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________________ २९६ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः सा तं दटुं जंपइ 'किमेइणा ? एउ वणियपुत्तो' त्ति । सा वि पुणो गंतूणं अक्खइ हरिणीए जं भणियं ॥१५२॥ तं सुणिय वीरदासो चिंतइ हियएण "किं मह इमाओ । कार्हिति जओ सीलं भंजेमि न पलयकाले वि ॥१५३|| गच्छामि ताव तहियं पच्छा काहामि जं जहाजुत्तं" । इय चिंतिऊण गच्छइ तीए भवणं अइसुरम्मं ॥१५४॥ तो महुरमंजलाहि वियड्डभणिईहिं साणुरागाहिं । सा जंपइ सवियारं तहवि न सो चलइ मेरु व्व ॥१५५।। एत्थंतरम्मि कण्णे कहियं हरिणीए तीए चेडीए । जह "सामिणी ! एयघरे अच्छइ महिला अणण्णसमा ॥१५६।। सा जइ कहिचिं तुब्भं आएसं कुणइ तो हु रयणाणं । पूरइ निस्संदेहं, तुह गेहं कित्थ बहुएणं ? ॥१५७॥ जम्हा हु रूव-जोव्वणलावण्णगुणेहिं तीए सारिच्छा । दीसइ न मच्चलोए" तं सोउं हरिणिया लुद्धा ॥१५८।। चिंतइ अवहरिऊणं, आणेत्तु धरेमि कहवि पच्छण्णं । तत्थुप्पण्णमई सा तो भणइ तयं वणियपुत्तं ॥१५९॥ 'अप्पेहि नाममुदं खणमेकं जेण ईए सारिच्छं।। अण्णं नियकरजोग्गं मुदं कारेमि' तो एसो ॥१६०॥ अप्पइ य निव्वियप्पो सा वि तयं देइ दासचेडीए । हत्थम्मि तत्तो एसा गंतूणं नम्मयं भणइ ॥१६१॥ 'सो वीरदाससेट्टी, हक्कारइ पच्चयत्थमह तेण । एयं मुद्दारयणं पट्टवियं तुज्झ ता एहि' ॥१६२॥ दट्ठण वीरदासस्स संतियं नाममुद्दियारयणं । तो सा वि निव्वियप्पा, तीए समं जाइ तत्थ गिहे ॥१६३।। अवदारेण पवेसिय छूढा गुत्तम्मि भूमिहरयम्मि । मुदं पि वीरदासस्स अप्पियं कुणइ पडिवत्तिं ॥१६४॥
SR No.022287
Book TitleMulshuddhi Prakaranam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmdhurandharsuri, Amrutlal Bhojak
PublisherShrutnidhi
Publication Year2002
Total Pages348
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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