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बोल तीसरा ४ ३८७ से ३९१ तक सामायकमें बैठा हुआ श्रावक सामायकमें नहीं बैठे हुए श्रावकसे श्रेष्ठ है इसलिये वह सामायकमें नहीं बैठे हुएको नमस्कार नहीं करता है।
बोल चौथा पृष्ठ ३९१ से ३९६. तक अम्बइजी के शिष्योंने संथारा पर बैठने के समय बारह प्रत ग्रहण कराने का उपकार मानकर अम्वडजी को नमस्कार किया था भावनिक धर्माचार्या मान कर नहीं।
बोल पांचवां पृष्ठ ३९७ से ३९९ तक दिक्कुमारियों ने गर्भस्थ तीर्थर और उनको माताको वन्दन नमस्कार किये थे।
बोल छठा पृष्ठ ३९९ से ४.२१ जन्मते समय तीर्थङ्करको वंदना नमस्कार धर्म जान कर इन्द्र करते हैं लेपित रीतिके अनुसार नहीं।
बोल साल १.
२४०४ तक भगवती शतक २ उद्देशा ५ में तथारूपके श्रमण और माहन (श्रावक ) की सेवा भक्ति करनेते धर्म श्रवणसे लेकर मोक्षपर्यन्त फळ मिलना कहा है।
बोल आठवां पृष्ठ ४०५ से ४०६ तक जैसे परतीयीं धर्मोपदेशक श्रमण और माहन दो हैं उसी तरह स्वतीयों धर्मोपोशक भी साधु और श्रावक दो हैं ।
बोल नवां पृष्ठ ४०६ से ४०७ सक मुंबुद्धि वायके प्रदेशसे जितशत्रु रामाने मारह व्रत महण किये थे।
___ बोल दशवां पृष्ठ ४०७ से १०८ वक भगवती शसक १ उद्देशा ७ की दीकामें श्रमण शब्दका साधु और माहन शब्दका श्रावक अर्थ किया है।
बोल ग्यारहवां पृष्ठ ४०८ से ४९१ तक __ भगवती शतक १५ के मूलवाठमें साधु और श्रावक दोनों ही से सीखना और दोन नमस्कार करना कहां है।
__ बोल १२ पृष्ठ ४१० से ४११ तक उत्तगध्ययन सूत्र की गाथाओं में कोहुए माइन के लक्षण श्रावकों में भी पाये जाते हैं। . .....
नयाधिकारः।
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