________________ होता था। अतः विपाकश्रुत उन से भिन्न है और वे विपाकश्रुत से भिन्न हैं। ___श्री स्थानांगसूत्र में विपाकसूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध के दश अध्ययनों का वर्णन मिलता है, वहां का पाठ इस प्रकार है - दस दसाओ प० तं-कम्मविवागदसाओ..... संखेवियदसाओ। कम्मविवागदसाओ-इस पद की व्याख्या वृत्तिकार अभयदेवसूरि ने इस प्रकार की है- . ___कर्मण:-अशुभस्य विपाकः-फलं कर्मविपाकः, तत्प्रतिपादका दशाध्ययनात्मकत्वाद् दशाः कर्मविपाकदशाः, विपाकश्रुताख्यस्यैकादशाङ्गस्य प्रथमश्रुतस्कन्धः, द्वितीय श्रुतस्कन्धोऽप्यस्य दशाध्ययनात्मक एव, नचासाविहाभिमतः उत्तरत्र विवरियमाणत्वादिति-अर्थात् अशुभ कर्मफल प्रतिपादन करने वाले दश अध्ययनों का नाम कर्मविपाकदशा है। यह विपाकश्रुत का प्रथमश्रुतस्कन्ध है। विपाकश्रुत के द्वितीय श्रुतस्कन्ध के भी दश अध्ययन हैं, उन का आगे विवरण होने से यहां उल्लेख नहीं किया जाता। श्री स्थानांग सूत्र में दश अध्ययनों के जो नाम लिखे हैं, वे निम्नोक्त हैं कम्मविवागदसाणं दस अज्झयणा प० तं०-१-मियापुत्ते, २-गोत्तासे, ३-अंडे, ४-सगडे इ यावरे, ५-माहणे, ६-णंदिसेणे य, ७-सोरिए य, ८-उदुंबरे। ९सहसुद्धाहे, आमलए, १०-कुमारे लेच्छई ति य। विपाकश्रुत में इन नामों के स्थान में निम्नोक्त नाम दिए गए हैं- १-मियापुत्ते य, २-उज्झियए, ३-अभग्ग, ४-सगडे, ५-बहस्सई,६-नन्दी। ७-उम्बर, ८-सोरियदत्ते य, ९-देवदत्ता य १०-अञ्जू य॥१॥ स्थानाङ्गसूत्र में जिन नामों का निर्देश किया गया है उन नामों में से इन में आंशिक भिन्नता है। इसका कारण यह है कि श्रीस्थानाङ्गसूत्र में कथानायकों का नाम ही कहीं पूर्वजन्म की अपेक्षा से रक्खा गया है और कहीं व्यवसाय की दृष्टि से। जैसे-गोत्रास और उज्झितक। उज्झितक पूर्वजन्म में गोत्रास के नाम से विख्यात था। इसी प्रकार अन्य नामों की भिन्नता के सम्बन्ध में भी जान लेना चाहिए। यह भेद बहुत साधारण है अतएव उपेक्षणीय है। भगवान् महावीर स्वामी के समय में 9 वाचनाएं चलती थीं, अन्तिम वाचना श्री सुधर्मा स्वामी जी की कहलाती है। आज का उपलब्ध अङ्गसाहित्य श्री सुधर्मास्वामी जी की ही वाचना है। पूर्व की 8 वाचनाओं का विच्छेद हो गया। अन्तिम वाचना श्री सुधर्मास्वामी तथा श्री जम्बूस्वामी के प्रश्नोत्तरों के रूप में प्राप्त होती है और महावीर स्वामी के निर्वाणानन्तर श्री सुधर्मास्वामी ने इस में श्री उत्तराध्ययन के 36 अध्ययनों का भी संकलन कर लिया। अतः सुधर्मा स्वामी की वाचना के अङ्गसूत्र में उत्तराध्ययनसूत्र के अध्ययनों का वर्णित होना कोई दोषावह नहीं है। प्राक्कथन] श्री विपाक सूत्रम् [79