Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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রাথন च-तत्र मौवीर-हाजिकम्, योदकमाउननलम् अनयो समाहारस्तव, समुपलभ्य, तु=पुनस्तत् नीरस गितास्वाद पिण्डम् यासारण कादिरूप पानीयमाहार च न हीलयेत् कुत्सितमिदमन्नम् , अपेयमिद पानीयम् , एव रूपेण न निन्देत् । एतादृशः प्रान्तकुलभिक्षाचारी यः साधुः स भिसुरम्यते ॥१३॥
तथा चमूलम् सदा विविहा भवंति लोएं, दिव्या माणुसया तहा तिरिच्छा।
भीमाभयभेरवा उराली, जो सोचाणे विहेजेंड से भिखू ॥१४॥ छाया-रादा विविधा भवन्ति लोके, दिव्या मानुष्यकास्तथा तैरथाः ।
भीमा भयभैरवा उदारा, य श्रुत्वा न रिभेति स भिक्षुः ||१|| ओदन या रोटी आदि उपलक्षण से पर्युपित-वासी तक्र मिश्रित चणकादि अन्न, सौवीर-काजिक या जौ के धोने के जल ये ही सबकुछ मिलेगा सोये (नीरस पीड-नीरस पिण्डम्) नीरस आहार है। (प्तमुपलभ्य) इसको पाकर (नो हीलए-नो हीलयेत्) ऐसे विचार से उस साधु को निंदा नहीं करना चाहीये कि 'यह कुसित अन्न है, यह पानी भी पीने योग्य नहीं है। इस प्रकार प्रान्तकुल भिक्षाचारी जो साधु होता है (स भिक्खू-स भिक्षु ) वही भिक्षु है।
भावार्थ-जो साधु अपनी भिक्षावृत्ति का लक्ष्य केवल श्रीमतो के ही घरा को नहीं बनाता है किन्तु दरिद्रों के घरों को भी बनाता है और वहा पर उसको जो कुछ भी नीरस आहार मिलता है उसको समभाव से करता हैं वही भिक्षु है ॥१३॥ પષિત (વાસી) ભાત અથવા રોટી આદિ ઉપલક્ષણથી પર્યાવિત છાશ મિશ્રિત ચણકાદિ અન્ન, સૌવીર-કાજી અથવા જવના ધાવણનું પાણી આ બધુ મળે છે नीरस पीड-निरस पिण्डम् २मा नीरस मार छ सावो नीरस पाडार भगत नो हीलए-नो होलयेत वा विद्यारथी ये साधु नि ४ी " કુત્સિત અન્ન છે, આ પાણી પીવા ગ્ય નથા” આ પ્રકારથી પ્રાન્તકુળ ભિક્ષાચારી જે સાધુ હોય છે તેજ ભિક્ષુ છે
ભાવાર્થ-જે સાધુ પિતાની ભિક્ષાવૃત્તિનું લક્ષ કેવળ શ્રીમ તેના જ ઘરાને બનાવતા નથી પરંતુ દરિદ્રીઓના ઘરમાં પણ ભિક્ષાવૃત્તિ માટે જાય છે અને ત્યાં તેને જે કાઈ નિરસ આહાર મળે છે એને સમભાવથી ગ્રહણ કરે છે તેજ ભિક્ષુ છે ૧૩