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मनि समाचंब एवं उनका परपुरास
बन्द कर दिये । लेकिन रावण की वीरता एवं मजेयता को सुनकर नलकूबड़ की पत्नी उपारम्भा उस पर प्रासक्त हो गयी। उसने अपनी दूतो को भेजा और सुदर्शन चक्र होने की बात कहीं। पहिले तो रावण परस्त्री से बात करने के लिए ही मना कर देता है लेकिन वह विद्या प्राप्ति के लोभ में रानो के पास चला जाता है मौर उससे विद्या प्राप्त कर लेता है और नलकबढ़ पर विजय प्राप्त करता है । मलकवा इन्द्र की सहायता करता है । इन्द्र और रावण में भयंकर युद्ध होता है इन्द्र को अपने बल पौरुष पर गर्व है। रावण सिहरथ पर सवार होकर लहता है तो इन्द्र हाथी पर लड़ता है । दोनों विभिन्न विद्याभों का उपयोग करते हैं। अन्त में दोनों में मल्ल युद्ध होता है और उसमें रावण की विजय होती है । रावण इन्द्र को दण्ड देना है। इन्द्र के पिता सहस्रार द्वारा इन्द्र को छोड़ने की प्रार्थना करने पर रावण इन्द्र को छोड़ देता है इन्द्र को पनी हार से बहुत पीड़ा होती है। इतने में मुनिचन्द्र का बहाँ प्रागमन होता है अपने पूर्व भय का वृत्तान्त जानने के पश्चात उसे वैराग्य हो जाता है मौर अन्त मे मुनि दीक्षा लेकर निर्वाण प्राप्त करते हैं ।
घातकी द्वीप में अनन्तवीर्य मुनि को कवल्य होता है। देवता गण वहां चन्दना के लिए पाते हैं । रावण भी वन्दना के लिए पहचता है। भगवान की वाणी खिरती है । ग्रह द्रव्य, सात तत्त्व एवं नव पदार्थों पर प्रवचन होता है । प्रणवत, महावा, दश धर्म प्रादि के पालन के साथ रात्रि भोजन-निषेष का भी उपदेशा होता है। लोभदत्त सेठ की कथा भी कही जाती है जिसके अनुसार लोभदस नरक एवं सेठ भद्रदत्त अपनी ईमानदारी से जगत में सम्मान प्राप्त करता है। सुम्भकरण रावण प्रादि सभी बत ग्रहण करते है । रावण अत लेता है कि जो स्त्री उसको नही चाहेगी उसका वह शील कभी खण्डित नही करेगा ।
राजा figh ने इसके पश्चात् हनुमान के बारे में जानना चाहा । भगवान की र दिव्य बनि विरी मौर गौतम गणधर ने उसका वर्णन किया । मादितपुर के राजा प्रसाद एवं रानी केतुकी थे । उनके पुत्र का नाम पवनंजय था । उधर बसपुर देश के राजा महेन्द्र एवं उसकी रानी हृदयवेगा थी। अन्जना उनकी पुत्री थी। अन्जना जब विवाह योग्य हुई तो उसके सम्बन्ध की बात चली। महेन्द्र के एक मंत्री ने रावण का नाम सुझाया और उसके वैभव का वर्णन किया । दूसरे मन्त्री ने श्रीषेण राजा का नाम बताया । तीसरे मंत्री ने पवनंजब के लिए अनुशंसा की। राजा को पधनंजय का नाम पसन्द पाया और प्रहलाद के सामने ग्रंजना पवनंजय के सामने प्रशंसा की तो उससे उसका मन खट्टा हो गया। इससे अंजना को भी भारी दुःस हुना फिर भी दोनों का विवाह हो गया।
उधर रत्नदीप के राजा के साथ रावण का युद्ध छिड़ गया । रावण ने ।