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विषय-सूची
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२४७
२५७
विषय परिहार संयमकी विधि जिनकल्पको विधि भक्त प्रत्याख्यान करनेका निर्णय संयमके साधनमात्र परिग्रहके सिवाय शेष
परिग्रहका त्याग पाँच प्रकारकी शुद्धि पाँच प्रकारका विवेक परिग्रह त्यागका क्रम द्रव्यथिति और भावश्रितिका स्वरूप भावश्रिति शुभपरिणामकी रक्षाके उपाय
तथा प्रवत्तिका क्रम श्रितिके अनन्तर संघका त्याग पाँच प्रकारकी सक्लिष्टभावना कन्दर्प भावनाका कथन किल्विषभावनाका कथन अभियोग्य भावनाका कथन आसुरी भावनाका कथन संमोहभावनाका कथन इन भावनाओंका फल छठी तपभावना ग्राह्य तपोभावना ही समाधिका उपाय तपोभावनासे रहितके दोष श्रुत भावनाका माहात्म्य ज्ञानभावनाके होने पर ही तप-संयम
होते हैं सत्वभावनाके गुण एकत्व भावनाके गुण तथा स्वरूप धृतिवल भावना सल्लेखनाके दो भेद बाह्य सल्लेखनाके उपाय बाह्यतप अनशन तपके भेद अद्धानशनके भेद
विषय २०१ आहारका प्रमाण
२३७ २०५ अवमोदर्य तप
२३८ २०७ रस परित्याग तप
वत्ति परिसंख्यान तप २१० कायक्लेश तप
२४२ २१२ स्थानयोगका कथन
२४३ २१४ आसनयोगका कथन विविक्त शय्यासन तर
२४४ उद्गम दोष
२४५ २१७ उत्पादन दोष
२४६ एषणा दोष विविक्त वसति कौन
२४८ विविक्तवसतिमें दोषोंका अभाव २४९ निर्जराके इच्छुक यतिके द्वारा करने योग्य तप
२५० प्रकारान्तरसे सल्लेखनाके उपाय उनमें आचाम्ल उत्कृष्ट .
२५८ आचाम्लका स्वरूप
२५९ भक्तप्रत्याख्यानका काल बारह वर्ष २२४
बारह वर्षों में क्या करना चाहिये २२५ शरीर सल्लेखनाका क्रम कहकर अभ्यन्तर
सल्लेखनाका क्रम २२६ अभावमें दोष
२६१ परिणाम विशुद्धिका नाम कषाय सल्लेखना २६१ २२८
चारों कषायोंको कृश करनेका उपाय २६२ रागद्वषको शान्तिके उपाय
२६३ २२९
कषायरूप अग्निकी शान्तिके उपाय २३० सल्लेखनाके पश्चात्का कर्तव्य
२६५ २३३ यदि आचार्य सल्लेखना धारण करें तो २३५ अपना संघ योग्य शिष्यको सौंप
कर सबसे क्षमा ग्रहण करें २३६ तत्पश्चात् शिक्षा दें कि
गणधर (आचार्य) कैसा होता है १३६ ऐसा करनेवाला भ्रष्टमुनि होता है २७३ २३७ राजा विहीन क्षेत्र त्याज्य है
अभ्यन्ता
२२७
२६४
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