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________________ २९४ पूयइ वरकुसुमेहिं कुणइ बलिं बहुफलेहिं पक्केहिं । रोमंचचियदेहा संथुणइ मणोहरगिराए ॥१२७॥ अवि य "जय संसारमहोयहिनिबुड्डुजंतूण तारणतरंड ? । जय भवभीयजणाणं सरणयं ! जिणनाह ! जगपणय ! ॥ १२८॥ जय दुहियाणं दुहहर ! रागद्दोसारिविरियनिद्दलण ! । जय मोहमल्लमूरण ! जय चिताव ( च ? )त्त ! जिणनाह ! ॥१२९॥ जय निद्दापरिवज्जिय ! छुहा पिवासा - जरा - भयविमुक्क ! | मय-माय-खेयवज्जिय ! गयजम्मण-मरण ! जयनाह ! ॥ १३०॥ जयहि अविम्हय अपमाय देव ! सासयसुहम्मि संपत्त ! | सिवपुरपवेसणेणं कुणसुदयं मज्झ दुहियाए" ॥१३१॥ इय जिणथुइजत्ताए सुनिकाइयकम्ममणुहवंतीए । जा जाइ कोइ कालो ता चितइ अन्नया एसा ॥१३२॥ 'जइ कहवि भरहवासे गमणं मह होइ पुण्णजोगेण । तो सव्वसंगचायं काऊण वयं गहिस्सामि ॥१३३॥ इय चिंतिऊण रयणायरस्स तीरम्मि उब्भियं तीए । चिधं महामहंतं जं पयडइ भिन्नवहणित्तं ॥१३४॥ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः एत्थंतरम्मि तीसे चुल्लपिया वीरदासनामो जो । बब्बरकूलं जंतौं संपत्तो तप्पएसम्मि ॥१३५॥ दट्ठूण तयं चिधं लंबाविय पवहणं समुत्तरि ं । यमग्गेणं पत्तो थुणइ जिणं नम्मया जत्थ ॥१३६॥ सोऊण तीए सद्दं सासंको 'नम्मया किमेस ? "त्ति । जा पत्तो दिट्ठिपहे ता सहसा उट्ठिया बाला ॥१३७॥ दट्टू चुल्लपियरं कंठम्मि विलग्गिउं घणं रुन्ना । सो वि तयं ओलक्खिय, मुंचइ नयणेहिं सलिलोहं ॥१३८॥ १. ला. गयजम्मण ! मरणपरिमुक्त ॥ १३० ॥ २. सं.वा.सु. 'तो पत्तो तम्मि प्पए ॥
SR No.022287
Book TitleMulshuddhi Prakaranam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmdhurandharsuri, Amrutlal Bhojak
PublisherShrutnidhi
Publication Year2002
Total Pages348
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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