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________________ १७६ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः मंतीहिं तओ विहिया खायरडंगालपूरिया खड्डा उवरिं कया अलक्खा मग्गम्मि तस्स हत्थिस्स ॥१८०॥ संपत्तो रयणीए सो हत्थी जाव तम्मि ठाणम्मि । ता मुणिय विभंगेणं चोइज्जतो वि नो कमइ ॥ १८९॥ तो तेहिं दुत्थिओ सो 'रे पावय ! तुह कएण अम्हेहिं । आवइमहासमुद्दे पक्खित्तो अज्जओ एसो ॥१८२॥ जाव तुमं पिये थक्को' इय भणिओ निययपुट्ठिदेसाओ । उत्तारइ ते कुमरे दुसहं पहुवयणमसहंतो ॥ १८३॥ देइ सहस त्ति झंपं खड्डाय मओ य पढमपुढवीए । उवणो कुमरा वि हु भणेण एवं विचितंति ॥ १८४॥ 44 'अकयण्णुयाण अम्हाण दुट्ठवयणेहिं मारिओ अप्पा | संरक्खिऊण अम्हे करिणा किं अम्ह जीएण ? ॥ १८५ ॥ संपाविओ य वसणं सरणागयवच्छलो महाराओ । अट्ठारसहिं समेओ पुहईनाहेहिं सबलेहिं ॥१८६॥ कुलमाणगव्वियाणं नराण कोडीउ सह तुरंगेहिं । माराविया उ दूरं अम्हेहिं असुद्धभावेहिं ॥१८७|| समयं रहेहिं लक्खा तियसिंदगयंदविब्भमगयाण । पट्ठविया जमगेहं नियदेहसमा य रायाणो ॥ १८८॥ धणो अभयकुमारो जो रज्जं उज्झिऊण पव्वइओ । अम्हे वि पव्वयामो अलाहि पावेण रज्जेण ॥ १८९॥ इ एवं ते कुमरा दोणि वि वडुंतचरणपरिणामा । भावसमण त्ति काउं उद्धरिडं पवयणसुरी ॥ १९०॥ विहरतयस्स परओ किंचि समब्भहियजोयणसयस्स । नीया तेलोक्कदिवायरस्स वीरस्स पासम्मि ॥१९१॥ नरयाणलस्स हेउं रज्जं मोत्तूण मोक्खतरुबीयं । गिण्हंति असामण्णं सामण्णं जिणसमीवम्मि ॥ १९२॥ १. ला. वि ॥ २. ला. एएण ॥ ३. ला. ओयरिठं ॥
SR No.022287
Book TitleMulshuddhi Prakaranam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmdhurandharsuri, Amrutlal Bhojak
PublisherShrutnidhi
Publication Year2002
Total Pages348
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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