसीलाणं, फारफुक्कारकारओ । दुट्टो दिट्ठीविसो सप्पो, निव्विसो सिंदुरं पिव ॥१८१॥ सतीनां शुद्धशीलानां स्फारफूत्कारकारकः = महाशब्दविधायकः, दुष्टः=प्रचण्डरोषः, दृष्टिविषः = नयनविषः, सर्पः = कञ्चुकी, निर्विष:, = विषरहितो जायत इति गम्यते, सिंदुरमिव = रज्जुवदिति श्लोकार्थः ॥१८१ ॥ सईणं सुद्धसीलाणं, अग्गी जालाकरालिओ । साविओ सच्चवायाए, चंदणं पिवसीयलो ॥ १८२ ॥ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः स्पष्टः, नवरं श्रावितः=शब्दा (प्तः), सत्यवाचा = सत्यवचनेन 'यद्यहमेतेषां कर्मणां कारिणी ततो मां दग्धुमर्हसीत्यन्यथा न' इत्यादिरूपया, चन्दनमिव = श्रीखण्डमिव, शीतलः, पिवशब्दः इवार्थः शीतवीर्य इति श्लोकार्थः ॥ १८२ ॥ सईणं सुद्धसीलाणं, तिक्खसोया महानई । भीसणा विदुरुत्तारा, समा भूमीव भास ॥ १८३॥ तीक्ष्णस्रोताः = शीघ्रवेगा, महानदी = बृहदापगा, भीषणाऽपि = भयजनकाऽपि, दुरुत्तरा = दुःखोत्तरणीया, समा= 3 = अनिम्नोन्नता, भूमीव= धरणीवद्, भासते = प्रतिभातीति श्लोकार्थः ॥१८३॥ सईणं सुद्धसीलाणं, अगाहो गाहदुग्गमो । महल्लहल्लकल्लोलो, समुद्दो गोपयं पिव ॥ १८४ ॥ अगाधः=अलब्धतलः, ग्राहदुर्गमः = ग्राहाः = जलचरास्तैर्दुर्गमः = दुःखसञ्चरणीयो ग्राहदुर्गमः, ‘महल्लहल्लकल्लोलो'त्ति महद्धल्लकल्लोलो महान्तः = बृहत्प्रमाणा हल्लन्तः=चलन्तः कल्लोलाः=जलोत्पीला यत्र स तथा, समुद्रः =जलधिः, गोष्पदमिव = गोश्चरणगर्तेव, १. ता. रोद्दो य कूरो ॥ २. ला. शोभनानां ॥ ३. सं.वा.सु. सिंदुरिं ॥ ४. ला. “तः सत्य° ॥ Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२१ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः प्राकृतत्वादत्राऽपि पिवशब्द इवार्थः, सुखोत्तारो भवतीत्यध्याहार इति श्लोकार्थः ॥१८॥ सईणं सुद्धसीलाणं, डाइणी-रक्खसाइणो । संता वटुंति निद्देसे, किंकुव्वाणा वि किंकरा ॥१८५॥ डाकिनी-राक्षसादयः शाकिनी-प्रेतप्रभृतयः, शान्ताः= उपशमं गताः, वर्तन्ते= प्रवर्तन्ते, निर्देशे आज्ञायाम्, किंकुर्वाणा:="किं कुर्मः ?' इत्येवमादेशं मृगयन्तः तच्छब्दस्य व्यवहितसम्बन्धात् किंकरा व कर्मकरवदिति श्लोकार्थः ॥१८५॥ सईणं सुद्धसीलाणं, सक्काईया सुरा-ऽसुरा । हिट्ठा कुव्वंति केज्जाई, कुणंता गुणकित्तणं ॥१८६।। शक्रादयः वज्रधरप्रभृतयः, सुरा-ऽसुराः देव-दानवाः हृष्टाः= तुष्टाः, कुर्वन्ति= विदधति, कार्याणि=सतीप्रयोजनानि, 'कुणंता' विदधतः, गुणकीर्तनं गुणप्रशंसां 'धन्या एता या एवं गुणवत्यः' इत्येवंरूपमिति श्लोकार्थः ॥१८६॥ सईणं सुद्धसीलाणं, मोक्खमग्गठियाण उ। तेलोए नत्थि तं किं पि, जं असमं पओपणं ॥१८७।। सतीनां शुद्धशीलानां तुशब्दस्याऽवधारणार्थत्वाद् मोक्षमार्गस्थितानामेव ज्ञान-दर्शनचारित्रलक्षणनिर्वाणपथव्यवस्थितानाम्, त्रैलोक्ये त्रिभुवने, नाऽस्ति न विद्यते तत् किमपि यदसाध्यं = यन्न सिध्यति, प्रयोजनं कार्य तत्प्रभावेनेति श्लोकाष्टकार्थः [१७९-१८७] ॥१८७॥ ततश्च एवं कालानुरूवेण जाव तित्थं पवत्तई । सच्चसिरीवसाणं तु, सावियाणं पि संतई ॥१८८॥ एवम् =अमुना प्रकारेण, कालानुरूपेण=दुःषमाकालानुभावक्षीयमाणगुणत्वेन, यावत् तीर्थं प्रवर्तते यावज्जिनदर्शनमास्त इति, सत्ययवसानानां दुःषमाकालपर्यन्तभावे सत्य,यभिधानश्राविकापर्यन्तानाम्, श्राविकाणां तु सन्तति:=प्रवाह इति श्लोकार्थः ॥१८८॥ यस्मादेवंविधगुणयुक्ताः श्राविकास्तस्मात् तासां वात्सल्यं विधेयमिति प्रतिपादनार्थ श्लोकमाह साहम्मिणीण वच्छल्लं, जं जं अण्णं पि सुंदरं । कायव्वं सव्वसो सव्वं, सव्वदंसीहि दंसियं ॥१८९॥ १. ला. किच्चाई॥ मल.२-४१ Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२२ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः सामिणीनां समानधर्मयुक्तानाम्, वात्सल्यं वस्त्राऽऽसनताम्बूलादिभिर्वत्सलता, श्राविकाणां यथोचितं यथायोग्यं कर्तव्यं =विधेयम्, सर्वशः सर्वप्रकारैः, सर्वम् = अशेषम्, सर्वदर्शिभिः सर्वज्ञैः दर्शितं प्रतिपादितमिति श्लोकार्थः ॥१८९॥ साम्प्रतं तत्कृत्योपदेशं प्रकरणोपसंहारं च वृत्तेनाऽऽहसिद्धंतसुत्ताणि मणे धरित्ता, गुणे य दोसे य वियारइता । सुसावियाणं उचियं विहीए, कुज्जा बुहो सिद्धिसुहावहं ति ॥१९०॥ सिद्धान्तसूत्राणि=राद्धान्तवचनानि साहम्मियवच्छल्लम्मि उज्जुया उज्जया य सज्झाए । चरणकरणम्मि य तहा, तित्थस्स पभावणाए य ॥३८५।। इत्यादीनि, मनसि चित्ते, धारयित्वा व्यवस्थाप्य, गुणांश्च दोषांश्च विचार्य= 'यदुतैवंविधीयमाने एते गुणाः, अविधीयमाने त्वेते दोषाः' इत्येवं परिभाव्य, सुश्राविकाणां शोभनश्रमणोपासिकानाम्, उचितं योग्यम्, विधिना=विधानेन, कुर्याद्= विदध्यात्, बुधः = पण्डितः, यस्मात् सिद्धिसु-खावह = शिवशर्मकारि, इति= प्रकरणपरिसमाप्ताविति वृत्तार्थः ॥१९०॥ इति श्रीदेवचन्द्राचार्यविरचिते मूलशुद्धिविवरणे सप्तमस्थानकं विवरणतः समाप्तम् ॥७॥ व्याख्यातं सप्तमस्थानकम् । अधुना सर्वस्थानककृत्यशेष शेषप्रतिमास्वरूपं च प्रकरणशेषेणाऽऽह । तदादिश्लोकश्चाऽयम् सामत्थेणं व अत्थेणं, सुद्धबुद्धीइ सिद्धिए । सओ य परओ चेव, सत्तट्ठाणाणि फावए ॥१९१॥ सामर्थ्येने स्वशरीरशक्त्या, वाशब्दोऽग्रे योक्ष्यते, अर्थेन द्रव्येण, शुद्धबुद्ध्या निरवद्यधिया, सिद्ध्यवा=पिण्डसिद्ध्या, स्वतः=आत्मना, चकारस्य व्यवहित- सम्बन्धात् परतश्चैव अन्यैः, सप्तस्थानकानि=पूर्वोक्तानि, 'फावए' त्ति स्फावयेद्=वृद्धि नयेदिति श्लोकार्थः ॥१९१॥ __ 'तत्र सामर्थ्यादिभिः स्थानकस्फातिकरणं सुकरं युक्तं च, यत्पुनरर्थे न तन्न युक्तम्, तस्य दुःखोपार्जनत्वाद् दुर्व्ययत्वाच्च' इत्यारेकायामाह १. ला. तदाद्यश्लो ' ।। २. सं.वा.सु. 'न शरी ॥ Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२३ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः संतं बज्झं अणिच्चं जो, ठाणे दाणं पि नो दए । वराओ तुच्छओ एसो, कह सीलं दुद्धरं धरे ॥१९२॥ सन्तं विद्यमानम्, बाह्यं शरीरात् पृथग्भूतम्, अनित्यम्=अशाश्वतम्, उक्तं चइन्द्रजालमिवाऽनेकदर्शिताद्भुतविभ्रमम् । क्षणदृष्टविनष्टं च नीरबुद्बुदसन्निभम् ॥३८६।। गन्धर्वनगराकारं पश्यतामेव देहिनाम् । तद्धमं क्षणमात्रेण क्वाऽपि न ज्ञायते गतम् ॥३८७।। अर्जितं बहुभिः क्लेशै रक्षितं जीवितं यथा । नष्टं च यादृग् नृत्यत्सु नटेष्वपि न वीक्षितम् ॥३८८॥ येऽपि थुत्कृत्य फूत्कृत्य, पादमञ्चन्ति भूतले । तेषामपि क्षणार्धेन, नश्यतीदं न संशयः ॥३८९॥ स्थाने सत्पात्रे जिनसङ्घसाधुरूपे, यत उक्तम् त्रैलोक्येऽपि जिनादृते वरतरं निक्षेपधामाऽपरं, गन्तॄणां परलोकमार्गमतुलं वित्तस्य नो विद्यते । येनाऽनीप्सितमप्यहो ! प्रतिकृतौ न्यस्तं दृढं विस्मृतं, कोटीकोटिगुणं भवान्तरगता प्रत्यर्पयत्यादरात् ॥३९०॥ अत्यन्तं यदि वल्लभं धनमिदं त्यक्तुं त्वया नेष्यते, सौहार्दाद्यदहं ब्रवीमि वचनं तद्भद्र ! शीघ्रं शृणु । भक्त्या सत्कृतिपूर्वकं गुणवते पात्राय यच्छ स्वयं, येनाऽन्येन सुरक्षितं बहुविधं जन्मान्तरे प्राप्यते ॥३९१॥ तथाप्रायः शुद्धैत्रिविधविधिना प्रासुकैरेषणीयैः, कल्प्यप्रायैः स्वयमुपहितैर्वस्तुभिः पानकाद्यैः । काले प्राप्तान् सदनमसमश्रद्धया साधुवर्गान्, धन्याः केचित् परमवहिता हन्त सन्मानयन्ति ॥३९२॥ आरंभनियत्ताणं अंकुणंताणं अकारविताणं । धम्मट्ठा दायव्वं गिहीहिं धम्मे कयमणाणं ॥३९३॥ १. ला. दये ॥ २. सं.वा.सु. जिनसाधुसकरूपे ॥ ३. ला. अकिणं ॥ Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२४ तथा संम्यग्दृग्ज्ञान-चारित्रनिवासाय महात्मने । सङ्घाय दीयते दानमासन्नभवसिद्धिकैः ॥३९४॥ मूलशुद्धिप्रकरणम् - द्वितीयो भागः 'दाणं पि' त्ति दानमपि दीयत इति दानं द्रव्यम्, न ददाति = न प्रयच्छति, वराकः= दयास्थानम्, तुच्छकः= निःसत्त्वः, एषः = पूर्वोक्तः, 'कह' त्ति कथम्, शीलं = चारित्रप्रतिमाप्रतिपत्तिविशेषो देशचारित्ररूपं सर्वविरतिरूपं वा, प्रतिपादित - श्रावक धर्मस्य तत्प्रतिपत्तेरुक्तत्वात्, दुर्धरं=दुःखधारणस्वभावम्, 'धरे' त्ति विभक्तिव्यत्ययाद् धारयिष्यति, निःसत्त्वत्त्वात् तस्येति भाव इति श्लोकार्थः ॥ १९२॥ सूत्रकार एवाऽर्थस्याऽनित्यतां श्लोकत्रयेणाऽऽह अत्थं चोरा विलुंपंति, उद्दालिंति य दाइया । राया वा संवरावेइ, बलामोडीए कॅत्थ वि ॥१९३॥ अर्थं = द्रव्यम्, चौराः = तस्कराः, विलुम्पन्ति = विनाशयन्ति, उक्तं च खातदानादिना गेहान्मार्गे सार्थादिघाततः । तस्करैर्ह्रियते द्रव्यं, निः पुण्यस्येह देहिनः ॥ ३९५ ॥ उद्दालयन्ति च = आच्छिन्दन्ति, 'दाइय' त्ति दायादाः = भागहारकाः, संस्थाप्या भोजने नोच्चैर्नीत्वा राजकुलादिषु । लान्ति द्रव्यमपुण्यानां, दायादा बलवत्तया ॥ ३९६ ॥ राजा वा 'संवरावेइ' त्ति ग्राहयति बलामोट्या बलात्कारेण, तथाहिअविद्यमानमप्यालं, दत्त्वा किञ्चिन्महीपतिः । गृह्णात्यर्थं मनुष्येभ्यो, मोटयित्वा कृकाटिकाम् ॥३९७॥ 'केत्थ वि' कुत्राऽपीति श्लोकार्थः ॥१९३॥ तथा जलणो वा विणासेइ, पाणियं वा पलावए । अवद्दारेण निग्गच्छे, वसणोवहयस्स वा ॥ १९४॥ ज्वलनो वा = वैश्वानरः, विनाशयति = भस्मीकरोति, तथा च उक्तं च द्रव्येणाऽऽपूरितं गेहं क्षणाद्भस्मीकरोत्यलम् । कुतोऽप्युद्दीपितो वह्निर्लसज्ज्वालाकुलाकुलः ॥ ३९८ ॥ १. सं. वा.सु. सम्यक्त्व - ज्ञा ॥ २. ला. 'पालित' ॥ ३. सं.वा.सु. भावार्थ इति ॥ ४-५. ला. कत्थई | Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भाग: ३२५ पानीयं वाजलं प्लावयति, तथा च तीरस्थो नीरपूरेण, पोतभङ्गेन सागरे । याति पापात्मनां नाशमतिस्वानां धनोच्चयः ॥३९९॥ अपद्वारेण वेश्याव्यसनादिना, निर्गच्छति=गेहान्निःसरति, व्यसनोपहतस्य चव्यसनेनाऽऽहितस्य, तथा च वेश्या-चूत-मद्यादि व्यसनोपहतचेतसः । याति क्षयं धनं सर्वं, पापबुद्धेर्नरस्य हि ॥४००॥ तथामोहेनाऽन्धीकृतानां तु, स्पर्शव्याकुलचेतसाम् । याति वेश्यानिशान्तेषु, केषाञ्चिद्धनसञ्चयः ॥४०१॥ इति श्लोकार्थः ॥१९४॥ भूमीसंगोवियं चेव, हरंती वंतरा सुरा । उज्झित्ता जाइ सव्वं पि, मरंतो वा परं भवं ॥१९५।। 'भूमीसंगोवियं चेव' धरणीनिखातमेव, हरन्ति=अदृश्यं कुर्वन्ति, व्यन्तरसुराः =द्वितीयभेददेवाः, तथा च भूमीसङ्गोपितं यत्नाद्, भूरिलाञ्छनलाञ्छितम् । व्यन्तरा अधितिष्ठन्ति, पुण्यहीनवसूत्करम् ॥४०२॥ 'उज्झित्त' त्ति प्रोज्य परित्यज्य, याति=गच्छति, सर्वमपि=अशेषमपि, 'मरंतो व' त्ति म्रियमाणो वा, परमअन्यभवं=जन्मान्तरम् तथा च सर्वोपद्रवसङ्घाताद्रक्षितं चेत्कथञ्चन । तथाप्यन्यभवं याति, हित्वा किं बहुभाषितैः ॥४०३॥ इति श्लोकत्रयार्थः [१९३-१९५] ॥१९५॥ पापानुबन्धिपुण्यानामेतेषु स्थानेष्वर्थो व्रजति, पुण्यानुबन्धिपुण्यानां तु सुस्थानेऽतः श्लोकमाह पुण्णाणुबंधिपुण्णाणं, पुण्णमंताण काणइ । पडिमाइसु संघेवा, सुट्ठाणे जाइ संपया ॥१९६॥ १. ला. स्थानस्थो ॥ Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२६ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः ___ पुण्यानुबन्धिपुण्यानां पुण्यं शुभम् अनुबध्नाति अनुगच्छति[इति?] पुण्यानुबन्धि । तच्च तत्पुण्यं च पुण्यानुबन्धिपुण्यं तद्विद्यते येषां ते तथा तेषाम्, पुण्यवतां= भाग्यवतां 'काणइ' त्ति केषाञ्चित्, प्रतिमादिषु सङ्के वा सुस्थाने शोभनस्थाने, याति सम्पत्, तथा चोक्तम् एकेषां दुःखलब्धा न पहरति हठात्पार्थिवोऽर्थानकस्मादन्येषां कृष्णवा दहति विषयिणां यान्ति वेश्यागृहेषु । बिम्बे स्नात्रे गृहे वा विबुधपतिपतेरहतः पुण्यभाजां, वस्त्रादौ चोपयोगं प्रतिदिनमपरे यान्ति सत्साधुसङ्के ॥४०४॥ इति श्लोकार्थः ॥१९॥ स्थानककृत्यं निगमयन्नुपदेशं च श्लोकेनाऽऽह सरूवं सत्तठाणाणमुत्तं सुत्ताणुसारओ । किंची गुरूवएसेणं, कायव्वं तु जहारिहं ॥१९७।। स्वरूपं= यथावत्स्वभावम्, सप्तस्थानकानां प्राकृतत्वात् स्थानकसप्तकस्य, उक्तं कथितम्, सूत्रानुसारतः सिद्धान्तानुसारेण न स्वैरण, न स्वमनीषिकयेति भावः, किं सामस्त्येन ? नेत्याह-किञ्चिद्=अल्पम्, कथमुक्तमित्याह-गुरूपदेशेन गुरुशिक्षयेत्यर्थः । ततश्च कर्तव्यम्, तु शब्दस्यैवकारार्थत्वात् कर्तव्यमेव, यथार्ह यथायोग्यं कृत्यमिति शेष इति श्लोकार्थः ॥१९७॥ किमेतदेव कृत्यं यद्भवद्भिरुक्तमुताऽन्यदपि ? इति प्रश्ने श्लोकमाहइत्येव अण्णहा कि पि, जं पि जंपंति केइ वि । जं जं आगमियं किच्चं, तं तं अण्णं पि सूइयं ॥१९८॥ अत्रैव मद्भणिते, अन्यथा अपरथा, किमपि यदपि, जल्पन्ति केचनाऽपि= अन्ये, तत्राऽपि यद्यदागमिकम् आगमोक्तम्, कृत्यं = कार्यम्, तत् तदन्यपि सूचितं= कथितमत्रैव द्रष्टव्यमिति शेष इति श्लोकार्थः ॥१९८॥ एतच्च सर्वं दर्शनप्रतिमास्वरूपमिति प्रतिपादनार्थ शेषप्रतिमासम्बन्धनार्थं च श्लोकमाह अणुट्ठाणमिणं पायं, दंसणप्प डिमागयं । सप्पसंगं समासेण सेसं सेसाण सासई ॥१९९॥ Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः अनुष्ठानं = कृत्यम्, इदम् = एतत् प्रायः = बाहुल्येन, दर्शनप्रतिमागतं तत्सम्बद्धम्, तस्या ऐवाऽऽदावाक्षिप्तत्वात्, सप्रसङ्ग = सविस्तरं भणितमित्यध्याहारः, समासेन = संक्षेपेण, दर्शनप्रतिमास्वरूपं चैतत् - संकाइसल्लविरहियसम्मद्दंसणजुओ उ जो जंतू । सगुणविप्पक्को तस्सेसा हो इ मासं तु ॥४०५॥ सम्यग्दर्शनप्रतिपत्तिश्च तस्य पूर्वमप्यासीत् केवलमिह शङ्कादिदोषराजाभियोगाद्यपवादवर्जितत्वेन तथाविध ३२७ सम्यग्दर्शनाचारविशेषपालना - ऽभ्युपगमेन च प्रतिमात्वं सम्भाव्यते, कथमन्यथा ? प्रथमैकमासम्, द्वितीया द्विमासम्, यावदेकादश्येकादशमासान्, सर्वाश्च सार्धानि पञ्चवर्षाणि भवन्तीत्यागमे प्रतिपादिता इति । 'सेसं' ति शेषं प्रक्रमादनुष्ठानम्, शेषाणां सामायिकप्रतिमादीनाम्, सा (शा) स्यते कथ्यत इति श्लोकार्थः ॥९९९॥ उक्ता सविस्तरा दर्शनप्रतिमा । साम्प्रतं शेषप्रतिमास्वरूपं संक्षेपेण श्लोकषट्केनाऽऽह बीया य पडिमा नेया, सुद्धाणुव्वये पालणं । सामाइयपडिमा उ सुद्धं सामाइयं चिय ॥ २००॥ द्वितीया च प्रतिमा श्रावकोचिताऽभिग्रहविशेषतया ज्ञेया = अवबोद्धव्या, शुद्धाणुव्रतधारणम्=अतिचारविशुद्धाणुव्रतप्रतिपालनम् उक्तं च दंसणपडिमाजुत्तो पालंतो - ऽणुव्व निरइयारे । अणुकंपाइगुणजुओ जीवो इह होइ वयपडिमा ||४०६ || चशब्दाद् दर्शनप्रतिमानुष्ठानयुक्तस्येवेयमिति योज्यम् । 'सामाइयपडिम' त्ति सामायिकप्रतिमा, तुशब्दः पुनरर्थे, 'शुद्धं' सामायिकमपि शुद्धं = मनोदुष्प्रणिधानाद्यतिचाराभावादनवद्यम्, इतरथा तु निरर्थकं तद्भवति यत उक्तम् सामाइयम्मि उ कए घरचितं जो य चिंतए सड्ढो । अट्टवसट्टोवगओ निरत्थयं तस्स सामइयं ॥४०७॥ इत्यादि सामायिकं = समभावरूपम्, उक्तं च "तपरिपा° ॥ जो समोसव्वभूएसु, तसेसु थावरेसु य । तस्स सामाइयं होइ, इई केवलिभासियं ॥ ४०८ ॥ ( आव० नि० गा० ७९८) १. ला. एवादावुत्क्षिप्त ॥ २. ला. संक्षेपत एव श्लो° ॥ ३. ता. विना सर्वासु प्रतिषु 'यधारणं ॥ ४. ला. Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः यत्प्रतिमा प्रतिपाल्यत इति क्रियासम्बन्धः अपि चेति पूर्वप्रतिमानुष्ठानयुक्तस्येति प्रतिपादयति, उक्तं च ३२८ " वरदंसण-वयजुत्तो सामइयं कुणइ जो उ संझासु । उक्कोसेण तिमासा, एसा सामाइयप्पडिमा ॥ ४०९ ॥ अट्ठमीमाइपव्वेसु, सम्मं पोसहपालणं । साणुाणत्तस, चत्थी पडिमा इमा ॥२०१॥ अष्टम्यादिपर्वसु = अष्टमी - चतुर्दशी - पूर्णमास्यमावास्यालक्षणेषु यत उक्तमागमे श्रावकवर्णके चाउद्दसमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं सम्मं अणुपालेमाणे । सम्यग्=अतिचारवर्जनतः, पौषधपालनं = धर्मपौषधानुष्ठानकरणम्, शेषानुष्ठानयुक्तस्य = पूर्वप्रतिमास्वरूपसमन्वितस्य चतुर्थी प्रतिमैषेति, उक्तं चपुव्वोइयपडिमजुओ पालइ जो पोसहं तु संपुण्णं । अट्ठमि - चउद्दसाइसु चउरो मासे चउत्थेसा ॥ ४१०॥ निक्कंपो काउसग्गं तु, पुव्वुत्तगुणजुओ । करेइ पव्वराईसु, पंचमी पडिमा इमा ॥ २०२ ॥ निष्कम्पः=निश्चलकायः, कायोत्सर्गं = प्रतीतम्, तु = पूरणे, पूर्वोक्तगुणसंयुक्तः करोति =विदधाति, पर्वरात्रिषु पञ्चमी प्रतिमैषा, उक्तं च सम्ममणुव्वय-गुणवय- सिक्खावयवं थिरो य नाणी य । अट्ठमि चउद्दसीसुं पडिमं ठाएगराईयं ॥४११ ॥ असिणाण-वियडभोई ★ अस्नातोऽरात्रिभोजी चेत्यर्थः ★ मउलिकडो★ मुत्कलकच्छ इत्यर्थः ★ दिवसबंभयारी य । नियदोसपच्चणीयं राईपरिमाणकडो पडिमावज्जेसु दि सु ॥४११॥ झायइ पडिमाइ ठिओ तिलोगपुज्जे जिणे जिअकसाए । नियदोसपच्चणीयं अण्णं वा पंच जा मासा ||४१२ || १. ला. अन्हाण-वि° ॥ २-३ ★★ एतादृकफुल्लिकाद्वयमध्यगः पाठः सर्वास्वपि प्रतिष्वत्रै व स्थाने लभ्यते ॥ Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयोभाग: ३२९ छट्ठीए बंभयारी सो, फासुयाहार सत्तंमी । वज्जे सावज्जमारंभं, अट्ठमीपडिवण्णओ ॥२०॥ षष्ठयां ब्रह्मचारी स्त्रीसङ्गवर्जितः, स इति= श्रमणोपासकः उक्तं चपुव्वोइयगुणजुत्तो विसेसओ विजियमोहणिज्जो य । वज्जइ अबंभमेगं तओ य राई पि थिरचित्तो ॥४१३॥ सिंगारकहाविरओ इत्थीए समं रहम्मि नो ठाइ । चयई अइप्पसंगं तहा विभूसं च उक्कोसं ॥४१४॥ एवं जा छम्मासा एसो हि गओ उ इयरहा इटुं । जावज्जीवं पि इमं वज्जइ एयम्मि लोगम्मि ॥४१५॥ 'फासुयाहार सत्तमि' त्ति विभक्तिलोपात् प्राशुकाहारः निर्जीवभोजी, विभक्तिव्यत्ययात् सप्तम्याम्, 'भवति' इति क्रिया सर्वत्र सम्बध्यते, उक्तं च सच्चित्तं अहारं वज्जइ असणाइयं निरवसेसं । सेसवयसमाउत्तो जा मासा सत्त विहिपुव्वं ॥४१६॥७ 'वज्जे सावज्जमारंभं' ति वर्जयति परिहरति, सावधं सपापम्, आरम्भं व्यापारम्, 'अट्ठमि' त्ति अष्टमी 'पडिवण्णओ' ति प्रतिपन्नः तत्रस्थः, उक्तं च वज्जइ सयमारंभं सावज्जं कारवेइ पेसेहिं । वित्तिनिमित्तं पुव्वयगुणजुत्तो अट्ठ जा मासा ॥४१७॥८ अवरेणाऽवि आरंभ, नवमी नो करावए । दसमीए पुणुद्दिटुं, फासुयं पि न भुंजइ ॥२०४॥ अपरेणाऽपि=आस्तां स्वयम्' आरम्भं व्यापारम्, नवम्यां न कारयतिन विधापयति, उक्तं च पेसेहिं वि आरंभं सावज्जं कारवेइ नो गरुयं । पुव्वोइयगुणजुत्तो नव मासा जाव विहिणा उ ॥४१८॥९ 'दस मीए' त्ति दशम्याम्, 'पुण' त्ति पुनः, उद्दिष्टं तदर्थनिष्पादितं भक्तादीति शेषः, 'फासुयं' पिति प्राशुकमपि निर्जीवमप्यास्तां सचित्तम्, 'न भुंजइ' त्ति न भुङ्क्ते= नाऽभ्यवहरति, उक्तं च १. ला. चयइ य अ ॥ २. ला. इहरहा ॥ मूल. २-४२ Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३० मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः उद्दिटुकडं भत्तं पि वज्जए किमय सेसमारंभं । सो होइ उ खुरमुंडो सिहलिं वा धारए कोइ ॥४१९।। दव्वं पुट्ठो जाणं जाणावइ वयइनो य नो वेइ । पुव्वोइयगुणजुत्तो, दस मासा कालमाणेणं ॥४२०।१० एगारसीए निस्संगो, धरे लिंगं पडिग्गहं । कयलोओ सुसाहु व्व, पुव्वुत्तगुणसायरो ॥२०५॥ एकादश्यां निःसङ्गः समस्तप्रतिबन्धरहितः, धारयति बिभर्ति लिङ्गं रजोहरणमुखवस्त्रिकारूपम्, चकारस्य गम्यमानत्वात् पतद्ग्रहं च पात्रम्, कृतलोच: विहितशिरोलुञ्चनः, सुसाधुवत्=प्रधानयतिवत्, पूर्वोक्तगुणसागर:=पूर्वोक्तो गुणसागरः = गुणसमुद्रो यस्य स तथा, उक्तं च खुरमुंडो लोएण व रयहरणं उग्गहं च घेत्तूणं । सेमणब्भूओ विहरइ धम्मं काएण फासेंतो ॥४२१॥ एवं उक्कोसेणं एक्कारस मास जाव विहरेइ । एगाऽहाइय रेणं धम्मं काएण फासंतो ॥४२२॥११ गृहं गतश्च 'पडिमापडिवण्णस्स समणोवासगस्स भिक्खं दलह' ति भणइ, प्रतिमासमाप्तौ च व्रतं गृह्णाति, प्रतिमास्थितो वा तिष्ठति गृहे वा व्रजतीति श्लोकषट्कार्थः ॥२००-२०५॥ प्रतिमास्वरूपनिगमनाय श्लोकमाह नाममेत्तं इमं वुत्तं, किंचिमेत्तं सरूवओ । उवासगपडिमाणं, विसेसो सुयसागरे ॥२०६।। नाममात्रं अभिधानप्रमाणं 'संक्षेपत एव तत्स्वरूपमभिधास्यामि' इत्यादावुत्क्षिप्तत्वात्, ‘इमं' ति एतत्, 'वुत्तं' त्ति व्युक्तं प्रतिपादितम् । किं नाममात्रमेव व्युक्तम् ? अतआह-किञ्चिनमात्रम् =अल्पम्, स्वरूपतः=स्वरूपेण, उपासकप्रतिमानां= श्रावकाभिग्रहविशेषाणाम्, विशेषः=विशिष्टतापरिपूर्णमिति भावः, श्रुतसागरे=श्रुतसमुद्रे दशाश्रुतस्कन्धादाविति श्लोकार्थः ॥२०६॥ यत्कृत्यं तत् प्रतिपाद्योपदेशमाह १. ला. सम्मब्भूओ ॥ २. ला. दलाह । Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः किच्चमिणं कुणंताणं, मूलसुद्धी भविस्सइ । विण उसव्वंपि, उच्छुफुल्लं व निप्फलं ॥२०७॥ कृत्यं=कर्तव्यम् 'इणं' ति इदम् कुर्वतां = विदधताम्, मूलशुद्धिः = विनयशुद्धिः, भविष्यति= सञ्जनिष्यते, यतः तया विना तु =तां विनैव, सर्वमपि = अशेषमपीक्षुपुष्पमिव निष्फलं = फलरहितं भवतीति गम्यते, सम्यग्दर्शनविनयस्य तत्राऽन्तभूतत्वादिति भावइति श्लोकार्थः ॥२०७॥ मूलस्यैव प्रतिपादनार्थं श्लोकमाह मूलं च विणओ धम्मे, सो य नाणाइ पंचहा । मूलसुद्धीइ जीवाणं, सव्वा कल्लाणसंपया ॥२०८॥ मूलं च = = आदिः, विनयः = कर्मविनयनसमर्थः, उक्तं चजम्हा विणइयकम्मं अट्ठविहं चाउरंतमोक्खाए । तम्हा उ वयंति विदू विणओ त्तिविलीणसंसारो ॥४२३॥ धर्मे = दानादावर्हदुक्ते । यद्येवं ततो विनयस्य किं स्वरूपम् ? इत्यत आह-सच ज्ञानादिपञ्चधा=पञ्चप्रकारः, ज्ञान- दर्शनचरित्र - तप - औपचारिकलक्षणः लोकोपकारादिपञ्चप्रकारविनयमोक्षलक्षणपर्यन्तस्वभावः, उक्तं च दशकालिकनिर्युक्तौ - लोगोवयारविणओ अत्थनिमित्तं च कामहेउं च । भयविणय मोक्खविणओ विणओ खलु पंचहा होइ || दारगाहा ॥ ४२४॥ अब्भुट्ठाणं अंजलि आसणदाणं च अतिहिपूया य । लोगोवयारविणओ देवयपूया उ विभवेणं ॥ ४२५ ॥ दारं || अब्भासवित्ति छंदाणुवत्तणा देसकालेदाणं च । • अब्भुट्ठाणं अंजलिआसणदाणं च अत्थकए || ४२६ ॥ दारं ॥ एमेव कामविणओ भए य णेयव्वु आणुपुव्वीए । मोक्खम्म वि पंचविहो परूवणा तस्सिमा होइ ||४२७|| दारं ॥ ३३१ दंसण-नाप-चरित्ते तवे य तह ओवयारिए चेव । एसो य मोक्खविणओ पंचविहो होइ नायव्वो || दारगाहा ॥ ४२८ ॥ दव्वाण सव्वभावा उवइट्ठा जे जहा जिणवरेहिं । ते तह सद्दहइ नरो दंसणविणओ हवइ तम्हा ||४२९ ॥ दारं ॥ १. सं.वा.सु. 'पचारा' ॥ २. सं.वा.सु. 'लकहणं च ॥ Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३२ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः नाणं सिक्खइ नाणं गुणेइ नाणेण कुणइ किच्चाई । णाणी णवं ण बंधइ नाणविणीओ हवइ तम्हा ॥४३०॥ दारं ॥ अट्ठविहं कम्मचयं जम्हा रित्तं करेइ जयमाणो । नवमण्णं च न बंधइ चरित्तविणओ हर्वइ तम्हा ॥४३११॥ दारं ॥ अवणेइ तवेण तमं उवणेइ य सग्ग-मोक्खमप्पाणं ।तवविणयनिच्छियमई तवोविणीओ हवइ तम्हा ॥४३२॥ दारं ॥ अह ओवयारिओ पुण दुविहो विणओ समासओ होइ । पडिरूवजोगजुंजण तह य अणासायणा विणओ ॥४३३॥ व्याख्यापडिरूवो खलु विणओ काइयजोगे य वाय माणसिओ । अट्ठ चउव्विह दुविहो परूवणा तस्सिमा होइ ॥४३४॥ दारं ॥ अब्भुट्ठाणं अंजलि आसणदाणं अभिग्गह किई य । सुस्सूसण अणुगच्छण संसाहणया य अट्ठविहो ॥४३५॥ दारं । हिय-मिय-अफरुसवाई अणुवीईभासि वाइओ विणओ दारं । अकुसलमणो निरोहो कुसलमणउईरणं चेव ॥४३६॥ पडिरूवो खलु विणओ पराणुवत्तिमइओ मुणेयव्वो । अप्पडिरूवो विणओ नेयव्वो केवलीणं तु ॥४३७॥ एसो भे परिकहिओ विणओ पडिरूवलक्खणो तिविहो । बावन्नविहिविहाणं बिति अणासायणाविणयं ॥४३८॥ दारं । तित्थयर-सिद्ध-कुल-गण-संघ-किरिय-धम्म-नाण-नाणीणं । आयरिय-थेरु-वज्झाय-गणीणं तेरस पयाणि ॥४३९॥ अणसायणा य भत्ती तह बहुमाणो य वण्णसंजलणा। . तित्थर्यराई तेरस चउग्गुणा हुंति बावण्णा ॥४४०॥ (गा० ३१०-३२६) यद्येवं विनयो मूलशुद्धिस्ततः किम् ? अत आह मूलशुद्ध्या दर्शनशुद्ध्या, जीवानां प्राणिनाम्, सर्वाः समस्ताः कल्याणसम्पदः= सौख्यश्रिय इति श्लोकार्थः ॥२०८॥ १. सं.वा.सु भवे ॥ २. सं.वा.सु. `णुवित्ति ॥ ३. ला. “यराणं ते ॥ Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३३ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः समस्तप्रकरणोपसंहारमुपदेशं च वृत्तेनाऽऽहगिहत्थधम्म परिपालिऊणं, अप्पाणमेवं परितोलिऊणं । अट्ठारसीलंगसहस्स भारं, धरेह धोरेयसुधारियं ति ॥२०९॥ गृहस्थाः= श्रावकास्तेषां धर्म= श्रुतचारित्ररूपम्, परिपाल्यनिर्वाह्य आत्मानं स्वम् एवं पूर्वोक्तप्रकारेण, परितोल्य परिकर्मकरणतः क्षममिति ज्ञात्वा, 'अट्ठारसीलंगसहस्स भारं' ति शीलाङ्गाष्टादशसहस्रभारं महाभाररूपम्, 'धरेह' त्ति धारयत, 'धोरेयसुधारियं' ति धौरेयसुधारितं गणधरादिधुर्यमहावृषभातिशयधृतम्, इति प्रकरणपरिसमाप्तौ ॥२०९॥ समर्थितप्रकरणश्च ग्रन्थकृद्रागादिनोत्सूत्रप्ररूपणाद्याज्ञाभङ्गे मिथ्यादुष्कृतं प्रयच्छतितेलोक्कणाहाण जिणाणमाणा, समत्थलोए वि अलंघणिज्जा । रागेण दोसेण व लंघिया जं, तं मज्झ मिच्छामिह दुक्कडं ति ॥२१॥ त्रैलोक्यनाथानां जगत्पतीनाम्, जिनानाम् = अर्हताम्, आज्ञा तदादेशरूपा, समस्तलोकेऽपि=निःशेषजनेऽपि, अलङ्घनीया नाऽतिक्रमणीया, रागेण प्रेमानुबन्धलक्षणेन, द्वेषेण वा=अप्रीतिरूपेण वा, लङ्किता अतिक्रान्ता, 'ज' तियत् 'तं' ति तत् 'मज्झ' इत्यात्मनिर्देशे, 'मिच्छामिह दुक्कडं' ति मिथ्या विपरीतम्, भवत्विति शेषः, इह प्रकरणकरणे, 'दुक्कडं' ति दुष्कृतम्, इति समाप्तौ ॥२१०॥ मिथ्यादुष्कृतदानानन्तरमात्मौद्धत्यपरिहारं वृत्तेनाऽऽह अन्नाणमूढेण विसंठुलं पि, पलावमित्तं व कुणंतयस्स । जो मज्झ भावो विमलो तओ य, भव्वाणमण्णाण वि होउ सिद्धी ॥२११॥ अज्ञानमूढेन विभक्तिव्यत्ययाद् अज्ञानमूढस्य, “विसंतुलं पि' =विसंस्थुलमपि असमञ्जसमपि, प्रलापमानं वा=बालप्रलपितमात्रं वा, कुर्वतः विदधतः 'जो' त्ति यो मम भावः= परोपकारकरणशुद्धपरिणामः, विमल:=निर्मलः, 'तओ य' त्ति तस्मात्, भव्यानां =मुक्तिगमनयोग्यानाम् अन्येषामपि= आत्मव्यतिरिक्तानाम्, भवतु सम्पद्यताम्, सिद्धिः=मुक्तिरिति वृत्तार्थः ॥२१॥ आत्मौद्धत्यं परिहत्य प्रकरणस्वरूपं निजनाम च वृत्तेनाऽऽहसिद्धंतसाराणमिणं महत्थं मुद्धाण भव्वाणमणुग्गहत्थं ।। महामईणं च महंतसत्थं, पज्जुन्नसूरीवयणं पसत्थं ॥२१२॥ सिद्धान्तसाराणां राद्धान्तप्रधाननिष्यन्दानाम्, इमम् एतत्, 'महत्थं ति महार्थं प्रधान १. ला. प्रधानानां पदानाम् इदम् ॥ Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः वाच्यरूपम्, उद्धृतमिति शेषः । किमर्थम् ? आह-'मुद्धाणं'ति मुग्धानां मुग्धबुद्धीनाम्, भव्यानां= मुक्तिगमनयोग्यानाम्, 'अणुग्गहत्थं'ति अनुग्रहार्थम् =उपकारनिमित्तम् । किं मुग्धानामेव केवलानामुपकारकमिदमाहोस्विदन्येषामपि ? इति, अत आह-महामतीनां च महच्छास्त्रम् । महार्थत्वात् पारवश्यतामाह-प्रद्युम्नसूरिवचनं वृद्धाचार्यवाक्यम्, प्रशस्तं= मङ्गलालयमिदमिति शेषः । अन्यत्र प्रद्युम्नसूरिवचनं प्रद्युम्नसूरिरिति ग्रन्थकारस्य नाम, तद्वचनं तद्वाक्यमिति वृत्तार्थः ॥२१२॥ इति श्रीदेवचन्द्राचार्यविरचितं मूलशुद्धिस्थानकविवरणं समाप्तम् ॥ [विवरणकारप्रशस्तिः] आसीच्चन्द्रकुलाम्बरैकशशिनि श्रीपूर्णतल्लीयके, गच्छे दुर्धरशीलधारणसहै: सम्पूरिते संयतैः । निःसम्बन्धविहारहारिचरितश्चञ्चच्चरित्रः शुचिः । श्रीसूरिर्मलवर्जितोर्जितमतिश्चार्वाऽऽम्रदेवाभिधः ॥१॥ तच्छिष्यः श्रीदत्तो गणिरभवत् सर्वसत्त्वसमचित्तः । नरनायकादिवित्तः सद्वृत्तो वित्तनिर्मुक्तः ॥२॥ सूरिस्ततोऽभूद् गुणरत्नसिन्धुः श्रीमान् यशोभद्र इतीद्धसंज्ञः । .. विद्वान् क्षितीशैर्नतपादपद्मः सन्नैष्ठिको निर्मलशीलधारी ॥३॥ नीरोगोऽपि विधानतो निजतनूं संलिख्य सर्वादरात्, सर्वाहारविवर्जनादनशनं कृत्वोज्जयन्ते गिरौ । कालेऽप्यत्र कलौ त्रयोदशदिनान्याश्चर्यहेतुर्जने, शस्यं पूर्वमुनीश्वरीयचरितं सन्दर्शयामास यः ॥४॥ तच्छिष्यो भूरिबुद्धिर्मुनिवरनिकरैः सेवितः सर्वकालं, सच्छास्त्रार्थप्रबन्धप्रवरवितरणालब्धविद्वत्सुकीतिः । येनेदं स्थानकानां विरचितमनघं सूत्रमत्यन्तरम्यं, श्रीमत्प्रद्युम्नसूरिर्जितमदनभटोऽभूत् सतामग्रगामी ॥५॥ राद्धान्त-तर्क-साहित्य-शब्दशास्त्रविशारदः । निरालम्बविहारी च, यः शमाम्बुमहोदधिः ॥६॥ Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः सिद्धान्तदुर्गममहोदधिपारगामी, कन्दर्पदर्पदलनोऽनघकीर्तियुक्तः । दान्ताऽति दुर्दर्महषीकमहातुरङ्गः, श्रीमांस्ततः समभवद् गुणैसेनसूरिः ॥७॥ जगत्यपि कृताश्चर्यं सुराणामपि दुर्लभम् । निशाकरकराकारं, चारित्रं यस्य राजते ॥८॥ तच्चरणरेणुकल्पः सूरिः श्रीदेवचन्द्रसंज्ञोऽभूत् । तच्छिष्यो गुरुभक्तस्तद्विधधिषणो विनिर्मुक्तः ॥ ९॥ किञ्च - श्रीमदभयदेवाभिधसूरेर्यो लघुसहोदरः स इह । स्थानकवृत्ति चक्रे, सूरिः श्रीदेवचन्द्राख्यः ॥ १०॥ मतिविकलेनापि मया गुरुभक्तिप्रेरितेन रचितेयम् । तस्मादियं विशोध्या, विद्वद्भिर्मयि कृपां कृत्वा ॥११॥ आवश्यक-सत्पुस्तकलेखन - जिनवन्दना - ऽर्चनोद्युक्तः । शय्यादानादिरतः, समभूदिह वीहकः श्राद्धः ॥१२॥ तद्गुणगणानुयायी, श्रीवत्सस्तत्सुतः समुत्पन्नः । तद्वसतावधिवसता, रचितेयं स्तम्भतीर्थपुरे ॥ १३॥ रस- युग-रुद्रै वतै विक्रमसंवत्सरात् समाप्तेयम् । फाल्गुनसितपञ्चम्यां, गुरुवारे प्रथमनक्षत्रे ॥ १४॥ अणहिलपाटकनगरे, वृत्तिरियं शोधिता सुविद्वद्भिः । श्री शीलभद्रप्रमुखैराचार्यैः शास्त्रतत्त्वज्ञैः ॥१५॥ साहाय्यमत्र विहितं निजशिष्याशोकचन्द्रगणिनाम्ना । प्रथमप्रतिमालिखता विश्रामविवर्जितेन भृशम् ॥१६॥ प्रत्यक्षरं निरूप्यास्य ग्रन्थमानं विनिश्चितम् । अनुष्टुभां सहस्राणि, सम्पूर्णानि त्रयोदश ॥ १७॥ ३३५ १. 'हृषी' इत्येतदनन्तरं सं. वा. सु. प्रतिषु 'ग्रंथाग्र १३०००' इति लिखित्वा ग्रन्थसमाप्तिः सूचिता, अर्थात् सूचितासु तिसृषु प्रतिषु विवरणकारप्रशस्तिरपूर्णा वर्तते ॥ २. ला. समभव- रिः ॥ ३. पु. गुणसेमसूरिः, एतत्पाठगत 'सेम' इत्यस्य स्थाने पु. प्रतिशोधकेन 'सोम' इति कृतमस्ति, किन्तु विवरणकार श्रीमद्देवचन्द्रसूरिरचित' संतिनाहचरियं' ग्रन्थस्य ग्रन्थकारप्रशस्तिगतपाठाधारेणात्र 'गुणसेनसूरिः' इति पाठः स्वीकृतोऽस्ति ॥ Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः अङ्कतोऽपि सहस्र १३०००० ॥ छ ॥ शुभं भवतु ॥ मंगलं महाश्रीः ॥ प्रावृ[इ मा]र्दङ्गिकोऽयं पिक्कुलरसितैर्गीतगायी वसन्तो हेमन्तो दन्तवीणापटुरथ शिशिरो वातविध्मावंशः । श्रीमद्वीरस्य कीर्तिर्नट - - ( नप ) टुतरा चन्द्रसूर्यौ च सभ्यौ, यावत् सङ्गीतमास्ते भुवि [सु] विजयतां पुस्तकस्तावदेषः ॥१॥ ३३६ राजहंसाविमौ यावत्, क्रीडतः पृथुपुष्करे T सङ्घस्तावदयं नन्द्यान्नतः सर्वसुरा - - [ ? सुरैः ] ॥२॥ १. अत आरभ्य समाप्तिपर्यन्तः पाठो ला. संज्ञकप्रतावेव ॥ Page #348 -------------------------------------------------------------------------- _