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मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः
तो निवई हक्कारिय जिणदेवं भणइ "हा कहं तुज्झ । हाणी महामहंता विहिया एयाइ पावाए ॥ २०४॥ ता रयणायरपारे अम्हऽवरोहेण खिवसु एयं ति । जेणित्थं अच्छंती कुणइ अणत्थंतरे बहुए" ॥२०५॥ आसो त भणित्ता नियलाविय नेइ निययठाणम्मि | छोडित्ताण्हावेउं परिहाविय भोइउं विहिणा ॥ २०६ ॥ वहणे चडाविऊणं पत्तो खेमेण पुण वि भरुयच्छे । पविसित्तु निययगेहे जाणावइ नम्मयपुरम्मि ॥२०७॥ जा ते संवहिऊणं चलंति ता एइ सो तयं घेत्तुं । जणयाई दट्ठूणं कंठविलग्गा रुवइ तो सा ॥२०८॥ ता उसभसेण - सहदेव - वीरदासाइ बंधवा सव्वे । सरिऊणं बालत्तं तीसे रोयंति अइकलुणं ॥ २०९॥ पुट्ठा य तेहि सव्वं जा सा साहेइ निययवृत्तंतं । सुणमाणाणं दुक्खं, सव्वाण वि तक्खणे जायं ॥२१०॥ अह तीए संगमम्मी विहिया पूया जिणिदचंदाणं । सम्माणिओ य संघों दिण्णाणि महंतदाणाणि ॥ २११ ॥ विहियं वद्धावणयं विम्हयजणणं समत्थलोयाणं । जिणदेवसावओ वि हु जाइ पुणो निययनयरम्मि ॥ २१२ ॥ जा नम्मय सुंदरिसंगमम्मि दिवसा सुहेण वोलिति । कइ वि तर्हि ता पत्तो विहरंतो साहुपरियरिओ ॥ २१३॥ तियसाइवंदणिज्जो दसपुव्वपगासपयडियपयत्थो । भव्वारविंदभाणू सूरी सिरिअज्जहत्थि त्ति ॥ २१४॥ तो नाऊणं सूरिं समागयं तस्स वंदणट्ठाए । भत्तिभरनिब्भराई संव्वाइं जंति उज्जाणे ॥२१५॥ वंदित्तु तओ सूरिं, नच्चासन्नम्मि सन्निविट्ठाई । सूरी वि ताण धम्मं कहेइ जिणदेसियं रम्मं ॥ २१६॥
१. सं. वा. सु. 'ज्जो चठविहवरनाणपयडिय ॥ २. ला. सव्वाणि वि जंति ॥