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प्रस्तावमा
सहायतार्थ राजा प्रहलाय को निमन्त्रण भेजा। पवनंजय ने युद्ध में जाने का प्रस्ताव रखा और सेना लेकर वह रवाना हमा । मार्ग में उसे एक नदी के किनारे पकवा बकवीं के बिरह को देखकर अंजना की याद प्रायी। यह सेना वहीं घोड़कर एक रात्रि के लिए अंजना से मिलने चला गया। दोनों में मिलन हुमा । मंजमा गर्भवती हा गयो । अब पवनंजय की माता को उसके गर्भ का मालूम पड़ा तो उस पर पुरुष के साथ गमन का दोष लगा कर उसे घर से निकाल दिया। भजना रोती बिलखती अपने पिता के घर पहुंची लेकिन वहां भी उसे कोई पाश्रय नहीं मिला।
कवि ने अंजना का चारी और से तिरस्कृत होने का रामाम्चकारी वर्णन किया है। इसे अपने पिता के यहां से भी "डेला ईट पत्थर की मार, नगर मोहि तें दई निकार" से तिरस्कृत होना पड़ा । प्रन्स में अपनी दासी के साथ सघन एवं भयानक मन में एक गुफा में जाकर शरण ली। वहीं उसे एक ध्यानस्थ मुनि के दर्शन हुए। मुनि ने उसे पूर्व भव का स्मरण कराया तथा पुत्र प्राप्ति का प्राशीवाद दिया। उसी समय रनचल राजा का हानी की खोज में वहां नाना हमा। अंजना ने पुत्र को जन्म दिया लेकिन दुर्भाग्य से शिश' हनुमान विमान से गिर गया लेकिन हनुमान का कुछ भी नहीं मिगड़ा । यह घटना उसके भविष्य में पतिशय शक्तिशाली होने का संकेत मात्र थी।
उधर पवजय जब युद्ध से लौटा तब मंजमा को न पाकर बहुत दुःखी हुमा । इसके निष्कासन के समाचारों से वह पागल जैसे हो गया। वह तत्काल अंजना को
ढने निकला। इंजना के विरह में उसकी दशा दयनीय हो जाती है लेकिन अन्त में दोनों का मिलन हो जाता है और ये सुखपूर्वक रहने लगते हैं। एक बार वरुण ने रावण पर आक्रमण कर दिया । पत्रनंजय की सहायता मांगी गयी। इस बार स्क्य हनुमान रावण की सहायतार्थ जाते है। रावण हमुमान को देखकर बहुत प्रसन्न होता है। वरुण एवं हनुमाम में घनघोर युद्ध होता है। रावण वरुण को पकड़ लेता है। पृम्भकरण विजय के पश्चात् लूट मार मनाता है तो रावण उसकी चिन्ता करता है। वरुण को छोड़ दिया जाता है। इस युद्ध में हनुमान की वीरता का सबको पता लक्ष जाता है ! हनुमान को सुग्रीन अपनी कम्या देशा है तथा वे सब सुख से राज्य करते हैं।
20 वें तीर्थंकर मुनिसुव्रप्त नाथ का माता पद्मा के उदर से जन्म होता है। उनका जन्म कल्याणफ वेवों द्वारा मनाया जाता है। युवा होने पर उनका यशोमति से विवाह होता है । बहुत क्षों तक राज्य सुख भोगने के पश्चात बिजली गिरने की घटना को देखकर उन्हें वैराग्य हो जाता है । तपस्था के पश्चात् पहले कंबल्य होता है और एक लम्बे समय तक धर्मोपदेश देने के पश्चात निर्माण प्राप्त करते हैं । वृषभ