SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७२ पासण-1 मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः एवं च चेडयबलं पि अणवरयपयाणेहिं गच्छंतं पत्तं विसयसंधि जाव मिलियाई दोण्णि वि अग्गाणीयाई, पवाइयाइं रणतूराई अवि य वाइय जमलसंख अइभीसण, वाइय भाणयसमढक्कासण । -- वाइय काहल अइतारस्सर, वाइय भेरिचक गहिरस्सर ॥१३१॥ वाइय पडह भुयंग समद्दल, गुरुयनायउक्कंपियपरबल । वाइय झल्लरि केरड सुनिद्दय, वाइय कंसालय वरसद्दय ॥१३२॥ वाइय डमरुय डक्क भयंकर, वाइय पडहय दारियकायर । इय वाइउ खरतूरमहागणु, गहिरसद्दि जह फुडइ नहंगणु ॥१३३॥ इय एवं सोऊणं समरमहागहिरतूरनिग्धोसं। जयसिरिलुद्धाई दढं भिडंति अह दुन्नि वि बलाइं ॥१३४॥ तुरया तुरंगमाणं रहाण रहिणो गयाण वि गइंदा । समयं चिय संलग्गा सुहडा दप्पुद्धरभडाणं ॥१३५।। एवं च जायं महासंगरं, अवि य पडंतछत्तचिंधयं, लुढंत छिनगत्तयं । पयट्टलोहियावहं, भमंत भूरिसावयं ॥१३६।। पडंतमत्तकुंजरं, जायंतबाणपंजरं । भज्जंतसंदणोहयं, छिज्जंतचिंधसोहयं ॥१३७॥ खिप्पंतसेल्ल-सव्वलं, अणेगसत्थसंकुलं । घोसंतनाम-गोत्तयं, पढंत भट्टजुत्तयं ॥१३८॥ छिज्जंतणेयसीसयं, हेसंत भिन्नआसयं ।। तुटुंतखग्गभीसणं, सुव्वंतणेयनीसणं ॥१३९॥ इय कायरजणकयबीहणयं, सुहडोहविमुक्कसुसीहणयं । रइछाइयदिसिकयमोहणयं, इय जायं तं रणयंगणयं ॥१४०॥ इय गंधव्व-सिद्ध-विज्जाहरछाइयगयण मग्गए, ___ भीमभमंतदुट्ठकत्तियकरडाइणिसयसमग्गए । १. सं.वा.सु. करडि सुसह्य ॥ २. सं.वा.सु वाइय ॥ ३. ला. 'गरुयतू ।।
SR No.022287
Book TitleMulshuddhi Prakaranam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmdhurandharsuri, Amrutlal Bhojak
PublisherShrutnidhi
Publication Year2002
Total Pages348
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy